tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post5954431592115771532..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: दिलों में सम्मान क्या मुलाक़ात के बाद उपजता है ?ZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger59125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-58150518869258357762011-08-09T08:32:36.371+05:302011-08-09T08:32:36.371+05:30लेखन पर ध्यान देना ही अच्छी बात है.मिलने में यदि ...लेखन पर ध्यान देना ही अच्छी बात है.मिलने में यदि बनावटीपन और दिखावा ही हो और गुटबाजी हो,उससे किसी की उपेक्षा होती हो तो वह किस काम का.लेखन से ही दिल और दिमाग का मिलन हो जाता है.<br /><br />अब देखिये ने हमने तो कितनी बार आपके ब्लॉग पर आपकी थाईलैंड की पार्टी का आनंद उठाया है.ऐसे ही मिलन आयोजित करती रहिएगा.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-65287749022085327052011-08-08T19:26:35.426+05:302011-08-08T19:26:35.426+05:30"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब..."ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को<a href="http://hbfint.blogspot.com/2011/08/3-happy-friendship-day.html" rel="nofollow">ब्लॉगर्स मीट वीकली (3) Happy Friendship Day</a> में आप आमंत्रित हैं /prerna argalhttps://www.blogger.com/profile/11905363361845183539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-71768370595696869072011-08-08T09:26:40.307+05:302011-08-08T09:26:40.307+05:30This comment has been removed by the author.prerna argalhttps://www.blogger.com/profile/11905363361845183539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-21639931594149539282011-08-06T22:13:02.025+05:302011-08-06T22:13:02.025+05:30मिलना जुलना बुरा नही लेकिन गुट बनाना गलत कहुँगी..ब...मिलना जुलना बुरा नही लेकिन गुट बनाना गलत कहुँगी..बेहतर लेखन के लिए सम्मान तो मिलना ही चाहिए....Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-48731886966036670772011-08-06T20:35:22.943+05:302011-08-06T20:35:22.943+05:30टिप्पणी चाहे दें न दें आपको पढ़ने का मोह नहीं छूटे...टिप्पणी चाहे दें न दें आपको पढ़ने का मोह नहीं छूटेगा...पढ़ने का मौका नहीं छोड़ते चाहे पोस्ट और टिप्पणी लिखने का वक्त न मिले..मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-36813580790752673792011-08-06T15:36:23.164+05:302011-08-06T15:36:23.164+05:30thought provoking post....thanx
:)thought provoking post....thanx<br />:)S.VIKRAMhttps://www.blogger.com/profile/17252464333035334396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-89530603280856728972011-08-06T15:35:23.068+05:302011-08-06T15:35:23.068+05:30आपने बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है , ये चिंतन का विष...आपने बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है , ये चिंतन का विषय है . क्योंकि लेखन शायद कही पीछे रह जाता है ... <br /><br />बधाई <br /><br />आभार <br />विजय <br /><br />कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.htmlvijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-21462071163144512622011-08-06T11:21:50.078+05:302011-08-06T11:21:50.078+05:30बिना ऊपर की टिप्पणियों को पढ़े यानी उनसे बिना प्रभ...बिना ऊपर की टिप्पणियों को पढ़े यानी उनसे बिना प्रभावित हुए आपने बात कह सकता हूं, कहना चाहता हूं।<br /><br />मिलना-मिलाना बहुत ही , मेरा निजी मामला है। कइयों से मिला हूं। कुछ जो कोलकाता आते हैं, यहा मिल लेते हैं, कुछ उनके शहर मैं जाता हूं, मिल लेता हूं। उनमें से कुछेक के बारे में लिखा भी तो बस एक पात्र समझ कर। इसलिए नहीं कि उनसे मुझे टिप्पणी चाहिए या कि उनको मैं टिप्पणी देने ही जाऊंगा।