Saturday, September 22, 2012

लेखन के लिए बस जूनून चाहिए ....

बहुतों के मुंह से सुना की ब्लॉगिंग का मज़ा तो बस टिप्पणियों से है , इससे लेखक का उत्साह बना रहता है  ! 

बिलकुल गलत है ये धारणा ! अरे जनाब एक से एक टिप्पणियां आती हैं जो खून पी जाती हैं ! अतः ये कहना की टिप्पणियां उत्साह बढाती हैं एकदम गलत बात है ! 

कुछ लोगों की फितरत ही होती है की काट खाते हैं टिप्पणियों में !

अपनी तो एक ही आदत है , बिंदास लिखो , जिसको काटेगा वो अगले स्टेशन जाएगा ! लेकिन भईया विवादों के चक्रव्यूह में पडना अपने बस का नहीं है , बहुत होमवर्क करनी पड़ती है !

सच्चा लेखक वही है जिसके अन्दर जूनून है, जज्बा है ...और जिसके पास कोई उद्देश्य है !   लिखने की ऊर्जा और हौसला तो अन्दर से आता है ! प्रेरणा स्रोत तो आपके अन्दर का जूनून ही है ! अगर जूनून नहीं है तो लेखन व्यर्थ है ! अगर लेखन दिशाहीन है तो भी व्यर्थ है ! अगर आपका लेखन दूसरों की प्रशंसा किये जाने पर निर्भर है तो भी आपका लेखन व्यर्थ है !

दिल की ही सुना जाता है और दिल से ही लिखा जाता है !

हम लिखते हैं अपने विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए !  हमें पढने वाले  पाठकों की संख्या  ही हमारे लेखन की सच्ची सफलता है ! भले ही कोई टिपण्णी लिखे या न लिखे !

टिपण्णी तो बस एक सामाजिक रस्मो-रिवाज़ बन कर रह गयी है --एक हाथ से दे, एक ही हाथ से ले, गलती से भी दो हाथ न होने पाए !

कुछ दशक पूर्व तक जब मुंशी प्रेमचंद्र, दिनकर, मथिलीशरण गुप्त , बिस्मिल , बच्चन और प्रसाद का लेखन था तो कौन था वहाँ टिपण्णी लिखने वाला ?  कौन सी टिपण्णी उन्हें ऊर्जा देती थी ?

ऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !

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आप मुझे पढ़ा उसके लिए आपका आभार ! टिपण्णी अगले स्टेशन पर कर दीजियेगा !
मुस्कुराईये की आप  'ZEAL' ब्लॉग पर हैं !

25 comments:

  1. :)

    शुभकामनाएं आपको और आपके लेखन को

    हमेशा ऐसे ही रहें आप

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  2. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर लिखना तो जज्बे और जुनून से होता है. जब किसी को नहीं सुहाया तो फिर तीखी
    टिप्पणी और सुहा गया तो फिर दो चार शब्द लेकिन जब तीखा लगता है तो टिप्पणी ढेरों के भाव आती हें और सार्थक लगा तो पढ़ा और आगे चल दिए. लेकिन ये मापदंड नहीं होता है.

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  3. क्या लिखती हैं आप सच में...........
    एक ऐसे विषय को कितना बेहतरीन उठाया है आपने जिस पर कोई ब्लॉगर लिखना तो दूर सोचना भी नहीं चाहता।
    सच ही कहा है आपने कि लेखन तो दिल से होता है। टिप्पणियाँ तो उस महत्वाकांक्षा का प्रतीक हैं जिसके सहारे हम अपने दिल की बात नहीं अपितु पाठकों की मर्ज़ी के अनुसार लिखने को मजबूर हो जाते हैं। अब ऐसा लेखक भला लेखक कहलाने के लायक भी रहा क्या?
    यह तो वही बात हो गयी कि आज़ादी की लड़ाई कांग्रेस उसी शर्त पर लड़ेगी जब आज़ादी के बाद उसे सत्ता सौंप दी जाए। जिस प्रकार कांग्रेस को आज़ादी में कोई interest न होकर केवल सत्ता में रूचि है उसी प्रकार ऐसे लेखकों को भी लेखन में नहीं अपितु टिप्पणियों में रूचि है। असली लेखक वही है जिसे लिखने में मज़ा आता हो, फिर टिप्पणियाँ चाहें एक भी न हो।
    लेखन कोई दूकान नहीं है जहां लेख के बदले टिप्पणी और टिप्पणी के बदले लेख बिके।

