tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post6249609945841685446..comments2024-03-18T11:14:46.125+05:30Comments on ZEAL: क्या शिक्षा द्वारा अर्जित ज्ञान कभी बेकार जाता है. ? क्या शिक्षा अनुपयागो हो सकती है कभी ?ZEALhttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comBlogger75125tag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-14988170052996625752010-11-18T16:35:12.537+05:302010-11-18T16:35:12.537+05:30ज्योति प्रकाश जी,
.
एक बेहद ही सार्थक टिपण्णी क...ज्योति प्रकाश जी,<br /><br />.<br /><br />एक बेहद ही सार्थक टिपण्णी के लिए आभार। आपकी टिपण्णी से हम सभी लाभान्वित होंगे। <br /><br />हरी प्रकाश ji ,<br /> आपकी टिपण्णी , सही पोस्ट पर लगा दी गयी है। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-73539278805869855432010-11-18T15:33:00.129+05:302010-11-18T15:33:00.129+05:30**शिक्षा**
मूल बात सतोप्रधान बनने / बनाने की है |
...**शिक्षा**<br />मूल बात सतोप्रधान बनने / बनाने की है |<br />जो व्यक्ति शिक्षा, निम्नलिखित अष्ट शक्तियों में निखार लाने के लिये लेता/ देता है, वह शिक्षा का सदुपयोग कर रहा है |<br />१. समेटने की शक्ति <br />२. सहन शक्ति<br />३. समाने की शक्ति (to adjust )<br />४. परखने की शक्ति <br />५. निर्णय शक्ति <br />६. सामना करने की शक्ति (specially in calamities)<br />७. सहयोग की शक्ति <br />८. विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति <br />गुण, गुण है| उसका सतोगुण उपयोग या तमोगुण उपयोग व्यक्ति निर्भर है|<br /><br />The main purpose of education is to construct unanimous, lasting and genuine defenses of peace first in one’s own mind and then in the minds of others. A clean virtuous mind dynamically facilitates accomplishment of this purpose. For cleaning of mind, truthfulness is the main tool. Truthfulness combined with amiability purifies the mind crystal-clear. The benefits of truthfulness or cleanliness of mind, similar to external cleanliness, are felt by the person who comes in contact of such purified soul (मन, बुद्धि, संस्कार ; आत्मा के तीन अंग). Education should strengthen people to survive with truthfulness. The lack of truthfulness / purity in educationists keeps defeating (or deviating) the purpose of education.Jyoti Prakashhttps://www.blogger.com/profile/10181310140103109204noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-27068465387633057632010-11-18T13:43:15.217+05:302010-11-18T13:43:15.217+05:30क्षमा करें। मेरी टिप्पणी किरण बेदी वाले आलेख पर लग...क्षमा करें। मेरी टिप्पणी किरण बेदी वाले आलेख पर लगनी चाहिए थी।<br /> <br />- हरीशहरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-90482825688081970642010-11-17T08:35:14.486+05:302010-11-17T08:35:14.486+05:30.
कौशलेन्द्र जी,
आपने और आपके बेटे ने बहुत सटीक ....<br /><br />कौशलेन्द्र जी,<br /><br />आपने और आपके बेटे ने बहुत सटीक बात स्पष्ट शब्दों में लिखी है। एक बेहद सार्थक टिपण्णी के लिए आभार। जो कुछ अनकहा रह गया था। उसे आपकी टिपण्णी पूर्णता प्रदान कर दी। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-31923240901617658582010-11-17T00:24:51.750+05:302010-11-17T00:24:51.750+05:30हाँ ! हमारे पुत्र जी भी कुछ कहना चाहते हैं .....मै...हाँ ! हमारे पुत्र जी भी कुछ कहना चाहते हैं .....मैं उनकी बात को उन्हीं के शब्दों में लिखे दे रहा हूँ -<br />" शिक्षा जीवन में गुणात्मक विकास करती है इसलिए कभी व्यर्थ नहीं जा सकती .......बशर्ते उसे केवल नौकरी के उद्देश्य से न लिया गया हो ..यह तो शिक्षा का स्थूल उद्देश्य हो गया ....