Thursday, November 22, 2012

ब्लॉगर्स का संशय बना मुसीबत--मदद करें कृपया !

kya baat ajkal apni post me DIVAS ban kar comment karna band kar diya kya. on इस देश में शिक्षा की भी क़द्र होती तो...

Anonymous on 10/10/12
--------------------------------------------------------------------------------------

उपरोक्त टिपण्णी में आरोप है की दिव्या और दिवस एक ही हैं!  कुछ समय पूर्व अनवर जमाल को संशय हुआ था की मुम्बई के डॉ रूपेश श्रीवास्तव और दिव्या एक ही हैं , डॉ रूपेश तो अब इस दुनिया में नहीं  हैं लेकिन दिव्या अभी तक सबका खून पीने के लिए जीवित क्यों है ?-- फिर वाणी गीत जी को संशय था की रचना जी और दिव्या एक ही हैं ! शालिनी कौशिक को तो दिव्या स्त्री ही नहीं लगती , उन्हें संशय है की वह एक पुरुष है !

हे भगवान् , क्या कोई है इस पूरे ब्लॉगजगत  में , जो  मेरी मदद कर सके और मुझे मेरे , मैं ही होने का प्रमाण पत्र दे सके ?

सनद रहे आपका दिया हुआ प्रमाण पत्र , मेरे जीते-जी और मेरे मरणोपरांत मेरे काम आएगा !

आपका एहसान रहेगा मुझ पर-------आपके प्रमाण पत्र के इंतज़ार में---

सादर,
आपकी दिव्या
 'Zeal'
 Anonymous
on 10/10/12

31 comments:

vikalpseva said...

दिवस को व्यक्तिगत रूप से जनता हूँ अतः ये संशय
नहीं है मुझे ...
मुझे लगता है की ब्लॉग मे भी हिंदुवादियों और
राष्ट्रवादियों पर वाहियात हमले शुरू हो गए हैं ॥ यदि आप प्रज्ञा ठाकुर या हिन्दू धरम के खिलाफ लिखना शुरू करेंगी तो आप के चरण चुंबन के लिए ये छिछले सेकुलर परजीवी हमेशा तत्पर रहेंगे॥
जय श्री राम

आशुतोष

ANULATA RAJ NAIR said...

:-)

दिव्या किसी की परवाह करती /या किसी की सोच के लिए परेशान होती अच्छी नहीं लगती....
मस्त रहो....आपकी पहचान यहाँ आपकी लेखनी है बस....
सस्नेह
अनु

दिवस said...

बिलकुल सही तो कहा है, दिव्या, दिवस, रुपेश अलग कहाँ हैं?
रुपेश भैया तो चले गए किन्तु दिवस अभी तक जिन्दा है।
आप भी न...
अब एक प्रमाण पत्र में देता हूँ। जल्दी ही आपका दर्शन लाभ लेने आऊंगा। तब आप दोनों की तस्वीर लेना हाथ में तख्ती पकड़ कर जिस पर हमारा संक्षिप्त परिचय होगा। उस तस्वीर को आप ब्लॉग पर ज़रूर लगाइयेगा|
बाकी मूर्खों का क्या है, वे तो अनर्थ प्रलाप मचाते ही रहेंगे।

वैसे सबसे अधिक आपत्ति तो मुझे शालिनी कौशिक के कथन से है। उसे दिव्या स्त्री नहीं दिखाई देती, और मुझे शालिनी कौशिक इंसान ही नहीं दिखाई देती।

Shalini kaushik said...

दिव्या जी आप चाहे जो भी हों किन्तु मेरे नाम के इस्तेमाल से पहले सौ बार सोच लें मैंने कभी इस संबध में कुछ कहा ही नहीं फिर आप कुछ भी हों मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता .मुझे यहाँ केवल ब्लोग्गर्स के लेखन से मतलब है व्यक्तित्व से नहीं

प्रवीण पाण्डेय said...

हा हा, इतना संशय क्यों..

रचना said...

cmmon , its a matter to rejoice that u are omnipresent

why do u want a certificate from those who are bloggers are u sure they all are what they project themselfs to be


पूरण खण्डेलवाल said...

