मैं कोई राजनेता अथवा नेत्री तो नहीं जो वीर शहीद सरदार भगत सिंह को "राष्ट्र पिता" घोषित कर दूं, लेकिन वे ही असली हक़दार हैं "बापू" कहलाने के। वे किसी करेंसी-नोट पर छापे जाएँ अथवा नहीं , लेकिन आने वाली अनेक सदियों के दिलों में अंकित होता रहेगा इस अमर शहीद का देशभक्त चेहरा।
मेरे बापू--मेरे भगत सिंह ।
वन्दे मातरम्
मेरे बापू--मेरे भगत सिंह ।
वन्दे मातरम्
वन्देमातरम्। भगत सिंह हर दिल अजीज हैं।
ReplyDeleteयकीनन
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी आपकी प्रत्येक अभिव्यक्ति में एक सच्चे भारतीय का दर्द झलकता है , मैं आपकी पवित्र भावनाओं को प्रणाम करता हूँ । पर दीदी जी राष्ट्रपिता शब्द पर क्षमा चाहूंगा । भारत एक सनातन राष्ट्र है , यहां की संस्कृति अरबों वर्ष पुरानी है । यह सनातन संस्कृति भूमि को माता और अपने आप को उसका पुत्र मानती हैं । इसमें राम आये , कृष्ण आये , बुद्ध आये , महावीर आये , गोबिन्द सिँह आये , लेकिन किसी ने अपने को राष्ट्रपिता नहीं कहलवाया । तो फिर भारत विभाजन का अपराधी गांधी या कोई भी इसका पिता कैसे हो सकता है । हमारे भगत सिंह तो राष्ट्रपुत्र है और रहेंगे । भारत की मुद्रा पर आज न सही भविष्य में सही उनका फोटों अवश्य छाया जायेगा ।
ReplyDeleteवन्दे मातरम्
जय जय माँ भारती ।
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ReplyDeleteप्रिय विश्वजीत ,
जो संतान का पालन पोषण और संरक्षण करता है वही पालक अथवा पिता कहलाता है। भारत भूमि पर जन्म होने से तथा उस धरती से उपजे अन्न को खाकर हमारा जीवन चलता है अतः धरती हमारी माता है हम सब भारत भूमि पर जन्मे अतः भारत भूमि हमारी माता हुयी। इसी प्रकार जिन शूरवीरों ने अपनी जान देकर भारतीयों को अंग्रेजों की गुलामी और यातनाओं से मुक्ति दिलाई , उन्होंने पिता का धर्म निभाया।
कोई स्वयं को पिता कहलवाता नहीं है, किन्तु बहुतों ने पिता का धर्म निभाया है। भगत सिंह एक अवतार थे जिन्होंने मात्र २३ वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता की संतानों की रक्षा की।
किसी के लिए बड़े से बड़ा बलिदान माता अथवा पिता ही कर सकते हैं । इस नाते कृतज्ञता के भाव से उन्हें माता अथवा पिता शब्द से संबोधित करते हैं । ये संबोधन मन के उद्गारों की अभिव्यक्ति मात्र हैं , इनका सनातन धर्म से कोई विरोध नहीं है।
भारत माता की आज़ादी के लिए कुर्बान होने के कारण वे 'पुत्र' भी हैं और भारत माता की संतानों की रक्षा की खातिर अपने प्राणों की आहुति देने के लिए वे 'पिता' तुल्य भी हैं। ऐसा मेरा मानना है।
व्यक्ति के मन में जैसे भाव आते हैं वह वैसा ही देखता है । सरदार भगत सिंह के बलिदान को देखकर मेरे मन में उनके लिए कुछ ऐसे ही भाव उमड़ते हैं जैसे वे मेरे पिता हों और सारे राष्ट्र के पिता हों।
वन्देमातरम् !
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भगत सिंह सरीखे इन अमर शहीदों की बराबरी तो कोई नहीं कर सकता..
ReplyDeleteदिव्या जी ! सादर वंदन
ReplyDeleteआज आपको लिखने का हृदय से विचार आया , लिख रहा हूँ ..
सन १८५७------१९४७ तक के वैचारिक ,क्रन्तिकारी लिफ्लेट्स ,हैन्दबुक्स,मैनिफेस्टोस, स्लोगन्स ,पर आप नजर लगायें , अगर आप निरपेक्ष भाव में हैं तो आप को मिलेगा की ,आज ,जीतनी, जातीय - भावना ,धार्मिक- भावना ,क्षेत्र -वाद ,एक दुसरे के प्रति उन्माद प्रदर्शित हो रहा है ,कम से कम १०० गुना , उस समय था / कोई कह रहा था ,मेरे धर्म -संस्कार को बनाये रखो ,माननीयों [फिरंगियों ] तुमसे कोई गिला नहीं है / कोई शपथ- पत्र ,दे कह रहा था उन आतंकवादियों[क्रन्तिकारी सपूतों ] के साथ मैं आपकी [फिरंगियों ] की सत्ता के विरुद्ध षडयंत्र में शामिल नहीं था / कोई कह रहा था , हम शाशक रहे हैं मेरा वजूद कायम रखो .तेरे साथहैं / कोई कह रहा था , मैं हजारों सालों से गुलामी की अवस्था में हूँ ,मुझे मेरा मानव होने का अधिकार दे दो ,तुम्हारे साथ हैं , किसी को अपने क्षेत्र विशेष की चिंता थी , किसी को संस्कार की.......आदि / परन्तु ,अगर एक स्कालर की हैसियत से ,विश्लेषण करें तो निश्चित रूप से यह निष्कर्ष पाएंगी की .......भगत सिंह की जमात [ विचार-धारा ] का कोई शनि नहीं ,अन्य कोई धारा पासंग पर भी नहीं बैठती / भगत सिंह का सूत्र वाक्य - जन-सामान्य का सरोकार वांछित है ,मातृभूमि ,वर्ग विशेष
की ,व्यक्ति -विशेष की ,धर्म -विशेष की ,क्षेत्र -विशेष की नहीं ,भारतीयों की है/ सारा देश उद्वेलित हुआ ,हथियार उठाया देश - रक्षार्थ / देश ऊपर था, भावना थी फिरंगियों देश छोडो ....
