प्रश्न - क्या मच्छर के काटने से एड्स हो सकता है ?
जवाब - नहीं , मच्छर के काटने से एड्स नहीं होता।
जवाब - नहीं , मच्छर के काटने से एड्स नहीं होता।
- एड्स केवल Blood, Semen, Vaginal fluid के transfer से ही होता है।
- saliva में एड्स के विषाणु नहीं होते।
- मच्छर जब काटता है तो अपना saliva (लार) , Blood में छोड़ता है ताकि रक्त की तरलता बनी रहे और मच्छर आसानी से रक्त चूस सके ।
- जब तक संक्रमित रक्त मच्छर की लार में नहीं पहुंचेगा , तब तक मच्छर के काटने से एड्स होने की कोई संभावना नहीं है।
- बहुत सी बीमारियों में कुछ insects अथवा जानवर carrier की भूमिका निभाते हैं ( जैसे मच्छर , फीता कृमि , गोल कृमी आदि ) , लेकिन HIV virus की 'Life-cycle' , मच्छर में पूरी नहीं होती । HIV virus केवल मनुष्य से ही मनुष्य में पहुँचता है।
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ReplyDelete@--दर्शन लाल बवेजा said...
मादा मच्छर के काटने से मलेरिया हो जाता है एड्स क्यों नहीं फैलता, जबकि रक्त आदान प्रदान होता है सुई यानी इंजेक्शन से हो जाता है
April 24, 2011 11:54 AM
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पिछली पोस्ट पर दर्शन लाल जी के मन में आया प्रश्न शायद बहुत से लोगों के मन में होगा इसलिए उसका उत्तर यहाँ दे रही हूँ ताकि शंका का समाधान हो सके।
आभार।
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chikangunia, dengu, maleria itane hi dar kya kam hain...dhanyvaad aapne aids se bacha diya...jigyasa ka sahi samadhaan...
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteडा० साहिबा जी आप ऐसी-ऐसी जानकारी देती है कि जितनी तारीफ़ की जाये कम है।
शुक्र है मच्छर इसके जिम्मेदार नहीं है नहीं तो दुनिया में अब केवल अब वही होते . दूसरा कोई नहीं .
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !
ReplyDeleteChalo ji ab kam se kam machhro se darna nahi padega.
ReplyDeletevaise hi machchhar kam kukhyat nahi...
ReplyDelete:)
ReplyDeleteHIV ग्रसित द्वारा उपयोग किया गया ब्लेड़ या नेलकटर का रक्त सम्पर्क हुआ हो और किसी स्वस्थ व्यक्ति के खुले घाव के सम्पर्क में आए तो HIV संक्रमण की सम्भावनाएं बनती है?
ReplyDeleteHIV रक्त में HIV virus खुले वातावरण में आते ही निस्क्रिय हो जाते है?
मेरा भ्रम भी दूर हुआ।
ReplyDeleteइस संक्षिप्त आलेख से उपयोगी जानकारी मिली...
ReplyDeleteDearest ZEAL:
ReplyDeleteNice information in your short post in response to a reader’s query.
A few decades back, it was the word ‘Cancer’ and more presently, it is “AIDS” which immediately brings a mortal scare to anyone.
Life is most precious and when it is obnoxiously threatened it makes one and all worry and rightly so.
While lot many governmental advertisements do try to dispel the wrong notions about the transmutability of these life threatening diseases by touch, but it is usually seen that the person diagnosed with them is almost instantly ostracized.
Semper Fidelis
Arth Desai
बहुत ही बेहतरीन, जागरूकता फैलाने वाली जानकारी... आभार!
ReplyDelete.
ReplyDeleteसुज्ञ जी ,
ये तीन प्रकार के fluid जिनका जिक्र है ऊपर , इन्हीं के द्वारा , fluid medium से ही ट्रान्सफर हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किये गए ब्लेड द्वारा भी संक्रमण संभव है यदि वह दुसरे व्यक्ति के रक्त में प्रवेश कर जाए तो । वातावरण में आने पर निष्क्रिय इसलिए हो जाता है क्यूंकि यह विषाणु जीवित कोशिका में ही survive करता है । लेकिन ये विषाणु कभी नष्ट नहीं होते , एक लम्बे अरसे तक dormant अवस्था में जीवित रहते हैं और , जैसे ही इनका प्रवेश किसी जीवित कोशिका में होता है , ये पुनः replicate होने लगते हैं और अपना आतंक मचाते हैं।
संक्रमित रक्त यदि शरीर पर बाहर से लग गया अथवा छू गया है तो धोकर साफ़ किया जा सकता है , लेकिन यदि एक बार यह रक्त में प्रवेश कर जाए तो इसका कोई इलाज नहीं ।
एड्स का इलाज केवल prevention है
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dr. sahiba bahut acchi jaankari di aapne
ReplyDeletedhanaywad
waise manushyo ke khoon alawa inka koi or bhojan nahi hein kya
waise khoon ke alawa inka koi or bhojan nahi hein kya
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है आपने.एड्स का रोग कब से संज्ञान में आया.
