बाबुल की दुआएं लेती जा ,
जा तुझको सुखी संसार मिले
मइके की कभी न याद आये ,
ससुराल में इतना प्यार मिले .....
मुग्धा हार गयी !
मुग्धा ने हारी हुई जंग लड़ने की कोशिश की थी । अंजाम तो मालूम ही था। आज पहले से भी बुरी स्थिति में है मुग्धा । एक दिन मुंह खोलकर क्या मिला ? भविष्य में मिलने वाला अपमान और हिंसा बदस्तूर जारी रहेगी। यही हश्र होना था उसका । उसने गलत निर्णय लिया था। जहाँ ह्रदय ही न हो वहां ह्रदय परिवर्तन की उम्मीद क्यूँ रखी। चिल्ला-चिल्लाकर यदि न्याय मिलता तो बहुएं नहीं जलाई जातीं। और टुकड़ों में न काटी जातीं।
कहते हैं यदि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ।
यहाँ तो पति ही मुग्धा के खिलाफ है। माँ शब्द से प्यार करता है , स्त्री का सम्मान करना ही नहीं जानता। जब पति ही खिलाफ हो जाए तो पत्नी की हार तयशुदा है।
कहते हैं , स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है ,
ये भी चरितार्थ हो गया मुग्धा के परिवार से । उसकी सास ही पिटवाती थी , और यदि सास न चाहती तो पति कभी नहीं पीटता क्योंकि वो पूरी तरह माँ के नियंत्रण में था। वही सास मुग्धा कों अपने आँचल की छाँव देकर उसे हर बला से बचा सकती थी और एक खुशहाल परिवार बनाने में सहयोग कर सकती थी।
मुग्धा के पास क्या-क्या विकल्प हैं ?
वो पिता के घर जाकर पति और सास पर घरेलु हिंसा का मुकदमा कर सकती है । लेकिन नहीं वो ऐसा करना नहीं चाहती । क्यूंकि वो बच्चों कों उसके पिता से दूर नहीं करना चाहती। और अपने माता पिता के जीवन के बचे हुए दो चार वर्षों कों अदालतों की जिल्लतों से दूर रखना चाहती है। बेटी के दुःख का उन्हें पता ही नहीं है । क्यूंकि मुग्धा तो फोन पर हमेशा उनके दामाद की तारीफ़ ही करती है। क्यूंकि वो जानती है की उसके बूढ़े पिता अपनी बेटी पर हो रहे अत्याचार कों नहीं बर्दाश्त कर पायेंगे और असमय ही चल बसेंगे।
वो तलाक दे सकती है ? लेकिन फिर वही समस्या। अपनी परिवार कों बिखरता हुआ नहीं देखना चाहती । विवाह करने के बाद तलाक के बारे में सोचना उसके संस्कार में ही नहीं है।
तो फिर वो क्या करे ? क्या सास बनने का इंतज़ार करे , क्यूंकि समाज के एक बड़े हिस्से की सहानुभूति सास के साथ है। कोई करे न करे बेटा तो हिफाज़त करेगा ही और फिर वो अपना बदला अपनी बहू से निकाले ?
मुग्धा का निर्णय --
क्यूंकि मुग्धा अपनी सास और पति से प्यार और सम्मान चाहती है । एक खुशहाल परिवार चाहती है , लेकिन ये सब अदालत की मदद से नहीं मिलता । प्यार तो सिर्फ प्यार करने वाले दिलों से ही मिलता है । इसलिए उसने अपनी नियति कों स्वीकार कर लिया है । कम से कम उसका परिवार तो नहीं बिखरेगा। बच्चे , बिना माँ अथवा पिता के तो नहीं रहेंगे। जहाँ दस साल कट गए , वहीँ दस और सही । कभी तो अत्याचार करने वाले के हाथ भी थकेंगे ।
मुग्धा अस्पताल में है । आज उससे मिलने गयी तो पूरे चेहरे पर नीले-काले धब्बे थे । मुझे देख कर मुस्कुराई , फिर आँख में आँसू आने पर उसने पलकें झुका लीं। कुछ बोली नहीं सिर्फ मेरा हाथ पकडे चुपचाप लेटी रही।
धीरे से बोली - "मेरा एक काम करोगी ? " ..मैंने पूछा - क्या ? ..तो बोली -
" बेटे से वादा किया था की फर्स्ट आओगे तो जन्मदिन पर PSP दिलाऊंगी । बेटा एक-एक दिन इंतज़ार कर रहा है अपने जन्मदिन का जो मई में है । जाने क्यूँ जीवन की अनिश्चित्तता दिख रही है । चाहती हूँ , उसे जल्दी से जल्दी वो गिफ्ट पहले ही दे दूँ , कहीं कोई वादा अधूरा न रह जाए......... "
जा तुझको सुखी संसार मिले
मइके की कभी न याद आये ,
ससुराल में इतना प्यार मिले .....
