tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post5571585133298872524..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: क्या महिलाएं पुरुषों के समकक्ष आने के लिए तैयार हैं ?-- कर सकेंगी ये सब ?ZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger108125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-25237914142488830222010-10-13T14:14:03.720+05:302010-10-13T14:14:03.720+05:30:(
mere prashno ke uttar to gayab hain
any ways l...:(<br /><br />mere prashno ke uttar to gayab hain<br />any ways leave thisअंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-71304361838486421062010-10-13T11:49:55.845+05:302010-10-13T11:49:55.845+05:30.
अंकित जी,
दहेज़ माँगना , मुझे भीख मांगने के सा....<br /><br />अंकित जी,<br /><br />दहेज़ माँगना , मुझे भीख मांगने के सामान लगता है । और जो माँ बाप अपनी बेटी के विवाह में दहेज़ देते हैं , वो अपनी बेटी को दरिंदों के हाथ बेच रहे होते हैं।<br /><br />पढ़े लिखे नवयुवक , जिन्हें अपने ऊपर गर्व है और भरोसा है , वो अपने लिए पढ़ी-लिखी और सुसंस्कारित पत्नी का चुनाव करते हैं। उन्हें लड़की के पिता की दौलत से कोई सरोकार नहीं होता।<br /><br />ऐसे पुरुष अपनी योग्यता से पैसा कमाते हैं और अपनी ससुराल में भरपूर इज्ज़त।<br /><br />आभार<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-48129192127058380112010-10-13T11:15:26.263+05:302010-10-13T11:15:26.263+05:30दिव्या मैम,
देर से पढ़ा ये लेख परन्तु मुझे आशा है ...दिव्या मैम,<br />देर से पढ़ा ये लेख परन्तु मुझे आशा है की आप अब भी मेरे प्रश्न का उत्तर देंगी<br /><br />आपके लेखों से हमेशा लगता है की आप पूर्णसमानता की पक्षधर है न की केवल क्रम बदलने की<br />तो फिर दहेज़ का इतना तीखा विरोध क्यूँ ?क्या खराबी है दहेज़ में ? चलिए ये बता दीजिये की क्या खराबी है उस दहेज़ में जो दोनों पक्षों की सहमति से लिया और दिया जाये ?आखिर यह अर्थप्रधान युग है और एक बड़ी धनराशी पाने का अवसर क्यूँ छोड़ना चाहिए ?<br /><br />चलिए एक उदहारण अपने ऊपर ही बनाकर बात अपना प्रश्न स्पस्ट करता हूँ | मान लीजिये मेरी शादी तय हो जाये अभी जबकी मैं एक अच्छी(मतलब अच्छे वेतनवाली)नौकरी करता हूँ और इसके बाद शादी होने से पहले ही मेरी नौकरी चली जाये तो क्या होगा ?बिलकुल शादी नहीं होगी और मुझे यह सही भी लगता है |तो अगर लड़कियां एक पैसों वाला लड़का खोझ सकती हैं तो हमे ऐसी लडकी क्यूँ नहीं खोजनी चाहिए जो खूब सारा दहेज़ ला सके ?<br /><br />अब शादी की ही बात है तो किसी भी लड़के को सुयोग्य वर मानने का सबसे पहला मानक उसकी आय ही होता है |"The boy is really good.He is financially stable " यह बहुश्रुत वाक्य है| दूसरा पैमाना उसके माता- पिता की आर्थिक स्थिति ,तीसरा पैमान उनके परिवार की आर्थिक स्थिति .........<br />.<br />.<br />उस लड़के का खुद का चरित्र ,आचरण ,वव्हार तो कहीं आठवें या नौवें स्थान प् आता है और लडकी के सीक्षा दीक्षा तो कहीं आती ही नहीं है|तो लड्कूं को दहेज़ के बदले अनुत्पादक गुणों(भले ही वो कथित रूप से कितने ही महँ क्यों न हों)को महत्त्व क्यों देना चाहिए? क्या आप लड़कियों को सुझाव देंगी की वो लड़कों के आर्थिक स्थिति को देखना बंद करें और (कथित)मानवीय मूल्यों को महत्त्व दें|<br /><br />यह प्रश्न आक्रोश में नहीं अपितु वास्तविक समानता की पक्षधरता के लिए लिखा गया है और मेरा मन्ना है की इस अर्थ युग में दोनों जीजों को स्वीकार करना चाहिए दहेज़ और FINENCIAL STABILITYअंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-17080045003263264172010-10-08T19:41:00.624+05:302010-10-08T19:41:00.624+05:30हार्दिक शुभकामनाएं!हार्दिक शुभकामनाएं!ASHOKhttps://www.blogger.com/profile/13548471968964567305noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-86267035462636574762010-10-05T18:14:34.611+05:302010-10-05T18:14:34.611+05:30.