राष्ट्रवादियों पर इस तरह के आरोप लगाकर उनका ध्यान भटकाने की नाकाम कोशिश रहते हैं उनकी अवहेलना करते हुए आगे बढते रहना चाहिए !!

SANDEEP PANWAR said...

आप देश भक्ति पर लिखती है, देश भक्तों को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं। पाँचों अंगुली बराबर नहीं होती, चिंता ना करे, इसे दूसरे के लिये छोड दे। आप अपने नेक कार्य में लगी रहे।

ZEAL said...

शालिनी जी , इतनी जल्दी आप अनवर जमाल की पोस्ट पर की गयी अपनी टिपण्णी को भूल गयीं ? आप तो नारी सशक्तिकरण पर बहुत लिखती हैं , लेकिन यदि कोई स्त्री सशक्त की श्रेणी में आ जाए तो क्या उसे 'पुरुष' का दर्जा दे दिया जाएगा ?

रविकर said...

शंका हो जाये अगर, कठिन निवारण होय ।

घने अँधेरे में डगर, खुद से जाती खोय ।|

अब तो मत करो शंका

सादर -

प्रतिभा सक्सेना said...

बेकार बातों को महत्वहीन मान कर छोड़ दीजिये-ये तो दुनिया है !

Aruna Kapoor said...

...किसी के कुछ कहने से आपको फरक नहीं पड़ना चाहिए दिव्याजी; जब आप खुद जानती है कि आप कौन है!...मैं कहती हूँ कि झील और दिव्या एक ही है!...अब बताइए?

दिवस said...

आपको स्त्री न मानने वाली टिप्पणी अनवर जमाल की पोस्ट पर मैंने भी पढ़ी थी। वह टिप्पणी शालिनी कौशिक ने नहीं अपितु शिखा कौशिक ने की थी।

प्रतुल वशिष्ठ said...

सामान्य जन के लिए भेद-प्रभेद अहमियत रखते हैं। लिंग-भेद और वर्ण-भेद से उबर आने वाले लोग ही वास्तव में शोभायमान होते हैं, श्री के धनी होते हैं, कर्म के मूर्त रूप होते हैं।


मुझे भी लगता है दिवस और दिव्या, दिव्या और रचना, या फिर डॉ. रुपेश जैसे प्रशंसक सबके सब एक ही हैं। सभी में उस परमपिता परमेश्वर का सर्वश्रेष्ठ अंश है और था जो सामान्य जन को मुग्ध किये रहता है। पिण्ड की नांई अपने इर्द-गिर्द घूमने को बाध्य किये रहता है।



आपने ' सौर्य मण्डल' के चारों तरफ ग्रह-उपग्रह, धूमकेतु आदि मंडराते देखे होंगे वे सभी उसकी दिव्यता से बंधे हैं। इस मंडल की चकाचौंध देखने वाले सामान्य जन यह जान ही नहीं पाते कि दिवस और दिनकर में भेद क्या है - इसमें उनका दोष नहीं।

Shikha Kaushik said...

दिव्या जी -भूल शालिनी जी नहीं रही आप भूल रही हैं .वो टिप्पणी मैंने की थी .मैंने आपकी पोस्ट में -लेखन में जो कट्टरता देखी थी उसी कारण मैंने यह विचार व्यक्त किया था कि ये कोई स्त्री नहीं लिख सकती है .या तो वे आलेख आपकी भाषा शैली में नहीं हैं या आप स्त्रियोचित सौम्यता को तिरस्कृत कर चुकी हैं .जय सिया राम जी की !!

ZEAL said...

.

