Monday, October 17, 2011

जब नेतृत्व का भार हो स्वयं पर तो अपनी जिम्मेदारी समझिये.

महात्मा गांधी ने निसंदेह राष्ट्र के लिए एक पिता की भूमिका निभायी लेकिन उनकी कुछ भूलों का दुष्परिणाम आज भारत की निर्दोष जनता भुगत रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए ह्रदय में अपार सम्मान होते हुए भी मन में एक प्रश्न आता है .....आखिर क्यूँ किया उन्होंने ऐसा ? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के अनुकरणीय हिस्से को धारण करिए , लेकिन उनसे हुयी भूलों की पुनरावृत्ति मत कीजिये। सिक्के के दोनों पहलुओं को जानिये और स्वविवेक से आने वाले समय में राष्ट्रहित के लिए निर्णय लीजिये। एक नज़र यहाँ और यहाँ भी ...
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1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व
गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग
को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों
को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम
लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते
हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी
केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग
1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में
वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को
उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम
एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द
सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं
दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा
अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर
दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से
कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु
गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ
पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था
कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय
पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के
सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की
मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व
बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व
माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का
परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के
लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे
दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार
उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू
ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५
टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस
समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को
मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर
हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी
मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह
करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी
लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे
जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह
अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी
थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी
लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी
दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के
सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद
दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी
राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया
होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर
उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा
नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता

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42 comments:

  1. अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा , समाज सेवी व समाज सुधारक तथा हिन्दू राष्ट्र समाचार पत्र के यशस्वी संपादक , अहिंसक वीर नाथूराम गोडसे जी ने गांधी का वध ऐसे ही कारणों को लेकर किया था , अन्यथा गांधी जी तो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए देश को ओर अधिक टुकडो में विभाजित करा देते और भारत की राजभाषा हिन्दी न होकर हिन्दुस्तानी ( फारसी लिपि में लिखी जाने वाली उर्दू भाषा ) होती ।
    गांधी जी के सत्य से परिचित कराती एक महत्वपूर्ण पोस्ट ...... आभार ।

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  2. गलतियाँ हो ही सकती हैं ||
    महान गांधी की भूलों को न दोहरायें--
    सार्थक सन्देश ||


    सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

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  3. मेरा यह मानना है कि गाँधी के ऐसे निर्णय उनके अकेले के नहीं थे. उनके निर्णय हिंदुओं के एक वर्ग के हितों को साधने वाले थे न कि संपूर्ण देश के. यह कई जगह प्रमाणित हो चुका है. थोड़ी जानकारी लीजिएगा तो पता चलेगा कि मस्जिदों में शरण लेने वाले कौन थे और उन्हें वहाँ से निकालवाने में गाँधी को दर्द क्यों नहीं हुआ.

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  4. बहुत सही लिखा है आपने। सिक्के के दोनों पहलुओं को जानिए और फिर राष्ट्रहित में निर्णय लीजिये।

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  5. समझौते और तुष्टिकरण की नीति सदैव फलदायी नहीं हो सकती। देश को विघटन से बचाने के लिए गांधी जी इस कदर समझौतावादी हो गए कि यह समझौतावाद ही आगे चलकर देश के विघटन का कारण बन गया।

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  6. अपने परिवार का तो कम से कम भार हर व्यक्ति के कंधे के ऊपर होता है (कार्तिकेय को पार्वती का स्कंध भी कहा जाता है) उसके द्वारा रचा गया 'माया जाल' नहीं टूट सकता कभी वर्तमान में :)

    शायद तभी टूटेगा जब प्रलय होगा और सब गले तक पानी के अन्दर होंगे, और कुछ 'हिन्दू' ब्लोगर संभवतः सोच रहे होंगे गांधी भी मिटटी का सतयुगी नहीं 'कलियुगी' पुतला था, भगवान् का प्रतिरूप था, भगवान् नहीं था! और उसे हम सबकी तरह गलती करने का अधिकार था...

