Thursday, December 16, 2010

इंसानियत फिर से शर्मसार हुई -- पत्नी के जिस्म के ७२ टुकड़े किये

राजेश गुलाटी एक सोफ्टवेयर इन्जिनीर हैजो एक कलह-क्लेश वाले परिवार में बड़ा हुआसारी उम्र माँ बाप को लड़ते देखाउसके भाई बहन का परिवार भी टूटा-बिखरा हुआ हैइस सभी का असर राजेश के व्यक्तित्व में देखने को मिला१९९२ में उसका प्रेम हुआ अनुपमा से१९९९ में उन्होंने विवाह कियादोनों ही अमेरिका में रह रहे थेआपस में अच्छी नहीं निभती थी , फिर भी जिंदगी चल रही थी२००४ और २००६ में उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुई एक सुन्दर परिवार , धन दौलत शोहरत , फिर भी कुछ अशांति थी परिवार में

कलह से परेशान होकर राजेश ने अनुपमा और बच्चों को भारत लाकर छोड़ दिया और स्वयं आराम से अमेरिका में रहने लगायहाँ पुनः उसका प्रेम प्रसंग चला एक तलाकशुदा महिला के साथ , जिसका आठ साल का बेटा थाअपने इस प्रेम प्रसंग के बारे में उसने घरवालों को नहीं बताया और उस महिला के साथ रहने लगाउस बच्चे को ये रिश्ता मंजूर नहीं था फलतः राजेश उस महिला से अलग हो गया

वापस भारत गया जहाँ अनुपमा अपने दो बच्चों के साथ शांतिपूर्वक अपने बड़े भाई के घर रह रही थीउसे अपनी जिंदगी और राजेश से कोई शिकायत नहीं थीराजेश ने फिर से अनुपमा और बच्चों को लिया और देहरादून में नया घर लेकर उसमें रहने लगा

उसके शैतानी दिमाग में मास्टर-माइंड योजना चल रही थीवो पत्नी को मारकर अपने दोनों बच्चों के साथ अमेरिका भाग जाना चाहता थाइसके लिए उसने इन्टरनेट से ढेरों जानकारियाँ हासिल कींसाइको किलर की मूवी डाउनलोड की तथा इस प्रकार से शाव को कैसे प्रेसेर्व रखना है , ठिकाने लगाना है , तथा सबूतों को मिटाना आदि उसने जानकारी हासिल की

उसने अपनी पत्नी अनुपमा के मुह में रूई ठूस दी था गला दबाकर , दम घोंटकर उसकी हत्या कर दीफिर आरी से काटकर पत्नी के जिस्म के ७२ टुकड़े कर दिएफिर रेफ्रिजरेटर में उसके टुकड़ों के पैकट बनाकर सुरक्षित कर दियाहर काम को अंजाम बहुत सफाई से दियाकिसी को खबर भी नहीं हुईप्रति दिन वो जिस्म के टुकड़ों को मसूरी के जंगलों में फेंक आता था, जहाँ किसी को शक भी नहीं हो सकता था

लेकिन ४८ दिन ही मिले उसे ये कुकर्म का सिलसिला जारी रखने के लिएराज खुल गयाबच्चों के साथ अमेरिका भागने के ख्वाब में वो आज हवालात में हैघर में उसने suitcases तैयार रखे थे लेकिन बच्चों का पासपोर्ट ना मिलने के कारण , वो जा नहीं सका और जेल पहुँच गया

उसने इन ४८ दिनों में अपनी पत्नी के email ID से उसके परिवार वालों को तथा मित्रों को मेल किये ताकि किसी को शक होलेकिन यहीं उससे भूल हो गयीवो अपनी पत्नी को लैपटॉप छूने भी नहीं देता था फिर मेल कैसे ? मेल का मजमून था - " भैया मैं यहाँ राजेश के साथ खुश हूँ , आप चिंता करें " ।

