Thursday, November 15, 2012

फेसबुक क्यों पसंद है ?





फेसबुक मुझे इसलिए पसंद है क्योंकि इस पर उन्माद के रोगियों को ब्लॉक करने की सुविधा है , और ब्लॉग मुझे इसलिए पसंद है क्योंकी इस पर उन्मादियों के कमेन्ट मॉडरेट करने की सुविधा है !

जय हिन्द !
वन्दे
मातरम् !

9 comments:

  1. वाह...!
    दोनों हाथों में लड़्डू हैं!

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  2. बिलकुल सही कहा आपने....जय हिंद

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  3. मुझे पसंद है........................ जय हिन्द !
    वन्दे मातरम् !

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  4. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति ..आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
    ...

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !

    मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

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  5. jai hind ...namste sada vatsale matrabhumi... Mujhe nhi lagta ki blog par in sabki jarurat mahsus hoti hogi.

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  6. कांग्रेसिओं के प्रिय अय्याश चचा जान नेहरु की गलतियों से आज भी जल रहा है कश्मीर |


    अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर कश्मीर में अध्यापन कर रहे शेख अब्दुल्ला को ऐसा समय अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने का अच्छा अवसर
    नजर आया। शेख अब्दुल्ला ने ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ नामक संस्था का गठन कर साम्प्रदायिकता की राजनीति करने लगे।

    अब्दुल्ला ने कश्मीर में हिन्दी भाषा की शिक्षा और गौहत्या पर प्रतिबंध जैसे कई आन्दोलन चलाकर मुस्लिम युवकों में अपनी पैठ बढ़ाई। कुछ समय बाद कांग्रेसिओं से नजदीकी बढ़ने पर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी का नाम ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ से बदलकर ‘नेशनल कांफ्रेंस’ कर दिया। फिर 1946 में शेख अब्दुल्ला ने महाराजा के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आन्दोलन चलाया।

    गांधी जी ने इसका समर्थन नहीं किया, फिर भी जवाहर लाल नेहरू ने गांधी की बात न मानते हुए इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए श्रीनगर जाने का कार्यक्रम बनाया। कश्मीर के महाराजा ने नेहरु की इस नीच हरकत से क्रोधित होकर चचा को कोहाला पुल पर बंदी बना लिया।

    नेहरू ने इसे अपने अपमान के रूप में लिया और इस अपमान को आजीवन याद रखा। और इसी अपमान का बदला लेने के लिए नेहरू पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर को आंतकवाद की आग में झोंक दिया |


    श्री सरदार पटेल कश्मीर के भारत में विलय के लिए लगातार प्रयत्न कर रहे थे। महाराजा भारत में विलय के लिए तैयार भी हो गए। उधर कबाइलियों के वेश में पाकिस्तानी सेना गिलगित, बाल्टिस्तान से बहुत अंदर पुंछ और उड़ी सेक्टर तक आ गईं।

    यह जानते ही आगबबूला हुए जिन्ना ने मौके की नजाकत का फायदा उठाते हुए कश्मीर के गांवों में पाकिस्तानी सैनिकों से कबाइलियों के वेश में 20 अक्टूबर 1947 से हमले प्रारम्भ करा दिए । 25 अक्टूबर को भारत के रियासती मंत्रालय के सचिव वी.पी. मेनन श्रीनगर पहुंचे। 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने अपने राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय कर दिया। विलय की सारी प्रक्रिया वैसे ही पूरी की गई थी जैसे देश की अन्य 529 रियासतों की पूरी हुई थी।


    महाराजा चाहते थे कि भारतीय सेना जल्द से जल्द श्रीनगर पहुंचे, लेकिन भारतीय सेना अगले दिन 27 अक्टूबर को पहुंचकर, पाकिस्तानियों को श्रीनगर में ईद मनाने से रोक दिया। श्रीनगर तो भारत के पास ही रहा, लेकिन कश्मीर का एक बड़ा भाग मीरपुर, मुजफ्फराबाद, बाल्टिस्तान आदि पर पाकिस्तान ने नेहरू की गलतियों के कारण कब्जा कर लिया |

    इसी कांग्रेसी अयाशी में डूबे रहने वाले नेहरु की वजह से आजतक कश्मीर विकट आग में झुलस रहा है,

    इसी चचा की वजह से घाटी में में लाखों घर बर्बाद हो गए, ना जाने कितने हजार बच्चे यतीम हो गए, और ना जाने कितने औरतें बेवा हो गई |

    और ये आज भी बदस्तूर जारी है |

    और यदि इसी तरह कांग्रेस देश पर राज करती रही, तो जल्दी ही देश कई टुकड़ों में कश्मीर की तरह सिसकियाँ ले रहा होगा |

    जब शायद हमारी आने वाली नस्लें हमें बैठ कर कोस रही होंगी |

    .

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