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-76110197141150393862011-08-06T11:06:35.829+05:302011-08-06T11:06:35.829+05:30मेरे ख्याल से आपसी मुलाकात से एक दूसरे को नजदीक से...मेरे ख्याल से आपसी मुलाकात से एक दूसरे को नजदीक से जानने का मौका मिलता है ,रिश्ते और गहरे हो जाते हैं ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-13088365274394002842011-08-06T10:28:43.475+05:302011-08-06T10:28:43.475+05:30अभी इस मामले से हम दूर ही हैं.. "राही चल अकेल...अभी इस मामले से हम दूर ही हैं.. "राही चल अकेला" वाली तर्ज परManishhttps://www.blogger.com/profile/01119933481214029375noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-81122737671496402602011-08-06T09:48:38.586+05:302011-08-06T09:48:38.586+05:30अपने को माटी का पुतला जान, में एक अन्य ब्लॉग में ल...अपने को माटी का पुतला जान, में एक अन्य ब्लॉग में लिखी टिप्पणी आपके ब्लॉग में भी दे रहा हूँ - जिसको पढना होगा वो पढ़ लेगा :)<br /><br />अब प्रश्न यह उठ सकता है कि क्या जो मानव व्यवस्था के किसी भी, और प्रत्येक अंश में, दोष दिख रहे हैं, जबकि विद्वानों द्वारा सदियों से कानून आदि निरंतर बनाये जाते चले आ रहे हैं उन पर शत प्रतिशत कार्यान्वयन संभव क्यूँ नहीं हो पाता है?...<br /><br />कह सकते हैं कि दोष आम आदमी की, प्रत्येक व्यक्ति की, विभिन्न ग्रहण क्षमता को जाता है, यानि अज्ञानता को जाता है... <br /><br />उदाहरण के लिए, किसी भी कक्षा में एक ही विषय पर गुरु एक बड़ी संख्या में बच्चों को एक ही पुस्तक से पढाता है... वर्ष के अंत में, या कभी भी, वो प्रश्न पत्र बनाता है... और जब अंक प्रदान करता है तो आप किसी भी काल और स्थान में पाएंगे कि कुछ थोड़े बच्चे ०% अथवा इसके निकट अंक पाते हैं, कुछ १००% के निकट, और अन्य शेष किसी औसत संख्या के आस पास... जिसे एक 'वैज्ञानिक' ही शायद कह सकता है कि मानव प्रकृति के नियंत्रण में है, किन्तु कहता नहीं है!<br /><br />शायद यह भी डिजाइन कि विशेषता है और 'हम' दोष कठपुतली का मानते है, अथवा दुर्भाग्य का! <br /><br />अब प्रश्न यह भी उठ सकता है कि प्रकृति अथवा परमेश्वर अपनी ही सृष्टि में, विशेषकर मानव रुपी मिटटी के अस्थायी पुतलों में अनादि काल से क्या खोजता चला आ रही/ रहा है ?JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-55865210549406910962011-08-06T09:47:36.834+05:302011-08-06T09:47:36.834+05:30दिव्या जी आप गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का नेहरू जी की तर...दिव्या जी आप गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का नेहरू जी की तरह नेत्रुत्व कीजिये।<br /><br />वैसे जहां तक सम्मान और समारोह की बात है एक्त्रित हुये बिना ब्लाग जगत को स्थापित करना असंभव है। खास बात है किसी भी पुरूस्कार की चयन प्रक्रिया के बेदाग और सार्वजनिक होने से ही उसका महत्व बना रहता है।Arunesh c davehttps://www.blogger.com/profile/15937198978776148264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-53947643895688953712011-08-06T08:47:25.221+05:302011-08-06T08:47:25.221+05:30विचारणीय और सार्थक प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी....विचारणीय और सार्थक प्रस्तुति. आभार.<br />सादर, <br />डोरोथी.Dorothyhttps://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-88697267929344527752011-08-05T23:46:59.666+05:302011-08-05T23:46:59.666+05:30Agreed in totality,what I have felt in last one ye...Agreed in totality,what I have felt in last one year of my introduction is that we live in a false world of garlanding each other,most of the times writer becomes important than writing.If one understand this the problem is solved.One should write what the heart feels and not by design. <br />you have expressed it nicely<br />Though keeping with the time,I should have added "as always"alsoNirantarhttps://www.blogger.com/profile/02201853226412496906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-66196472796682965902011-08-05T22:45:45.237+05:302011-08-05T22:45:45.237+05:30कुछ हद तक सही भी है ! दिखावे की दुनिया ज्यादा ! सं...