अनुपमा के भाई ने उसे चोरी से एक मोबाईल पहुँचाया था जो राजेश के हाथ लग गया , उसके शातिर दिमाग ने उसका भी उपयोग करने की सोची - एक SMS किया - " भैया , मेरे और राजेश के बीच सब ठीक ठाक है अब , कृपया आप हमारी जिंदगी में दखलंदाजी करें " ।

बस यहीं चूक हो गयी राजेश गुलाटी सेऐसा SMS पाकर अनुपमा के घरवालों का शक बढ़ गया और फिर राजेश पहुँच गया जेल में

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इस घटना के बाद मेरे मन में बहुत से विचार आये जिसे यहाँ लिख रही हूँ--

- राजेश एक शिक्षित युवक हैशिक्षा में कहाँ कमी रह गयी ?
- यदि पत्नी के साथ उसकी बिलकुल नहीं निभ सकती थी तो उसने तलाक क्यूँ नहीं दियाइतना possessive होना तो कोई अच्छी बात नहीं
- क्या नफरत की हदें इतनी बड़ी होती हैं की कोई अपनी पत्नी की जिस्म को आरी से काट सकता है ?
- क्या लड़की के माँ बाप इतने लाचार होते हैं ? क्या उन्हें पूर्वनुभास नहीं था की उनकी बेटी के साथ दुर्घटना हो सकती है ?
- क्या शादी के बाद लड़की के माँ बाप अपनी लड़की को इतना पराया समझ लेते हैं की उस पर हो रही प्रताड़ना को नज़र अंदाज़ करते रहते हैंक्यूँ नहीं हिम्मत के साथ अपनी लड़की की जीवन रक्षा के लिए उसे तलाक दिलवाया
- क्या समाज में उनकी नाक कट जायेगी इसलिए लड़की को उस दरिन्दे दामाद के हाथ पुनः सौंप दिया ?
- पढ़ी लिखी लडकियां भी इतना मजबूर क्यूँ हैंअपने माँ ,बाप , भाई और पति की इज्ज़त रखने लिए इतने जुल्म सहती हैंऔर बलि चढ़ जाति हैं असमय
क्या अनुपमा जैसी स्त्रियों और निरीह पशुओं में कोई अंतर है ?
क्या राजेश गुलाटी और हिंसक पशु में कोई अंतर है ?
१० क्या क़त्ल के जुर्म में राजेश के जिस्म के १४४ टुकड़े होने चाहिए ?

एक हैवान पिता को , दो मासूम बच्चों की जिंदगी बर्बाद करने की क्या सजा मिलनी चाहिए ?


57 comments:

  1. माफ़ कीजिये दिव्या जी...
    लेकिन राजेश गुलाटी जैसे लोग इंसान कहलाने का हक़ नहीं रखते हैं..लानत है ऐसे लोगों पर....
    और उसके साथ वही करना चाहिए जो उसने किया लेकिन उसे उस दर्द का एहसास दिलाकर....
    अजी हम तो कहते हैं उसे जिंदा रखकर उसके टुकड़े किये जायें....
    (अगर वो मानसिक तौर से विक्षिप्त नहीं है तो )....

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  2. फांसी से ज्यादा तो कुछ हो ही नही सकता

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  3. I am shocked and stunned.
    Reminds me about the Noida Murders.
    Wasn't his name Kohli?

    These are exceptions and one in a million.
    They deserve the most extreme forms of punishment.

    Kohli was worse. I heard he used to eat his victims.
    I wonder what is it in the genes that make a man behave like this.

    Such people must simply be exterminated.
    But our legal system is slow and cumbersome.
    Lawyers will try to save him or at least delay the inevitable for hefty monetary considerations.
    Let us see what happens.
    Thanks for turning the spotlight on this gruesome murder.
    Regards
    GV

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  4. ओह खौफनाक दरिंदगी वाली घटना सुनकर रोंगटे खड़े हो गए . पढ़े लिखे सभी समाज में ऐसी दरिंदगी वाला कृत्य समाज के मुझ पर कालिख के सामान है . इस्न्मे अनुपमा की कोई गलती नहीं की वो उसके झांसे में आकर खुशनुमा जिंदगी का ख्वाब देख रही थी और उसके इसी विश्वास का क़त्ल हो गया उसके शरीर के साथ ही . ऐसे दरिंदो को सारे आम फांसी देने का कानून होना चहिये .

