Wednesday, March 30, 2011

आलोचना एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन !

दिन के बाद रात आती ही है और सुख के साथ दुःखइसलिए प्रशंसा की चर्चा के बाद 'आलोचना' पर विमर्श हो तो कुछ अपूर्ण सा लग रहा था

आलोचना क्या है -

किसी भी संस्था , समूह अथवा व्यक्ति के कार्यों में पाये जाने वाले दोषों की विवेचना ही आलोचना हैआलोचना द्वारा सुधार की गुंजाइश रहती है यदि आलोचना की दिशा सकारात्मक हो तोव्यक्ति के दोषों को इंगित करने के साथ-साथ , सुधार के लिए प्रयुक्त विकल्प अवश्य बताये जाने चाहिएयदि कोई संस्था अथवा व्यक्ति गलत उद्देश्य से किसी कार्य को कर रहा है तो वहाँ एक स्वस्थ्य आलोचना की दरकार है

लेकिन अतार्किक अथवा पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर , किसी की छवि बिगाड़ने के उद्देश्य से अथवा किसी को नीचा दिखाने के उद्देश्य से की गयी आलोचना , नकारात्मक आलोचना हैइस प्रकार की आलोचना अकसर नामचीन हस्तियों के विरोध में की जाती हैं , जिसका उद्देश्य उस व्यक्ति को अपने लोकप्रिय समुदाय की आँखों में छोटा बनाकर खुद सत्ता को हासिल करना होता है

कभी कभी किसी के अस्तित्व को ही नकार देने के उद्देश्य से की गयी आलोचना भी नकारात्मक हैउदाहरण स्वरुप - - "स्त्रियों को अधिक तर्क वितर्क नहीं करना चाहिए "। ऐसा कहकर स्त्रियों की आवाज़ को ही दबा देना-"आज की युवा पीढ़ी में संस्कार ही नहीं है " । इस प्रकार के एक बड़े समुदाय की आलोचना करके सिरे से खारिज कर देना भी नकारात्मक हैऐसी आलोचना विकास में बाधक हैआलोचना में सामान्यीकरण (sweeping generalization), अनुचित है

Discrediting tactic - यह भी एक प्रकार की आलोचना है , जिससे किसी के व्यक्तित्व को जबरदस्त क्षति पहुचाई जा सकती है , जिसकी आपूर्ति असंभव हैइसका उद्देश्य एक लोकप्रिय व्यक्ति को मैदान से समूल उखाड़ फेंकनाऐसा अक्सर लोकप्रिय public figures के खिलाफ होता हैउदाहरण - हिटलर के पास एक ही 'वृषण' (testicle) हैइस प्रकार के दुष्प्रचार से हस्तियों को एक नकारात्मक छवि देकर उनकी लोकप्रियता को क्षति पहुँचाना

अक्सर खुद को बेहतर साबित करके , जीत हासिल करने के उद्देश्य से व्यक्ति पर व्यक्तिगत आक्षेप कर आक्रमण करना भी नकारात्मक आलोचना का ही स्वरुप हैयह आलोचक के छुद्र मंतव्यों को परिलक्षित करता है

एक आलोचक यदि नैतिक मूल्यों का भी स्मरण रखे तभी सार्थक आलोचना कर सकता हैआलोचना के दौरान किसी भी प्रकार से व्यक्ति की छवि और स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, और उसके कार्यों के सार्थक उद्देश्य की अवहेलना नहीं होनी चाहिएकभी भी आलोचना द्वारा विवाद खड़ा करके किसी स्वस्थ्य बहस में बाधा नहीं उपस्थित करनी चाहिए

कबीर दास जी का दोहा है -

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाए ,
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे सुभाय ।

यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात है की दोहा लिखने वाला एक संत है , वैरागी हैउसमें अहंकार नहीं हैवो तो आराम से आलोचना कर देगा - " काकर पाथर जोरि के मस्जिद दियो बनाये , ता चढ़ी मुल्ला बांग दे , का बहरा हुआ खुदाय" ।