Dear Ganesh.
You are always welcome to be a p....<br /><br />Dear Ganesh. <br /><br />You are always welcome to be a part of all discussions going on here. <br /><br />I am feeling honoured to have serious readers like you here. <br /><br />Thanks.<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-63557151921545731712010-10-05T18:13:02.645+05:302010-10-05T18:13:02.645+05:30.
संत शर्मा जी,
सहमत हूँ आपकी बात से। एक दिन ज़....<br /><br />संत शर्मा जी,<br /><br />सहमत हूँ आपकी बात से। एक दिन ज़रूर आएगा जब किसी सहारे की ज़रुरत नहीं पड़ेगी , लेकिन अभी तो बैसाखियाँ ज़रूरी है। आपके सुन्दर विचारों के लिए आभार। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-24194109670244500102010-10-05T18:06:56.083+05:302010-10-05T18:06:56.083+05:30Hi Zeal, It's nice to see you replyng my comme...Hi Zeal, It's nice to see you replyng my comment. The human being, as conceived by nature (God), is of the highest virtue one can imagine. Do we question that? While the author is suggesting ways to overcome one's self confidence, which is, a limitation in terms of the true self, what I intended to convey was on a broader perspective, by realizing the nature of the true self, so that anyone and everyone can be a winner. Thanks Zeal, it's nice to be part of this discussion.Ganeshhttps://www.blogger.com/profile/13909532682629507074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-44020558491304691022010-10-05T18:03:04.961+05:302010-10-05T18:03:04.961+05:30sundar Sandesh ka wahan karta lekh hai.
Khed sir...sundar Sandesh ka wahan karta lekh hai. <br /><br />Khed sirf itna hai ki Stri ke guno ka bhan karane ke liye purush ke durguno ke sahare hi jarurat nahi honi chahiye.संत शर्माhttps://www.blogger.com/profile/12067692021413627284noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-26902317354413685262010-10-05T18:02:00.284+05:302010-10-05T18:02:00.284+05:30.
When the almighty has already created women as ....<br /><br />When the almighty has already created women as superior , then what's the need of fighting for equality ??<br /><br />Just prove it !<br /><br />< Smiles ><br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-4753017331784672562010-10-05T17:47:46.444+05:302010-10-05T17:47:46.444+05:30Hi Ganesh,
Glad to see you here after ages.
It...Hi Ganesh, <br /><br />Glad to see you here after ages. <br /><br />It's not at all comparison. How can two entirely different species be compared ? <br /><br />Male and females are different anatomically, mentally, spiritually and Ethically. <br /><br />They both are blessed with different virtues and weaknesses. <br /><br />The author here is asking women to realize their worth and potential and feel privileged for what they are blessed with. <br /><br />regards, <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-90483089350695625982010-10-05T17:31:41.191+05:302010-10-05T17:31:41.191+05:30Do we ever differentiate when we are in a happy mo...Do we ever differentiate when we are in a happy mood? If we are sad about something, there is a reason, whatever it may be. Likewise, when people talk about so called equality in gender, the underlying reason is un-happiness. Therefore, how can one achieve ever-lasting happiness to overcome these mundane sense of comparisons? Only way is to learn the art of self realization, if not mastering it. Love to my dear friend.Ganeshhttps://www.blogger.com/profile/13909532682629507074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-34416719538432462202010-10-05T17:10:05.646+05:302010-10-05T17:10:05.646+05:30hmm my comments i thought i posted....lost in spac...hmm my comments i thought i posted....lost in space...Ganeshhttps://www.blogger.com/profile/13909532682629507074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-64838881184737547832010-10-04T12:22:08.387+05:302010-10-04T12:22:08.387+05:30बहुत ही सुन्दर लेखन, यह प्रयास यूं ही अनवरत चलता ...बहुत ही सुन्दर लेखन, यह प्रयास यूं ही अनवरत चलता रहे, शुभकामनायें ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-43791907337917830372010-10-04T10:26:46.190+05:302010-10-04T10:26:46.190+05:30ओह !! बहुत देर हो गयी आने में लगता है, काफी ढेर सा...ओह !! बहुत देर हो गयी आने में लगता है, काफी ढेर सारी टिप्पणियाँ हो गयी हैं... सारी पढनी संभव भी नहीं है..<br /><br />कुछ टिप्पणियाँ पढ़ीं तो लगा यहाँ बहस नहीं जंग छिड़ी हुई है, खैर अच्छा है ऐसे मुद्दों पर बहस भी ज़रूरी है |<br /><br />और यह शेखर जी कौन है??? उन्होंने तो अपनी सारी टिप्पणियाँ हटा दी... खैर हटाईये इन बातों को ...<br /><br />लिखती तो आप बहुत ही अच्छा हैं लेकिन अगर स्त्रियों का भला सोचने के बजाय मानव जाति का भला सोचें तो ज्यादा अच्छा होगा..और मानव जाति तो स्त्री और पुरुष दोनों से बनते हैं... मानसिक रूप से कोई श्रेष्ठ नहीं कोई निर्बल नहीं, हाँ शारीरिक रूप से थोडा मामला अलग है... दोनों को प्रकृति ने अलग अलग काम सौपे हैं अगर कोई एक दूसरे की जगह आना चाहे तो disbalance तो होगा ही ना... अब देखिये ना दुनिया के लगभग हरेक होटल में पुरुष खाना बनाते हैं.... है ना अजीब बात.....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-75456396992524490392010-10-04T10:22:21.497+05:302010-10-04T10:22:21.497+05:30verry verry good post......