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  5. A sad thing. The guy shall face hell till the law decides his fate. Here the Indian legal system is a boon, the mental torture the man will undergo for another 20 years before he sees the gallows.
    But the question worth asking is why did this happen? Are we hypocrites? Why could he not just give a divorce and move ahead. Why do we think women as so weak? Also this puts a question of what is the object of marrying ? Why did he need to commit a crime? Are unhappy marriages the bane of our society? Is arranged marriage the reason for this? Or is marriage an outdated thing all together? Is the western culture better? .. this does raise many more questions.

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  6. एक हत्यारे को केवल मौत की सजा देनी चाहिए तब लोगों को पता चलेगा की नाहक किसी का क़त्ल करना क्या होता है

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  7. ये टिप्पणियों की संख्या इतनी कम क्यूँ है आज....???? क्या इस दुखद मसले पर किसी के पास कुछ नहीं है बोलने के लिए?????

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  8. बहुत ही दर्दनाक हादसा है.मैंने अखबार में पढ़ा था. इंसानियत की बात तो दूर लोग अब दरिंदगी पर उतर आये हैं.
    दरअसल दो चीज़े इसके लिए ज़िम्मेदार लगती हैं.
    १-पैसे का बढ़ता महत्व यानी भौतिकवाद
    २-भारतीय सभ्यता का तार तार होना.
    ख़ाली ऊंची ऊंची शिक्षा बच्चों को दिलाने से कुछ नहीं होगा बल्कि शिक्षा का दुरुपयोग होगा जो सामने दिख रहा है.

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    मेरी नयी लिखी पोस्ट्स -google, buzz और किसी भी follower के ब्लॉग पर अपडेट नहीं हो रही है। पुरानी पोस्ट ही दिख रही है। यदि कोई मदद कर सकता है इस सन्दर्भ में तो आभारी रहूंगी।

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  10. divya ji ek baar EDIT POST mein jakar ise dobara publish karein......

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  11. इस तरह के इंसान, इंसान नहीं ,हैवान होते हैं। बचपन से वह अपने मां-बाप को लड़ते देखते हुए बड़ा हुआ। बचपन की इसी ग्रंथि ने उसे विक्षिप्त और अपराधी बना दिया। उसकी शिक्षा में दोष नहीं बल्कि उसका परिवेश दोषपूर्ण रहा।

    यह चिंता की बात है कि और अधिक भौतिक सुखों की तलाश में आज मनुष्य राक्षसों जैसा कृत्य कर रहा है।

    ऐसे नृशंस अपराधी को तो मृत्युदंड दिया जाना चाहिए।

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  12. निस्सन्देह ,ऐसी नृशंसता सामान्य मानसिकता की उपज नही है फिर भी सुविधाभोगी और शिक्षा-विहीन भौतिक समृद्धि की प्रतिस्पर्धा ने पश्चिमी जीवन-दर्शन के प्रभाव ने लोगों की संवेदना को मृतप्रायः बना दिया है । रिश्तों के बीच के स्नेह,उदारता व सहिष्णुता को मिटा दिया है । ऐसी घटनाएं घृणा, अविश्वास और भय पैदा करतीं है । इनका सही प्रतिकार होना चाहिये ।यों तो बन्द कमरों में असंख्य महिलाएं अव्यक्त यातनाएं सह रहीं हैं पर यह घटना तो क्रूरता की सीमाओं को पार कर गई ।

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  13. डॉ दिव्या ! आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना, मानवता को शर्मशार करने वाले वेहशी आदमी कि कथा , चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया

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    Shekhar ji,
    I tried. It didn't work. Thanks for the concern.

    Dr Nutan-niti,
    Many thanks to you.

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  15. उफ़ ..हैवानियत ....पशुता न न और भी इससे ऊपर समाचारों में पढ़ा था परन्तु इतना ह्रदय विदारक ........

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  16. mere khayal se google ne 72 ghanto ke liye aapke blog ko review mein daala hai..kripya abhi aur koi post prakashit na karein.....

