Saturday, September 22, 2012

विरोध करो, मज़ाक नहीं

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत ,
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होए ना प्रीत

अपनी बात पूरी इमानदारी से रखनी चाहिए , शब्दों का चुनाव सही होना चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में तीव्रता भी होनी चाहिए ताकि ठस दिमाग वालों के दिमाग की परतें भेद सकें और उन्हें समझ भी आये ! लेकिन अगर  तीन बार कहने से भी किसी को समझ न आये तो उसे उसका स्थान बता देना चाहिए ! (सीढ़ी ऊँगली से घी नहीं निकलता अक्सर)

समुद्र को श्रीराम का अनुनय-विनय समझ नहीं आया जब तो अति विनम्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के कोप करने पर समुद्र को ये समझ आ गया की उचित क्या है और क्या करना है ! 

विभीषण ने अहंकार में डूबे अपने भाई को  उचित-अनुचित समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अहंकारियों को विवेकपूर्ण तर्क और शालीन विरोध समझ कब आता है भला ? वे तो अपने दंभ में चूर होकर समझाने वाले का अपमान ही करते हैं ! अंत में अहंकारियों का त्याग ही एकमात्र विकल्प बचता है !

जब सज्जन और सत्चरित्र लोग दुर्जनों का साथ छोड़ देते हैं तो दुर्जनों का विनाश स्वतः ही बेहद अल्प काल में ही हो जाता है ! और जो लोग दुर्जनों का साथ नहीं त्यागते वे  गलत संगती के कारण अपने विनाश का कारण स्वयं बंनते हैं !

डाक्टर भी यदि एक दवा से इलाज न हो रहा हो तो दवा बदल देते हैं  और मरीज भी लाभ न होने की अवस्था में डाक्टर समेत पद्धति बदल देते हैं !

कांग्रेस  का अनेक मुद्दों जैसे मुस्लिम तुष्टिकरण, दलित तुष्टिकरण, अप्ल्संख्यक आरक्षण,  कोयला थोरियम घोटाला, काला घन, FDI , आदि का विरोध करने पर भी कोई लाभ ना आने पर , देश-हित में इस पार्टी का पूर्णतया बहिष्कार की एकमात्र विकल्प बचता है !

कसाब जैसे स्थापित आतंकवादियों जिसने १९९ क़त्ल किये , उसका विरोध नहीं उसका इहलीला समाप्त की जानी चाहिए तत्काल से ! ऐसे घिनौने लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट का विकल्प नहीं होना चाहिए ! लेकिन अफ़सोस कुछ गद्दार इसे पालते-पोसते हैं , केवल राजनीति करने के उद्देश्य से ! तत्काल सज़ा ही समाधान है इसका ! लंबा मत खींचो ! सज़ा दो , न्याय करो ! क्योंकि ऐसी दुर्बुद्धि लोग जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं , अतः इनके सामने प्रेम की थाली मत पोसो ! ये प्रेम और विनम्रता के हक़दार नहीं !

जो attention seeker होते हैं वे आपका ध्यानाकर्षण करने के लिए अश्लील गालियों और विवाद का सहारा लेते हैं ! इन विवादों का हिस्सा बनकर आप इनके अहंकार को पोषित ही करते हैं ! अश्लीलता और फूहड़पन  करने वालों से विमर्श नहीं , बहिष्कार करना चाहिए , अन्यथा इसे आपकी एक कमजोरी ही समझा जाएगा ! कहीं न कहीं आप भी उस अश्लीलता का रसास्वादन कर रहे होते हैं !  ऐसे असामाजिक तत्वों के साथ आपकी मित्रता आपको संशय के घेरे में खड़ा कर देती है ! अतः सावधान रहे !

विरोध का समाधान यदि दो बार समझाने से न आये तो असामाजिक तत्वों का बहिष्कार और त्याग कर देना चाहिए , इससे ये शक्तिविहीन हो जाते हैं और पृथ्वी पर गन्दगी कुछ कम हो जाती है !

किसी भी प्रकार का त्याग हो, त्याग करने लिए बहुत बड़ी इच्छा शक्ति की ज़रुरत होती है ! विरले ही कर पाते हैं ऐसा! 


21 comments:

  1. Pratirodhi paristhitiyon men vivek ko kis tarah upyog me laaya jaay, is par chintan kar aapne sateek vichaar rakhe hain.

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  2. बिल्कुल सही कहा।

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  3. Muslim tushtikaran ko maaf nahi karna chahiye .

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  4. वाह अनवर जमाल जी ....आपके अन्दर स्वाभिमान जगा देखकर हर्ष हुआ !

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  5. वैसे सही वाक्य कुछ इस प्रकार से होना चाहिए-- " मुस्लिम तुष्टिकरण करने वालों को भारत के बाहर खदेड़ देना चाहिए "

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  6. मजाक हमें भी पसंद नहीं है.

    उचित आक्रोश.

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  7. .

    एंटी वाईरस, तुम्हारे जैसे बेहूदा लोगों को यहाँ तशरीफ़ लाने की ज़रुरत नहीं है ! तुम बेनामी, अनामी नामों से अरविन्द मिश्रा के ब्लॉग पर ही घटिया टिपण्णी किया करो, वहां तुम्हारी बेहूदा टिपण्णी पढ़ चुकी हूँ ! यहाँ तुम्हारे जैसों का कोई स्वागत नहीं है ! अरविन्द मिश्रा , तुम्हारी ही फर्जी आई डी है , इसलिए वहीँ टिपण्णी करो , यहाँ मत आना दुबारा ! बेशर्मों के लिए स्थान नहीं है इस ब्लॉग पर !

    .

