Wednesday, November 2, 2011

डॉ दिव्या श्रीवास्तव अब हमारे बीच नहीं रहीं - विनम्र श्रद्धांजलि

अत्यंत हर्ष के साथ आपको ये सूचित किया जाता है कि ,अपने आक्रामक आलेखों से हिंदी ब्लॉगजगत को आक्रान्त करने वाली डॉ दिव्या श्रीवास्तव अब हमारे बीच नहीं रहीं।

जिन साधू प्रकृति के ब्लॉगर्स का उन्होंने दिल जलाया, सताया और प्रताड़ित किया , उनके जश्न मनाने के दिन गए हैं। विभिन्न गुटों के नेताओं से निवेदन है कि अब वे सभी एक हो जाएँ क्यूंकि ब्लॉगजगत कि एकमात्र आतंकवादी दिव्या उर्फ़ जील से हम सभी मासूम ब्लॉगर्स को निजात मिल चुकी है।

आइये हम सभी मिलकर जोर-शोर से श्रद्धांजलि मनाएं ....Let's party....

मृत्यु के बाद देखा अपने संगी-साथियों की चाशनी से गीली आँखों में छलकती श्रद्धांजलि कुछ इस प्रकार से है---


  • अरे अकेले चली गयी ? जील एंड कंपनी को पीछे छोड़ गयी नासूर की तरह .....डोंट वरी ...आय विल फिक्स देम ऑन माय ब्लौग ...ऐसी ऐसी गन्दी गालियाँ लिखूंगा की मरने के बाद भी जीने नहीं दूंगा.......किलर झपाटा.
  • हेल्लो, हेल्लो...बनारस से फलाने बोल रहा हूँ....गुड न्यूज़ है यार.....छुट्टी मिली.....
  • वाह....सुबह-सुबह क्या लाजवाब खबर दी है...अच्छा हुआ डफर चली गयी....वर्ना जाने कब तक हम तुकबन्दियाँ करते-करते गजलों की टांग तोड़ते रहते....
  • सार्थक प्रस्तुति--आभार।
  • हमेशा की तरह सार्थक एवं सटीक लेखन।
  • बहुत खूब ! बिना बताये ही चली गयीं ?
  • इस आलेख से असहमत।
  • देखिये हमको स्वर्गीय समझिये, निठल्ला हुआ तो क्या हुआ, आप माडरेशन हटाइए। अब का श्राधांजलि भी माडरेशन के छन्ने से होकर आएगी ?
  • बकिया तो सब ठीक है, लेकिन भीनी-भीनी भीगी अंखियाँ की जगह 'चाशनी' काहे लिखा....हमका घोर आपत्ति है।
  • nice post --( नीचे विज्ञापन )
  • समस्त ब्लॉगर्स का कष्ट हरने वाली आपकी सुन्दर मृत्यु आज से चर्चा में रहेगी।
  • समस्त ब्लौग एगरीगेटर्स को ये चेतावनी देता हूँ के जील (दिव्या) की मृत्यु को प्रकाशित किया जाए एवं हॉट लिस्ट में स्थान दिया जाए। केवल अयाज़ अहमद की प्रेम फैलाने वाली पोस्टों को ही स्थान दिया जाए।
  • अरे यह क्या यह तो मृत्यु की सूचना है , चलो श्रद्धांजलि कॉपी-पेस्ट कर लेता हूँ। कौन टाइप करे बेकार में।
  • आपको विनम्र श्रद्धांजलि, कृपया समय निकालकर मेरे ब्लौग पर भी आयें....
  • दिव्या दीदी आपका ये खौफनाक मज़ाक मुझे बिलकुल पसंद नहीं आया। इस तरह तो आप इन बिना रीढ़ की हड्डी वालों का हीमोग्लोबिन बढ़ा रही हैं।
  • आज बहुत दिनों के बाद आपके ब्लौग पर आना हुआ, आप कब चली गयीं पता ही नहीं चला...खैर समय निकालकर मेरी नयी रचना अवश्य पढियेगा।
  • भावुक करने वाली सुन्दर प्रस्तुति....आनंद गया ....
  • अभी जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं....
  • हे आर्य पुत्री , अपना निर्णय बदल दो...
  • आपके निर्णय से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। बहुत सही निर्णय है आपका , बदलने की ज़रुरत नहीं है। अब जब चली ही गयी हैं , तो वापस मत आइयेगा। पुनश्च.... जाने का निर्णय बदलियेगा मत।
  • मैं गिन रहा हूँ....अभी तक एक भी टिप्पणी नहीं आई ?
  • जय बाबा बनारस...
  • जय जय भड़ास ...
  • आपको शान्ति से रहने नहीं दूंगा ... जीने दिया है , मरने देंगे....
  • ठहरिये आपके पिछले post से कोई बदबूदार वाकया ढूंढ कर लाता हूँ...थोडा वक़्त दीजिये....
  • मार्मिक एवं अतिरोचक प्रस्तुति के लिए आभार, मेरे ब्लौग पर ज़रूर आइयेगा...

