tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post4823607522039349961..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: क्या पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण सिर्फ महिलाएं कर रही हैं ?ZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger101125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-26302625887178206532011-06-04T15:17:23.965+05:302011-06-04T15:17:23.965+05:30गन्दगी लोगों के दिमाग में होती है। जिसके पास संस्क...गन्दगी लोगों के दिमाग में होती है। जिसके पास संस्कार है ,वो कोई भी परिधान पहने,शोभनीय और अशोभनीय का ख़याल हमेशा रखता ही है। जिसके पास संस्कार ही न हो अथवा लज्जा ही न हो तो उससे क्या उम्मीद रखना । में आप की इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ एक दम सही और सटीक बात कही है आप ने ,लकीन दुनिया में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और ही होते हैं।<br /><br /> यह जरूरी नहीं की कम कपड़े वाली लड़की की विचार धार भी बुरी ही हो और साड़ी में लिपटी औरत के विचार शुद्ध ही हों, यह बात परिधानों पर नहीं संस्कारों पर ज्यादा निभार करती है,इसलिए सभी को एक ही श्रेणी में रखना ठीक बात नहीं i am agree with you many thanks...Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-57586287043191337102011-05-27T19:24:44.032+05:302011-05-27T19:24:44.032+05:30Excellent post!!! I have been thinking on the same...Excellent post!!! I have been thinking on the same lines... thanks so much for giving words to my questions!!! Congratulations! :-)Anjana Dayal de Prewitt (Gudia)https://www.blogger.com/profile/13896147864138128006noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-60630228402596854022011-05-27T17:01:07.351+05:302011-05-27T17:01:07.351+05:30दिव्या जी, बंगाल में शक्ति पूजा का चलन माँ काली और...दिव्या जी, बंगाल में शक्ति पूजा का चलन माँ काली और माँ दुर्गा (काली और गौरी) के रूप में अनादि काल से चला आ रहा है,,, यानि शक्ति को नारी स्वरुप में सांकेतिक भाषा में अपनाया गया है... <br /><br />सन '५९ में दशहरे की छुट्टियों में हम अपने कॉलेज से कलकत्ता पहुंचे थे, और एक लौज में रह रहे थे... अगली सुबह सबेरे हम चार पांच मित्रों ने सोचा किसी से जानकारी प्राप्त कर लें कौन कौन से दर्शनीय स्थल निकट में हैं जो हम अपने निर्धारित कार्यक्रम के पश्चात देख सकें ... उस समय एक वृद्ध हलवाई की ही दूकान खुली मिली... इससे पहले कि हम उससे कुछ पूछते, एक ४-५ वर्षीय कन्या दूध खरीदने आ गयी... उसके आने पर उस वृद्ध व्यक्ति ने उसे "माँ " संबोधित किया तो हम उत्तर भारतीयों के मुख पर अज्ञानतावश मुस्कान छा गई !JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-56807233800702233522011-05-27T16:23:10.405+05:302011-05-27T16:23:10.405+05:304 din se koi nai post nahin, jara sahaanubhuti k 2...4 din se koi nai post nahin, jara sahaanubhuti k 2 shabd meri post par ----रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-91680707072842246482011-05-27T14:46:56.667+05:302011-05-27T14:46:56.667+05:30स्त्रियों के सामने दुविधापूर्ण स्थिति है। यदि वे स...स्त्रियों के सामने दुविधापूर्ण स्थिति है। यदि वे सामान्य वेशभूषा में रहें तो कहा जाता है कि इसे तो सलीके से कपडे पहनना भी नहीं आता। यदि वे थोडा बनाव श्रृंगार कर लें तो उन पर फिकरे कसे जाते हैं। हमें पश्चिम का अन्धानुकरण करने के बजाय उसकी सकारात्मक चीजों को अपनाना चाहिए।जीवन और जगत https://www.blogger.com/profile/05033157360221509496noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-64691961627157518872011-05-27T09:15:38.293+05:302011-05-27T09:15:38.293+05:30.