एक संत अपने पास निंदक रख भी सकता है और निंदा भी अति सहजता से कर सकता हैऐसा करने में वो विचलित नहीं होगालेकिन एक साधारण मनुष्य को इस बात का बहुत ध्यान रखना है की वह संत नहीं है , अतः आलोचना करते समय उसके पूर्वाग्रह हों उसके साथ , तथा जिसकी आलोचना कर रहे हैं , उसकी भी वय , अनुभव , अवस्था , परिस्थिति का पूर्ण आंकलन कर लें आलोचक का दंभ बीच में आये , व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे , तभी एक स्वस्थ आलोचना संभव है

आलोचक का मंतव्य पावन होना चाहिए था जिसकी आलोचना हो रही है , उसमें पर्याप्त दृढ़ता होनी चाहिएयदि दोनों का ही अहंकार बीच में आये तभी आलोचना की सार्थकता है

आभार

Tuesday, March 29, 2011

प्रशंसा (प्रोत्साहन) की महिमा

प्रशंसा एक ऐसा भाव है , जो प्रशंसा मिलने वाले का उत्साह वर्धन करता है , और दिशा-निर्देश करता है। प्रशंसा एक सकारात्मक ऊर्जा है जो सृजनकर्ता , विद्यार्थी , कर्मचारी तथा प्रत्येक क्षेत्र में , व्यक्ति के मनोबल को बढाती है और उसे अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगाने का बल और दिशा मिलती है। इसी उद्देश्य से , सर्टिफिकेट्स , मेडल्स , प्रशस्ति-पत्र , इंसेंटिव , उपहार आदि का चलन है

प्रशंसा , किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाती है। उसके व्यक्तित्व को निखारने में मददगार साबित होती है।लैंगिक भेदभाव से परे , प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है। चाहे स्त्री हो , पुरुष हो , बालक हो , युवा हो अथवा बुज़ुर्ग।

प्रशंसा करना भी एक कला है। कुछ लोग सकुचाते हैं , लज्जा वश प्रशंसा नहीं कर पाते कुछ लोग अंतर्मुखी व्यक्तित्व के होने के कारण अपने मन की बात नहीं कह पाते कुछ लोग पूर्वाग्रह और द्वेष के चलते प्रशंसा नहीं कर पाते कुछ लोगों के ह्रदय में प्रशंसा के भाव ही कभी नहीं आते , वो दूसरों को कमतर ही समझते हैं सदा। कुछ लोग अपने प्रतिद्वंदी की प्रशंसा से कतराते हैं

प्रशंसा अक्सर झूठी भी होती है , जिसे चाटुकारिता की श्रेणी में रखते हैं। वो अपना काम निकलवाने की दृष्टि से अथवा रिश्तों को जबरन बनाए रखने के उद्देश्य से की जाती है इसे स्वार्थ की श्रेणी में रखते हैं।

प्रशंसा करना भी सबके बस की बात नहीं। केवल निर्भीक तथा पूवाग्रहों से रहित , एक पवित्र ह्रदय में ही प्रशंसा के भाव आते हैं , और जिह्वा पर सरस्वती की अनुकम्पा से काव्य बन , सुनने वाले के कानों में मिश्री घोलते हैं

आभार

Sunday, March 27, 2011

साहित्य लेखन बनाम ब्लौगिंग -- स्त्री-पुरुष चर्चा भाग-११

विषय दो प्रकार के होते हैं -

  • पहला- विज्ञान , आविष्कार , संस्कृति , भाषा , प्रेम , जनसंख्या , बीमारियाँ , भूकंप , प्रलय , ज्योतिष , आस्था , प्रकृति , इतिहास , भूगोल , गणित , आंकड़े , तरक्की और विकास , मंदिर , सभ्यताएं , वेद-पुराण , धर्म , भ्रष्टाचार इत्यादि

