अब चाह नहीं है जीने की ..
हर , तरफ है फटेहाल , अब नहीं ऊर्जा सीने की।
'यत्र पूज्यते नार्यस्तु'  के देश में अस्मिता लूटी जा रही पल-पल
बिलख रही हर बच्ची-बच्ची , भारत-माता सिसक रही
अब चाह नहीं है जीने की ...
कृष्ण-राम की भूमि पर , हिन्दू का कत्लेआम मचा
जीने का हक छीना उनसे, चहुँओर हो रहा नरसंहार
अब चाह नहीं है जीने की ...
सदियों से दिल में बसी आस्था के प्रतीक मंदिरों को नष्ट किया
छीन भरोसा जनता का अपनों का ही प्रतिकार किया
अब चाह नहीं है जीने की ...
दैत्य दानवों के मुख के जैसा, आतंकवाद मुख फाड़ रहा,
किया बसेरा डर ने, उर में --अंतर्मन भयभीत किया,
अब चाह नहीं है जीने की ..
अकूत सम्पदा के धनी नगर में, चोर-बाज़ार गरम हुआ
 कोयले से कौप्टर तक का,  मक्कारों ने व्यापार किया
अब चाह नहीं है जीने कि…
 रामसेतु को एडम्स-ब्रिज कह, गद्दारों ने लूट लिया,
लम्पट,  अधम, हिंसक-मानुष ने,  गो-माता का खून पीया,
अब चाह नहीं है जीने की ..
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टूट-टूट कर प्यार किया, हर बात तुम्हीं से कह डाली ,
उसपर से तुमने इल्जाम लगा , सब छीन लिया, सब छीन लिया.
अब चाह नहीं है जीने की ...
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Zeal