Wednesday, December 28, 2011

मेरा तुमसे मतभेद है मनभेद नहीं

अक्सर लोग ये कहते हुए मिल जायेंगे -"मेरा तुमसे मतभेद है , मनभेद नहीं ! लेकिन सच तो यही है की ९० प्रतिशत लोगों में मतभेद होते ही मनभेद भी हो जाता है ! बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं और अलग हो जाते हैं एक दुसरे से! मौका पाते ही एक दुसरे पर व्यक्तिगत आक्षेप और छींटाकशी करते हैं ! आलोचनाओं के दौर से शुरू होकर उस व्यक्ति के अपमान और फिर दुश्मनी तक पहुँच जाते हैं !

वैसे यदि मतभेद होने के बावजूद भी मनभेद न हो तो यह एक आदर्श स्थिति होगी , लेकिन यदि मनभेद भी हो जाए तो दूरी बना लेनी चाहिए , बजाये इसके की मल्ल-युद्ध शुरू कर दें !

Friday, December 23, 2011

हमका अईसा-वईसा न समझो हम बड़े काम की चीज़ --कांग्रेस


सन २०११ कब आया और कब ख़त्म हो चला पता ही नहीं चला ! आप लोगों ने तो शायद कुछ सार्थक किया ही न हों लेकिन हमारी सरकार जिसे झेलने के सिवा हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं हैं , उसने कई मक़ाम हासिल किये हैं इस जाते हुए वर्ष में !

क्यूँ न एक नज़र डाली जाए देश की गौरवशाली सरकार पर--

१-- हम पिस्सुओं की तरह चिपके रहेंगे इस देश से , जोंक की तरह खून पियेंगे और दीमक की तरह चाट जायेंगे इस देश को ! हमने अपना वादा निभाया है पूरा-पूरा , आगे भी निभायेंगे !

२-हम परिवारवाद को ही निभायेंगे ! हम विदेशी हैं तो क्या हुआ , भारत में तो संयुक्त परिवार की परंपरा है, हम सभी अल्पसंख्यकों के साथ मिलजुलकर रहेंगे ! आप नहीं सुहाता तो जा सकते हैं, लेकिन हम तो अपने परिवार की नीव मज़बूत करके ही रहेंगे ! चाहे मेरे लाडले को मंजन करने की भी तमीज न हो , हम उसे भारत का प्रधानमंत्री बना कर ही छोड़ेंगे!

३- हम देश को बेच खायेंगे ! 2G , 3G क्या है , हम और भी बड़े घोटाले करायेंगे २०१२ में ये मेरा आपसे वादा है , बस आप वोट दे दीजिये !...अच्छा जाइए न दीजिये, हमारे पास अल्पसंख्यकों की कमी नहीं है ! उतने ही वोट काफी हैं! इतने वोटों से ही हम आपका खून चूसने में सक्षम हैं पिछले ६४ वर्षों ! आगे और गुल न खिलाया तो अपना नाम बदल देंगे!

४- आप अपने हिन्दू होने पर झूठा गर्व करते रहिये !, मूर्ख नहीं तो ! ज़रा भी एकता नहीं है आपने !, कट्टरता नहीं है ! धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सदियों से उल्लू बनते आये हो , आगे भी बनते रहोगे , और हमारी पार्टी आपकी इसी मूर्खता को पूरा-पूरा कैश करती रहेगी , ये २०१२ में हमारा आपसे वादा है! हम तुष्टिकरण की नीति नहीं छोड़ेंगे! वही तो हमारी रोजी-रोटी है!

५- हम फिर विश्व-स्तरीय खेल करायेंगे ! नए कलमाड़ी लायेंगे! करोड़ों फिर कमायेंगे !--उठो, जागो खेलो ! --बिनामतलब उछलो !

६- हम हिन्दुओं के खिलाफ जो विधेयक २०११ में लाये हैं , उससे भी बड़ा लायेंगे २०१२ में और नामोनिशान मिटायेंगे हिन्दुओं का ! सोते रहो मूर्खों, हम जारी रहेंगे ! अल्पसंखक जिंदाबाद!-- काफिरों अपना धर्म बदलो नहीं तो पछताओगे !

