tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post577650968045679216..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: पवित्र , पावन , कल्याणकारी क्रोध का महात्म्य --महिषासुरमर्दिनी और ईश्वर चर्चा भाग ११ZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger61125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-75514499789400530352012-04-22T10:36:01.639+05:302012-04-22T10:36:01.639+05:30क्रोध पर आपका शोध सार्थक और प्रेरणादायी है.
दैवी स...क्रोध पर आपका शोध सार्थक और प्रेरणादायी है.<br />दैवी सम्पदा का आश्रय लिए विवेकयुक्त क्रोध कल्याणकारी होता है. <br /><br />आपका आभार इस् पोस्ट का लिंक देने के लिए.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-47701180790242537602012-04-02T17:55:07.248+05:302012-04-02T17:55:07.248+05:30आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड,
आज जंग की घड...आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड,<br />आज जंग की घडी की तुम गुहार दो,<br />आन बान शान या की जान का हो दान<br />आज इक धनुष के बाण पे उतार दो<br />,मन करे सो प्राण दे,<br />जो मन करे सो प्राण ले,<br />वही तो एक सर्वशक्तिमान है ,<br />विश्व की पुकार है यह भागवत का सार है<br />की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है<br />कौरवो की भीड़ हो या, पांडवो का नीड़ हो ,<br />जो लड़ सका है वोही तो महान है<br />जीत की हवास नहीं, किसी पे कोई वश नहीं,<br />क्या जिंदिगी है ठोकरों पे मार दो<br />मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यूँ डरे,<br />जा के आसमान में दहाड़ दो ,<br />आज जंग की घडी की तुम गुहार दो ,<br />आन बान शान या की जान का हो दान<br />आज इक धनुष के बाण पे उतार दो,<br />वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव<br />या की हार का वो घांव तुम यह सोच लो,<br />या की पुरे भाल पर जला रहे विजय का लाल,<br />लाल यह गुलाल तुम सोच लो,<br />रंग केसरी हो या मृदंग<br />केसरी हो या की केसरी हो ताल तुम यह सोच<br />लो ,<br />जिस कवी की कल्पना में जिंदगी हो प्रेम गीत<br />उस कवी को आज तुम नकार दो ,<br />भिगती मसो में आज, फूलती रगों में आज जो आग<br />की लपट का तुम बखार दो,<br />आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड आज जंग<br />की घडी की तुम गुहार दो,<br />आन बान शान या की जान का हो दान आज इक<br />धनुष के बाण पे उतार दो , उतार दो,उतार दो,ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-68148459926344978322011-12-15T10:28:39.188+05:302011-12-15T10:28:39.188+05:30gambhir..aalekh..gambhir..aalekh..Arun sathihttps://www.blogger.com/profile/08551872569072589867noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-20561033643474236322011-12-15T10:27:27.516+05:302011-12-15T10:27:27.516+05:30yeh post padhne me kuch der ho gai.bahut pasand aa...yeh post padhne me kuch der ho gai.bahut pasand aai yeh post.sahi krodh,pavitra krodh karne me koi buraai nahi bina anguli tedhi kiye to ghee nikalta nahi.Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-7480332324796582502011-12-15T10:25:52.308+05:302011-12-15T10:25:52.308+05:30yeh post padhne me kuch der ho gai.bahut pasand aa...yeh post padhne me kuch der ho gai.bahut pasand aai yeh post.sahi krodh,pavitra krodh karne me koi buraai nahi bina anguli tedhi kiye to ghee nikalta nahi.Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-64380676314487444142011-10-25T00:07:45.321+05:302011-10-25T00:07:45.321+05:30सराहनीय प्रस्तुती द्वारा मार्गदर्शन के लिए आभार व्...सराहनीय प्रस्तुती द्वारा मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त करता हूँ |<br />.<br />चकमक को गतिशील बनाये रखने से कभी ना कभी अग्नि का प्रज्जलित होना निश्चित है |<br />इस प्रकार के यज्ञ में धेर्य भी महत्त्व पूर्ण है |<br />.