tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post7304044725301783024..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: स्त्री , स्त्री की दुश्मन नहीं होती हैZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-12256751561653236762011-06-10T09:39:40.909+05:302011-06-10T09:39:40.909+05:30.
रेखा जी ,
नत मस्तक हूँ आपकी प्रतिज्ञा के आगे । ....<br /><br />रेखा जी ,<br />नत मस्तक हूँ आपकी प्रतिज्ञा के आगे । यही जज्बा देखना चाहती हूँ हर स्त्री में । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-90245911037823711762011-06-10T09:26:36.394+05:302011-06-10T09:26:36.394+05:30आपने तो बहुत गजब का प्रश्न उठा दिया है मै आप से व...आपने तो बहुत गजब का प्रश्न उठा दिया है मै आप से वादा करती हूँ की मैं न तो ऐसे जुमलों का कभी खुद प्रयोग करुँगी और न ही सुनूंगीरेखाhttps://www.blogger.com/profile/14478066438617658073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-91915440735199882202011-06-05T15:17:01.912+05:302011-06-05T15:17:01.912+05:30i liked the post content and if all woman understa...i liked the post content and if all woman understand that they are conditioned by the norms of society to stand against each other they will learn to be friends of each otherरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-53980807920730748932011-06-05T00:27:00.636+05:302011-06-05T00:27:00.636+05:30आप क्यो मेरा इम्तिहान ले रही हे...? चलिये एक बहुत ...आप क्यो मेरा इम्तिहान ले रही हे...? चलिये एक बहुत छोटा सा प्रयोग करे.. अपनी किसी भी जान पहचान की दो नारियो को ढुढें, यानि आप तीनो एक दुसरे को जानती हो अब एक नारी के सामने दुसरी की थोडी ज्यादा तारीफ़ कर दे, रजल्ट दो चार दिन तक मिल जायेगा:)<br />वैसे पुरुषो मे भी यह बिमारी मिलती हे, लेकिन उन्हे डर भी होता हे कि कही दांत ना टूट जाये... बात आगे निकलने पर.राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-4542327324290603852011-06-04T23:27:47.089+05:302011-06-04T23:27:47.089+05:30‘स्त्री , स्त्री की दुश्मन नहीं होती है’
सास-बहू ...‘स्त्री , स्त्री की दुश्मन नहीं होती है’<br /><br />सास-बहू को देख लीजिए, ननंद-भावज को देख लीजिए या फिर पत्नी और वो देख लीजिए :)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-16354508312576814332011-06-04T22:35:10.529+05:302011-06-04T22:35:10.529+05:30विचारणीय पोस्ट आभारविचारणीय पोस्ट आभारSunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-77489212893806910562011-06-04T22:18:01.637+05:302011-06-04T22:18:01.637+05:30आज का लेख आदर्शवादी सोच की देन है जबरन सकारात्मक द...आज का लेख आदर्शवादी सोच की देन है जबरन सकारात्मक दिशा लिये है. होना तो ऐसा ही चाहिए लेकिन वास्तविकता और स्त्री-मनोविज्ञान की दृष्टि से शीर्षक से ठीक उलट बात सही है.<br />लाखों उदाहरण मिल जायेंगे और अपने आस-पास एग्जिट पोल करवाकर देखेंगे तो भी आज का लेख शीर्षक शीर्षासन करता नज़र आयेगा.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-25050191708252000052011-06-04T22:09:11.949+05:302011-06-04T22:09:11.949+05:30मनोज जी नें जड़ निकाल के जो निचोड़ प्रस्तुत किया ह...मनोज जी नें जड़ निकाल के जो निचोड़ प्रस्तुत किया है मैं उससे सहमत हूँ। वही लाख टके की बात है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-65723489917082845032011-06-04T22:08:03.183+05:302011-06-04T22:08:03.183+05:30अतः द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्र...अतः द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री एवं स्त्री में हो , अथवा पुरुष और पुरुष में हो , इसके लिए द्वेष रखने वाले मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता जिम्मेदार है , उसका gender नहीं ।