    हर व्यक्ति बाद में ही पछताता है कि उसने ऐसा क्यूँ किया वैसा क्यूँ नहीं किया... यदि तब ठीक किया होता तो आज मजे में होता :(

    हमारी 'अनपढ़' किन्तु विद्वान् माँ एक पुरानी कहावत दोहराते कभी-कभी कहती थी, जिसका हिंदी रूपांतर थोडा लम्बा होता है, कि जब कोई व्यक्ति पायखाने जाता है, वो वहाँ खाने की प्लेट नहीं ले जाता, वहाँ केवल एक लोटा भर पानी चाहिए होता है...

    हिन्दू कह गए कि भूत के पैर उलटे, पीछे की ओर होते हैं, अर्थात काल-चक्र उल्टा चलता है...
    अफ़सोस! यह वर्तमान ज्ञानियों की समझ के बाहर है कि क्यूँ कहा गया, "बीती ताहि बिसारिये / आगे की सुध लेय"!

    फिर भी बताना आवश्यक होता है क्यूंकि काल का कुछ भरोसा नहीं कि कब किसी डाकू को भी ऋषि बनादे :)
    जय भारत माता की!

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  7. सही कहा आपने।
    सिक्‍के के दोनों पहलुओं को जानना चाहिए और उसे जानने समझने के बाद फैसला करना चाहिए।
    गांधी जी ने भी कई भूल की थी पर सिर्फ एक पहलू को सामने लाया जाता रहा...
    आभार आपका और अजय किरण कर्णावत का।

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  8. अब तक हत्यारे झपाटा महाशय(?) नहीं पधारे अपने विचार व्यक्त करके आपको फासीवादी कहने के लिये? यदि इन विचारों को और स्पष्ट रूप से जानना है तो हिंदू राइटर्स फोरम,दिल्ली द्वारा प्रकाशित गोडसे जी का बयान पढ़िये। अनूप मंडल के अनुसार मोहनदास करमचंद गांधी जैन थे जो कि हिंदुओं के छिपे हुए शत्रु(राक्षस) हैं और वे ही देश-दुनिया की सारी परेशानियों के जिम्मेदार हैं। अहिंसा की बात गांधी जी ने सिर्फ़ हिंदुओं पर थोपी थी बकौल गोडसे। इन बातों में कितनी ऐतिहासिकता है ये तो उस समय के चश्मदीद ही जान सकते हैं। मैंने सुना है कि गोडसे ने गांधी की हत्या के समय मुस्लिम टोपी लगाई थी, दाढ़ी बढ़ा रखी थी और हाथ पर अब्दुल्ला गुदवा रखा था जबकि गोडसे के बयान में इस बात का कोई उल्लेख नहीं है। सत्य क्या है ये तो मैं नहीं जानता लेकिन फिर भी गोडसे से विरोध नहीं रख पाता । राष्ट्रीय मुद्रा पर गांधी का चित्र अनायास मुझे मुँह चिढ़ाता सा दिखता है। गांधी के चरित्र के बारे में जितनी पड़ताल करी जाए वह अधिक विकृत नजर आने लगते हैं तो बेहतर लगता है कि कांग्रेस ने जो छवि बनाई है उसे ही स्वीकार लो लेकिन अहिंसा का विचार आपको षंढ न बना दे ये ध्यान रहे। गांधी के जीवन का कोई भी भाग अनुकरणीय सा नहीं लगता है क्या करा जाए? ये मेरे निजी विचार हैं जिसे बुरे लगें वह तथ्यों-तर्कों के साथ सादर आमंत्रित है।
    जय जय भड़ास

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  9. एक बढ़िया पोस्ट पढवाने का आभार... अलग अलग नजरिया है....

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  10. sahi kaha hai galtiyan ho sakti hain unse sabak lekar aage sudhaar karna chahiye unhe dohrana nahi chahiye.achcha aalekh.

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  11. सबसे पहले तो आपका बहुत-बहुत शुक्रिया इस बेहतरीन पोस्‍ट को पढ़वाने के लिये ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  12. so very true .. each coin has two side .. we in india have this habit of looking only at the one that we like or suits us ..