अरे का ? ..एक्कौ टिप्पणी में श्रद्धांजलि की कौनो बातय नाहीं... चलो हमहीं लिख देत हईं एगो खुशबूदार टिप्पड़िया---

" तुम तो मर गयीं बिना बवाल के और आत्मा को शान्ति मिल गयी,
लेकिन स्वर्ग में भूचाल गया और नरक में सुनामी गयी "

Zeal

44 comments:

  1. दिव्या दीदी
    आपने कहीं कोई निर्णय तो नही लिया न...

    जिन साधू प्रकृति(?) के ब्लॉगर्स की आपने बात कही है, उनको आपसे कभी निजात नहीं मिलेगी| उन्हें खुश होने का मौका कभी नहीं मिलेगा| उनके दिलो दिमाग पर आपका आतंक सदैव छाया रहेगा|
    दिव्या दीदी, इन बिना रीढ़ की हड्डी वालों का हिमोग्लोबिन आप नहीं बढ़ा सकतीं|
    दिव्या दीदी, आपको सदैव लड़ना है|
    मुझे विश्वास है कि अभी तो आप बहुतों को मारोगी, अभी आपके मरने का समय नहीं आया है|
    अत: मैं अपने मन से डर को निकाल रहा हूँ क्योंकि मुझे आप पर विश्वास है|

    मैं तो चेहरा देख रहा हूँ उन बिनो रीढ़ की हड्डी वाले साधू प्रकृति के ब्लॉगर्स का, बेचारों पर क्या बीत रही होगी| उनके चेहरे पर दिव्या के नाम का आतंक साफ़ दिखाई दे रहा है|
    पूरे ब्लॉग जगत में आप जैसा साहसी कोई नहीं है|

    अत: कल सुबह आपको फिर से यहाँ देखूंगा|

    सादर
    आपका भाई
    दिवस...

    ReplyDelete
  2. काश ऐसा ना हो, मरने वाला अपनी मौत की सूचना खुद दे यह तो अमूल माचो का विज्ञापन जैसा ही है :):)

    ReplyDelete
  3. हँसी फूट कर आई. टिप्पणियों के माध्यम से 'श्रद्धांजलियों' की विविधता का कॉमिक चेहरा रंग-रेखाएँ बदल-बदल कर बहुत कुछ कह गया. हम बने ही ऐसे हैं :))

    ReplyDelete
  4. कुछ भी समझ नहीं आ पाया..

    ReplyDelete
  5. स्वर्ग में मची खलबली , देख तुम्हारे आने से
    परित्राण साधुजनों को मिला, शायद तुम्हारे जाने से
    दिव्य कंटक दूर हुआ , मिल गयी संतों को मुक्ति
    बीचारे थक गए थे , ना जाने कितनी करके युक्ति
    तरह तरह की दुश्वारियों पर , उनका शर संधान हुआ सफल
    तुम रहती थी इस जगत में तो , उनके मनोरथ होते थे विफल

    तुम गयी तो क्या उनके दुह्स्वप्न भी चले गए? मुझे तो नहीं लगता . क्या मस्त लिखा है. आभार .

    ReplyDelete
  6. हर ख़ुशी जैसे दुखों में हो गई तब्दील जी.
    आपने हेडिंग में ख़ुद को मार डाला ज़ील जी.
    व्यंग अन्दर लेख का अच्छा लगा मुझको मगर,
    दुश्मनों की बात को ज्यादा करें मत फ़ील जी.

    ReplyDelete
  7. आपको वन ांजिल , कृपया समय िनकालकर मेरे लौग पर भी आय....

    Kya. baat hai?
    Ummid ka daaman kambakhakhton ne yaha bhi mahi choda.
    Iswar kare aap shataayu ho.
    108 years jiye.
    108 isliye ki yeh ank hinduon me shubh hai.
    Kyon yeh to banaras wale hi bataayege.