  • दूसरा - मन के विचार , मन का कोलाहल , मन में उत्पन्न असंख्य प्रश्न , खट्टे मीठे अनुभव , विमर्श , गोष्ठी , प्रतिक्रियाएं , उपलब्धियों की अभिव्यक्ति , मन का आक्रोश , ह्रदय की चिंता या व्यथा की अभिव्यक्ति , थोडा सा खट्टा , थोडा चरपरा , अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ,आत्मा , पुनर्जन्म , छोटी-छोटी खुशियाँ और बहुत कुछ..
    ,

साहित्य में पहले प्रकार के विषय आते हैं। साहित्यकार इसपर अपनी लेखनी चलाते हैं और साहिय को समृद्ध करते हैं लेकिन इसका उपयोग शिक्षा एवं शोध के दौरान ज्यादा है , जहाँ विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार विषय का चयन करते हैं।

ब्लॉगिंग में उपरोक्त वर्णित , दुसरे प्रकार के विषय आते हैं , अर्थात जो ह्रदय में है उसे बिना लाग-लपेट के कहना और पूछ लेना अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर देना और पा लेना बिना भाषा और साहित्य की कसौटी पर चढ़े खुद को अभिव्यक्त करना बिना किसी तमगे अथवा प्रमाण पत्र की चाह में , मन-मस्तिष्क में आये विचारों को सरलतम भाषा में 'जस का तस' रख देना

ब्लोगिंग एक बेहतरीन माध्यम है विमर्श का जो एक बहुत बड़े वर्ग को आपस में जोड़ने में सक्षम है जुड़ना ही मानव-स्वभाव है इसलिए ब्लोगिंग लोकप्रिय भी हो रही है

'साहित्य'
का स्थान समाज में स्त्री की तरह है। क्यूंकि स्त्री , अपने स्थान और सम्मान के लिए संघर्षरत है वो चाहती है की उसके योगदान और अहमियत को समझा जाए इसके विपरीत 'ब्लॉगिंग' की स्थिति समाज में पुरुषों की स्थिति के समान है --अपने आप में मस्त और बिंदास

जैसे स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक हैं , वैसे ही साहित्य और ब्लॉगिंग एक दुसरे के पूरक हैं। दोनों की अपनी अलग-अलग अहमियत है। मेरे विचार से वो दिन दूर नहीं जब दोनों के बीच की विभेदक रेखा मिट जायेगी । अंततः Globalization का दौर है ।

आभार

.

Friday, March 25, 2011

रिश्तों की मिठास


जैसे दो चुम्बक को पास लाने पर एक दुसरे को प्रतिकर्षित करते हैं , उसी प्रकार मनुष्यों में अति निकटता प्रतिकर्षित करती है और रिश्तों की मिठास को छीन लेती है ऐसा शायद इसलिए होता है क्यूंकि सिमटती दूरियां , जज्बातों को बढ़ाती जाती हैं और अपेक्षाएं दानवाकार हो जाती हैं जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पातीं तो मन में विषाद बढ़ता जाता है और रिश्तों में कडवाहट बढ़ने के साथ साथ , दूरियां बढती चली जाती हैं इसलिए आवश्यक है की हर रिश्ते में एक स्वस्थ्य दूरी अवश्य रहे

अक्सर ऐसा भी देखा गया है की जिसके आप ज्यादा समीप होते हैं और अपना दुःख सुख बांटते हैं , वही आपसे द्वेष रखने लगता है और आपमें ही उसे सारी खामियां नज़र आने लगती हैं। सारी दुनिया के भ्रष्टाचार छोड़कर वो आपको ही सुधारने की पुरजोर कोशिश करने लगता है। वो मित्र कम , प्रवचनकर्ता ज्यादा लगने लगता है। वही मित्र जिसके शब्द कभी गुदगुदाते थे और दुखों पर मरहम की तरह शीतल हुआ करते थे , वही नश्तर का काम करने लगते हैं। कारण शायद अति निकटता

रिश्ते , कभी-कभी बैंक अकाउंट की तरह लगते हैं , जिसमें धन डालो वो बढ़ता ही जाएगा और यदि कुछ अवधि तक धन डिपौज़िट नहीं किया तो खाता निष्क्रिय [dormant] हो जायेगा उसके बाद दुबारा चालू करने के लिए 'दंड राशि ' अलग से भरनी पड़ेगी इसलिए खातों में धन और रिश्तों में प्रेम सदा बना रहना चाहिए