<br /><br /><br />-इसके बाद तो कुछ भी कहने को शेष नहीं रह जाता है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-17528913150745613972011-06-04T21:55:35.888+05:302011-06-04T21:55:35.888+05:30@ इस आलेख में विशेषकर महिलाओं से अपील की गयी है की...@ इस आलेख में विशेषकर महिलाओं से अपील की गयी है की इस नकारात्मक जुमले का प्रयोग करके ‘स्त्री-स्वाभिमान‘ को स्वयं ही ठेस मत पहुंचाइए।<br />आपकी इस सद्भावनापूर्ण अपील का मैं समर्थन करता हूं।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-63334879848577935712011-06-04T21:38:27.680+05:302011-06-04T21:38:27.680+05:30व्यक्तिगत अनुभव और अधिकता में फर्क होता है न .... ...व्यक्तिगत अनुभव और अधिकता में फर्क होता है न .... पर इस सच का होना दुखद है !रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-31596243007334025042011-06-04T21:25:11.408+05:302011-06-04T21:25:11.408+05:30पिछली टिप्पणी में “जड़” को निचोड़” पढ़ा जाए।पिछली टिप्पणी में “जड़” को निचोड़” पढ़ा जाए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-9482773468824356922011-06-04T21:24:22.838+05:302011-06-04T21:24:22.838+05:30@ द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री ...@ द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री एवं स्त्री में हो , अथवा पुरुष और पुरुष में हो , इसके लिए द्वेष रखने वाले मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता जिम्मेदार है , उसका gender नहीं ।<br />सब बातों की जड़ और लाख टके की बात यही है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-83024066924222334502011-06-04T21:20:03.078+05:302011-06-04T21:20:03.078+05:30हर माँ एक लड़की होती है,लेकिन वह लड़का ही चाहती है...हर माँ एक लड़की होती है,लेकिन वह लड़का ही चाहती है। हमारी सामाजिक सोच आज भी रुढ़िवादी है। नई सोच...जिसमें वैज्ञानिकता हो, का आज भी सर्वथा अभाव दिखाई देता है। आज लोग साक्षर जरुर हैं,पर शिक्षित नहीं। जो लोग स्वयं को शिक्षित कहते हैं,उनमें भी शिक्षा जैसा कोई गुण नहीं दिखाई देता। शिक्षा का अर्थ है:जो भीतर है,उसे बाहर निकालना अर्थात विवेक-बुद्धि का इस्तेमाल करना। इस परिभाषा के अनुसार एक अनपढ़ व्यक्ति भी शिक्षित हो सकता है,जो अपने विवेकानुसार कार्य करता है और एक तथाकथित शिक्षित व्यक्ति भी अनपढ़ हो सकता है,यदि उसमें विवेकबुद्धि अनुसार कार्य करने की क्षमता न हो। समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों की जड़ यही है कि व्यक्ति अपने विवेक-सम्मत कार्य नहीं करता। फिर समाज में व्याप्त धारणाएँ ऐसे लोगों को प्रिय लगने लगती हैं,जो विवेकानुसार कार्य नहीं करते। किसी विद्वान ने कहा है कि गुस्से में हो,तो कभी न लिखो...क्योंकि गुस्से में विवेक साथ नहीं रहता। अब आता हूँ अपने शुरु के कथन पर। स्त्री यदि स्त्री का सम्मान करे तो वह कभी पुत्र की चाह न करे, बल्कि नियति में जो हो उसे स्वीकार करे। बहुत गहरे में हमारी धारणाएँ सामाजिक रुढ़ियों से जुड़ी हैं। इन्हें तभी तोड़ा जा सकता है...जब व्यक्ति-व्यक्ति की सोच वैज्ञानिक आधार पर हो और व्यक्ति अपने स्व-विवेक से कार्य करे। <br /><br />वस्तुत: न कोई किसी का दोस्त होता है और न ही दुश्मन। यह उसकी सोच ही है जो उसे किसी का दोस्त और किसी का दुश्मन बना देती है। हमारी सोच का जो केंद्र-बिंदु होता है, हम वैसे ही बन जाते हैं। <br /><br />जिंदगी में हमारी सजगता कहाँ है, हमारे विश्वास किस प्रकार के हैं या किस परिवेश की देन हैं, हम क्या चुनते हैं ...इन सब बातों से ही हमारा नजरिया बनता है...जो हमें किसी का दोस्त या किसी का दुश्मन बना देता है। <br /><br />अंतत: इतना कहूँगा कि स्वविवेक से जीने वाला व्यक्ति स्थितप्रज्ञ को प्राप्त होता है...जहाँ सब भेद मिट जाते हैं और व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार मैत्री भाव से जीने लगता है।मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-67231609565803104472011-06-04T21:06:50.143+05:302011-06-04T21:06:50.143+05:30.
