tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post5923296664950352225..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: आलोचना एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन !ZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger55125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-84954439305490852462011-04-04T00:38:02.987+05:302011-04-04T00:38:02.987+05:30आलोचना कई बार उन बिन्दुओं की तरफ भी ध्यान दिला जात...आलोचना कई बार उन बिन्दुओं की तरफ भी ध्यान दिला जाती है...जिस से हम अनभिग्य होते हैं...पर केवल आलोचना के उद्देश्य से कमियाँ निकालना...मन को दुखी कर जाता है...<br />एक सार्थक आलेखrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-48422062709073571992011-04-01T22:19:25.509+05:302011-04-01T22:19:25.509+05:30जहाँ तक मुझे मालूम है आलोचना का अर्थ किसी व्यक्ति,...जहाँ तक मुझे मालूम है आलोचना का अर्थ किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा रचना के गुण और दोषों का प्रमाण सहित विवेकपूर्ण विवेचन होता है, केवल दोष-दर्शन नहीं। आभार।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-84598987015747805342011-04-01T20:16:54.335+05:302011-04-01T20:16:54.335+05:30सभी टिप्पणीकारों का , उनके बहुमूल्य विचारों के लिए...सभी टिप्पणीकारों का , उनके बहुमूल्य विचारों के लिए बहुत-बहुत आभार । ये लेख मेरे पसंदीदा लेखों में से एक है ।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-32215681599412298892011-04-01T11:23:12.866+05:302011-04-01T11:23:12.866+05:30This comment has been removed by the author.Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-83698866619778921412011-04-01T11:15:35.474+05:302011-04-01T11:15:35.474+05:30This comment has been removed by the author.Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-10880521274480411002011-03-31T20:28:22.673+05:302011-03-31T20:28:22.673+05:30सार्थक लेख दिव्या जी बहुत बहुत बधाई |सार्थक लेख दिव्या जी बहुत बहुत बधाई |जयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-1625063441414418022011-03-31T20:15:33.703+05:302011-03-31T20:15:33.703+05:30बहुत ही सार्थक लेख है! ये समीक्षा पढ़ कर अच्छा लगा!...बहुत ही सार्थक लेख है! ये समीक्षा पढ़ कर अच्छा लगा!'साहिल'https://www.blogger.com/profile/13420654565201644261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-91531137855784175992011-03-31T20:09:30.351+05:302011-03-31T20:09:30.351+05:30Really very meaningful post. Your take on this is...Really very meaningful post. Your take on this issue is 100% acceptable. Nice job. Congrats.वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05613141957184614737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-2186063012725854812011-03-31T18:02:05.746+05:302011-03-31T18:02:05.746+05:30सार्थक विषय का चयन और साथ ही और अधिक सार्थकतापूर्ण...सार्थक विषय का चयन और साथ ही और अधिक सार्थकतापूर्ण विमर्श। कभी कभी शब्दों की व्यत्पत्ति के बारे में विचारता हूं तो लगता है कि मुंबइया बोली का अक्सर प्रयोग करा जाने वाला शब्द "लोचा" भी आलोचना से ही उपजा होगा :)<br />भइयाडॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)https://www.blogger.com/profile/13368132639758320994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-275240412608322482011-03-31T16:48:45.094+05:302011-03-31T16:48:45.094+05:30आलोचक का मंतव्य पावन होना चाहिए
बिलकुल सही कहा आपन...आलोचक का मंतव्य पावन होना चाहिए<br />बिलकुल सही कहा आपने <br /> सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना नहीं होनी चाहिए . प्रशंसा में मैं 'बहुत अच्छा ' कहना काफी समझता हूँ लेकिन आलोचना में 'बुरा' कहने से काम नहीं चल सकता .आलोचना करो तो फिर तर्क सहित बताओ भीदिलबागसिंह विर्कhttps://www.blogger.com/profile/11756513024249884803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-86773341838217645082011-03-31T14:33:43.661+05:302011-03-31T14:33:43.661+05:30आपकी हर रचना अर्थपूर्ण होती है।आलोचना पर आपने बड़ी...आपकी हर रचना अर्थपूर्ण होती है।आलोचना पर आपने बड़ी सुन्दर व्याख्या की इसके लिए बहुत बधाई।<br />आपके अन्दर विशेष अध्यात्मिक गुण है......राज शिवमhttps://www.blogger.com/profile/13393247929259421704noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-62515263420199499822011-03-31T12:30:12.913+05:302011-03-31T12:30:12.913+05:30.