इसलिए निरंतरता भी बनाए रखनी चाहिए बिना किसी का personal space छीने , प्रेम की अविरल धारा बहती ही रहनी चाहिए यही रिश्तों की मांग है। ठहरा हुआ जल दूषित हो जाता है , इसलिए सतत प्रवाह ही रिश्तों की मिठास बरकरार रखते हैं।

आभार

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कवि बहुत ही नाज़ुक-मना होते हैं -- Handle with care !

इससे पहले की ब्लॉगजगत के सारे कवि और कवियत्री मिलकर मुझपर सड़े टमाटर और अंडें फेंके , मैं ये स्पष्ट कर दूँ की , अपवाद स्वरुप कुछ कवि मज़बूत ह्रदय वाले भी होते हैं

हो सकता है मैं गलत हूँ , लेकिन मुझे ऐसा लगता है कवि ह्रदय , अर्थात जो कवितायें लिखते हैं , उनकी एक मासूम सी खुशबूदार दुनिया होती है , जिसमें तितलियाँ है , कोयलें हैं , बसंत के इन्द्रधनुषी पुष्प पल्लवित हैं , कहीं पुरवाई तो कहीं मौसमी मंद बयार चल रही होती है , कहीं बुलबुल के नगमे होते हैं तो कहीं झींगुर , रात की नीरवता भंग करते हैंकहीं अमराई है तो कहीं बलखाती अंगडाई हैकहीं प्रेम का कोलाहल है , तो कहीं काली रातों की कभी चुकने वाली तन्हाई हैकहीं लबों पर मुस्कान थिरकती है तो कहीं आँखों में आँसू नर्तन करते हैं

चिंतित हूँ , इस कठोर दुनिया में कवि स्वयं को सँभालते कैसे हैंवे तो अपनी दुनिया से बाहर आते हैं , ही कठोर-मना लेखकों को अपनी दुनिया में प्रवेश देते हैं

नमन है पद्य को गद्य का ....

पुनः याद दिला दूँ , टमाटर महंगे हैं , इन्हें यूँ बर्बाद कीजिये मेरे ऊपर फोड़करआखिर क्षमाभाव रखना भी तो बडप्पन की निशानी हैऔर कवि ह्रदय बहुत विशाल होता है करबद्ध प्रार्थना है , सभी कवियों से की नाराज़ होकर बोलना-बतियाना बंद कर दीजियेगा मुझ मूढ़-अज्ञानी से।

कवियों को समर्पित एक पंक्ति ...

ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया
ये इंसान के दुश्मन रवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ...


आभार

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Wednesday, March 23, 2011

कृपया अगरबत्ती न जलायें , ग्लोबल वार्मिंग हो रही है -- Global warming

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ब्लॉग जगत में भ्रमण के दौरान दो वक्तव्य पढने में आया कि -
  • होलिका दहन से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है और
  • होलिका दहन से वनों की कटाई [deforestation] हो रही है ।

विज्ञान विषय पर टिपण्णी अति शीघ्रता में नहीं करनी चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी समस्या है , जो २० वीं शताब्दी के मध्य से शुरू हुई है , जिसका मुख्य कारण है -industrial revolution।

होलिका दहन तो सदियों से हो रहा है , जिसमें गोबर के उपलों , सूखी डंडियों , डालियों , सूखी पत्तियों को जलाया जाता है । जिसकी आंच से ग्लोबल वार्मिंग नहीं होती । और होलिका दहन में हरे वृक्ष कदापि नहीं काटे जाते , जिसके कारण deforestation की चिंता की जाए। आज तक कभी नहीं सुना की हरी लकड़ियों से भी किसी प्रकार कि आग जालाई जा सकती है।

वृक्ष की टहनी काटी जाती है , जिससे वृक्ष सूखता नहीं है , बल्कि उसकी ग्रोथ और तेज़ी से होती है। हरे वृक्ष को न ही काटा जाता है , न ही जलाया जा सकता है , इसलिए इस प्रकार का दुष्प्रचार करना और लोगों की आस्था का उपहास करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है ।