    ReplyDelete
  8. यह पोस्ट मुझे बिल्कुल भी पसन्द नहीं आई दिव्या जी।
    जिन्दगी की बात करनी चाहिये और आप मरने की बात कर रही हैं।

    ReplyDelete
  9. पढ़ कर बहुत हंसी आई , इसलिए बताये बिना नहीं रह पा रही हूँ ...
    कृपया इसे टिप्पणी का लेनदेन ना समझे !

    ReplyDelete
  10. भगवान आपको शान्ति दे\ बता देना कि9 शान्ति मिली कि नही? हा हा हा।

    ReplyDelete
  11. ओह! लगता है फिर कहीं कोई बात मन को लग गई...और उन भावों को यूं लिख दिया आपने ...कुछ भी लिखिए बस लिखते रहिए हम सबके बीच ...कहने वाले तो बहुत कुछ कहते हैं ...खुश रहिए यही शुभकामनाएं ...।

    ReplyDelete
  12. पढ़ कर बहुत हंसी आई , ek naya vivad....

    jai baba banaras.......

    ReplyDelete
  13. व्यंग्य की अच्छी पैठ !! एक ही आलेख से आप ने बता दिया सबको . well begun half done . पर आप ने तो जो कर दिखाया कि कहना पड़ता है कि - well begun almost done.

    कुछ स्व स्फूर्त टिप्पणियाँ और कुछ प्रतिक्रियातमक . दोनों ही अपनी जगह बेजोड हैं. जैसे क्रिकेट में defensive और offensive strokes दोनों खेले जाते हैं वैसे ही. बस विषय प्रवेश में कुछ settle होने तक defensive strokes का मुजाहिरा है . उसके बाद तो बस चौके छक्कों की बौछाड़ है . धोनी भी पीछे छूट गया . आप ने बस सब को धो डाला बिना कोई मिर्च मसाला . उम्मीद है कुछ छक्के जो मर्दानगी का दंभ मिश्रित ग़लतफ़हमी पाले हैं वो अब अंतर जाल के हस्पताल में होंगे .

    कुछ समय पहले जब ब्लॉग से आप को बाहर करने के कुचक्र के क्रम में कुछ जो लिखा गया था , उसके प्रति उत्तर में एक व्यंग्य आलेख मैंने लिखा था , पर जब बात पुरानी हो गयी तो मैंने पोस्ट नहीं किया , पर आज ये आलेख पढ़ लगा कि आप ने ईंट का जवाब पत्थर से बखूबी दिया है और वो भी बस यूँ ही लिखते लिखते .
    वैसे बस एक अर्ज है - जब आप ने खुद ही देख लिया कि आप की मृत्यु की खबर के बाद भी जब ये इतने भय आक्रांत हैं तो आप की मृत्यु से आप के विरोधियों को सुख नहीं है हासिल तो परोपकार के नाते कर्ण जैसे अपने दुश्मनों को इस तरह दान स्वरुप मृत्यु भेंट का इरादा तजिए .

    जिसे मौत भी करे अलंकृत
    उसे मृत्यु का नहीं किंचित डर
    जिंदगी से जो रहे भयभीत
    उसकी रात का न कोई सहर

    श्री लाल शुक्ल नहीं रहे . उम्मीद है आप के व्यंग्य बाण यूँ ही निकलते रहेंगे और आप के अरि को छीलते और भेदते रहेंगे एवं मित्रों में हास्य परिहास की फूल झरियाँ छोड़ते रहेंगे और अवसाद के तमस को यूँ ही तिरोहित कर दिव्य प्रकाश फैलाते रहेंगे

    साभार

    ReplyDelete
  14. i object to the heading we should never say such things its always nice to write satire but not with such a heading because such headings cause pains to well wishers at the first glance

    and whether you like it or not i am raising a objection on this heading for what so ever reasons you may have used it

    it did not bring any smile at all

    may god give you a long life and as its said
    shubh shubh bolo anhoni ko daawat mat do

    change the heading if you can dont invite destiny to play havoc in life of your children none should be important

    ReplyDelete
  15. क्‍या कहें...सब कुछ आपने ही कह दिया।

    ReplyDelete
  16. A cat has only nine lives.
    Divya has many more.
    I will wait for your your punarjanm.
    You must come back, or else who will read all my comments?
    Regards
    GV

    ReplyDelete
  17. पहले टाइट्ल ने शौक्ड किया और लेख ने होठों पर हंसी ला दी…………बडा तीखा स्टाइलिश धारदार करारा व्यंगात्मक आलेख है।

    ReplyDelete
  18. स्वप्न में खुद मरने वाला , उठने के बाद कहता है की उसकी अरदुआय बढ़ गयी क्योकि मरने का स्वप्न देखा ! यहाँ भी यही हुआ - आप वर्षो जियो ! लंबी आयु की कमाना ! ! बधाई