मुग्धा हार गयी !
मुग्धा ने हारी हुई जंग लड़ने की कोशिश की थी । अंजाम तो मालूम ही था। आज पहले से भी बुरी स्थिति में है मुग्धा । एक दिन मुंह खोलकर क्या मिला ? भविष्य में मिलने वाला अपमान और हिंसा बदस्तूर जारी रहेगी। यही हश्र होना था उसका । उसने गलत निर्णय लिया था। जहाँ ह्रदय ही न हो वहां ह्रदय परिवर्तन की उम्मीद क्यूँ रखी। चिल्ला-चिल्लाकर यदि न्याय मिलता तो बहुएं नहीं जलाई जातीं। और टुकड़ों में न काटी जातीं।
कहते हैं यदि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ।
यहाँ तो पति ही मुग्धा के खिलाफ है। माँ शब्द से प्यार करता है , स्त्री का सम्मान करना ही नहीं जानता। जब पति ही खिलाफ हो जाए तो पत्नी की हार तयशुदा है।
कहते हैं , स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है ,
ये भी चरितार्थ हो गया मुग्धा के परिवार से । उसकी सास ही पिटवाती थी , और यदि सास न चाहती तो पति कभी नहीं पीटता क्योंकि वो पूरी तरह माँ के नियंत्रण में था। वही सास मुग्धा कों अपने आँचल की छाँव देकर उसे हर बला से बचा सकती थी और एक खुशहाल परिवार बनाने में सहयोग कर सकती थी।
मुग्धा के पास क्या-क्या विकल्प हैं ?
वो पिता के घर जाकर पति और सास पर घरेलु हिंसा का मुकदमा कर सकती है । लेकिन नहीं वो ऐसा करना नहीं चाहती । क्यूंकि वो बच्चों कों उसके पिता से दूर नहीं करना चाहती। और अपने माता पिता के जीवन के बचे हुए दो चार वर्षों कों अदालतों की जिल्लतों से दूर रखना चाहती है। बेटी के दुःख का उन्हें पता ही नहीं है । क्यूंकि मुग्धा तो फोन पर हमेशा उनके दामाद की तारीफ़ ही करती है। क्यूंकि वो जानती है की उसके बूढ़े पिता अपनी बेटी पर हो रहे अत्याचार कों नहीं बर्दाश्त कर पायेंगे और असमय ही चल बसेंगे।
वो तलाक दे सकती है ? लेकिन फिर वही समस्या। अपनी परिवार कों बिखरता हुआ नहीं देखना चाहती । विवाह करने के बाद तलाक के बारे में सोचना उसके संस्कार में ही नहीं है।
तो फिर वो क्या करे ? क्या सास बनने का इंतज़ार करे , क्यूंकि समाज के एक बड़े हिस्से की सहानुभूति सास के साथ है। कोई करे न करे बेटा तो हिफाज़त करेगा ही और फिर वो अपना बदला अपनी बहू से निकाले ?