७-हम विदेशियों के तलवे चाटना बंद नहीं करेंगे ! हम बहुएं भी लायेंगे, हम दामाद भी लायेंगे! आतंकवादियों को शरण देकर हम पाकिस्तान यहीं बनायेंगे !

८- हम FDI -retail भी लायेंगे! वालमार्ट भी लायेंगे ! ५१ प्रतिशत तो कम है जी , हम ७१ भी दे आयेंगे ! हम मालिक उन्हें बनायेंगे !

९-धन पीला हो या काला हो हम वापस नहीं लायेंगे ! जब तक चूस सकेंगे हम , इसे चूसते जायेंगे !

१०- देशभक्तों को मारेंगे हम , भ्रष्टाचार बढ़ायेंगे ! जनलोकपाल बिल पास हो गया कहीं तो हम सरकार कैसे चलायेंगे ? जनता को मूर्ख कैसे बनायेंगे ?

सरकार की उपलब्धियों पर तो पुराण लिखी जा सकती है , स्मृति ही साथ नहीं देती ! इनकी यश-गाथा में कुछ सहयोग आप भी दें !

Zeal
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Monday, December 19, 2011

कुछ मीठा हो जाए ?--या फिर थोडा सा परोपकार ?-- Philanthropy

परोपकार करना चाहिए, ऐसा सभी कहते मिलेंगे लेकिन इस दिशा में प्रयासरत विरले ही होते हैं ! सभी अपनी-अपनी पूरी ऊर्जा के साथ कमाने में लगे हुए हैं! कोई धन कमा रहा है कोई नाम और शोहरत ! कोई विद्या ही अर्जित किये जा रहा है !

कब तक अर्जित करेंगे! कोई तो सीमा-रेखा होनी चाहिए ! हम कतार से हटेंगे तभी तो दुसरे का नंबर आ सकेगा ! कुछ लोग अरबपति से खरबपति बने जा रहे हैं , लेकिन पेट ही नहीं भर रहा उनका ! कमाए ही जा रहे हैं ! अरे कमा रहे हैं तो खर्च भी कीजिये अपने से कमतर पर ! आखिर क्यूँ कमा रहे हैं इतना ? एक अवस्था के बाद संचय का लोभ संवरण करके उसे कमज़ोर जनता पर व्यय करना चाहिए !

विद्या भी अर्जन के उपरान्त बांटना चाहिए ! जो ज्ञानी, ध्यानी , विद्वान् मनुष्य हैं उन्हें अपनी विद्या से दूसरों को लाभान्वित करना चाहिए ! एक निश्चित उम्र के बाद सीटें मत छेकिये , नयी पीढ़ी कतार में है ! कुछ दिग्भ्रमित भी हैं ! उनका ज्ञानवर्धन एवं मार्गनिर्देशन कौन करेगा ? जो सक्षम हैं वही न करेंगे?

बड़ी बड़ी कंपनी के मालिक एवं कोर्पोरेट दुनिया के अनुभवी धनिक यदि चाहें तो समाज को एक बड़ा योगदान दे सकते हैं ! करोड़ों रूपए के टर्न-ओवर से लाभान्वित होने के बाद उनमें परोपकार की भावना यदि न जन्म ले तो उनका धनार्जन व्यर्थ है ! उन्हें निशुल्क अस्पताल एवं स्कूल खोलने चाहिए ! देश को अच्छे शैक्षणिक संस्थान देने में और आम जनता का जीवन-स्तर उठाने में इनकी महती भूमिका हो सकती है !

मेरे विचार से धन हो अथवा ज्ञान अथवा अनुभव एक निश्चित अवधी के बाद बांटना शुरू कर देना चाहिए ! हर प्रकार के ज़रूरतमंदों की संख्या बहुत है !

लेने वाले बहुत हैं ! हमें बस देना सीखना होगा ! परिवार से हटकर समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी निभाने के लिए ये सबसे सुन्दर मौका होगा !

