Sunday, November 6, 2011

माफ़ करके आप मुझे, दोहरी सजा न दीजिये

जगत जननी शारदे , वरदान इतना दीजिये
मन मेरा विचलित हो , पत्थर इसे कर दीजिये
जो हुयी है भूल मुझसे , दंड उसका दीजिये
बढ़ रहे गुनाह को , आप क्षमा कीजिये।


कहीं मेरे अपराध से , मासूम जन छले जाएँ
गर कहीं वो दूर मुझसे , निराश हों चले जाएँ।
पश्चाताप की आग में भस्म मुझको कीजिये,
जगत जननी शारदे , वरदान इतना दीजिये।

इस अक्षम्य अपराध का माँ,दंड पूरा दीजिये
अब सज़ा की आग में कुंदन मुझे कर दीजिये।
गर भटक कर लक्ष्य से मैं दूर तुझसे जा रही
सर कलम कर , दोष से अब मुक्त मुझको कीजिये।

माँ मुझे इस पाप की पूरी सजा है चाहिए,
माफ़ करके आप मुझे, दोहरी सजा दीजिये।
ग्लानी के इस ताप से अब मुक्त मुझको कीजिये।
मन के तम को हर-ले माँ , ये मार्ग प्रशस्त कर दीजिये।

Zeal

47 comments:

  1. jai mata di...
    jai mata di...
    jai mata di jai mata di

    bahut hi achcha laga padhkar..
    maa sabko maaf kar deti hai..
    jai hind jai bharat

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  2. बहुत सुन्दर प्रार्थना।

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  3. माँ शारदे आपकी अवश्य सुनेंगी, सुन्दर प्रार्थना।

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  4. maa aapki prarthna zaroor sunengi........

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  5. maa aapki prarthna zaroor sun len.....

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  6. शब्द साधकों की मां शारदा अपने उपासकों पर कृपाभाव रखती हैं। नवधा भक्ति का एक प्रकार दास्य भी है। हम सरस्वती के सेवक बन उनकी आराधना निरंता करते रहें।
    संगीतबद्ध करने योग्य सुंदर प्रार्थना-गीत।

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  7. Bahut sundar rachana hai...ek geyta liye hue,jise baar,baar padhne ka man karta hai!

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  8. bahut sundar v man se upaji prarthana.MAA apane bachchoN ki tutali boli bhi samajh leti hai.fir itani sundar lekhani ko to saralataa se padh lengi.Vishal hridya MAA SHAARDAA aapaki lekhani par sada ashirwad barsayeN.

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  9. दिव्य उद्गारों से भूषित आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.

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  10. Maaf karke .. if you are referring to all that is going on then AAPNE MAAFI MAANGI KYUN..
    and agar maangi nahin to woh kaun hote hain MAAF karne waale

    and i sorry if this is something else :)
    Bikram's

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  11. बहुत अच्छी भक्तिमय रचना,बहुत अच्छे भाव !

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  12. स्तुति ,प्रस्तुति का सुन्दर प्रयास संजीदा लगा जी / बधाईयाँ

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  13. मन के तम को हर ले मां
    इस पंक्ति में पूरी रचना का सार है। सारे जहां में प्रेम, सौहार्द्र और स्नेह का उजियारा फैले।

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  14. .

    Dear Bikram,
    It is not at all related with any happening here on blog. It is something between me and my 'aaradhya'. Anyways thanks to see a genuine concern in your comment. Thanks.

    .

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  15. bahut khub.......behad prabhavshali rachna ....aabhar

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    देवोत्थान पर्व की शुभकामनाएँ!

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  17. सुंदर प्रार्थना माँ शारदे आपकी अवश्य स्वीकारेगी,..सुंदर पोस्ट
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है .....

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  18. मां शारदे की कृपा सदा बनी रहे आप पर।
    सुंदर भाव।

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  19. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 07-11-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  20. निर्मल हृदय की अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! बधाई स्वीकार करें !

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  21. bahut achche bhaavon se autprot praartha.maa sabki manokamna porn kare.

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  22. सुंदर प्रार्थना...सुंदर भाव..
    जय माँ शारदे...
    सादर...

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  23. pashchataap man ko sona bana deta hai......bahut hi bhavpoorna prastuti

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  24. बेहतरीन।
    -------

    कल 08/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  25. heart touching prayer.just like a voice come from my heart.thanks.

