tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post2179175587922456327..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: चंचल -- कहानीZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger55125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-17725187392732007082014-04-14T15:32:52.241+05:302014-04-14T15:32:52.241+05:30सत्य की हमेशा विजय होती है। आदमी विशेष का अपना स्व...सत्य की हमेशा विजय होती है। आदमी विशेष का अपना स्वभाव होता है। और सच्चाई यही है कि अपने स्वच्छ गुणों को पल्लवित होने दें। व्यर्थ की बातों से खुद को बचाएं।मेरी कुछ कही, कुछ अनकही!https://www.blogger.com/profile/07598216835488889415noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-28739806006328284612011-06-26T17:11:09.594+05:302011-06-26T17:11:09.594+05:30अति सर्वत्र वर्जयेत्.
स्वस्थ संबंधों के लिये स्...अति सर्वत्र वर्जयेत्.<br /> स्वस्थ संबंधों के लिये स्वस्थ मानसिकता का होना आवश्यक है.<br />मिहिर का व्यक्तित्व कुंठाओं से युक्त लगता है .चंचल को आपनी बात मिहिर से कह कर स्पष्ट कर लेनी चाहिये.प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-19132286238521914722011-06-21T11:39:11.147+05:302011-06-21T11:39:11.147+05:30दिव्या जी, अपने जीवन काल के सात दशक से ऊपर समय में...दिव्या जी, अपने जीवन काल के सात दशक से ऊपर समय में जो 'हमने' अनुभव किये उसके आधार पर पाया कि "सत्य कटु होता है", यानी सही कह गए हमारे 'ज्ञानी-ध्यानी' पूर्वज, जिसमें से जो सबसे पुराने हैं - जो अनादि काल से अनंत निराकार ब्रह्म अनंत अस्थायी साकार के मूल हैं - वो 'हम ज्ञानी' ('प्रकृति' को प्रतिबिंबित करती नित्य परिवर्तनशील मानव द्वारा रचित व्यवस्था में परीक्षा में +/- १००% अंक लाने वाले), अथवा निपट अज्ञानी (०% अंक लाने वाले, और 'मध्य मार्ग' में जैसे चलते औसत नंबर से पास होने वाले) साकार मानव शरीर में कैद आत्मा के दुर्भाग्य से शून्य काल और स्थान से सम्बंधित अजन्मे और अनंत परमात्मा हैं... और उनके अनुसार जिसे 'हम' सत्य समझ रहे होते हैं, वो वास्तव में असत्य है, 'प्रभु' (जो भू अथवा भूमि से पहले से शक्ति रूप में शून्य में उपस्थित था), उसकी 'माया' अथवा 'योगमाया' है, जिससे पार पाना 'आम आदमी' अथवा 'आम आत्मा' के बस में साधारणतया केवल 'सतयुग' में ही है... कलियुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग में बहुत ही कठिन है उसका आभास होना, वो भी कठिन तपस्या के बाद (और यदि जैसे स्वयं माँ यशोदा और पिता नन्द का आश्रय पा भाग्यवान 'कृष्ण' की भी कृपा हो जाए, जैसे उन्होंने अर्जुन पर द्वापर में की)...<br /> <br />इसे 'हम' अपना दुर्भाग्य कहें या प्रभु की इच्छा कहें, 'हमें' अनंत (+/-) मॉडेल देखने को मिल जाते हैं, कलियुग में और भी अधिक, क्यूंकि, जैसे प्रकृति को संकेत करते 'हम' देखते हैं, धरती की सतह पर जल ऊपर से नीचे की ओर ही बहता है, उसी प्रकार काल सतयुग से कलियुग की ओर चलते जाता है कह गए ज्ञानी-ध्यानी, किन्तु दूसरी ओर यदि कोई बूँद विशेष सागर तक पहुँच भी जाए, प्राकृतिक शक्तियां उसे फिर से बादल बन बरसने को मजबूर कर सकती हैं :) <br /><br />मुझे लगता है दोनों पात्रों को अभी बहुत कुछ सीखना शेष है...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-72649565023899495822011-06-21T10:11:08.543+05:302011-06-21T10:11:08.543+05:30.
