Friday, September 16, 2011

कहीं आप भी खुद को "गांधी" तो नहीं समझ रहे ?

जब रोम जल रहा था तो "नीरो" शहनाई बजा रहा था

आज जब हमारे देश में हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है , कहीं भ्रष्टाचार पाँव पसार रहा है तो कहीं मासूम नागरिक आतंकवादी हमले का शिकार हो रहे हैं। कहीं बलात्कार की घटनाएं आम हो रही हैं तो कहीं कन्या भ्रूण बलि वेदी पर चढ़ रही हैं।

कहीं देश के रखवाले घोटाले कर रहे हैं , तो कहीं सत्ता के सौदागर चुपचाप देश के अन्दर-बाहर कर रहे हैं।

ऐसी परिस्थितियां होने पर यदि इन अनियमितताओं के खिलाफ आवाज़ उठायी जाए तो ये हमारी अकर्मण्यता , असंवेदनशीलता और एक गैर जिम्मेदार नागरिक होने की परिचायक हैं।

ऐसी परिस्थितियों में तटस्थ रहने वाले , दुष्टों का मनोबल बढ़ाते हैं और निर्दोषों के साथ अन्याय करते हैं। खुद को गांधीवादी कहकर किनारा कर लेते हैं। इस तरह तो आप राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सरासर अपमान कर रहे होते हैं। गांधी जी तटस्थ नहीं रहते थे अपनी जनता के दुखों से सरोकार रखते थे। अनियमितताओं के खिलाफ आवाज़ उठाते थे। सत्याग्रह करते थे आन्दोलन करते थे। जड़ बुद्धियों को खदेड़कर ही दम लेते थे। अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होते थे। उनके संरक्षण में जनता सुरक्षित महसूस करती थी। एक पिता का साया पाती थी।

अतः आप भी तटस्थ रहकर खुद को गांधीवादी और शान्ति का पुजारी मत कहिये अपितु अपने आस-पास हो रही अनियमितताओं के खिलाफ आवाज़ उठाइये।

जैसे अन्ना , जैसे रामदेव, जैसे राजीव दीक्षित , जैसे शर्मीला इरोम , जैसे निगमानंद , जैसे अरुण दास आदि आदि....

ये ही हैं सच्चे अर्थों में आज के गांधी

Zeal

56 comments:

  1. विचारपूर्ण आलेख...

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  2. सही कहा .........अब तो आवाज उठानी ही चाहिए

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  3. सही कहा आपने, अनियमितताओं के खिलाफ़ आवाज उठानी नितांत आवश्यक है परंतु हर मनुष्य की एक पॄकॄति एक स्वभाव होता है. यहां मैं इतना ही जोडना चाहुंगा कि जिस आदमी की जो भी सामर्थ्य है, वो जिस भी तरीके से इसमें सहयोग दे सकता है, उसी तरीके से शामिल हो जाये, बाकी काम अपने आप पूरा हो जायेगा. अत्यंत उत्कॄष्ट आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. गांधीवादी का मतलब अहिंसावादी होता है बुज़दिली नहीं। और जिसके पास अहिंसा का शस्त्र है, वह ड्ट कर लड़ सकता है॥

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  5. देश का हित चाहने वाला हर व्यक्ति गाँधी है।

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  6. सहमत हूँ मैं आपकी हर पंक्तियों से ...विचारों को उद्वेलित कर दिया आपने इस लेख के माध्यम से....बहुत बढ़िया लेख बधाई आपको....

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  7. केवल आवाज उठाने से भी काम न चलेगा। साथ चलने वाले लोगों को लामबंद करना पड़ेगा।

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  8. आज लोग आतंकवाद को ख़त्म होते हुए देखना चाहते हैं।
    लेकिन सच्चाई यह है कि फ़िलहाल आतंक का अंत तो क्या यह कम होता हुआ भी नहीं लग रहा है।
    विदेशी लोग इस क्षेत्र को अशांत देखना चाहते हैं और इस क्षेत्र के राजनीतिज्ञ उनकी नीति को जानते हुए भी उन्हें बुरा तक नहीं कह सकते।
    धर्म-मत और क्षेत्रीय अलगाव को आधार बनाकर ये विदेशी शक्तियां एशिया को आपस में लड़ाती आ रही हैं बहुत पहले से।
    ईरान इराक़ को लड़ाया और अब पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को लड़ा रहे हैं। इसी तरह वे भारत को पाकिस्तान और चीन से लड़ाना चाहते हैं। एक दूसरे के प्रति आशंका के चलते ही वे अपने बेकार हथियारों को यहां भारी क़ीमत पर बेच पाते हैं और इसी ख़रीद फ़रोख्त में मोटा माल कमीशन के रूप में हमारे रक्षक ले लेते हैं। अलगाववादी नेता और अभ्यस्त बलवाई भी विदेशों से करोड़ों रूपया हवाला के ज़रिये लाते हैं तो कुछ कर दिखाना उनकी भी मजबूरी होती है। सो आतंकवाद आज एक उद्योग का रूप ले चुका है। जिसमें शिक्षित लोग अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
    हक़ीक़त तो यह है।
    आतंकवाद के ख़ात्मे का सही तरीक़ा