सत्ता का हस्तांतरण हुआ एक मित्र से दुसरे मित्र के हाथ , जो सामान विचार धरा के ही थे / अयं निज परोवेति गड़ना लघु चेतसाम .......के उपदेशक! ,समानता ,समभाव ,स्वतंत्रता के मानकों को ही भूल गए/ युवाओं ,दूरदर्शियों , चिंतकों ,क्रांतिकारियों के lay -out . को देखना तो दूर ,लात मार दिया /
कहाँ गए नियम -नियामक , राष्ट्र -निर्माता ,तथाकथित उद्धारक ! हाँ आज भी भारत उनकी सोच के मुताबिक ही मंथर गति से गतिमान है ,कायम हैं वो ,
उनकी रण- निति, परोक्ष -अपरोक्ष रूप से उनकी सहमति से ही कायम है ,धर्म ,जाति, वर्ग ,क्षेत्र ,हर वाद ......
भारत की आजादी से उनका कोई सरोकार नहीं था ,न है / उनका सरोकार शिर्फ़ अपनी आजादी से है जो उनेहे मिल चुकी है ,,,,,,
जन मानस को मिलना अभी बाकी है ,/
जो सपूत अपने- पराये की नहीं ,भारत और भारतीयता की चिंता में जिए और मरे , उनको भुला दिया ,कृतघ्नों ने अपनी नयी-2 परिभाषा में /,उलझा दिया ,दंभों ,पाखंडों में, विस्मृत कर दिया उनके वलिदानो को
जो राष्ट्र हित मरा ,मात्री- भूमि हेतु सर्वस्व न्योछावर कर दिया ,वह नगण्य हैं ,जो अंतर कलह में विवादों में मरा ,वह शहीद है ... /शायद यही है भारत के प्रारब्ध में
आपके लेखन से उत्साह मिला की --
"अभी कौम जिन्दा है ,उनका नूर है ,हमारी चाहत है
हुनरमंद हैं तामीर कर लेंगे भारत ,हौसला चाहिए "
शायद आपको मेरे शब्द अछे न लगें ,फिर भी मेरे ये जज्बात हैं ,देश और शहीदों के प्रति .....
जय हिंद !
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चाटुकारों की मेहरबानी है सब, इनका बस चलता तो राहुल को भी महात्मा घोषित कर देते अब तक :) स्वतंत्रता के लिए कुर्बानी देने वाले कुर्बानी दे गए, मलाई खाने वालों ने तब भी मलाई खाई और अब भी मलाई खा रहे है
ReplyDeleteप्रिय दिव्या जी !
ReplyDeleteआज मुझे गहरी निराशा हुयी यह देख कर की जब राष्ट्र हित से जुड़े संवेदशील मुद्दे,वो दृष्टान्त जिनकी देश को जरुरत है ,जिनसे सरोकार है ,वे तथ्य हैं जो जीवन में उतारे जाने हैं, उनपर कितने गंभीरता से सोचने वाले हैं लिखने वाले हैं, यह आपको प्राप्त टिप्पणियों से चलता है,
मैंने देखा है कम से कम १० टिप्पणियां तो आपको मिलती ही हैं / इस मुद्दे को हमारा तथा- कथित बुद्धिजीवी वर्ग कितनी गंभीरता से लिया है ,हैरत में डालता है ,क्या हो गया है ? हम कहाँ जा रहे हैं ,क्या खो रहे हैं ? व्यक्तिगत मुद्दों पर हम भारतीय हो जाने ढोंग करते हैं देश ,संस्कार अपनी क़ुरबानी पर .......
अफसोशनाक ! ,
नि: संदेह।
ReplyDelete,
ReplyDeleteउदयवीर जी ,
गिरती नैतिकता, सोयी अंतरात्मा, असंवेदनशीलता , बिक़े हुए ज़मीर, मरती इंसानियत और विलुप्त होते स्वाभिमान का नमूना सामने है .... अब बुद्धिजीवी तो होते हैं लेकिन उनमें भावनाएं शेष नहीं...मशीन बने जिए जा रहे हैं सभी...हैरानी तो मुझे भी होती है लेकिन...दर्द कभी कह लेती हूँ, दर्द कभी पी लेती हूँ...
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यदि मानना है तो भगत सिंह को अपना बापू माना जाए ताकि देश का पौरुष जीवित रह सके। अहिंसा (कायरता) के नाम पर बन बैठे बापुओं ने ही तो देश का पौरुष खा लिया।
ReplyDeleteमेरे बापू-भगत सिंह
वन्देमातरम्
जय भगत सिंह
ReplyDeleteजय चन्द्र शेखर आजाद
जय सुभाष चन्द्र बोष
जय शिवाजी,जय राणा प्रताप
जय भारत भूमि के सभी वीरो
सभी शहीदों की जय जय.
आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक
शुभकामनाएँ.
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
ReplyDeleteI take pleasure in, cause I found exactly what
ReplyDeleteI was looking for. You have ended my 4 day long hunt!
God Bless you man. Have a nice day. Bye
my web blog :: ChereWEurich