अपील तो की थी लोगों से की पश्चिम के एक अनुकरणीय....<br /><br />अपील तो की थी लोगों से की पश्चिम के एक अनुकरणीय व्यक्तित्व से कुछ सीख भी लें। लेकिन वहां भी ज्यादातर लोगों ने सुना नहीं। या फिर शायद इंसान तैयार नहीं है स्वयं को बदलने के लिए। जो भी हो, कोशिश जारी है...<br /><br />http://zealzen.blogspot.com/2011/05/blog-post_7214.html<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-81965996901622548812011-05-27T09:14:53.437+05:302011-05-27T09:14:53.437+05:30.
@--Pahal A milestone said...
दिव्या जी हम ....<br /><br />@--Pahal A milestone said...<br /><br /> दिव्या जी हम लोग हर बार पश्चिमी सभ्यता को अपनाने चर्चा करतें हैं ! उसमे केवल एक विषय ज्यदा देखने पड़ने को मिलता हे जो की सभ्यता को असभ्यता की पर ख़तम हो जाता हे लेकिन कभी उनकी तरकी को किस तरह अपनाएं ये कोई बात नहीं करता है काश !अगर हम लोग ये सब भी देख समझ पाते तो शायद देश का नक्षा ही कुछ और होता !<br /> May 26, 2011 5:13 PM <br /><br />-------<br /><br />अपील तो की थी लोगों से की पश्चिम के एक अनुकरणीय व्यक्तित्व से कुछ सीख भी लें। लेकिन वहां भी ज्यादातर लोगों ने सुना नहीं। या फिर शायद इंसान तैयार नहीं है स्वयं को बदलने के लिए। जो भी हो, कोशिश जारी है...<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-51624153155916487122011-05-27T09:00:20.226+05:302011-05-27T09:00:20.226+05:30.
JC जी ,
आपने हाथी के उदाहरण द्वारा बहुत ही अच्....<br /><br />JC जी ,<br /><br />आपने हाथी के उदाहरण द्वारा बहुत ही अच्छे तरीके से बात रखी है। जिसने जो देखा सुना वही समझ लिया और कह दिया। शायद समग्रता में सोचने की जरूरत नहीं समझी किसी ने। कव्वा कान ले के भागा वाली कहावत हो गयी ।<br /><br />यदि कोई पुरुष , किसी स्त्री में उसके 'माँ' और 'बहन' के स्वरुप को देखेगा , तो उसकी निगाह वस्त्रों पर नहीं जायेगी।<br />मुझे तो एक आम महिला कभी अभद्र नहीं दिखी। आस पास परिवेश में भी कभी किसी महिला को अभद्र अथवा अशालीन वस्त्र में नहीं देखा। व्यक्ति की निगाह उन्हीं पर जाती है , जिन्हें वो देखना चाहता है और जैसा देखना चाहता है।<br /><br />क्या एक बड़ा वर्ग जो सभ्रांत और सुसंस्कारित है , उस पर दोष मढना भी उचित है क्या ?<br /><br />स्वामी विवेकानंद ने , अपने विवाह के बाद जब पहली बार अपनी पत्नी को देखा तो उनके मुंह से निकला - "माँ".....और उनकी पत्नी ने कहा -- "वत्स" ।<br /><br />सब कुछ विचारों का खेल है। सोच और संस्कारों का खेल है। आँखों से तो सिर्फ स्थूल दुनिया ही दिखती है।<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-3951896482449147932011-05-27T06:55:15.267+05:302011-05-27T06:55:15.267+05:30यद्यपि सृष्टिकर्ता, परमेश्वर अथवा 'परम सत्य...