Wednesday, December 28, 2011

मेरा तुमसे मतभेद है मनभेद नहीं

अक्सर लोग ये कहते हुए मिल जायेंगे -"मेरा तुमसे मतभेद है , मनभेद नहीं ! लेकिन सच तो यही है की ९० प्रतिशत लोगों में मतभेद होते ही मनभेद भी हो जाता है ! बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं और अलग हो जाते हैं एक दुसरे से! मौका पाते ही एक दुसरे पर व्यक्तिगत आक्षेप और छींटाकशी करते हैं ! आलोचनाओं के दौर से शुरू होकर उस व्यक्ति के अपमान और फिर दुश्मनी तक पहुँच जाते हैं !

वैसे यदि मतभेद होने के बावजूद भी मनभेद न हो तो यह एक आदर्श स्थिति होगी , लेकिन यदि मनभेद भी हो जाए तो दूरी बना लेनी चाहिए , बजाये इसके की मल्ल-युद्ध शुरू कर दें !

Friday, December 23, 2011

हमका अईसा-वईसा न समझो हम बड़े काम की चीज़ --कांग्रेस


सन २०११ कब आया और कब ख़त्म हो चला पता ही नहीं चला ! आप लोगों ने तो शायद कुछ सार्थक किया ही न हों लेकिन हमारी सरकार जिसे झेलने के सिवा हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं हैं , उसने कई मक़ाम हासिल किये हैं इस जाते हुए वर्ष में !

क्यूँ न एक नज़र डाली जाए देश की गौरवशाली सरकार पर--

१-- हम पिस्सुओं की तरह चिपके रहेंगे इस देश से , जोंक की तरह खून पियेंगे और दीमक की तरह चाट जायेंगे इस देश को ! हमने अपना वादा निभाया है पूरा-पूरा , आगे भी निभायेंगे !

२-हम परिवारवाद को ही निभायेंगे ! हम विदेशी हैं तो क्या हुआ , भारत में तो संयुक्त परिवार की परंपरा है, हम सभी अल्पसंख्यकों के साथ मिलजुलकर रहेंगे ! आप नहीं सुहाता तो जा सकते हैं, लेकिन हम तो अपने परिवार की नीव मज़बूत करके ही रहेंगे ! चाहे मेरे लाडले को मंजन करने की भी तमीज न हो , हम उसे भारत का प्रधानमंत्री बना कर ही छोड़ेंगे!

३- हम देश को बेच खायेंगे ! 2G , 3G क्या है , हम और भी बड़े घोटाले करायेंगे २०१२ में ये मेरा आपसे वादा है , बस आप वोट दे दीजिये !...अच्छा जाइए न दीजिये, हमारे पास अल्पसंख्यकों की कमी नहीं है ! उतने ही वोट काफी हैं! इतने वोटों से ही हम आपका खून चूसने में सक्षम हैं पिछले ६४ वर्षों ! आगे और गुल न खिलाया तो अपना नाम बदल देंगे!

४- आप अपने हिन्दू होने पर झूठा गर्व करते रहिये !, मूर्ख नहीं तो ! ज़रा भी एकता नहीं है आपने !, कट्टरता नहीं है ! धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सदियों से उल्लू बनते आये हो , आगे भी बनते रहोगे , और हमारी पार्टी आपकी इसी मूर्खता को पूरा-पूरा कैश करती रहेगी , ये २०१२ में हमारा आपसे वादा है! हम तुष्टिकरण की नीति नहीं छोड़ेंगे! वही तो हमारी रोजी-रोटी है!

५- हम फिर विश्व-स्तरीय खेल करायेंगे ! नए कलमाड़ी लायेंगे! करोड़ों फिर कमायेंगे !--उठो, जागो खेलो ! --बिनामतलब उछलो !

६- हम हिन्दुओं के खिलाफ जो विधेयक २०११ में लाये हैं , उससे भी बड़ा लायेंगे २०१२ में और नामोनिशान मिटायेंगे हिन्दुओं का ! सोते रहो मूर्खों, हम जारी रहेंगे ! अल्पसंखक जिंदाबाद!-- काफिरों अपना धर्म बदलो नहीं तो पछताओगे !

७-हम विदेशियों के तलवे चाटना बंद नहीं करेंगे ! हम बहुएं भी लायेंगे, हम दामाद भी लायेंगे! आतंकवादियों को शरण देकर हम पाकिस्तान यहीं बनायेंगे !

८- हम FDI -retail भी लायेंगे! वालमार्ट भी लायेंगे ! ५१ प्रतिशत तो कम है जी , हम ७१ भी दे आयेंगे ! हम मालिक उन्हें बनायेंगे !

९-धन पीला हो या काला हो हम वापस नहीं लायेंगे ! जब तक चूस सकेंगे हम , इसे चूसते जायेंगे !

१०- देशभक्तों को मारेंगे हम , भ्रष्टाचार बढ़ायेंगे ! जनलोकपाल बिल पास हो गया कहीं तो हम सरकार कैसे चलायेंगे ? जनता को मूर्ख कैसे बनायेंगे ?

सरकार की उपलब्धियों पर तो पुराण लिखी जा सकती है , स्मृति ही साथ नहीं देती ! इनकी यश-गाथा में कुछ सहयोग आप भी दें !

Zeal
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Monday, December 19, 2011

कुछ मीठा हो जाए ?--या फिर थोडा सा परोपकार ?-- Philanthropy

परोपकार करना चाहिए, ऐसा सभी कहते मिलेंगे लेकिन इस दिशा में प्रयासरत विरले ही होते हैं ! सभी अपनी-अपनी पूरी ऊर्जा के साथ कमाने में लगे हुए हैं! कोई धन कमा रहा है कोई नाम और शोहरत ! कोई विद्या ही अर्जित किये जा रहा है !

कब तक अर्जित करेंगे! कोई तो सीमा-रेखा होनी चाहिए ! हम कतार से हटेंगे तभी तो दुसरे का नंबर आ सकेगा ! कुछ लोग अरबपति से खरबपति बने जा रहे हैं , लेकिन पेट ही नहीं भर रहा उनका ! कमाए ही जा रहे हैं ! अरे कमा रहे हैं तो खर्च भी कीजिये अपने से कमतर पर ! आखिर क्यूँ कमा रहे हैं इतना ? एक अवस्था के बाद संचय का लोभ संवरण करके उसे कमज़ोर जनता पर व्यय करना चाहिए !

विद्या भी अर्जन के उपरान्त बांटना चाहिए ! जो ज्ञानी, ध्यानी , विद्वान् मनुष्य हैं उन्हें अपनी विद्या से दूसरों को लाभान्वित करना चाहिए ! एक निश्चित उम्र के बाद सीटें मत छेकिये , नयी पीढ़ी कतार में है ! कुछ दिग्भ्रमित भी हैं ! उनका ज्ञानवर्धन एवं मार्गनिर्देशन कौन करेगा ? जो सक्षम हैं वही न करेंगे?

बड़ी बड़ी कंपनी के मालिक एवं कोर्पोरेट दुनिया के अनुभवी धनिक यदि चाहें तो समाज को एक बड़ा योगदान दे सकते हैं ! करोड़ों रूपए के टर्न-ओवर से लाभान्वित होने के बाद उनमें परोपकार की भावना यदि न जन्म ले तो उनका धनार्जन व्यर्थ है ! उन्हें निशुल्क अस्पताल एवं स्कूल खोलने चाहिए ! देश को अच्छे शैक्षणिक संस्थान देने में और आम जनता का जीवन-स्तर उठाने में इनकी महती भूमिका हो सकती है !

मेरे विचार से धन हो अथवा ज्ञान अथवा अनुभव एक निश्चित अवधी के बाद बांटना शुरू कर देना चाहिए ! हर प्रकार के ज़रूरतमंदों की संख्या बहुत है !

लेने वाले बहुत हैं ! हमें बस देना सीखना होगा ! परिवार से हटकर समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी निभाने के लिए ये सबसे सुन्दर मौका होगा !

आधी ज़िन्दगी अपने लिए और शेष आधी "अपनों" के लिए जीनी चाहिए !

वन्दे मातरम् !




Saturday, December 17, 2011

आजीवन अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान कीजिये

अक्सर कुछ लोग आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लेते हैं ! लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है की उनके मित्र एवं परिजन उन्हें लगातार ये बताते रहते हैं की उनका ये निर्णय गलत है!