<br />आक्रामक व्यवहार जब महत्वकांक्षा, पहल, साहस, और आत्मविश्वास से जुड़ जाता है तब वह सकारात्मक रूप धारण कर लेता है | लेकिन इसके विपरीत वह व्यवहार शत्रु, क्रोध, और घृणा जैसे नकारात्मक व्यवहारों में भी बदल सकता है | <br />.<br />मेरे विचार से यहाँ विषय का महत्व 'शब्द' से ज्यादा 'भावों और उद्देश्य' का एवं सकारात्मक द्रष्टिगत मापदंड में आंकने का है |Yashwant Singh Shekhawathttps://www.blogger.com/profile/10916189360725733812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-25142240115703000052011-10-24T15:01:38.010+05:302011-10-24T15:01:38.010+05:30दीये की लौ की भाँति
करें हर मुसीबत का सामना
खुश र...दीये की लौ की भाँति <br />करें हर मुसीबत का सामना<br />खुश रहकर खुशी बिखेरें<br />यही है मेरी शुभकामना।Dr.NISHA MAHARANAhttps://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-70874165276939065902011-10-23T10:25:15.368+05:302011-10-23T10:25:15.368+05:30सत्य का साम्राज्य स्थापित करना हो तो असत्य का विना...सत्य का साम्राज्य स्थापित करना हो तो असत्य का विनाश अनिवार्य है.क्रोध का सात्विक रूप विकास करता है वहीं क्रोध का तामसिक रूप केवल विनाश करता है.क्रोध का प्रयोजन कल्याणार्थम् होना चाहिए.सार्थक व सार्गर्भित आलेख.अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)https://www.blogger.com/profile/11022098234559888734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-83908918224709977492011-10-23T09:41:21.702+05:302011-10-23T09:41:21.702+05:30@ Unlucky ji, "यदि आप अपना मुंह बंद रखें तो ध...@ Unlucky ji, "यदि आप अपना मुंह बंद रखें तो धोखा हो सकता है कि आप मुनि हैं, अर्थात पहुंचे हुए ज्ञानी हैं! <br />किन्तु यदि आप अपना मुंह खोल देते हैं तो सबको पता चल जाता है आप कितने अज्ञानी हैं"!! <br /><br />एक और है, "यदि आप प्रश्न पूछते हैं तो आप थोड़े से समय के लिए मूर्ख लगेंगे / किन्तु यदि आप प्रश्न नहीं पूछेंगे तो जन्म भर के लिए बुद्धू रह जायेंगे"!!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-32011018860814875112011-10-22T19:16:07.222+05:302011-10-22T19:16:07.222+05:30जो परस्पर विरोधी लगते हैं वे भाव एक दूसरे के पूरक ...जो परस्पर विरोधी लगते हैं वे भाव एक दूसरे के पूरक हैं -दोंनो का उचित संतुलन हमारे यहाँ शक्ति(देवी)के आचरण में दिखाया है और उसी मे सृष्टि का कल्याण संभव है !प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-91938141868777869882011-10-22T17:23:47.325+05:302011-10-22T17:23:47.325+05:30I really enjoyed this site. It is always nice when...I really enjoyed this site. It is always nice when you find something that is not only informative but entertaining. Greet!<br /><br />In a Hindi saying, If people call you stupid, they will say, does not open your mouth and prove it. But several people who make extraordinary efforts to prove that he is stupid.Take a look here <a href="http://unlucky-unwanted.blogspot.com/2011/10/how-true.html" rel="nofollow">How True</a>Always Unluckyhttps://www.blogger.com/profile/15784767245238881738noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-11892294580876925552011-10-22T11:03:53.031+05:302011-10-22T11:03:53.031+05:30जो विज्ञान के विद्यार्थी नहीं हैं/ रहे हैं, वो डार...