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  17. have u got any email frm google or blogger...kindly check.....

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  18. देहरादून की घटना ने एक बार फिर मानवता को शर्मसार किया है ,धन -दौलत इज्जत-शौहरत सब कुछ होते हुए भी यदि ऐसी घटनाये होती हैं तो जाहिर है यह एक मानसिक विकृति ही कहलाएगी, मै तो कहता हूँ ऐसे लोगों के लिए मृत्यु दंड भी कोई मायने नहीं रखता है , मुझे नहीं लगता है की सिर्फ एक राजेश गुलाटी को फांसी पर चढ़ा देने से ऐसी घटनाओं की पुनरावर्ती पर रोक लगाई जा सकती है ,बल्कि ऐसी घटनाये दुबारा ना ही इसके लिए आवश्यक है इसके मूलभूत कारणों की पहिचान की जाय और उन्हें ख़त्म किया जाय ...

    सही कहा आपने की आपकी यह पोस्ट किसी भी अनुसरण कर्ता के डेश बोर्ड पर नहीं दिखाई दे रही है , मुझे लगता है एक इनकम्प्लीट प्रोसेस के तहत आपकी पोस्ट पब्लिश हुई है फिलहाल इसका एक ही उपाय है की edit box में जाकर इसे copy करें और एक new post के रूप मे pest कर इसे दुबारा publish करें हाँ previous पोस्ट को आप डिलीट कर सकते हैं.
    टिप्पणियों का क्या होगा ? कॉपी & पेस्ट , कभी-कभी ऐसा भी चलता है
    thanks ........

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  19. aise log insaan kahalane yogya nahi hai! shaitaan bhi aise kritya karne se pahle sochta hoga!
    aapke prashn prasangik hain... aaj bhi hamare samaj mein padhe-likhe hone ke babjood maa-baap ka aise gharon mein ladki kee shadi kar dena aur padhi-likhi ladki hone ke baad bhi sahajta se aise darindon kee darandigi kee shikar hona, hamari vywastha mein kahin bahut badi kami kee or ingit karta hai.....

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  20. is ghatna ne to hum sabke hi hosh uda rakhen hai .rajesh ko khookhar sheron ke pijren me daal dena chahiye .vo bhi dekhe ki uske jaise khookhar janvaron me hi hote hai insaanon me nahi .

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  21. आदरणीय डा.दिव्या जी,
    आज आपका पोस्ट पढ़कर समाज की स्थिति पर गहरा दुःख हुआ ! मानवता जैसे ख़त्म हो चुकी है !
    शादी के बाद लड़की को अपने विश्वास का मन मंदिर जिस व्यक्ति को समर्पित कर देने को कहा जाता है अगर वही उसके विश्वास का खून इस तरह करता है तो इससे गिरी हुई घिनौनी बात कुछ हो ही नहीं सकती !
    हमने बहुत उन्नति की है मगर अन्दर के इंसान को मार कर !
    लगता है हम अपनी जड़ों से टूट कर बहुत दूर जा चुके हैं ,पता नहीं लोगों को क्या चाहिए !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  22. ऐसे नृशंस अपराधी को तो मृत्युदंड दिया जाना चाहिए।

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  23. yahi sawaal to mere andar bhi chalta hai, jab nibha nahi sakte the to chhodna behtar hai, lekin jaan lena ??

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  24. अखबारों में खबर देखा था, दहला देने वाली पाशविकता.

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  25. आखिरी पंक्ति में ही इलाज छुपा है. मानसिक विकार कभी भी उत्पन्न हो सकते हैं. मां-बाप भी ऐसा कभी नहीं चाहते और न ही उस लड़की ने चाहा होगा. लेकिन शैतानी फितरत का क्या भरोसा. सजा ही विकल्प है..