मुग्धा का निर्णय --
क्यूंकि मुग्धा अपनी सास और पति से प्यार और सम्मान चाहती है । एक खुशहाल परिवार चाहती है , लेकिन ये सब अदालत की मदद से नहीं मिलता । प्यार तो सिर्फ प्यार करने वाले दिलों से ही मिलता है । इसलिए उसने अपनी नियति कों स्वीकार कर लिया है । कम से कम उसका परिवार तो नहीं बिखरेगा। बच्चे , बिना माँ अथवा पिता के तो नहीं रहेंगे। जहाँ दस साल कट गए , वहीँ दस और सही । कभी तो अत्याचार करने वाले के हाथ भी थकेंगे ।
मुग्धा अस्पताल में है । आज उससे मिलने गयी तो पूरे चेहरे पर नीले-काले धब्बे थे । मुझे देख कर मुस्कुराई , फिर आँख में आँसू आने पर उसने पलकें झुका लीं। कुछ बोली नहीं सिर्फ मेरा हाथ पकडे चुपचाप लेटी रही।
धीरे से बोली - "मेरा एक काम करोगी ? " ..मैंने पूछा - क्या ? ..तो बोली -
" बेटे से वादा किया था की फर्स्ट आओगे तो जन्मदिन पर PSP दिलाऊंगी । बेटा एक-एक दिन इंतज़ार कर रहा है अपने जन्मदिन का जो मई में है । जाने क्यूँ जीवन की अनिश्चित्तता दिख रही है । चाहती हूँ , उसे जल्दी से जल्दी वो गिफ्ट पहले ही दे दूँ , कहीं कोई वादा अधूरा न रह जाए......... "
अत्यंत दुखद .....और कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ ....
ReplyDeleteइस तरह से नियति को स्वीकार कर लेना भी हार मान लेना ही है।
ReplyDeletemugdha ... prayah her stree me jiti hai
ReplyDeleteदुखद।
ReplyDeleteउफ़्फ़!
ReplyDeleteदुखद, मार्मिक ..!
आखरी ख्वाहिश तो पूरी होनी चाहिए :(
ReplyDeleteइस बुढिया ने अपने बेटे की शादी ही क्यो कि थी जब वो उसे सुखी नही देख सकती?अब क्या कहे????
ReplyDeleteYadi bure din aaye to achche din bhi jaroor aayenge.Yahi aas Mugdha ko dilasa de sakti hai.Prabhu antaryami hai,aur dino per avasya daya karte hai, aisa mera visvas hai.
ReplyDelete
ReplyDeleteमुग्धा सिरे से गलत है,
वह अन्याय को बढ़ावा दे रही है,
और बच्चों को एक गलत उदाहरण !
अरे हम तो इसे एक परिवारिक झगडा ही समझ रहे थे, लेकिन जब मैने अपनी बीबी को यह लेख पढवाया ओर हम ने विचार किया तो... हम दोनो ही एक पल के लिये सुन्न रह गये, आप को जरुर इस महिला की मदद करनी चाहिये किसी भी तरह, अरे कल इसे कुछ हो गया तो इस के बच्चे को उस मुर्ख ने घर से निकाल दिया तो? या उस सास के दिल मे जब इस बहू के लिये प्यार नही तो क्या वो पागल अपने पोते को पूछेगी? इस ना समझ को समझाओ कि हिम्मत ना हारे ओर वक्त से लडे, जब इतना कुछ हो ही गया हे तो जाये साला पति भाड मे सीधा तलाक ले ले, या आप इस के परिवार मे किसी को जानती हे तो उन्हे सुचित करे, ओर इस महिला को हिम्मत दे, बहादुर बनाये लडे इस हालात से हिम्मत हारने से क्या होगा, इस के बाद वो पागल बुडिया अपने बेटे की शादी फ़िर से कर के किसी ओर की जिन्दगी बरबाद करेगी, इसे अब आप ने ही समभालना हे, ओर हिम्मत देनी हे, जीये बच्चो के लिये जीये साथ ही इस मां बेटे को भी सबक दे.... आप का लेख पढ कर दिमाग काम नही कर रहा, जिसे हम घरेलू झगडा समझ रहे थे वो तो बहुत खतरनाक लग रहा हे.
ReplyDeleteमेरा मानना है जब हालात हाथ से निकल जाएँ तो उनसे लड़ना ही बेहतर है.ज़िन्दगी बहुत बार दूसरा मौक़ा देती है.इस तरह घुट घुट के जीने से क्या फायदा.परिवार तो पहले ही बिखरा हुआ है और बच्चे बीमार परिवेश में सांस ले रहे हैं.सो मुग्धा जी उठिये,संघर्ष का बिगुल बजाईये
ReplyDelete"स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है"...the root of the cause..
ReplyDelete"माँ शब्द से प्यार करता है"...nothing wrong doing this provided injustice is not done to other relations..