शिखा कौशिक जी , मुझे ख़ुशी है आपने यहाँ आकर अपनी अभद्रता पूर्ण टिपण्णी को स्वीकार तो कर लिया ! वरना मुझ पर ये इलज़ाम आता की मैंने झूठ लिखा है ! आपको दूसरों पर ऊँगली उठाना कुछ ज्यादा ही पसंद है शायद या फिर अनवर जमाल की सोहबत का असर हो गया है आप पर ! तभी आपको दिव्या पुरुष लग रही है ! आपका ये कहना की मैं स्त्रियोचित सौम्यता का अपमान कर रही हूँ, ये आपकी निम्न मानसिकता , ईर्ष्या और द्वेष को परिलक्षित कर रहा है ! आपके अन्दर लिंग-भेद (जेंडर बायस) बहुत ज्यादा है ! आपके हिसाब से यदि भाषा में दृढ़ता है और कट्टरता है तो वह पुरुष का ही हो सकती है ! आप जैसी अज्ञानी स्त्रियाँ स्त्री और पुरुष दोनों को अपमानित करती हैं ! मुझे तुम्हारे 'स्त्री' होने पर संदेह है ! एक स्त्री का अनायास अपमान कोई शालीन स्त्री नहीं कर सकती ! तुम या तो मूढमति हो या फिर किसी की एजेंट !

.

ZEAL said...

प्रतुल जी , यदि आपने कभी मुझसे दूर संचार माध्यम द्वारा बात की हो और मेरी आवाज़ सुनी हो तो लोगों के संशय का निवारण सरल शब्दों में भी कर सकते हैं ! आपकी जटिल टिपण्णी से तो कुछ सौम्य प्रकृति वाले और भी ज्यादा कन्फ्यूज़ हो जायेंगे !-- आभार !

दिवस said...

@शिखा कौशिक,
भाषा शैली से आप स्त्री-पुरुष की पहचान कैसे करती हैं? स्त्रियोचित सौम्यता क्या केवल "अजी सुनते हो जी" जैसे शब्दों में ही झलकती है? क्या आप केवल स्त्रियों को नरम, पुलपुली या अबला ही बने रहने देना चाहती हैं? क्या स्त्री यदि उग्र रूप धारण करे तो उसके स्त्रीत्व पर प्रश्न चिन्ह आप लगा सकती हैं?
फिर तो झांसी की रानी भी स्त्री नहीं थी। उसने तो तलवार थाम बड़ी बेरहमी से अंग्रेजों के सर काटे थे। उसे भी पुरुष ही मान लिया जाए आपके हिसाब से?
काली, चंडी, दुर्गा, भवानी जैसी देवियों को देवी न कहकर देवता पुकारना चाहिए फिर तो। क्योंकि उनके इन रूद्र रूप को तो आप स्त्रीत्व के क्राइटेरिया में काउंट ही नहीं करतीं। आपके हिसाब से तो स्त्री को केवल चाँद-तारे, फूल-खुशबू, बरखा-सावन और गुलाबी रंग तक ही सीमित रहना चाहिए। झींगर और चूहों से डरना चाहिए और मिक्की माउस की फैन बने रहना चाहिए। क्या महिला वीरांगना नहीं हो सकती?
फिर क्या नारी शसक्तीकरण की बात करती हैं आप? एक सशक्त नारी आपको रास नहीं आ रही।
आप खुद एक स्त्री हैं या स्त्रीत्व के नाम पर धब्बा? स्त्री का सशक्तिकरण आपको पसंद नहीं। एक साहसी स्त्री आपको इतना खटकती है कि उसके साहस के कारण आप उसे स्त्री ही नहीं मानती।
मुझे तो दिव्या जी की भाषा में कोई कमी नज़र नहीं आती। उनका साहस ही उन्हें एक अलग पहचान दिलाता है।
और तुम कौन होती हो किसी को स्त्रीत्व की पहचान करवाने वाली? तुमसे तो किसी ने पुछा नहीं कि स्त्री बने रहने के लिए क्या लिखें, कैसा लिखें?

जय सिया राम जी की...........

दिवस said...

और ये ऊपर जो Anonymous की जो टिप्पणी है, मुझे तो लगता है कि ये बेनामी अनवर जमाल ही है। वैसे ऊपर की टिप्पणियों से लगता है कि और किसी को आपके अस्तित्व पर कोई शंका नहीं है। जाहिर है अब अनवर जमाल और शिखा कौशिक का भी भ्रम टूट गया होगा।

Bikram said...

Dr Sahiba how are you doing.. :) I had a smile reading this little article , and also makes me curious what type of blogs do you go ot and what sort of people go to those blogs ..

But hey so many want to know you or want to find out about you, aap to celebribity ho gayinnn..

