Wednesday, January 19, 2011

शिल्पकारों , जुलाहों और मिस्त्री आदि के गौरव की रक्षा होनी चाहिए - एक पहचान

हमारे देश में अनेक कलाएं हैं , जो आज समाप्ति की कगार पर हैं क्यूँकि उन्हें महत्त्व नहीं दिया जाता है और उनके विकास की दिशा में कोई प्रयास नहीं होताइन कलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता हैहमारे शिल्पकार जो आज कपडे , जूट, कपास, चमड़े , लकड़ी , सिल्क आदि से बेहतरीन वस्तुओं का निर्माण करते हैंउनकी कलाओं को बढ़ावा देने के लिए उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए

पढ़ाई और लिखाई से आगे भी कला और ज्ञान का भण्डार हैहमारे समाज में शिक्षक , वकील , चिकित्सक और इंजीनियर्स को भरपूर सम्मान मिलता है उनकी कला के लिए। लेकिन हमारे कुम्हार, जुलाहे , बुनकर, कालीन बनाने वाले, लकड़ी , जूट , ऊन से तैयार होने वाले अद्भुत शिल्प आदि का ज्ञान रखने वालों को वो गौरव नहीं प्राप्त है जो अन्य व्यवसायों को है

इसका कारण है उनके पास डिग्री का ना होनाआज सम्मान केवल डिग्रीधारियों को ही नसीब होता हैइसलिए इन कलाकारों एवं शिल्पकारों को उनके हुनर के लिए डिग्री मिलनी चाहिएइनके ज्ञान एवं कला से विस्तार, प्रचार एवं प्रसार के लिखे एक विश्व विद्यालय होना चाहिए , जिसमें बिना किसी औपचारिक डिग्री के कारीगर-शिक्षक होने चाहिए जो अपनी कला को सिखा सकें आने वाली नयी पीढ़ी कोइससे ये शिल्पकार भी गौरव के साथ जी सकेंगे

विदेशों में जब चिकित्सक , वैज्ञानिक आदि जाते हैं तो उन्हें सम्मान मिलता है , क्यूँकि इनका सम्मान अपने देश में भी हैलेकिन हमारे शिल्पकारों को देश विदेश में सम्मान मिले इसके लिए इन्हें सबसे पहले अपने देश में पहचान एवं सम्मान मिलना बहुत जरूरी हैइनके लिए शिक्षण संस्थान होने चाहिए तथा इन्हें भी उचित डिग्री हासिल होनी चाहिएइससे विलुप्त होती पारंपरिक कलाओं को बचाया भी जा सकता है तथा इसमें रुचि बढ़ने के साथ रोजगार के साधनों में भी वृद्धि होगी

प्रत्येक नागरिक को अधिकार है गौरव के साथ जीने का

आभार

54 comments:

  1. प्रत्येक नागरिक को अधिकार है गौरव के साथ जीने का।,.....
    हमारे शिल्पकारों को देश विदेश में सम्मान मिले इसके लिए इन्हें सबसे पहले अपने देश में पहचान एवं सम्मान मिलना बहुत जरूरी है।
    vicharniy post hetu abhaar...........

    ReplyDelete
  2. सहमत।
    कभी कभी सोचता हूँ, डिग्री केवल arts, science, commerce, engineering, medicine में ही क्यों दी जाती है?
    कलाओं में, Trades/skills में क्यों नहीं? उनमें केवल Diploma क्यों? डिप्लोमा का दर्जा डिगरी से कम क्यों है?
    मेरा विचार है की, संगीत/क्रीडा/समाज सेवा वगैरह में भी डिग्रियाँ दी जानी चाहिए, और इन लोगों को समाज में उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना हम college में पढकर पास होने वालों को देते हैं।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
  3. बिल्कुल, इन्हें संरक्षण न मिलने के कारण इनकी कलायें विलुप्त हो जायेंगी..