Regards,
irfan
what to say....so tragic.
ReplyDeleteक्या कहा जाए . मुग्धा को ऐसी परिस्थिति में निकलने के लिए कोई ठोस निर्णय तो लेना ही पड़ेगा .
ReplyDeleteAap yadi koi bhumika nibha sakte hain to please jarur koshis kijiyega, or han shrif Raj Bhatiya ji ki baaqton se purnth sahmat hun,
ReplyDeleteबहोत ही मार्मिक
ReplyDeletelag raha hai jaise abhi nahi to kal to barish hogi hi................dil ke kahi kone me gher gher ker gayi aapki behad sanvedansheel rachna ...............
ReplyDeletehttp://amrendra-shukla.blogspot.com
बहुत सुन्दर दिव्या जी । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
ReplyDeleteकृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।
सुनकर बहुत दु:ख हुआ।
ReplyDeleteक्या कोई महिला संगठन नहीं है जहाँ जाकर रिपोर्ट दर्ज किया जा सकता है?
संगठन के सदस्या जानते होंगे, ऐसे पति और सास से कैसे निपटना चाहिए।
पर एक बात का डर है।
मुँह खोलकर बात करने पर यदि मुग्धा का यह हाल हुआ है, तो यदि महिला संगठन कुछ नहीं कर सका तो आगे मुग्धा का क्या हाल कर देंगे ये लोग?
तलाक के बारे में यदि सोचती है तो क्या किसी का समर्थन मिलेगा उसे?
स्वावलंबी बनकर जीने की क्षमता है उसमें ?
बच्चों का भार क्या वह अकेली उठा सकेगी?
ईश्वर उसे शक्ति दे, यही कामना है हमारी
जी विश्वनाथ
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteभाकुनी जी ,
मुग्धा मेरी सहेली है , इसलिए अपनी भूमिका उसके जीवन में बखूबी समझती हूँ। उसके पति और सास के विचार तो मैं नहीं बदल सकती , इसलिए उसके घर के हालात बदल सकने में तो कोई भूमिका नहीं हो सकती मेरी । उसके मन कि दुविधा समझती हूँ , इसलिए उसके वृद्ध एवं आर्थिक रूप से अशक्त पिता को भी असलियत बताने कि हिम्मत भी नहीं।
मुझे सिर्फ उसके स्वास्थ्य कि चिंता रहती है। घर के हालात से गुमसुम और खामोश मुग्धा कहीं अवसाद से न ग्रस्त हो जाये , बस यही भय रहता है । जब भी मौका लगता है अक्सर उसे घर से बाहर निकलने को विवश कर थोड़ा बाहर घुमा लाती हूँ।
उसे सबसे ज्यादा चिंता अपने दोनों छोटे-छोटे बच्चों कि रहती है , जिसका वो आजकल ध्यान नहीं रख पा रही , इसलिए तकरीबन दस दिनों से मैंने उसके बच्चों को पढाना शुरू किया है। दोनों बहुत सहमे-सहमे से रहते हैं। शायद थोड़े दिनों में मुझसे घुल-मिल जाएँ ।
.
मुग्धा के पास क्या-क्या विकल्प हैं ? विकल्प समाज को देना है. लोग शर्मनाक कह देते हैं बस. ज़ुल्म के खिलाफ जब समाज आवाज़ उठता है तभी ज़ुल्म मिट सकता है.
ReplyDeleteमुग्धा के करुण क्रंदन का असर उसकी सास और पति पर नहीं हुआ। लगता है, उसकी दुष्टा सास और दुष्ट पति मानसिक रोगी हैं।
ReplyDeleteमुग्धा की यह दशा दुखद है।
नारी संगठनों, स्वयंसेवी संगठनों को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।
मुग्धा के लिए आप ही कुछ कीजिए।
.
ReplyDeleteआप मुग्धा को बेहतर राय दे सकते हैं.
भावुक और त्रासद घटनाओं पर मस्तिष्क सुन्न हो जाता है.
परिवार को टूटते नहीं देख सकता. इसलिये क्या करूँ क्या न करूँ की स्थिति बन जाती है.
इसलिये ऐसे मसले बहुत धैर्य वाले व्यक्ति ही सुलझा सकते हैं.
.