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  26. उफ़्फ़!
    ऐसे दरिंदो को धरती पर पनाह क्यों मिलती है?
    क्या कहूं, अभी तो माथा घूम रहा है, आपकी शैली और घटना के बारे में पढकर।
    उस पर से आज के अखबार में पढा कि महिला को इसलिए नंगा घुमाया गया क्यों कि वह अपने प्रेमी के साथ गांव वालों द्वारा सहेली के घर में पकड़ ली गई और ग्रामीणों द्वारा २५ हजार का जुर्माना नहीं भरने पर उसे छड़ी से पीटा जा रहा था, तो सहेली ने इसका प्रतिकार किया और दण्ड स्वरूप उसे निर्वस्त्र कर सारे गांव में घुमाया गया।

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  27. जी बचपन से नाकारा सोच व्यक्ति को अपराधी बनाती है

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  28. नृशंस हत्या कांड ....टी० वी० पर सब दिखाया गया ..लगा ही नहीं कि राजेश को कोई अफ़सोस या शर्म है ...जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है ...

    फाँसी से भी कोई और बड़ी सजा हो तो वो मिलनी चाहिए ..

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  29. शायद इतना तो किसी जानवर से भी नही हो सकता, उनमे भी प्यार की भावना होती है , शायद हमारे देश का कानून इतना कठोर नही कि इन जैसे लोगो को वो सजा दे सके जो वास्तव में उनको मिलनी चाहिये , फासी की सजा तो इन जैसो के लिये बहुत बहुत कम होगी ।
    इन जैसो क तो हर रोज एक टुकडा करना चाहिये । और मीडिया को इन जैसो को दी हुयी सजा को मुख्य पेज पर लाना चाहिये , जिससे लोग सबक लें

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  30. Pranaam Zeal !
    Gruesome indeed...I do not know what drives these people into madness. Surely, there would have been signs of the person's acts that finally culminated in the kill. Why wasn't it noticed or ignored? I think people should become more courageous when they begin to notice fishy things so that such acts could be prevented in time. No human can forgive such actions. The killer would have thought atleast he will get free food and can live peacefully behind bars for a long time, since he will not be executed by the prevailing justice system. Who do we blame?

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  31. anupama ke bacchhoo ka kiya kasur hai ---
    ki maa aur baap dono hi ab saath nahi hai.
    iski bharpai kaun karega ---

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  32. मेरे ख्याल मे इसे मोत की सजा दे कर इस पर उपकार ही होगा... बाल्कि इसे एक काल कोठरी मे अकेले को डाल दिया जाये जहां इसे कोई भी ना मिल पाये, ओर यह जिन्दगी तो क्या मोत को भी तरसे ओर उस कोठरी मे अपने कर्मो को याद कर कर के तिल तिल मरे,व्हशी ही कहेगे इसे.अगर नही बनती थी तो तलाक ले लेता, इतना वहसी पना कर के कितनो की जिन्दगी बर्वाद की इस ने.....

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  33. इस कृत्य की सजा तो अवश्य ही मिलनी चाहिए, ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें पाशविक प्रवृति मानवीयता पर भारी हो जाती है...शायद ऐसे व्यक्तियों के लिए खाड़ी राष्ट्रों का कानून अपनाना चाहिए....

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    १- ... शिक्षा में कहाँ कमी रह गयी ?
    @ यह शिक्षा का ओवर फ्लो है. कमी नहीं. इसलिये जो भी शिक्षा ली जाये वह नैतिकता के आवरण में हो तो बेहतर परिणाम देगी.

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    २- यदि पत्नी के साथ उसकी बिलकुल नहीं निभ सकती थी तो उसने तलाक क्यूँ नहीं दिया। इतना possessive होना तो कोई अच्छी बात नही है।
    @ Possessive होना एक प्रकार का ओवर फ्लो ही तो है. यह एक उबाल है जो क्रूरतम महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाले समय-विशेष की प्रतीक्षा करता है.

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    ३- क्या नफरत की हदें इतनी बड़ी होती हैं की कोई अपनी पत्नी की जिस्म को आरी से काट सकता है ?
    @ ऐसे जघन्य कृत्यों की परिणति में भावनाओं को हथियार बनाया जाता है. जिसमें संवेदनाएँ सूख जाती हैं. जब व्यक्ति के समस्त दुष्कर्म छिपे रहते हैं और किसी एक नजदीकी के सम्मुख प्रकट रहते हैं तब वह उसका कुछ समय के लिये विश्वास जीतकर उसे ही समाप्त कर देता है.