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  9. दिव्या दीदी, बेहतरीन
    कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने|

    होते हैं कुछ लोग ऐसे जो स्वयं को गांधीवादी बताकर इतराए फिरते हैं| गांधीवाद के नाम पर चित और पट दोनों को अपने हाथ में रखना चाहते हैं|
    दरअसल ये गांधीवादी नहीं हैं| जिनका कोई उद्देश्य ही न हो, वो क्या समझेंगे गांधी को?

    पहली बात तो कुछ बुरा देखना नहीं, यदि गलती से दिख भी जाए तो निंदा कर अपना पल्ला झाड लेने को ही अपना कर्त्तव्य समझ लेते हैं| जिसका बुरा हो रहा है, उसे भी उपदेश देते फिरते हैं कि आवाज़ मत उठाओ, विरोध मत करो, शान्ति बनाए रखो|
    कोई आपको गालियाँ दे या आपके बारे में ऊट-पटांग प्रचार करे, या कोई किसी से आपके संबंधों पर ही प्रश्न चिन्ह लगाए, किन्तु आप चुप रहो, सद्भावना बनाए रखो|
    आश्चर्य की बात तो ये कि इनके पास देने के लिए सारे उपदेश केवल उनके लिए ही हैं, जिनके साथ बुरा हो रहा है|
    बुरा करने वालों के पास जाकर इनका मूंह नहीं फूटता कि भाई तुम ऐसा मत करो, किसी को गालियाँ मत दो, किसी के बारे में दुष्प्रचार मत करो, किसी के संबंधों पर ऊँगली मत उठाओ| वहां जाकर तो ये कथित गांधीवादी जी हुजूर, हाँ साहब, बहुत अच्छा से आगे कुछ बोल ही नहीं पाते|

    ऐसे गांधीवादियों को भला कहाँ समझ गांधीवाद की?

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  10. दिव्या दीदी, बेहतरीन
    कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने|

    होते हैं कुछ लोग ऐसे जो स्वयं को गांधीवादी बताकर इतराए फिरते हैं| गांधीवाद के नाम पर चित और पट दोनों को अपने हाथ में रखना चाहते हैं|
    दरअसल ये गांधीवादी नहीं हैं| जिनका कोई उद्देश्य ही न हो, वो क्या समझेंगे गांधी को?

    पहली बात तो कुछ बुरा देखना नहीं, यदि गलती से दिख भी जाए तो निंदा कर अपना पल्ला झाड लेने को ही अपना कर्त्तव्य समझ लेते हैं| जिसका बुरा हो रहा है, उसे भी उपदेश देते फिरते हैं कि आवाज़ मत उठाओ, विरोध मत करो, शान्ति बनाए रखो|
    कोई आपको गालियाँ दे या आपके बारे में ऊट-पटांग प्रचार करे, या कोई किसी से आपके संबंधों पर ही प्रश्न चिन्ह लगाए, किन्तु आप चुप रहो, सद्भावना बनाए रखो|
    आश्चर्य की बात तो ये कि इनके पास देने के लिए सारे उपदेश केवल उनके लिए ही हैं, जिनके साथ बुरा हो रहा है|
    बुरा करने वालों के पास जाकर इनका मूंह नहीं फूटता कि भाई तुम ऐसा मत करो, किसी को गालियाँ मत दो, किसी के बारे में दुष्प्रचार मत करो, किसी के संबंधों पर ऊँगली मत उठाओ| वहां जाकर तो ये कथित गांधीवादी जी हुजूर, हाँ साहब, बहुत अच्छा से आगे कुछ बोल ही नहीं पाते|

    ऐसे गांधीवादियों को भला क्या समझ गांधी की?

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  11. जहां तक सवाल है बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, राजिव भाई, शर्मीला ईरोम अथवा अरुण दास जी का, तो यहाँ भी कथित गांधीवादियों के उपदेश उल्टी दिशा में ही फूटते हैं|
    हमेशा बाबा व अन्ना पर ही व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगता है| सरकार चाहे गरीबों का खून ही क्यों न चूस ले, किन्तु किसी का मूंह नहीं खुलता| जो मूंह खोलता है, वही सबसे बड़ा शत्रु...