जो विज्ञान के विद्यार्थी नहीं हैं/ रहे हैं, वो डार्विन का इतिहास और जीव उत्पत्ति के अनुसंधान में बीगल नमक जहाज से यात्रा आदि इन्टरनेट पर निम्नलिखित लिंक पर भी देख सकते है -<br /><br />http://en.wikipedia.org/wiki/Charles_डार्विन<br /><br />धरा पर जीव उत्पत्ति के विषय में कहावत है, "छोटी मछली को बड़ी मछली खाती है"... <br />और हमारी माँ कहती थी (हिंदी रूपांतरण), "छोटी गाय पर बड़ी गाय / बड़ी गाय पर बाघ"! <br /><br />सत्य तो यह है कि भोजन की श्रंखला में मानव का स्थान शीर्ष पर है... <br />और भोजन को निर्गुण भाव से देखें तो वो शक्ति का ही स्रोत होता है, अर्थात साकार रूप शक्ति का ही परिवर्तित रूप है... <br />किन्तु हमारी भौतिक आँखें दोषपूर्ण होने के कारण हमें धोखा दे रही हैं, यानि परम सत्य तक पहुँचने नहीं देतीं :) <br /><br />उदाहरणतया हिन्दू कथा कहानियों के अनुसार सूरदास अंधा था किन्तु फिर भी 'कृष्ण' को देख पाया! दूसरी ओर कौरव राज ध्रितराष्ट्र भी अँधा था किन्तु संजय के बताने पर भी अपने १०० पुत्रों के एक के बाद एक मरते सुन भी कृष्ण को नहीं पहचान पाया, जबकि उनके विपक्ष दल, पांडवों, के सहायक कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान कर परम सत्य तक पहुंचा दिया :)<br />यही 'कृष्णलीला' की विशेषता है :)<br /><br />और, आज तो पश्चिमी वैज्ञानिक भी पृथ्वी पर जीवन को 'ग्रैंड डिजाइन' मानने लगे हैं जबसे उन्होंने ब्लैक होल के केंद्र में समय को शून्य होना जान लिया... <br /><br />और, आम आदमी की भाषा में, 'संयोगवश' 'ब्लैक होल' पर अस्सी के दशक में एक भारतीय अमरीकन एस चंद्रशेखर ने हमारे सूर्य की तुलना में पांच अथवा उससे भारी सितारों के रेड स्टेज पर पहुंच अपनी मृत्यु के पश्चात परिवर्तित रूप धारण करने के सत्य पर शोध कर नोबेल इनाम जीता...<br /><br />अब हमारी सुदर्शन-चक्र समान दिखने वाली गैल्क्सी के केंद्र में ऐसे ही एक सुपर गुरुत्वाकर्षण वाले ब्लैक होल को अवस्थित माना जाने लगा है... जबकि प्राचीन हिन्दू 'कृष्ण' को (सहस्त्र सूर्य के प्रकाश वाले को), विष्णु समान, सुदर्शन-चक्र धारी दर्शाते आये हैं...:) इत्यादि इत्यादि...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-14424684750991599562011-10-22T11:02:14.735+05:302011-10-22T11:02:14.735+05:30दीदी वीरता और क्रोध की आप ने सुस्पष्ट व्याख्या की ...दीदी वीरता और क्रोध की आप ने सुस्पष्ट व्याख्या की हे ,क्रोधो के प्रकार बतला कर उन्हें और अधिक स्पष्ट किया हे |वर्तमान में इस आर्थिक युग में जिस भाव की कमी आमजन में हो चली हे वो वीरता ओर सात्विक क्रोध की ही हे |कल एक लेख पढ़ा था की इसी बारे में जिसमे इन भावो की बहुत ही सुंदर व्याख्या की गयी थी की हमने माँ दुर्गे की पूजा करना छोड़ दिया हे जिसके लिए उन्होंने इस संसार में रूप धारण किये थे ,हम नवरात्र माता से में केवल धन धान्य ,सुख शांती ओर परिवार की मंग्लता की ही कामना करते हे ,हम उन भावो ओर उस शक्ती के लिए माँ से प्रार्थना नहीं करते हे जिनके लिए माँ जानी जाती हे ,जिस से हमारे रास्ट्र की रक्षा हो सके हमारे समाज की रक्षा हो सके |ओर माँ का ये भी आशीर्वाद होता हे की यदि राक्षसों को मारने के लिए राक्षस बनना पड़े तो उसमें भी कोई परहेज नहीं |विनम्रता ,सीधापन ,एक हद तक ही सही हे |Manhttps://www.blogger.com/profile/04207741457433540498noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-23329970385122033012011-10-22T10:36:15.573+05:302011-10-22T10:36:15.573+05:30क्रोध भी उसी तरह का भाव है जिस तरह कि प्रेम, अनुरा...क्रोध भी उसी तरह का भाव है जिस तरह कि प्रेम, अनुराग, स्नेह आदि किन्तु यह नकारात्मक सा प्रतीत होता है। यदि उचित स्थान पर इस भाव का प्रदर्शन करा जाए तो यह अत्यंत सार्थक है, रामचरित मानस में संतकवि तुलसीदास जी ने कहा है - "विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत" । यहाँ क्रोध को एक सर्जरी के औज़ार की तरह प्रयोग करा जा रहा है और यहाँ क्रोध रचनात्मक, सकारात्मक है। अनावश्यक अहिंसा मानसिक षंढ्त्व पैदा कर देती है। अहिंसा की पिपिहरी बजाने वाले लोगों ने न तो देश की आजादी के संघर्ष में हिस्सा लिया न ही किसी आक्रान्ता से लोहा लिया, तैमूर लंग से लेकर हलाकू और कत्लूखान जैसे रक्तपिपासुओं ने जब देश पर आक्रमण करके लूटा और नरमुंडों के पहाड़ खड़े कर दिये तब अहिंसा करने वाले शायद दाल-चावल या कफ़न का धंधा कर रहे होंगे।डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)https://www.blogger.com/profile/13368132639758320994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-30241818447789280312011-10-22T07:42:37.099+05:302011-10-22T07:42:37.099+05:30good presentation n opinion.good presentation n opinion.Dr.NISHA MAHARANAhttps://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-45940229611438165102011-10-22T01:39:37.389+05:302011-10-22T01:39:37.389+05:30pls see my blog...... www.aclickbysumeet.blogspot....pls see my blog...... www.aclickbysumeet.blogspot.comsumeet "satya"https://www.blogger.com/profile/15673324697110656691noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-30026355659726867632011-10-22T01:38:27.858+05:302011-10-22T01:38:27.858+05:30अतिउत्तम लेख.....क्रोध का अच्छा विश्लेसन....अतिउत्तम लेख.....क्रोध का अच्छा विश्लेसन....sumeet "satya"https://www.blogger.com/profile/15673324697110656691noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-15186247648153367612011-10-22T00:05:03.591+05:302011-10-22T00:05:03.591+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति !!बहुत अच्छी प्रस्तुति !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-7564011030793630652011-10-21T18:50:26.658+05:302011-10-21T18:50:26.658+05:30aapki lekhni sashakt hai:)aapki lekhni sashakt hai:)मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-50957242212208030842011-10-21T11:04:11.299+05:302011-10-21T11:04:11.299+05:30दिव्या जी, सन '५९ में कोलेज से दुर्गापूजा के स...दिव्या जी, सन '५९ में कोलेज से दुर्गापूजा के समय भ्रमण पर एक सप्ताह के लिए गए हम विद्यार्थी 'माँ काली' के कोलकाता पहुँच सुबह सवेरे पहले दिन ही अपने लौज के निकट दर्शनीय स्थल आदि की भी जानकारी लेने हेतु एक बूढ़े हलवाई की दूकान ही खुली पा उस से पूछने वाले ही थे कि किसी नाटक के स्क्रिप्ट के अनुसार स्टेज में प्रवेश लेने वाले पात्र समान एक बच्ची भी वहां आ गयी तो वृद्ध हलवाई ने उससे पूछा "की लागे माँ"? <br />हम उत्तर भारतीयों के मुंह पर मुस्कान आ गयी जब एक वृद्ध को एक छोटी से बच्ची को भी 'माँ' पुकारते सुना :) <br />किन्तु उसके पश्चात बाद में कई बार कोलकाता जा जानकारी मिली कोलकाता / बंगाल की आत्मा की, जहां नारी स्वरुप को अनादि काल से पूज्य माना जाता आ रहा है...<br /><br />और फिर उसी भ्रमण के दौरान कई सरकारी और गैर सरकारी इंजीनियरिंग संस्थानों के बारे में जानने हेतु आते -जाते पहले दिन ही एक पंजाबी इंजिनियर ने हमें सावधान करते बताया कि वहाँ रहते हम ध्यान रखें की किसी बंगाली लड़की को छेड़ें ना, क्यूंकि यदि वहाँ सड़क पर किसी की पिटाई हो रही होती है, तो नवागंतुक पहले मारता है और फिर पूछता है कि उसकी पिटाई क्यूँ की जा रही थी?!<br />पूर्व दिशा को सांकेतिक भाषा में उदयाचल / अस्ताचल पर 'लाल' दीखते शक्ति के स्रोत सूर्य को, संहारकर्ता माँ काली की लाल रंग की जिव्हा द्वारा दर्शाया जाता आ रहा है :) <br />और, ज्वालामुखी के 'मुख' से निकलती लौ को भी 'टंग' अर्थात जिव्हा कहते हैं :)... <br />और यद्यपि ज्वालामुखी से निकलता लावा जलाता / संहार करता तो है पहले, किन्तु कालांतर में इसी मिटटी में पैदावार और अधिक होती है, और भूत को भूल पशु और 'अपस्मरा पुरुष' फिर खिंचे चले आते हैं :) <br />यही जीवन का सत्य है - परम सत्य नहीं :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-79946284804229616062011-10-21T08:24:24.011+05:302011-10-21T08:24:24.011+05:30क्रोध भी स्वाभाविक एंव प्राकृतिक है....मगर क्रोध ज...क्रोध भी स्वाभाविक एंव प्राकृतिक है....मगर क्रोध जिन स्तंभों के ऊपर खड़ा होकर आ रहा होता है वो महत्वपूर्ण है. अगर स्तंभ सामाजिक और मानवीय हैं तो क्रोध उचित ही होता है...आभारArvind Jangidhttps://www.blogger.com/profile/02090175008133230932noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-34796121953206937832011-10-21T01:11:59.756+05:302011-10-21T01:11:59.756+05:30Very interesting and suitable creation..