नकारात्मक ऊर्जा वालों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।....<br /><br />नकारात्मक ऊर्जा वालों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। <br /><br />जिंदगियों में उगते खर-पतवार - [Art of weeding] <br /><br />http://zealzen.blogspot.com/2011/05/art-of-weeding.html<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-50412573389337607372011-06-21T09:48:21.416+05:302011-06-21T09:48:21.416+05:30.
ईर्ष्या का कोई इलाज नहीं है । ये एक incurable म....<br /><br />ईर्ष्या का कोई इलाज नहीं है । ये एक incurable मानसिक विकार है ।<br />इन्द्रिय निग्रहण --- ईर्ष्या एक घातक मानसिक विकार --- Jealousy-A malignant cancer ! <br /><br />http://zealzen.blogspot.com/2010/10/jealousy-malignant-cancer.html<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-22993476176636427352011-06-21T09:28:54.906+05:302011-06-21T09:28:54.906+05:30.
कहानी में मिहिर तो एक कल्पित नाम है , लेकिन अब ....<br /><br />कहानी में मिहिर तो एक कल्पित नाम है , लेकिन अब यथार्थ का एक सटीक उदाहरण भी मिल गया है। और वो नाम है ब्लॉगर रचना।<br /><br />रचना के लिए भी 'मित्र' शब्द का इस्तेमाल कर रही हूँ , क्यूंकि इन्होने मित्र शब्द की व्यापकता पर गौर नहीं किया। अन्य कोई दूसरा शिष्ट संबोधन मैं जानती नहीं जिसे प्रयोग कर सकूँ। मित्र को , पुरुष-मित्र कहकर अर्थ का अनर्थ जैसा किया इन्होने।<br /><br />रचना जी को पिछले एक वर्ष से परिचित हूँ। रचना जी मेरे लेखों पर नहीं आतीं , लेकिन जब इनका मूड होता है तो अचानक आकर आक्रामक रूप से नकारात्मक टिप्पणी लिखकर अनावश्यक विवाद उपस्थित करती हैं , जिससे अच्छा-खासा आलेख बर्बाद हो जाता है। लोगों का mind आलेख से हटकर विवाद पर केन्द्रित हो जाता है। और विवाद करना ही रचना जी का मंतव्य होता है । यही इनकी खुराक है , और विवाद करे बगैर रचना जी का हाजमा सही नहीं रहता।<br /><br />रचना जी ऐसा केवल मेरे ब्लौग पर नहीं करतीं , अपितु अनेक महिला एवं पुरुष ब्लॉगर के आलेख पर जाकर अनावश्यक विवाद उपस्थित करके , लेख का सत्यानाश कर देती हैं और अपने प्रयोजन में सफल हो जाती हैं ।<br /><br />ऐसी मानसिकता वालों को sadist कहते हैं । ऐसे लोगों को sadistic pleasure मिलता है दूसरों को यातना देने में।<br /><br />रचना जी ने मुझसे निवेदन किया था की मैं उनके 'नारी ब्लौग' पर अपने आलेख पोस्ट करूँ । मैंने उनसे कहा था की जब "ZEAL" ब्लॉग से मन भर जाएगा तब 'नारी' ब्लौग पर लेख पोस्ट कर दूँगी , फिरहाल तो ZEAL पर ही पोस्ट करना अच्छा लगता है । मुझे अपना-अपना सा महसूस होता है । तबसे रचना जी मुझसे चिढ़ी हुयी है , और मेरे अनेक आलेखों पर आक्रामक होकर अपनी भड़ास निकालती हैं।<br /><br />रचना जी को चाहिए की वे अपने मन की कडवाहट को थोडा कम करें अन्यथा उनका जीवन उन्हीं पर भार हो जाएगा । इतना मीठा भी नहीं होना चाहिए की कोई निगल ले और इतना कड़वा भी नहीं होना चाहिए की कोई थूक दे।<br /><br />रचना जी को एक वर्ष तक बहुत बर्दाश्त किया है। अब मेरी सहनशक्ति की पराकाष्ठ हो गयी है । रचना जी से निवदन है की वे मुझसे पर्याप्त दूरी बना कर रखें। मैं उनकी तरह विवाद-पसंद नहीं हूँ। इसलिए बेहतर है वे अन्य ब्लौगों पर भड़ास निकालें , लेकिन मुझे क्षमा करें ।<br /><br />--------------<br /><br />यदि मिहिर के स्थान पर किसी स्त्री का कल्पित नाम होता तो ५० प्रतिशत कमेन्ट में लोग बिना विचारे यही लिखते की स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । अतः काफी विचार करने बाद कहानी के तौर पर संक्षेप में सारगर्भित बात लिखकर विमर्श आमंत्रित किया। उपन्यास लिखना और कहानी के माध्यम से मनोरंजन करना इस कहानी का प्रयोजन नहीं था।<br /><br />मिहिर जो इस कहानी को पढ़ रहा होगा , उससे उम्मीद है वह स्वयं को सुधारेगा । यहाँ आये पाठकों के विचारों से मिहिर सबक लेगा , आत्मावलोकन करेगा और किसी की सहनशक्ति का इम्तिहान नहीं लेगा। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-67331443368616546242011-06-21T08:11:11.119+05:302011-06-21T08:11:11.119+05:30.
