क्यूंकि तुम मुझे बदलना नहीं चाहते,
जैसी हूँ वैसा ही चाहते हो ,
उसी का सम्मान करते हो ,
खूबियों को देखते हो ,
कभी मुझे नीचा नहीं दिखाते,
मुझे भी इंसान समझते हो,
मुझ पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करते हो,
मुझ पर विश्वास करते हो,
मेरी भावनाओं का सम्मान करते हो,
बात-बात पर कमतर होने का एहसास नहीं दिलाते,
मेरा भी कोई वजूद है , ये समझाते हो,
मैं कुछ कर सकती हूँ , ये कहकर मेरा आत्मविश्वास बढ़ाते हो,
गिर कर बिखर जाऊं , इससे पहले आगे बढ़कर तुम मुझे थाम लेते हो,
मुझे पढ़ाने वाले तो लाख मिले पर तुम अकेले हो जो मुझे पढना चाहता है,
आँसू देने वाले भी कम नहीं हैं , लेकिन उनके छलकने से पहले मुझे हंसाने वाले तुम अकेले हो,
रौंद कर कुचलने वालों के इस मेले में , मेरी राह प्रशस्त करने वाले सिर्फ तुम ही हो।
मेरी हस्ती मिटाने वालों की इस भीड़ में , इस अस्तित्व को बचाने वाले एक तुम ही तो हो।
सबने शब्दों को देखा, तुमने जज्बा देखा।
सब देखते हैं चेहरा, तुमने मन को देखा।
स्त्री-पुरुष की जंग में तुमने पौरुष देखा।
लिखे को पढ़ा सभी ने , तुमने तो अनकहा और बिन-लिखा देखा।
हाँ मैं तुम्हें प्यार करती हूँ , क्यूंकि तुमसे मिलने के बाद...
मैंने अपने अन्दर की स्त्री को पुनर्जीवित होते हुए देखा।
Zealजैसी हूँ वैसा ही चाहते हो ,
उसी का सम्मान करते हो ,
खूबियों को देखते हो ,
कभी मुझे नीचा नहीं दिखाते,
मुझे भी इंसान समझते हो,
मुझ पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करते हो,
मुझ पर विश्वास करते हो,
मेरी भावनाओं का सम्मान करते हो,
बात-बात पर कमतर होने का एहसास नहीं दिलाते,
मेरा भी कोई वजूद है , ये समझाते हो,
मैं कुछ कर सकती हूँ , ये कहकर मेरा आत्मविश्वास बढ़ाते हो,
गिर कर बिखर जाऊं , इससे पहले आगे बढ़कर तुम मुझे थाम लेते हो,
मुझे पढ़ाने वाले तो लाख मिले पर तुम अकेले हो जो मुझे पढना चाहता है,
आँसू देने वाले भी कम नहीं हैं , लेकिन उनके छलकने से पहले मुझे हंसाने वाले तुम अकेले हो,
रौंद कर कुचलने वालों के इस मेले में , मेरी राह प्रशस्त करने वाले सिर्फ तुम ही हो।
मेरी हस्ती मिटाने वालों की इस भीड़ में , इस अस्तित्व को बचाने वाले एक तुम ही तो हो।
सबने शब्दों को देखा, तुमने जज्बा देखा।
सब देखते हैं चेहरा, तुमने मन को देखा।
स्त्री-पुरुष की जंग में तुमने पौरुष देखा।
लिखे को पढ़ा सभी ने , तुमने तो अनकहा और बिन-लिखा देखा।
हाँ मैं तुम्हें प्यार करती हूँ , क्यूंकि तुमसे मिलने के बाद...
मैंने अपने अन्दर की स्त्री को पुनर्जीवित होते हुए देखा।
har line par wah-wah kahne ko jee chahta hai......
ReplyDeleteबेहतरीन, सच को आगे बढ़ स्वीकार कर लें हम..
ReplyDeletebeautiful both the words , the expressions , the thought and the reason
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeleteओह! सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकी काव्य प्रतिभा में दिव्यता का अहसास होता है,दिव्या जी.
्बहुत सुन्दर और सशक्त भावो से ओत-प्रोत लाजवाब अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास को पिरोया है अपनी रचना में ..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
ReplyDelete.
ReplyDelete@- Rachna ji -
Answer of the question you have asked in your second comment is....Yes, We all are fine by divine grace. Thanks for the concern.
.
Beautiful Expressions!
ReplyDeleteregards.
bhut sunder bhawpurn poem
ReplyDeletebhut hi sunder rachna hai
ReplyDeleteआज एक अलग तेवर... कविता अच्छी है...