यद्यपि सृष्टिकर्ता, परमेश्वर अथवा 'परम सत्य' को निराकार जाना गया... और उस शक्ति रूप में अनादिकाल से उपस्थित अदृश्य जीव को, जो शून्य काल और स्थान से सम्बंधित है, उसे जानने के लिए अनंत साकार रूपों के 'सत्य' के माध्यम से प्राचीन काल में विभिन्न कहानियों के माध्यम से दर्शाया जाता आ रहा है ("हरी अनंत, हरी कथा अनंता..."),,, <br />जिसे कुछ अंधों का हाथी को जानने हेतु प्रयास द्वारा वर्तमान में उदाहरण दिया जाता है, मस्तिष्क की कार्य विधि के कारण - जिसने पूँछ को छुआ उसने हाथी को रस्सी समान जाना; जिसने उसके पैर छुए उसने खम्बे समान; जिसने उसका बदन छुआ उसने दीवार समान; आदि, आदि, अर्थात यद्यपि जितनी हरेक ने अनुभूति की वो सत्य था किन्तु सम्पूर्ण हाथी को जानने के लिए जिसने उसे देखा है वो ही कह सकता है कि हाथी यानि परम सत्य क्या हो सकता है... <br /><br />और दूसरी ओर हम जानते हैं कि 'पंचतंत्र' की कहानी वर्तमान में हाल ही में एक राजा के मूर्ख बच्चों को सरल शब्दों में 'निति शास्त्र' पढ़ाने हेतु किसी ज्ञानी पूर्वज ने पशुओं के राजा सिंह और उसके दरबारी, अन्य निम्न स्तर के पशुओं आदि, के माध्यम से मनोरंजक कहानियों के माध्यम से दर्शाया...<br /><br />वास्तव में जोगियों और 'सिद्ध पुरुषों' ने तपस्या से चंचल और अस्थिर मन को साध, जंगली पाशों को साधने समान, जाना कि मानव सौर-मंडल के ९ सदस्यों (सूर्य से शनि तक) के सार से बनी शक्ति रूप अनंत परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, उसीका प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब, जो प्रकृति में व्याप्त विविधता और काल के साथ परिवर्तनशीलता को दर्शाने हेतु एक अद्भुत रचना है... किन्तु तपस्या और साधना, यानि अथक अनुसन्धान आज भी आवश्यक है परम सत्य अथवा परम ज्ञान तक पहुँचने हेतु... उन्होंने यह भी जाना कि एक बिंदु ('नादबिन्दू', विष्णु) पर केन्द्रित ज्ञान, मानव शरीर में किन्तु आठ चक्रों में बंटा है (जिसे नौवां शनि मूल से मस्तिष्क पहुँचाने का काम करता है उसके सार नर्वस सिस्टम द्वारा), जिस कारण परम ज्ञान पाने के लिए आठों चक्रों में, अथवा बंधों में, रिकॉर्ड की गयी शक्ति और ज्ञान को मस्तिष्क तक उठाना अनिवार्य है, किन्तु काल के प्रभाव से और शरीर के निचले भाग से कंठ तक ६ चक्रों की, यानि ६ ग्रहों की प्रकृति जानी गयी कि वो शक्ति अथवा ज्ञान को मस्तिष्क तक पहुँचने में साधारणतया बाधा डालते हैं, यानि 'राक्षश' हैं, जिनके राजा शुक्र का निवास स्थान गले में है... (शिव नीलकंठ हैं क्यूंकि विष वो ही धारण कर सकते हैं ! उनके पुत्र कार्तिकेय का वाहन नीला मोर है, और कृष्ण 'नीलाम्बर' भी हैं, और 'आकाश' सूर्य की माया के कारण नीला प्रतीत होता है यद्यपि उसका सही रूप रात में ही पता चलता है, यानि वह कृष्ण है! आदि आदि,,,)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-64034269325303143522011-05-27T00:03:43.769+05:302011-05-27T00:03:43.769+05:30सुन्दर सार्थक लेख.
