Wednesday, November 28, 2012

भारतीय ज्ञान और सम्पदा की चोरी






Photo: आज जिन वैज्ञानिक शोधों पर अंग्रेजों (न्यूटन, मेंडलीफ, डार्विन) का टैग लगा है, वो सबकुछ तो हमारे भारतीय वैज्ञानिक कबका ढूंढकर उस पर ग्रन्थ लिख गए ! लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने हमारे विश्वविद्यालयों (जैसे-नालंदा आदि) को नष्ट कर दिया और पांडुलिपियों को जला दिया ताकि किसी भी भारतीय विद्वान् का नाम न हो सके ! अरे ये लोग समझेंगे हनारे ज्ञानी -ध्यानी और विद्वान् ऋषि मुनियों और वैज्ञानिकों को (जैसे आर्यभट्ट , पतंजलि, कणाद,  सी वी रमन  आदि)  ! नीचे तालिका में देखिये जो ऋषि कणाद द्वारा पूर्व में वर्णित किया जा चुका  है , उसे कितनी आसानी से न्यूटन की खोज कह दिया गया ! और भारतीय सिलेबस/ किताबों में भी न्यूटन का नाम मिलेगा आर्यभट्ट और कणाद आदि विद्वान् वैज्ञानिकों का नहीं ! गुलामी की इससे बड़ी मिसाल और क्या होगी !...........

 आज जिन वैज्ञानिक शोधों पर अंग्रेजों (न्यूटन, मेंडलीफ, डार्विन) का टैग लगा है, वो सबकुछ तो हमारे भारतीय वैज्ञानिक कबका ढूंढकर उस पर ग्रन्थ लिख गए ! लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने हमारे विश्वविद्यालयों (जैसे-नालंदा आदि) को  नष्ट कर दिया और पांडुलिपियों को जला दिया ताकि किसी भी भारतीय विद्वान् का नाम न हो सके ! अरे ये लोग क्या समझेंगे हमारे  ज्ञानी -ध्यानी और विद्वान् ऋषि मुनियों और वैज्ञानिकों को (जैसे आर्यभट्ट , पतंजलि, कणाद, सी वी रमन आदि) ! ऊपर  तालिका में देखिये जो ऋषि कणाद द्वारा पूर्व में वर्णित किया जा चुका है , उसे कितनी आसानी से न्यूटन की खोज कह दिया गया ! और भारतीय सिलेबस/ किताबों में भी न्यूटन का नाम मिलेगा आर्यभट्ट और कणाद आदि विद्वान् वैज्ञानिकों का नहीं ! गुलामी की इससे बड़ी मिसाल और क्या होगी !

Zeal

22 comments:

  1. कहती है कटु-सत्य नित, बुरा भला बिलगाय |
    ऐसी ही यह डाक्टर, बनता लौह सुभाय |
    बनता लौह सुभाय, चलाये बरछी भाला |
    देती झट से फाड़, कलेजा काटे काला |
    करे तार्किक बात, विषय की आत्मा गहती |
    देती हटकु परोस, बात दिल से है कहती ||

    ReplyDelete
  2. राजाओं का लिखा इतिहास प्रजा को पढ़ना पड़ता है।

    ReplyDelete
  3. गलते हिन्दुस्तानियों की है, क्योंकि ये स्वार्थी लोग बाहर वालों के तलवे चाटने में ज्यादा तसल्ली महसूस करते है ! इस देश के टटपूंजे तथाकथित मार्क्स माओ भक्त तो मंचों पर खुले आम इन सब बैटन की खिल्ली उड़ने में अपनी शान समझते है !

    ReplyDelete
  4. Aapki baat sahi hai. Maine bhi ek baar jab 'kwality cicle' ko Japani avdharna kah kar padhaaya ja raha tha, tab yah sawaal uthaya tha ki isi reeti se to Ram ne Seeta ki khoj kuchh pramukh vaanron se karwai thee.