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  8. शानदार शानदार शानदार
    बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
    सच कह रहा हूँ शब्द नहीं ढूंढ पा रहा। आपके इस आलेख पर टिप्पणी करना बहुत कठिन कार्य है। सब कुछ तो आपने इतना सटीक कह दिया कि अब शेष बचा ही क्या है? सबसे बेहतरीन तो आपने शीर्षक को चुना है - :विरोध करो, मज़ाक नहीं"
    सच में कल आपके ब्लॉग पर ही किसी ने इस सम्बन्ध में कहा था कि वह विरोध करता है किन्तु मुझे तो उसका विरोध केवल मज़ाक ही लग रहा था।
    एक ही ढर्रे पर कब तक चलते रहेंगे? यदि सच में कुछ करने का जूनून है तो ज़रूरत अपना ढर्रा बदलने की है। उस ढर्रे को छोड़ दो जिससे कोई लाभ नहीं हो रहा।
    आचार्य चाणक्य ने भी कहा है कि समस्या को समूल नष्ट कर देना ही एक मात्र उपाय होता है, उसे पोषित नहीं किया जा सकता।
    आपमें आचार्य की छवि को ही देख पाता हूँ।

    जय माँ भारती...

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  9. जितनी तेजी से ऊपर उठता है, उतनी तेजी से ढल जाते हैं लोग..अपना मन निर्मल रहे।

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  10. प्रवीण जी , कुछ लोग कभी नहीं ढलते ! हाँ ढल जाने का भय ज़रूर ले डूबेगा !

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  11. याद रखो - बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ यहाँ व्यापार करने आयें गी किसी का परोपकार करने नहीं। व्यापार का ऐक मात्र उद्देश होता है लाभ कमाना।

    ‘उदारवाद’ की आड में मनमोहन सिहँ देश की अर्थ व्यवस्था को ‘उधारवाद’ की ओर ले जा रहै हैं। ‘संतोष’ और ‘स्वाभिमान’ से जीने के बजाये हिन्दूस्तानी भी अमेरिकनों की तरह कर्जे में जन्म लें गे, कर्ज ले ले कर जीते रहैं गे और कर्जे में ही मर जायें गे।

    हमारे युवा अब काल सैन्टरों के अतिरिक्त बडे बडे माल्स के अन्दर सेल्स परसन्स का काम करें गे और दुनियाँ में अमीर देशों के दूसरे – तीसरे दर्जे के ‘नौकर’ बन जायें गे। इसी को ‘प्रगति’ कहा जाये गा।

    यही है ऐफ डी आई की तसवीर!

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  12. @Anti Virus...
    मजाक तुम्हे पसंद नहीं???
    अरे सबसे बड़े मजाक तो तुम ही हो यार इस दुनिया में। वैसे यहाँ तुम विरोध करने आए थे या मजाक करने?
    क्यों कि अरविन्द मिश्र के ब्लॉग पर तो तुमने विरोध के रूप में मजाक कर दिया। और विरोध भी किसका, पता है न?
    तुम जैसे घटिया इंसानों के लिए ब्लॉगिंग मजाक हो सकती है किन्तु हमारे लिए नहीं। अरविन्द मिश्र जैसे ठरकी बुड्ढे की पोस्ट मर तेरी गंदगी देखी है मैंने। अश्लीलता में तूने अरविन्द मिश्र को भी पीछे छोड़ दिया है। तेरा क्या बिगाड़ा था दिव्या जी ने जो वहाँ उनके खिलाफ अश्लीलता फैला रहा था? इतना खौफ क्यों खाते हो यार तुम सब दिव्या नाम से? वे साहसी हैं और तुम डरपोक गीदड़।
    नीचता की हदें पार कर अब यहाँ क्या लेने आया था? तुम जैसों की मानसिकता तुम्हारे शब्दों से ही पता चल जाती है। खुद का तो कोई उद्देश्य नहीं, केवल BSNL, पेन ड्राइव, आई पोड, लैपटॉप आदि पर पोस्टें लिखते हो। वहीँ कोई राष्ट्रवादी अपना काम ईमानदारी से KARE तो तुम्हे रास नहीं आता। इसका अर्थ तू कहीं कोई पाकिस्तानी तो नहीं। एंटी वायरस नाम रख लेने से तेरी वायरस प्रवृति जाने वाली नहीं।

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  13. बहुत सही कहा दिव्या बहिष्कार ही एक बेहतर हथियार है बहिष्कार ने ही अंग्रेजों की जड़ें हिलाई थी दुख होता है इस प्रशासन की नीति को देखकर --बस यही कहूँगी सत्ता का मद तन मन में इस तरह हावी हो गया की एक अर्थशास्त्री भी अनर्थ शास्त्री हो गया

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  14. आपको हर्षित देखकर हमें भी हर्ष हो रहा है.
    सच कहना ही हमारा तरीक़ा है और सच यह है कि मुसलमान तो क्या किसी का भी भला तुष्टिकरण से नहीं हो सकता. इसीलिए हमने कहा भी है कि

    ऐ मुसलमानो ! हक़ अदा करो

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  15. अभी तक ये सवाल तो बना हुआ ही है कि कसाब को राष्ट्रपति के पास दया मांगने का अधिकार कैसे मिला जबकि वो भारत का नागरिक भी नहीं है !

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  16. 'सवालों का जवाब ढूँढती'.... 'समस्याओं को समाधान तक पहुँचाती'.... और 'न्यायालयों में हो चुके निर्णयों को जल्द परिणति तक जाने की प्रतीक्षा' .............. एक 'टीस', एक 'कसक' रूप में आपके जन-जागृति संदेशों में पाता हूँ.

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