कुछ हद तक सही भी है ! दिखावे की दुनिया ज्यादा ! संतुलन बनानी चाहिए !अन्यथा एक तरफ प्यार तो दूसरी तरफ कुंठा साथ - साथ जन्म ले लेंगे ! और इसके परिणाम घुश और कालाबाजारी जैसा ही दिखेगा !G.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-88076650844625937502011-08-05T21:51:50.659+05:302011-08-05T21:51:50.659+05:30नहीं ऐसा नहीं है कि केवल मुलाकातों से ही दिल में स...नहीं ऐसा नहीं है कि केवल मुलाकातों से ही दिल में सम्मान उमड़ता है| ब्लॉग जगत में व्यक्ति से अधिक लेखन महत्वपूर्ण है| हाँ बातचीत होने पर व्यक्तिगत सम्बन्ध बन सकते हैं, जो कि बुरा नहीं है| किन्तु इसका असर ब्लॉग जगत पर नहीं पड़ना चाहिए| गुटबाजी को इसीलिए यहाँ नकारा जाना चाहिए|<br />वहीँ दूसरी ओर यदि किसी स्वच्छ उद्देश्य के लिए गुटबाजी हो रही है तो इसे सकारात्मक रूप से भी लिया जा सकता है| किन्तु इस गुटबाजी का भी असर इस ब्लॉगजगत पर न ही पड़े तो उचित होगा|<br />जैसा कि आशुताश भाई ने लिखा कि "हम तो स्वान्तय सुखी के लिए लिखते हैं उसी के लिए मिलते हैं"<br />इसी विचारधारा के चलते मैं भी उनसे व उनके जैसे कई अन्य ब्लॉगर मित्रों से मिला व बातचीत भी करता रहता हूँ| यह एक उद्देश्य की पूर्ती के लिए किया जा रहा है| हाँ यह भी सच है कि हम लोग व्यक्तिगत रूप से एक दुसरे से काफी जुड़ गए हैं किन्तु इसका असर ब्लॉग जगत पर नहीं पड़ने देते| किसी को पता भी नहीं है कि इस दुनिया में किन किन लोगों से मैं व्यक्तिगत रूप से मिल रहा हूँ अथवा बातचीत करता हूँ|<br />जहां तक सम्मान की बात है तो इस आभासी दुनिया में लेखक के लेखन से ही उसकी छवि निर्धारित की जाती है| अत: सम्मान भी लेखन का होना चाहिए| बातचीत करने पर एक दुसरे के बारे कुछ ओर जानने का अवसर मिलता है, किन्तु वह एक अलग बात है|<br />अत: आपके विषय का पूरी तरह समर्थन करते हुए मैं ब्लॉग जगत में स्वार्थवश की गयी गुटबाजी को पूरी तरह नकारता हूँ| <br />सहमत हूँ आपसे...दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-2257033962171212092011-08-05T20:55:15.219+05:302011-08-05T20:55:15.219+05:30तर्क वितर्क अच्छे चल रहे हैं और सभी विचारकों को पढ...<b>तर्क वितर्क अच्छे चल रहे हैं और सभी विचारकों को पढने में मज़ा भी आ रहा है . </b><br /><a href="http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/08/lady-rachna.html" rel="nofollow"><b>रचना जी भी इसी विषय पर काफी कुछ कह रही हैं बिना लाग लपेट के .</b></a>DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-16055113178318731262011-08-05T20:37:23.564+05:302011-08-05T20:37:23.564+05:30सूरदास ,तुलसीदास , रहीम ,कबीर ,बिहारी को किसने देख...सूरदास ,तुलसीदास , रहीम ,कबीर ,बिहारी को किसने देखा पर अंततः रचना और कॄतियों को ही यश और सम्मान मिला ना । <br /><br />लेखन की गुणवत्ता का ही सम्मान होना चाहिये ।amit kumar srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-37511947332576012742011-08-05T20:36:01.372+05:302011-08-05T20:36:01.372+05:30हम तो स्वान्तय सुखी के लिए लिखते हैं उसी के लिए मि...हम तो स्वान्तय सुखी के लिए लिखते हैं उसी के लिए मिलते हैंआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-5341728914284736042011-08-05T20:35:35.946+05:302011-08-05T20:35:35.946+05:30जो अपनी समझ में २००५ में आया था, वो ब्लौगिंग का सत...