आधी ज़िन्दगी अपने लिए और शेष आधी "अपनों" के लिए जीनी चाहिए !

वन्दे मातरम् !




Saturday, December 17, 2011

आजीवन अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान कीजिये

अक्सर कुछ लोग आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लेते हैं ! लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है की उनके मित्र एवं परिजन उन्हें लगातार ये बताते रहते हैं की उनका ये निर्णय गलत है!

आखिर क्यूँ लगता है उन्हें ये निर्णय गलत ?

१- उन्हें लगता है वह अकेला रह जाएगा!

२-उसकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं होगा!

३-वह अपने मन की बातें किसी से नहीं कह सकेगा !

४- जीवनसाथी के अभाव में जीवन ही व्यर्थ है!

५- वह जीवन के बहुत से भौतिक सुख भोग करने से वंचित रह जाएगा !

६-समाज से कट जाएगा, असामाजिक हो जाएगा!

७-एकाकी हो जाएगा!

८-वह खुद को बर्बाद कर रहा , अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है!

९-माता-पिता के मरने के बाद कौन उसको देखेगा? वह हमेशा कष्टों में रहेगा.

१० जीवन में कोई तो अपना हो अतः विवाह ज़रूर करना चाहिए......

आदि-आदि भाँती प्रकार के सम्झायिशें मिलती रहती हैं उस व्यक्ति को जो अविवाहित रहने का निर्णय लेता है, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष !

लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आती कि क्यूँ नहीं उस व्यक्ति के इस निर्णय का सम्मान किया जाता ! हर व्यक्ति अपना जीवन कैसे जीना है , इस बात का निर्णय लेने के लिए वह स्वतंत्र है! पढ़ा-लिखा बुद्धिमान व्यक्ति जो भी निर्णय लेगा , वह उचित ही होगा, कुछ सोच समझकर ही लिया होगा ! किसी विशेष प्रयोजन से लिया गया हो सकता है ! जरूरी नहीं हर कोई गृहस्थ जीवन में बंधना ही चाहे ! कुछ लोग कुछ बड़ा करना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि गृहस्थी कि जिम्मेदारियां उन्हें बांधेंगी और वह अपना समुचित समय न तो परिवार को दे सकेंगे , न ही अपने "संकल्प" को , जिसे वे पूरा करना चाहते हैं!

सिद्धार्थ "गौतम बुद्ध" ने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास क्यूँ ले लिया ?
स्वामी विवेकानंद जी अविवाहित थे , जिन्होंने अपने देश और धर्म को गौरवान्वित किया! आखिर उनके निर्णय में क्या अनुचित था ?
गांधी जी ने जीवन के एक पड़ाव पर अपनी पत्नी से विमर्श के बाद उन्हें अपनी बहन बना लिया, क्यूंकि उन्हें लगा कि गृहस्थ जीवन उनके संकल्पों में व्यवधान बन रहा है !
डॉ अब्दुल कलाम और अटल बिहारी बाजपेयी के अविवाहित रहने के निर्णयों में क्या गलत है ? देश के लिए समर्पित हैं !
क्या नरेंद्र मोदी जी का निर्णय गलत है , जिन्होंने पूरे भारत को अपना परिवार बना रखा है !

अपने मिशन को विवाहित रहकर भी पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं है कि विवाह एक बहुत बड़ा बंधन है जो स्वतंत्र रहकर पूरे समर्पण के साथ कुछ करने में बाधा भी बनता है क्यूंकि परिवार वालों कि अपेक्षाएं और जिम्मेदारियां पूरी करने में उस व्यक्ति का समय और ऊर्जा बंट जाती है !

यदि किसी का कोई 'संकल्प' अथवा मिशन बड़ा हो 'गृहस्थ-जीवन' से तो अविवाहित रहने का निर्णय उचित ही है क्यूंकि विवाह करके परिवार को "गौड़" बना देने में कोई समझदारी नहीं है! गृहस्थ लोगों कि प्रतिबद्धता अपने परिवार के साथ ही होनी चाहिए! लेकिन ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति अपने मिशन जिसके लिए वह कृत-संकल्प है , उसे समुचित निष्ठां के साथ नहीं निभा पता !