प्रिय डॉ अमर ,
आज तक कभी कटाक्ष का सहारा नहीं ....<br /><br />प्रिय डॉ अमर ,<br /><br />आज तक कभी कटाक्ष का सहारा नहीं लिया अपनी बात कहने के लिए । अभिधा में ही सरल भाषा में अपनी बात कह देती हूँ । जो सच था वो लिख दिया था , केवल आपका नाम नहीं लिखा था , क्यूंकि नाम लिखने की आवश्यकता नहीं थी। यदि आप स्वयं नहीं लिखते तो किसी को मालूम भी नहीं होता की इतना श्रम-साध्य कार्य आपने किया है।<br /><br /><br />टिपण्णी डिलीट करते समय आपको जो उचित लगा वो आपने किया । आपके मन में क्षोभ था और आपका मन घायल था इसलिए आपने क्षोभवश ढेरों लेखों पर टिपण्णी मिटा दी , जो हर तरह से अनुचित है। कभी-कभी मेरा भी मन घायल होता कुछ लोगों की टिप्पणियों से , लेकिन असंयत होकर कभी भी अपने द्वारा लिखी टिपण्णी नहीं मिटाती हूँ जाकर । क्यूँ पूर्व में लिखी गयी टिपण्णी विषय पर होती है , लेखक के प्रति अनुराग के कारण नहीं । इसलिए मन घायल होने पर लेखक को सजा देने के उद्देश्य से टिप्पणियों को डिलीट करना बचपना है ।<br /><br />आप अपनी टिप्पणियां डिलीट करके एक प्रकार से बदला लेना चाहते थे , मुझे दुःख देना चाहते थे , अपना मन हल्का करना चाहते थे और अपने घायल मन को शांत करना चाहते थे ।<br /><br />टिप्पणियां डिलीट करके आप मुझे दुःख देने के उद्देश्य में सफल भी हुए , आपका मन भी हल्का हुआ होगा ।<br /> लेकिन एक साथ अनेक लेखों पर जाकर पिछले छः माह में लिखी गयी टिप्पणियों को मिटाना अनुचित ही कहा जाएगा । लेकिन आपके दुखी मन की विवशता समझी थी मैंने , इसलिए कोई बात नहीं।<br /><br />आपने जो किया उचित ही किया । हर व्यक्ति को सर्वप्रथम वही करना चाहिए जिससे उसके मन को शान्ति मिले ।<br /><br />रही बात मन के घायल होने की जो सबसे अहम् है । एक आलोचक को ध्यान रखना चाहिए की उसकी आलोचना किसी को जाने-अनजाने में दुःख तो नहीं दे रही ।<br /><br />हो सकता है आपके जीवन में आलोचकों का बहुत योगदान रहा हो । लेकिन मुझे लगता है , प्यार , स्नेह और मृदु भाषा से जो सिखाया जा सकता है वो आलोचना द्वारा कतई नहीं सिखाया जा सकता । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-33393806336600799362011-03-31T12:14:14.808+05:302011-03-31T12:14:14.808+05:30आलोचना का मंतव्य ठेस पहुंचाना और नीचा दिखाना बिलकु...आलोचना का मंतव्य ठेस पहुंचाना और नीचा दिखाना बिलकुल नहीं होना चाहिए। साहित्य में आलोचना का विषय पढ़ाया जाता है और ऐसा ही सिखाया जाता है। उजले और धुंधले दोनों पहलुओं के सामने लाकर एक पूर्ण रचना का आयाम देने का प्रयास ही आलोचना है। अच्छा विषय चुनती हैं और लोगों को भी आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहती है। बधाई।डॉ. दलसिंगार यादवhttps://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-69350991804453779272011-03-31T11:50:05.173+05:302011-03-31T11:50:05.173+05:30@ DIVYA
तुम ठीक कह रही हो, दिव्या ! टिप्पणी डिली...@ DIVYA <br /><i>तुम ठीक कह रही हो, दिव्या ! टिप्पणी डिलीट करने वाला वह महानुभाव मैं ही हूँ । किन्तु दूसरी जगह तुम गलत भी हो.. उसका कारण मेरा अहम नहीं बल्कि घायल मन था, एक क्षोभ.. उन टिप्पणियों में समय बरबाद करने का कचोट, चीजों को गलत परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की शर्मिन्दगी.. मुझे बाध्य कर रही थी कि, मैं यहाँ पर अपने होने का हर सबूत हटा दूँ । इससे पहले कि मेरी टोपी कुछ और उछाली जाये, मैं उसे सँभाल कर विदा ले लूँ ।