    ReplyDelete
  19. आप का यह लेख पढ़कर कबीरदास जी के स्वयें के मातमपुर्सी में शामिल होने वाले कहे पद याद आ गये। जीवन तो कुछ ऐसा ही विलक्षण है, हम आप तो अपना अपना रोल ही तो निभा सकते हैं।

    ReplyDelete
  20. mam mujhe samajh me ni aaya kuch bhi.....
    jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  21. अच्छा व्यंग्य!
    फिर भी अभिधेयार्थ का ग्रहण करते हुए आपके लिए शुभकामना:

    किल्लोल भरा हो ऋतुपति का गोधूली सी ममता हो!
    जागरण प्रात सा हंसता हो जिस पर मध्याह्न निखरता हो!!

    ReplyDelete
  22. अच्छा व्यंग्य!
    फिर भी अभिधेयार्थ का ग्रहण करते हुए आपके लिए शुभकामना:

    किल्लोल भरा हो ऋतुपति का गोधूली सी ममता हो!
    जागरण प्रात सा हंसता हो जिस पर मध्याह्न निखरता हो!!

    ReplyDelete
  23. विनोदपरक पोस्ट,दिव्या जी बहुत ही सूझ बूझ से लिखी गयी पोस्ट जो ये दर्शाती है की आप अपने पाठकों को अच्छे तरह से समझती हैं तथा किसी के साथ आपका व्यक्तिगत कुछ नहीं। सिर्फ मुद्दों पर सहमती असहमति की बात है मैं आपके हौसलों व सोच की सहृदय सराहना करता हूँ।

    ReplyDelete
  24. हमें तो पुनर्जन्म की सुविधा है तो फिर क्या बात है। वैसे जब तक दोबारा जन्म नहीं लेती हो भूतनी बन कर इन मासूम ब्लॉगर्स को सपनों में डराती रहोगी बेचारे चीख मार कर नींद से हड़बड़ा कर उठ बैठेंगे।
    गुरू गोरख नाथ ने कहा है - मरौ हे जोगी मरन है मीठा, मरौ तिस विध मरौ जिस विध गोरख मर है दीठा ।
    एक बार मैं भी आत्महत्या कर चुका हूँ लोगों ने सोचा कि मेरी हत्या हो गयी लेकिन इतने अच्छे कर्म कहाँ कि मोक्ष मिल जाता तो दोबारा आ गए भव(ब्लॉग)सागर में डूबने उतराने। इस बीच में मैंने तो ब्लॉगेतर(भूत) प्राणी के रूप में काफ़ी आनंद लिया था लेकिन वो अस्थायी रहा।
    आदतन..... जय जय भड़ास
    भइया

    ReplyDelete
  25. Why are you letting some idiots change you. To hell with them ..

    and why should Dr. sahiba die .. the ones who are saying all this to her should be the ones on their way to HELL for sure ...

    Whats the matter .. Talk to me :)

    you take care and dont let this be the last post even if Dr. has to write from heavan :)

    Bikram's

    ReplyDelete
  26. कुछ बात है की हस्ती...मरें आपक़े दुश्मन...निंदक नियरे राखिये...

    ReplyDelete
  27. स्वयं का पिंड दान तो सुना था परन्तु यह कुछ अनोखा है. यह ज्यादती है.

    ReplyDelete
  28. आदरणीय महोदया आपकी इस पोस्ट को पढकर मैने सुबह जल्दी में एक कमेन्ट पोस्ट कर दिया था। सच बात तो यह है कि इस पोस्ट का शीर्षक मुझे अच्छा नहीं लगा। हिन्दू संस्कारित परिवारों के बुजूर्गवार हमेशा यह हिदायद देते हुये सुने जाते है कि अप्रिय शब्दों को अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहिये, ना मालूम किस समय जुबान पर सरस्वती जी बैठी हों और वह बात सच.......।ईश्वर आपको शतायु करे । वैचारिक विरोध और नोकझोंक जीवन का आवश्यक एवं अपरिहार्य अंग है परन्तु इस प्रकार की कल्पना तक करना सर्वथा औचित्यहीन तथा प्रतिपक्षी को आहत करने जैसा है। इस प्रकार की भाषा तो माफियाओं को ही शोभा देती है कि फलाँ से अपना हित नहीं सिद्ध होता है तो टपका डाल उसे....।मुझे नहीं मालूम कि मैं उम्र मे आपसे बडा हूँ कि नहीं परन्तु आपकी इस पोस्ट के शीर्षक से आहत होने के कारण पुनः आपको हिन्दू संस्कारित परिवारों में कहे जाने वाले जुमले की याद दिलाते हुये भविष्य में ऐसे भयानक किस्म के शीर्षकों से बचने हेतु आगाह करना चाहता हूँ। अग्रेतर व्यंग्य को विस्तारित करने के लिये आप इस जैसे किसी शीर्षक का भी प्रयोग कर सकती थीं:-‘कल्पना एक श्रद्धाँजलि सभा की..’ मै आपकी शतायु की कामना करते हुये ऐसे भयानक शब्दों के भविष्य मे उपयोग न करने का वचन चाहता हूँं । मेरे विचार से हमारे जैसे सभी ब्लागरो की अवधारणा सर्वजन कल्याण की ही है।