आखिर क्यूँ लगता है उन्हें ये निर्णय गलत ?

१- उन्हें लगता है वह अकेला रह जाएगा!

२-उसकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं होगा!

३-वह अपने मन की बातें किसी से नहीं कह सकेगा !

४- जीवनसाथी के अभाव में जीवन ही व्यर्थ है!

५- वह जीवन के बहुत से भौतिक सुख भोग करने से वंचित रह जाएगा !

६-समाज से कट जाएगा, असामाजिक हो जाएगा!

७-एकाकी हो जाएगा!

८-वह खुद को बर्बाद कर रहा , अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है!

९-माता-पिता के मरने के बाद कौन उसको देखेगा? वह हमेशा कष्टों में रहेगा.

१० जीवन में कोई तो अपना हो अतः विवाह ज़रूर करना चाहिए......

आदि-आदि भाँती प्रकार के सम्झायिशें मिलती रहती हैं उस व्यक्ति को जो अविवाहित रहने का निर्णय लेता है, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष !

लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आती कि क्यूँ नहीं उस व्यक्ति के इस निर्णय का सम्मान किया जाता ! हर व्यक्ति अपना जीवन कैसे जीना है , इस बात का निर्णय लेने के लिए वह स्वतंत्र है! पढ़ा-लिखा बुद्धिमान व्यक्ति जो भी निर्णय लेगा , वह उचित ही होगा, कुछ सोच समझकर ही लिया होगा ! किसी विशेष प्रयोजन से लिया गया हो सकता है ! जरूरी नहीं हर कोई गृहस्थ जीवन में बंधना ही चाहे ! कुछ लोग कुछ बड़ा करना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि गृहस्थी कि जिम्मेदारियां उन्हें बांधेंगी और वह अपना समुचित समय न तो परिवार को दे सकेंगे , न ही अपने "संकल्प" को , जिसे वे पूरा करना चाहते हैं!

सिद्धार्थ "गौतम बुद्ध" ने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास क्यूँ ले लिया ?
स्वामी विवेकानंद जी अविवाहित थे , जिन्होंने अपने देश और धर्म को गौरवान्वित किया! आखिर उनके निर्णय में क्या अनुचित था ?
गांधी जी ने जीवन के एक पड़ाव पर अपनी पत्नी से विमर्श के बाद उन्हें अपनी बहन बना लिया, क्यूंकि उन्हें लगा कि गृहस्थ जीवन उनके संकल्पों में व्यवधान बन रहा है !
डॉ अब्दुल कलाम और अटल बिहारी बाजपेयी के अविवाहित रहने के निर्णयों में क्या गलत है ? देश के लिए समर्पित हैं !
क्या नरेंद्र मोदी जी का निर्णय गलत है , जिन्होंने पूरे भारत को अपना परिवार बना रखा है !

अपने मिशन को विवाहित रहकर भी पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं है कि विवाह एक बहुत बड़ा बंधन है जो स्वतंत्र रहकर पूरे समर्पण के साथ कुछ करने में बाधा भी बनता है क्यूंकि परिवार वालों कि अपेक्षाएं और जिम्मेदारियां पूरी करने में उस व्यक्ति का समय और ऊर्जा बंट जाती है !

यदि किसी का कोई 'संकल्प' अथवा मिशन बड़ा हो 'गृहस्थ-जीवन' से तो अविवाहित रहने का निर्णय उचित ही है क्यूंकि विवाह करके परिवार को "गौड़" बना देने में कोई समझदारी नहीं है! गृहस्थ लोगों कि प्रतिबद्धता अपने परिवार के साथ ही होनी चाहिए! लेकिन ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति अपने मिशन जिसके लिए वह कृत-संकल्प है , उसे समुचित निष्ठां के साथ नहीं निभा पता !

१-क्या अविवाहित रहकर पति अथवा पत्नी के अभाव में जीवन व्यर्थ कहलायेगा ?

२-क्या माता-पिता और अन्य बड़ों कि सेवा करके जन्म सफल नहीं होगा?

३- क्या समस्त भारत के देशवासी उसका 'परिवार' नहीं बन सकते ?

४- भाई-बहन, माता-पिता मित्र और कलीग के होते हुए भी वह एकाकी हो जाएगा ? क्या सारे रिश्ते फर्जी निकल जायेंगे विवाह के अभाव में ?

५-उसकी देख-भाल कौन करेगा , खाना कौन बनाकर खिलायेगा ? ---क्या विवाह इस उद्देश्य से किया जाता है ? यह तो नौकरी पर एक सेवक रखकर भी पूरा किया जा सकता है!

६- ऐसे व्यक्ति को एकाकी कहना उचित है क्या? अविवाहित व्यक्ति समाज को ज्यादा योगदान करता है और कर सकता है , क्यूंकि वह स्वार्थी होकर केवल 'मेरा-परिवार', मेरे बच्चे' आदि के लिए पतिबद्ध नहीं रहता अपितु अपनों और समाज के लिए बराबर से समर्पित रहता है!

अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए! निर्णय लेने वाले पर अपने विचार थोपने नहीं चाहिए ! उसकी स्वतंत्रता , उसकी आजादी , किसी भी हालत में समझौते के लिए मजबूर नहीं कि जानी चाहिए ! एक वयस्क व्यक्ति अपना भला-बुरा सोच सकता है!

कुछ लोग अपने माता-पिता कि सेवा करना चाहते हैं आजीवन ,
कुछ लोग देश को ही समर्पित होना चाहते हैं
कुछ लोग विज्ञान एवं शोध में समर्पित होना चाहते हैं

अतः ऐसे बहुत से कारण हो सकते हैं जिसके तहत कोई वयस्क आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लेता है! हमें उसकी भावनाओं , उसकी सोच और निर्णय का सम्मान करना चाहिए !

हम उस व्यक्ति को सबसे बड़ी ख़ुशी , उसके निर्णय का सम्मान करके दे सकते हैं!

अतः हर वयस्क को यह स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए कि वह अपना जीवन कैसे जिए !

Zeal

Thursday, December 15, 2011

ब्लॉगिंग निठल्लों का काम है क्या ?

ब्लॉग भ्रमण के दौरान कुछ नन्हे-मुन्ने बालकों को चिंतित देखा! वे कह रहे थे की वे व्यर्थ ही हिंदी ब्लॉगिंग में सेवारत हैं! न तो उन्हें कोई पढता है, न ही टिपण्णी करता है! फिर क्यूँ इस अवयस्क पाठकों के लिए अपना कीमती वक़्त जाया किया जाया ?

हे श्रेष्ठ नर-नारियों एवं मनु की संतानों , श्री कृष्ण ने कहा है, कर्म किये जाओ, फल की इच्छा मत रखो! अतः ब्लौग-लेखन अनवरत जारी रखो !

ब्लौग लेखन निठल्लों का काम नहीं है ! मुझे तो चिराग लेकर ढूँढने पर भी कोई निठल्ला न मिला! सभी लगे हुए है अपने-अपने कर्मों में यथासंभव ! यदि कोई केवल चिकित्सा करे अथवा अभियांत्रिकी अथवा वकालत अथवा टीचिंग अथवा बाल-बच्चे देखे तो वह सार्थक कहा जाएगा ? लेकिन यदि इन्हीं कामों के साथ-साथ कोई अपने विचारों द्वारा समाज को एक सकारात्मक योगदान और अपने अनुभवों द्वारा एक समाधान दे रहा है तो वह निट्ठल्ला कहलायेगा ?

ब्लॉगर्स अपने कर्तव्यों को निष्ठां से निभाने के बाद , अपना कीमती वक़्त लेखन में लगा रहे हैं , अपने खून पसीने से अपने विचारों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं और आप हैं की ब्लॉगिंग को निठल्लों का काम कह रहे हैं ?

पशु से भिन्न है इंसान क्यूंकि वह चिंतन करता है ! ये चिंतन यदि मस्तिष्क में ही रह जाए तो व्यर्थ है अतः लेखन के माध्यम से इसे बहुत से लोगों तक पहुंचना ही चाहिए !

