क्या प्रेम भी तुच्छ और उच्च की श्रेणी में विभाजित हो सकता है ? कल एक चर्चा के दौरान मित्र ने कहा उसका 'स्त्री-प्रेम' तुच्छ है। वह केवल 'उच्च प्रेम' अर्थात देश-प्रेम ही करना चाहता है।
माता-पिता, भाई-बहन, मित्र और समाज से प्रेम किये बगैर देशप्रेम संभव हो सकता है क्या। जन-जन से ह्रदय में प्रेम रखे बिना देश-प्रेम भी संभव नहीं है।
मन में स्त्री से प्रेम होने को 'तुच्छ' किस आधार पर कहा गया। यदि स्त्री-प्रेम तुच्छ है तो सेना के जवान या तो अविवाहित रहे , या फिर अपनी स्त्री से प्रेम ही न करें। ऐतिहासिक युद्धों में सेना के कूच करने से पूर्व वीर पत्नियाँ अपने पति का तिलक कर उन्हें विजयपथ पर बढ़ने की प्रेरणा देती थीं। फिर स्त्री-प्रेम , पुरुष की देशभक्ति में बाधा कैसे बन सकता है।
यदि कोई पुरुष अविवाहित है तो क्या उसका स्त्री-प्रेम , राष्ट्र के प्रति निष्ठां को कम कर देगा । उसे उसके कर्तव्यों से विमुख कर देगा ? यदि कमी स्वयं की कर्तव्यपरायणता में ही हो तो दोष किसी स्त्री पर क्यों डाला जाए। स्त्री-प्रेम को तुच्छ कहकर समस्त स्त्री-जाति का अपमान क्यों। इतिहास गवाह है स्त्री और पुरुष दोनों में बराबर से देशप्रेम के होने का। फिर स्त्री से प्रेम पुरुष के लिए बाधक कैसे हुआ। स्त्रियाँ तो ऐसे भय में नहीं जीतीं की पुरुष-प्रेम उन्हें उनके कर्तव्यों अथवा देश-भक्ति से विमुख कर देगा।
प्रेम तो एक ऊर्जा है , एक प्रेरणा-मात्र है जो मनुष्य को भावना-विहीन नहीं होने देता। यही प्रबल भावनाएं ह्रदय में देश के लिए भी प्रेम उत्पन्न करती हैं । बिना भावुकता के न तो स्त्री-प्रेम संभव है , न ही देश-प्रेम।
प्रेम एक पवित्र भावना है, इसे तुच्छ और उच्च की श्रेणी में बांटना अनुचित होगा। प्रेम के व्यापक स्वरुप को समझने के लिए अध्यात्म के धरातल पर उतरना होगा !
Zeal
माता-पिता, भाई-बहन, मित्र और समाज से प्रेम किये बगैर देशप्रेम संभव हो सकता है क्या। जन-जन से ह्रदय में प्रेम रखे बिना देश-प्रेम भी संभव नहीं है।
मन में स्त्री से प्रेम होने को 'तुच्छ' किस आधार पर कहा गया। यदि स्त्री-प्रेम तुच्छ है तो सेना के जवान या तो अविवाहित रहे , या फिर अपनी स्त्री से प्रेम ही न करें। ऐतिहासिक युद्धों में सेना के कूच करने से पूर्व वीर पत्नियाँ अपने पति का तिलक कर उन्हें विजयपथ पर बढ़ने की प्रेरणा देती थीं। फिर स्त्री-प्रेम , पुरुष की देशभक्ति में बाधा कैसे बन सकता है।
यदि कोई पुरुष अविवाहित है तो क्या उसका स्त्री-प्रेम , राष्ट्र के प्रति निष्ठां को कम कर देगा । उसे उसके कर्तव्यों से विमुख कर देगा ? यदि कमी स्वयं की कर्तव्यपरायणता में ही हो तो दोष किसी स्त्री पर क्यों डाला जाए। स्त्री-प्रेम को तुच्छ कहकर समस्त स्त्री-जाति का अपमान क्यों। इतिहास गवाह है स्त्री और पुरुष दोनों में बराबर से देशप्रेम के होने का। फिर स्त्री से प्रेम पुरुष के लिए बाधक कैसे हुआ। स्त्रियाँ तो ऐसे भय में नहीं जीतीं की पुरुष-प्रेम उन्हें उनके कर्तव्यों अथवा देश-भक्ति से विमुख कर देगा।
प्रेम तो एक ऊर्जा है , एक प्रेरणा-मात्र है जो मनुष्य को भावना-विहीन नहीं होने देता। यही प्रबल भावनाएं ह्रदय में देश के लिए भी प्रेम उत्पन्न करती हैं । बिना भावुकता के न तो स्त्री-प्रेम संभव है , न ही देश-प्रेम।
प्रेम एक पवित्र भावना है, इसे तुच्छ और उच्च की श्रेणी में बांटना अनुचित होगा। प्रेम के व्यापक स्वरुप को समझने के लिए अध्यात्म के धरातल पर उतरना होगा !