वस्त्र शालीनता से पहने जाये तो ...सुन्दर सार्थक लेख.<br />वस्त्र शालीनता से पहने जाये तो अच्छे लगते हैं.<br />शालीन पहरावे से भी आदर भाव का उदय होता है.<br />मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.<br />'सरयू' स्नान का न्यौता है आपको.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-81804031495306349902011-05-26T22:33:39.575+05:302011-05-26T22:33:39.575+05:30महिलाएं वस्त्र धारण में पश्चिम का अन्धानुकरण कर रह...महिलाएं वस्त्र धारण में पश्चिम का अन्धानुकरण कर रही हैं, मर्द भी तो सदियो से कर रहे हे, लेकिन चाहे मर्द हो या ऒरत नकल तो नकल ही हे, उसे क्यो करे, शीलता ओर आशीलता की बात तो तभी आती हे जब अंग प्रदर्शन किया जाये, एक आदि वासी या मजदुर, या साडी पहनी नारी या किसी नारी की दुर्घटना के समय फ़टे कपडे देख कर भी आशीलता का भाव नही आता, ओर दुसरी तरफ़ कोई नर/नारी पुरे कपडे पहन कर भी अपनी हरकतो से आशीलता फ़ेलाते हे... इस लिये इस मे कपडो का कोई दोष नही हाव भाव ही दर्शते हे शीलता ओर आशीलताराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-74901354510706053242011-05-26T20:44:09.494+05:302011-05-26T20:44:09.494+05:30वस्त्र पहनने के मकसद तन ढकना होनी चाहिए , नुमाईश न...वस्त्र पहनने के मकसद तन ढकना होनी चाहिए , नुमाईश नहीं|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-55671343975584429112011-05-26T17:30:07.978+05:302011-05-26T17:30:07.978+05:30अन्धानुकरण स्त्री करे या पुरूष नहीं होना चाहिये.अन्धानुकरण स्त्री करे या पुरूष नहीं होना चाहिये.M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-60894721644859159242011-05-26T17:13:19.558+05:302011-05-26T17:13:19.558+05:30दिव्या जी हम लोग हर बार पश्चिमी सभ्यता को अपनाने ...दिव्या जी हम लोग हर बार पश्चिमी सभ्यता को अपनाने चर्चा करतें हैं ! उसमे केवल एक विषय ज्यदा देखने पड़ने को मिलता हे जो की सभ्यता को असभ्यता की पर ख़तम हो जाता हे लेकिन कभी उनकी तरकी को किस तरह अपनाएं ये कोई बात नहीं करता है काश !अगर हम लोग ये सब भी देख समझ पाते तो शायद देश का नक्षा ही कुछ और होता !Pahal a milestonehttps://www.blogger.com/profile/05203529305290024269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-38437144416977983962011-05-26T17:11:52.257+05:302011-05-26T17:11:52.257+05:30"..साड़ी को सबसे गरिमामय मानें तो कुछ लोगों क..."..साड़ी को सबसे गरिमामय मानें तो कुछ लोगों का ये प्रश्न है की -"आधा पेट खुला क्यूँ रहता है ? साडी navel के नीचे क्यूँ बंधी है ? और माशा अल्ला क्या खूब आधुनिक ब्लाउज हैं, पीठ पर मात्र दो इंच की पट्टी । क्या ये डिजाईन भी पश्चिम से आई है ? फिर पश्चिम का दोष क्यूँ ?<br />वाकई बेहद सटीक आकलन। भ्रमित लोगों की आंखें खुल जानी चाहिए।नवीन पाण्डेय 'निर्मल'https://www.blogger.com/profile/11330617033962169433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-45495142090321028812011-05-26T17:01:49.558+05:302011-05-26T17:01:49.558+05:30इस बात पे समर्थन नहीं है कि केवल महिलाएं ही पश्चिम...इस बात पे समर्थन नहीं है कि केवल महिलाएं ही पश्चिमीकरण से ग्रस्त हैं.. पुरुष भी उतने ही इस रोग से ग्रस्त हैं..<br />पर जो आम जगहों पर आपने महिलाओं का आज भी गरिमा के साथ रहने के बात कही है, उसमें थोडा संशय है..<br />दिल्ली और मुंबई के चंद इलाकों में जाएंगे तो शर्मसार हो कर लौटना पड़ेगा वहां के नौजवानों को देख कर..<br /><br />और पश्चिमीकरण सिर्फ वेशभूषा की ही नहीं परन्तु दारु पीने में भी हो रही है.. भद्र परिवार के शिक्षित लोग आज इसे समाज में स्टेटस का नाम देने लगे हैं..