कुश्वंश जी ,
कल रचना जी के अनावश्यक रूप से आक....<br /><br />कुश्वंश जी ,<br /><br />कल रचना जी के अनावश्यक रूप से आक्रामक हो जाने पर तथा उनके अनर्गल प्रलापों द्वारा मन कुछ अस्वस्थ हो गया था। इसीलिए शान्ति की तलाश में कमेन्ट आप्शन बंद कर दिया था। लेकिन पाठक अपना विचार रखना चाहते थे तथा मेल से प्रतिक्रियाएं मिलने लगीं तो पुनः कमेन्ट आप्शन खोल दिया। आप में समय के साथ आया अनुभव है , एक परिपक्वता है , और लोगों को सही परिपेक्ष्य में समझने की कोशिश आपके स्वर्ण जैसे ह्रदय को दर्शाता है। आपका concern समय-समय पर देखने को मिलता है, जो अत्यंत ह्रदय स्पर्शी है । मन से आपका आभार। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-27608992520858936772011-06-21T06:54:08.049+05:302011-06-21T06:54:08.049+05:30ऊँचाइयों पर बने रहना अपने आप में एक विलक्षण गुण है...ऊँचाइयों पर बने रहना अपने आप में एक विलक्षण गुण है मिहिर चाहे जैसा हो पर चंचल को आत्मसम्मान को बनाये रखने के लिए एक सीमा निर्धारित कर विरोध भी दर्शाना चाहिए दिल से माफ करके भविष्य के लिए चेतावनी तो देनी चाहिए क्योंकि बार बार नकारात्मक व्यवहार से पीड़ित होते रहने से व्यक्ति आत्मसम्मान खोते खोते अपना अस्तित्व ही खो देता है ऐसा मनोविज्ञान मानता है ( फिल्म ख़ामोशी )<br />गांधी जी क्षमा को महत्व देते थे और विरोध भी सख्ती से दर्ज करते थेVandana Ramasinghhttps://www.blogger.com/profile/01400483506434772550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-10107544886981929572011-06-21T02:13:38.453+05:302011-06-21T02:13:38.453+05:30अपने स्वभाव में स्थिर रहना एक विलक्षण गुण हैं जिनम...अपने स्वभाव में स्थिर रहना एक विलक्षण गुण हैं जिनमे होता है उन्हें कोई डिगा नहीं सकता .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-89087303894776120122011-06-21T01:16:51.205+05:302011-06-21T01:16:51.205+05:30good questions,
as its human life anything is poss...good questions,<br />as its human life anything is possible, but M may be doing it so C will become strong.<br />M may be getting bad type of pleasure by troubling girl.<br />girl needs to become strong when M is wrong she should tell him his fault and forgive him.<br /><br />To forgive someone again and again is very difficult task thus Girl is far superior than M,<br />M knows this understands this and which he can not do it when he sees Girl is doing it he becomes angree and want to make her like him.SMhttps://www.blogger.com/profile/08421656022621802223noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-539756714389839912011-06-21T00:29:39.760+05:302011-06-21T00:29:39.760+05:30उस साधू की कहानी याद आती है जो नदी में बहते हुए बि...उस साधू की कहानी याद आती है जो नदी में बहते हुए बिच्छु को बार बार बचाने की कोशिश कर रहा था और बिच्छु डंक मार मार उसके हाथ से छिंटक कर पानी में फिर फिर बह रहा था.दोनो अपने अपने स्वाभाव से मजबूर हैं.परन्तु असली विद्वता तो इसी बात में है कि अपने स्वाभाव और दूसरे के स्वाभाव को समझा जाये और आपसी ताल मेल को बनाते हुए 'सर्वजन सुखाय,सर्वजन हिताय' की नीति को अपनाया जाये.<br />वर्ना 'छाडी मन हरी विमुखन को संग,जाके संग कुबुद्धि उपजत पडत भजन में भंग,छाडी मन हरी विमुखन को संग.'Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-14996725967440674692011-06-21T00:11:32.997+05:302011-06-21T00:11:32.997+05:30ऐसे चरित्र चाहें मिहिर हो या चंचल समाज में अनेकों ...ऐसे चरित्र चाहें मिहिर हो या चंचल समाज में अनेकों हैं. पुरुष इस तरह के व्यवहार को अपना हक समझता है, वहीँ स्त्री इसे अपनी नियति.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-82333090845628565022011-06-21T00:07:31.259+05:302011-06-21T00:07:31.259+05:30बहुत सुंदर है ये कहानी