Zeal
"जन-जन से ह्रदय में प्रेम रखे बिना देश-प्रेम भी संभव नहीं है। "
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने पूरी तरह सहमत हूँ !
आभार !!
Waqayee prem ek oorja hai....koyee bhee prem tuchh nahee ho sakta!
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteबिल्कुल सही परिभाषित किया है आपने..... प्रेम का वास ह्रदय में होता है. बाहरी कारक उसके लिए मायने नहीं रखते. जो पेड़-पौधों से प्रेम करता है वही पशु-पक्षियों से भी कर सकता है, मनुष्यों से भी, समाज से भी और देश से भी. और रीता ह्रदय लिए लोग दिखावा ही कर सकते हैं. प्रेम प्यार नहीं.
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे|
ReplyDeleteप्रेम में कैसी उच्चता-तुच्छता? प्रेम तो प्रेम है बस|
जैसा कि आपके मित्र ने अपने स्त्री-प्रेम को तुच्छ कहा, तो इसमें मुझे भी आपत्ति है| बात केवल स्त्री की भी नहीं है| उनके हिसाब से तो माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-समाज किसी से भी प्रेम को तुच्छता की श्रेणी में रखा जाना चाहिए| वे व्यक्ति से अधिक देश से प्रेम की बात करते हैं, तो पूछिए उनसे कि देश बना किनसे है? एक एक व्यक्ति से मिलकर ही यह देश बना है| इनके बिना तो केवल भूमि का एक टुकड़ा है|
व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति से समाज व समाज से राष्ट्र के एकीकरण के बिना राष्ट्र प्रेम संभव नहीं| इसके लिए व्यक्ति से प्रेम आवश्यक है|
हाँ यहाँ उनके द्वारा एक प्रश्न उठाया जा सकता है कि देश प्रेम में किसी एक व्यक्ति से प्रेम से प्रेम का कोई महत्त्व नहीं अत: उनका स्त्री प्रेम तुच्छ क्यों नहीं है?
pahli बात, यदि उनको ऐसा लगता है तो प्रेम किया ही क्यों? और प्रेम तो एक भावना है| यदि भारत से ही प्रेम है तो क्या समस्त भारतवासियों की कीमत पर भारत को पाना भारत के लिए प्रेम है? ठीक ऐसी ही भावना किसी एक व्यक्ति के लिए आ गयी तो इसमें तुच्छ क्या है?
सही कहा आपने. प्रेम तुच्छ नहीं हो सकता.
ReplyDeleteअच्छी विवेचना।
ReplyDeleteप्रेम तो प्रेम है, इसका ग्रेडेशन करना उचित नहीं।
जिसके हृदय में प्रेम है वह व्यक्ति, परिवार और समाज के साथ राष्ट्र से भी प्रेम करता है।
जिसके हृदय में प्रेम नहीं वह तो अपने आप से भी प्रेम नहीं कर सकता, अन्य के साथ क्या करेगा !