    Bikram's

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  13. दिव्या दीदी
    सौ फीसदी सटीक और सार्थक लेख
    गांधी को महान मानना है तो माने, उनका अनुकरण भी करना चाहें तो करें, किन्तु उसके नाम की ideology न खड़ी करें| यह कोई बात नहीं हुई कि गांधी ने जो कह दिया वही सही है, उसके बाद खुद की सोच को दरकिनार कर दें| आँख मूँद कर किसी के पीछे जाना भी गुलामी है| सोच समझ कर निर्णय लें|
    गांधी ने ऐसी बहुत सी ऐतिहासिक गलतियां की है जिनके लिए भारत (याद रहे भारत, India नहीं) तो उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा|

    दरअसल अफ्रीका में मिले सम्मान के कारण गांधी की महत्वकांक्षा भी बढ़ गयी थी| जब उनका भारत लौटना हुआ, उस समय उनके लिए यहाँ कोई विशेष स्थान नहीं था| क्रान्ति चरम पर थी और लग रहा था कि देश कुछ ही वर्षों में भारत आज़ाद हो जाएगा| महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक, बंगाल में अरविन्द व पंजाब में लाला लाजपतराय सक्रीय थे| उनके नेतृत्व में भारत के वीरों ने अंग्रेजों के विरुद्ध शंखनाद कर रखा था| गांधी के लिए कहीं कोई स्थान बचा ही नहीं था|
    किन्तु कुछ परिस्थितियाँ विपरीत हुईं कि तिलक का देहांत हो गया, अरविन्द सन्यासी हो गए व लालाजी अकेले पड़ गए, और इन सब से बढ़कर देश में जलियांवाला बाग़ जैसा भीषण नरसंहार हो गया| ऐसे समय में गांधी को ऊपर आने का बेहतरीन अवसर मिला| वहीँ दूसरी ओर गांधी ने क्रांति की एक ऐसी राह दिखाई कि क्रान्ति बहुत सस्ती लगने लगी| कल तक वतन पर मरने वालों के सामने अब एक नया विकल्प था कि कुछ मत करो, ठाले बैठ जाओ और गली मोहल्लों में घूम घूम कर गला फाड़ो|
    राजनीति में कभी भी निर्वात नहीं रहता| नेतृत्व के अभाव ने ही गांधी के लिए नयी opportunity खड़ी कर दी| देश की जनता के लिए भी क्रान्ति की राह सरल हो गयी| निश्चित रूप से इससे वे लोग भी क्रान्ति में शामिल हो गए जो कल तक घरों में बैठे थे, किन्तु इस कारण एक सामान्य नागरिक व एक वीर क्रांतिकारी के बीच का फर्क मिट गया| इस कारण देश का पौरुष भी नष्ट हो गया|
    किसी भी तंत्र का सरलीकरण हमारी इच्छाओं के अनुरूप परिणाम नहीं देता| क्रान्ति के लिए जलना पड़ता है, कटना पड़ता है, पिसना पड़ता है, मरना पड़ता है, मारना पड़ता है| किन्तु गांधी की क्रान्ति में ये सभी त्याग नदारद थे| और बिना त्याग के कुछ भी मिलना असंभव है, कीमत तो आखिर चुकानी ही पड़ती है, फ़ोकट में कुछ नहीं मिलता|

    दिव्या दीदी,
    वर्तमान परिपेक्ष्य में भी हम कहीं फिर से वही भूल न कर दें, इस बात से सावधान रहना चाहिए| अभी हमारे देश में एक ताज़ा तरीन गांधी जी का अवतार हुआ है| निश्चित रूप से अन्ना भी एक महान व्यक्तित्व हैं, किन्तु आँख मूँद कर उनका पीछा करना कहीं हमे उसी दिशा में ले जा रहा है जहाँ गांधी ने देश को पहुंचा दिया|

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  14. आधुनिक स्कूल में गांधी की तस्वीर दिखा टीचर ने उसे पहचानने को कहा तो तपाक से उत्तर मिला "बेन किंग्सली" (जिसने गांधी का रोल किया था इसी नाम की पिक्चर में :)
    अस्सी के दशक में, पोर्वोत्तर में कुछ युवा लोगों को कहते सुना कि आज गांधी कौन बनेगा? वो तो लंगोटी में, लाठी ले घूमा और बाद में गोली भी खाई! उससे अधिक ज्ञानी तो नेहरु था जो अपने खानदान का भविष्य बना सात पुश्त का भला कर गया :)
    कृष्ण सचमुच 'नटखट नंदलाल' ही रहा होगा - गोकुल गाँव की गोपियों के साथ मुरली बजा रास-लीला का आनंद उठा गया...:)
    जय भारत माता की!