हर व्यक्ति अपनी रूचि और ज्ञान के अनुसार लिख रहा है! पाठक भी अपनी रूचि के अनुसार विषय ढूंढ लेते हैं ! यही विविधता ही तो ब्लॉगिंग की रोचकता बनाए रखती है ! लोग एक-क्लिक में ही देश विदेश , राजनीति और कुटिल नीति से रूबरू हो जाते हैं ! अन्य लोगों के विचार पढ़कर हमारे विचारों को भी आयाम मिलता है !

अतः ब्लॉगिंग निठल्लों का काम है ऐसा लिखकर ब्लॉगर भाई-बहनों को अपमानित न करें !

जिन्हें लगता है की ब्लॉगिंग व्यर्थ है वे शायद अपने लिखे आलेखों से ही बोर हो गए होंगे! जब स्वयं का लिखा व्यर्थ लगने लगे तो निसंदेह ब्लॉगिंग बंद कर देनी चाहिए , लेकिन साथी ब्लौगर जो एक ऊर्जा के साथ ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें निठल्ला कहकर उनका अपमान न करें ! अपितु उनके योगदान को सराहें!

हिंदी ब्लॉगिंग तो हमारे देश में एक ज़ोरदार क्रान्ति की तरह है , जिसके माध्यम से आज सरकार गिराई जा सकती है और नेताओं की नाक में नकेल डाली जा सकती है! इस ब्लॉगिंग के माध्यम से , फेसबुक आदि से , ट्विटर से सिब्बल महोदय तक घबरा गए हैं तो आप खुद ही समझिये इसकी महिमा !

मेरे विचार से ब्लॉगिंग बुद्धिजीवियों का काम है! इंसानों का काम है जो चिंतन करता है! पशु एवं निठल्ले इस महती कार्य को अंजाम नहीं दे सकते!

अपने विचारों को एक बड़े समुदाय को प्रेषित करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ हैं ब्लॉगिंग का माध्यम ! अब हम अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के मोहताज नहीं हैं अपने विचारों को संप्रेषित करने के लिए!

बड़े-बड़े विमर्श के लिए यह एक सस्ता एवं सुलभ माध्यम बन गया है! इसके फायदे अनेक हैं ! और फिर यदि फायदों को परे रख कर निस्वार्थ ब्लॉगिंग की जाए तो हम कर्मशील भी रहेंगे और फल न लगने की अवस्था में निराश भी नहीं होंगे !

अतः निराश ब्लॉगर्स को हताश न होने की सलाह दी जाती है तथा ऊर्जावान ब्लॉगर्स के लिए "Hats off "

जय ब्लॉगर्स !
जय हिंदी-ब्लॉगिंग !

Tuesday, December 13, 2011

इंजीनियर्स की खेती में भारत सबसे आगे

जापान भले ही तकनीक में सबसे आगे हो लेकिन इंजीनियर्स की पैदावार में भारतवर्ष ही अग्रणी है ! प्रतिवर्ष यहाँ लाखों की संख्या में इंजिनीयर्स तैयार होते हैं! सड़क पर चलता हर दूसरा बंदा इंजिनियर ही है!

फैशन के दौर में गारेंटी की उम्मीद ना करें !

जैसे मौसम आने पर बेर की झाड पर 'बेर' लद जाते हैं , वैसे ही मेरे इष्ट, मित्र, नाते रिश्तेदार और पडोसी सभी की संतानों में इंजीनियर्स की नयी खेप आ गयी है ! जो कल तक इंजिनीयर की सही स्पेलिंग भी नहीं जानते थे वे भी आज इंजिनियर बन गए हैं! जिससे भी हाल-चाल पूछो पता चलता है , बिटिया इंजीनियरिंग कर रही है , बेटा final ईयर में है!

खुश होऊं या आश्चर्यचकित? बच्चे आजकल विद्वान् ज्यादा हो रहे हैं अथवा शिक्षा ही कुछ ज़रुरत से ज्यादा सुलभ हो गयी है?

खैर मुझे तो प्रसन्नता से ज्यादा आश्चर्य हुआ इंजिनीयर्स की डिमांड और सप्लाई देखकर! कारण पता किया तो पता चला, हर गली नुक्कड़ पर इंजीनियरिंग कालेज खुल गए हैं! हर किसी को एडमिशन भी मिल रहा है! योग्यता का कोई भी मोहताज नहीं है अब ! चयन प्रक्रिया कुछ भी नहीं है ! दो-लाखवी पोजीशन वाला भी आराम से एडमिशन पा सकता है! अब तो UP सरकार ने एक यूनिवर्सिटी भी खोल रखी है जिसमें प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में 'श्रद्दालू' उर्फ़ इन्जियार्स भर्ती होते हैं ! अब किसी को निराश नहीं किया जाएगा! सर्वे भवन्तु सुखिनः

पहले आरक्षण के कारण डाक्टर और इन्जियर्स की माशाल्लाह खेपें आ रही थीं जो मरीजों और पुलों को डूबा रही थीं ! अब तो 'झरबेरी' के पेड़ पर टँगी है काबिलियत ! तोडिये और टांक दीजिये कहीं पर भी!

अब बात करते हैं IITans की ! हर माता-पिता अपने बच्चे को ' IIT ' में ही सेलेक्टेड देखना चाहता है, ६५ लाख सालाना पॅकेज से ही शुरुवात करना चाहता है! गला-काट कॉम्पिटिशन है , शायद इसीलिए आसमान की चाह में खजूर पर लटके गुच्छे बन जाते हैं सभी !

क्या फायदा है इससे ? नयी पढ़ी की इस नयी खेप को चिकित्सा और अभियांत्रिकी की डिग्री तो मिल जा रही है लेकिन नौकरी के लिए ये मारे-मारे फिर रहे हैं ! ४ से ५ हज़ार रूपए महिना पर नौकरी कर रहे हैं ! कुछ तो सब्जी की दूकान लगा रहे हैं ! depression (अवसाद) के शिकार हो रहे हैं ये बच्चे! frustation बढ़ रहा है इनमें ! १८ से २५ आयुवर्ग में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं !

कृपया उपाय बताएं ! शिक्षा पद्धति में दोष कहाँ है ? क्या इन कालेजों की mushrooming स्वागत योग्य है? क्या ये गली-गली डाक्टर-इंजीनियर्स की खेप निकालने से बेहतर क्वालिटी पर ध्यान नहीं देना चाहिए?

Sunday, December 11, 2011

'जान' हुयी सस्ती- ईमान बिक गया

प्रशासन की गैर जिम्मेदारी ने ली एक सैकड़ा से ज्यादा जानें! स्वस्थ होने आये मरीजों को मौत के मुंह में धकेला अस्पताल प्रशासन ने ! इतना बड़ा अस्पताल और आग बुझाने के सही उपाय भी नहीं किये गए ! सारा समय धन बटोरने की कवायद में लगे रहेंगे तो मरीजों की सुरक्षा के बारे में सोचा ही नहीं होगा ! आंधी आये या आग लगे , इनका क्या जाता है, मरने वाले तो इंसान नहीं कीड़े-मकोड़े हैं इनके लिए !ये जिन्दा रहे बस काफी है, बाकि कोई मरे या जिए क्या फरक पड़ता है!

अस्पताल चलायें या किराने की दूकान , सेवा देते समय अपनी जिम्मेदारी का पूरा एहसास होना चाहिए ! हज़ारों लोग आप पर विश्वास कर रहे हैं! उनकी जिम्मेदारी है आप पर! यदि जिम्मेदारी नहीं उठा सकते इमानदारी के साथ तो अपनी दुकानें बंद रखिये !

ढीली-ढाली सरकारें ज़रा कमर कसें तो बेहतर होगा! जांच न बैठाएं और सफाई न दें ! निरंतर संस्थानों की निगरानी रखें ! सुरक्षा व्यवस्था सबसे ज़रूरी है ! अपनी अकर्मण्यता को छुपायें नहीं! प्रदेश सरकार और अस्पताल प्रशासन की जितनी निंदा की जाए, कम होगी!

Zeal

Friday, December 9, 2011

आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या ?

