मौसमों की मार किस पर नहीं पड़ती है
सर्दी में सर्दी और गर्मी में लू किसे नहीं लगती है
लेखन की दुनिया में लोग बेशुमार देखे।
अपनी-अपनी आदतों से बेज़ार देखे।
कुछ की गर्मी उनकी बातों में छलकती है,
कुछ की नरमी उनके शब्दों में ढलती है।
कुछ के दंश विषैले होकर डस लेते हैं
कुछ ठन्डे नश्तर रक्त भी जमा देते हैं।
कुछ नफरत का अम्बार लगा जाते हैं
कुछ अपने प्यार की बौछार करा जाते हैं।
लेकिन तुम सबसे अलग क्यूँ हो ?
भीड़ जिस तरफ चलती है ,
तुम उससे जुदा मेरे ही साथ चलते हो
अपनी एक पंक्ति में मुझे
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
सर्दी में सर्दी और गर्मी में लू किसे नहीं लगती है
लेखन की दुनिया में लोग बेशुमार देखे।
अपनी-अपनी आदतों से बेज़ार देखे।
कुछ की गर्मी उनकी बातों में छलकती है,
कुछ की नरमी उनके शब्दों में ढलती है।
कुछ के दंश विषैले होकर डस लेते हैं
कुछ ठन्डे नश्तर रक्त भी जमा देते हैं।
कुछ नफरत का अम्बार लगा जाते हैं
कुछ अपने प्यार की बौछार करा जाते हैं।
लेकिन तुम सबसे अलग क्यूँ हो ?
भीड़ जिस तरफ चलती है ,
तुम उससे जुदा मेरे ही साथ चलते हो
अपनी एक पंक्ति में मुझे
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
वाह!
ReplyDeleteजो सच की राह पर चलते हैं अस्तित्व उनकी हमेशा मदद करता है।
jo chalte hain hawaaon ke viprit uske saath wah hai, to bahut hai
ReplyDeleteदुआओं का एहले करम कम ना समझिए,
ReplyDeleteबहुत दे दिया जिसने दिल से दुआ दी ।
सच में आपके साथ सभी दोस्तों की दुआ है ।
बेहतरीन शब्दों से पिरोई हुयी एक सुन्दर कविता, सुन्दर अभिव्यक्तियों के साथ, दिव्या जी आपके संवेदनशील मन को इन्द्रधनुषी रंगों से संजोती आपकी इस विधा का भी जवाब नहीं , बधाई और शुभकामनाये
ReplyDeleteआज दिव्या को पढ़ना और भी अच्छा लगा .....शुभकामनायें !
ReplyDeleteसुंदर भाव लिये हुए,
ReplyDeleteशायरी पढ़ी तो दो शेर याद आ गए
ReplyDeleteखुला तो रखा था हमने भी घर का दरवाज़ा
हमारे घर से तो कतरा के हर ख़ुशी गुज़री
शबे फ़िराक़ हरीफ़े विसाल बन न सकी
तेरे ख़याल से महकी हर एक घड़ी गुज़री
....
शबे फ़िराक़-जुदाई की रात, हरीफ़े विसाल-मिलन की दुश्मन
बेहतरीन अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteगर मौसमों की मार में इतनी ताक़त है,तो,
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
ReplyDeleteसही कहा आपने .दुआओं में हर बुराई से लड़ने की ताकत होती है , बढ़ते रहिये आगे आगे .
सुन्दर कविता
ReplyDeleteयही, यही जज्बा है जो ज़ील में लड़ने का और जीतने का हौसला देता है...
ReplyDeleteब्लोगर्स के विभिन्न रूपों का विस्तृत वर्णन ।
ReplyDeleteचलिए एक तो है जो साथ दे रहा है ।
शुभकामनायें ।
बारिश , ठंडी , घाम हो ,या सुख , दुःख , संत्रास
ReplyDeleteकदम-कदम पर कवच बना ,मेरा आत्म-विश्वास .
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
ReplyDeleteगर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।.saarthak rachanaa.badhaai.
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
ReplyDeleteदुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है
bahut sunder divya ji.....
bas yuhin anvarat likhte jaayiye ....