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  15. आदरणीय भूषण जी
    आपकी बातों से सहमत हुआ जा सकता है, किन्तु "जो कई जगह प्रमाणित हो चूका है" कृपया यहाँ उसका प्रमाण दें|
    साथ ही मस्जिद में ठहरे हिन्दुओं व उन्हें भगाने वाले लोगों के सम्बन्ध में भी कृपया कोई जानकारी दें|
    गांधी को दर्द क्यों नहीं हुआ, यह बात तो अब धीरे धीरे सभी को समझ आ रही है|

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  16. इतिहास की कुछ भूलें ऐसी होती हैं जो इतिहास ही बदल देती है। तभी तो कहा है- लम्हों ने ख़ता की और सदियों ने सज़ा पाई॥

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  17. नेरित्व का भार जब कन्धों पर हो तो जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है| जैसे महात्मा गांधी पर थी किन्तु निराशा ही हाथ लगी| कुछ लोग आजकल अन्ना व उनकी सिविल सोसायटी से उम्मीदें पाले बैठे हैं, किन्तु उन्ही की टीम के प्रशन भूषण जैसे लोग न केवल अपनी जिम्मेदारियों से विमुख हो जाते है अपितु राष्ट्रद्रोही बयानबाजियां भी करते हैं|

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  18. फ़ेसबुक पर पढा था …………सही कह रही है आप्।

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  19. गांधी जी भी एक मानव थे इसलिए उनमें भी कुछ मानवीय कमजोरियां रही होंगी । कमियां ढूंढने वाले तो ईश्वर के अवतारों में भी कमियां ढूंढ लेते हैं।
    हमें किसी की अच्छी बातों को ही याद रखना चाहिए और अनुकरण करना चाहिए। कमजोरियों का अनुकरण नहीं करना चाहिए और भूलों को दुहराना नहीं चाहिए।

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  20. 'हिन्दू' मान्यतानुसार राक्षसों का निर्धारित कार्य ही यह है कि वो 'सत्य' तक आम आदमी को आसानी से न पहुँचने दें...)
    उलझाए रखें द्वैतवाद / अनंत वाद के माध्यम से, जैसा पूर्वजों ने कहा, "हरि अनंत हरि कथा अनंता / कहहि सुनहि बहु विधि सब संता"!
    जब पतंगा दीपक की लौ में जल जाता है तो उसे जन्म जन्मान्तर का प्रेम कहा जाता है कवियों द्वारा!
    किन्तु कोई स्त्री उसी प्रकार यदि चिता में बैठ जाए तो वो गैर कानूनी है, यद्यपि उसे सती (शिव की अर्धांगिनी) कहा गया कभी!

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  21. सही और सार्थक पोस्ट पढ़वाने
    के लिए धन्यवाद दिव्या जी .....

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  22. vyakti vishesh se yah aasha nahi ki ja sakti ki wah purn ho. yani usme keval achhaiyan hi ho. gun hi housme gun adhik aur dosh kam ho sakte hain.Jisme guno ki adhikta hoti hai wah mahatma ho jata hai. Mahatma Gandhi ke sandarbh mein bhi yahi kaha ja sakta hai. Keval ishwar hi purn ho sakta hai.

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  23. हा हा महाशय रूपेश जी (ज़ील)
    झपाटा महाशय की टिप्पणी प्रकाशित करने में आपकी तो हवा खिसक जाती सच में पधार गए तो न जाने क्या होगा आपका ? इससे बेहतर तो ये है कि आप किलर झपाटा ब्लॉग पर पधारते रहें और अपने सपनों के जवाब वहीं पाते रहें। दिल में इस बात का क्षोभ लिए कि मुझे तमाम शास्त्रों पे शास्त्रार्थ की चुनौती देने वाले ब्लॉगजगत के सबसे बड़े डरपोंक लोग हैं, चलता हूँ।