आज प्रातः समाज सेवकों के एक समूह से बात हुयी! वे लोग जाड़े की रातों में अपनी नींद त्यागकर गावों की तरफ निकल पड़ते हैं ! भोर होते ही प्रातः काल बड़ी संख्या में ग्रामीडों एवं किसानों को एकत्र करके उन्हें योगासन कराते हैं , उन्हें फसल उगाने की सही तकनीक से अवगत कराते हैं, खाद कैसे बनानी है और अन्य जानकारियाँ विस्तार से देते हैं ! खेती छोड़कर अन्य कामों की तरफ न भागें इस बात के लिए भी उनका मागदर्शन करते हैं ! किसानों की समस्याओं का हल बताते हैं , उनके हर प्रश्न का जवाब देते हैं , उनकी जिज्ञासाओं का समाधान बताते हैं! गावों की कच्ची सड़कों पर जाड़े की सर्द सुबहों में सफ़र भी कुछ आसान नहीं होता ,लेकिन ये जांबाज सेनानी डटे हुए हैं , निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य पथ पर! इस कार्य को ये सेनानी निस्वार्थ रूप से देश और जनता की भलाई के लिए कर रहे हैं ! ये समूह तो गुमनाम ही है ! इनके योगदान न कहीं दिखाया जाता है , न हो कोई जानता है! मिडिया में तो बड़े लोगों के सपूतों को स्वर्णाक्षरों और स्वर्णचित्रों में दिखाया जाता है ! ये अमीर युवराज आखिर करते क्या है ग्रामीण जनता के लिए ? ...बस उनसे पूछते हैं - " आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या? " ...और फिर चल देते हैं अपने महल की ओर , किसी दलित के घर की रोटी तोड़ने के बाद !

मन में अनायास ही एक प्रश्न आया की यदि निस्वार्थ कर्म करने वाले ये लोग हैं जो की अपने नियमित कामों और नौकरियों के साथ-साथ सर्द रातों में भी गरीबों की भलाई में तत्पर हैं , जो की सरकार को करना चाहिए या फिर पैसा लूटने वाले संगठनों करना चाहिए ! ...तो फिर सरकार किसलिए है ? व्यवस्थाएं किसलिए हैं ?

करे कोई और , मरे कोई और ? और सत्ता में होने का ऐश करे कोई और ? वाह !

खैर ...७० वर्षीय कर्नल साहब , श्रीमती सुनंदा जी, एवं हमारे युवा जो इन महान कार्यों में तत्पर हैं , उन्हें मेरा नमन एवं अभिनन्दन !

Zeal

Thursday, December 8, 2011

मधुर आवाज़ के धनी -- श्री अशोक कुमार मोहिते

छत्री , शिवपुरी , मध्य प्रदेश.


सूफी संगीत सुनते हुए श्रोताओं की एक पंक्ति


गिटार पर अपने साथियों के साथ सूफी संगीत सुनाते हुए श्री मोहिते




२६ जून १९५४ को जन्मे श्री अशोक मोहिते जी पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा है! सुरीले कंठ का धनी होने के साथ-साथ आपने लेखन द्वारा भी साहित्य को बहुत समृद्ध किया! जिला रत्नागिरी (महाराष्ट्र) के मूल निवासी श्रीअशोक जी इस समय श्रीमंत कै. जीजा महाराज छत्री ट्रस्ट, शिवपुरी , मध्य प्रदेश में छत्री अधिकारी हैं.


आपकी कुछ रचनाएँ --

रामजी की माया (भजन संग्रह)
एक रात तुम्हारे नाम लिखी (छायावादी रचना)
मेरी अंतिम कविता (मुक्त छंद कविता संग्रह)
सहज भाव (निबंध संग्रह )
व्यवस्था के लिए (व्यंग)
पूजा के व्यवहारिक अर्थ (अध्यात्म)
वैवाहिक जीवन का अध्यात्मिक आनंद

उपलब्धियां एवं पुरस्कार--

अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक संगीत रचना पुरस्कार
महावृक्ष पुरस्कार १९९६
पर्यावरण व वन विभाग मंत्रालय भारत शासन नगरपालिका शिवपुरी द्वारा सन १९८५ में सम्मानित
शिवपुरी समारोह
तानसेन समारोह
भारत पर्व समारोह में गायन-वादन


श्री अशोक जी द्वारा लिखा गया एक अंतर गीत --

जो बीत गयो सो बीत गयो , अब आये वो सुख दुःख जीतो
जीत गयो सो जीत गयो , जो बीत गयो सो बीत गयो !

सत संगत अमृत घट भरियो , पीवत प्रेम जगत से करियो ,
जनम-जनम की प्यास बुझइयो, जो अंतर संगीत गयो
जो बीत गयो सो ------

अजब गजब है जगत की माया , बची न जग में नश्वर काया
आयु का घट निसदिन छलकत , रीत गयो सो रीत गयो
जो बीत गयो सो---

सुख जानो दुःख दूर भगाओ, अंतर भजन प्रभु का गाओ,
सबसे बड़ो रस भक्ति रस को , पीत गयो सो पीत गयो
जो बीत गयो सो-----

पहला सुख निरोगी काया , दूसरा सुख है घर में माया
तीसरा सुख सुलक्षण नारी , चौथा सुख सुत आज्ञाकारी

पांचवा सुख राज में वासा छठवां सुख है वास सुवासा
सातवां सुख त्वरित वाहन बल, आठवां सुख निकट निर्मल जल

नवां सुख संतोषी जीवन ,दसवां सुख है ज्ञान संजीवन
ग्यारहवां सुख भक्तिरस अंगा, बारहवां सुख आनंद अभंगा

पात परम सुख अमृत रस को पीत गयो सो पीत गयो
जो जीत गयो सो जीत गयो

"मोहित" राग भैरवी गावत,अपने आतम को समझावत
नाद ब्रम्ह को नाद सुनावत , काल अतीत पतीत गयो
जो बीत गयो सो -----

अशोक कुमार मोहिते

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Monday, December 5, 2011

लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?

लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?

कहने को तो हमारे देश में लोकतंत्र है! लेकिन क्या ये सच है ? क्या वास्तव में हमारे नेतागण लोकतंत्र का पालन करते हैं ?

कलमाड़ी मुद्दा गायब
2G scam का मुद्दा गायब
काले धन का मुद्दा आएगा तो भटका देंगे!
लोकपाल बिल का मुद्दा भी भटका दिया.
FDI के मुद्दे को जबरदस्ती बीच में घुसाकर.

मनमानी करेंगे! जब सरकार को निजी खतरा दिखेगा तो वह--

अनशनकारियों को पिट्वाएगी
इमानदार अफसरों को मरवा देगी अथवा उन पर ऊँगली उठा उनकी छवि धूमिल करेगी.
कर्तव्यनिष्ठों को पुरस्कृत करना तो इस सरकार के अहम् के खिलाफ है...

देशभक्ति की बातें करने वालों से सरकार को विशेष खतरा महसूस होता है! ऐसा क्यों आखिर ?

यही हमारे देश में लोकतंत्र है देश के विकास सम्बन्धी निर्णय मतैक्य से लेने चाहिए ना कि मनमानी करनी चाहिए..

या फिर देश का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति प्रधानमन्त्री ही है ? दुसरे सभी मूर्ख हैं?

हम इस देश में रहने , खाने , चलने का टैक्स तो भरें , लेकिन देश के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं ?

यह देश हम सबका है अथवा तानाशाहों का है केवल ?

Wednesday, November 30, 2011

देश को दूसरी बार गुलाम बनाने की साजिश अथवा विकास?-- FDI-Retail

Foreign direct investment : investment --FDI

आखिर FDI है क्या बला ?

विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।

विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।


क्यों करना चाहती है निवेश ? विदेशी कंपनी को क्या लाभ होगा ?



  • जाहिर सी बात है , पैसा कमाने के लिए।


  • निस्वार्थ तो करेगी नहीं


  • दान देने की प्रथा केवल भारत में है , विदेशों में नहीं।


  • भारत का हित तो चाहेंगे नहीं, अपना हित देखकर ही निवेश कर रहे हैं।


  • इससे इन्हें एक बड़ी मार्केट मिलेगी , इनका नाम , प्रचार और टर्न -ओवर बढ़ जाएगा।


  • मालामाल पहले से थीं , अब और हो जायेंगी।


  • सीधा लाभ निवेश करने वाले देश को होगा। उसकी आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी।



FDI -Retail से भारत को क्या लाभ होगा ?