१-क्या अविवाहित रहकर पति अथवा पत्नी के अभाव में जीवन व्यर्थ कहलायेगा ?

२-क्या माता-पिता और अन्य बड़ों कि सेवा करके जन्म सफल नहीं होगा?

३- क्या समस्त भारत के देशवासी उसका 'परिवार' नहीं बन सकते ?

४- भाई-बहन, माता-पिता मित्र और कलीग के होते हुए भी वह एकाकी हो जाएगा ? क्या सारे रिश्ते फर्जी निकल जायेंगे विवाह के अभाव में ?

५-उसकी देख-भाल कौन करेगा , खाना कौन बनाकर खिलायेगा ? ---क्या विवाह इस उद्देश्य से किया जाता है ? यह तो नौकरी पर एक सेवक रखकर भी पूरा किया जा सकता है!

६- ऐसे व्यक्ति को एकाकी कहना उचित है क्या? अविवाहित व्यक्ति समाज को ज्यादा योगदान करता है और कर सकता है , क्यूंकि वह स्वार्थी होकर केवल 'मेरा-परिवार', मेरे बच्चे' आदि के लिए पतिबद्ध नहीं रहता अपितु अपनों और समाज के लिए बराबर से समर्पित रहता है!

अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए! निर्णय लेने वाले पर अपने विचार थोपने नहीं चाहिए ! उसकी स्वतंत्रता , उसकी आजादी , किसी भी हालत में समझौते के लिए मजबूर नहीं कि जानी चाहिए ! एक वयस्क व्यक्ति अपना भला-बुरा सोच सकता है!

कुछ लोग अपने माता-पिता कि सेवा करना चाहते हैं आजीवन ,
कुछ लोग देश को ही समर्पित होना चाहते हैं
कुछ लोग विज्ञान एवं शोध में समर्पित होना चाहते हैं

अतः ऐसे बहुत से कारण हो सकते हैं जिसके तहत कोई वयस्क आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लेता है! हमें उसकी भावनाओं , उसकी सोच और निर्णय का सम्मान करना चाहिए !

हम उस व्यक्ति को सबसे बड़ी ख़ुशी , उसके निर्णय का सम्मान करके दे सकते हैं!

अतः हर वयस्क को यह स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए कि वह अपना जीवन कैसे जिए !

Zeal

Thursday, December 15, 2011

ब्लॉगिंग निठल्लों का काम है क्या ?

ब्लॉग भ्रमण के दौरान कुछ नन्हे-मुन्ने बालकों को चिंतित देखा! वे कह रहे थे की वे व्यर्थ ही हिंदी ब्लॉगिंग में सेवारत हैं! न तो उन्हें कोई पढता है, न ही टिपण्णी करता है! फिर क्यूँ इस अवयस्क पाठकों के लिए अपना कीमती वक़्त जाया किया जाया ?

हे श्रेष्ठ नर-नारियों एवं मनु की संतानों , श्री कृष्ण ने कहा है, कर्म किये जाओ, फल की इच्छा मत रखो! अतः ब्लौग-लेखन अनवरत जारी रखो !

ब्लौग लेखन निठल्लों का काम नहीं है ! मुझे तो चिराग लेकर ढूँढने पर भी कोई निठल्ला न मिला! सभी लगे हुए है अपने-अपने कर्मों में यथासंभव ! यदि कोई केवल चिकित्सा करे अथवा अभियांत्रिकी अथवा वकालत अथवा टीचिंग अथवा बाल-बच्चे देखे तो वह सार्थक कहा जाएगा ? लेकिन यदि इन्हीं कामों के साथ-साथ कोई अपने विचारों द्वारा समाज को एक सकारात्मक योगदान और अपने अनुभवों द्वारा एक समाधान दे रहा है तो वह निट्ठल्ला कहलायेगा ?