Mere ko Bhoolna nahin please jab aap wahan oopar Celebrities main rahengi.. :) Remember me pleaseeeeeeeeeeeee


Its amazing what this blogworld is coming to , people are __________
I recently had the similar situation where someone wanted to use me but fire at others ..

anyway forget about them , I know you pretty well ... and you dont need any pramaan patra .. LET THESE PEOPLE FIND A PARAMAAN PATRA to say otherwise .. their job.. why are you getting tense :)

Bikram's

प्रतुल वशिष्ठ said...

यह सच है - 'दिव्या' नाम एक ऎसी स्त्री का है जो 'स्त्री' शब्द को गौरव देती है। 'सम्बन्ध' शब्द को सही अर्थ देती है। जिससे इनका स्थिर जुडाव होता है ... वह मन में कलुषता पाल कर रह ही नहीं सकता। मेरी तमाम कविताओं की 'अनायास बनी प्रेरणा' सौम्यता और तेजस्विता का ऐसा मिश्रण - यदि जिसे मिले वह स्वयं को धन्य माने। इसके साथ ही यह भी शर्त - जो क्षण मात्र को भी अपाक मानसिकता से भजे वह उसी क्षण पृथक कर दिया जाए। मुझे इस स्वर को सुनने के एकाधिक बार अवसर मिले हैं। दिवस से भी मेरी बात एक बार तो हो ही चुकी है। और उनका मोबाइल नंबर मोबाइल सेट चोरी चला जाने के कारण से सुरक्षित न रह सका।


जहाँ तक 'दिव्या' 'दिवस' और 'रचना' जैसे व्यक्तित्वों की बात है ... इनका होना ही अपने आप में ब्लॉग-जगत के लिए वरदान है।


पाठकों से कहना चाहूँगा :

- 'दिव्या' जी को यदि जानना है तो 'प्रसाद' साहित्य के नारी पात्र और 'प्रेमचंद' साहित्य के नारी पात्रों को सूक्ष्मता से पढ़ जाओ। ऐसे चरित्र युग में एक-दो ही जन्म लेते हैं।

- 'दिवस' जी को यदि जानना है तो 'राष्ट्र-प्रेम' को जीना सीखो। उनकी कम (युवा) आयु में जितनी ऊर्जा है वह ज़मीन में बीज बोने में विश्वास करती है न कि कागजों या वेब-पृष्ठों का काला करने में। फिर भी उनके से विचार यदि देश के पूरे युवा वर्ग के हो जाएँ तो 'भारत' अपनी खोयी प्रतिष्ठा को सम्पूर्णतः पा जाए।

- 'रचना' जी को यदि जानना है तो संवेदनशीलता को समझना होगा ... उनकी सी संवेदनशीलता ढूँढने से नहीं मिलेगी ... एक सामान्य-सी स्त्री तक को यदि कोई ठेस (चाहे वह भावनात्मक ही क्यों न हो) लगती है वे सुरक्षा निमित्त देवी की तरह प्रकट हो जाती हैं। तब प्रतीत होता है ब्लॉग-जगत में भी कोई 'सरंक्षिका' का धर्म निभा रहा है। उनके लेख मुझे विषय पर नए सिरे से सोचने को बाध्य करते हैं।


'दिव्या' मेरे लिए अब न केवल एक ब्लोगर हैं बल्कि एक बहिन रूप भी है। जो समय-समय पर मेरी भावनात्मक मूर्खताओं को दर्पण दिखाता है। यही कर्तव्य तो है एक बहिन का।

लोकेन्द्र सिंह said...

मैं दिवस जी और दिव्या जी... दोनों को व्यक्तिगत रूप से जनता हूँ.. जो इस तरह की सोच रखते हैं निश्चित ही उनके ही असल होने पर संशय होता है...

Anonymous said...

锘緼ustralian sheepskin boots are preferred and distinct. What has been achieved by them has certainly not been carried out by any else type of cheap ugg boots[/url] footwear ahead of. Instead than contemplating them as only fashionable components or existence essentials, most current persons choose for concerning them as heart and soul mates. So, how can individuals effortless shoes grab so a lot of eyeballs and even be beloved by a massive selection of a-record celebs?