unki yahan koi jaroora...verry verry good post......<br />unki yahan koi jaroorat nahi......<br />jinnhe bhasa aur maryada ka sima pata na ho....<br /><br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-323935539260059262010-10-04T07:22:33.225+05:302010-10-04T07:22:33.225+05:30.
१]--रचना जी लिखती हैं-- दिव्या तुम पोस्ट इसलिए ....<br /><br />१]--रचना जी लिखती हैं-- दिव्या तुम पोस्ट इसलिए लिखती हो क्यूंकि --<br /><br /> * -Two third has been written to please the society<br /><br /> -One third is written to appease the conscience<br /><br /><br />[२]--शेखर जी लिखते हैं की , शिक्षा प्राप्ति के बाद भी दिव्या की मानसिकता संकुचित है।<br /><br />आप दोनों विद्वान् , हैं । ठन्डे दिमाग से सोचियेगा की इस तरह की टिप्पणियां कितनी शोभनीय हैं।<br /><br />@ अर्थ देसाई, डॉ रुपेश, यशवंत जी, विजय जी --<br /><br />आप लोगों ने मुझ पर हो रहे व्यक्तिगत आक्षेपों को समझा और गलत बात के खिलाफ आवाज़ उठाई, इसके लिए आपकी आभारी हूँ।<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-92074211686277417092010-10-04T07:03:54.925+05:302010-10-04T07:03:54.925+05:30.
मुझे तो सबसे ज्यादा आपत्ति इस पंक्ति से है--
....<br /><br />मुझे तो सबसे ज्यादा आपत्ति इस पंक्ति से है--<br /><br />" आँचल में है दूध और आँखों में पानी<br /> नारी अबला तेरी यही कहानी "<br /><br /> * आँखों में आंसू तो सभी के आते हैं चाहे वो स्त्री हो अथवा पुरुष ।<br /> * और आँचल में दूध तो मातृत्व की निशानी है। इसमें स्त्री को इतना निरीह दिखाने की क्या आवश्यकता है भला।<br /> * नारी को अपनी कविता में ' अबला' कहकर नारी का सर्वथा अपमान किया है । और आने वाली सदियों तक नारी पर 'अबला' का ठप्पा लगा दिया।<br /><br />कवी ने स्त्रियों से सहानुभूति क्या जताई , अभिशाप बन गयी उनकी सहानुभूति । एक स्त्री होने के नाते कवी की उपरोक्त पंक्ति पर घोर विरोध दर्ज करती हूँ।<br /><br />क्यूंकि कवियों द्वारा रचित ऐसे पंक्तियाँ , लोगों की मानसिकता को प्रभावित करती हैं। कुछ पुरुष वास्तव में इस बदगुमानी में रहने लगते हैं की स्त्री 'अबला' है और ताड़ना की अधिकारी है। और स्त्रियों का तो क्या कहें , अपने ऊपर 'अबला' का लेबल चिपका , आंसू बहाने से परहेज नहीं करेंगी, ताउम्र अपने ऊपर हुई ज्यादतियों का रोना लेकर कवियों को प्रेरित करती रहेंगी ऐसे बे-सर पैर की कविताओं को लिखने के लिए।<br /><br />अरे अगर महिलाएं अपनी शक्ति को पहचाने , और अपने पिता, पति, पुत्र, भाई और देशवासियों को खुद पर गर्व करने का मौका दें तो भला, किसकी मजाल है जो लिखे --> अबला !<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-80833720037299251812010-10-04T07:02:07.884+05:302010-10-04T07:02:07.884+05:30.