    ReplyDelete
  4. सही मुद्दा उठाया है जी आपने
    शिक्षा नीति, मशीनों और आधुनिकीकरण ने भी हस्तशिल्पियों, कारीगरों आदि को इनको दिये जाने वाले सम्मान से वंचित कर दिया है।
    विश्वविद्यालय द्वारा ऐसी कलाओं के लिये डिग्री दी जाये तो शायद ये भी सिर उठा कर चल सकें।

    जीO विश्वनाथ जी की टिप्पणी से सहमत।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  5. सही मुद्दा उठाया है आपने,आपसे सहमत।
    प्रत्येक नागरिक को अधिकार है गौरव के साथ जीने का।

    ReplyDelete
  6. बहुत उम्दा विषय चुना है आपने.सचमुच हमारे कामगार भाई सही सम्मान से वंचित हैं.शुरुआत तो हमें ही करनी है

    ReplyDelete
  7. इनका संरक्षण जरुरी है . उनका महत्त्व भी समझने की जरूरत है

    अच्छी सोच ..
    धन्यबाद

    ReplyDelete
  8. वर्तमान में सरकार की नीतियाँ शिल्पकारों के विरुद्ध ही हैं. बड़े उद्योगपतियों के हित ऐसी नीति अपनाई गई कि देश भर में लगभग एक करोड़ के आसपास कपड़ा बनाने वाले घोर विपत्ति में आ गए थे. संभव आज उनकी संख्या उससे अधिक हो. इन कारीगरों के जनसमुदाय सामाजिक रूप से तिरस्कृत हैं. फिर भी आशावादिता का दामन पकड़े हैं.

    ReplyDelete
  9. आपने ठीक कहा इन्हे संरक्षण एवं सम्मान मिलना ही चाहिए

    ReplyDelete
  10. हमारे शिल्पकारों को देश विदेश में सम्मान मिले इसके लिए इन्हें सबसे पहले अपने देश में पहचान एवं सम्मान मिलना बहुत जरूरी है।...lakh take kee baat...

    ReplyDelete
  11. सही मुद्दा उठाया है आपने,आपसे सहमत।

    ReplyDelete
  12. ऐसा भी नहीं है बहुत सारे I T I , Polytechnic एवं designer संस्थान हैं परन्तु उनका स्वरुप आधुनिक है परम्परागत कार्यों में यहं दक्षता नहीं प्राप्त होती है

    ReplyDelete
  13. दिब्या जी आपने बहुत ही अच्छा विषय उठाया है इससे हमारे देश के कलाकारों को सम्मान तो मिलेगा ही हमारी संस्कृति और कला भी सुरक्षित रहेगी ...लेकिन क्याकरे सर्कार तो आतंक बादियो को बचने और देश भक्तो को बदनाम करने में लगी है उसे कलाकारों की कहा चिंता.

    ReplyDelete
  14. मैं भी आपकी बात से सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  15. प्रत्येक नागरिक को अधिकार है गौरव के साथ जीने का ..बहुत ही विचारणीय प्रस्‍तुति है आज की आपके इस आलेख की ..पूर्णत: सहमत हैं ...।