आज ही पूरी कहानी पढ़ पाया और ... आपने कमेन्ट से पता चला की वो आपकी सहेली है ...
ReplyDeleteसच है ऐसे में बहुत मुश्किल होती है ... बस साहस और धैर्य ही काम आता है ... आशा है मुग्धा जल्दी ही इन सब बातों से उभर पाएगी ...
मुग्धा की हालत पर दुखी होना स्वाभाविक है.सच ये भी है की ऐसी एक नहीं अनेक मुग्धायें प्रताड़ना की मार झेल रही हैं. आप या कोई दूसरा कुछ दिनों तक और कुछ हद तक ही मदद कर सकते हैं वो भी ऐसी सभी मुग्धाओं की मदद सम्भव नहीं. मुग्धा को ख़ुद उठ कर हिम्मत से उनके खिलाफ खड़ा होना होगा. हिम्मत से न सिर्फ वो अपने लिए रास्ता निकाल पायेगी बल्कि ऐसी पीड़ित महिलाओं के लिए एक उदाहरण बन कर भी उभर सकती है.
ReplyDeleteआप मुग्धा की मदद के लिए आगे आये . उसकी सास और पति से किसी तीसरे माध्यम के द्वारा संवाद बना कर , बाद में स्वयं भी, उनसे अलग अलग बात कीजिये .शायद अभी तक किसी ने समझाया ना हो संभव है उन्हें सदबुधि मिल जाये आपके प्रयास से .
ReplyDeleteदुखद ! मुग्धा को परिवार को बिखरने की चिंता छोड़ देनी होगी. दोनों हाथों में लड्डू नहीं होते..........देखिए ये जिंदगी जो चाहती है करती है...जब कोई विकल्प ही ना बचे तो फिर मुग्धा को ऐसी परिस्थितियों से निकल जाना ही बेहतर है. ये भी सही है की सामने भविष्य अनिश्चित है लेकिन जरुरी नहीं की वो भी बुरा ही निकले ?
ReplyDelete.
ReplyDeleteभाटिया जी ,
इस मामले में समझ नहीं पा रही किस तरह उसकी मदद करूँ । उसके पति और सास से बात करने की हिम्मत तो मुझमें नहीं है। वो लोग मुझे ही किसी झूठे इल्जाम में फसा देंगे।
किसी संगठन की मदद तब ली जा सकती है जब मुग्धा अपने परिवार से अलग रहने कों तैयार हो जाए। लेकिन वो ऐसा नहीं चाहती । इस मामले में मैं भी कमज़ोर पड़ जाती हूँ। परिवार सदा से ही मेरी भी प्राथमिकता रही है , तो फिर कैसे उसे सलाह दूँ अलग होने की ।
कोशिश करुँगी ज्यादा से ज्यादा उसका साथ दे सकूँ और हिम्मत दे सकूँ ताकि वो खुद कों अकेला न समझे और मानसिक रूप से कमज़ोर न पड़े। मुझे उम्मीद है की मुग्धा कों हिम्मत देकर ही कोई राह निकल सकेगी । लेकिन उसका परिवार न बिखरे यही प्राथमिकता रहेगी। उसके बच्चों का ध्यान रख रही हूँ , फिरहाल तो ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही । उम्मीद है उसके पति भी , समय के साथ ,उसके साथ सहानुभूति का रूख अपनायेंगे।
.
शायद मुद्दा रायशुमारी से आगे बढ़ चुका है.
ReplyDeleteuff ye trasadi hi hai, ki apne khushaal bharat me abhi bhi bahut saari mugdha hain...
ReplyDeleteaur unhe aise dardnaak yaatna se gujarna parta hai..:(
Diyyajee,
ReplyDeleteThe font size in the comments is too small.
People like me find it difficult to read.
I have now adopted the following technique.
Press CTRL-Shift-Plus on the laptop.
Wait for a few seconds.
The font size will increase.
Repeat till the font size is big enough to read.
Conversely, press Ctrl-shift- Minus to reduce the font size
By plus and minus, I don't mean words "Plus" or "Minus" but the symbols + or -
This tip works in Windows XP and Windows Vista.
Hope this tip will be useful to some of your readers who also may be finding it difficult to read the comments.