    इस विषय पर कितनी गहरी बात कही है आपने। मैं सच कहता हूँ कि मैं आपकी बात से सहमत ज़रूर हूँ किन्तु इतना बखूबी इसे मैं नहीं कह सकता था जितना कि आपने कह दिया।
    इस ब्लॉग जगत में भी इतना भटक गया किन्तु यही जाना कि सार्थक लेखन तो आपका ही है।

    जय माँ भारती...

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  4. बहुत सार्थक लिखा

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  5. बिन्दास लिखो दिव्या..सही कहा..ऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !

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  6. ऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !

    बेशक और लगी रहो इसी तरह

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  7. सच कहा, अच्छा लेखन अपनी राह चुन लेता है।

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  8. टिप्पणियों से तो ये बिलकुल तय नहीं होता कि कोई अच्छा लिखता है. बहुत से लोग टिप्पणी नहीं करते, असुविधा के कारण या विवाद में न पड़ने के डर से या इस कारण कि उन्हें लेख या कविता बहुत अच्छी लगी है. बिंदास लिखना चाहिए. टिप्पणी करना ना करना पाठक की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए.
    हम भी मुस्कुरा रहे हैं कि हम ज़ील के ब्लॉग पर हैं:)good going, keep it up!

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  9. अगले का तो पता नहीं अपन तो यहां भी टिप्पणी कर देते हैं.....वैसे भी जब विचार जब उछलने कूदने लगते हैं तो बाहर तो आएंगे ही..लेखन विचारों के संप्रेषण का बेहतरीन तरीका हैं।

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  10. बिंदास ....:-)))
    खुश रहो!

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  11. सहमत इस बेबाक आलेख के विचारों से. आभार..

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  12. सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.

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  13. जी जी बिल्कुल !

    कुछ लेखन
    दिल से होता होगा
    ये हम मानते हैं
    कुछ लेखन चिढ़ से
    भी होता है
    क्या आप भी
    जानते हैं ?

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  14. सच कहा ,कुछ ऐसा ही यहाँ भी लिखा है...
    उँगली छुड़ा लें
    http://shardaa.blogspot.in/2010/08/blog-post.html

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  15. ह्म्‍म्म्म... सही कहा आपने !:-)
    ~सादर !!!

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  16. लिखिये मन की आह को, क्या करनी है "वाह"
    शारद ने दी लेखनी , फिर किसकी परवाह
    फिर किसकी परवाह, लगन सिर चढ़कर बोले
    मेंहँदी का भी रंग, सँवरता हौले - हौले
    ध्यानावस्थित रोज, अपनी आँख मीचिये
    क्या करनी है वाह , मन की आह को लिखिये.

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  17. लिखना हरदम चाहिये,चुन चुन सुघड़ विचार
    सतत चले जब लेखनी, बढ़े कलम की धार
    बढ़े कलम की धार , यही नवयुग है लाती
    यही सम्हाले रहती है , हर युग की थाती
    किंतु जरूरी तत्व, लेख में सच का दिखना
    चुन चुन सुघड़ विचार,चाहिये हरदम लिखना ||


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  18. आज शायद में आपकी बात से सहमत ना हो पाऊं क्योंकि कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण ज्ञानी नहीं हो सकता इसलिए किसी भी लेखक को यही टिप्पणियाँ सच का आइना दिखाती है !!

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  19. कल 24/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  20. अच्छा लेखन टिप्पणियों का मोहताज़ नहीं है. शुभकामनाएँ सुंदर लेखन के लिये.

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  21. Khandelwal ji, First read the post carefully.

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  22. सच कहा आपने दिल की सुनकर दिल से लिखा जाता है शुभ-कामनाएं

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  23. सच कहा आपने दिल की सुनकर दिल से लिखा जाता है शुभ-कामनाएं

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