    ReplyDelete
  16. दिव्याजी
    अपने बहुत ही सही विषय को गंभीरता पूर्वक लिखा |सरकारी प्रयास होते है लेकिन बहुत ही सिमित मात्रा में और नहीं सर्कार को कोई लाभ होता है और न ही उन शिल्पकारो को यहाँ पर भी मोनोपली और
    शोषण है |कच्छ (गुजरात) की कढाई ,ग्लास वर्क बहुत ही प्रसिद्द है छोटे छोटे गाँव में प्रत्येक घरो में वहा की महिलाये कच्छी कढाई से चादर बनाती है ,शाल आदि बहुत मेहनत se बनाती है कुछ साल पहले राजीव गाँधी रोजगार योजना के अंतर्गत ग्राम भुजोडी जिला (भुज) में यह योजना का आरम्भ हुआ था पर वही एक आदमी वहां का सर्वे सर्वा और बाकि लोग मजदूर |
    है अगर सभी लोगो को उनके कार्यो में डिग्री उन्हें और कुशल बनाया जाय तो उन्हें इसका फायदा मिल सकेगा |
    कुछ १५ या १६ साल पहले हम एक सीमेंट फेक्ट्री की टाउनशिप में रहते थे वहा पर महिलाये खुड्डी लगाकर (जुलाहे )बुनकर का काम करती थी किन्तु जब बड़ी बड़ी काटन मिल बंद हो गई तब उन बुनकरों के कपड़ो को कौन खरीदेगा ?इस रेयान के सिंथेटिक कपड़ो. के आने के बाद | कम्पनी के की ग्रामीण विकास की सहायता के साथ मिलकर हम कुछ महिलाओ ने वहा की बेरोजगार बुनकर महिलाओ को कालीन बुनाई का हुनर सिखाया जिला भदोई से कुशल कारीगरऔर ऊन मंगा कर करीब ९ माह की ट्रेनिग दी गई उन्हें ,बुनकर तो थी ही बहुत जल्दी उन्होंने ये काम भी सीख लिया | और बहुत खुबसूरत कालीन तैयार किये आज भी जयपुर की एक निर्यात कम्पनी उन कालीनो को निर्यात करती है और कालीन बुनने वाली महिलाओ की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है |

    ReplyDelete
  17. हर कला सम्मान की हक़दार होती है.
    आपकी बात से सहमत,

    ReplyDelete
  18. Every child should have a right to own a profession of his choice.

    ReplyDelete
  19. आपने बहुत ही सार्थक मुद्दा उठाया है
    आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हैं
    बेहतरीन पोस्ट

    ये शिल्पकार अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित कला से जुड़े होते हैं और अपनी पहचान को कायम रखने के लिए आज भी जद्दोजहद कर रहे हैं. बल्कि हम कह सकते हैं कि अतीत से वर्तमान और भविष्य तक ले जाने की परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं। निश्चित ही ये शिल्पकार हर दृष्टि से प्रशंसा एवं सम्मान के पात्र हैं। आज अत्यंत जरूरत इस बात की भी है कि इनके लिए बेहतर बाजार उपलब्ध कराया जाए ताकि ये अपनी कला को सबके सामने सहजता से ला सकें.

    पहले के राजा-महाराजा भी कलाकारों अथवा शिल्पकारों को सरंक्षण देते थे, आज सरकार का भी यह दायित्व है कि ऐसे प्रयास किये जाएँ जिससे इन शिल्पकारों को समाज में उचित सम्मान तथा आर्थिक संरक्षण मिल सके.

    ReplyDelete
  20. हमारी कलाप्रियता की पहचान पारंपरिक शिल्‍प में मानव मन की कल्‍पना, कौशल और उद्यम का सौंदर्यपूर्ण समन्‍वय होता है. धीरे-धीरे हस्‍त शिल्‍प का सम्‍मान पुनः बढ़ रहा है, इसे मिल-जुल कर गति देने की जरूरत है.

    ReplyDelete
  21. दिव्व्या जी बहुत सुंदर संदेश दिया, आज इन हाथ के हुनर को पुरे युरोप मे इज्जत से देखा जाता हे, ओर हाथ से बनी चीज बहुत महंगी आती हे, इन्हे जरुर प्रोत्सहान ओर पहचान मिलनी चाहिये, धन्यवाद

    ReplyDelete
  22. एक दम सही सोच के साथ बिल्कुल सही बात कही है आपने। जब तक यह शक्ति अपने यहां नही पहचानी जाएगी तब तक देश का भला नहीं होगा।

    ReplyDelete
  23. एक विचारणीय पोस्ट . .......बहुत ही सकारात्मक सोंच के साथ सुंदर आह्वान है.