विजय जी,
आपसे बहुत बातें जानने को मिलती हैं। ख....<br /><br />विजय जी,<br /><br />आपसे बहुत बातें जानने को मिलती हैं। ख़ुशी हुई यह जानकार की गोरखपुर के एक वकील साहब ने वहां की अदालत में गीता प्रेस गोरखपुर पर ढोल गंवार आदि आदि और भी छेपकों को हटाने के लिए केस कर रखा है।<br /><br />बिलकुल हटा देना चाहिए।<br /><br />जब सभी मनुष्य हैं , तो कुछ समुदाय को ताड़ना का अधिकारी क्यूँ समझा जाए।<br />................................................................<br /><br />"यत्र पूज्यन्ते नारी तत्र रम्यते देवता !"<br /><br />केवल घर की ही स्त्रियों का सम्मान नहीं, अपितु सभी जगह, बस, ट्रेन, दफ्तर, , ब्लॉग-जगत, और हर मोड़ पर स्त्री का सम्मान करना चाहिए। शुरुआत कहीं तो होती है , इसलिए वेदों में कहा गया है , जिस घर में स्त्री.... क्यूंकि जो व्यक्ति अपने घर की स्त्री का सम्मान नहीं कर सकता वो समाज में दुसरे पुरुषों की बहन , बेटी और पत्नी का क्या सम्मान करेगा ?<br /><br />एक और बात -- केवल पुरुषों को स्त्रियों का सम्मान नहीं करना है, अपितु स्त्री भी यदि स्त्री का सम्मान करना सीख जाए तो सभी विवाद स्वतः शांत हो जायेंगे और किसी को किसी अधिकार मांगने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। यदि दहेज़ लोभी ससुर और पति , बहु को प्रताड़ित कर रहे हैं तो एक सास , अपने ममतामयी आँचल का प्यार देकर तथा अपने पति और पुत्र को उनकी भूल का एहसास दिला अपनी बेटी सामान बहु की रक्षा कर सकती है। मैं फिर कहूँगी स्त्री अपनी शक्ति को पहचाने और सही दिशा में लगाए। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-75468850986763016852010-10-04T02:03:53.328+05:302010-10-04T02:03:53.328+05:30आपके विचार सहमति योग्य क्यों न हों सकारात्मक जो है...आपके विचार सहमति योग्य क्यों न हों सकारात्मक जो हैं बधाईयां...!बाल भवन जबलपुर https://www.blogger.com/profile/04796771677227862796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-84459521533034125022010-10-04T02:02:35.840+05:302010-10-04T02:02:35.840+05:30कुल मिला कर महिला पुरुष के द्वन्द्व की बात नहीं थी...कुल मिला कर महिला पुरुष के द्वन्द्व की बात नहीं थी इस पोस्ट में साफ़ तौर पर नारी के सशक्तिकरण की बात हुई रखी गई. मुझे दिव्या के चिंतन में पाज़िटिविटी नज़र आती है. न कि अतिरंजित-उद्वेग . एक सबसे अच्छी बात ये कि आरक्षण न हो ? <br />ये बात सब पर लागू होती है. <br />मैं आलेख से सहमत हूं दिव्या<br />डाक्टर दयाल से भी पर कुछ कुंठित टिप्पणियों से असहमत जिनका ज़िक्र न करने में ही बुद्धिमानी है.बाल भवन जबलपुर https://www.blogger.com/profile/04796771677227862796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-17860825512694080152010-10-03T22:46:42.371+05:302010-10-03T22:46:42.371+05:30kuchh nahin samjho to fir meri nazar se dekhnaa......kuchh nahin samjho to fir meri nazar se dekhnaa...manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-74051834791218221192010-10-03T22:19:31.305+05:302010-10-03T22:19:31.305+05:30मैं रेखा जी की बात से सहमत हूँ। स्त्री और पुरुष दो...मैं रेखा जी की बात से सहमत हूँ। स्त्री और पुरुष दो अलग अलग धुरी हैं इसलिए उनका प्रकृति में स्थान ही अलग है कोई तुलना करना उचित नहीं है ।<br /><br />तुलसीदास जी की बात पर कुछ लोग इस प्रकार भी व्याख्या करते हैं की ये सब लोग मुक्ति(तारन) के अधिकारी हैं क्योंकि इन सब को प्रताडना झेलनी पड़ती है ।डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-33684596300069312802010-10-03T22:07:10.319+05:302010-10-03T22:07:10.319+05:30@ अभिषेक जी,