ReplyDeleteक्या पहले एड्स की बीमारी नहीं होती थी.कहतें है कुछ गोरिल्ला जाति से यह रोग फैला.एड्स के बारें में और विस्तृत जानकारी दें तो और अच्छा रहेगा,
जानकारीपूर्ण लेख के लिए आभार.
वाक़ई,बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट है.आभार.
ReplyDeleteकाम की जानकारी
ReplyDeleteआपने तो बड़ी अच्छी जानकारी दी...आभार.
ReplyDelete________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
आवश्यक पोस्ट और जानकारी देने के लिए आभार !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !
ReplyDeleteएड्स की जानकारी हमें सबसे पहले किसने दी और कब मिली?
ReplyDeleteक्या यह किसी पुराने रोग का ही नया नाम तो नहीं? या फिर यह कुछ नये लक्षणों के साथ प्रकट हुआ है?
क्या ये वास्तव में अस्तित्व में है भी?....... मैंने आज़ तक कोई एड्स रोगी नहीं देखा. केवल सुना ही है.
अब कम से कम लोग यह नहीं कर पाएंगे कि एड्स मच्छर के काटने से हुआ है... अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteक्या आयर्वेद में एड्स की जानकारी है यदि है तो किस नाम से?
ReplyDeleteआवश्यक पोस्ट और जानकारी देने के लिए आभार !
ReplyDeletejai baba banaras...................
informative post ......best wishes !
ReplyDeleteधन्यवाद्.
ReplyDeleteचखिए तीखा-तड़का
ReplyDeleteसीएम ऑफिस से शर्मा को फोन
ReplyDeleteचलो अछा है,
मच्छर इस बेहूदे रोग से अछूता रहता है, जान कर बड़ी राहत मिली ।
आभार आपका !
आद.डॉ.दिव्या श्रीवास्तवजी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने
जानकारी के लिए...आभार
ReplyDeleteBAHUT HI GYANVARDHAK JAANKARI DI AAPNE ....DIVYA JI
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट है.आभार.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteतो फिर, निश्चिंत हुआ जा सकता है :)
ReplyDeleteभ्रम निवारण जानकारी |
ReplyDeleteखुश रहें !
विचारोत्तेजक लेख......!!!!अच्छी जानकारी है।
ReplyDelete.
ReplyDeleteप्रतुल जी ,
एड्स का पूरा नाम है -- Acquired immuno deficiency syndrome -- इस रोग में व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। तथा किसी भी अन्य बिमारी चाहे वो मलेरिया ही क्यूँ न हो , आदि के attack होने पर मरीज रोगों से लड़ने में असक्षम होता है। यह रोगों का समूह है।
आपकी 'भंडा-फोड़' वाली पोस्ट पढ़ी । आप एड्स के होने में विश्वास नहीं रखते । आपसे एक प्रश्न है ---क्या आप किसी HIV positive घोषित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की गयी needle , इस्तेमाल करने की हिम्मत करेंगे ?
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जो लोग प्रश्न पूछते हैं , वे यदि उत्तर मिलने के बाद acknowledge भी करें तो बेहतर लगेगा।
ReplyDeleteहाँ जरूर, इस परीक्षण के लिये मैं जरूर तैयार रहूँगा. यदि मुझे कुछ न हुआ तो आप इस मिथ्या प्रचार को क्या त्याग देंगे? कहाँ मिलेगा ऐसा रोगी? कब करना है यह परीक्षण?
ReplyDeleteवैसे भी मेरे प्रश्न सुलझने के लिये थे न कि उलझने के लिये.