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  12. अन्याय का प्रतिकार आवश्यक है. दायित्वबोध कराता एक प्रेरक आलेख. आभार!

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  13. नेताजी' शब्द की गरिमा जैसे आज के नेताओं ने घटा दी है.
    'गांधीजी' शब्द की गरिमा वैसे ही आज के पापुलर गांधियों ने घटा दी है.
    लेकिन 'नेताजी' शब्द संबोधन सुभाष चंद्र बोंस के नाम के आगे लगकर खोया गौरव पा लेता है...
    उसी प्रकार 'गांधी' शब्द की बैसाखी लेकर हम आज के समय में कुछ लोगों को आसानी से अनशन, सत्याग्रह करता देख सकते हैं. कुछ लोगों को समझोतावादी होता देख सकते हैं... कुछ लोगों को सौहार्द बनाने के चक्कर में अल्पसंख्यक टिप्पणी पाने वालों का साथ देते देख सकते हैं मतलब कि .. तुष्टिकरण की नीति पर चलते देख सकते हैं...

    पर आप भावुकतावश 'गांधी' शब्द को एक बलिदानी इच्छा वाले चरित्र के रूप में रख रहे हैं...एक सवाल दिमाग में आता है.. हम नाथूराम और मोहनदास को एकसाथ कैसे पूज सकते हैं? फिर सोचता हूँ कि गांधी से आगे उसका 'गांधीवाद' निकल गया है.. गांधी में कमियाँ तलाशी जा सकती हैं लेकिन गांधीवाद में नहीं... गांधीवाद को ध्यान में रखकर ही लोग आज भी प्रेरित होते हैं... इसलिये हम दो विपरीत चरित्रों को एक साथ पसंद कर पाते हैं.

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  14. ज़ुल्म होते देख के चुप रहने वाला ना तो इंसान है और ना ही गांधीवादी है. आप कि इस पोस्ट का ज़िक्र कल कि चर्चा मंच पे है.

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  15. जनता का रवैया समझ में नहीं आता. मुझे लगता है कि जनता मासूम है, और उसे निरन्तर बरगलाया जा रहा है. अन्यथा जिन लोगों ने अंग्रेजों को निकाल बाहर किया वे जरा सी चीजों को दूर नही कर पा रहे, आश्चर्य है.

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  16. गांधी की यही पहचान है। सही अर्थों में आपको ही आगे आना होगा....कोई बाहर से आकर देश को ठीक नहीं करेगा..हमे खुद ही अपने देश के लिए आगे आना होगा....भष्ट्राचार, आतंकवाद, देश में छिपे गद्दार, नशा, स्र्त्री-पुरुष का शोषण समेत सभी समस्याओं से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास की जरुरत होती है। गांधी जैसा साहस अगर आधों में भी आ जाए तो देश का कायकल्प होते देर नहीं लगेगी।

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  17. सुन्दर और सार्थक पोस्ट बधाई |आपका दिन शुभ हो

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  18. Agree.... We all need to raise voice.
    If every individual do it, we can bring a great change.

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  19. जब गंगा आदि नदी में जल बह रहा होता है, तब दो तट आम आदमी को दीखते हैं...
    काशी, चित्रकूट आदि घाटों में एकत्रित हो बहिर्मुखी हिन्दू उस तटस्थ, निर्गुण परमात्मा को साकार के माध्यम से जानने का प्रयास करता है, कुम्भ मेले में चिंतन जैसे... और कबीर समान कुछ निर्गुण के गुण का बखान करते हैं... तो दूसरी ओर, तुलसीदास जी भी कह गए "चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़ / तुलसीदास चन्दन घिसें / तिलक देत रघुबीर" , एवं "जाकी रही भावना जैसी / प्रभु मूरत तिन देखि तैसी",,, इत्यादि...
    एक ही समय में अयोध्या के राजा दशरथ थे तो दूसरी ओर उनसे विपरीत प्रकृति वाले लंका के राजा रावण भी थे,,,
    और केवल 'राम लीला' द्वारा प्राचीन हिन्दू के माध्यम से, अर्थात त्रैयम्बकेश्वर, ब्रह्मा-विष्णु-महेश, यानि अमृत 'शिव', परमात्मा ,को मानने वालों के कहे गए वचनों, उनकी कथा-कहानियों द्वारा 'हम' वर्तमान, कलियुगी मानव अपने को भाग्यवान, धन्य मन सकते हैं...

