ये गणतंत्री मूषक (चूहे )प्रजातंत्र को पहले ही कुतर चुके हैं .ऐसा न करने पर इनके दांत खुट्टल हो जाते हैं जनता को यह वैज्ञानिक तथ्य भी नजर अंदाज़ नहीं करना चाहिए .
नाभिषेको न संस्कारो, सिंहस्य क्रियतेमृगे! विक्रमार्जित राज्यस्य, स्वमेव मृगेन्द्रता !!__________चिंता मत कीजिए जिस तरह सिंह को अभिषेक की जरुरत नहीं उसी तरह यह सिंह भी आसीन होगा. चिंतन जरी रखें!!!!
बिलकुल सच !!
ReplyDeleteनिःशब्द
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा..
ReplyDeleteचूहे चाचा चतुर हैं, भ्रमित भतीजा भक्त ।
ReplyDeleteकुतर कुतर के तंत्र को, कर जनतंत्र विभक्त ।
कर जनतंत्र विभक्त, रोटियां रहे सेकते ।
सान सान के रक्त, शान से उधर फेंकते ।
किन्तु निडर यह शेर, नहीं जनता को दूहे ।
सुदृढ़ करे जहाज, भागते देखो चूहे ।
बिलकुल सच !!
ReplyDeleteआप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 1 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
ReplyDeleteआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
ये गणतंत्री मूषक (चूहे )प्रजातंत्र को पहले ही कुतर चुके हैं .ऐसा न करने पर इनके दांत खुट्टल हो जाते हैं जनता को यह वैज्ञानिक तथ्य भी नजर अंदाज़ नहीं करना चाहिए .
ReplyDeleteनाभिषेको न संस्कारो, सिंहस्य क्रियतेमृगे! विक्रमार्जित राज्यस्य, स्वमेव मृगेन्द्रता !!__________चिंता मत कीजिए जिस तरह सिंह को अभिषेक की जरुरत नहीं उसी तरह यह सिंह भी आसीन होगा. चिंतन जरी रखें!!!!
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