    ReplyDelete
  24. जहां बडे कारखाने लगे हों, वहां कारीगरों को कौन पूछेगा और जहां ट्रैक्टर चलते हैं वहां हलधर को कौन पूछेगा :(

    ReplyDelete
  25. .

    शोभना जी ,

    ख़ुशी होती है ये जानकार की ग्रामीण इलाके में अब भी ये चलन है और परम्पराएं अभी जीवित हैं । बहुत सी महिलाएं एवं पुरुष अपने अथक श्रम से के साथ लगे हुए हैं इस कला से अमीरों के घर की सज्जा का सामान बनाने में।

    लेकिन मुझे अफ़सोस इस बात का है, की इन्हें समाज में वो सम्मान नहीं मिलता जो डिग्रीधारी लोगों के पास है।
    इन्हें भी हक है Graduate और Doctorate की उपाधि पाने का। इन्हें भी है हक है Gold medalist कहलाने का।

    ये गरीब लोग सारी जिंदगी अपनी कलाओं से हमारी सेवा करते रहेंगे , तो भी इनको क्या मिलेगा बदले में ? मात्र चंद रूपए ?

    नहीं !! इन्हें , इनकी कला का उचित सम्मान मिलना ही चाहिए। कालीन बनाने वालों के पास भी इतना बड़ा घर होना चाहिए की अपनी बनायी कालीन अपने घर में बिछा सकें। जिस पर उनके अपने भी चल सकें, बैठ सकें।

    विद्यालय होना चाहिए इन गरीब , हुनरमंद , कलाकारों के लिए। डिग्री और प्रशस्तिपत्र होने चाहियें इनके पास भी , जो इनको स्वाभिमान के साथ उस व्यवसाय से जुड़े रहने के लिए ऊर्जा दें।

    जब किसी कला या व्यवसाय के साथ सम्मान और डिग्री जुड़ जाती है , तो नयी पीढ़ी के लोग पश्चिम की और भागना छोड़ , अपनी कला से जुड़ने की बात सोचेंगे।

    सरकार को घोटालेबाजी बंद कर , अपनी प्रजा की खुशियों के बारे में सोचना ही होगा। नहीं तो सिंघासन पर बैठने का कोई औचित्य नहीं है।

    .

    ReplyDelete
  26. आपका सुझाव एकदम मौलिक और सही है। अब तक किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया था।

    शिल्पकारों के लिए अलग से विश्वविद्यालय होने चाहिए, जिसमें परम्परागत रूप से विविध शिल्प कलाऔ में दक्ष कलाकार को बिना औपचारिक पढ़ाई किए मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्रदान की जानी चाहिए।

    इस प्रकार की कलाओं को सीखने के लिए केवल कौशलात्मक ज्ञान की आवश्यकता होती है जो पीढ़ दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है, सैद्धांतिक या पुस्तकीय ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए आपके द्वारा सुझाए गए शिल्प विश्वविद्यालय में ऐसे अध्यापक हों जो अपने हुनर में दक्ष हों, उनके पास किसी डिग्री का होना आवश्यक नहीं। इनमें सीखने वालों को बिना पाठ्य पुस्तक के संबंधित शिल्पकला का केवल प्रायोगिक अभ्यास कराया जाए।

    ReplyDelete
  27. सही मुद्दा उठाया है आपने,आपसे सहमत।
    एक विचारणीय पोस्ट .

    ReplyDelete
  28. आपके विचार सराहनीय हैं, विश्वनाथ जी कि टिप्पणी से सहमत हूँ. जिस तरीके से कला/सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में योगदान देने वालों को मानद उपाधियाँ प्रदान की जाती हैं, उसी प्रकार शिल्पियों, जुलाहों आदि को भी कला विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में मानद उपाधियाँ प्रदान की जाएँ.