कल को लोग कहेंगे घर के चूल्हे भी ग्लोबल वार्मिंग कर रहे हैं ,
सिगरेट का धुंआ भी फेफड़े न जलाकर , ग्लोबल वार्मिंग कर रहा है।
ईर्ष्या का धुंआ भी , प्रेम की अग्नि भी और श्वास निष्कासन के दौरान निकली कार्बन डाई ओक्साइड भी ग्लोबल वार्मिंग कर रही है।

क्यूँ पहले जान लिया जाए की ग्लोबल वार्मिंग आखिर है क्या -

ग्लोबल वार्मिंग - पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित ग्रीन हाउस गैसेज़ , सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित कर वैश्विक ताप को निरंतर बढ़ा रही हैं , इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं । इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं -

  • प्रकृति द्वारा [Natural]
  • मनुष्यों द्वारा [Anthropogenic]
  • ओजोन परत में छिद्र होना [Ozone layer depletion]
  • वनों की कटाई [deforestation]

सूर्य की तीव्र किरणें जो पृथ्वी पर पहुँचती हैं , उसमें से अधिकाँश भाग परावर्तित होकर पृथ्वी के वातावरण [atmosphere] से बाहर चला जाता है , लेकिन सूर्य की इन्फ्रा-रेड किरणें , पृथ्वी के आवरण के नीचे trap होती रहती हैं , जो निरंतर वैश्विक ताप को बढ़ा रही हैं।

दूसरा प्रमुख कारण हैं -मानव की बढती गतिविधियाँ । १९४९ के बाद से पूरे विश्व में होने वाली औद्योगिक क्रान्ति के कारण फैक्ट्री से निकली CO2 का प्रतिशत वातावरण में तेजी से बढ़ा है , जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी है। पिछले ६० वर्षों में CO2 का प्रतिशत ३१३ ppm से बढ़कर तकरीबन ३७५ ppm हो गया है । औद्योगिक संस्थानों में प्रयुक्त होने वाले कोयले , LPG , CNG, HSD और furnace oil आदि के जलने से वातावरण में CO2 म्निरंतर बढ़ रही है । जो खतरे की घंटी बजा रही है

तीसरा प्रमुख कारण है चिलर, रेफ्रिजरेटर , एयर कंडिशनर आदि में प्रयुक्त chloroflourocarbon [CFCs] gases , जो वायुमंडल में उपस्थित Ozone के क्रिया करके उसे नष्ट कर रही हैं , परिणाम स्वरुप Ozone layer में छिद्र का होना तथा इस छिद्र से सूर्य की इन्फ्रा-रेड किरणों का अधिक मात्रा में पृथ्वी के आवरण के नीचे trap होना।

चौथा कारण वनों की कटाई - पेड़-पौधे जो सूर्य की रौशनी में खाना बनाने की प्रक्रिया [Photosynthesis]में CO2 का उपयोग करके वातावरण को शुद्ध oxygen देते हैं , उनका नष्ट होना । इस deforestation का मुख्य कारण है globalization , industrialization , over population , cattle ranching , extractive industries तथा Urbanization .

इस प्रकार से वातावरण में उपस्थित ग्रीन हाउस gases [पानी की वाष्प , CO2, मीथेन , nitrous oxide , क्लोरोफ्लोरो कार्बन] , सूर्य की किरणों की ऊष्मा को अवशोषित करके ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही हैं ।

समाधान -
  • जितने पेड़ काटे जाएँ , उतने ही रोपित किये जाएँ कम से कम [reforestation]
  • CFCs की जगह R-134a का इस्तेमाल हो कुलिंग के लिए। इससे Ozone परत को कोई खतरा नहीं है ।