    लगता है कि राजेश नामक हत्यारे का इसके आगे वाला दुष्कर्म होना अभी बाक़ी था. पत्नी की क्रूरतम ह्त्या का अगला पड़ाव .... क्या होता? शायद इसकी जाँच अभी हो !

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    ४- क्या लड़की के माँ बाप इतने लाचार होते हैं? क्या उन्हें पूर्वाभास नहीं था की उनकी बेटी के साथ दुर्घटना हो सकती है ?
    @ लाचार नहीं होते. वे कुछ दायित्व निभाकर चाहते हैं कि विवाह के बाद उनके पुत्र और पुत्रियाँ दी हुई शिक्षा द्वारा अपने अनुकूल जीवन जीने योग्य सहज वातावरण बनाएँ ....... पूर्वाभास लगाने के आधार व्यक्ति की समझ के ऊपर हैं. कभी-कभी ग़लत भी लगा लिये जाते हैं अच्छे-खासे लोगों के द्वारा भी.

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    ६- क्या समाज में उनकी नाक कट जायेगी इसलिए लड़की को उस दरिन्दे दामाद के हाथ पुनःसौंप दिया ?
    @ दरिन्दे का रूप तो उन्हें बाद में नज़र आया. जब यह दुष्कांड हो गया. उससे पहले तो वे यही सोचते होंगे कि बच्चों वाली लड़की परित्यक्ता होकर अपमान और मुश्किल जीवन जियेगी. 'सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा.' 'पुरुष तो होते ही ऐसे हैं.' पुरुष सत्तात्मक समाज ने इस सोच को सभी के दिमाग में डाल दिया है. ....... इस कारण वह पुनः सौंप दी जाती है.

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    ७- पढ़ी लिखी लडकियां भी इतना मजबूर क्यूँ हैं। अपने माँ ,बाप , भाई और पति की इज्ज़त रखने लिए इतने जुल्म सहती हैं। और बलि चढ़ जाति हैं असमय।
    @ कई पढी-लिखी लडकियां प्रायः घर की उँचायी देखकर और एकांत (फ्लेट) देखकर अपने ऐश्वर्य की कल्पना को साकार मानती हैं. तब वे जुल्मी, एबी और विलासी मानसिकता वाले पति के साथ भी रह सकती हैं. छोटे बच्चों की परवरिश और अपनी ख्वाइशे पूरी करने के लिये उन्हें अर्थ का अभाव नहीं खलता. रही बात शील की सुरक्षा की उसे वे पति नामक समाज स्वीकृत जीव के सम्मुख लुटने का भय नहीं रह गया होता.

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    ८- क्या अनुपमा जैसी स्त्रियों और निरीह पशुओं में कोई अंतर है ?
    @ निरीह पशु भूख और जिह्वा के स्वाद के खातिर क़त्ल किये जाते हैं लेकिन अनुपम स्त्रियाँ महत्वाकांक्षाओं के ओवर फ्लो का शिकार बनती हैं.

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    ९. क्या राजेश गुलाटी और हिंसक पशु में कोई अंतर है?
    @ हिंसक पशु भूखा होने पर ही हिंसा करता है. इसलिये वह जंगल में रहता है. जंगल का क़ानून है कि ताकतवर कमज़ोर को मारता है खाता है.
    लेकिन मनुष्य समाज को सभ्य माना जाता है वहाँ ऎसी घटना की सजा मृत्युदंड से कम नहीं होनी चाहिए.