    ReplyDelete
  5. भारत भूषन जी , जैसा की आपने स्वयं निवेदन किया की आपकी टिपण्णी प्रकाशित ना की जाए , इसलिए नहीं की ! लेकिन आपकी टिपण्णी का उद्देश्य समझ नहीं आया ! क्या आप ये कहना चाहते हैं की अंग्रेजों की कोई गलती नहीं है ? उन्होंने हिन्दुस्तान की धरोहर को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया ? मैकाले की शातिर चालों से भारत का कोई नुक्सान नहीं हुआ ? हमारे भारतीय विद्वानों की अभूतपूर्व गणितीय खोजों का श्रेय अंग्रेजों को दे दिया जाए ? सारा दोष भारतीयों का ही है , अंग्रेजों का कुछ भी नहीं? आपकी टिपण्णी पढ़कर घनघोर आश्चर्य हुआ !

    मेरी पोस्टों का उद्देश्य लोगों में अपनी संस्कृति , अपनी धरोहर , अपने ज्ञानविज्ञान के प्रति चेतना पैदा करना होता है ! हमारा पश्चिम की और अंधी-दौड़ कितनी आत्मघाती है ये बताना चाहती हूँ भारत की जनता को ! स्वाभिमान पैदा करना चाहती हूँ भारतीयों में ! चाहती हूँ की वे अपने देश पर अपनी धरोहर पर और अपने वैज्ञानिकों पर गर्व कर सकें !

    आप एक बार अपनी टिपण्णी पर पुनर्विचार अवश्य करियेगा की आपकी टिपण्णी का उद्देश्य क्या था !

    ReplyDelete
  6. By Lalit Mohan Sharma --

    U r right , all our informative and educative books should be amended ,at least,to the extent that they should quote the name of our Rishees as the initial inventors in the respective discoveries so that our generations feel proud and get inspired to do even more advanced inventions !

    ReplyDelete
  7. By Ashok Kumar Verma ---यह जग ज़ाहिर है हमारे महत्वपूर्ण ग्रन्थों और पांडुलिपियो को ले गये और नष्ट भी कर दिया गया ।
    आज हमारे ज्योतिष विज्ञान सारे ग्रहों नक्षत्र के अधार पर है ।
    भौतिक विज्ञान से उपर अध्यात्मिक विज्ञान रहाॅ है भौतिकता के अंत से हि अध्यात्मिक विज्ञान का उदय हुवा था और अध्यात्म से हि मनुष्य जाती का कल्याण है आज भी साँतो वेद पुराण जैसे सारे ग्रन्थ है पर समझने और समझ का फेर है ।
    आज पूरा संसार वापस भौतिक विज्ञान के जाल में है जिसके अंत के उदय में हि अध्यात्म है और मनुष्य का वही कल्याण है ।

    ReplyDelete
  8. By Ramesh Vaghela--- They are the biggest thief of the world thats why they are organising seminar and conference of world scientists and doctors on new research. Theory of many scientists have been stolen from airports

    ReplyDelete
  9. By Ashutosh Tewari--- दिव्या अपन सब यह जानते हैं की भारत के पास क्या क्या था और है . अब समय विहार्निया है की इन सब को बताया तो जाए पर साथ साथ विकल्प भी दुन्धा जाये। विकल्प यह है की जब तक राष्ट्रवादी भारत की सरकार नहीं बनती ये लुटेरे और हत्यारे इस गंदे और बकवास संविधान की चाय में हम सब को न तो मरने देंगे न जीने देंगे कितना बेवकूफी का एक नया चाल चली है की घरों को पैसा पहुचेगा। नरेगा के कारण आज काम करने वाले ही नहीं मिल रहे हैं। जब उनको घर बेठे 3000 माहवार मिलने लगेगा तो खेती फेक्टरिया व्यापार सब बंद हो जायेंगे। उल्लू के पाठों का राज का खात्मा अति आव्शय है

    ReplyDelete
  10. By Chand K Sharma ---You are absolutely right. The credit for discovery goes to the early men who lived in forests, and subsequently to our ancestors, who compiled the knowledge gathered by forest-dwellers, now called ‘Vanvasi’. The process of gaining knowledge was originally initiated by Vanvasies. The same is being carried forward today by scientists and researchers all over the world.