ब्लॉगर्स अपने कर्तव्यों को निष्ठां से निभाने के बाद , अपना कीमती वक़्त लेखन में लगा रहे हैं , अपने खून पसीने से अपने विचारों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं और आप हैं की ब्लॉगिंग को निठल्लों का काम कह रहे हैं ?

पशु से भिन्न है इंसान क्यूंकि वह चिंतन करता है ! ये चिंतन यदि मस्तिष्क में ही रह जाए तो व्यर्थ है अतः लेखन के माध्यम से इसे बहुत से लोगों तक पहुंचना ही चाहिए !

हर व्यक्ति अपनी रूचि और ज्ञान के अनुसार लिख रहा है! पाठक भी अपनी रूचि के अनुसार विषय ढूंढ लेते हैं ! यही विविधता ही तो ब्लॉगिंग की रोचकता बनाए रखती है ! लोग एक-क्लिक में ही देश विदेश , राजनीति और कुटिल नीति से रूबरू हो जाते हैं ! अन्य लोगों के विचार पढ़कर हमारे विचारों को भी आयाम मिलता है !

अतः ब्लॉगिंग निठल्लों का काम है ऐसा लिखकर ब्लॉगर भाई-बहनों को अपमानित न करें !

जिन्हें लगता है की ब्लॉगिंग व्यर्थ है वे शायद अपने लिखे आलेखों से ही बोर हो गए होंगे! जब स्वयं का लिखा व्यर्थ लगने लगे तो निसंदेह ब्लॉगिंग बंद कर देनी चाहिए , लेकिन साथी ब्लौगर जो एक ऊर्जा के साथ ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें निठल्ला कहकर उनका अपमान न करें ! अपितु उनके योगदान को सराहें!

हिंदी ब्लॉगिंग तो हमारे देश में एक ज़ोरदार क्रान्ति की तरह है , जिसके माध्यम से आज सरकार गिराई जा सकती है और नेताओं की नाक में नकेल डाली जा सकती है! इस ब्लॉगिंग के माध्यम से , फेसबुक आदि से , ट्विटर से सिब्बल महोदय तक घबरा गए हैं तो आप खुद ही समझिये इसकी महिमा !

मेरे विचार से ब्लॉगिंग बुद्धिजीवियों का काम है! इंसानों का काम है जो चिंतन करता है! पशु एवं निठल्ले इस महती कार्य को अंजाम नहीं दे सकते!

अपने विचारों को एक बड़े समुदाय को प्रेषित करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ हैं ब्लॉगिंग का माध्यम ! अब हम अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के मोहताज नहीं हैं अपने विचारों को संप्रेषित करने के लिए!

बड़े-बड़े विमर्श के लिए यह एक सस्ता एवं सुलभ माध्यम बन गया है! इसके फायदे अनेक हैं ! और फिर यदि फायदों को परे रख कर निस्वार्थ ब्लॉगिंग की जाए तो हम कर्मशील भी रहेंगे और फल न लगने की अवस्था में निराश भी नहीं होंगे !

अतः निराश ब्लॉगर्स को हताश न होने की सलाह दी जाती है तथा ऊर्जावान ब्लॉगर्स के लिए "Hats off "

जय ब्लॉगर्स !
जय हिंदी-ब्लॉगिंग !

Tuesday, December 13, 2011

इंजीनियर्स की खेती में भारत सबसे आगे

जापान भले ही तकनीक में सबसे आगे हो लेकिन इंजीनियर्स की पैदावार में भारतवर्ष ही अग्रणी है ! प्रतिवर्ष यहाँ लाखों की संख्या में इंजिनीयर्स तैयार होते हैं! सड़क पर चलता हर दूसरा बंदा इंजिनियर ही है!

फैशन के दौर में गारेंटी की उम्मीद ना करें !

जैसे मौसम आने पर बेर की झाड पर 'बेर' लद जाते हैं , वैसे ही मेरे इष्ट, मित्र, नाते रिश्तेदार और पडोसी सभी की संतानों में इंजीनियर्स की नयी खेप आ गयी है ! जो कल तक इंजिनीयर की सही स्पेलिंग भी नहीं जानते थे वे भी आज इंजिनियर बन गए हैं! जिससे भी हाल-चाल पूछो पता चलता है , बिटिया इंजीनियरिंग कर रही है , बेटा final ईयर में है!

