थम गए जिनके हाथ देते-देते , वो साथ क्या चलेंगे
ज़ख़्मी हो गया जिनका अहम् , वो मान क्या देंगे ..
हो जाओ तुम भी शामिल उस कतार में ,
जिनके लिए मेरा प्यार बरसता है ,
इस लेखनी के अंदाज़ से अंगार बरसता है ,
पास मेरे आओगे तो जल जाना तुम्हारा तय है
छुप जाओ , उस भीड़ में , जिनके लिए
मेरा प्यार , बा-अदब , बेज़ार बरसता है।
तुम तो फूलों से भी ज्यादा नाज़ुक हो ,
प्यार क्या करोगेहम तो कायल हैं उन झोकों के , जो 'लोहे' को सहला कर गुज़र जाते हैं ।
तुम तो फूलों से भी ज्यादा नाज़ुक हो , प्यार क्या करोगे
ReplyDeleteहम तो कायल हैं उन झोकों के , जो 'लोहे' को सहला कर गुज़र जाते हैं । itni sunder pangtiyan likhne par badhayee....
वाह, क्या जानदार सच्ची बात कही है आपने
ReplyDeleteआपको इस कार्य के लिये धन्यवाद,
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ReplyDeleteकही कुछ बुझा बुझा सा प्रतीत होता है इन संवेदनशील पंक्तिओं में , कही गहरे से निकली प्रतीत हो रही है , दिव्या जी आपके व्यक्तित्वा से मेल नहीं खाती , जो हमेशा जीवंत और सकारात्मक हो वो नकारात्मकता की बात कहे, खता गया कही कुछ , फिर भी पंक्तियाँ अर्थयुक्त थी बधाई
ReplyDelete.मोहतरम,
ReplyDeleteमैं दोहराऊँगा कि
ग़र वह झोंके हैं तो क्योंकर कैद ही उनको कीजिये
गो कि फ़ितरत है परिन्दे चमन में, चँद रोज के मेहमान जानिये
वह अपनी अपनी मुकर्रर बोलियाँ यहाँ पर बोल कर उड़ जायेंगे
जो ज़ख़्मी कर अपनी चोंचों का दर्द वह कब तक सहें, ये सोचिये
या लफ़्ज़ों में बाँधने की मासूम कोशिश, उन्हें मायूसी क्यों न दे
लोहा हो या सोने का हो पिंजड़ा, यह खुद तोड़ कर उड़ जायेंगे
हो जाओ तुम भी शामिल उस कतार में ,
ReplyDeleteजिनके लिए मेरा प्यार बरसता है ,
इस लेखनी के अंदाज़ से अंगार बरसता है ,
पास मेरे आओगे तो जल जाना तुम्हारा तय है
क्या बात है, आज का अंदाज़ निराला है ।