विवेक जैन vivj2000.blogspo...बहुत सुंदर है ये कहानी<br /><a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-72879604544591443372011-06-20T23:48:38.413+05:302011-06-20T23:48:38.413+05:30दिव्या जी आप लेखन में हमेशा ज्वलंत प्रश्न उठाती है...दिव्या जी आप लेखन में हमेशा ज्वलंत प्रश्न उठाती हैं यही तो है ब्लॉग लेखन की उत्कृष्ट परिणति.आम कहानी में न प्रश्न उठते है और न ही कोई टिप्पणी कहानीकार को रुचिकर लगती है. मैं जब से आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ आपकी बात को समझ रहा हूँ, आपको भी . कुछ कतिपय टिप्पणीकारों की अनर्गल प्रवंचना से बिना विचलित हुए बात कहें और धड़ल्ले से डंके की चोटपर लिखे .अपनी स्म्रध्शाली लेखनी को किसी के उद्देलित करने पर शिथिल न होने दे .आपको और साहस और बल मिले , इन्ही शुभकामनाओ के साथ आपकी एक और बेहतरीन पोस्ट के इंतज़ार में, एक बात और प्रतितिप्पनी जरूर दे और पिछली घोषणा रद्द करने की बात लिखे.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18094849037409298228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-66191746279708144742011-06-20T23:12:35.466+05:302011-06-20T23:12:35.466+05:30प्रिय दिव्या ,
कथा के अंत में तुम्हारे प्रश्न ने व...प्रिय दिव्या ,<br />कथा के अंत में तुम्हारे प्रश्न ने विक्रम और बेताल की याद दिला दी और मुझे लगा कि मैं उत्तर न दूँ तो मेरा सर टुकड़े -टुकड़े हो सकता है ! कथाकार दिव्या की यह बात बहुत पसंद आयी. अब बात करें कथा की - मिहिर कुछ sadist सा जान पड़ता है . उसका चित्त चंचल है ..जबकि चंचल गंभीर है . मिहिर की समझ महज किताबी लगती है . उसे चंचल की गहराई का अनुमान नहीं हो पाया अंत तक ..उसकी हरक़तें बाल सुलभ हैं ..उसे बड़ा होना होगा वर्ना वो जीवन के कई सुख चूकेगा ..चंचल निसंदेह एक सुन्दर पात्र है . चंचल को देख के अंग्रेजी की वो सूक्ति याद आ रही है मुझे कि Mercy is the noblest form of revenge. हालांकि चंचल तो ये भी नहीं सोचा ..क्षमा उसका स्वभाव है .बाबुषाhttps://www.blogger.com/profile/05226082344574670411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-53298649094315267772011-06-20T23:12:30.810+05:302011-06-20T23:12:30.810+05:30मानव समुदाय में जितनी भिन्न व्यकितयों की शक्ल और ह...मानव समुदाय में जितनी भिन्न व्यकितयों की शक्ल और हथेली की रेखाएँ होती हैं उतने ही भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्तित्व भी प्रायः सामने आते रहते हैं । निष्कर्ष निकालने बैठें भी तो बहुत मुमकिन है कि वो निष्कर्ष आधा-अधूरा ही साबित हो ।Sushil Bakliwalhttps://www.blogger.com/profile/08655314038738415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-58181150304313189942011-06-20T22:47:02.615+05:302011-06-20T22:47:02.615+05:30Bahut hi achcha likha hai aapne....Arthpurna.Bahut hi achcha likha hai aapne....Arthpurna.Gopal Mishrahttps://www.blogger.com/profile/17048839371013189239noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-21980597726290981252011-06-20T22:45:15.098+05:302011-06-20T22:45:15.098+05:30अपने बीच के किसी व्यक्ति की उपेक्षा करना उस व्यक्त...अपने बीच के किसी व्यक्ति की उपेक्षा करना उस व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी सजा है।<br /><br />मिहिर की कड़वी कड़वी बातों को चंचल चुपचाप सहती रही। मिहिर ने समझा कि चंचल उसकी उपेक्षा कर रही है। मिहिर के अहम् को इससे चोट पहुंची। वह किसी भी तरह से चंचल की प्रतिक्रिया चाहने लगा। इसके लिए मिहिर ने चंचल को और कष्ट देना जारी रखा। सीधी-सादी चंचल रोकर ही प्रतिक्रिया दे सकती थी।<br />मिहिर यही चाहता था। उसके अहम् को संतुष्टि मिल गईमहेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-10653744036650020202011-06-20T22:30:47.035+05:302011-06-20T22:30:47.035+05:30.