खुश होऊं या आश्चर्यचकित? बच्चे आजकल विद्वान् ज्यादा हो रहे हैं अथवा शिक्षा ही कुछ ज़रुरत से ज्यादा सुलभ हो गयी है?

खैर मुझे तो प्रसन्नता से ज्यादा आश्चर्य हुआ इंजिनीयर्स की डिमांड और सप्लाई देखकर! कारण पता किया तो पता चला, हर गली नुक्कड़ पर इंजीनियरिंग कालेज खुल गए हैं! हर किसी को एडमिशन भी मिल रहा है! योग्यता का कोई भी मोहताज नहीं है अब ! चयन प्रक्रिया कुछ भी नहीं है ! दो-लाखवी पोजीशन वाला भी आराम से एडमिशन पा सकता है! अब तो UP सरकार ने एक यूनिवर्सिटी भी खोल रखी है जिसमें प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में 'श्रद्दालू' उर्फ़ इन्जियार्स भर्ती होते हैं ! अब किसी को निराश नहीं किया जाएगा! सर्वे भवन्तु सुखिनः

पहले आरक्षण के कारण डाक्टर और इन्जियर्स की माशाल्लाह खेपें आ रही थीं जो मरीजों और पुलों को डूबा रही थीं ! अब तो 'झरबेरी' के पेड़ पर टँगी है काबिलियत ! तोडिये और टांक दीजिये कहीं पर भी!

अब बात करते हैं IITans की ! हर माता-पिता अपने बच्चे को ' IIT ' में ही सेलेक्टेड देखना चाहता है, ६५ लाख सालाना पॅकेज से ही शुरुवात करना चाहता है! गला-काट कॉम्पिटिशन है , शायद इसीलिए आसमान की चाह में खजूर पर लटके गुच्छे बन जाते हैं सभी !

क्या फायदा है इससे ? नयी पढ़ी की इस नयी खेप को चिकित्सा और अभियांत्रिकी की डिग्री तो मिल जा रही है लेकिन नौकरी के लिए ये मारे-मारे फिर रहे हैं ! ४ से ५ हज़ार रूपए महिना पर नौकरी कर रहे हैं ! कुछ तो सब्जी की दूकान लगा रहे हैं ! depression (अवसाद) के शिकार हो रहे हैं ये बच्चे! frustation बढ़ रहा है इनमें ! १८ से २५ आयुवर्ग में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं !

कृपया उपाय बताएं ! शिक्षा पद्धति में दोष कहाँ है ? क्या इन कालेजों की mushrooming स्वागत योग्य है? क्या ये गली-गली डाक्टर-इंजीनियर्स की खेप निकालने से बेहतर क्वालिटी पर ध्यान नहीं देना चाहिए?

Sunday, December 11, 2011

'जान' हुयी सस्ती- ईमान बिक गया

प्रशासन की गैर जिम्मेदारी ने ली एक सैकड़ा से ज्यादा जानें! स्वस्थ होने आये मरीजों को मौत के मुंह में धकेला अस्पताल प्रशासन ने ! इतना बड़ा अस्पताल और आग बुझाने के सही उपाय भी नहीं किये गए ! सारा समय धन बटोरने की कवायद में लगे रहेंगे तो मरीजों की सुरक्षा के बारे में सोचा ही नहीं होगा ! आंधी आये या आग लगे , इनका क्या जाता है, मरने वाले तो इंसान नहीं कीड़े-मकोड़े हैं इनके लिए !ये जिन्दा रहे बस काफी है, बाकि कोई मरे या जिए क्या फरक पड़ता है!

अस्पताल चलायें या किराने की दूकान , सेवा देते समय अपनी जिम्मेदारी का पूरा एहसास होना चाहिए ! हज़ारों लोग आप पर विश्वास कर रहे हैं! उनकी जिम्मेदारी है आप पर! यदि जिम्मेदारी नहीं उठा सकते इमानदारी के साथ तो अपनी दुकानें बंद रखिये !