    ReplyDelete
  29. प्रत्येक नागरिक को अधिकार है गौरव के साथ जीने का।
    bas yahin baat shuru hoti hai aur yahin khatm ho jati hai.sablog isse sahmat hain lekin baat aage badhti hi nahin.

    ReplyDelete
  30. सराहनीय और विचारणीय बात कही है ...शिल्पकारों का आज भी बहुत शोषण होता है

    ReplyDelete
  31. बहुत सही बात । ज्ञान और कला का कोई दायरा नहीं होता, परन्तु हमारे समाज ने हर किसी को डीग्री के दायरे में बांध रखा है । डीग्री नहीं तो उस इन्सान का जैसे कोई मोल ही नहीं, चाहे वो कितना भी जानकार क्यों ना हो । शहर के व्यापारी, ग्रामीण कलाकारियो को ग्रामीण कलाकारो से कम दामो मे खरीदकर, शहर के अमीर लोगो को ज़्यादा मुनाफ़े मे बेचते है । सम्मान तो दूर, उन कलाकारो को तो उनकी मेहनत का उचित मोल भी नहीं मिलता । जो हमारी ग्रामीण परमपरा है, उसे जिवित रखने के लिये, सरकार के साथ साथ आम जनता को भी आगे आना चाहिये । हम मे से कितने लोग मेले मे जाकर इन कलाकारो और शिल्पकारो से मोल-भाव करके, उनके कला को कम से कम दामो मे खरीदते है परन्तु उसी चीज को जब हम एक भव्य "mall" से खरीदते है तो उसका कई गुना दाम देने से नहीं हिचकते । हमारे सोच को बदलना होगा, तभी इन कलाकारो को उनका उचित मुल्य और सम्मान मिलेगा ।
    आपके विचार उचित और सराहनीय है । आभार ।

    ReplyDelete
  32. har kala ko samman milna chahiye .
    bahut hi sarthak vicharon ka lekh ..

    ReplyDelete
  33. सहमत हूँ। एक और बढ़िया लेख के लिए आभार।

    ReplyDelete
  34. बहुत ही सार्थक आलेख लिखा डॉ. साहिबा आपने। सच में आपका विचार बहुत ऊँचा है।

    ReplyDelete
  35. दिव्याजी(zeal )
    आपकी सभी बातो से मै पूर्णत :सहमत हूँ |क्यों न हम सभी ब्लोगर मिलकर कोई प्रयास करे इस दिशा में ?जो भी लो ग (जो लोग ब्लाग भी लिखते हो ) ऐसे संस्थानों से ( जहाँ इस तरह की विधाए सिखाई जाती हो )जुड़े हो ? या वहां पदस्थ हो ?उनसे मिलकर एक शुरुआत तो की ही जा सकती है एक सार्थक पहल की |

    ReplyDelete
  36. आपकी बातों से पूर्णतः सहमत .

    ReplyDelete
  37. दिव्या जी सही कहा अपने इनके अधिकारों की तो रक्षा होने चाहिए लेकिन इनका पहले देश में तो मान सम्मान हो उसके बाद विदेशों में तो हर एक इंसान के हर उस गुण का सम्मान होता जो उस मनुष्य विशेष बनाता है..................

    ReplyDelete
  38. ऊपर कई टिप्पणियों में कारीगरों के शोषण की बात उठी है. हस्तनिर्मित वस्तुएँ विदेशों में काफी मँहगी बिकती हैं. अधिकतर पैसा बिचौलियों के पास जाता है. यदि कोई कारीगर वाजिब दाम माँग लेता है तो शहरों में बैठे उनका उत्पाद बेचनेवाले दुकानदार उनकी पेमेंट रोक लेते हैं और उनका उत्पादन चक्र तोड़ देते हैं. पैसे की कमी के कारण ये कारीगर बेहतर तकनीक का लाभ नहीं उठा पाते हैं. शहरों में रह रहे ऐसे कारीगर संगठित हो गए हैं. वे लाभ बढ़ाने की स्थिति में आ गए हैं. गाँव में उनकी हालत उनके सामाजिक स्तर से बाँध दी जाती है. मैं समझता हूँ कि ज्यों-ज्यों शहरीकरण बढ़ेगा इनकी हालत बेहतर होगी. इन्हें डिग्री देने का कुछ लाभ हो सकता है अक्ल इसे मानती है. पर यह होगा कैसे? मानद डिग्रियाँ दी जा सकती हैं परंतु कितनी?