  • एक अच्छी और निरंतर सप्लाई मिलेगी खाद्य और अन्य वस्तुओं की --लेकिन यह आपूर्ति हम अपने स्वदेशी संसाधनों द्वारा बखूबी कर सकते हैं।


  • अपने गोदामों में सड़ते अनाज का इस्तेमाल करके भी कर सकते हैं।


  • एक लाभ है क्वालिटी और variety मिलेगी (क्या अपने देश में क्वालिटी नहीं है ? यदि नहीं है तो उस दिशा में प्रयास किये जाएँ)


  • देश को एक अच्छा इन्फ्रा-स्ट्रक्चर मिलेगा-( क्या इस उपलब्धि के लिए विदेशियों को घुसपैठ करने दी जाए ? यह काम करने में तो हमारा देश स्वयं ही सक्षम है । कब तक दया पर जीवित रहेंगे परजीवियों की तरह ?)


इस निवेश से संभावित नुक्सान--


  • छोटे तथा घरेलू उद्योग समाप्त हो जायेंगे।


  • छोटे व्यापारी उजड़ जायेंगे।


  • किसान बर्बाद हो जायेंगे।


  • गरीबों की आजीविका छीन जायेगी।


  • वालमार्ट अपना पाँव पसारेगा तो धीरे धीरे हमारी ज़मीनें भी महंगे दामों में खरीद कर अपनी जडें मजबूत करेगा और रियल स्टेट के दाम बढेंगे।


  • पूर्व में गुलामी भी इसी तरह विदेशी कंपनियों की घुसपैठ से ही मिली थी।


  • हज़ारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे।


  • दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण ये आत्महत्या करने पर मजबूर हो जायेंगे।


  • अपने देशवासियों के साथ घात करके विदेश को संपन्न करना कहाँ की अकलमंदी है?


इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।

यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।

भारत-माता की जय।


वन्देमातरम !

Zeal

Monday, November 28, 2011

काश मैं तुम्हारा पति होता... (कहानी)

ऋचा और देव एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे लेकिन विवाह के बंधन में बंध नहीं सकते थे क्यूंकि माता-पिता, भाई-बहन , मित्र और समाज की आपत्ति थी उनके रिश्ते पर। प्रेम विवाह को आसानी से स्वीकृति जो नहीं मिलती. लेकिन केवल प्यार करने वाला दिल ही जानता है कि प्रेम से पवित्र कुछ नहीं होता।


आखिर ऋचा ने विकल्प ढूंढ ही लिया । विवाह नहीं हो सकता तो क्या ? धर्म पत्नी नहीं बन सकती तो क्या , अग्नि के फेरे नहीं ले सकती तो क्या , गवाह भी नहीं हैं तो क्या हुआ। उसने मन से देव को अपना पति मान लिया। एक दुसरे से अलग रहते हुए भी, पूर्ण समर्पण के साथ आगे का सफ़र तय होता रहा। विवाह एक तपस्या कि तरह था उन दोनों के लिए..


देव और ऋचा का प्रेम पवित्र था। दोनों को एक दुसरे पर पूर्ण विश्वास भी था. बस एक ही बात का दुःख था ऋचा को। देव बात-बात पर अक्सर यह कह जाता था --


यदि मैं तुम्हारा पति होता...

यदि मेरा और तुम्हारा विवाह हुआ होता तो..

मुझे तो विवाह का अनुभव` ही नहीं है ...

मैं कुंवारा हूँ...

यदि ऐसा होता ...

यदि वैसा होता ...

यदि परिस्थितियाँ आम शादी-शुदा पति-पत्नी कि तरह होती तो मैं यह प्रमाणित कर देता कि मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या कर सकता हूँ...


देव कि सभी बातें सत्य थीं फिर भी ऋचा को यही दुःख था कि क्या वह उसे पत्नी नहीं समझ पाता था। जिसे वह मन से अपना पति मान सर्वस्व समर्पित कर चुकी है क्या वह अभी भी दुविधा में है?... क्या धर्मपत्नी ही पत्नी है?...क्या मन का समर्पण व्यर्थ है?...


अपने अनुत्तरित प्रश्नों के साथ ऋचा अपना पत्नी धर्म निभा रही है, और इसी आस में है कि शायद देव, धर्मपत्नी और मन तथा विश्वास से मानी गयी पत्नी का भेद मिटा देगा एक दिन......पति-धर्म निभाने के लिए और प्रमाणिकता साबित करने के लिए किसी विशेष परिस्थिति का इंतज़ार नहीं करेगा...




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Saturday, November 26, 2011

तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, हर युग में तुमको अपना मानूँ...

द्वापर के हो या त्रेता के,तुम किस युग के हो ,मैं क्या जानूं
हर युग में करूँ मैं प्रेम तुम्हें , बस तुमको ही अपना मानूँ

सुन कान्हा सुन , तुम मेरे हो ,
तुम मेरे हो , तुम मेरे हो
मैं गोपी हूँ , मैं मीरा हूँ, मैं राधा भी और मुरली भी
मन मंदिर में हो तुम ही बसे ,हो कान्हा तुम और मोहन भी

हैं रास तुम्हारे देख सभी, स्त्री मन सारे खिल जाते
और ज्ञान की अद्भुत गंगा में गांडीव हज़ारों उठ जाते
हो चीर हरण गर नारी का, संरक्षक बन तुम आ जाते
दुष्टों का मर्दन करने को , हैं चक्र सुदर्शन चल जाते.

कर्म है करना सीखा तुमसे, हर पग पे है लड़ना सीखा तुमसे,
कर्तव्य का बोध करा हमको , सन्मार्ग का बोध करा डाला,
हे गोविंदा , हे गोपाला , हे कृष्ण-सखा, हे नंदलाला,
तुम अद्भुत हो तुम श्रेष्ठ बहुत , पहनो मेरी तुम वरमाला.

सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूँ
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, बस तुमको ही अपना मानूँ

Zeal

Thursday, November 24, 2011

अविराम युद्ध

द्वारकाधीश श्रीकृष्ण का कहना है कि कर्म करो, कर्म से विमुख मत हो , जीवन एक संघर्ष है , सतत युद्ध करो, कभी अपने मन के बढ़ते मोह से , कभी स्वजनों के मोह से, कभी देश-द्रोहियों से तो कभी धर्म (कर्तव्य) से विमुख होने वालों से.

स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास करमचन्द्र गांधी का कहना है - "कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा सामने कर दो"

मेरे विचार से अन्याय को कतई सहना नहीं चाहिए, इस प्रकार कि सहनशीलता कर्तव्यों से विमुख करती है , नकारा बनाती है, अराजकता बढाती है, दुष्टों का हौसला बुलंद करती है और संसार से सकारात्मक ऊर्जा को कम करती है.

अतः गांडीव उठाओ पार्थ, एक गाल पर मारने वाले के दोनों गाल पर सजा दो ताकि दुबारा किसी के साथ भी ऐसी कुचेष्ठा न करे.

अपराध का दंड अवश्य मिलना चाहिए... आज का दुर्भाग्य यही है कि अपराधी बिना सजा पाए मुक्त घूम रहे हैं , दंड के अभाव में ही अराजकता बढ़ रही है .

हे पार्थ युद्ध करो ! यह जीवन एक सतत संघर्ष है , केवल युद्ध ही देश काल और परिस्थिति को व्यवस्थित और वातावरण को कलुष से रहित रखा सकता है.

अतः कैसी भी परिस्थिति आये , गांडीव मत रखना....उठो ! जागो ! युद्ध करो !

अविराम युद्ध !

उद्घोष करो - वन्देमातरम !

Zeal

Tuesday, November 22, 2011

वतन की माटी ..

अनेक मंचों पर चर्चाओं के दौरान लोगों के ये ताने सुने कि -"आप तो विदेश में रहती हैं , आपको भारत देश के बारे में सोचने का क्या अधिकार है ? "

इस बचकानी दलील का क्या जवाब दूं ? ...आप दुसरे शहर में बस जाते हैं तो क्या माँ को भुला देते हैं ? बेटियां विदा होने के बाद मायके को भूला बैठती है ?

वो भारतवासी क्या जो भारत कि माटी को ही भुला दे।

जन्मभूमि से जुडी हमारी जडें इतनी कमज़ोर नहीं कि विदेशी धरती पर पाँव रखते ही मुरझा जाएँ।

अपनी माँ अपनी ही है , अमिट प्यार जो है करती...