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ReplyDelete@ प्रतुल वशिष्ट ,
पहली बात तो ये आप ये आरोप न लगायें की मैं कुछ मिथ्या प्रचार कर रही हूँ। किसी भी प्रकार का मिथ्या प्रचार करना मेरी आदत नहीं है । जो व्यक्ति समाज में सुधार लाना चाहता है और लोगों को जागरूक करना चाहता है , वो मिथ्या प्रचार करने जैसे घृणित कार्यों में लिप्त नहीं होता।
दर्शन लाल जी ने और सुज्ञ जी ने अपने मन की शंका पूछी , जिसका मैंने यथा शक्ति जवाब दिया । मेरा ज्ञान निश्चय ही सीमित है , जिसको इस विषय में अधिक जानकारी हो वो पाठकों के लाभ के लिए निसंदेह यहाँ अपना ज्ञान बाँट सकता है । मेरा भी लाभ होगा।
आपको लगता है की एड्स जैसा कुछ नहीं होता , तो आप मेरे दुष्प्रचार को रोकने के लिए एक सु-प्रचार करती हुई पोस्ट अवश्य लगायें की --
* संक्रमित नीडिल का इस्तेमाल करने में कोई हर्ज नहीं है।
* असुरक्षित यौन संबंधों से कोई नुकसान नहीं है।
* रक्त को बिना HIV की जांच किये दुसरे मरीजों को चढ़ा देना चाहिए।
आदि आदि --आभार।
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आदरणीय दिव्या जी,
ReplyDeleteमेरा प्रश्न केवल प्रतिक्रियावश किया गया. आपसे पूछना चाहा था कि एड्स नाम का रोग क्या वास्तव में नया है? या फिर ये किसी पुराने रोग का ही नाम है? आपने अचानक मुझे ही घेरे में ले लिया. क्या प्रश्नों के उत्तर आक्रामकता लिये होने चाहिए. मैंने भी आपके ज्ञान को मिथ्या प्रचार कह कर ठीक नहीं किया. वैसे मुझे वास्तविकता का बोध नहीं है. इसलिये आपसे पूछा था. मैंने तो किसी सज्जन का लेख प्रकाशित किया है और उसके संबंध में वास्तविकता जाननी चाही है. जो कि वहाँ शुरू में ही स्पष्ट है. यदि यह वास्तव में संक्रमित रोग है तो एड्स विरोधी अभियान के दावों को आप नकार सकती हैं. मैं तो चिकित्साशास्त्रियों के मज़बूत पाले में ही अपना मत दूँगा.
आपसे द्वेष नहीं आप अपने पक्ष को अच्छे से व्याख्यायित कर पाते हैं इसलिये आपसे प्रश्न कर लेता हूँ. यदि समर्थन अथवा विरोध के एक-दो शब्द भर कह दूँ तो वह आपकी पोस्ट से न्याय न होगा.
मेरे आचार्य 'स्वामी देवव्रत सरस्वती' ने एड्स के सन्दर्भ में कहा था :
ReplyDelete..वस्तुतः आयुर्वेद में जिसे 'ओजःक्षय' कहा है जिसके लक्षण वर्तमान में एड्स से मिलते हैं।... सुरक्षित वीर्य का अंतिम रूपांतरण ओज के रूप में होता है जिसका परिमाण अंजलीभर बतलाया गया है।... अनियंत्रित योनाचार, असंयम, अव्यवस्थित दिनचर्या, खान-पान, चिंता आदि के कारण ओज का क्षय हो जाता है।..
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ReplyDeleteप्रतुल जी ,
इस विषय पर विज्ञान इतना कुछ जान चुका है और ढूंढ चुका है उसे मैं एक लेख अथवा टिप्पणी में लिख ही नहीं सकती , प्रमाण उपलब्ध है , दिनों दिन HIV संक्रमित रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है , मुंबई में एक HIV संक्रमित महिला प्रतिशोध वश तकरीबन ३०० लोगों को ये संक्रमण दे चुकी है जो अब पुलिस की हिरासत में है । देश विदेश में HIV संक्रमण से ग्रसित लोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है और इसका कोई इलाज भी नहीं है अभी तक और आप 'देवव्रत' जी के अभियान में शामिल हैं इस प्रचार में की एड्स जैसा कुछ नहीं है ?
आश्चर्य है , की आप बिना इस रोग के बारे में पूरी जानकारी रक्खे कैसे इस विषय को नकार सकते हैं। और क्यूँ ? लोगों को जागरूक रहने की अपील की जाती है और आप लोगों को निश्चिन्त रहने के लिए कह रहे हैं। आपका उद्देश्य समझ नहीं आया आपके वक्तव्य के पीछे।
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ReplyDelete@--वस्तुतः आयुर्वेद में जिसे 'ओजःक्षय' कहा है जिसके लक्षण वर्तमान में एड्स से मिलते हैं।..