    ReplyDelete
  39. .

    दीपायन जी ,

    आपने बहुत सार्थक बात कही है , मैं भी पहले बहुत मोल-तोल करती थी , गरीब से दो पैसा बचाकर बहुत कमाल समझती थी। वहीँ पर malls और Kutons , Lee , Monto Carlo , Fedo-Dedo , Woodland आदि ब्रांडेड वस्तुओं पर हज़ारों खर्च करके भी दुःख नहीं होता था।

    धीरे धीरे समझ में आने लगा हम गरीबों पर कितना अन्याय करते हैं। उनकी मेहनत से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल शान से करते हैं , लेकिन उनको उसका उचित मूल्य नहीं देते।

    खैर , देर आयद दुरुस्त आयद -- इन बातों को समझने के बाद मैंने सबसे पहले तो branded वस्तुएं ही खरीदनी छोड़ दीं। और मोल भाव करने की गन्दी आदत भी ।

    मेरा अपने पाठकों से यही निवेदन है की भविष्य में गरीब से कुछ खरीदें तो मोल तोल ना करें । और यदि किसी कलाकार से कुछ खरीदें तो उसकी कला का उचित सम्मान करते हुए उसे मुंह माँगा दाम दें।

    .

    ReplyDelete
  40. .

    किलर झपाटा जी ,

    आपने मेरे विचारों की यहाँ सराहना की , लेकिन अपने ब्लॉग पर मेरे ऊपर पोस्ट लगाकर हर ऐरे-गैरे , बेनामी और सनामी से मुझे अभद्र , गालियाँ और अश्लील टिप्पणियाँ दिलाईं । सम्मानित ब्लोगर्स के नाम से भी फर्जी टिप्पणियां लगायीं । आपका यह कृत्य अत्यंत निंदनीय है , और आशा करती हूँ आप अपनी गलती का प्रायश्चित जरूर करेंगे ।

    यदि आपका उद्देश्य मुझे नीचा दिखाना है तो आप इस तरह से कभी सफल नहीं हो सकेंगे । मैं ही उपाय बता देती हूँ सफल होने का।

    सफल होने के लिए खुद को इतना ऊँचा उठाइये की सभी बौने दिखने लगें।

    आभार।

    .

    ReplyDelete
  41. सत्य है, मैं आपकी विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ, मैंने एक लघु कथा लिखी थी जो की स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थी, इसे कुछ छोटा करके लिखूंगा.

    समाज में इस वर्ग के प्रति सदैव ही उपेक्षा का भाव रहा है. इतिहास में पढ़ा है की ताज महल प्यार का प्रतीक है, वो ही ताजमहल जिसको बनाने वाले मासूम हाथों को काट दिया गया......खैर.

    एक बार और न केवल इन्हें समान अधिकार मिले बल्कि आर्थिक रूप में इनके श्रम को मूल्य भी मिले. नरेगा के अस्सी रुपयों में क्या खरीदा जा सकता है मैडम जी.

    जब देखता हूँ की कोई नयी दुल्हन अपनी बूढी सास के साथ धूप में मजदूरी करती है.....पीड़ा बयान करने को शब्द कम पड़ जाते हैं.

    श्रम को महत्त्व मिले और पूरा मिले.


    साधुवाद

    ReplyDelete
  42. .