Just take only a glimpse on today' s marketplace you will find numerous brand names supplying you excellent-hunting sheepskin footwear. But in any case, they consider the glow off when UGG boots strike the shelves. The emergence of Australian wool footwear injects a refreshing flavor to the style marketplace.

Australian sheepskin boots make so several people today crazily intrigued. The incomparable reputation is largely attributed to their best blending among look and practicality. Even nevertheless designers continually arrive up with deluxe thoughts as present-day individuals constantly clearly show tougher appetites for elegance, they never ever employ hefty embellishments on wool footwear from Australia. New editions are repeatedly launched from this brand name. But seldom have devotees discovered ornate decorations on those people smooth surfaces. What artists actually want to make is to permit these boots uncomplicated, but innovative.

Till now, most collections from the UGG organization are legitimate hits in the vogue dwelling. Females preferring mini skirts will really enjoy to enhance their slim legs with vintage tall. Younger girls would like to choose typical mini for their everyday appears. The new version last year-bailey button surprises and delights countless sheepskin footwear fans. But like in advance of, [url=http//www.uggbootscheaperoutlet.com]ugg sale[/url] they do not carry added elaborations. Even despite the fact that there are, they ought to be vintage beads and laces, seeming fairly exquisite.

Due to understated seems to be, sheepskin boots are quick to be matched. A basic but modish type enables you to select any costume in your closet to pair with cheap ugg boots[/url] it. In every assortment, at the very least 5 hues are blanketed. Among black, chestnut, chocolate, sand and gray, nearly everyone finds a best search. On people stylish looks, genuine merino wool provides perfect convenience and sturdiness. How can these shoes move numerous people' s heartstrings? Now, the response is crystal clear. Like footwear from other famous brand names, these boots are trendy and great-hunting. Compared with footwear from other properly-known designers, these boots do greater on building classy and comfy footwear.

महेन्‍द्र वर्मा said...

व्यक्ति और व्यक्तित्व पहचानना सबको नहीं आता।
कृति और कृतित्व को परखना सबको नहीं आता।
मातृशक्ति और मातृत्व को समझना सबको नहीं आता।

vandana gupta said...

आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (24-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

सञ्जय झा said...

guruji se sahmat......


pranam.

amit kumar srivastava said...

हे प्रभु ! ऐसा भी होता है | अच्छा हुआ ,जो लोग मुझे कम जानते हैं | आपकी तरह फेमस हो कर जीना बहुत मुश्किल है ,इस ब्लॉग जगत में |

kshama said...

Interesting logon ke saathinteresting baaten hoti rahtee hain!

Asha Joglekar said...

अरे छोडिये दिव्या जी ऐसे लोगों को आप तो लिखती रहिये और ऐसों की टिप्पणी को डिलीट कर दीजिये ।

Ramakant Singh said...

हमें किसी भी ब्लोगर को अपमानित नहीं करना चाहिए

Anonymous said...

PihUvx [url=http://onnrainnmcm.com/#41391]MCM 店舗[/url] XfbPex http://onnrainnmcm.com/ SzmUhv [url=http://mcmsenmon.com/#29337]MCM 通販[/url] ElnTyl http://mcmsenmon.com/ BxfAqp [url=http://ninnkimcm.com/#74141]MCM バッグ[/url] JzzIvl http://ninnkimcm.com/ NslEkd [url=http://kaidokumcm.com/#20492]MCM 通販[/url] EmmPdt http://kaidokumcm.com/ UonWlk [url=http://manzokumcm.com/#16416]MCM 店舗[/url] CkyBcs http://manzokumcm.com/ SrrYwk http://chloenihon.com/ ZlsMam [url=http://chloenihon.com/]クロエ キーケース[/url] VykQda http://louboutindendou.com/ LrtLcj [url=http://louboutindendou.com/]クリスチャンルブタン[/url] WlmOxu http://guccisenmon.com/ FsuStq [url=http://guccisenmon.com/]グッチ[/url] NsvJya [url=http://mcmhannbai.com/]MCM 財布[/url] RggWli [url=http://mcmhannbai.com/]MCM 通販[/url]