मैं खुद पढ़ने के बाद नौकरी नहीं करूंगा . लोगों ने इसे व्यावसायिक बना दिया है ...लोग स्कूल में शिक्षा नहीं मात्र सूचना एकत्र करने जाते हैं,....किताबें भी सूचनाएं ही देती हैं ...उनका उपयोग पाठक की मूल वृत्ति और उसके संस्कारों द्वारा तय होता है ".बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-70393834725827063042010-11-17T00:23:37.291+05:302010-11-17T00:23:37.291+05:30सबसे पहले तो बधाई स्वीकारें .....इस बात के लिए कि ...सबसे पहले तो बधाई स्वीकारें .....इस बात के लिए कि इसी बहाने एक सार्थक विमर्श के लिए अवसर मिला (यद्यपि यह विमर्श हर व्यक्ति को सतत करते रहना चाहिए ...खैर...)<br />हमें "शिक्षा" शब्द के अर्थ, भाव, उद्देश्य, और पात्रता पर भी विचार करना होगा.<br />शिक्षा वह है जो हमें सीख देती है, सीख कर हम संस्कारवान बनते हैं, इसके पीछे भाव है कल्याण का, उद्देश्य है आनंद की प्राप्ति. अंतिम बात है पात्रता ....तो सारी बात यहीं पर आकर अटक जाती है. पहले सुपात्र शिष्य को ही ज्ञान दान मिल पाता था, आज ऐसा नहीं है. मापदंड बदल गए हैं -प्रवेश परीक्षा में पास हो जाना ही सुपात्रता है , हम क्वालिटी पर नहीं क्वान्टिटी पर ध्यान दे रहे हैं. इसने भौतिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है और निराश विद्यार्थियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को जन्म दिया है .....शिक्षा के प्रति अब हमारा वह भाव नहीं रहा जो कभी भारत का आदर्श हुआ करता था, अन्यथा उच्च शिक्षित आई. ए. एस. अधिकारी भ्रष्टाचारी न होते. यह प्रमाणित करता है कि शिक्षा से वह व्यक्ति संस्कारित नहीं हो सका ...क्योंकि सुपात्र नहीं था न !<br />हम अपनी-अपनी पात्रता के अनुरूप सीख ग्रहण करते हैं .......पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ....कभी राम जैसा तो कभी रावण जैसा. राम से अधिक विद्वान था रावण ( अब बात चली है तो बतादूँ कि रावण स्त्री-रोग एवं प्रसूति-तंत्र तथा बाल-रोग विशेषज्ञ भी था, सीता को रावण की पुत्री माना जाता है, इन-विट्रो निषेचन में महारत थी उसे, महर्षियों के रक्त से पृथक किये जींस की जेनेटिक इंजीनियरिंग के एक नायाब और सफल प्रयोग का जनक था वह ), विषयांतर के लिए क्षमा करें, मूल बात पर आता हूँ.<br />विद्वता हमें विश्लेषणात्मक क्षमता प्रदान करती है ......ज्ञान के लिए यह आवश्यक तो है पर अनिवार्य नहीं. कई बार हम ठोकरें खाकर भी परिस्थितियों से सीख नहीं ले पाते...कई बार उच्च-शिक्षित होकर भी हम दूरदर्शी नहीं हो पाते. सवाल यह है कि हमारे अन्दर ज्ञान की प्यास कितनी है. ज्ञानी लोग सच्चे (सत) ज्ञान की बात करते हुए देखे जाते हैं .......तो क्या ज्ञान असत भी होता है ? हाँ ! यही तो पात्रता है. इंजीनियर बनके हमें करना क्या है ......एटम बम या एटामिक ऊर्जा ? लक्ष्य क्या है ? -यह तय होना चाहिए. डाक्टर ओझा कहते हैं .... आप अपनी जितनी ऊर्जा कविता लिखने में जाया करते हैं उतनी ऊर्जा में तो इम्म्युनाइजेशन पर अच्छा काम कर सकते हैं . उनके हिसाब से मेरी ऊर्जा व्यर्थ ही जाया हो रही है ...(जैसी कि आपकी ). मैं निजी प्रक्टिस नहीं करता .........आर्थिक तंगी रहती है ...इसका समाज में विश्लेषण इस प्रकार किया गया - "समझ में नहीं आता ये प्रेक्टिस क्यों नहीं करता ?".....या "आदर्श का मारा है बेचारा "....... या "झक्की है " या ......."गधा होगा, नक़ल करके डाक्टर बना होगा". यह सामाजिक मूल्यांकन है .....किन्तु ज्ञान के मार्ग में यह मूल्यांकन पूर्णतः अनुपयोगी है, दिव्या जी ! इस मूल्यांकन से हमारा आपका क्या लेना-देना ? अरे थोड़ा पागलपन भी आने दीजिये अपने ऊपर ......लोगों को मुझ पर तरस आता है, मुझे लोगों के ऊपर तरस आता है ......वे अपनी दुनिया में खुश ...हम अपनी दुनिया में . एक डाक्टर साहब पी.जी. हैं....उस दिन देखा मुर्गे की टांग खा रहे थे .....खींच के खाया ....