    आदरणीय शोभना जी ,

    आपके सुझाव से सहमत हूँ । निश्चय ही इस सन्दर्भ में एक सकारात्मक पहल की जा सकती है । लेकिन सबसे जरूरी है , इन कलाकारों को डिग्री मिलना । इसके लिए सरकार की तरफ से इन डिग्रियों को मान्यता मिलनी चाहिए पहले । मेरा पूरा फोकस इन कलाकारों को डिग्री मिलने पर है ।

    यदि सरकार की तरफ से ये मान्य हो जाए तो फिर स्कूल , कालेज खोलने में सुविधा होगी। मेरी तरफ़ से जो भी सहयोग हो सकेगा , मैं करने को प्रस्तुत हूँ.

    .

    ReplyDelete
  43. .

    आदरणीय भूषण जी ,

    समस्या मानद उपाधि मिलने की ही है। इसी दिशा में प्रयास करना है। बिना सरकार के हस्तक्षेप के इन कलाकारों को समाज में उचित सामान नहीं मिल सकता। न ही इनके जीवन में कोई विकास हो सकता है।

    आज हम लोग जिन सुख सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं , इन्हें भी अधिकार है इन सब पर।

    मन में है विश्वास , इस दिशा में सकारात्मक पहल शीघ्र होगी ।

    .

    ReplyDelete
  44. .

    अरविन्द जी ,

    वास्तव में अत्यंत शर्मनाक और पीडादायी है ये वाकया जहाँ ताज महल बनाने वाले बेहतरीन कलाकारों को उनकी कला के लिए हाथ कटवाने पड़े।

    यदि उस समय का शासक इतना निर्मम हो सकता है , तो क्या हुआ, आज का शासक [ सत्ता में बैठे लोग] , इन्ही कलाकालों के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। यदि चाहें तो। इनके हाथ में ताकत है। सकात्मक कार्यों में इन्हें लगना चाहिए। इन्हें भी सत्ता हमेशा नहीं रहना है।

    .

    ReplyDelete
  45. सही है, सहमत हूँ ...

    ReplyDelete
  46. आदरणीया डॉ. साहिबा,
    आपका दिल दुखा इसके लिए माफ़ कीजिएगा। मगर मेरे इस निंदनीय कृत्य ने हिन्दी ब्लॉगजगत में लगातार हो रहे घृणित कार्यों को हाशिए से सफ़े पर ला दिया और लोगों को भीतर तक झकझोर दिया है। बड़े से बड़े ब्लॉगर भी परेशान हुए और देख लीजिएगा के इसके सुपरिणाम ही सामने आएँगे। आप तो सभी को बहुत प्रिय हैं ज़ील जी। आपको नीचा दिखाकर मुझे हासिल ही क्या होगा भला ? एक बार इस पूरे घटनाक्रम पर ठण्डे दिमाग से नज़र डाल कर देख लीजिए। मृणाल जी तक को मैदान में उतरना पड़ा है। आप धैर्य रखिए और बुरा मत मानिए। आप बहुत ज़िम्मेदार ब्लॉगर हैं इसीलिए इस गंदे पैटर्न को ब्लॉगजगत से मिटाने के लिए आपका भी सहयोग आपसे बिना पूछे ले लिया बस यही मेरी गलती थी और कुछ भी नहीं। आप कहें तो टिप्पणियाँ क्या मैं अपने ब्लॉग को ही इतिहास में गुम कर दूँ पर यज्ञ अधूरा रह जाएगा।

    ReplyDelete
  47. लाख टके की बात है.। शौभना चौरे जी की बात विचारणीय है।

    ReplyDelete
  48. िव्या जी सही कहा आपने
    आपकी सभी बातो से मै पूर्णत: सहमत हूँ ..
    ज्ञान और कला का कोई दायरा नहीं होता, परन्तु हमारे समाज ने हर किसी को डीग्री के दायरे में बांध रखा है । डीग्री नहीं तो उस इन्सान का जैसे कोई मोल ही नहीं, चाहे वो कितना भी जानकार क्यों ना हो
    साधुवादद

    ReplyDelete