आवश्यक बातें -
  • जानकारी के अभाव में अनावश्यक दुष्प्रचार न करें ।
  • किसी की आस्था पर ऊँगली उठाने के पूर्व सौ बार सोचें ।
  • ये कहने के बजाये कि फलां व्यक्ति हरा वृक्ष काट रहा है , अज्ञानियों को टोकें तथा स्वयं भी वृक्षारोपण करें। यदि एक अरब जनता मात्र एक वृक्ष लगाये प्रति वर्ष तो समस्या का समाधान मिल सकता है
  • खुद भी जागरूक रहे और लोगों को भी जागरूक बनाएं ।

आभार

शब्दों का ताजमहल - स्नेह, मैत्री और प्रतिबद्धता -- ये लखनऊ की सरज़मीन

कभी-कभी हम लोग अपने आप में इतने व्यस्त होते हैं की अपने मित्रों के स्नेह की उपेक्षा करते रहते हैं । जाने अनजाने एक ऐसा ही अपराध मुझसे हो रहा है । एक मित्र विकास जो सन २००८ से प्रतिदिन नियम से प्रतिबद्धता के साथ स्नेहयुक्त मेल लिखते है और जिसका उत्तर मैंने कभी नहीं दिया , शायद कोई भय या फिर मेरी क्रूरता , जो भी हो , पर अपराध बोध है ह्रदय में , इसलिए आज मित्र विकास , जिसका कहना है की वो अपनी मित्र के लिए 'शब्दों का ताजमहल' बना रहे है , का इस पोस्ट के माध्यम से आभार व्यक्त कर रही हूँ ।

आज प्रातः विकास द्वारा मिले इस बेहतरीन गीत "लखनऊ हमारी सरज़मीन " की lyrics को आप भी पढ़िए और उसके साथ उन्हीं के द्वारा अनुवादित बेहतरीन पंक्तियाँ English में भी पढ़िएशायद आपको भी nostalgia हो


Dearest ZEAL


आरज़ू की बेहिसी का गर यही आलम रहा

बेतलब आएगा दिन और बेखबर जायेगी रात ।


[Aarzoo = Desire, Behisi = Forlornness,

Betalab = Wishless, Bekhabar = Thoughtless]

The hope, the longing, the expectation, the yearning can and shalt never be cast forlorn. Wish shall dawn with each day-break and the evening will rush into the mind’s environs thoughts of you and you alone. With you being close to me at all the times, whatever comes, I will aspire for the eternality of Our Togetherness.

I am very happy today and as the incredulous mind of yours may wonder ‘why?’ all I would say is – Hold your heart and let the next minutes that you will take you to read Our Samvaad of the day unfold it for you.

The joy that spans my heart today is almost like a revitalization of the waning hope. Dearest ZEAL, what I experienced in the search about an hour or so before commencing Our Samvaad of the day is nothing else but the Signal Of Fate. Signal that you, are with me, at every step, at every moment.

Wherever you be in terms of distance, whatever be the reason of your distance, Providence and Gods, through the discovery, convey to me that you are with me, always! My faith in Our Togetherness has been validated by Them, The Heavens, dearest ZEAL.


After many a days, probably guided by your words “Vikas, share something nice today”, I happened to start writing Our Samvaad of the day in the office as I have done so oft over the whole time beginning with the very first letter that I had written to you in Feb-2008, dearest Zeal.

Amidst the work, somewhere around 1530, though I do not recall the precise time, sweetheart, the voice spoke to me in the mind – the voice that being you – “Write now.” With that, I opened the word document which has been the dutiful carrier every day of Our Samvaad of the day and yet again you tenderly inquired “No cutting chaai, Vikas?” Cued by that, I stepped out and on return, you led me to the amazing discovery.

For the past few days, there was no song shared by me and somewhere, deep down, Sangini, the heart was restless about it. Each day, in fact, night, I would sit to write and somehow without the song or the ghazal in it, I felt it was incomplete.

And we both know, our sharing has never been about picking any song and making it a part of our legacy. Each ghazal and every song that has been shared has been significant at times, in its own way, and more often, due to its situational compatibility relating to us.