Regards
GV
दुखद और कठिन परिस्थिति है. अनिर्णय से कभी-कभार ही लाभ होता है.
ReplyDeleteमुग्धा की हालत पर दुखी होना स्वाभाविक है...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत दुखद और शर्मनाक स्तिथि..
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक घटना बस साहस और धैर्य ही काम आता है .।
ReplyDeletesundar prastuti dr. divya ji
ReplyDeleteदुखद घटना। कभी कभी जब हालात काबु से बाहर हो जाते है तो उसे वक्त पर छोड़ देना चाहिए। बीते वक्त के साथ उसका कोई न कोई हल निकल ही आता है।
ReplyDeleteगंभीर चिंतन का विषय है |हमारा समाज एक साथ कई युगों में जीता है|समाज में बदलाव पूरी तरह से होना चाहिए |डॉ दिव्या जी बहुत बहुत बधाई |
ReplyDelete.
ReplyDeleteVishwanath ji ,
Indeed its a wonderful suggestion and truly helpful for the readers.
thanks and regards ,
.
अब तो इन्हे अलग होकर इस अन्याय के खिलाफ कानूनू कार्यवाही करनी ही चाहिये । दस साल बाद के सुख की आस में आज अन्याय सहते चले जाना भी कोई अक्लमंदी तो नहीं । और यदि मां बेटे के इन जुल्मों से मुग्धा की हत्या ही हो जावे तो ? गाय किसी का बुरा नहीं करती और सबको दूध भी देती है फिर भी कुदरत ने आखिर उसे सिंग क्यों दिये हैं ?
ReplyDeleteभारतीय माइथोलोजी की कई कहानियों में मां पार्वती , मां काली या अन्य किसी देवी के कई ऐसे रूप भी होंगे जिसमें उन्होंने अपने पति और ससुराल के विरूद्ध किसी न किसी कारण अपनी आवाज़ बुलन्द करके समाज को सन्देश देने का काम किया हो, शायद इस समस्या का कोई हल, कोई रास्ता हमार्रे धार्मिक ग्रन्थों में तर्क सम्मत दिया हो आइये मिल कर ढूंढने का प्रयास करें।
ReplyDeleteAccording to me, julm krne bala gunahgar hota h to utna hi sahne bala. Agar mugdha ji ko ye lagta h ki unke bete bin pita k kaise palenge to unhe ye b lagna chahiye ki unhe kuch ho gya to bin ma k us mahol me kaise palenge. Ma ki kami pita kabi puri nhi kr sakta, aur ap NRI h, shayad ye kahani vha ki h....yadi h to vha k laws is mamle me india k compare me zarur strng honge. Mugdhaji ko kanoon ki madad leni hi chahiye aur apko unki madad krni hi chahiye. Awaaz uthane ki zarurat h, dard se cheekhne ki nhi.
ReplyDeleteदिव्या जी ,
ReplyDeleteबहुत दुखद है यह स्थिति ..शर्मनाक है कि प्रगतिशील कहलाते भारत में आज भी स्त्रियों की यह हालत है.. इसका कारण क्या सदियों का अनुकूलन नहीं ...जिसने इस समाज को इस तरह का बना छोड़ा है कि अपने परिवार से अलग होने का सोच ही एक स्त्री को इस मुकाम पर ला खड़ा करने को मजबूर कर देती है..तथाकथित परिवार ,सम्मान ,माता पिता की असमर्थता, येही सोचें कमजोर कर देती हैं नारी को ..मुग्धा जी के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसमें बहुत बड़ा हाथ इन सोचों का है..जिसका फायदा उसके पति जैसे कायर पुरुष और उसकी सास जैसी हृदयहीन नारियाँ उठा लेती हैं...यह अन्याय तब तक चलता रहेगा जब तक नारी स्वयं के अस्तित्व को नहीं जानेगी.. परिवार तभी बनता है जब एक नारी हो... नारी से परिवार होता है ..परिवार से नारी नहीं... एक क्रांति चाहिए इस बदलाव के लिए समाज में..जिस तरह से देश को स्वतंत्र करने के लिए शहीद हुए थे भगत सिंह सुखदेव आदि उसी तरह नारी मानस को इस अनुकूलन से मुक्ति दिलाने के लिए भी शहादतें चाहिए... कोई कुछ नहीं करता ..नारी मुक्ति संगठन , नारी सहायता संगठन ..सभी की अपनी सीमाएं हैं... इस अन्याय के खिलाफ नारी को ही सशक्त होना होगा...आसान नहीं यह जानती हूँ..किन्तु सहन करना भी कोई विकल्प नहीं ....आप मानसिक और भावनात्मक सहारा दे पाने में सक्षम हैं मुग्धा जी को... किन्तु सामजिक तौर पर उनके विद्रोह में स्वर मिलाने में आप भी कमजोर पाती हैं क्या खुद को...बहुत सी अडचनें होती हैं..कानून , पोलिस , आर्थिक पहलू... किन्तु इन सब का हल निकल सकता है यदि मन में दृढ विश्वास हो.... आंसू बहा कर , सहानुभूति दिखा कर इस तरह की समस्याओं का कभी हल नहीं निकाला जा सकता .. इसके लिए साहस चाहिए जो भीतर से आता है...
