बहुतों के मुंह से सुना की ब्लॉगिंग का मज़ा तो बस टिप्पणियों से है , इससे लेखक का उत्साह बना रहता है !
बिलकुल
गलत है ये धारणा ! अरे जनाब एक से एक टिप्पणियां आती हैं जो खून पी जाती
हैं ! अतः ये कहना की टिप्पणियां उत्साह बढाती हैं एकदम गलत बात है !
कुछ लोगों की फितरत ही होती है की काट खाते हैं टिप्पणियों में !
अपनी
तो एक ही आदत है , बिंदास लिखो , जिसको काटेगा वो अगले स्टेशन जाएगा !
लेकिन भईया विवादों के चक्रव्यूह में पडना अपने बस का नहीं है , बहुत
होमवर्क करनी पड़ती है !
सच्चा लेखक वही है जिसके अन्दर जूनून है,
जज्बा है ...और जिसके पास कोई उद्देश्य है ! लिखने की ऊर्जा और हौसला तो
अन्दर से आता है ! प्रेरणा स्रोत तो आपके अन्दर का जूनून ही है ! अगर जूनून
नहीं है तो लेखन व्यर्थ है ! अगर लेखन दिशाहीन है तो भी व्यर्थ है ! अगर
आपका लेखन दूसरों की प्रशंसा किये जाने पर निर्भर है तो भी आपका लेखन
व्यर्थ है !
दिल की ही सुना जाता है और दिल से ही लिखा जाता है !
हम
लिखते हैं अपने विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए !
हमें पढने वाले पाठकों की संख्या ही हमारे लेखन की सच्ची सफलता है ! भले
ही कोई टिपण्णी लिखे या न लिखे !
टिपण्णी तो बस एक सामाजिक रस्मो-रिवाज़ बन कर रह गयी है --एक हाथ से दे, एक ही हाथ से ले, गलती से भी दो हाथ न होने पाए !
कुछ
दशक पूर्व तक जब मुंशी प्रेमचंद्र, दिनकर, मथिलीशरण गुप्त , बिस्मिल ,
बच्चन और प्रसाद का लेखन था तो कौन था वहाँ टिपण्णी लिखने वाला ? कौन सी
टिपण्णी उन्हें ऊर्जा देती थी ?
ऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !
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आप मुझे पढ़ा उसके लिए आपका आभार ! टिपण्णी अगले स्टेशन पर कर दीजियेगा !
मुस्कुराईये की आप 'ZEAL' ब्लॉग पर हैं !
:)
ReplyDeleteशुभकामनाएं आपको और आपके लेखन को
हमेशा ऐसे ही रहें आप
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर लिखना तो जज्बे और जुनून से होता है. जब किसी को नहीं सुहाया तो फिर तीखी
ReplyDeleteटिप्पणी और सुहा गया तो फिर दो चार शब्द लेकिन जब तीखा लगता है तो टिप्पणी ढेरों के भाव आती हें और सार्थक लगा तो पढ़ा और आगे चल दिए. लेकिन ये मापदंड नहीं होता है.
क्या लिखती हैं आप सच में...........
ReplyDeleteएक ऐसे विषय को कितना बेहतरीन उठाया है आपने जिस पर कोई ब्लॉगर लिखना तो दूर सोचना भी नहीं चाहता।
सच ही कहा है आपने कि लेखन तो दिल से होता है। टिप्पणियाँ तो उस महत्वाकांक्षा का प्रतीक हैं जिसके सहारे हम अपने दिल की बात नहीं अपितु पाठकों की मर्ज़ी के अनुसार लिखने को मजबूर हो जाते हैं। अब ऐसा लेखक भला लेखक कहलाने के लायक भी रहा क्या?