प्रेम के दो रूप होते हैं- लौकिक और आध्यात्मिक, और दोनों को केवल आत्म अनुभव से जाना जा सकता है, सुन-पढ़ कर नहीं।
प्रेम प्रेम होता है, आश्रय बदलते रहते हैं। स्वार्थ से प्रेम परिभाषित ही नहीं हो सकता है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ कि
प्रेम के व्यापक स्वरुप को समझने के लिए अध्यात्म के धरातल पर उतरना होगा !
प्रेम तो सिर्फ प्रेम होता है.....
ReplyDeleteसोलह आने सच्ची बात..प्रेम एक पवित्र भावना है।
ReplyDeleteदिल की उठती भावनाए ही प्रेम भाव उत्पन्न करती है
ReplyDeleteभावुकता के बिना न स्त्रीप्रेम न देशप्रेम सभंव है,.. सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन आलेख --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
हम तो निश्चल प्रेम के कायल हैं॥
ReplyDeleteयह तो सर्वोच्च भावना है।
ReplyDeleteप्रेम अपने आप में पवित्र शब्द है, ये उच्च या तुच्छ हो नहीं सकता।
ReplyDeleteजहां भावनाएं गलत हुईं तो प्रेम रह ही नहीं पाता।
विचारणीय पोस्ट।
प्रेम प्रेम है.बस.
ReplyDeleteप्रेम को ना तो बाता जा सकता है ना ही किसी श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है |अच्छा मुद्दा उठाया है |
ReplyDeleteआशा
प्रेम या तो होता है या नहीं होता. प्रेम एक आदत है जो उच्च मानवीय गुण है. वह चाहे देश से हो या किसी व्यक्ति से, वह केवल उच्च ही होता है.
ReplyDeletebat me dam hai....sahamat hoon
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा ' प्रेम एक पवित्र भावना है' इसमें किसी भी प्रकार का विश्लेषण कर श्रेणियों में विभाजित करना सही नहीं है ...सार्थक व सटीक लेखन ।
ReplyDeleteप्रेम एक ऊर्जा है.....
ReplyDeleteबिना भावना के न तो देश-प्रेम संभव है और न ही स्त्री-प्रेम.....
– सच हैं दोनों बातें.
लेख बेहद विचारोत्तेजक है.....
एक 'प्रेम' दूसरे 'प्रेम' को प्रेरित करता है... तभी दोनों फलते-फूलते हैं.
प्रेयसी अथवा स्व-स्त्रियों के हृदय में ... देश पर न्योछावर होने वाले वीर-पुरुष ही कसक रूप में जीवित रहते हैं, पर, वह व्यक्तिमय 'प्रेम' .... 'आदर' 'सम्मान' 'पूजा' 'भक्ति' जैसे भावों में बदल जाता है.
कुछ ऐसे ही भाव देश पर न्योछावर होने वाली वीरांगनाओं के लिये उपजते हैं.
bilkul......prem prem hai,ise shreniyon men nahin banta ja sakta.
ReplyDeleteprem kisi se bhi ho
ReplyDeletepyaara hota hain
isse koi fark nahi padta hain ke
vo stri se ho ya desh prem se
prem to us khuda ki ek bahut hi khoobsurat rachna hain
striprem tuchch kaise ho sakta hai.bachpan se hi stri prem ke aavaran me bada hua insaan stri prem ko tuchch kaise kah sakta hai.prem humesha prem hi hai haan paristhiti ke anusaar kabhi kabhi mayne badal jaate hain aur kuch nahi.varna itihaas gavaah hai ki jis insaan ke peeche stri prem ki dhaal hai vohi sabse safal insaan hai.
ReplyDeleteखूब-सूरत प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ||
प्रेम की व्याख्य बहुत ही संजीदगी से किये हैं | मैंने सुना है प्रेम में जो तनमय हो जाता है उसमे ईश्वर का वास होता है| धन्यवाद |
ReplyDeleteप्रेम तो ह्रदय से उठता हुआ एक भाव है...इसमें तुच्छ या उच्चा जैसा कुछ भी नहीं होता...आप ने प्रेम की सही परिभाषा यहाँ दी है...आभार!