<br />खैर.. मेरे एक मित्र हैं दीप जोशी ( आजकल लखनऊ SBI ज़ोनल ऑफ़िस में हैं ).. वह मेरी प्रैक्टिस के शुरुआती दिनों में छिप कर स्टॉपवाच से यह आँकते थे कि मैंनें किस मरीज को कितना समय दिया और जिसके वजह से कितने लोगों को अनावश्यक प्रतीक्षा करनी पड़ी । वह बाकायदा इसकी ज़वाबदेही लेते थे, और झगड़ते भी थे । मैं उनसे पूछ सकता था कि ,साले मैं डॉक्टर और तुम बैंक क्लॅर्क.. तु पूछने वाले कौन ? तथाकथित टोपी और ज़ेब तो तब भी मेरे पास हुआ करती थी, मोहरतरम ? कुछ छोटे तबके के लोग मुझ तक पब्लिक फीडबैक पहुँचाते थे । मेरे लिखे की धज्जियाँ इन्दु, सँध्या सिंह, सँध्या दीक्षित उड़ा दिया करती थी, मैं रूँआसा हो उन्हें वापस लाकर ठीक किया करता था.. मुझे खुशी है कि दर्ज़न दो दर्ज़न रचनाओं के बल पर मेरी पहचान प्रगतिशील साहित्य में बन गयी । इसका श्रेय मैं अपने मित्रों और आलोचको को न दूँ तो यह बेईमानी होगी ।<br />एक बात और.. तुम्हें अभी ठीक से कटाक्ष करना भी नहीं आता । <br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-37801051175652399102011-03-31T11:20:03.051+05:302011-03-31T11:20:03.051+05:30आलोचना में गुण और दोष दोनों का संतुलित विवेचन होता...आलोचना में गुण और दोष दोनों का संतुलित विवेचन होता है -पूर्वाग्रहों से रहित और पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखते हुए .<br />आपने जो उदाहरण दिए हैं <br />१- "स्त्रियों को अधिक तर्क वितर्क नहीं करना चाहिए "२-"आज की युवा पीढ़ी में संस्कार ही नहीं है " <br />यह आलोचना नहीं ,अपना मत लाद देने वाली बात है .आलोचना में प्रमाण सहित और सहृदयतापूर्वक सतर्क मूल्यांकन होना चाहिये तभी वह आलोचना या समीक्षा कहलाने की अधिकारी है .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-20047942574607388942011-03-31T11:12:01.903+05:302011-03-31T11:12:01.903+05:30आलोचना आवेग भरती है, समालोचना स्नेह, और निंदा व्यक...आलोचना आवेग भरती है, समालोचना स्नेह, और निंदा व्यक्तित्वा का ह्रास करती है .गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-47791940212799671392011-03-31T09:25:26.658+05:302011-03-31T09:25:26.658+05:30दिव्या ! अभी-अभी मैंने अपनी पोस्ट लगाई है |और तुम्...दिव्या ! अभी-अभी मैंने अपनी पोस्ट लगाई है |और तुम्हारी ये पोस्ट उसके फ़ौरन बाद मेरी नजर मैं आई | जिसको मैंने अब पड़ा |अब इसके लिए क्या कहूँ ...ये पड़ कर बताना |कल क्रिकेट के खेल के कारण अपना लेपटॉप खोला ही नही था |..<br />आशीर्वाद!अशोक सलूजाhttps://www.blogger.com/profile/17024308581575034257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-89320031569768675472011-03-31T09:06:00.863+05:302011-03-31T09:06:00.863+05:30इस विषय पर तो क्या लिखा जाए? हमने तो आलोचना के ऐस...इस विषय पर तो क्या लिखा जाए? हमने तो आलोचना के ऐसे ऐसे दंश झेले हैं कि इस शब्द से ही कोफ्त होने लगी है। वर्तमान में आलोचना नहीं होती है अपितु व्यक्ति की हस्ती को मिटाने की तिकड़में होती हैं। अच्छा लिखा है, सारी बाते चलचित्र के समान आँखों के सामने घूम गयी।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-13827589900162593422011-03-31T08:38:03.817+05:302011-03-31T08:38:03.817+05:30एकदम आवश्यक आलेख
शुक्रिया, वैसे लोग वैयक्तिक और प...एकदम आवश्यक आलेख <br />शुक्रिया, वैसे लोग वैयक्तिक और पूर्वाग्रही होते हैं.बाल भवन जबलपुर https://www.blogger.com/profile/04796771677227862796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-41693755730629484782011-03-31T08:07:47.255+05:302011-03-31T08:07:47.255+05:30.