    ReplyDelete
  29. अनोखा आलेख, इस तरह का हास्य-व्यंग्य पहली बार पढ़ रहा हूं।..... अद्भुत लेखन ।
    तुम सचमुच लोगों के मन की बात पढ़ लेती हो।
    लेकिन जो लोग ऐसी टिप्पणी लिखने के मंसूबे बना रहे होंगे, उन्हें अभी 70-80 साल और इंतजार करना पड़ेगा।
    दिव्या, तुम शतायु हो !

    ReplyDelete
  30. .

    अशोक जी , रचना जी एवं सभी मित्रों और शुभचिंतकों,
    मेरी जिस बात से आपको आघात पहुंचा है , उसकी पुनरावृत्ति न हो, इसका धयान रखूंगी।

    सादर,
    दिव्या।

    .

    ReplyDelete
  31. ये सब क्या है, मेरे तो पल्ले नहीं पड़ रहा। मैं तो सभी ब्लागर्स के स्वस्थ और प्रसन्न जीवन की कामना करता हूं।

    ReplyDelete
  32. वाह ! दिव्या जी , गत पोस्ट में प्यार, मुहब्बत की बातें लिखने के बाद , अपना ही मर्सिया
    ! ईश्वर आपको दीर्घायु करे , इस कामना के साथ .......!

    ReplyDelete
  33. इसका टाइटिल अच्छा नही लगा. बाकी सब मजाकिया टच सही है.

    ReplyDelete
  34. मरे बिना स्वर्ग कहाँ नज़र आताहै ?
    शुभकामनाये ?????????????

    ReplyDelete
  35. आत्मा मरती नही,मरता यह शरीर है.
    तो डॉ.दिव्या श्रीवास्तव मात्र शरीर ही है क्या.

    जीते हुए ही 'शरीर' छोड़ने का प्रयोग आदि गुरू शंकराचार्य
    जी ने किया था.एक मृत राजा के शरीर में प्रवेश करके
    'गृहस्थ' के अनुभवों को जानने के लिए.कुछ समय उस
    राजा के शरीर में रहकर पुन: अपने शरीर में प्रवेश किया,
    जिसको उनके शिष्यों ने सुरक्षित रखा हुआ था.

    मरण से ब्लॉग जगत में संभावित प्रतिक्रिया को
    दर्शाया आपने.अच्छा हास्य व्यंग लगा.आपको कैसा
    अनुभव हुआ,जब आप वापिस शरीर में आयें,तो
    बताईयेगा.

    मरण पर प्रसंगवश सूरदासजी की प्रतिक्रिया जो कुछ अभी
    याद है व्यक्त कर रहा हूँ.

    "जा दिन मन पंछी उड़ जई है
    ता दिन तेरे तन तरुवर के सबै पात झड जई हैं.
    भाई बंधू और कुटम्ब कबीला सुमर सुमर पछतई हैं.
    घर के कहें वेग ही काढो भूत भये कोई खई हैं.
    जा प्रीतम से प्रीत घनेरी सोई देख डर जई हैं.
    बिन गोपाल कोऊ नही तेरो सत् संगती में पई है."

    ReplyDelete
  36. किसी ने खूब कहा है निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय . आपको भी इसी परम्परा का पालन करना चाहिए !!
    कृपया क्षमा करें !!!! पहली बार आपका ये पोस्ट मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आया
    आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !! आप जियो हजारों साल ये है मेरी आरजू !!!!
    कृपया क्षमा करें !!!! पहली बार आपका ये पोस्ट मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आया
    आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !! आप जियो हजारों साल ये है मेरी आरजू !!!!

    ReplyDelete
  37. मैं तो डर ही गई थी दिव्या जी। भगवान आपकी उम्र लंबी करे।

    ReplyDelete