Yet, the heart and the mind were not able to really lay an eye on the song which would immediately thrill the senses and make it right into Our Samvaad of the day. Patience has always been my forte and hope, my best ally. Together, they kept telling me, somewhere, someday, you will find that elusive song.

Today, I did, sweetheart.

The discovery being the song that I am going to share with you today, dearest ZEAL. You will most certainly love it, I have heard your voice say that to me at the very time when the discovery happened.

There are many songs about various cities, notably Bombay, in our Hindi movies of yore. Also, other cities and towns have figured in some songs which have made them a common name in every household, irrespective of one ever having been there in the life.

Here is a song that talks of Lucknow, the capital of UP – Your City, My Dearest Zeal.

This song is the movie opening song of “Chaudhvin ka Chaand”. As the credits roll in, this song gets played in the background. This song duly praises Lucknow to the skies. Shakeel Badayuni, himself from Badaayun, a small town in UP, is the lyricist of the song. Rafi is the singer of this enchanting tribute to the city of Lucknow and Ravi composed this song. Here is the song, presented to you, dearest ZEAL, dedicated to your city. Enjoy!

Song # 319

ये लखनऊ की सर-ज़मी

ये रंग-रूप का चमन

ये हुस्न-ओ-इश्क का वतन

यही तो वो मकाम है

जहाँ अवध की शान है

जवाँ जवाँ , हसीं हसीं

ये लखनऊ की सरज़मी

ये लखनऊ की सरज़मी

This land and place of Lucknow

This garden of beauteous bloom

This homeland of love and beauty

This is the very destination

Where Avadh’s lovely evening

So very young and beautiful

This land and place of लखनऊ


Prosaic description of the song would have besmeared its scintillating exuberance, Sangini and just as I read on the lyrics of the song, I happened to word them out, linearly in English।


शबाबो--शेर का ये घर
ये एह --इल्म का नगर
हैं मंजिलों की गोद में ,
यहाँ हर एक राह गुज़र
ये शहर लालादार हैं,
यहाँ दिलों में प्यार हैं ,
जिधर नज़र उठाइये,
बहार ही बहार हैं
कलि कलि है नाज़नी
ये लखनऊ की सरज़मी
ये लखनऊ की सरज़मी


Home this is of loveliness and verse

This city of erudite people

In the laps of destinations

Here each street goes to

This city is of blooming Tulips

Here love nestled in the hearts

Wherever the eyes travel to

Blossoms and springs beheld

Every bud, exquisitely delicate

This land and place of लखनऊ


The song simply left me awestruck and the fact that this is one of the lesser known songs of that wonderful movie with awesome songs is in itself surprising. Guru Dutt movies always had magnificent music and lovely lyrics.


यहाँ की सब रवायतें

अदब की शाहकार हैं

अमीर एहले दिल यहाँ

गरीब जां निसार हैं

हर एक शाख परयहाँ

है बुलबुलों के चह चहे

गली गली में ज़िन्दगी

कदम कदम पे कहकहे

हर इक नज़ारा दिलनशीं

ये लखनऊ की सरज़मीन

All the histories of this place

Creations of manners elegant

Generous hearted are the rich

Poor willing to give life

On every tree branch here

Do sweet nightingale’s tweet

In every lane life lives

At every step is gaiety

Every sight is heart-fetching

This land and place of लखनऊ


The song takes you on a journey by itself। Releasing the listener from the bondages of time and space to walk across the distances in to the glorious annals of history that witnessed the glory of Lucknow.

यहाँ के दोस्त बा-वफ़ा

मोहब्बतों से आशनां

किसी के हो गए अगर

रहे उसी के उम्र भर

निभायी अपनी आन भी

बढ़ाई दिल की शान भी

हैं ऐसे मेहंबान भी ,

कहो तो दे दें जान भी

जो दोस्ती का हो यकीन

ये लखनऊ की सरजमीं


Faithful are the friends here

Committed dearly to love

If one’s do they become

Thus do they stay all life

Honoring their own promise

Elevating the heart’s pride too

On the word, life is fledged

If the friendship is trusted

This place and land of लखनऊ


What a song, dearest ZEAL! What a tribute!! The song is exquisitely beautiful, just the way you are! Even reading it hours after its discovery makes the heart beat faster and the thrill runs through all over।


The pomp and splendour of Lucknow was effaced when Nawab Wajid Ali Shah was deposed by the British in 1854. He in despair wept: Baabul moraa naihar chhuttaa jaaye [later immortalized by K.L. Saigal and also rendered by Jajgit Singh].