    किन्तु जब नदी में उफान आता है (उबलते दूध जैसे), अर्थात बाढ़ आती है, तो तटों पर पुरानी मरी मिटटी को जीवन दान देने हेतु, उस पर नयी जीवन दाई मिटटी फैलाने के लिए प्रकृति को काम करना पड़ता है (ज्वालामुखी विस्फोट द्वारा भी जैसे), अर्थात शयद यह संकेत है कि वास्तविक कर्ता परमेश्वर ही है और मानव केवल एक सीमित शक्ति वाला माध्यम... ग्यानी हो या विज्ञानी, सभी को अन्ततोगत्वा आत्म-समर्पण करना ही है उस तटस्थ निराकार परमेश्वर में, जो ब्रह्माण्ड का मालिक है, जिसने हमें 'दो गज ज़मीन' का ही कुछ देर का अधिकार दिया है...

    सत्य तो यह है कि प्रलय की स्थिति में कोई ट बचेगा ही नहीं :) "न रहेगा बांस / न बजेगी बांसुरी :)

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  20. गांधी नाम एक ब्रांड की तरह इस्तेमाल हो रहा है. गाँधी जी की नीतियों से न इनका कोई वास्ता है और न ही गांधी सी समझ. गाँधी टोपी लगा लेने से कोई गांधी नहीं हो जाता जरूरत है गांधी तत्व के समझ की. ऐसे ही "मै भी अन्ना" एक ब्रांड बन रहा है और इसे मात्र ब्रांड बनने से रोकना होगा वर्ना सारे भ्रस्ताचारी ,कालाबाजारी " मै भी अन्ना" का ब्रांड माथे पर चिपका कर " गांधी" सा हाल करेंगे जैसा इन तथाकथित गांधीवादी नेताओ ने किया गांधी तत्त्व के साथ .

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  21. विचारनीय एवं गंभीर आलेख

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  22. अपना अपना कर्म सभी को करना होगा ||
    चुपचाप रहे निष्पक्ष रहे तो --
    मरना होगा नहीं लिखूंगा ||--क्योंकि --
    जिन्दा होने के सुबूत- खोजूंगा पहले |

    बहुत बढ़िया |
    बधाई |

    सबसे बड़ी समस्या-
    कांग्रेस बोले आतंकी

    भाजप जदयू बाम मोर्चा
    सी एम् के मन की

    महंगाई से पहले इससे
    अपनी जान बचा

    कई साल से चालू इसकी
    कातिल नौटंकी


    बोलो कौन ?? मत रहो मौन ????

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  23. आम जनता का गला तो मंहगाई ने दबा रखा है, आवाज निकलती ही नहीं। अपना पेट भरे या आवाज निकाले?

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  24. नहीं...उनके अनुयायी भी नहीं बन पाये।

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  25. वर्तमान में ही रहस्यवाद के कवि प्रश्न पूछ गए, उत्तर भी अन्य कवि दे गए...
    मेरा भारत महान है :)
    वर्तमान भारतीय क्या सोया है? अथवा विष के प्रभाव से उसका कंठ विषैला, और ह्रदय में अग्नि है?

    प्रश्न के लिए देखिये मेरे बचपन के प्रिय गायक की आवाज़ में, लिंक में...
    http://www.youtube.com/watch?v=LpgQm6UXEAo

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  26. In short , " Be the change you like " will take us out of the present travails. Politicians of all hues have brought things to this pass. And maybe we are also responsible to some extent. It is only a ritual to remember and pay homage to Gandhiji on 2nd October and 30th January. In fact no one comes anywhere near Gandhi ji , though we may try to find him in people around us !
    A thought provoking and action- inducing writeup, I must say.

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  27. सार्थक व सटीक लेखन के लिये आभार ।

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  28. बहुत सुन्दर प्रभावी पोस्ट |

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  29. गांधी बनने से ज्यादा गांधी को आत्मसाद करना जरूरी हैं ...तभी एक नयी क्रांति संभव होगी ..

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  30. gahan aaur atm chintan ka bishay hai..yah bichar bicharon ki ek deergh shrnkhla ka srajan karti hai..badhayee aaur sadar pranam ke sath

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  31. मै तो नहीं हूँ गाँधी , लेकिन गाँधी का प्रबल पक्षकार हूँ .

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  32. सही कहा दिव्या जी.. हमे एक जुट हो कर इन सब के खिलाफ आवाज़ उठानी ही चाहिए....