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आयुर्वेद में क्या उल्लिखित है नहीं जानती लेकिन एड्स का पूरा नाम है -- Acquired immuno deficiency syndrome -- इस रोग में व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। तथा किसी भी अन्य बिमारी चाहे वो मलेरिया ही क्यूँ न हो , आदि के attack होने पर मरीज रोगों से लड़ने में असक्षम होता है। यह रोगों का समूह (syndrome)है।
immunity = प्रतिरोधक क्षमता =(ओज क्षय)
deficiency= कमी होना (क्षय होना)
इसमें Virus का संक्रमण है , यह तो ELISA आदि टेस्ट द्वारा सत्यापित है फिर आपका भ्रम क्या है समझ नहीं आया और दुष्प्रचार क्या हो रहा है यह भी ज्ञात नहीं हो सका अब ही तक । कृपया स्पष्ट करें ।
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ReplyDelete@--आपने अचानक मुझे ही घेरे में ले लिया. क्या प्रश्नों के उत्तर आक्रामकता लिये होने चाहिए....
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यदि प्रश्नों के उत्तर देने को आप आक्रामकता कहते हैं , और डरते हैं तो प्रश्न ही नहीं करना चाहिए। एक तो मैं गंभीरता से लोगों के प्रश्न का उत्तर देती हूँ , फिर आक्रामक होने का भी आरोप भी सहती हूँ। दुखद है ।
प्रतुल जी , मैं ऐसी ही हूँ। कभी भी अच्छा बनने की कोशिश नहीं की , न ही कभी बन सकूँगी , क्यूंकि अच्छे लोगों की कदर करने वाले हैं ही नहीं इस दुनिया में।
मैं आक्रामक ही ठीक हूँ, शायद इसी तरह खुद की रक्षा करती हूँ इस cruel दुनिया से। इसे मेरा defense mechanism समझिये। किसी से उम्मीद नहीं रखती की कोई समाज के लिए मेरे निस्वार्थ, शुभ एवं पवित्र मंतव्य को कभी समझ भी सकेगा।
जिनके प्रश्नों के उत्तर दिए , उनमें से किसी ने भी acknowledge करना जरूरी नहीं समझा । मुझे पता ही नहीं चलता की मेरे उत्तर उन तक पहुंचे अथवा नहीं।
पिछली कई पोस्टों पर ( चिकित्सा से जुडी) पर लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दिया है , लेकिन लोग शिष्टाचार वश भी आकर यह नहीं कहते की " उत्तर पढ़ लिया" ।
दर्शन जी के प्रश्न पर यह छोटी सी जानकारी दी थी , लेकिन दर्शन जी के भी दर्शन नहीं हुए। मुझे नहीं लगता की मैंने इस पोस्ट पर कोई दुषप्रचार किया है।
यदि मेरे मंतव्यों पर किसी को शक है तो मैं 'सीताजी' की तरह 'अग्नि-परीक्षा' नहीं दे सकती , न ही उसकी ज़रुरत समझती हूँ।
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ReplyDelete@--मैंने भी आपके ज्ञान को मिथ्या प्रचार कह कर ठीक नहीं किया। वैसे मुझे वास्तविकता का बोध नहीं है. ...
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आपने इतना स्वीकार कर लिया , इतना काफी है।
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किसी जन हितैषी प्रचार का कार्य किसके द्वारा शुरू किया जा रहा है... अब इसपर ध्यान देने लगा हूँ.
ReplyDeleteपहले नहीं देता था.... जबसे सक्षम और ताकतवर सरकारों के कार्य (छिछली राजनीति) समझ में आने लगे हैं या कहूँ कि चिपलूनकर जैसे जागरूक पत्रकार अपने लेखों से सजग कर रहे हैं... मेरा विश्वास विश्व स्वास्थ्य संगठन तक से उठ गया है. जो लेख मैंने अपने ब्लॉग 'भारत भारती वैभवं' में दिया है वह किस सज्जन का है मुझे अब ज्ञात नहीं, लेकिन मेरे आचार्य का केवल एक कथन ही उसमें है अतः यह एड्स विरोधी अभियान उनका नहीं है.