फिर बाहर आके मुह से धुंआ भी उड़ाया .....मुझे मजा आया ...मन ही मन हंसता रहा. क्या उन्हें यह बताने की आवश्यकता है कि उनका कोलिस्ट्रोल कहाँ जाएगा ? मजे की बात ये कि वे हृदय रोग विशेषज्ञ हैं. कुछ लोग हैं जो किताबी ज्ञान को व्यावहारिक नहीं मानते ....या कि शायद ....वह केवल उपदेश के लिए ही है.....ऐसा मानते हैं . <br />यदि आपका चरम लक्ष्य "आनंद" है तो इन टिप्पणियों के लिए मन में विषाद क्यों ? आपका विवेक जो कहता है वही करिए न ! <br />अब ई देख्खिये ! अपने लालू को पूरा दुनिया का लोग का-का नहीं कोह्ता है मगर ऊ अपना चाल बदले हैं का ? तब्ब ! आप्पे काहे अपना चाल बदलियेगा , नहीं न! हाँ अब ठीक है - जाइए चा-वा पीजिये आ खुस रोहिये.... सुद्ध दुधवा त आज कल मिलबे नहीं करता है नहीं त कहते कि -जाइए थोरा दूध-वुध पीजिये आ खुस रोहिये .<br />कई वर्षों से इस विषय पर कुछ लिखना चाहता था, आज आपने अवसर दे ही दिया . पर मन अभी भरा नहीं .....शेष फिर कभी .बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-32150022594571163982010-11-16T09:09:28.583+05:302010-11-16T09:09:28.583+05:30किरण बेदी नाम ही स्वयं में एक प्रेरणादायक व्यक्तित...किरण बेदी नाम ही स्वयं में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं। <br />पोस्ट के लिए आभार।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-44944838156809111702010-11-14T06:31:39.518+05:302010-11-14T06:31:39.518+05:30.
राम त्यागी जी,
सहमत हूँ आपकी बात से, इसलिए सतत....<br /><br />राम त्यागी जी,<br />सहमत हूँ आपकी बात से, इसलिए सतत जुड़े रहना चाहिए अपने प्रोफेशन से, चाहे जिस भी तरीके से संभव हो। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-7043851024732479722010-11-14T06:16:59.391+05:302010-11-14T06:16:59.391+05:30बेकार तो नहीं जाता, पर अगर सतत उपयोग नहीं हो तो धा...बेकार तो नहीं जाता, पर अगर सतत उपयोग नहीं हो तो धार तेज नहीं रह पाती !!राम त्यागीhttps://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-53289860164300978362010-11-14T05:22:37.143+05:302010-11-14T05:22:37.143+05:30.
राधारमण जी,
हमारी आम जनता वैसे ही इश्वर में अं....<br /><br />राधारमण जी,<br /><br />हमारी आम जनता वैसे ही इश्वर में अंध-विश्वास रखती है। यदि उसे ये पता चल गया की अशिक्षित होने से इश्वर का सानिद्ध्य मिलेगा , तो धरे रह जायेंगे, सर्व शिक्षा अभियान। कोई पढ़ेगा ही नहीं और सब मोक्ष प्राप्ति में लग जायेंगे। वैसे एक फायदा होगा- जब लोग शिक्षित ही नहीं होंगे तो शिक्षा जैसे संसाधन बर्बाद भी नहीं जायेंगे।<br /><br />रचना जी,<br />महत्वपूर्ण बात कही आपने। सहमत हूँ आपसे। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-70741569920892143272010-11-13T23:42:38.308+05:302010-11-13T23:42:38.308+05:30अशिक्षित लोग ईश्वर के निकटतम हैं।अशिक्षित लोग ईश्वर के निकटतम हैं।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-65963404850054345342010-11-13T23:09:43.273+05:302010-11-13T23:09:43.273+05:30depends on what your priorities in life aredepends on what your priorities in life areरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-21975958265300954052010-11-13T21:30:52.711+05:302010-11-13T21:30:52.711+05:30पोथा पढि पढि जग भया पंडित हुआ ना कोय ।
अगर हम सिर्...पोथा पढि पढि जग भया पंडित हुआ ना कोय ।<br />अगर हम सिर्फ डिग्रीयों के अर्जन को ग्यान कहते है तो हो भी सकता है कि उनका होना व्यर्थ हो जाय , किन्तू अगर हम शिक्षा के सही मानये समझ लें तो यही शिक्षित होना है और ऐसी शिक्षा बेकार तो हो ही नही सकती<br /><br />पढे ढाई आखर प्रेम का , तो वो पंडित होय<br /><br />तो जो ज्ञानी होगा वो दुनिया मे हमेशा प्रेम बढाता है , और यह उसकी निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया होती हैpalashhttps://www.blogger.com/profile/09020412180834601052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-13023723380845859392010-11-13T21:29:19.164+05:302010-11-13T21:29:19.164+05:30पोथा पढि पढि जग भया पंडित हुआ ना कोय ।
