इस दुनिया में आस्तिक पहले आया या फिर नास्तिक , या फिर दोनों एक ही हैं ? आस्तिकता 'प्रकाश' है और नास्तिस्कता 'तम' है। आस्तिकता के बगैर, नास्तिकता का कोई अस्तित्व ही नहीं है !
नास्तिकता कुछ और नहीं , मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) की एक अवस्था है! किसी न किसी बात से निराश व्यक्ति ही हताशा की अवस्था में नास्तिक हो जाता है ! भाग्य यदि साथ नहीं दे रहा तो ईश्वर के अस्तित्व को क्यों नाकारा जाए ? भाग्य को ही क्यों न कोस लिया जाए थोडा ?
सफल व्यक्ति आज तक कभी भी नास्तिक नहीं देखे गए। वे अपनी उपलब्धियों का श्रेय एक सर्व शक्तिमान को अवश्य देते हैं ! जब भाग्य साथ देता है तो व्यक्ति की आस्था बनी रहती है ईश्वर में!
अतः विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य न त्यागें ! ईश्वर और धर्म का त्याग मत कीजिये !
रहिमन चुप हो बैठिये, देख दिनन के फेर,
जब नीके दिन आईहें , बनत न लगिहें देर।
Zeal
12 comments:
बारी दोनों की आनी है,
दिन को नींद निभानी है।
प्रकाश का अभाव 'तम ' कहलाता है अन्यथा तम का अपना कोई पृथक अस्तित्व नहीं होता ! उसी प्रकार आस्तिकता का 'ना होना' ही नास्तिकता कह दिया गया है अन्यथा उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। स्वघोषित नास्तिक व्यक्ति भी किसी न किसी में श्रद्धा और विश्वास रखते ही हैं और उनका यही विश्वास आस्तिकता है , जिसे वे नास्तिकता समझते हैं।
Nice post.
सौ प्रतिशत सहमत
बहुत सही..बढ़िया प्रस्तुति..
असल में नास्तिक कोई होता ही नहीं है हाँ कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने आप को नास्तिक दिखाने का ढोंग करते हैं लेकिन असल में वे भी नास्तिक होते नहीं हैं क्योंकि वे भी किसी ना किसी रूप में धर्म और ईश्वर को मानते जरुर हैं !
सही में, नास्तिकता कुछ है ही नहीं केवल एक मानसिक अवसाद है।
खैर आजकल खुद को नास्तिक कहना ब्रॉड माइंडेड कहलाना है। नास्तिकता फैशन बन gayi है। भगवान अन्धविश्वास नहीं अपितु फैशन अन्धविश्वास है।
जो चल रहा है, वह सही है। जब वह बदला जाएगा तो वह बदला हुआ स्वरुप सही हो जाएगा। ऐसे लोग लकीर के फ़कीर होते हैं। ये लोग बहाव की दिशा में बहते हैं क्योंकि इनमे लड़कर विपरीत दिशा में चलने का सामर्थ्य नहीं होता।
रहिमन चुप हो बैठिये ,देख दिनन के फेर ,
जब नीके दिन आईहैं बनत न लगिहैं देर .
सकारात्मक जीवन दर्शन की उत्कृष्ट रचना ,अवसाद के मनो -तत्वों का खुलासा करती .हाँ अवसाद सेल्फ डिनायल ही है ,खुद को नकारा समझना ,बहिष्कृत करना है खुद से ही .
कुछ चीजें तो हमेशा मनुष्य के बस से बाहर रहेंगी.
धर्म श्रद्धा से होता है . अनेक धर्म हैं कौन श्रेष्ठ है अविवादित तौर पर यह कभी स्थापित नहीं हो पाया .
श्रद्धा विश्वास से उत्पन्न होता है . सब को अपने विश्वास के अनुसार धर्म या मत चुनने की छुट है.
अपने विश्वास के अनुसार धर्म मानने या न मानने की छुट है . आस्तिक या नास्तिक होने की छुट है .
आस्तिक या नास्तिक होना अपने अपने विश्वास की बात है. मानसिक अवसाद होने की बात कहाँ से आ गयी ?
उलटे जो लोग असफल होते हैं या निराश होते हैं या बेहद परेशान होते हैं तो भगवान की और आते हैं या
जबरदस्त आस्तिक हो जाते हैं . मन्नतें आस्तिक ही मानते हैं , नास्तिक नहीं.
दुःख में सुमिरन सब करे
सुख में करे न कोई
जो सुख में सुमिरन करे
तो दुःख काहे का होई
जहाँ तक ये बात है की - सफल व्यक्ति आज तक कभी भी नास्तिक नहीं देखे गए .
यह बात तथ्यात्मक रूप से गलत है .
ऐसे ७७ वैज्ञानिक हैं जिन्हें नोबल प्राइज़ मिला और जो सार्वजानिक तौर पे नास्तिक थे
प्रमुख हैं - शोक्ली ( ट्रांसिस्टर के आविष्कारक ) बोह्र्र - आधुनिक आणविक सिद्धांत . श्रोदिन्जेर - क्वान्तुम
सिद्धांत
अकेले साहित्य में कम से कम १६ ऐसे नास्तिक लेखक हैं जिन्हें नोबल प्राइज़ से नवाज़ा गया है .
कुछ ऐसे लेखक : पाब्लो नेरुदा - १९७१ , अल्बर्ट कामुस १९५७ , गोर्दिमेर १९९१ ( नस्ल भेद के ऊपर )
साथ ही जोर्ज बर्नार्ड शा - जिन्होंने नोबल प्राइज़ ही ठुकरा दिया .
पिछली सदी के सर्व चर्चित चित्रकार - पिकासो
इस सूची में हैं - भगत सिंह , विनायक दामोदर सावरकर , अमर्त्य सेन , मायो ...
सूची बड़ी है.... मकसद उन्हें उद्धृत करना नहीं है...
बस अगर विश्वास की बात हो तो दुसरे के विश्वास को भी यथोचित सम्मान देने की जरुरत है ..
नास्तिक को असफल ब्रांड करना या मानसिक अवसाद का लेबल देना , तथ्य से परे है . बस
सादर
AK ji, जी, दो चार सफल भारतीयों जैसे अम्बानी, मित्तल, सचिन, घोनी, अमिताभ आदि का भी नाम गिनाया होता...
Actually pahle to Murga hi aya tha. Bcoz murgi and anda dono hi waste hai agar Murga nhi hai to. and Kisi ne 3 bandaro ko senses band kr ke Haathi ko samajhne ki slaah de di. Bus result saamne hai aaj ke smaj ko dekh kr.
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