ReplyDelete..मरे ब्लॉग 'रंगोली' पर आइए...एक प्रेम कहानी आपके विचार ज्ञात करने के लिए इंतज़ार कर रही है!
http://arunakapoor.blogspot.com/
prem koparibhsit kerna wo bhi bhasa me bahut hi muskilhai wo to kewal prem se hi prabhasit kiya ja sakta hai........
ReplyDeleteaapki prastuti bahut hi acchi hai .......badhai
prem to prem hai...esme tuchchh uchch ka to sawal hi nahi uthata..
ReplyDeleteaapse shamat... sarthak prastuti...
ReplyDeleteprem kbhi bhi tuch nhi ho skta hai .ye sochne vale ki prakriti pr nirbhar krta hai prem n vasna me antar hai.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रेम की कोई परिभाषा नही होती प्रेम तो प्रेम है.."ह्रदय में प्रेम रखे बिना देश-प्रेम भी संभव नहीं है। "सही कहा ...
ReplyDeleteप्रेम को किसी कसौटी पर कसने की आवश्यकता ही नहीं होती. उच्च य तुच्छ, प्रेम में हो, ही नहीं सकता.प्रेम तो प्रेम है और ये अंतर-आत्मा के भावों का सम्प्रेषण है और जरूरी नहीं शब्दों में ही हो.
ReplyDeleteprem to kisi bhi bandhan me nahi bandhta to kya ucch or kya tucch prem ke liye to sbhi ek rup he. or is ko is tarah se kahna uchit na hoge .......
ReplyDeletePREM EK ANUBHUTI HAI
ReplyDeleteAAPANE USAKI SUNDER MALA PIROI
BADHAI KE SATH SHUBH MAKARSANKRANTI.
प्रेम एक व्यापक अनुभूति आपने सुन्दर पिरोया बधाई
ReplyDeleteमकरसंक्रांति की शुभकामना
प्रेम एक व्यापक अनुभूति आपने सुन्दर पिरोया बधाई
ReplyDeleteमकरसंक्रांति की शुभकामना
प्रेम बहुत ही व्यापक है...शुरुआत कहीं से कीजिये...स्त्री से या देश से...ये बहुत तेज़ फैलता है...आप इसके संक्रमण से बच नहीं सकते...
ReplyDeleteप्रेम तो प्रेम है ... इसको किसी भी रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता ... सार्थक प्रस्तुति है ...
ReplyDeleteकोई भी प्रेम तुच्छ कैसे हो सकता है .....
ReplyDeleteप्यार तो समर्पण है.इसे परिभाषाओं में नहीं बांधा जा सकता.
ReplyDeletevery right what u say.. how can one say they love the country when they cant love fellw human beings ..
ReplyDeleteBikram's
बिलकुल सही कहा है आपने, प्रेम एक ऊर्जा है। लेकिंग प्रेम जब तक positive energy है, सकारात्मक है।
ReplyDeleteप्रेम जब वासना का पर्याय बन जाये तो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता है।
सुंदर प्रस्तुति, आभार।
ठीक कहा आपने, प्रेम को तुच्छ या उच्च जैसी श्रेणियों में विभाजित करना अनुचित भी हैं और तर्क संगत भी नहीं. प्रेम के उदात स्वरुप को समझने वाला ऐसी ग़लती कर ही नहीं सकता. स्त्री प्रेम राष्ट्र प्रेम में कैसे बाधक हो सकता है , समझ से परे है. युध्ह भूमि के लिए प्रस्थान करने से पूर्व पति को तिलक लगाने व विजय प्राप्ति के बाद उसके सकुशल घर लौटने की प्रार्थना का प्रतिकार क्या पति के लिए स्वाभाविक नहीं है !
ReplyDeleteअभी इतना ही.
उत्तम आलेख, दिव्या जी !