अगर हम सिर्...पोथा पढि पढि जग भया पंडित हुआ ना कोय ।<br />अगर हम सिर्फ डिग्रीयों के अर्जन को ग्यान कहते है तो हो भी सकता है कि उनका होना व्यर्थ हो जाय , किन्तू अगर हम शिक्षा के सही मानये समझ लें तो यही शिक्षित होना है और ऐसी शिक्षा बेकार तो हो ही नही सकती<br /><br />पढे ढाई आखर प्रेम का , तो वो पंडित होय<br /><br />तो जो ज्ञानी होगा वो दुनिया मे हमेशा प्रेम बढाता है , और यह उसकी निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया होती हैpalashhttps://www.blogger.com/profile/09020412180834601052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-61219023480187749052010-11-13T18:48:43.782+05:302010-11-13T18:48:43.782+05:30शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती ....यह बात सत्य है ......शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती ....यह बात सत्य है ...शिक्षित व्यक्ति हर तरह से बेहतर सोच सकता है ..उसका मानसिक विकास इतना हो चुका होता है की वो समाज और परिवार के लिए अच्छा काम कर सकता है ...लेकिन यह बात भी सच है कि शिक्षित और सभी होने में अन्तर है ...सभ्यता संस्कारों से आती है ..भले ही शिक्षा पाने के दौरान हम कितनी ही अच्छी बातें पढ़ लें लेकिन यदि वो हमारे आचरण में नहीं आया तो पढ़ना बेकार है ...व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर यदि उससे धनोर्पार्जन नहीं किया तो लोंग अक्सर यह कह देते हैं कि इतना पढने का क्या लाभ ....भले प्रत्यक्ष रूप से लाभ न हो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसकी उपयोगिता कम हो जाती है ...विद्या धन ऐसा धन है जो बांटने से बढ़ता है तो कम तो हो ही नहीं सकता ...अच्छी पोस्ट ..और लोगों ने बहुत अच्छे और सार्थक विचार रखे हैं ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-14756524718991454792010-11-13T16:08:17.837+05:302010-11-13T16:08:17.837+05:30.
वीरेंद्र जी,
आपकी टिपण्णी ने तो मेरी दुखती रग ....<br /><br />वीरेंद्र जी,<br /><br />आपकी टिपण्णी ने तो मेरी दुखती रग ही पकड़ ली ! सभी पाठकों ने सार्थक टिप्पणियां दी , शिक्षा के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं से अवगत कराया। मेरे मन के द्वन्द को कुछ विराम भी मिला लेकिन आराम नहीं। लेकिन आपकी एक पंक्ति ने बहुत सुकून दिया वर्ना हम तो इसी झंझावत से जूझ रहे थे की - "पढ़े फारसी , बेचे तेल "<br /><br />कभी कभी , कुछ लोगों के` व्यंग बाण की चिकित्सा की शिक्षा रखके ब्लॉग्गिंग कर रही हो ? थक गयी थी स्पष्टीकरण देते देते। फिर लगा , अपनी शिक्षा से लोगों की जेब काट रही होती तो ये तोहमत तो न लगती की - तेल बेच रही हूँ, अथवा, किसी अच्छे विद्यार्थी की सीट मार दी, अथवा शिक्षा व्यर्थ हो गयी ।<br /><br />क्या मोटी फीस लेकर , मेरी शिक्षा सार्थक हो जाती ? क्या मुफ्त में निस्वार्थ होकर , बिना शुल्क लिए , समाज की सेवा करने से शिक्षा व्यर्थ हो जाती है ?<br /><br />जो सस्ते में मिले तो बैगन काना ही होगा ?<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-9757016693025582402010-11-13T15:57:13.848+05:302010-11-13T15:57:13.848+05:30Divya ji..It depends on us.Divya ji..It depends on us.वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-25520240865425890492010-11-13T15:44:25.322+05:302010-11-13T15:44:25.322+05:30Depends on us. For Example you're not wasting ...Depends on us. For Example you're not wasting your education. On the other hand there are many people who are not getting anything from their education. Means They are wasting their education.वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-6884427502371126462010-11-13T11:42:52.455+05:302010-11-13T11:42:52.455+05:30दिव्या जी आपके ब्लॉग में इस बार देर से आना हुवा का...दिव्या जी आपके ब्लॉग में इस बार देर से आना हुवा काफी लोगो ने अपने विचार बहुत ही सुंदर ठंग से रखे ! शिक्षा मेरे विचार से कभी भी नष्ट नहीं होती और शिक्षित होने का मतलब रोजगार प्राप्त करना नहीं होता है मैंने कई ऐसे लोगो को नौकरियों में देखा है जो की आर्थिक रूप से सक्षम है और ये कहते है की भई शिक्षित है और खाली समय रहता है इसलिए नौकरी कर रहे है !लेकिन वे यह नहीं सोचते की उनका टाइम पास या शिक्षित होने का सदुपयोग किसी को बेरोजगार बना रहा हैं !यदि आप पड़े लिखे है सक्षम है तो ये मत सोचिये की सिर्फ व सिर्फ नौकरी ही इसका एक मात्र उपाय है और भी कई कार्य है जिसमे शिक्षा का उपयोग है!amar jeethttps://www.blogger.com/profile/09137277479820450744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-85899424956065365522010-11-13T10:14:23.555+05:302010-11-13T10:14:23.555+05:30उपयोग करने वाले पर निर्भर है ।उपयोग करने वाले पर निर्भर है ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-48295774899017435772010-11-13T10:07:53.708+05:302010-11-13T10:07:53.708+05:30aap ke liye dusro ke liye, aur samaj ke liye.it i...aap ke liye dusro ke liye, aur samaj ke liye.it is must for good edu..sumit dashttps://www.blogger.com/profile/16265265106539341595noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-74505234786087129782010-11-13T10:07:04.474+05:302010-11-13T10:07:04.474+05:30वन्दना@
शिक्षा कभी बेकार नही जाती …………चाहे परोक्ष...वन्दना@<br /><br />शिक्षा कभी बेकार नही जाती …………चाहे परोक्ष रूप से चाहे अप्रत्यक्ष रूप से अर्जन तो होता ही है तभी तो सकल घरेलु उत्पाद मे आज घरेलु महिलाओ को भी शामिल किया जा रहा है……………ज्ञान कभी व्यर्थ नही जाता उसी से एक सभ्य सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है्।<br /><br />वन्दना जी की उपरोक्त प्रतिकिर्या में पूर्णत:सहमती जताते हुए अपनी ऑर से इतना और जोड़ना चाहूँगा की प्रोफेशनल एजुकेशन के मामले में कहा जा सकता है की यदि धनोपार्जन ही आपका मुख्य उदेश्य था और आप ऐसा नहीं कर पाए तो जाहिर है आपकी शिक्षा व्यर्थ गई, अन्यथा शिक्षा किसी भी सूरत में व्यर्थ नहीं जाती है , यहाँ पर उद्देश्य ही तय करता है की आपकी शिक्षा व्यर्थ गई या सार्थक हुई .....पी.एस .भाकुनीhttps://www.blogger.com/profile/10948751292722131939noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-15619335488647375222010-11-13T10:04:22.536+05:302010-11-13T10:04:22.536+05:30words to words i ok to u.words to words i ok to u.sumit dashttps://www.blogger.com/profile/16265265106539341595noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-59409104758889330232010-11-13T10:02:25.341+05:302010-11-13T10:02:25.341+05:30इस उपयोगी पोस्ट की चर्चा
आज के चर्चा मंच पर भी है...इस उपयोगी पोस्ट की चर्चा <br />आज के चर्चा मंच पर भी है!<br />http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/337.htmlडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2911361780403920194.post-4937256746078121382010-11-13T09:10:15.045+05:302010-11-13T09:10:15.045+05:30.
@ Ethereal ,
काश विषय पर कुछ लिखा होता आपने। ख....<br /><br />@ Ethereal ,<br /><br />काश विषय पर कुछ लिखा होता आपने। खैर ..<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com