ढीली-ढाली सरकारें ज़रा कमर कसें तो बेहतर होगा! जांच न बैठाएं और सफाई न दें ! निरंतर संस्थानों की निगरानी रखें ! सुरक्षा व्यवस्था सबसे ज़रूरी है ! अपनी अकर्मण्यता को छुपायें नहीं! प्रदेश सरकार और अस्पताल प्रशासन की जितनी निंदा की जाए, कम होगी!

Zeal

Friday, December 9, 2011

आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या ?

आज प्रातः समाज सेवकों के एक समूह से बात हुयी! वे लोग जाड़े की रातों में अपनी नींद त्यागकर गावों की तरफ निकल पड़ते हैं ! भोर होते ही प्रातः काल बड़ी संख्या में ग्रामीडों एवं किसानों को एकत्र करके उन्हें योगासन कराते हैं , उन्हें फसल उगाने की सही तकनीक से अवगत कराते हैं, खाद कैसे बनानी है और अन्य जानकारियाँ विस्तार से देते हैं ! खेती छोड़कर अन्य कामों की तरफ न भागें इस बात के लिए भी उनका मागदर्शन करते हैं ! किसानों की समस्याओं का हल बताते हैं , उनके हर प्रश्न का जवाब देते हैं , उनकी जिज्ञासाओं का समाधान बताते हैं! गावों की कच्ची सड़कों पर जाड़े की सर्द सुबहों में सफ़र भी कुछ आसान नहीं होता ,लेकिन ये जांबाज सेनानी डटे हुए हैं , निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य पथ पर! इस कार्य को ये सेनानी निस्वार्थ रूप से देश और जनता की भलाई के लिए कर रहे हैं ! ये समूह तो गुमनाम ही है ! इनके योगदान न कहीं दिखाया जाता है , न हो कोई जानता है! मिडिया में तो बड़े लोगों के सपूतों को स्वर्णाक्षरों और स्वर्णचित्रों में दिखाया जाता है ! ये अमीर युवराज आखिर करते क्या है ग्रामीण जनता के लिए ? ...बस उनसे पूछते हैं - " आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या? " ...और फिर चल देते हैं अपने महल की ओर , किसी दलित के घर की रोटी तोड़ने के बाद !

मन में अनायास ही एक प्रश्न आया की यदि निस्वार्थ कर्म करने वाले ये लोग हैं जो की अपने नियमित कामों और नौकरियों के साथ-साथ सर्द रातों में भी गरीबों की भलाई में तत्पर हैं , जो की सरकार को करना चाहिए या फिर पैसा लूटने वाले संगठनों करना चाहिए ! ...तो फिर सरकार किसलिए है ? व्यवस्थाएं किसलिए हैं ?

करे कोई और , मरे कोई और ? और सत्ता में होने का ऐश करे कोई और ? वाह !

खैर ...७० वर्षीय कर्नल साहब , श्रीमती सुनंदा जी, एवं हमारे युवा जो इन महान कार्यों में तत्पर हैं , उन्हें मेरा नमन एवं अभिनन्दन !

Zeal

Thursday, December 8, 2011

मधुर आवाज़ के धनी -- श्री अशोक कुमार मोहिते

छत्री , शिवपुरी , मध्य प्रदेश.


सूफी संगीत सुनते हुए श्रोताओं की एक पंक्ति


गिटार पर अपने साथियों के साथ सूफी संगीत सुनाते हुए श्री मोहिते




२६ जून १९५४ को जन्मे श्री अशोक मोहिते जी पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा है! सुरीले कंठ का धनी होने के साथ-साथ आपने लेखन द्वारा भी साहित्य को बहुत समृद्ध किया! जिला रत्नागिरी (महाराष्ट्र) के मूल निवासी श्रीअशोक जी इस समय श्रीमंत कै. जीजा महाराज छत्री ट्रस्ट, शिवपुरी , मध्य प्रदेश में छत्री अधिकारी हैं.