जो अपनी समझ में २००५ में आया था, वो ब्लौगिंग का सत्य ("सत्य कटु होता है") यह है कि 'बिके हुए' समाचार पत्रों / टीवी से सही समाचार अथवा सूचना न मिलने के कारण जनता ने, परेशान हो, इन्टरनेट पर यह सुविधा उपलब्ध होने से एक क्रांति सी आरंभ हो गयी... <br /><br />किन्तु जो मुझे पिछले ६ वर्षों में दिखाई दिया, कुछ ही वर्षों में अनेक ब्लौगर लिखना छोड़ते चले गए, क्यूंकि उनके पास अब कुछ 'नया' अथवा 'लाभदायक' माल बेचने को नहीं रह गया था (ज्ञानी प्राचीन 'हिन्दू' कह गए कि यह संसार एक झूटों का बाज़ार है, यहाँ केवल झूट ही बिकता है), और वे सूखे हुए झरने समान रह गए थे :( <br />पहले जो प्रत्येक सप्ताह में पोस्ट करते थे अब वो महीने महीने तक पोस्ट नहीं करते, या करते भी हैं तो अन्य किसी व्यवस्था में दिखने वाले दोषों पर लिख रहे हैं, और दूसरों से अपेक्षा कर रहे हैं कि वो इतने शक्तिशाली राजनैतिक तंत्र को तोड़ डालें!... जबकि दूसरी ओर वो भी हिन्दू ही थे जो कह गए कि काल-चक्र उल्टा चलता है :) <br /><br />जैसा मैंने कुछेक को कहते हुए सुना, आज का जवान महात्मा गांधी को मूर्ख कहता है क्यूंकि वो लंगोटी पहन और लाठी लिए घूमते रहे और अंत में, ('शोले' में गब्बर की याद दिलाते), उन्होंने गोली भी खाई! क्यूंकि इतनी भीड़ है और परेशान हैं, कुछ फिर भी मिल ही जायेंगे जो किसी 'बाबा' अथवा 'नेता' से उम्मीद रख उसके पीछे चल पड़ेंगे... किन्तु अधिकतर को तो अभी तक निराशा ही हाथ लगी हैं... आशा करते हैं कि 'कृष्ण', 'मन मोहन', अपना मानव व्यवस्था को अंततोगत्वा सही करने का वादा शीघ्र निभायेंगे, क्यूंकि आशा पर ही 'जीवन' निर्भर है :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-43020877175837081452011-08-05T20:30:56.414+05:302011-08-05T20:30:56.414+05:30जी नहीं दिव्या जी । कोई किसी से मिलने का प्रयास तभ...जी नहीं दिव्या जी । कोई किसी से मिलने का प्रयास तभी करता है जब उसके लिए दिल में सम्मान होता है । मिलने के बाद छवि और भी बेहतर हो सकती है या धूमिल भी हो सकती है । आभासी दुनिया में लेखन के आधार पर ही पसंद नापसंद बनती है । इसमें किसी को उपेक्षित महसूस करने की तो बात ही नहीं आती । और न ही यह गुटबाजी है ।<br />ब्लोगिंग भी एक सोशल-नेटवर्किंग ही है जहाँ ज़रूरी नहीं कि हर वक्त मुद्दों पर ही बात करते रहें । <br /><br />ब्लोगर मीट के बजाय व्यक्तिगत मुलाकात ज्यादा उपयोगी साबित होती हैं , ऐसा मेरा मानना है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-46920761751084174702011-08-05T19:36:59.072+05:302011-08-05T19:36:59.072+05:30अन्ततः लेखन ही सर्वोपरि हो।अन्ततः लेखन ही सर्वोपरि हो।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-72375687956377807532011-08-05T18:25:12.059+05:302011-08-05T18:25:12.059+05:30विचारणीय मुद्दा है।
1.सम्मान लेखन को मिलना चाहिए। ...विचारणीय मुद्दा है।<br />1.सम्मान लेखन को मिलना चाहिए। लेखन की गुणवत्ता से लेखक सम्मान का पात्र हो ही जाएगा।<br />2.आत्मीयता सिर्फ मुलाकातों पर ही निर्भर नहीं है।<br />3.आंशिक रूप से ।<br />4.शायद, लेकिन अन्य ब्लॉगर्स को चाहिए कि वे स्वयं को उपेक्षित महसूस न करें ।<br />5.कुछ दिनों के लिए ऐसा हो सकता है।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-85947218923088592672011-08-05T18:21:46.993+05:302011-08-05T18:21:46.993+05:30मुझे तो ये आशंकाएं निराधार लगती है| गुटबाजी तो बिन...मुझे तो ये आशंकाएं निराधार लगती है| गुटबाजी तो बिना मिले भी हो सकती है|<br /><a href="http://way4host.com" rel="nofollow">way4host</a>Gyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-79979638054077661012011-08-05T17:36:00.348+05:302011-08-05T17:36:00.348+05:30ठीक तो है!
स्तुति के बाद प्रार्थना और फिर उपासना!
...ठीक तो है!<br />स्तुति के बाद प्रार्थना और फिर उपासना!<br />तीनों शब्दों की व्याख्या फिर कहीं पर करूँगा!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com