कहा गया है , अपनी बात कहने से पहले दो बार सोचना....<br /><br />कहा गया है , अपनी बात कहने से पहले दो बार सोचना चाहिए । और मेरे विचार से आलोचना करने से पूर्व , कम से कम तीन बार अवश्य सोच लेना चाहिए। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-12358233834931653402011-03-31T08:07:13.578+05:302011-03-31T08:07:13.578+05:30.
डॉ अमर ,
आपने सही कहा की यदि लोग अपने अहंकार क....<br /><br />डॉ अमर ,<br /><br />आपने सही कहा की यदि लोग अपने अहंकार की टोपी उतारकर जेब में रख लें तो स्वतः ही सहमत हो जायेंगे आलोचना से , लेकिन विडंबना तो यही है की आलोचकों का स्वयं का अहंकार बहुत ज्यादा होता है , जिसे वो आड़े वक़्त पर उत्तर कर जेब में नहीं रख पाते । एक बार मेरे एक आलोचक मित्र ( जिनसे मेरा विशेष स्नेह है ) , का अहम् चोट खा गया , और फलस्वरूप उन्होंने मुझसे नाराज़ उन्होंने मेरे १०० लेखों पर से अपनी टिपण्णी डिलीट कर दी ।<br /><br />टिपण्णी किसी व्यक्ति को खुश अथवा दुखी करने के लिए नहीं लिखी जाती । टिप्पणियां विषय के साथ न्याय करती है और लिखने वाले की पहचान छोड़ जाती हैं । जिसे लेख लिखने वाले के साथ साथ अन्य हज़ारों लोग भी पढ़ते हैं। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-15803800025210875122011-03-31T07:57:21.794+05:302011-03-31T07:57:21.794+05:30बिल्कुल सही कहा है आपने| बेहतरीन एवं सार्थक प्रस्...बिल्कुल सही कहा है आपने| बेहतरीन एवं सार्थक प्रस्तुति ।Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-82770227397163994322011-03-31T07:56:08.310+05:302011-03-31T07:56:08.310+05:30आलोचना केवल कमियाँ तलाशना मात्र नहीं है। किसी के उ...आलोचना केवल कमियाँ तलाशना मात्र नहीं है। किसी के उजले पक्षों पर प्रकाश डालना भी है। आलोचना कI अनिवार्य तत्व है सुधार न कि हतोत्साहित करना या अस्तित्व को ही चुनौती देना<br />प्रभावशाली और सार्थक विवेचनाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/18094849037409298228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-13208725378601113542011-03-31T02:37:57.553+05:302011-03-31T02:37:57.553+05:30भले ही यहाँ कोई मुझे लतखोरी लाल समझे, पर मुझे मेरे...<i><br />भले ही यहाँ कोई मुझे लतखोरी लाल समझे, पर मुझे मेरे आलोचक मित्र जान से भी प्यारे हैं, उन्होंने मुझे उपर्युक्त दिशा दिखायी है, और मुझे इस मुकाम पर पहुँचाया है । करना बस इतना होता है कि अपने अहँ की टोपी उतार कर जेब में रख लीजिये, आप स्वतः ही उनकी आलोचना से सहमत होते जायेंगे ।<br />मैं व्यक्तित्व विकास के लिये आलोचना को अनिवार्य तत्व मानता हूँ, वरना तो यहाँ विमर्श चल ही रहा है ।<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-76551124053288344502011-03-31T00:26:01.815+05:302011-03-31T00:26:01.815+05:30आलोचना में आलोचना करनेवाले का मकसद और वाणी का बहुत...आलोचना में आलोचना करनेवाले का मकसद और वाणी का बहुत महत्व है. यदि मकसद सकारात्मक न होकर किसी को नीचा दिखाना हो तो ऐसी आलोचना द्वेष और नफरत को ही जन्म देती है.सकारात्मक आलोचना में भी वाणी प्रिय,हितकारी और सच्चाई पर आधारित होनी चाहिये.कड़वी वाणी यदि सच भी हो तो भी हर किसी को पसंद नहीं आती.आपने ठीक ही कहा है कि<br />"आलोचक का मंतव्य पावन होना चाहिए जिसकी आलोचना हो रही है , उसमें पर्याप्त दृढ़ता होनी चाहिए । यदि दोनों का ही अहंकार बीच में न आये तभी आलोचना की सार्थकता है ।"Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.com