वन्दे मातरम् !

Zeal

Saturday, November 19, 2011

कांग्रेस छीन रही है भारतीय मुसलमानों का स्वाभिमान



ये सरकार किसी की सगी नहीं है। एक विदेशी द्वारा स्थापित हुई और आज भी एक विदेशी द्वारा ही संचालित है, फिर इससे देशभक्ति की उम्मीद करना ही व्यर्थ है। देश के विकास, भाईचारे और शान्ति बनाए रखने से इनका कोई सरोकार ही नहीं है।


यह सरकार मुसलामानों और अल्पसंख्यकों के नाम के विधेयक लाती है, क्योंकि इसमें उसका निजी स्वार्थ है। यह सरकार बिना इनके वोट पाए कभी टिकी नहीं रह सकेगी चरमरा कर गिर जायेगी इसलिए यह सरकार मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण की नीति अपनाती है।


हमारे देश के मुसलमान यह समझते हैं कि यह सरकार उनकी शुभचिंतक है, उनके हित में सोच रही है, लेकिन नहीं वह तो केवल इनके वोटों का इस्तेमाल कर रही है। सत्ता में बने रहने के लिए वह इन्हें बलि का बकरा बनाकर इन्हें हलाल कर रही है पिछले ६४ वर्षों से।


अल्पसंख्यकों को चाहिए कि वे अपने स्वाभिमान को जगाएं। अपने निजी हित से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचें वे कमज़ोर नहीं हैं, मोहताज नहीं हैं जिन्हें भाँती-भाँती के आरक्षण और विशेष सुविधाओं की ज़रुरत हो। उन्हें अपने ज्ञान और शिक्षा के आधार पर उपलब्धियां हासिल करनी चाहिए अन्य भारतीयों की तरह।


मुस्लिम समुदाय को ये स्पष्ट दिखना चाहिए कि सरकार उन्हें मोहरा बनाकर देश को अल्प और बहुसंख्यक में विभाजित कर रही है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच द्वेष की खाई को बढ़ा रही है।


यदि मुस्लिम इस देश को अपना समझते हैं और भाईचारा रखते हैं, धर्मनिरपेक्ष भी समझते हैं स्वयं को तो उन्हें भी खुलकर विरोध करना चाहिए। ऐसे मनमाने विधेयकों का जो हिन्दुओं का अधिकार छीन रही है और मुसलामानों को बदनाम कर रही है।


मुस्लिम समुदाय को विरोध करना चाहिए ऐसे विधेयकों का, आरक्षणों का, और ऐसी स्वार्थी सरकार का जो देश का हित नहीं सोचती, देश की समस्त जनता के बारे में नहीं सोचती बल्कि समुदाय विशेष को निज हित में आगे रखती है।


आपको अपना वोट देश-हित में इस्तेमाल करना चाहिए, सदियों से किसी एक पार्टी की गुलामी क्यों ?...डर किस बात का है? निज हित से ऊपर उठिए स्वाभिमान से जियें।


ये देश आपका भी उतना ही है, जितना अन्य समुदायों का, तो फिर आपके नागरिक अधिकार भी उतने ही होने चाहिए जितने अन्य भारतीय नागरिक के हैं।


अनायास ही कोई ज्यादा कृपा करे तो समझ लीजिये दाल में कुछ काला है। आपका नहीं अपितु कृपा करने वाले का ही कोई निजी स्वार्थ है।


स्वाभिमान से जियें, सरकार की कृपा के मोहताज नहीं हैं आप।


जागो मुस्लिम जागो !


स्वाभिमान जगाओ


जोर से बोलो--


वन्देमातरम !




Sunday, November 13, 2011

भारत विभाजन की नयी विभीषिका




जो
अल्पमत जबरदस्ती देश का विभाजन करा सकता है, उसे आप अल्पसंख्यक क्यूँ समझते हैं ? वह एक मजबूत सुसंगठित अल्पमत है, फिर उसे संरक्षण एवं विशेष सुविधाएं क्यूँ ? -- सरदार वल्लभ भाई पटेल-- (दिनाक२५-२६ मई १९४९ को संविधान सभा में)

साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक द्वारा केंद्र सरकार पूरे जोर-शोर से एक ऐसा क़ानून बनाने की तैय्यारी कर रही है, जो भारत में बड़े रक्तपात और विभाजन की बुनियाद रख सकता है श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार पार्षद द्वारा तैयार इस कानून के हिन्दू विरोधी प्रारूप को शीघ्र अतिशीघ्र कानून का रूप देने के लिए केंद्र सरकार तत्पर है यदि यह प्रारूप कानून का रूप लेता है तो इस देश में अल्पसंख्यक के बहाने मुसलमान और ईसाइयों के हाथों में सारे अधिकार और संसाधन सौंप दिए जायेंगे अर्थात अपने ही राष्ट्र में हिन्दू , दोयम दर्जे का एक भयभीत और गुलाम नागरिक होगा क़ानून कितना भयावह होगा उसे स्वयं देखिये-----


यदि यह विधेयक नहीं रोका गया तो ----


  • जिस मंडली ने इसका प्रारूप तैयार किया है उसमें वे सभी शामिल हैं जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के विरोधी हैं । जैसे राम जन्मभूमि आन्दोलन के घोर विरोधी हर्ष मंदर , गुजरात में मुसलामानों को सदैव उकसाने वाली अनु आगा, गुजरात दंगों में झूठे गवाह जुटाने का दुष्कृत्य करने वाली तीस्ता सीतलवाद, मुस्लिम इण्डिया चलाने वाले सैय्यद शहाबुद्दीन, भारत में धर्मांतरण कराने वाले जून दयाल, हिन्दू देवी-देवताओं का खुला अपमान करने वाले शबनम हाशमी तथा नियाज़ फारुखी आदि।
  • यह सभी हिन्दू विरोधी तत्वों की वह जमात है जिसे किसी विधेयक को तैयार करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। एक ओर सरकार सिविल सोसायटी के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करती है वहीँ दूसरी ओर ऐसे तत्वों को भारत विध्वंस की खुली छूट दे रखी है।
  • यह विधेयक उस समय सार्वजनिक किया है जब अमेरिका की बदनाम इसाई संस्था अंतर्राष्ट्रीय धर्म स्वातंत्र्य आयोग ने भारत को अपनी निगरानी सूची में रखा है। इस आयोग ने गुजरात और उडीसा के दंगों का उल्लेख किया है लेकिन काश्मीर, त्रिपुरा और मणिपुर के जघन्य नरसंहारों पर मौन साध रखा है।
  • यह विधेयक सांप्रदायिक हिंसा के अपराधियों को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आधार पर बांटने का अपराध करता है। अभी तक यही लोग कहते थे की अपराधी का कोई धर्म नहीं होता है , लेकिन इस विधेयक में क्यों सांप्रदायिक हिंसा के अल्पसंख्यक अपराधियों को दंड से मुक्त रखा रखा गया है।
  • विधेयक का अनुच्छेद-८ , अल्पसंख्यकों की आलोचना को घृणा का प्रचार या अपराध मानता है परन्तु हिन्दुओं के विरुद्ध इनके नेता और संगठन खुले आम दुष्प्रचार करते हैं लेकिन उन्हें अपराधी नहीं माना जाता।
  • स्वतंत्र भारत के इतिहास में कथित अल्पसंख्यक समाज के द्वारा हिन्दू समाज पर १,५०,००० से अधिक हमले हुए हैं तथा हिन्दुओं के मंदिरों पर लगभग ५०० बार हमले हुए। २०१० में बंगाल के देगंगा में हिन्दुओं पर भायक अत्याचार हुआ।
  • अनुच्छेद- के अनुसार एक मुस्लिम महिला के साथ दुर्व्यवहार होता है तो वह अपराध है जबकि हिन्दू महिला के साथ किया बलात्कार भी अपराध नहीं है.
  • यह हिन्दू समाज को विभक्त करने का षड्यंत्र हैसंघर्षों को रोकने के लिए जिस सद्भाव की आवश्यकता होती है , इस कानून के बाद तो उसकी धज्जियाँ ही उड़ने वाली हैं