Regards.....Very interesting and suitable creation..<br />Regards..!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14112100275262110119noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-68182905550193272592011-10-20T19:14:40.383+05:302011-10-20T19:14:40.383+05:30"जो जो जब जब होना है / सो सो तब तब होता है&qu..."जो जो जब जब होना है / सो सो तब तब होता है", ऐसा मानना है हमारे पूर्वजों का... अर्थात कलियुग में विष का होना प्राकृतिक है, और इस में मानव के हाथ में कुछ नहीं है, क्यूंकि जैसे जैसे काल / समय आगे बढेगा, मानव क्षमता तुलनात्मक रूप से घटेगी ही - बचपन में सभी अबोध होते हैं, किन्तु हमारी प्रकृति बड़े होते होते भिन्न हो जाती हैं... इसे हमारे भूत पर निर्भर माना गया है... ... <br />और, यह भी कहा गया है कि हम वास्तव में सत्य युग की परम-ज्ञानी आत्माएं हैं, (परमात्मा के ही प्रतिरूप) जो कृष्ण लीला को, शून्य से अनंत स्टार को पाने को, उलटी दिशा में चलाई गयी फिल्म के समान देख रहे हैं, और दृष्टि दोष के कारण उसे सही मान रहे हैं - अर्थात हम आत्माएं सही विश्लेषण नहीं कर पा रहे हैं... <br /><br />जिसे हम मानव जीवन कहते हैं उस में हम सभी दर्शक भी हैं और नाटक के पात्र भी हैं... <br />जब हम दूसरे का रोल देखते हैं तो उस के रोल में छोटी छोटी त्रुटियाँ भी निकालते हैं... किन्तु हम अपने रोल में कई त्रुटियाँ करते हैं, और उनको हम उसी तराजू में नहीं तोलते... हम को अपनी गलतियाँ या तो दिखती नहीं हैं, अथवा वे छोटी लगती हैं... <br />ऐसा मेरा ही कहना नहीं है, बल्कि इसे ज्ञानी पुरुषों ने कई बार दोहराया भी है... <br />इस कारण हम भूल जाते हैं की हमारा सही गंतव्य क्या है? <br />क्या हम केवल टाइम पास करने आये हैं, माया में ही उलझ कर?...<br />क्या गीता मूर्खों ने लिखी है, हमें भटकाने के लिए? <br />और यदि वो परम ज्ञानी थे तो क्या हमारा मुख्य गोल अपना परम सत्य होना ही जानना नहें हो सकता?<br />आत्मा आग से नहीं जल सकती, केवल मायावी शरीर जल सकता है! <br />और रावण का पुतला हर वर्ष जलता है किन्तु रावण के भीतर की आत्मा मर ही नहीं सकती क्यूंकि वो अनंत है... <br />फिर फिर रावण ही क्या उससे अधिक ज्ञानी और साधिक स्वार्थी आते रहेंगे... <br />एक दर्पण तोड़ देने से दूसरे दर्पण आ जाते हैं, उस से भी बढ़िया, शायद... <br />शब्दों से परम सत्य की अनुभूति किसी एनी व्यक्ति को नहीं कराई जा सकती... हाँ भटकाया अवश्य जा सकता है :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-37474868011771255402011-10-20T17:38:43.659+05:302011-10-20T17:38:43.659+05:30.