Diwas Gaur to me
show details 9:08 PM (1 hour....<br /><br />Diwas Gaur to me<br /> <br />show details 9:08 PM (1 hour ago)<br /> <br />आदरणीय दीदी<br />नमस्कार...<br /><br />मैं अभी आपके ब्लॉग पर आया था...आपकी नयी पोस्ट चंचल-कहानी देखी| उस पर<br />आने वाली टिप्पणियां भी देखीं| मैंने देखा बहुत सी बुद्धूजीवी टिप्पणियां<br />भी आई हैं| मेरा भी मन था टिपण्णी करने का, किन्तु आपने कमेन्ट ऑप्शन बंद<br />कर दिया है| खैर मैं तो बस आपकी कहानी पर अपने विचार रखना चाहता था, अत:<br />मेल कर रहा हूँ| आप चाहें इसे ब्लॉग पर लगाएं या न लगाएं आपकी इच्छा|<br /><br />वैसे मैं अजित गुप्ता जी, प्रतुल भाई, हंसराज भाई व आशीष जी से सहमती<br />रखता हूँ| मिहिर यदि विद्वान् है तो इस प्रकार के आचरण से वह अपने ज्ञान<br />का नाश ही कर रहा है| विद्वान् होने के बाद भी वह उस ज्ञान को न पा सका<br />जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता है| समाज में रहने के लिए विनम्र होना आवश्यक<br />है किन्तु मिहिर को अपनी दोस्त चंचल को दुःख देने में ही आनंद आता है|<br />मैं तो इसमें मिहिर की ही अधिक गलती मानता हूँ| चंचल एक विनम्र लड़की है|<br />वह मिहिर से दोस्ती नहीं तोडना चाहती| वैसे इसमें गलत कुछ नहीं है,<br />किन्तु मिहिर को भी सुधारना आवश्यक है|<br /><br />रचना जी व गिरधारी जी की टिप्पणियाँ विषय से भटक गयी लगती हैं| इसकी आप<br />चिंता न करें| अपना कारवां आगे बढ़ाती चलें|<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-50795357573575382552011-06-20T22:29:38.683+05:302011-06-20T22:29:38.683+05:30.
Bikramjit Mann to me
show details 9:34 PM (52....<br /><br />Bikramjit Mann to me<br /> <br />show details 9:34 PM (52 minutes ago)<br /> <br />Hi<br /> <br />I read your comment that you have closed the comment section, that is not good , why would you let someone dictate to you what you want ..<br /> <br />I can understand what you are saying<br /> <br />Anyway I feel that friendship is a pure relation, I believe in it a lot and Miheer is wrong no friend would make a friend cry , simple rule i follow .. friends are there to make your life comfortale and happy and not spoil it and make it sad<br /> <br />it was a good story ...<br /> <br />Please dont let anyone change your ways .. is all i will say .<br /> <br />Take care.<br /><br />-- <br />Bikramjit Singh Mann<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-91117175535076892642011-06-20T22:28:32.432+05:302011-06-20T22:28:32.432+05:30.
प्रतुल वशिष्ठ said...