ReplyDeletebhav vibhor ho gayi main padh kar
ReplyDeleteaur apne jeevan mei us shakhs ka aur bhi samman karne lagi hoon jisse main pyar karti hoon
itni sunder aur sashakt rachna ke liye hardik bhadhayi
Love
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..।
ReplyDeletebahut achcha ,laajabaab likha hai.sahi me pyaar usi se hota hai jo tumhe yeh sab ehsaas karaye.
ReplyDeleteकविता में दिव्या की दिव्यता अपने पूर्ण आभामंडल के साथ दीप्तमान है ।
ReplyDeleteयह आभा कभी क्षीण न हो !
वाह बेहतरीन रचना, सत्य के सथ जीवन सुंदर बन जाता है ।
ReplyDeletebeautiful .. and i pray each of us get that someone who treats us how we want ...
ReplyDeleteBikram's
बहुत खुबसूरत, क्या बात है, दिव्या जी आज तो नये रंग में ....
ReplyDeleteThat was nice to read.
ReplyDeleteBest wishes.
GV
It is a beautiful poem
ReplyDeleteभावमयी सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
ReplyDeleteGOD is great.
ReplyDeleteAwesomeeeeeeeeeeee
ReplyDeleteबल्ले बल्ले
ReplyDeleteलाज़वाब।
ReplyDeleteबहुत खूब. शानदार. आपके आलेख की तरह आपकी कविता भी बहुत कुछ कहती है.
ReplyDeleteWah! Kya baat hai!
ReplyDeleteआदरणीय महोदय
ReplyDeleteमै आपकी यह पोस्ट सराहनीय है
शुभकामनाऐं!!
आपकी पोस्ट सराहनीय है शुभकामनाऐं!!
सच है, दोनों के अहसासात का मिलन ज़रूरी है, तभी तो प्रेम पगेगा॥
ReplyDeleteवाह दिव्या जी गज़ब के भाव भरे हैं आत्मविश्वास से लबरेज़ कविता………बधाई।
ReplyDeleteइस पोस्ट में भवपूरित मन की अभिव्यक्ति मन को छूती है।
ReplyDeleteसही है। जो बदलने की कोशिश करे उससे दूर हो जाना ही बेहतर।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ये हुई ना बात...अपनी क्रियेटिविटी दिखा दी आपने...बेहद ख़ूबसूरत भाव...
ReplyDeleteप्रेम मिले तो जीवन सँवरे
ReplyDeleteप्रेम मिले तो मन हरषाये
प्रेम मिले तो जीवन सुख से
गंगा-यमुना सा लहराये.
निर्मल-निश्छल भावों की सरिता.
आपके लेखन का यह रंग बहुत प्यारा रहा. प्रेम का संपूर्ण भाव देदीप्यमान है.
ReplyDeletebeautifully expressed.
ReplyDeleteexcellent expression.
ReplyDeleteआपकी यह अभिव्यक्ति आपके लिये सम्मान बढ़ा रही है क्योंकि
ReplyDeleteइन शब्दों में मन की सुन्दरता छलक गई है .
SANDAR PRASTUTI
ReplyDeletesab sabdon ne man ko chu liya...
ReplyDeletejai hind jai bharat
or ed mubarak advance me mam
"कितने सुन्दर भाव , व्यक्त की अंतरध्वनि
ReplyDeleteकोमल ह्रदय विराट, प्रेम की रेशम ध्वनि"
काव्य पंक्तियों में संवेदनाओं का बेहतरीन वर्णन , लौह शक्ति सी द्रढ़ता के साथ , प्र्गातिशील रहें शुभकामनाएं
सुंदर, हृदय को छूती कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, आपकी कविताएं कम ही पढ़ने को मिलती है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअपनी सारी अपेक्षाओं , आकाँक्षाओं की पूर्ति के चलते प्यार के लिए उपयुक्त पात्र मिलना कम सौभाग्य की बात नहीं . व्यक्ति के रूप में पहचान , individual space , जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करते हुए बदलने की कोई चेष्टा न करना- आपने कविता में सब बातों का समावेश या यों कहें, एक आदर्श स्थिति का वर्णन सुंदर शब्दों के माध्यम से किया है . केवल बाहर की सुन्दरता को न देख कर भीतर की सुन्दरता को पहचानना भी तो कम बुद्धि कौशल की बात नहीं. इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeletesampoorn
ReplyDeleteआप अपनी ऎसी भाव-प्रवण रचनाओं से बार-बार आत्मीयजनों को अपने मन के दर्पण में झाँकने को बाध्य करते हो... 'कहीं मैं तो नहीं?'.. अरे नहीं ... मैं तो सुन्दर विचारों का एक उपासक मात्र ही हूँ... और आज भी आपकी भाव-सरिता में गोते लगाकर दर्शन सुख ले रहा हूँ.
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