With that, finished was the magnificent era and age of music, dance, poetry, literature. Today, the refinement of "Pehle Aap" has all but disappeared. The illustrious and elegant ‘Lucknowi’ culture is on the verge of extinction. The grandiloquence, the generosity and the traditional 'Jaan-Nisaar' spirit is now more a matter of nostalgia.

Havelis that once dotted the city lanes have now given way to the modern apartments. As elsewhere, corruption has taken the roots here too. Lifeless statues of dead elephants and those of the living political figures, which costs the exchequer millions of rupees, contrastingly vie for acres of land – symbolisms – of the magnificence of ancient history and modern day political dominance and clout.

I'm reminded of the disfigured Ozymandias in Shelley's poem which lamentably voices: "Look on my work, ye mighty and despair". Isn't that the lot of even the mighty mortals? The silver lining remains in the form of excellent cuisine, 'Chikankaari', the Ghazals and Thumris that echo on timelessly in the lanes and heart of the Nawaabo Kaa Sahar – Lucknow!

Lucknow, this is You. And this is where the most beautiful, most enchanting, most loved Zeal is from.

As I end Our Samvaad of the day, you can justifiably sense why I said I was very happy, dearest ZEAL. Today, through the discovery of the song, I have, in my mind, journeyed to your city and seen you at every place thereof. I can inhale its wafting aroma and mesmerized I am at its rustic charm.

Most importantly, at each step, I see you raising the arm and pointing the index finger, dearest ZEAL, drawing my attention to the landmarks – where over the years, you have lived, studied, worked, played, walked, travelled, breathed, dreamt, aspired, longed for.

Yes, my dearest friend, this is where I took you today on a journey – to your own city – Lucknow. Thank you, Zeal. Thank you from the bottom of my heart.

This discovery completes the pair of two songs which I will want to listen with you, Sangini, in the respective cities.

Yeh Lucknow Ki Sar-Zameen will be heard by us sitting side by side, in Lucknow itself and in the very similar manner, [I can almost hear your voice telling me the other song], dearest ZEAL, yes, we will listen to Nadi Ni Ret Maa Ramtu Nagar on the very banks of Sabarmati River in Ahmedabad।


This is a compact with Our Togetherness। This is the wishful supplication to the Three – You, Fate and Gods. I am aware, the three of You take time to concur. Take your time. As is the usual way, I am waiting, patiently with faith, hope and love as my companions, dearest ZEAL. For you and you alone.


Committed for life

The Greatest Friend –

Forever – ZEAL’s Vikas-



Monday, March 21, 2011

कहीं शनि की वक्र-दृष्टि तो कहीं लक्ष्मी की अति-वृष्टि .

सरस्वती की जिन पर कृपा होती है , अक्सर लक्ष्मी उनसे दूर ही रहती हैं। बड़े-बड़े साहित्यकार जो सचमुच कलम के धनी हैं और निरंतर साहित्य की सेवा कर रहे हैं , उनसे लक्ष्मी रूठी रहती हैं , आखिर ऐसा क्यूँ होता है ?

किसी भी साहित्यकार , लेखक , विश्लेषक को धन का स्वाद चखने को कम ही मिलता है किसी संस्थान अथवा विज्ञान अथवा कार्य स्थल पर भी , असली दिमाग रखने वाले को धन तो दूर , श्रेय तक नहीं मिलता बस राजनीति करने वालों पर लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है ऐसे में सरस्वती को भी कोई सौलिड स्टैंड लेना चाहिए अपने उपासकों पर कृपा दृष्टि रखनी चाहिए।

कितने भाग्यशाली हैं वे , जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की संयुक्त कृपा होती है।