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  24. दिव्या जी एक बेहतरीन आलेख प्रस्तुत किया है आपने . सच से मुखौटा हटाता आलेख .देश के राजनीतिक इतिहास को टस मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया और जैसे कुछ लोगो ने चाहा दिखाया. नाथूराम गोडसे ने गांधी को क्यों मारा .कोर्ट में गोडसे का बयान ही इस विषय पर पर्दा हटाने के लिए काफी है जिसे बैन किया गया है. इसी सन्दर्भ में जरा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवित रहने की बात पर गौर करे . और फैजाबाद में आज़ादी के बाद सालों रहे उस दाढी वाले पर सरकारों ने अपना मौन क्यों नहीं खोला . क्या कोई अंग्रेजो से आतंरिक समझौता था इस बारे में जन मानस में ये प्रश् लगातार कौंधता है मगर उत्तर आज की राजनीती से गायब है . काश सच saamne aaye गांधी का bhee nataji का भी.

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  25. .

    आदरणीय कुश्वंश जी ,

    ददिहाल और ननिहाल फैजाबाद में होने के कारण , मेरे बचपन के कुछ वर्ष फैजाबाद में ही गुज़रे हैं। उस समय घर परिवार और परिचितों में बड़े-बुजुर्गों को नेताजी सम्बंधित बात करते सुनती थी । सच जानना चाहती थी। एक इच्छा थी की जो अभी जीवित है , उससे मुलाकात हो जाए। लेकिन अफ़सोस की एक क्रांतिकारी की इतनी गुमनाम मौत हो गयी । वो समुचित सम्मान भी नहीं मिला जिसके वे पूर्ण अधिकारी थे।

    हमारे देश का ये दुर्भाग्य ही है की यहाँ क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों और सच्चे शहीदों और देशभक्तों को समुचित सम्मान नहीं मिलता।

    .

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  26. .

    @ झपाटा -

    आपने मुझे और रूपेश भैया को एक ही शख्स समझा इसके लिए आपका आभार। यह सच है कि मुझमें और मेरे भाई-बहनों में कोई फर्क नहीं है। हमारा स्नेह हमें एक अटूट बंधन में बांधता है जो आम व्यक्ति को यही बोध करता है कि ये एक हैं। पुनः कहती हूँ.... हाँ ! मैं और मेरे सभी शुभचिंतक एक ही हैं।

    एक बार वाणी शर्मा नामक ब्लॉगर ने मुझे और रचना को भी एक ही समझा था।

    मुझे बहुत अच्छा लगता है जब लोग मुझे रचना और रूपेश भैया के समकक्ष , एक ही समझ लेते हैं। वैसे मुझे अभी बहुत समय लगेगा इतना निडर बनने में और इतना बडप्पन खुद में लाने में। पर फिर भी आपका आभार कि हम भाई बहनों को एक ही समझा।

    रही बात मोडरेशन कि , तो वह बहुत आवश्यक है ताकि आप जैसे लोगों के घटिया कमेंट्स को रोका जा सके , जो विषय पर नहीं लिखते बल्कि विषय से इतर , विवादित, व्यक्तिगत और विषाक्त लिखते हैं।

    आभार।

    .

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  27. दिव्या जी, 'हत्यारा झपट्टा' और आपके बीच हुए वार्तालाप ने सिद्ध कर दिया कि भगवान् अदृश्य होने के साथ साथ रहस्यवादी / रहस्यवाद प्रिय भी है, अर्थात नटखट नंदलाल है :)

    बच्चों के समान इशारे करता है, आवाज़ देता है , मैं कौन हूँ? / मैं कहाँ हूँ? / तुम कौन हो ? / आदि आदि, कह स्वयं छुप जाता है - लुक्का-छुप्पी का खेल खेलता है :)

    'आप' और 'हम' उलझे हुए हैं कि मोहन दास कौन थे?
    और इतिहास के पन्ने लाल-काले हो गए किन्तु चर्चा समाप्त नहीं होती, निष्कर्ष नहीं निकल सकता कि वो भगवान थे या शैतान?

    अस्थायी व्यक्तियों, शेक्सपियर द्वारा माने गए इस संसार रुपी स्टेज पर अनंत नाटक / कृष्णलीला के विभिन्न पात्रों का एक अंश कहता है वो महात्मा थे, तो दूसरा उनके अवगुण गिनाते उन्हें शैतान कह रहे है!