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    और अंत में अनिवार्य प्रश्न
    एक हैवान पिता को , दो मासूम बच्चों की जिंदगी बर्बाद करने की क्या सजा मिलनी चाहिए ?
    @ मुझे लगता है, मृत्युदंड नहीं मिलेगा. धीरे-धीरे यह मामला पुराना पड़ेगा. क्रोध का ताप कम होगा. कुछ रहमदिल सामाजिक संस्थायें उसकी सजा को उम्रकैद में तब्दील करने में कोशिशें करने लगें. या फिर मीडिया कल को कोई ठीक उलट कथा लेकर उसके बचाव में खड़ी नज़र आये.
    आज़ के समय में सत्य कब करवट बदल ले इन्वेस्टिगेशन पर निर्भर है. ........ ना जाने किसका शेर है >>>
    "आज़ के समय में मुजरिम और कातिल का पता क्या है. जहाँ कातिल ही पूछे "अमाँ हुआ क्या है?"

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  43. ऐसे लोगों के लिये जितनी भी सजा दी जाए वह कम है ..इंसान कहलाने के लायक ही नहीं रह जाते ऐसे लोग ...

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  44. उसके भी किसी चौराहे पर खडा कर के इतने ही टुकडे करने चाहिये। शर्मसार कर देने वाली घटना। माँ बाप कुछ नही कर सके इसके बारे मे अभी कुछ कहना नही बनता जब तक कि उनकी तरफ से पूरी बात पता न चले। हर माँ बाप की ख्वाहिश होती है कि बेटी का घर बसा रहे तभी तो उसके भाई ने उसे छुपा कर मोबाईल दिया था। ऐसे दरिन्दों की कई बार मानसिक स्थिती का सही आँकलन नही हो पाता। कौन सोच सकता है कि एक पढा लिखा आदमी और दो बच्चों का बाप इतना क्रूर हो सकता है? धन्यवाद।

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  45. ऐसे अपराधी को तो मृत्युदंड दिया जाना चाहिए।

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  46. parso tv par dekh atha...
    sunhe hi rongte khade ho gaye...

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  47. Dear Doctor, thanks for the comment for my blog post which was written on Late Rajiv Dixit. I believe it is still possible to bring back the glory of ancient India with a modern look. We can't go back from here as far as technology centered life style is concerned but we can knit one more aspect to it ie.Indian cultural values which Rajiv Dixit always advocated.

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  48. माँ बाप में झगडा तो कई घरों में बच्चे देखते होंगे पर क्या उनमें से सारे हत्यारे बनते हैं?
    कुछ स्वभाव, मानसिक अवस्था और कुछ हालात इंसान से जघन्य कुकृत्य करवाता है ... ऐसे इंसान को कड़ी से कड़ी सजा देना चाहिए !

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  49. यह अपराध मानसिक विकृति के कारण किया गया प्रतीत होता है. कानून अपना कार्य करे.

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  50. पाशविकता की परकाष्ठा ...यह सोच कर भी आश्चर्य होता है कि एक आदमी इतना निर्मम हो सकता है.फांसी की सजा तो ऐसे निर्मम कातिल के लिए बहुत कम है पर हमारे देश का क़ानून में इस से ज्यादा सजा हो नहीं सकती और वह भी कब, कुछ पता नहीं..बहुत ही शर्मनाक

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  51. हमारे समाज में इस तरह के दरिन्दे बसे हुये हैं, यह सोच कर हम सबका सर शर्म से झुक जाना चाहिये, सजा तो कानून उसे दे ही देगा।

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  52. Such incidents render one numb and the TRP hungry media renders the masses insensitive.

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  53. शीर्षक ही काफी है विचलित करने के लिए। ब्यौरा पढ़ना ज़रूरी नहीं।

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  54. दिव्या जी , ऐसे अपराधी को तो मृत्युदंड से भी कठोर सजा होनी चाहिए ......सादर

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  55. नफरत की हदें हकीकत मैं बहुत गहरी होती हैं, इसी लिए इन हदों को तोड़ ने वाला ही इंसान कहलाता है..

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  56. लड़की को अलग होने के बाद साथ नहीं निभाना चाहिए था। एकबार का धोखा क्या कम था। गलती लड़की के मां-बाप की भी है। उन्हें उसे पैरो पर खड़ा करने में मदद करनी चाहिए थी। या लड़की को खुद ही अपने पैरों पर अलग होकर खड़े होने की कोशिश करनी चाहिए थी।

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