इस आलेख में लीक से हटकर एक नयी सकात्मक सोच पर ब....<br /><br />इस आलेख में लीक से हटकर एक नयी सकात्मक सोच पर बल दिया गया है। कोशिश कीजिये उस तरफ भी ध्यान देने की । इस आलेख में विशेषकर महिलाओं से अपील की गयी है की इस नकारात्मक जुमले का प्रयोग करके 'स्त्री-स्वाभिमान' को स्वयं ही ठेस मत पहुंचिए।<br /><br />यदि संभव हो तो इस सन्देश पर ध्यान दें। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-67609371726043081802011-06-04T21:02:48.721+05:302011-06-04T21:02:48.721+05:30.
मेरा विवाह २१ वर्ष की आयु में मेडिकल के तृतीय व....<br /><br />मेरा विवाह २१ वर्ष की आयु में मेडिकल के तृतीय वर्ष की पढाई के दौरान हुआ था। आगे की higher studies , विवाह के उपरान्त ही संपन्न हुई। इसमें पहला सहयोग मेरे पति का था। कहा भी गया है ...हो मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ? यदि मुझे सहयोग नहीं भी मिलता तो भी सब कुछ मुझ पर ही निर्भर करता है । पढाई बीच में तो छोड़ नहीं सकती थी। विरोध के बावजूद भी पढ़ती ही। यहाँ बहू की स्वयं की इच्छा शक्ति भी शामिल है। <br /><br />जो कमज़ोर इच्छा शक्ति वाले होते हैं , वे ही दूसरों को दोष देते हैं । अन्यथा आगे बढ़ना तो स्त्री के स्वयं के हाथ में ही है। मार्ग से विघ्न- बाधाओं को हटाते चलें और अपना मार्ग प्रशस्त करें। सास को दोष देने से क्या लाभ। <br /><br />वैसे बात बात पर सास-बहू को क्यूँ दोष दें । यदि ससुर दामाद को महिना भर साथ रख दिया जाए तो शायद दिन में भी तारे नज़र आ जायेंगे। उसी दिन समझ आ जाएगा पुरुषों में आपस में कितनी एकता है। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-21639383361649431922011-06-04T20:50:57.980+05:302011-06-04T20:50:57.980+05:30द्वेष रखना व्यक्तिगत है.स्त्री हो या पुरुष.कोई भी ...द्वेष रखना व्यक्तिगत है.स्त्री हो या पुरुष.कोई भी किसी से भी रख सकता है.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-26927759829822599382011-06-04T20:37:36.441+05:302011-06-04T20:37:36.441+05:30नारी शक्ति को नमन...और जो लोग इसे झेल रहे हैं...उन...नारी शक्ति को नमन...और जो लोग इसे झेल रहे हैं...उन्हें भी नमन...पुरुष जितना नारी का सम्मान करता है...मुझे शक है की नारी उतना कर पायेगी...Vaanbhatthttps://www.blogger.com/profile/12696036905764868427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-41660532886798947412011-06-04T20:31:08.342+05:302011-06-04T20:31:08.342+05:30दोनों ही बातें हैं. कोई भी एक बात पूर्ण सत्य नहीं ...दोनों ही बातें हैं. कोई भी एक बात पूर्ण सत्य नहीं है. मैं दोनों ही प्रकार के सत्य अनुभवों से गुज़रा हूँ. मात्र अशिक्षा ही नहीं हमारी सोच भी दोषी है मैं यहाँ एक परिवार को जानता हूँ...महिला उच्च शिक्षिता है ....अध्यापन करती है ....पर खाने-पीने से लेकर पढाई-लिखाई तक के मामले में घर की लड़कियों से पक्षपात करती है, उस घर में लड़कों को जो स्थान प्राप्त है वह लड़कियाँ तो अपने लिए सोच भी नहीं सकतीं. यदि शिक्षा में पक्षपात है तो निश्चित ही यह लड़की के प्रति द्वेषपूर्ण भाव है ...मैं इसे लड़की के प्रति दुश्मनी का ही भाव मानता हूँ. ऐसे परिवार आज भी काफी संख्या में हैं. ऐसे भी परिवारों को देखा है जहाँ लड़कियों को बड़े ही आदर और लाड़-प्यार के साथ पाला जाता है ....