'चंचल' कथा प....<br /><br />प्रतुल वशिष्ठ said...<br /><br /> 'चंचल' कथा पर हो रही बहस पर मेरी राय :<br /> _________________________________<br /> प्रचलित कहानी विधा में बेशक प्रश्न नहीं किये जातो हों.... लेकिन ब्लॉग-लेखन अपने आप में एक नवीन विधा है. इसमें इस तरह के प्रयोग किये जा सकते हैं.<br /> असल में ब्लॉग-लेखन किसे कहते हैं.. और ब्लॉग लेखन द्वारा टिप्पणीकारों को कैसे जोड़ा जाता है.. यहाँ देखने को मिलता है.<br /> इसलिये मेरा मानना है कि पुरानी परिभाषाओं के खोल से बाहर आना होगा.<br /> कृपया ध्यान दें ये ब्लॉग-लेखन है... किसी अन्य विधा की तरह एकांत में किया लेखन नहीं.... यहाँ लेखन का तुरंत रेस्पोंस मिलता है.<br /> June 20, 2011 6:06 PM <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-85083074445347800532011-06-20T17:55:01.678+05:302011-06-20T17:55:01.678+05:30.
कहानी के माध्यम से जिन प्रश्नों का उत्तर पाना उ....<br /><br />कहानी के माध्यम से जिन प्रश्नों का उत्तर पाना उद्देश्य था , उसका खून कर दिया गया । जब लेखिका के प्रश्नों का सम्मान नहीं है , तो पाठकों की राय की आवश्यकता क्या है ?<br /><br />लोग चाहते हैं किसी भी विषय पर नाम लिखकर , निजता का उल्लंघन करके ही विमर्श किया जाये । एक सम्मानित तरीके से भी विमर्श किया जा सकता था। जरूरी नहीं है की किसी ब्लॉगर का नाम लेकर उसका अपमान किया जाए। कल्पित चरित्रों से भी बिना किसी को ठेस पहुंचाए भी प्रयोजन सिद्ध किया जा सकता है।<br /><br />विवाद ही एकमात्र विकल्प नहीं होता।<br /><br />अब कहानी में कुछ शेष नहीं है , आप लोग अच्छी कहानियां पढने में अपना बहुमूल्य समय लगायें ।<br /><br />आपकी असुविधा के लिए खेद है। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-52463328698463352752011-06-20T17:41:48.035+05:302011-06-20T17:41:48.035+05:30गिरधारी लाल जी का कहना है की कहानी लिखने के बाद प्...गिरधारी लाल जी का कहना है की कहानी लिखने के बाद प्रश्न नहीं पूछे जाते , इसलिए कमेन्ट आप्शन बंद कर रही हूँ क्यूंकि कहानी लिखने के बाद ...." रोचक कहानी" ..."उम्दा कहानी " ....आदि टिप्पणियां मुझे आकर्षित नहीं करतीं।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-26894299803444563172011-06-20T17:15:18.361+05:302011-06-20T17:15:18.361+05:30कहानी तो अधूरी ही है , @ रचना जी की बात भी कुछ ठीक...कहानी तो अधूरी ही है , @ रचना जी की बात भी कुछ ठीक लगी . परन्तु इस बार अपने राधिका की जगह चंचल को नायिका बना दिया कहीं चंचल और मिहिर के माध्यम से किसी ब्लॉगर द्वारा सताए जाने का रोष तो नहीं प्रकट कर रही है क्यूंकि लेखक अंत में प्रश्न नहीं करता सब कुछ पाठक के छोड़ देता हैगिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-10558816696222361162011-06-20T17:05:47.259+05:302011-06-20T17:05:47.259+05:30माना कि किसी को माफ कर देना बढ़पन कि निशानी होता है...माना कि किसी को माफ कर देना बढ़पन कि निशानी होता है । लकिन मेरे विचार से हर बात कि एक सीमा होती है। और जब कोई व्यक्ति उस सीमा को पार कर जाए तो उसे उस बात का एहसास करना बहुत जरूरु हो जाता है। क्यूंकि हैं तो हम इंसान ही कोई भगवान तो नहीं कि हमको कभी कोई फर्क ही न पड़े और यदि पड़े भी तो हम हमेशा उसे छुपा लिया करें इस से खुद लोग आप को ही कमजोर समझेगे और हमेशा आप के साथ एक सा ही व्यवहार होगा।Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.com