    और आज के अज्ञानी बच्चे, 'भारत' नहीं 'इंडिया' की नयी पौध मस्त रह सकते थे किन्तु इतिहास पीछा छोड़े तब न! ...

    और, यह भी मजबूरी है श्री कृष्ण की, क्यूंकि एक वो ही तो इस सृष्टि के नाटक के मूल कारण हैं, बहुरूपिया हैं - ब्रह्मा भी हैं, विष्णु भी हैं और महेश भी!
    बनाना, चलाना, तोडना सभी कार्य तो उनके ही अंतर्गत आते हैं, और वो कहते भी हैं कि वो प्रति क्षण कार्य कर रहे हैं यद्यपि तीनों लोक में उनको कुछ नया पाने को नहीं रह गया है :)

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  28. जितना गांधी के बारे में पढ़ा शायद उतना काफ़ी नहीं है और उनके विरोध में जितना लिखा गया वह सरकार और उनके समर्थकों द्वारा गायब कर दिया गया। विरोध में लिखा गया कन्टेंट भी जनता को उपलब्ध होना चाहिये आखिर हरेक व्यक्ति की आलोचना हो सकती है।

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  29. कुछ तो मजबुरियां रही होगी
    युं ही कोई बेबफा नहीं होता..

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  30. जो 'हिन्दू' अनादि काल से दोहराते चले आ रहे हैं, कल ८ बजे रात डिस्कवरी चैनल पर दिखाए जाने वाले एक कार्यक्रम में विश्व प्रसिद्द वैज्ञानिक (कोस्मोलोजिस्ट) स्टीफेन हॉकिंग (एमियोत्रौपिक लेटरल स्केलेरोसिस से पीड़ित) ने भी निष्कर्ष पर पहुँच कहा कि ब्रह्माण्ड को भगवान् ने नहीं स्वयं ब्रह्माण्ड, 'ब्लैक होल' (जहां कल शून्य होता है), ने ही बनाया,,, जबकि प्राचीन हिन्दुओं ने उस शून्य से सम्बन्धित जीव को नादबिन्दू कहा...

    अभी किन्तु उसने यह नहीं कहा कि ब्लैक होल (कृष्ण) ने ध्वनि ऊर्जा से सृष्टि की रचना करी, जैसा प्राचीन हिन्दू मान्यता है...

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  31. क्या सचमुच किसी को संदेह है कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव और डॉ.दिव्या श्रीवास्तव अलग-अलग हैं? यदि कोई ऐसा सोचता है तो वो जड़बुद्धि है, मैं तो कहता हूँ कि इसमें दिवस गौर, मुनव्वर सुल्ताना, मनीषा नारायण, रम्भा हसन के भी नाम जोड़ लें कि ये एक ही हैं किसी को इन्कार नहीं है। ये बात तो एक बार एक प्राणी ने भड़ास पर भी लिखी थी कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव एक फ़र्जी आई.डी.है तो उस जगह पच्चीसों लोगों ने(शायद सभी फ़र्जी होंगे) ने लिखा था कि वो लोग डॉ.रूपेश श्रीवास्तव हैं वैसे ही आज भी सवाल है तो बस इतना ही कहना है कि हम सब डॉ.दिव्या श्रीवास्तव ही हैं, मोबाइल नंबर तो दे ही चुके हैं मुंबई आकर तस्दीक कर लीजिये।

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  32. पुरानी ग़लतियों से सबक लेना और बदलती परिस्थितियों के अनुसार पर निर्णय लेना -इतिहास यही सिखाता है .