पर ऐसे कम परिवार ही देखे हैं. असल में स्वयं दिव्या की दृष्टि में कोई स्त्री/ लड़की दुश्मन नहीं है इसलिए उन्हें लगता है कि सब स्त्रियाँ ऐसी ही हैं. चलो अच्छा है दिव्या की बहू सौभाग्यशालिनी होगी ऐसी सास पाकर. बहू को अग्रिम बधायी....मतलब यह कि सास हो तो दिव्या जैसी वरना मत हो .बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-59995049484580974342011-06-04T20:02:38.343+05:302011-06-04T20:02:38.343+05:30Aap se pooree tarah sahmat hun.....agyan,ashiksha,...Aap se pooree tarah sahmat hun.....agyan,ashiksha,in karanon se kayee baar aisa prateet zaroor hota hai,ki,stree stree kee dushman hai...kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-29437163223720796622011-06-04T19:44:45.508+05:302011-06-04T19:44:45.508+05:30व्यक्ति के दोषों के लिये पूरे वर्ग को दोषी नहीं ठह...व्यक्ति के दोषों के लिये पूरे वर्ग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-34457362934345166572011-06-04T19:41:28.618+05:302011-06-04T19:41:28.618+05:30दिव्या जी नमस्ते ! क्षमा कीजिएगा शायद मै पहली बार ...दिव्या जी नमस्ते ! क्षमा कीजिएगा शायद मै पहली बार आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ | यह मेरे अनुभव की बात है शायद आपने ऐसा अनुभव न किया हो | हर व्यक्ति का अनुभव उसके देश, काल तथा परिवेश पर निर्भर होता है | एक दुसरे के बीच मतों का अंतर होने का मतलब ये नहीं है की उनके बीच इर्ष्या भी हो | इसके लिए लड़की के मायके तथा ससुराल का उदाहरण ही काफी है | आपने बहुत कम लड़कियों को विवाह के बाद आगे की शिक्षा ग्रहण करते देखा होगा | विशेष रूप से इसकी विरोधी अधिकतर सास ही होती है | बहुत ही कम लड़कियां ऐसी सौभाग्य शाली होंगी जिन्हें विवाह बाद ऐसा अवसर मिला हो !मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-60179456589739586442011-06-04T19:27:10.885+05:302011-06-04T19:27:10.885+05:30दिव्या जी, इस पोस्ट के विषय में इतना ही कहना चाहूँ...दिव्या जी, इस पोस्ट के विषय में इतना ही कहना चाहूँगा कि अधिकांश मामलों में स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है और पुरुष पुरुष का. opposite sex के प्रति तो प्रायः आकर्षण ही होता है. <br />एक सार्थक व रचनात्मक पोस्ट के लिए आभार !शूरवीर रावतhttps://www.blogger.com/profile/14313931009988667413noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-572975052313174442011-06-04T19:25:46.151+05:302011-06-04T19:25:46.151+05:30लेकिन लड़के की चाह में लड़कियों को दुश्मन मान लेना न...लेकिन लड़के की चाह में लड़कियों को दुश्मन मान लेना न जाने कितनी महिलाओं को देखा है, उम्रदराज और अनुभवी महिलाओं को.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-6640830835778764772011-06-04T18:43:20.349+05:302011-06-04T18:43:20.349+05:30बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
अपने ब्लॉग से हमारी वाणी को...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!<br />अपने ब्लॉग से हमारी वाणी को साइड में लगाइए न!<br />ऐसा लगता है जेसे व्लॉग का नाम ही हमारी वाणी है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com