कागज़ है पूजा की थाली
और
तिलक स्याह से करते हैं ,
भोग भाव के बना बना
हम
मन के मंदिर में
अर्पण करते हैं ,
प्रसाद कविता की होगी
हर कवि है इश्वर इस
मंदिर में ,
कलम से शंख ध्वनि कर
आह्वान उन्ही का
करते हैं ,
:)
ReplyDeleteVERY TRUE......
ReplyDeleteभीड़ से जुदा चलना is always appreciated if its for some purpose......
Well penned.
दिव्या जी, मानव जीवन के 'सत्य' यानि 'सत्व' की और आस्था की सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteगर मौसमों की मार में इतनी ताकत है, तो
ReplyDeleteदुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
कभी-कभी कविता की दो पंक्तियां 1000 शब्दों के लेख से कहीं ज्यादा प्रभावशाली हो जाती हैं।
ये पंक्तियां भी उसी तरह की हैं।
हम उसे सँभालते हैं वो हमें सँभालता हैं और हम विपरीत हवाओं के बीच चलते रहते हैं.
ReplyDeleteअपनी आंतरिक शक्ति को समर्पित यह रचना बहुत अच्छी लगी.
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
ReplyDeleteउसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।wah.jitni bhi taareef karoon kam hai......
very impactful writing
ReplyDeletelovely !!!
ReplyDeletesuch people are real backbone of our lives.
लहरों के विपरीत चलना...नियति निश्चित करती है...बस कोई साथ दे तो संबल बना रहता है...
ReplyDeleteआज फिर किसी ने दिल दुखाया है ,
ReplyDeleteआज फिर मुझे 'वो' याद आया है |
आशीर्वाद!
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
ReplyDeleteउसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
हवाओं के साथ बहे तो क्या बहे .बात तो जब है की हवाओं का रुख मोड़ दे ... अच्छी प्रस्तुति
हवा के विपरीत चलने में ही हवा का सर्वाधिक आनन्द मिलेगा आपको।
ReplyDelete(भोग-विलासी = ब्लॉगों की) कृपया न पढ़ें
ReplyDeleteभोग - विलासी दुनिया में जो जीव विचरते हैं
सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, तमाशा जीते-मरते हैं |
सुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व
अपने गुण-कर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |
तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी
मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |
हक़ उनका है जग-सागर में, फेंके चाफन्दा*
जीव-निरीह फंसे जो आकर, आहें भरते हैं |
भावों का बाजार खुला, हम सौदा कर बैठे
इस जल्पक* अज्ञानी के तो बोल तरसते हैं ||
जल्पक = बकवादी
तूती =छोटी जाति का तोता
चाफन्दा = मछली पकड़ने का विशेष जाल
मैना----- सिखाने पर मनुष्य की बोली बोल सकती है
sahi bat kahi hai aapne!
ReplyDelete" मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
ReplyDeleteलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया "
इरादे नेक हों - जो कि हैं ही - साथ चलने वालों की क्या कमी है दिव्या जी.
बढ़िया विचार, उत्तम अभिव्यक्ति और बेहतरीन शब्दविन्यास !
बधाई !
वाह जी, यह भी खूब रही.
ReplyDeleteBrilliant expression ,an interaction itself .
ReplyDeleteintangible asset of life . thanks
आदरणीय सुश्रीदिव्याजी,
ReplyDelete"मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।"
हवाओं के विपरीत चलने की आदतवाले लोगों में इतनी शक्ति होती है कि, उनके मन मुताबिक, हवा को भी अपना रूख़ मोड़ना पड़ता है..!!
बहुत खूब, आपको बधाई है ।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
बहुत खूब
ReplyDeleteदिव्या जी,
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही अच्छी है ... खेद है कल मैं इसे पढ़ नहीं सकी .. बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteआपका साहस ही है जो सदैव आपके साथ रहता है ...
भावपूर्ण सुन्दर भावोद्गार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
ReplyDeleteउसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
हवा के विपरीत चलने वाला ही अपने साहस से हवा का रुख मोडने की क्षमता रखता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com