अत्याचार और अन्याय सहने की हद पर भी परिवार को बचाए रखना ...और वो भी एक आत्मनिर्भर महिला का ...मुझे उचित नहीं लगता ...सामंजस्य होना चाहिए मगर उसकी भी सीमा होनी चाहिए ...इस तरह वे अपने बच्चों के साथ अन्याय ही कर रही है1
ReplyDeleteदुखद और गंभीर चिंतन का विषय। आपने दुनिया की सच्चाई से रूबरू करा दिया।
ReplyDelete.
ReplyDeleteमुदिता जी ,
आपकी टिपण्णी से अक्षरतः सहमत हूँ। आपने स्त्री के कमज़ोर पहलू कों बखूबी समझा । समाज का ढांचा ही कुछ ऐसा है। एक स्त्री के लिए पति का घर ही सब कुछ है , इसी संस्कार के साथ उसे बड़ा किया जाता है । विवाह के बाद लड़की के माता पिता इसी उम्मीद के सहारे जीते हैं की उनकी बेटी ससुराल में खुशहाल है। लेकिन ५० प्रतिशत लड़कियां जो घरेलु हिंसा का शिकार हैं वो अपने माता-पिता कों दुखी नहीं देखना चाहतीं और उन्हें सच नहीं बताती । पूरी जिंदगी यही सिलसिला चलता रहता है । उनकी चुप्पी कों ही उनकी खुशहाली समझ लड़की के माता पिता भी उम्र का आखिरी पड़ाव शान्ति से गुज़ार लेते हैं।
एक स्त्री पर -- माँ होने का , पत्नी होने का , बहु होने का, और बेटी होने का भी दायित्व होता है ।
ससुराल के साथ साथ वो ताउम्र अपने मइके की भी खुशहाली के बारे सोचती है। यदि वो पति से दूर रहकर सुसुराल वालों के खिलाफ लड़ेगी तो बूढ़े और निर्दोष माता-पिता कों अनायास ही दुःख देगी । अनेक दुविधाओं से घिरी होती है एक संस्कारी स्त्री। उसकी अंतिम कोशिश यही रहती है , की बिना किसी की बदनामी हुए घर में शांति बहाली हो जाये । एक द्विधारी तलवार पर टिकी है जिंदगी मुग्धा की ।
इश्वर ने बनाया ही स्त्री मन बहुत कोमल है । वो खुद पर तो अत्याचार सह सकती है , लेकिन अपने कारण दूसरों कों दुखी नहीं देखना चाहती ।
मैं मुग्धा प्रकरण में खुद कों बहुत अशक्त पाती हूँ क्यूंकि भावुक हूँ। मुद्दा की जगह स्वयं कों रखती हूँ तो उसी की तरह सोचने लगती हूँ । परिवार मेरे लिए बहुत अहमियत रखते हैं ।
दुनिया की कोई भी जंग दिल से नहीं लड़ी जाती । " मोह" में पड़कर हमेशा हार ही होती है।
मैं मुग्धा की यथा संभव मदद ज़रूर करुँगी । लेकिन मेरी भावुकता शायद उसकी ताकत न बन सके ।
पाठकों के विचार उसे पढ़ाऊँगी , शायद वो कोई बेहतर निर्णय ले सके । यदि वो हिम्मत से काम लेगी , तो मैं कदम दर कदम उसके साथ रहूंगी।
मैं बहुत आशावादी हूँ , इसलिए मुग्धा के बेहतर भविष्य की पूरी उम्मीद है।
आपकी टिपण्णी से बहुत ऊर्जा मिली है ! आपका एक बार पुनः आभार।
.