आप की विचार अभिव्यक्ति के लिए बहुत बह...@ अभिषेक जी,<br />आप की विचार अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.आपको ये भी याद दिला देना चाहता हूँ की ३-४ वर्ष पूर्व गोरखपुर के एक वकील साहब ने वहां की अदालत में गीता प्रेस गोरखपुर पर ढोल गंवार आदि आदि और भी छेपकों को हटाने के लिए केस कर रखा है.<br />@ all <br />नारी=न+अरि<br />अथार्त जिस का कोई शत्रु न हो वो नारी है.''बड़ भाग मानुष तन पावा'', ''नर हो न निराश करो मन को'' क्रमशः तुलसी दास जी व मैथिलि शरण जी पूरी नर या मनुष्य जाति के लिए कह रहे हैं पुरुष या महिला का भेद नहीं है.सह्रदयता और कोमलता के कारण ही कवि सुमित्रा नंदन पन्त को नारी सुलभ ह्रदय वाला कवि कहा गया है.<br />--vijai Rajbali Mathurhttps://www.blogger.com/profile/01335627132462519429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-66536033706864079372010-10-03T20:46:00.555+05:302010-10-03T20:46:00.555+05:30दिव्या मै तो शत प्रतिशत नारी की अस्तित्व और गौरव क...दिव्या मै तो शत प्रतिशत नारी की अस्तित्व और गौरव को एक विशुद्ध भारतीय नारी के रूप मे देखती हूँ। लेकिन साथ ही सामाजिक विशमताओं को जो नारी के साथ अन्याय करती हैं उनका भी विरोध करती हूँ। हमे ये बात नही भूलनी चाहिये कि यदि हम अपनी जडें छोड कर पानी के बहाव के साथ बहने लगेंगे तो हमारा अस्तित्व ही नष्ट हो जायेगा पुरुष और नारी को भगवान ने इस सृष्टी की रचना के लिये विशेश गुण दे कर भेजा है उसमे एक बात ये जरूरी है कि नारी को अपना ममतामयी स्वरूप नही छोडना चाहिये। अपनी संवेदनायें नही छोदनी चाहिये कोमलता नही छोदनी चाहिये। लेकिन अपने सम्मान के लिये जरूर कोशिश करनी चाहिये उसके लिये केवल विद्रोही भावना नही होनी चाहिये। कई बार आँवला खाने मे कडवा लगता है लेकिन उसका स्वाद तो बाद मे पता चलता है। घर मे जो पुरुष सख्ती करता है वो हमेशा ही नही कि हमे प्रताडित करने के लिये हो। नारी मन से भावुक होने स्3ए कई निर्णय सही नही भी ले पाती उस समय समझदार पुरुष ही स्थिती को सम्भालता है। ये मेरा अपना तज़रुबा है। मगर फिर भी एक बात तो है कि नारी का शोष्ग्ण और अत्याचार भी कम नही हो रहे उन्हें रोकने का प्रयास करना चाहिये न कि वगावत। बहुत अच्छी सोच है तुमहारी । हम अपने बच्चों को वो संस्कार नही दे सके जो हमे मिले थे तभी आज ऐसे हालात हैं<br /> नारी को ही समाज बनाना है ये उस पर निर्भर है कि वि कैसा समाज चाहती है। अज़ादी की लडाई तो वो लडने लगी है मगर दशा और दिशा दोनो से भटक गयी है। <br />इस पर बहुत कुछ कहना चाहती हूँ मगर बहुत लम्बा कमेन्ट हो गया । बहुत बहुत मुबारक कि कम से कम किसी युवा लडकी ने इतना साहस तो किया कि औरत को सही बताया कि वो कौन है क्यों है। बस जरूरत बुराईय्यों को समाप्त करने की है। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-14319138099482220772010-10-03T20:06:38.249+05:302010-10-03T20:06:38.249+05:30विजय जी की बात से मैं सहमत हू .ये एक एतिहासिक सत्य...विजय जी की बात से मैं सहमत हू .ये एक एतिहासिक सत्य है की तुलसीदास जी का बहुत विरोध तत्कालीन विद्वानों ने किया .यह भी संभव है की उन को बदनाम करने के लिए राम चरित्र मानस में छेपक हो .क्यों की हमारी संस्कृति में मात्र शक्ति की पूजा होती है .और लोग जहा अपने देश से प्यार करते है तो हम उस माँ मान कर उस की पूजा करते है .इस से ही हमारी संस्कृति की एक झलक प्रस्तुत हो जाती है .<br />तुलसीदास जी पर की गयी टिप्पड़ी खेद सहित वापस ,छमा कीजियेगाABHISHEK MISHRAhttps://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.com