<br />बहुत ही दुःख होता है यह देख कर पर ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता.. बचपन के संस्कार गलत हों तो उन्हें बदलना मुश्किल है...Pratik Maheshwarihttps://www.blogger.com/profile/04115463364309124608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-61474922391933384202011-05-26T16:38:36.852+05:302011-05-26T16:38:36.852+05:30पश्चिमी सांस्कृति का प्रभाव तो ज़रूर है .... पर जि...पश्चिमी सांस्कृति का प्रभाव तो ज़रूर है .... पर जितना पहनावे और विचार को लेकर बोला जाता है उतना नही ... और पहनावे से कुछ नही होता ... बात विचारों की है ... वो अपने ही हों तो अच्छा है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-8322453414669267052011-05-26T14:12:44.167+05:302011-05-26T14:12:44.167+05:30दिव्या ,सहमत हूं तुमसे .....बुराई न तो किसी वस्त्र...दिव्या ,सहमत हूं तुमसे .....बुराई न तो किसी वस्त्र में है और न ही किसी परिवेश में ...अगर गरिमापूर्ण तरीके से सलीके से वस्त्र पहने तो कोई भी परिधान अच्छा है ...सबसे बड़ी बात जो मुझे लगती है वो यही है कि आलोचक उस को देखता कैसे है .....अच्छा विषय लिया तुमने ...शुभकामनायें !निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-45751062176369369552011-05-26T12:03:10.534+05:302011-05-26T12:03:10.534+05:30@ गन्दगी लोगों के दिमाग में होती है। जिसके पास संस...@ गन्दगी लोगों के दिमाग में होती है। जिसके पास संस्कार है , वो कोई भी परिधान पहने , शोभनीय और अशोभनीय का ख़याल हमेशा रखता ही है। जिसके पास संस्कार ही न हो अथवा लज्जा ही न हो तो उससे क्या उम्मीद रखना ।<br />बिल्कुल सहमत।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-66918614542433447762011-05-26T11:12:09.710+05:302011-05-26T11:12:09.710+05:30दिव्या जी, बहुत जटिल विषय है! जैसा आज के सन्दर्भ म...दिव्या जी, बहुत जटिल विषय है! जैसा आज के सन्दर्भ में मौसम आदि को ध्यान में रख परिधान में विविधता आना आवश्यक है कहा गया,,, उसी प्रकार यदि मानव जीवन के 'सत्य' को जानना हो, 'माया' को भेदने के लिए, प्राचीन ज्ञानी हिन्दुओं के विचारों को पहले जानना उपयोगी हो सकता है, जैसा वर्तमान में भी किसी भी विषय पर अनुसंधान हेतु पहले उसके इतिहास को पढना उपयोगी माना जाता है, जिससे समय की बचत हो सके, कोई काम दोह्राराने से बचा जा सके (भारत में बहुत क्षेत्रों में आप पाएंगे एक ही काम कई जगह साथ साथ अनजाने चल रहा होता है क्यूंकि विचारों का आदान प्रदान की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है)...<br /><br />दूसरी ओर, प्राचीन हिन्दू कह गए कि मानव की कार्य-क्षमता काल के साथ साथ घटती ही जाती है और कलियुग में वो २५ से ०% ही रह जाती है, आदि... यदि काल-चक्र के अनुसार आध्यात्मिक पतन प्राकृतिक मानें तो शायद हम व्यक्ति को दोष नहीं देंगे, जैसे तूफ़ान में क्षति होना अनिवार्य है और हम अदृश्य भगवान् अथवा प्रकृति के सामने अपने को लाचार मान अपने को अभागा अथवा भाग्यवान मान लेते हैं, आत्म-समर्पण कर देते हैं, और जीवन यापन में फिर से जुट जाते हैं...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-70228013821316682202011-05-26T10:34:14.475+05:302011-05-26T10:34:14.475+05:30पश्चिम को कोसने की आदत सी हो गई है .. हर बात के लि...पश्चिम को कोसने की आदत सी हो गई है .. हर बात के लिए उसी को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं और अपने अन्दर झाँकने की ज़रूरत ही नहीं समझते...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-31618514037977391442011-05-26T09:33:19.799+05:302011-05-26T09:33:19.799+05:30विचारणीय लेख."