जहाँ एक धर्म का तुष्टिकरण होता हो और दुसरे
धर्म की धार्मिक आस्था से खिलवाड़ करते हुए गो-हत्या बड़े पैमाने पर करायी
जाती हो , जहाँ एक धर्म वालों को आरक्षण और दुसरे को नज़र अंदाज़ किया जाता
हो , जहा लोकतंत्र भी धर्म के नाम पर बने वोटों पर ही खड़ा हुआ है , क्या उस
देश को धर्म निरपेक्ष कह सकते हैं ? मुझे तो लगता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष
नहीं है ! अतः संविधान में , इस विषय पर संशोधन की ज़रुरत है !
Zeal
10 comments:
कत्तई नहीं-
सर्व-धर्म समभाव ही असली धर्मनिरपेक्षता है-
डॉ दिव्या जी, संविधान पूर्णतः धर्मनिर्पेक्ष राज्य की गारंटी देता है. बात इतनी सी है कि सत्ताधारी क्या करते हैं. इनके सामने कितने भी संशोधन पास करके रख दीजिए ये संविधान को संसद के पुस्तकालय की चीज़ समझते हैं और अनपढ़ देश को अपने तरीके से हाँकते हैं. नीयत किसी राजनीतिक दल की ठीक नहीं.
किसी भी एंगल से देख लो, स्थिति सचमुच चिंताजनक है. जनता जिसे भी चुनती है वही उसका शोषण करता है. कमोबेश हरेक देश का यही हाल है. सत्ताधारी केवल पूंजीपतियों के हित साध रहे हैं. भारत के हरेक प्रांत में गरीब और आदिवासियों की दुर्दशा सामने है.
Apke vicharon se sahamat hun ...
You have hit the nail on the head!
Our Constitution and the constitutional bodies are poised against Hindus and crave to favor minorities.
दिब्य जी नमस्ते
आपने बहुत विषय उठाया है इस हिन्दू राष्ट्र को संबिधान संसोधन द्वारा ही बचाया जा सकता है .
आपका ब्लॉग के ऊपर का चित्र बहुत सुन्दर है
भारत माता की जय
दिव्याजी! पिछले कुछ समय से अंतरताना जगत से सम्पर्क न के बराबर रहा बीच बीच में फेसबुक पर यदा कदा आया पर न के बराबर अस्तु!
आज ब्लॉग खोलते ही सबसे पहले तुम्हारे सभी ब्लॉग एक झटके में पढ़ गया आश्वस्त हूँ कि क्रान्ति की यह आग बुझेगी नहीं जब तक दिव्या जैसी देवियाँ हैं.
पत्नी को मेरी अनुपस्थिति में जबदस्त हार्ट अटैक पड़ा बेटे ने तत्काल अस्पताल पहुँचाया दो स्टेंट पड़े अब तक नार्मल नहीं हुईं.
बहरहाल अब मनस्थिति कुछ कुछ बनी है अत: लिख रहा हूँ. मेरा प्रयास रहेगा कि यह श्रृंखला जारी रहे.
मेरा सभी को अभिवादन, स्नेह व नमस्कार
हिन्दू धर्म स्वयं में इतना अधिक उदार है कि उसमें सभी मत-मतान्तर आकर घुल-मिल जाते हैं फिर संविधान में "धर्म-निरपेक्ष" शब्द रखने का कोई तुक नहीं समझ आता. यह तो बाँटो और राज करो की साजिश के तहत हमारे तथाकथित नेताओं के दिमाग की उपज है इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं.
बेहतरीन विचार सहमत हूँ ,,,,
resent post काव्यान्जलि ...: तड़प,,,
यहां तो हर शब्द के अर्थ तोड मरोड दिये जाते हैं
Post a Comment