  • वो हिन्दू समाज जिसके कारण आज भारतवर्ष में धर्म-निरपेक्षता ज़िंदा है, उसे ही आज कटघरे में खड़ा किया जा रहा है इस विधेयक के माध्यम से।
  • ये लोग सेक्युलेरिज्म की मनमानी परिभाषा देकर देशभक्तों को प्रताड़ित करना चाहते हैं । वन्देमातरम का उद्घोष और गो हत्या के खिलाफ बोलना भी कानूनी जुर्म हो जाएगा।
  • सोनिया जी के अनुसार सेक्युलेरिज्म की परिभाषा है - अफज़ल गुरु को बचाना, आजमगढ़ जाकर आतंकवादियों के हौसले बढ़ाना , मुंबई हमले में बलिदान हुए लोगों के बलिदान पर प्रश्न चिन्ह लगाना, मदरसों में आतंकवाद के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना, बंगलादेशी घुसपैठियों को बढ़ावा देना आदि।
  • विधेयक के उपबंध ७४ के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा सम्बन्धी प्रचार या साम्प्रदायिक हिंसा का आरोप है तो उसे तब तक दोषी माना जाएगा जब तक वह निर्दोष सिद्ध न हो जाये । यह उपबंध संविधान की मूल भावना के विपरीत है जिसके अनुसार जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए तब तक आरोपी को निर्दोष माना जाए। अतः अब किसी को जेल भेजने के लिए किसी हिन्दू पर आरोप लगाना मात्र ही पर्याप्त होगा।
  • कोई कार्यकर्ता यदि आरोपी है तो संगठन का मुखिया भी अपराधी माना जाएगा। अतः आसानी से हिन्दू संगठनों और उनके नेताओं को जकड़ा जा सकेगा।
  • यदि दुर्भाग्य से यह विधेयक पास हो जाता है तो राज्य सरकार के अधिकारों को केंद्र सरकार आसानी के साथ हड़प सकती है।
  • प्रस्तावित अधिनियम में निगरानी व निर्णय लेने के लिए सात सदस्य होंगे जिसमें से चार अल्पसंख्यक होंगे। किसी न्यायिक प्राधिकरण का सांप्रदायिक आधार पर विभाजन देश को किस और ले जाएगा ?
  • इस प्राधिकरण को असीमित अधिकार दिए गए हैं । यह न केवल सशस्त्र बालों को सीधे निर्देश दे सकता है अपितु इनके सामने दी गयी गवाही न्यायालय के सामने दी गयी गवाही न्यायलय के सामने दी गयी गवाही मानी जाएगी। इसका अर्थ है तीस्ता जैसी झूठा गवाह तैयार करने वाली अब अधिक खुलकर अपने षड्यंत्रों को अंजाम दे सकेंगीं।
  • अनुच्छेद १३ सरकारी कर्मचारियों पर इस प्रकार शिकंजा कसता है की वे अल्पसंख्यकों का साथ देने के लिए मजबूर होंगे , चाहे वे ही अपराधी क्यों होंकोई अधिकारी इन लोगों से सहज काम भी नहीं करवा सकेगाकिसी अल्पसंख्यक की झूठी शिकायत पर भी हिन्दुओं को - वर्ष की सश्रम कारावास का प्रावधान हैयानी पुलिस भी उनकी कठपुतली होगी

  • यदि यह विधेयक लागू हो जाता है तो किसी भी अल्पसंख्यक व्यक्ति के लिए किसी भी बहुसंख्यक को फंसाना आसान हो जाएगा । वह केवल पुलिस में शिकायत दर्ज कराएगा और पुलिस अधिकारी को उस हिन्दू को बिना किसी आधार के गिरफ्तार करना पड़ेगा। वह हिन्दू किसी सबूत की मांग नहीं कर सकता न ही शिकायतकर्ता का नाम पूछ सकता है। इसका अर्थ है अब कोई भी मौलवी या पादरी द्वारा किये हुए किसी भी दुष्प्रचार की शिकायत नहीं कर सकता ।
  • इस विधेयक के अनुसार अब पुलिस अधिकारी के पास असीमित अधिकार होंगे। वह जब चाहे तब आरोपी हिन्दू के घर की तलाशी ले सकता है । यह अंग्रेजों द्वारा लाये गए कुख्यात 'रोलेट-एक्ट' से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकता है । इस विधेयक की धारा ८१ में कहा गया है की ऐसे मामलों में नियुक्त विशेष न्यायाधीश किसी अभियुक्त के ट्रायल के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किये बिना भी उसका संज्ञान ले सकेगा और उसकी संपत्ति को भी जब्त कर सकेगा।
  • इसके अनुसार किसी अल्पसंख्यक के व्यापार में बाधा डालना भी इसमें अपराध है। यदि कोई मुसलमान किसी हिन्दू की संपत्ति को खरीदना चाहता है और वह हिन्दू माना करता है तो वह अपराधी कहलायेगा हिन्दू मकानमालिक , अल्पसंख्यक किरायेदार से अपना मकान खाली नहीं करा सकता । इस विधेयक में गृहस्वामी ही कटघरे में होगा।
  • अब हिन्दू को इस अधिनियम में इस तरह क़स दिया जाएगा की उसको अपने बचाव का बस एक ही रास्ता दिखाई देगा की वह धर्मांतरण को मजबूर हो जाएगा।
  • इस विधेयक के भेदभाव का सबसे बड़ा नमूना यह है की जम्मू-काश्मीर और पूर्वांचल के जिन राज्यों में आज हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया है , वहां यह कानून लागू नहीं होगा। अतः स्पष्ट है की यह विधेयक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए नहीं अपितु हिन्दुओं को प्रताड़ित और गुलाम बनाने के लिए लाया जा रहा है।


यदि यह विधेयक पास हो जाता है तो परिस्थिति और भी भयावह होगी आपातकाल में किये गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना और भी मुश्किल हो जाएगा। भारतवासियों को दो हिस्से में बांटने की कानूनी साजिश और घृणा की स्थायी दीवार बनाकर , नए विभाजनों की नीव रखी जा रही है। श्री मनमोहन सिंह ने पहले कहा थी कि देश के संसाधनों पर मुसलामानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक इस कथन का नया संस्करण है। इस विधेयक के विरोध में एक सशक्त आन्दोलन खड़ा करना होगा तभी इस तानाशाहीपूर्ण कदम पर रोक लगायी जा सकती है।

Zeal

Friday, November 11, 2011

११-११-११ की तारीख स्त्रियों की एक कमजोरी के नाम

नारियों के उद्धार और उत्थान के लिए सदियों से प्रयास जारी हैं। २०११ में भी बेटी बचाओ जैसे सद्प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन क्या वजह है की नारियों की सामाजिक दशा में परिवर्तन की गति बहुत धीमी है।

उसका कारण है की वे स्वाभिमान के साथ जीना ही नहीं चाहती। वे पुरुषों द्वारा रौंदे जाने में ही अपना स्त्री -सुख समझती हैं। ऐसी स्त्रियों के कारण ही स्वाभिमानी स्त्रियाँ भी गेहूं के साथ घुन की तरह पिसती हैं।

यदि नारी शक्ति एक हो जाए तो कहर बरपा सकती है। अपने साथ-साथ दूसरी स्त्री के सम्मान की भी रक्षा कर सकती है। उसके अधिकारों के लिए लड़ सकती है, उसके अधिकार दिला सकती है और उसके स्वाभिमान को वापस ला सकती है।

लेकिन नहीं , ऐसी स्थिति में अक्सर देखा गया है की , कमज़ोर स्त्रियाँ , अपनी बहनों का साथ देने के बजाये दुशासनों का साथ देना ज्यादा पसंद करती हैं। वे सोचती हैं , उनका अपमान तो हुआ नहीं है फिर वे क्यूँ सरदर्द मोल लें। वे उस घृणित इंसान का विरोध अथवा बहिष्कार करना तो दूर , उसके पास अपनी स्वेच्छा से जाती हैं, यह कहते हुए- " उसे भूलो भी , मैं हूँ !मुझे रौंदो, मुझे कुचलो"