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  33. गांधी जी के चरण की धूल बराबर भी खुद को बना लूं, तो जीवन सफल हो जाए।

    जो सही नहीं है उसका विरोध करने का मेरा अपना तरीक़ा है। वह भी परिस्थिति, व्यक्ति और घटना के सवरूप पर अलग-अलग होता है।

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  34. मुझे लगता है पहले हमे अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए..........पहले खुद को बदलना ज़रूरी है............तुम सुधरोगे युग सुधरेगा|

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  35. सच कहा है ... पर आज नेताओं और मीडिया ने गांधी को कांग्रेस का पेटेंट कर दिया है ...

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  36. आदरणीय अजीत गुप्ता जी
    आपकी बात तो सही है, किन्तु आम जनता खुद को गांधीवादी भी तो नहीं कहती| यहाँ तो गांधीवादियों को ही संबोधित किया गया है|
    जो स्वयं को गांधीवादी कहते हैं, वे आवाज़ उठाने में सक्षम हैं| किन्तु इनकी आवाज़ तो आवाज़ उठाने वालों पर ही फूटती है| ऐसा कर वे गांधी का भी अपमान करते हैं|

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  37. गांधी जी तो ‘जिद करो , जीत लो‘ में विश्वास करते थे। अन्याय के प्रतिकार के लिए वे जिद करते थे और उसमें वे सदैव सफल रहे।
    यदि किसी के मन में अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध विचार नहीं उठते तो फिर वह मनुष्य ही क्यों है ?

    विचार करने, आवाज उठाने और संगठित होकर कदम बढाने का समय आ गया है।

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  38. आज जाने क्यों मुझे आपका पोस्ट कुछ अधुरा लग रहा है.
    आज हमें गाँधी की नहीं अपितु सुभाष चन्द्र बोस तथा भगत सिंह जैसी विचार धारा की अधिक जरुरत है.
    आज ऐसी विचारधारा वाले लोगो को सबसे अधिक मुर्ख माना जाता है.
    आपने हाल में ही देखा की बाबा राम देव तथा अन्ना के साथ कैसा छल भरा वर्ताव किया गया.
    जब तक गाँधीवादी तथा भगतसिंग के विचारों का संयोजन नहीं होगा तब तक सरकारें अपनी मनमानी करती ही रहेंगी इनके सेहत पर कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला .
    मेरी पीढ़ी वालो जागो तरुणाई नीलाम न हो
    इतिहासों के शिलालेख पर कल यौवन बदनाम न हो
    अपने लोहू में नाखून डुबोने को तैयार रहो
    अपने सीने पर कातिल लिखवाने को तैयार रहो

    हम गाँधी की राहों से हटते हैं तो हट जाने दो
    अब दो-चार भ्रष्ट नेता कटते हैं तो कट जाने दो
    हम समझौतों की चादर को और नहीं अब ओढेंगे
    जो माँ के आँचल को फाड़े हम वो बाजू तोड़ेंगे

    अपने घर में कोई भी जयचंद नहीं अब छोड़ेंगे
    हम गद्दारों को चुनकर दीवारों में चिन्वायेंगे

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  39. बिलकुल सही. चाहे हम कुछ कर सकें या नहीं, विरोध प्रदर्शन तो किया ही जा सकता है.

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  40. अच्छे सार्थक विचार हैं आपके.ताऊ रामपुरिया जी की बातों से सहमत हूँ.

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  41. जागो रे भाई ...जागो!!!

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  42. विश्वास रखिये--- जब -जब भी अधर्म चरम पर होगा , कृष्ण का अवतरण जरूर होगा. बस उसे पहचानने वाली नजर चाहिये..सार्थक लेख..

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  43. bahut acchi post ab aage hame aana hi chahiye

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  44. "कर्त्तव्य ही पूजा है " निर्वैर भाव से जो किया ,आज के प्रतिमानों से भी आगे गया , .........विवेकशील पोस्ट सम्माननीय है ,बहुत -२ आदर आपको /

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  45. bahut achchi post hai julm ko sahna bhi anyaay hai har kisi ko apni kshamta ke anusaar anyaay ke khilaf aavaz uthan chahiye.

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  46. बहुत सटीक अभिव्यक्ति....हर कोई गांधीजी नहीं बन सकता है .... आभार

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  47. स्वंय के दायित्वों को तो याद रखना ही चाहिए, प्रेरणादायी आलेख आभार

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  48. सही कहा आपने....
    यह नैतिक पुनर्जागरण का वक़्त है...
    अपने भीतर सदाचरण का वक़्त है...
    सादर...

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  49. आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (९) के मंच पर प्रस्तुत की गई है आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हमेशा अच्छी अच्छी रचनाएँ लिखतें रहें यही कामना है /
    आप ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर सादर आमंत्रित हैं /

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