बहुत ही मार्मिक
ReplyDeleteinsan kitna lachar hai.....
ReplyDeleteaap pas me hain.....apki koshish hi kuch phalit ho.....
pranam.
उसे स्वयं साहस करना होगा...आपकी इस बात से सहमत हूं कि -‘यदि वो हिम्मत से काम लेगी , तो मैं कदम दर कदम उसके साथ रहूंगी।’
ReplyDeleteआदरणीय दिव्याजी ,
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक लेख है | आप जिस तरह से ज्वलंत विषय पर लिखकर
उसका यथार्थ परक विश्लेषण करती हैं ,बहुत ही साहसिक एवं प्रशंसनीय
है | मुग्धा की जिन्दगी जिस भंवर में फंसी है ,उसके लिए जिम्मेदार आज का
समाज ही है | आज नहीं तो कल इसका समाधान होना तय है | आपके इस
आन्दोलन में हर कलमकार को भागीदार बनकर अपनी असल भूमिका का
निर्वहन करना होगा |
Divya ji..mujhe lagta hai.ki Mugdha ko himmat se kaam lena chahiye....Apne haalaat se ladna chahiye Apne BETE Ke liye....Halaki main ye bhi maanta hun ki raai(Advice) dena alag baat hai ......aur Haqeeqat alag cheez hai. Fir bhi Apne BETE(son) ki khatir use Ladna hi hoga......Divya ji ...Use himmat se ladna hi hoga...uske BETE ko uski Maa( Mother) Chahiye.
ReplyDeleteMugdha ji Apne Aap ko Kamjor mat Samjho..... Naari ki Taaqat ko pahchno......Utho( Rise) Lado(Fight) and Jeeto (win). Tumhaare BETE ko Uski Maa chahiye....har haal men, har keemat par.
दुखद...
ReplyDeleteईश्वर ऐसा कभी किसी के साथ न करें...
बहुत ही अफ़सोस की बात है ....मगर फिर भी उम्मीद जिन्दा है मुग्धा की जो काबिलेतारीफ है और शायद उसे बेटे की उम्मीदों में अपना जीवन साकार नज़र आया है..........
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक घटना....
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक घटना बस साहस और धैर्य ही काम आता है|
ReplyDeleteआँखे नम हो गयी एक माँ की यह स्थिति पढ़कर...
ReplyDeleteहम आपके साथ है आदेश दे की हम उनके जीवन में खुशिया भर पाए इसके लिए क्या कर सकते है ?
मुझे लगता है,दीन बन कर सहने का बजाय अत्याचार का विरोध होना चाहिये -मुग्धा की ओर से दृढ़ता से .उसे कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा ?
ReplyDeleteThanks to everyone for your valuable opinion, suggestions and concern for Mugdha.
ReplyDeletemain bhi saath hoon....
ReplyDeletesabse pahle mugdha didi ke liye prarthana ..
aur wo akele nahi hain raah me..
aur kranti ki jaroorat hai jahan sabhi ek saman rahe ....sammman ho ...ek peaceful world ...jahan sabhi ke vicharon ko mahatta mile aur badi ko door karne ke liye sabhi ekjoot hon...
Emotional hokar kuch nahi hoga
dhridhta se kaam karna chahiye..
.
ReplyDeleteअभिषेक जी ,
आपके विचार बहुत अच्छे लगे। मुग्धा के जीवन में अब थोडा स्थायित्व है । शायद उसकी अपेक्षाएं कुछ कम हो गयीं अब । घरवाले तो उसके वैसे ही हैं , ज़रा भी नहीं बदले। हाँ , मुग्धा ने ज़रूर खुद को पहले से ज्यादा मज़बूत बना लिया है।
.
forest helps to cut the forests.
ReplyDeleteJUNGLE NAHIN HOTA TO JUNGLE NAHIN KATATA.
MUGDHA ko aapane likhakar samman diya
NARI ko samman ke pranam swikar karen