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  26. आदरणीया दिव्या जील जी बहुत सुन्दर प्रार्थना मन की कामना ..काश ऐसा हो ...
    त्यौहार पर आप की बेबाक थोड़ी कड़ी लेकिन बहुत अच्छी ..........बधाई ..............शुभ कामनाएं देखने को मिला ..सच है लोगों को सीख तो लेना ही चाहिए ..त्यौहार पर खुशियाँ बरसें
    भ्रमर ५

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  27. दिव्या जी, अति सुन्दर प्रार्थना!
    जैसा अब तक तो आपको पता चल ही गया होगा, हिन्दू मान्यतानुसार, परिवर्तनशील प्रकट होती प्रकृति का निर्माण कर्ता निराकार है, जो शून्य काल और स्थान से सम्बंधित हैं, शक्ति रुपी है, अर्थात परमात्मा... इस लिए वो अमृत है और अदृश्य है... और वो सभी साकार रूपों में गुरुत्वाकर्षण शक्ति अथवा आत्मा रूप में विद्यमान है...

    और हम सभी पशु जगत के अनंत संख्या में वर्तमान में पृथ्वी में उपलब्ध प्राणीयों के शीर्ष में, सर्वश्रेष्ट कृति, मानव, उस के ही विभिन्न काल को प्रदर्शित/ प्रतिबिंबित करते प्रतिरूप/ प्रतिबिम्ब हैं...

    बार बार दोहराए जाने वाला कथन, 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' संकेत करता है हमारी अमृत पृथ्वी की ओर जो ब्रह्माण्ड के अनंत शून्य का सार विद्वान् / परम ज्ञानी योगियों द्वारा जानी गयी - और आम आदमी द्वारा मानी गयी है...
    और क्यूंकि प्रकृति शक्ति रुपी नादबिन्दू से उत्पत्ति हो कर अनंत शून्य और उसके भीतर व्याप्त साकार रूपों को प्रतिबिंबित कर रही हैं...

    यदि मैं अपनी मंद बुद्धि से देखने का प्रयास करूं तो आपके अग्नि समान क्रोध को प्रतिबिंबित करने के कारण वर्तमान में आप में पृथ्वी का आरंभिक रूप देख सकता हूँ... क्यूंकि हिन्दुओं के अनुसार काल की गति न्यारी है, अर्थात सत युग से कलियुग की ओर काल-चक्र चलता है, और वर्तमान कलियुग माना जाता है, अर्थात सागर-मंथन का आरम्भ...

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  28. मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।

    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  29. इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना .......

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  30. माँ शारदे! की सुन्दर सार्थक स्तुति अनुश्रवन के लिए आभार!

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  31. अति सुंदर प्रार्थना. माँ अवश्य आपके ऊपर येसे ही कृपादृष्टि बनए रहे.

    बधाई.

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  32. बढ़िया प्रस्तुति .

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  33. ओऽऽहो जी !
    आप छंद भी लिखती हैं … दिव्या जी
    अच्छा है … लेकिन सरस्वती सर कलम करने के लिए तो नहीं जानी गई कभी !!

    … और , ऐसी ग्लानि , इतना अपराध-बोध ?!
    भूल, गुनाह , अपराध … … … समझ नहीं पा रहा हूं …

    एक सरस्वती वंदना मैंने भी लिखने का प्रयास किया था , शायद आपने देखी हो …
    यह रहा लिंक
    सरस्वती वंदना


    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  34. जन - जन की धारणाएं और अभिलाषाए ऐसी ही होनी चाहिए ! मेरी भी !

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  35. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
    सब अपनी गलतियों के लिए क्षमा पार्थना करते हैं और आप अपनी गलतियों के सजा के लिए | अनुकरणीय हैं ऐसे आचरण|
    हमें गर्व है, माँ भारती के ऐसे संतानों पर| जय हिंद!

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  36. सज़ा लायक तो आपने कुछ नहीं किया ! ऐसी प्रार्थना तो हम सभी को करनी चाहिए !

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  37. .

    @ राजेन्द्र स्वर्णकार-
    सरस्वती जिसकी लेखनी में आ जाए, उस लेखनी से हज़ारों सर कलम किये जा सकते हैं। अतः उस लेखनी से कोई भूल हो जाए तो सर कलम करने की प्रार्थना भी उसी माँ से की जानी चाहिए। अपनी इस माँ की शक्ति का भान है मुझे।

    .

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  38. .

    @ aarkay Sir,

    आपने सही कहा हम में भूल से भी कभी कोई अहंकार न जाए अतः समय-समय पर ऐसी प्रार्थना करते रहना चाहिए।

    .

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  39. ऎसी प्राथनाएँ 'आरती' की श्रेणी में रखी जाती हैं... क्योंकि सामान्य भक्त (जन) बहुत कुछ माँगने के साथ हमेशा अहंकार से बचने का आशीर्वाद भी चाहता है.

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