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  33. मानव का इतिहास (हिन्दुओं के दृष्टिकोण से) आज दर्शाता है कि कैसे समुद्री जल से आरम्भ कर, मछली से उत्पत्ति कर सबसे पहले मगरमच्छ के रूप में अवतरित हुआ, निराकार शक्तिरूप, 'नादबिन्दू विष्णु' का प्रथम अवतार (मंगल ग्रह)!
    और फिर उत्पत्ति के क्रम में दूसरा अवतार कछुआ; तीसरा वराह; चौथा नरसिंह (आधा मानव और आधा शेर); पांचवा वामन (अर्थात पूर्ब रूपेण मानव, किन्तु भौतिक रूप में अति शक्तिशाली, जिसने दो कदमों में ही संसार को माप लिया और दानवीर राजा महाबली को तीसरे कदम में सर पर पैर रख पाताल पहुंचा दिया!); छटा (कुल्हाड़ी के रूप में अस्त्र धारी), परशुराम; सातवें धनुर्धर राम (सूर्य); और आठवें सुदर्शन-चक्र धारी कृष्ण (बृहस्पति ग्रह)... सबके सब आठ अवतार एक एक दिशा के राजा!... और नवें-दसवें, स्वयं विष्णु के अवतार (हर ग्रह के केंद्र में संचित गुरुत्वाकर्षण शक्ति / आकाश में चंद्रमा) जिनके हाथ में दोनों, उपरी और निचली दिशा का नियंत्रण है :)... और प्रत्येक व्यक्ति को इन्ही नौ ग्रहों के सार से बना जाना गया!... किन्तु ऍम आदमी क्या ख़ास आदमी की बुद्धि से भी बाहर! चमत्कार!...मीराबाई से भी कहला दिया, "मूरख को तुम राज दियत हो / पंडित फिरत भिखारी", और गीता में कह गए कि हर गलती का मूल अज्ञान है... और आवश्यकता केवल कृष्ण में आत्म समर्पण कि है, अर्थात शून्य विचार तक अभ्यास से पहुंचना...

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  34. मैं अपनी सारी करतूतों के लिये आप सबसे माफ़ी मांगता हूँ, आई एम सॉरी । आप सब समझदार लोग हैं उम्मीद है दिवस भाई, डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी, डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी मेरी बेवकूफ़ियों को नादानी समझ कर भुला देंगे।

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  35. अब एक सूना सुनाया चुटकुला हो जाए... (बहुत गंभीर बातें हो गयीं)...
    निआग्रा जल-प्रपात देखने आई हुई भीड़ को गाइड ने कहा कि यदि स्त्रियाँ चुप हो जाएँ तो सभी जल-प्रपात की गर्जना सुन पायेंगे :)

    [अब हम क्या करें - यही हाल हमारा भी है, स्त्री हों या पुरुष :)
    जो हमारे भीतर ही विद्यमान है, भगवान् की सुनने का समय ही नहीं हमारे पास, और पता भी नहीं है कि उससे बात करने की विधि क्या है!... उसका फोन नंबर क्या है?...
    किन्तु हम सभी अपनी बात दूसरों को सुनाना चाहते हैं, सुनना नहीं चाहते!

    पत्नी की सन '९१ में टांग टूट गयी थी, डॉक्टर ने औपरेशन कर, बढ़ई समान छेद कर प्लेट आदि लगा और प्लास्टर चढ़ा, सलाह दी डेढ़ माह बिस्तर पर पड़े रहने की, पैर न हिलाने की...
    हमारे शुभ चिन्तक आने शुरू हो गए और हर कोई अपने किसी रिश्तेदार के भी टांग टूटने की कहानी सुनाते थे...
    और कोई कोई तो बताते थे कि कैसे उनका केस बिगड़ गया और क्या क्या कष्ट उस कारण भुगतना पडा, हमारे मन में भय पैदा करते कि कहीं पत्नी के साथ भी वैसा ही न हो जाए!]...

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  36. सही केह रही है आप, न सिर्फ इस बात के लिए बल्कि हर बात के लिए सिक्के के दोनों पहलुओं को जानकर ही कोई तर्क या निर्णय लेने में ही समझदारी है आखिर गाँधी जी भी थे तो इंसान ही भगवान तो नहीं कि उनसे कोई भूल ही न हुई थी.... इस पोस्ट को यहाँ पोस्ट करने पढ़ाने के लिए आपका आभार

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  37. na jane kya hoga is desh ka,
    ham to khud ke aajad hone ki tamnna liye chale jayenge...
    jai hind jai bharat

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  38. विचारणीय आलेख.... आभार

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  39. बहुत ही अच्छा और गंभीर विषय है चर्चा के लिए,निस्संदेह अच्छी प्रस्तुति दिव्या जी,सिक्के के दोनो पहलू आवश्यक हैँ।ये भी ध्यान मेँ रखना आवश्यक है कि देश,समाज और आने वाली पीढ़ी के लिए क्या ज्यादा हितकर है।

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