आँख के सामने अश्लीलता को घटते हुए देखेंगी , फिर भी वे उस पुरुष का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। वे उससे सम्बन्ध तोड़कर स्वयं को उस स्त्रियोचित सुख से वंचित नहीं करना चाहतीं। वे एक लम्बे अरसे तक उससे जुडी रहती हैं , जब तक की स्वयं उनका नंबर नहीं जाता। वे पुरुषों की चिकनी-चुपड़ी फेंकी गयी रोटियों पर अपना बसर करती रहती हैं। अपनी बहनों का अपमान करने वालों को "आदरणीय" कहकर अपने घर निमंत्रित करती हैं।

शर्मनाक है स्त्रियों का ऐसा चरित्र।

कुछ पुरुष जो स्त्रियों को नीचा दिखाते हैं , गाली -गलौज करते हैं , उनका भी बहिष्कार नहीं कर पातीं कुछ स्त्रियाँ। उनसे दूर रहने का लोभ -संवरण नहीं कर पातीं। जुडी रहती हैं उनसे चिरकाल तक वर्तमान में घट रही घटनाओं से सबक नहीं लेतीं, अपितु ऐसे पुरुषों का बहिष्कार करके वे इनके कुत्सित मंतव्यों को बल प्रदान करती हैं और भविष्य में अन्य बहुत सी महिलाओं के अपमान का कारण बनती हैं।

पुरुष भी चतुर होते हैं ऐसे कमज़ोर स्त्रियों को पहचान कर उससे सम्बन्ध साधे रखते हैं ताकि वे महिलाएं आड़े वक़्त में उनके काम आयें उन्हें ज्यादा कुछ करना भी नहीं पड़ता -- बस दो -चार मक्खन -मलाई वाली बातें और वे जाती हैं इनके झांसे में।

जगाओ स्वाभिमान और बचाओ सम्मान अपनी बहनों का भी

  • बहिष्कार करो दहेज़ लोभियों का
  • कन्या -भ्रूण हत्या करने वालों का
  • राजीव मेनन जैसे बौसों का
  • स्त्रियों को गाली देने वालों का
  • अश्लील आलेख लिखने वालों का



स्त्रियों के लिए लड़ने वाली स्त्रियों की संख्या पहले ही काफी कम है , यदि वे भी अपने कर्तव्यों से विमुख हो जायेंगी तो कैसे सुधरेगी स्त्रियों की दशा इस समाज में।Link


गर कर सको तुम पैदा , स्वाभिमान खुद में कर लो।
हो बहन कहीं अपमानित, सीने में आग भर लो।
लौटा दो मान उसका , तुम स्वार्थ अपना छोडो।
तुम नारी हो , तुम शक्ति हो , कर्तव्य से मुख मोड़ो।

Zeal

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आभार

Wednesday, November 9, 2011

महिला है--मुट्ठी में रखो, ना माने तो प्रताड़ित करो.

Big FM भोपाल के स्टेशन हेड 'राजीव मेनन ' , ने अपनी जूनियर RJ मानसी को छुट्टी से लौटने पर यह कहकर की वह बिना बताये भाग गयी , को नौकरी ज्वाइन नहीं करने दी। जबकि मानसी के पास लिखित में परमिशन थी। जब मानसी ने बताया की उसे कुछ gynaecological complication थी , जिसकी surgery के लिए उसे दिल्ली जाना पड़ा, तो राजीव मेनन ने उसे मजबूर किया की वह अपनी मेडिकल प्रोब्लम उसे बताये।

एक स्त्री यह बात अपने बॉस को बताएगी या एक डाक्टर को ? एक स्त्री , अपनी स्त्री-सम्बन्धी समस्याओं का जिक्र अपने पति से अथवा किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से ही करेगी ना की अपने ऑफिस में गैर पुरुष और बॉस से करेगी। जब उसने अपनी स्त्री सम्बन्धी व्याधि को discuss करने से इनकार किया तो उसे नौकरी ही नहीं ज्वाइन करने दी गयी मानसी न्याय के लिए भटक रही है। कहीं कोई सुनवाई नहीं। उसकी शिकायत दर्ज नहीं की जा रही वह मीडिया से बात कर रही है , लेकिन राजीव ने चुप्पी साध रखी है और मुंह छुपाता फिर रहा है।

कब तक जारी रहेगा ये शातिरपना। सदियों से स्वाभिमान के साथ जीने को तरसती नारी कब सर उठा कर जी सकेगी। यदि २३ वर्षीय मानसी , जिसे उचित, अनुचित और मर्यादाओं का पूरा ज्ञान है और वह बॉस के चंगुल में आने से इनकार करती है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है।

यदि स्त्री असहज है अपनी बात कहने में तो उससे जबरदस्ती पूछना अनुचित है।

घर हो या बाहर, sexual harassment बदस्तूर जारी
हैसर उठाकर सम्मान और आजादी के साथ जीने का हक नहीं है स्त्री को। कब बदलेगी ये मानसिकता ? कब मिलेगा सम्मान नारी को?

क्या दो ही विकल्प हैं ? बॉस के हाथों की कठपुतली बनना या फिर नौकरी से तिरस्कृत हो निकाला जाना ?

घोर निंदा करती हूँ ऐसे घृणित कृत्य की। राजीव को उसकी गलती की पूरी सजा मिलनी चाहिए ताकि ऐसे अक्षम्य अपराधों की पुनरावृत्ति हो और स्त्रियों को उपभोग की वस्तु समझने से पहले कांपे इनकी अंतरात्मा भी।

Zeal

Tuesday, November 8, 2011

मर्दानगी

कलियुग में जिन गुणों का लोप हो रहा है , उसमें से एक है 'मर्दानगी' अतः उचित समझा इस विषय पर भी आपके विचार जाने जाएँ।

बढ़ रही मर्दों की संख्या, खो रही मर्दानगी
टकरा रहे अहम् के बादल , छुप रही मर्दानगी,
बेलगाम हो रहा अहंकार , बढ़ रहे शिकवे-गिले,
कर्तव्य से हो रहे विमुख सब, सिसक रही मर्दानगी

यहाँ 'मर्द' से अर्थ सामान्य-जन अर्थात स्त्री एवं पुरुष दोनों से हैतथा 'मर्दानगी' अथवा "पौरुष" भाववाचक संज्ञा (abstract noun) से है

मर्दानगी के विलुप्त होते इस दौर में भी अधिकाँश लोग इसी भ्रम में जीते हैं की उनसे ज्यादा मर्दानगी किसी में नहीं है। समझने के लिए कुछ उदाहण का ज़िक्र करूँगी


  • आज हमारी सरकार बड़े से बड़े मुद्दे पर 'चुप्पी' साधने में ही अपनी मर्दानगी समझती है।

  • दूध के धुले दिग्गी राजा , जिसे देखो उस पर ऊँगली उठाकर कटघरे में खड़ा करने में ही अपनी मर्दानगी समझते है।

  • युवराज राहुल तो दलितों के घर भोजन करने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं।

  • दिल्ली पुलिस की मर्दानगी तो भूखे प्यासे अनशनकारियों को आधी रात में पीटने में है।

  • बात करें अगर ब्लॉगजगत की तो दिन-प्रतिदिन संख्या बढ़ रही है 'पोपटलाल' और 'झपट कमाल' जैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है , जो साथी ब्लॉगर पर अश्लील आलेख लिखते हैं और फिर भिखमंगों की तरह अपने अश्लील आलेख का लिंक बांटकर टिप्पणी की भीख मांगने में ही मर्दानगी समझते हैं। उससे भी ज्यादा मर्दानगी उन लोगों की है, जो टिप्पणियों की संख्या घट जाए , इस कारण से उन अश्लील टिप्पणियों को अपने ब्लॉग से हटाते तक नहीं।

  • कुछ लोग 'मोरल पुलिसिंग' बहुत करते हैं लेकिन ब्लॉगजगत में इतना कुछ अभद्र और अश्लील घट रहा है , लेकिन उस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती।

  • किसी के गुणों को पहचानकर उसकी प्रशंसा करना लोगों के अहंकार को चोट पहुंचाता है लेकिन किसी के पीछे पड़कर उसके खिलाफ अश्लील और अभद्र आलेख लिखकर उसकी गरिमा को हानि पहुँचाने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं।

धन्य हैं ऐसे मर्द और धन्य है ऐसी मर्दानगी।


वैसे मर्दानगी एक मिसाल सुभद्रा कुमारी चौहान के शब्दों में.....

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी ,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

Zeal