उसकी पोस्ट पर एक लाईक
उनकी पर दो
उनकी पर तीन
उनकी पर पांच
और तुम्हारे पर एक भी नहीं ??
क्या समझूं मैं ? तुम बकवास लिखते हो ! एक भी लाईक नहीं है तुम्हारे आलेखों पर ! नहीं पढूंगी तुम्हारी पोस्टों को ! समय क्यों नष्ट करूँ ?
कभी तो सामाजिक लिखो,
देश की अव्यवस्था पर लिखो
घोटालों पर लिखो
प्रेम-श्रेम पर लिखो
आलोचना-विवाद कुछ तो लिखो
नारी न सही पुरुष सशक्तिकरण पर ही लिखो ......
क्या कहा , लिखते हो इन सभी विषयों पर ? .....फिर भी...??
पहले जाओ आकाओं से दोस्ती बढ़ाओं ! पांच नहीं तो कम से कम एक लाईक तो लाकर दिखाओ ! हर एक पर ना सही , किसी एक पर तो पाकर दिखाओ ! ऐरों गैरों को कुछ नहीं मिलता, सब कुछ रसूख वालों को ही मिलता है !
जाओ मेहनत करो.... मन लगाकर लिखो ...माँ-बाप का नाम रौशन करो...
तब समझूँगी तुम्हें भी लिखना आता है , अन्यथा तुम भी मेरी तरह ही बेसुरे समझे जाओगे !
सादर वन्दे एग्रीगेटर्स !
Zeal
आकाओं से दोस्ती, काकाओं का नाम |
ReplyDeleteबाँकी काकी ढूँढ़ के, पहुँचाना पैगाम |
पहुँचाना पैगाम, राम का नाम पुकारो |
जाओ ब्लॉगर धाम, चरण चुम्बन कर यारो |
पायेगा पच्चास, मगर बचना घावों से |
रविकर पाए पांच, कुटटियां आकाओं से |
प्रश्न: अंतिम पंक्ति में - कुटटियां के समान वजन वाले ५ शब्द बताएं -
और एक उपयुक्त चुन लें |
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
Jo gehra vyangya aapki baat me chhipa hai vah bahut prabhavshaali hai.
ReplyDeletesach kaha
ReplyDeleteइसे मेरी आवाज़ भी समझी जाए!
ReplyDeleteसही कहा..
ReplyDeleteसही कहा । आपका व्यंग धारदार है ।
ReplyDeleteलाईक के लिये लिखते लिखते,
ReplyDeleteउनके ही तरह हो जायेंगे,
पूछते हैं खुद से,
तब लिखकर क्या पायेंगे?
कटु सत्य! सामाजिक ताना बाना ही ऐसा हो गया है. सस्ते अखबारों और प्रायोजित चैनलों ने आमजन की सोच को कुंद कर दिया है.
ReplyDeleteव्यंग्य के माध्यम से अपनी बात कहना भी कला है , बधाई
ReplyDeletei agree with you ma'am
ReplyDeleteसादर वंदे एग्रीगेटर्स ने बात साफ कर दी. बढ़िया व्यंग :))
ReplyDeleteगज़ब का खरा लिखती हैं आप। यहाँ अच्छी खासी मठाधीशी भरी पड़ी है। सत्य की कद्र नहीं किसी को। एग्रीगेटर तो किसी महफ़िल की तरह काम करते हैं जहां केवल बचकानी तू-तू मैं-मैं होती रहती है। किसी एग्रीगेटर पर नजर दौडाओ तो लगता है मनोहर कहानियां पढ़ रहा हूँ।
ReplyDeleteसार्थक लेखन को महत्त्व देने का कान जितना एग्रीगेटर दे सकता है उतना कोई अकेला ब्लॉगर नहीं दे सकता। किन्तु एग्रीगेटर विफल है तो ऐसे में कमान ब्लॉगर को संभालनी पढ़ती है। मुझे गर्व है आप पर कि आप किसी भी अनियमितता को निष्पक्ष रूप से सामने रखती हैं।
आपका व्यंग एक औषधि की तरह कड़वा ज़रूर है किन्तु असरकारक है।
अच्छा है, बहुत अच्छा है...। आप भला क्यों पढ़ें उनके पोस्ट को, जिन्हें कद्र न हो आपके पोस्ट की...।
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDeleteबिल्कुल नहीं पढ़ना चाहिये
ReplyDeleteकमेंट और लाईक को
जरूर गिनना चाहिये
आदमी का फोटौ दिख
जाये अगर लगा हुआ
तुरंत आगे को बढ़ना चाहिये !
बढ़िया है ;)
ReplyDeleteजैसा तेरा नाम है,वैसा तेरा काम!
ReplyDeleteदिव्या तू लिखती रहे,यूँ ही ब्लॉग अविराम!
यूँ ही ब्लॉग अविराम,'राम'इक दिन रीझेगा!
यह सारा परिदृश्य,देख लेना छीजेगा!
कहें'क्रान्त'"TIT FOR TAT"जैसे को तैसा!
काँग्रेस,कोयला,करप्शन,सब इक जैसा!
#09811851477