शीर्षक" को व्यापक कथन के त...विचारणीय लेख."शीर्षक" को व्यापक कथन के तौर पर कहना नि:संदेह ही आपत्तिजनक है.युग परिवर्तन के साथ ही पहनावे में भी परिवर्तन आया फिर भी गाँव से लेकर महानगर तक आज भी भारतीय परिधानों का ही प्रचलन है.एक प्रश्न यह भी उठता है -माडलिंग और फिल्मो में कुछ अभिनेत्रियाँ आपत्तिजनक वस्त्र क्यों पहनती हैं ? जाहिर है मांग के कारण .(इसके लिए निर्माता मोटी रकम अदा करते हैं.) यह मांग वास्तव में बाजार में रहती है या पैदा की जाती है.मांग है तो उपभोक्ता भी होंगे.अब प्रश्न यह है कि उपभोक्ता कौन हैं और क्यों है ?इस पर भी विचार करें.अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)https://www.blogger.com/profile/11022098234559888734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-10502723703439854342011-05-26T09:22:17.301+05:302011-05-26T09:22:17.301+05:30Dear divya,achcha hua der se aai,aap ke behtreen l...Dear divya,achcha hua der se aai,aap ke behtreen lekh ke saath logon ke tark vitark padhe.ye ek yesa mudda hai ki ek book likh sakte hain is topic par.main aapki baaton se poortah sahamat hoon.bas itna kahna chahoongi ki samay occasion,weather ke anusaar jo bhi pardhaan aapko suit karen use apnaane me kisi stri purush ko aapatti nahi honi chahiye.or hume apni aane vaali peedhi ko yahi seekh deni chaahiye ki bikne vaale so called fashion ko soch samajhkar follow karen.vaastvikta aur screen me fark samjhe.keep writing on such challenging tpoics.my blessings are with you.Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-85395825593196709592011-05-26T07:32:12.625+05:302011-05-26T07:32:12.625+05:30जहाँ कानून व्यवस्था दुरुस्त है ...वहां महिलाएं कपड...जहाँ कानून व्यवस्था दुरुस्त है ...वहां महिलाएं कपड़ों कि चिंता नहीं करतीं...भाई जब सलमान को छूट है तो मल्लिका को क्यों नहीं...खुली सोच के कारण आज के बच्चे निश्चय इन दुविधाओं से ऊपर हैं...वो जमाना गया जब एक सीन डाल के राज कपूर पिक्चर हिट करा लेते थे...Vaanbhatthttps://www.blogger.com/profile/12696036905764868427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-34274800587858824152011-05-26T01:25:59.208+05:302011-05-26T01:25:59.208+05:30फूहड़ता और अश्लील वस्त्रों कि सभ्यता कहा कि है यह ...फूहड़ता और अश्लील वस्त्रों कि सभ्यता कहा कि है यह बहुत अधिक मेने नहीं रखता. आपने कहा ज्यादातर महिलाएं अपने तन पर वस्त्रों की गरिमा को बखूबी समझती हैं. एक अच्छी बात है.<br />पूरे लेख मैं यह समझ नहीं आया कि आप उनपे पश्चमी सभ्यता का असर शब्दों से मर्दों के वस्त्रों कि बात कर रही हैं या उनके चाल चलन कि? पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता कि जो महिलों को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है। कोई भी महिला या पुरुष यदि स्वम को अपने झान,शिक्षा वफादारी तथा गुणों व मानवीय मूल्यों के द्वारा समाज मैं पह्चंवाता है तो बात समझ मैं आती है लेकिन यदि अपने यौंन आकषर्णों को ही दुसरों के सामने प्रस्तुत करने कि कोशिश करता है तो यह अनुचित है.<br />वेल ड़ोरेन्ट के अनुसार पश्चिमी महिला 19 वीं शताबदी के आंरम्भिक काल तक मानवधिनारों से वंचित की, आकस्मिक रूप से लालची लोगों के हाथ लग गई। इस प्रकार इन समाजों में महिला एक वस्तु तथा उपकरण के रूप में सामने आई है।एस एम् मासूमhttps://www.blogger.com/profile/02575970491265356952noreply@blogger.com