कुछ संशय उठना स्वाभाविक हैं :
— क्या एड्स का प्रचार करके व उसके प्रति जागरुकता फैलाकर वे 'सुरक्षित यौन संबंधों' को बढ़ावा नहीं दे रहे अर्थात ब्रह्मचर्य, संयम आदि के प्रति उदासीनता लाकर अपना 'कंडोम उपाय' विकल्प के रूप में रख रहे हैं.
— मनुष्य का स्वभाव बामुश्किल बदल पाता है..... इसलिये 'काम का लती' वे सब उपचार करेगा जो एड्स के प्रचारक बताते हैं लेकिन उन उपचारों को नहीं अपनाएगा जो 'आयुर्वेद' बताता है.
— यदि रोगी से ये कह दिया जाये कि "आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता' आपके खान-पान और संयमित जीवन को अपनाकर सुधर सकती है... HIV वायरस नया नहीं है यह तो दुष्कर्मों से हुआ दूषित रक्त ही है.
जो जैसे कर्म करता है उसका रक्त भी वैसा ही हो जाता है. यह 'अदृश्य संस्कारों' की ही तरह संतानों में या अत्यंत सानिध्य में आये लोगों में स्थानांतरित हो जाता है" .... तब क्या ठीक न होगा. लेकिन नहीं एड्स अभियान कुछ और प्रचार कर रहा है.... जैसे कि यह 'छूने से नहीं फैलता', 'सुरक्षित यौन संबंध करिये' आदि ...
........ मुझे तो पल्स पोलियो जैसे अभियानों पर भी संदेह होता है.... क्या ऐसे अभियान दूसरे देश की सरकारें भी आयोजित करती हैं. क्या विकसित देशों में ऐसे अभियान हो रहे हैं?... यदि नहीं हो रहे तो क्यों नहीं हो रहे? मेरे संदेह करने का कारण 'एक चिंता विशेष' है कि कहीं भारतीयों के रक्त में कुछ ऐसा रसायन न मिलाया जा रहा हो जो उनकी बौद्धिक क्षमता को घटा दे, वैदिक धर्म और संस्कृति के प्रति आस्था को शून्य कर दे.
"है एड्स किवा टीके का है विज्ञापन,
चित्रों से ही समझा देता है शासन.
अब यत्र-तत्र-सर्वत्र ज्ञान की गंगा
बहती है, डुबकी लेता भूखा नंगा."
जितना धन इन जैसे अभियानों में खर्च किया जाता है उसका आधा भी गरीबी और बेरोजगारी के लिये व्यय हो तो वह सच्चा परोपकार माना जाएगा.
ReplyDeleteलेकिन नहीं इन अभियानों से विलासिता की संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है. 'अनैतिक शारीरिक संबंध' बनाना सामान्य घटना करार दिया जा रहा है तो
बालाओं के दैहिक शोषण और स्त्री को भोगवादी कल्चर की सिम्बोलिक बनने से कैसे रोका जाएगा?
मुझे लगता है कि 'या तो उनके प्रचार का तरीका ठीक नहीं, या फिर मंशा ठीक नहीं.'
ReplyDeleteदिव्या जी, शायद विरोध के पीछे छिपे मेरे मंतव्य को आप पहचान पाये हों?
ReplyDelete.
ReplyDeletePratul ji ,
Below is the link for you . Nothing left to say , I give up.
http://en.wikipedia.org/wiki/AIDS
Thanks.
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This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteज-गण राममूर्ती जी,
ReplyDeleteबात तो आप सही कहते हैं. मुझे हर चीज़ पुरानी ही लगती है,
केवल एक बात को छोड़कर. 'जनहितैषी कार्यों में दुकानदारी' वाली बात मुझे नयी प्रतीत होती है.
मैं हर बात को अपने सांचे में ढालकर समझता हूँ. शायद यही मेरी गलती है.
लेकिन मुझे समझ ही इस तरीके से आता है हर विषय...
कई विषय मेरी रुचि के नहीं होते फिर भी केवल उनमें इसलिये रुचि लेता हूँ क्योंकि वे जनहितैषी कार्यों से जुड़े होते हैं. तब मैं अपने सनातन सांस्कृतिक साँचे को निकाल लेता हूँ.
अभी फिलहाल विकिपीडिया से AIDS के बारे में दी जानकारी का लाभ लेने का सोचा है.
बहुत ही अच्छी एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ... आभार आपका ।
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ReplyDelete