यह तो वही बात हो गयी कि आज़ादी की लड़ाई कांग्रेस उसी शर्त पर लड़ेगी जब आज़ादी के बाद उसे सत्ता सौंप दी जाए। जिस प्रकार कांग्रेस को आज़ादी में कोई interest न होकर केवल सत्ता में रूचि है उसी प्रकार ऐसे लेखकों को भी लेखन में नहीं अपितु टिप्पणियों में रूचि है। असली लेखक वही है जिसे लिखने में मज़ा आता हो, फिर टिप्पणियाँ चाहें एक भी न हो।
लेखन कोई दूकान नहीं है जहां लेख के बदले टिप्पणी और टिप्पणी के बदले लेख बिके।
इस विषय पर कितनी गहरी बात कही है आपने। मैं सच कहता हूँ कि मैं आपकी बात से सहमत ज़रूर हूँ किन्तु इतना बखूबी इसे मैं नहीं कह सकता था जितना कि आपने कह दिया।
इस ब्लॉग जगत में भी इतना भटक गया किन्तु यही जाना कि सार्थक लेखन तो आपका ही है।
जय माँ भारती...
बहुत सार्थक लिखा
ReplyDeleteबिन्दास लिखो दिव्या..सही कहा..ऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !
ReplyDeleteऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !
ReplyDeleteबेशक और लगी रहो इसी तरह
सच कहा, अच्छा लेखन अपनी राह चुन लेता है।
ReplyDeleteटिप्पणियों से तो ये बिलकुल तय नहीं होता कि कोई अच्छा लिखता है. बहुत से लोग टिप्पणी नहीं करते, असुविधा के कारण या विवाद में न पड़ने के डर से या इस कारण कि उन्हें लेख या कविता बहुत अच्छी लगी है. बिंदास लिखना चाहिए. टिप्पणी करना ना करना पाठक की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए.
ReplyDeleteहम भी मुस्कुरा रहे हैं कि हम ज़ील के ब्लॉग पर हैं:)good going, keep it up!
लिखो और प्रसन्न रहो
ReplyDeleteअगले का तो पता नहीं अपन तो यहां भी टिप्पणी कर देते हैं.....वैसे भी जब विचार जब उछलने कूदने लगते हैं तो बाहर तो आएंगे ही..लेखन विचारों के संप्रेषण का बेहतरीन तरीका हैं।
ReplyDeleteबिंदास ....:-)))
ReplyDeleteखुश रहो!
सहमत इस बेबाक आलेख के विचारों से. आभार..
ReplyDelete
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
जी जी बिल्कुल !
ReplyDeleteकुछ लेखन
दिल से होता होगा
ये हम मानते हैं
कुछ लेखन चिढ़ से
भी होता है
क्या आप भी
जानते हैं ?
सच कहा ,कुछ ऐसा ही यहाँ भी लिखा है...
ReplyDeleteउँगली छुड़ा लें
http://shardaa.blogspot.in/2010/08/blog-post.html
ह्म्म्म्म... सही कहा आपने !:-)
ReplyDelete~सादर !!!
लिखिये मन की आह को, क्या करनी है "वाह"
ReplyDeleteशारद ने दी लेखनी , फिर किसकी परवाह
फिर किसकी परवाह, लगन सिर चढ़कर बोले
मेंहँदी का भी रंग, सँवरता हौले - हौले
ध्यानावस्थित रोज, अपनी आँख मीचिये
क्या करनी है वाह , मन की आह को लिखिये.
लिखना हरदम चाहिये,चुन चुन सुघड़ विचार
ReplyDeleteसतत चले जब लेखनी, बढ़े कलम की धार
बढ़े कलम की धार , यही नवयुग है लाती
यही सम्हाले रहती है , हर युग की थाती
किंतु जरूरी तत्व, लेख में सच का दिखना
चुन चुन सुघड़ विचार,चाहिये हरदम लिखना ||
आज शायद में आपकी बात से सहमत ना हो पाऊं क्योंकि कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण ज्ञानी नहीं हो सकता इसलिए किसी भी लेखक को यही टिप्पणियाँ सच का आइना दिखाती है !!
ReplyDeleteकल 24/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अच्छा लेखन टिप्पणियों का मोहताज़ नहीं है. शुभकामनाएँ सुंदर लेखन के लिये.
ReplyDeleteKhandelwal ji, First read the post carefully.
ReplyDeleteसच कहा आपने दिल की सुनकर दिल से लिखा जाता है शुभ-कामनाएं
ReplyDeleteसच कहा आपने दिल की सुनकर दिल से लिखा जाता है शुभ-कामनाएं
ReplyDeleteपूर्णतः सहमत
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