    ReplyDelete
  11. By Rajesh Sahay-- Esliye to Research kahte hai....Search to pahle hi hamare Rishi, Maharshi kab ka kar chuke hai....

    ReplyDelete
  12. By Gyan Shrivastava--Divya Hamare purvajon ne bahut scientific baten likhi . Ramayan me puspak viman ka zikra hai wahi aj aeroplane hogay. Abhi bhi kuch granth kahi na kahi honge jisme kafi cheze likhi hongi

    ReplyDelete
  13. सही तथ्य है।
    सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान...गणित, दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, शल्य चिकित्सा, औषधि शास्त्र,भौतिकी, रसायन, युद्धविज्ञान आदि-आदि... की नींव भारत में ही रखी गई जिस पर यूरोपियों ने महल खड़े किए।

    ReplyDelete
  14. कुछ दिन पहले एक दैनिक-पत्र में पढा था कि अमेरिकन वैज्ञानिकों ने शरीर ,आत्मा और ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ हासिल करली हैं । कितनी विचित्र बात है कि जो ज्ञान हमारे वेद और शास्त्रों में चिर पुरातन है उसे समझने का दावा अब विदेशी लोग आधिकारिक रूप से कर रहे हैं । कारण वही कि हम स्वयं अपनी क्षमताओं पर भरोसा नही करते ।

    ReplyDelete
  15. अनजान बनते या सचमुच अनजान लोगों को जाग्रत करती पोस्ट बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  16. आज जिस भी चीज़ को विकास कहा जाता है, वह सब हमारे भारत में वर्षों पहले पैदा हो चूका था। यहाँ तक कि हम भारतीय वर्षों से यही पढ़ते आ रहे हैं कि हवाई जहाज का अविष्कार १७ जनवरी १९०३ में राईट बंधुओं ने किया, जबकि उससे आठ साल पहले १८९५ में शिवकर बापूजी तलपडे मुंबई के चौपाटी के समुंद्री तट पर विमान उड़ा चुके थे। उनसे इसकी प्रेरणा पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि इसकी प्रेरणा उन्होंने महर्षि भारद्वाज के विमान शास्त्र से ली। मतलब कई हज़ारों साल पहले हमने विमान उड़ा लिया था।
    आज जिस पाइथोगोरस थ्योरम को हम पढ़ रहे हैं वह महर्षि बोधायन हजारों साल पहले हमे दे चुके हैं जो बोधायन प्रमेय के नाम से हमारे गुरुकुलों में पढ़ाई जाती थी। किन्तु अंग्रेज़ गए और अपनी मांस संतानों को छोड़ गए। जो हमे पाइथोगोरस की महानता रटा रही है।
    आज जो भी है, उसमे ऐसा कुछ भी नहीं है जो भारतीय इतिहास में रहा हो।

    ReplyDelete
  17. 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' को समझने के लिए इस पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए... समीक्षा मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं

    ReplyDelete
  18. सच को मानता कौन है यही तो विडंबना है |उम्दा लेख |
    आशा

    ReplyDelete
  19. सही है, पहले मुगलोँ फिर अँग्रेजोँ और यूरोपियनोँ ने तो पूरे विश्व मेँ सर्वनाश और लूटपाट ही की है । भारत के ज्ञान और विज्ञान को चुराकर अपना नाम दिया । हर भारतवासी को इसे समझना चाहिए ।
    एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई ।

    ReplyDelete
  20. हिन्दी में कुछ शब्द किवदन्ती, मिथक, जनश्रुति, आस्था आदि हैं। जो हमारे तथाकथित विद्वान लेखकों द्वारा किसी पौराणिक या ऐतिहासिक महत्व की घटना के विवरण में लिखा जाता है। जबकि वास्तविक रूप में वे विश्वास करने योग्य होती है। ऐसा क्यों?

    ReplyDelete