आपकी कुछ रचनाएँ --

रामजी की माया (भजन संग्रह)
एक रात तुम्हारे नाम लिखी (छायावादी रचना)
मेरी अंतिम कविता (मुक्त छंद कविता संग्रह)
सहज भाव (निबंध संग्रह )
व्यवस्था के लिए (व्यंग)
पूजा के व्यवहारिक अर्थ (अध्यात्म)
वैवाहिक जीवन का अध्यात्मिक आनंद

उपलब्धियां एवं पुरस्कार--

अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक संगीत रचना पुरस्कार
महावृक्ष पुरस्कार १९९६
पर्यावरण व वन विभाग मंत्रालय भारत शासन नगरपालिका शिवपुरी द्वारा सन १९८५ में सम्मानित
शिवपुरी समारोह
तानसेन समारोह
भारत पर्व समारोह में गायन-वादन


श्री अशोक जी द्वारा लिखा गया एक अंतर गीत --

जो बीत गयो सो बीत गयो , अब आये वो सुख दुःख जीतो
जीत गयो सो जीत गयो , जो बीत गयो सो बीत गयो !

सत संगत अमृत घट भरियो , पीवत प्रेम जगत से करियो ,
जनम-जनम की प्यास बुझइयो, जो अंतर संगीत गयो
जो बीत गयो सो ------

अजब गजब है जगत की माया , बची न जग में नश्वर काया
आयु का घट निसदिन छलकत , रीत गयो सो रीत गयो
जो बीत गयो सो---

सुख जानो दुःख दूर भगाओ, अंतर भजन प्रभु का गाओ,
सबसे बड़ो रस भक्ति रस को , पीत गयो सो पीत गयो
जो बीत गयो सो-----

पहला सुख निरोगी काया , दूसरा सुख है घर में माया
तीसरा सुख सुलक्षण नारी , चौथा सुख सुत आज्ञाकारी

पांचवा सुख राज में वासा छठवां सुख है वास सुवासा
सातवां सुख त्वरित वाहन बल, आठवां सुख निकट निर्मल जल

नवां सुख संतोषी जीवन ,दसवां सुख है ज्ञान संजीवन
ग्यारहवां सुख भक्तिरस अंगा, बारहवां सुख आनंद अभंगा

पात परम सुख अमृत रस को पीत गयो सो पीत गयो
जो जीत गयो सो जीत गयो

"मोहित" राग भैरवी गावत,अपने आतम को समझावत
नाद ब्रम्ह को नाद सुनावत , काल अतीत पतीत गयो
जो बीत गयो सो -----

अशोक कुमार मोहिते

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Monday, December 5, 2011

लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?

लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?

कहने को तो हमारे देश में लोकतंत्र है! लेकिन क्या ये सच है ? क्या वास्तव में हमारे नेतागण लोकतंत्र का पालन करते हैं ?

कलमाड़ी मुद्दा गायब
2G scam का मुद्दा गायब
काले धन का मुद्दा आएगा तो भटका देंगे!
लोकपाल बिल का मुद्दा भी भटका दिया.
FDI के मुद्दे को जबरदस्ती बीच में घुसाकर.

मनमानी करेंगे! जब सरकार को निजी खतरा दिखेगा तो वह--

अनशनकारियों को पिट्वाएगी
इमानदार अफसरों को मरवा देगी अथवा उन पर ऊँगली उठा उनकी छवि धूमिल करेगी.
कर्तव्यनिष्ठों को पुरस्कृत करना तो इस सरकार के अहम् के खिलाफ है...

देशभक्ति की बातें करने वालों से सरकार को विशेष खतरा महसूस होता है! ऐसा क्यों आखिर ?

यही हमारे देश में लोकतंत्र है देश के विकास सम्बन्धी निर्णय मतैक्य से लेने चाहिए ना कि मनमानी करनी चाहिए..

या फिर देश का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति प्रधानमन्त्री ही है ? दुसरे सभी मूर्ख हैं?

हम इस देश में रहने , खाने , चलने का टैक्स तो भरें , लेकिन देश के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं ?

यह देश हम सबका है अथवा तानाशाहों का है केवल ?