@ JC जी ,
आप अपनी टिप्पणी से क्या दर्शाना चाह....<br /><br />@ JC जी ,<br /><br />आप अपनी टिप्पणी से क्या दर्शाना चाहते हैं , यह स्पष्ट नहीं हुआ। वैसे मेरा मंतव्य क्रोध की पावन अग्नि में दुष्टों के विनाश को दर्शाना है। देश , काल परिस्थिति के अनुरूप ही निर्णय लेना होता है। पाप और दुष्टों के बढ़ने पर क्रोध करके ही उनका संहार किया जा सकताहै। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-40130661001005642972011-10-20T16:21:54.929+05:302011-10-20T16:21:54.929+05:30दिव्या जी, जैसा मैंने पहले भी कहा, प्राचीन हिन्दू ...दिव्या जी, जैसा मैंने पहले भी कहा, प्राचीन हिन्दू कथा कहानी सांकेतिक भाषा में लिखी गयी हैं, इस लिए इनको लाइनों के बीच पढना पड़ता है, यदि सत्य जानना हो...<br /><br />यद्यपि राजा का नाम 'सागर' ही दर्शाता है कि यह कहानी सागर में गिरने वाली असंख्य नदियाँ (कहानी में सागर के ६०,००० पुत्र) से सम्बंधित होगी, और यूँ भगीरथी ही पुरानी गंगा होगी जो पहले अरब सागर में गिरती होगी... <br /><br />और वो नदी फिर हिमालय के सागर को चीर पृथ्वी के गर्भ से, चाँद समान, उत्पन्न होने के पश्चात धरा पर हुए परिवर्तन के कारण बंगाल की खाड़ी में गिरने लगी होगी, जैसे आज भी दिखती है... <br /><br />मैं आपके ब्लॉग में भी अपनी डॉक्टर दराल के ब्लॉग में दी गयी टिप्पणी दे रहा हूँ, आपको दर्शाने के लिए कि कैसे कपिल मुनि के क्रोध के कारण उनके अज्ञानतावश किये शक की वजह से सागर के पुत्रों को भस्म होना पडा, और फिर गंगा जल से वो पुनर्जीवित हो पाए (जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म के चक्र में)... <br /> <br />"...हम जब स्कूली बच्चे थे तो सरकारी स्क्वैयर में रहते थे अंग्रेजों के राज में, एक दिन शुभ अवसर कहलो ज्ञानवर्धन का मिल गया... शुद्ध भोजन के शौक के कारण कई लोग गाय या भैंस पालते थे...हम कहते थे कि जो सी पी डब्ल्यू डी में सुपरवाईज़र होता था उसके घर के आगे मोटर साईकिल मिलेगी और घर के पीछे गाय :)... <br /><br />एक शाम एक अन्य स्क्वैयर के एक घर के सामने बच्चों की भीड़ देख उत्सुकता हुई और हम भी दर्शकों में खड़े हो गए... <br />मैदान में जिमनेजियम के बैलेंसिंग बार समान पोस्ट के बीच उन सज्जन की गाय को खड़ा किया गया था और कमिटी के कुछ कर्मचारी के साथ एक सरकारी सांड को बुलाया हुआ था जो अपने अगले पैर बार पर रख उन कुछ मिनट के लिए उस गाय को शायद गर्भवती कर गया!<br /><br />पता नहीं अपने जीवन काल में एक सरकारी सांड (आप ही जानें) कितनी गायों का यूँ पति बन जाता होगा, कृष्ण के समान शायद ६०,००० का (वैसे १६,००० कहा जाता है, किन्तु राजा सागर के तो ६०, ००० लड़के कहे जाते हैं जिन्हें कपिल मुनि ने भस्म कर दिया था क्यूंकि शैतान इंद्र देवता ने अश्वमेध यज्ञं के घोड़े को उनके आश्रम में बांध दिया था, और वो अज्ञानी उनकी साधना भंग कर दिए :( <br /><br />और उनको जिलाने के लिए सागर के पोते भागीरथ के अथक प्रयास से ही गंगा अवतरित हुई - शिव की जटा-जूट पर, चन्द्रमा से :)..."JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.com