Saturday, April 28, 2012

स्त्री अस्मिता से खेलते ब्लॉगिंग के दलाल.

इण्डिया टुडे वाले सनक गए हैं और पत्रिका बेचने के लिए अश्लील चित्र इस्तेमाल कर रहे हैं तो ब्लोगर भी क्यों सनक रहे हैं ? अपने ब्लॉग की मार्केटिंग बढाने के लिए सनकी मुद्दों और चित्रों को चुनकर स्त्री अस्मिता के साथ खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं । आज के समय में यूँ ही फूहड़पन की बहार आई हुयी है, उसी में चार चाँद लगाते अश्लील चित्रों वाले आलेख। उस पर जी-हुजूरी करती अन्य बुद्धिजीवियों का बौद्धिक फूहड़पन अति खेदजनक है।

अपनी-अपनी सोच , अपना-अपना नजरिया कहकर पल्ला मत झाड़िए, विरोध कीजिये ऐसे फूहड़ आलेखों का। कला के नाम पर फूहड़पन और अश्लीलता को बढ़ावा मत दीजिये।

लेखक और पाठक तो बुद्धिजीवी वर्ग में आते हैं। कलम के उपासक अपनी जिम्मेदारी समझें। ये ब्लॉगिंग है, कोई VIP और AXE का विज्ञापन क्षेत्र नहीं , जहाँ भोडे चित्रों को दिखाकर , स्त्री की मर्यादाओं को भंग करते हुए और वर्जनाओं को तोड़ते हुए अपनी दूकान चलाई जाए।

Zeal

21 comments:

  1. bahut sahi kaha hai apne....sasti prasiddhi pane ki chal hai ye

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  2. तीखे तेवर... कुछ लोग कैसे भी प्रशंसा मिले पाना चाहते हैं... हम और आप कितनी ही गुहार लगायें की औरत को औरत ही रहने तो उसे प्रोडक्ट नहीं बनाओ.. दुकानदार नहीं मानने वाले...

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  3. कुछ ब्लॉग्स पर ऐसा होते देखा है. आज तक मैं समझ नहीं पाया कि इन फोटुओं से कुछ अतिरिक्त हिट्स मिल भी गए तो इसमें कौन-सी बड़ी उपलब्धि है. ऐसी फोटो परोस कर समाज की, ब्लॉग जगत की कोई क्या सेवा कर सकता है.

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  4. आज जब बाज़ारवाद हर जगह हावी है तो फ़िर ऐसे में साहित्य और समाज का भी इसकी चपेट में आना संभावित था । लेकिन सच कहा आपने कि यही समय जब इस पर तटस्थता छोड कर अपना दृष्टिकोण बयां करना जरूरी है ।

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  5. .

    सहमत हूं आपसे …
    विरोध तो है ऐसे फूहड़ आलेखों का !

    लेकिन अपने राम को तो जिस गांव जाना ही नहीं उसका रास्ता पूछने मे भी रुचि नहीं …

    क्यों कोई अश्लील चित्र खिंचाए …
    क्यों कोई देखने जाए …

    … और , न देखने वाले कौनसा देखते नहीं ?!
    … और न खिंचाने वाले/वालियां क्या वाकई श्लील हैं ही ?!

    मानने वाले स्वतः मानते हैं…
    मन मन की गति न्यारी न्यारी …
    अंतहीन सिलसिला है…

    लेखनी सक्रिय रहे … सार्थक लिखे बस …

    मंगलकामनाओं सहित…

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  6. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  7. अश्लीलता को विषय बनाने वाले अपनी विकृत सोच का ही परिचय देते हैं।

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  8. सही कह रही हैं आप? कुछ लोग बहुत अश्लील होते हैं। उम्र के साथ-साथ शरीर भी जवाब दे रहा है किन्तु रस्सी जल गयी मगर बल नहीं गया। मैंने भी एक ऐसी ही पोस्ट अभी देखी। फूहडपने की हद पार हो गयी है अब तो। किसी बात को सनसनीखेज़ बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। ब्लॉग पर इस प्रकार की सामग्री गलत है। अन्यथा ब्लॉग व पोर्न साइट्स में फर्क ही क्या रह जाएगा? ब्लॉग जगत की मर्यादा ऐसे ही चिन्दी ब्लॉगर भंग कर रहे हैं।

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  9. चार दिन की चांदनी होती है यह..आखिर में अच्छा साहित्य ही काम आता है

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  10. चार दिन की चांदनी होती है यह..आखिर में अच्छा साहित्य ही काम आता है

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  11. दिवस जी का कमेन्ट सोचनीय है .

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  12. सुन्दर पोस्ट...
    --आखिर किसी अन्य की पोस्ट या समाचार पत्र के आलेख ..फोटो आदि पर ..अपना आलेख लिखने की आवश्यकता ही क्या है ..जब तक उसमें कोई सामाजिक सरोकार उपलब्ध न हो...एवं आप उस सरोकार को प्रसार न देरहे हों...

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  13. दिव्या जी ये आज की पीढ़ी की विकृत मानसिकता और हर क्षेत्र में गला काटने को प्रतियोगिता का असर है जब देखा की फैशन और सो काल्ड माल के जरिए सीढ़ी मिल रही है तो कोई क्यूँ पीछे हटे इस प्रयास में लडकियां भी पीछे नहीं हैं क्यूँ अपना शारीरिक प्रदर्शन करती हुई फोटों खिंचवाती हैं विजय माल्या के कलेंडर में देखो शर्म आती है ये सब देख कर पर आपका कहना सही है कम से कम लेखको को तो अपनी कलम पाक साफ़ रखनी चाहिए

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  14. Ishwar ki sarvotkrishta rachna "NAARI" ka kalam ke pujariyon dwara nikrisht istemaal behad nindaniya hai.

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  15. बात खरी है, किन्तु है शत-प्रतिशत सही...

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  16. बात खरी है, किन्तु है शत-प्रतिशत सही...

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  17. आज जब बाज़ारवाद हर जगह हावी है.

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  18. बढिया सोच को सबके साथ साझा करने के लिये साधुवाद

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