Sunday, November 4, 2012

भारत और इण्डिया का भेद कम कीजिये !

दिवाली पर मिटटी का दिया ज़रूर खरीदें...कम से कम २५....मोल-तोल न किया करें गरीबों के साथ......उन्हें मनचाही कीमत देकर उन्हें मुस्कराहट दीजिये!.....गरीबों को रोज़गार मिलता है..... भारत और इण्डिया का भेद कम कीजिये !

Zeal

21 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

Nice post.

रविकर said...

सही सलाह |
शुभकामनायें आदरेया ||

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी ही संवेदनशील सोच।

Prabodh Kumar Govil said...

Aapki post me se asli deewali ki 'khushboo' aai !

कविता रावत said...

सच कहा आपने ..एक छोटी से मुस्कान बहुत कुछ दे देती है ..बहुत सुन्दर विचार ....

महेन्‍द्र वर्मा said...

समयानुकूल सही आवाहन।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भेद कैसा?
भारत को भारत ही पुकारना चाहिए!

Pallavi saxena said...

सच कह रही हैं आप मगर इस विषय में आपके फेस्बूक पर जो राकेश मित्तल जी की जो टिप्पणी आयी है मैं उन से भी पूरी तरह सहमत हूँ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ख़रीदते तो हैं, पर ये भी लगता है कि‍ अगर सरकार इन्‍हें इस काबिल कर देती कि‍ ये दि‍ये न बनाते तो शायद ज़्यादा बेहतर होता

Unknown said...

umda post

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

UMA SHANKER MISHRA said...

आदरणीया आपकी बाते प्रिय लगी

आज एक ज्वेल्लरी की दूकान में हम सोने के भाव
को लेकर सौदा नहीं करते, परन्तु एक रिक्सा वाले से तोलमोल करते है
बहुत सही मसला उजागर किया है
हार्दिक बधाई

Asha Lata Saxena said...

इस प्रकार की चीजे अवश्य ही खरीदना चाहिए इससे कई लोगों को रोज गार भी मिलता है |बहुत उम्दा विचार हैं |
आशा

प्रतिभा सक्सेना said...

ठीक कह रही हैं आप ,
अपने पर्व के लिये स्वदेशी माल ही खरीदें !

दिवस said...

गरीबों के साथ मोल-तोल न करें। सबसे बड़ी बात। अक्सर शहरी जनता के कथित आधुनिक लोग बड़े-बड़े मॉल्स में १०० रुपये की वस्तु के हज़ार रुपये भी दे आएँगे किन्तु करीब के ठेले पर दस रुपये प्रति किलो की ककड़ी में से भी दो रुपये कम करवा लेंगे।
समझ नहीं आता कि उस गरीब के पेट पर लात मार ये कौनसे अमीर बन रहे हैं? तुम दो रुँपये में गरीब नहीं हो जाओगे किन्तु वो गरीब दो रुपये में बहुत अमीर हो सकता है।

दूसरी बात यह कि दीपावली का महात्म्य ही यही है कि हर घर में लक्ष्मी आए। मिटटी के दीपों का रिवाज़ कुम्हारों को रोजगार दिलाता है। हमारे सभी त्यौहार इन सब बातों को ध्यान में रखकर बने हैं। दरअसल देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हमारे त्यौहार व परम्पराएं हैं।

सदा said...

बहुत सही ...

AK said...

अत्यंत ही संवेदनशील सोच .
गहरी बात . गागर में सागर वाली उक्ति चरितार्थ .

सटीक .

भारत और इंडिया में फर्क क्या है .
भाषा का मात्र .
लेकिन भाषा से कहीं आगे जा कर ये फर्क संस्कृति का भी हो गया है .. जीवन शैली का भी . शासक और शासित का भी फर्क .. जो आजादी के ६५ साल भी अफ़सोस, कायम है ...
अफ़सोस इस मानसिकता वाले लोग .. इस बात से अनजान है की ... आज अनेको हिन्दुस्तानी भाषाएँ बोलने वाले के मातहत ...अंग्रेज़ी बोलने वाले हैं ... ( ONGC , Ranbaxy ,जिंदल स्टील .. टाटा कोरस .. चंद उदाहरण हैं ..अनेको और भी हैं )
भाषा को बस भाषा ही रहने दिया जाता तो ये स्थिति नहीं आती ...
खैर...ये आगे बढ़ कर... ब्रांड का रूप ले चुकी है ...
यदि इसी दिए को ... वालमार्ट वाले या हेरोड , या बिग बाज़ार वाले अपना ब्रांड का ठप्पा लगा कर कर बेचें तो यकीं माने लोग.. १०० - १०० रूपयः के भी ... लाइन लगा के लेंगे... और जलाने के पहले... पड़ोसियों को बुला के ... उसका ब्रांड दिखायेंगे...
परमार्थ... भारत की आत्मा है... उसे ये कुम्भकार , धोभी , रंगरेज़... इत्यादि सार्थक करते हैं ...
अफ़सोस ... परमार्थ.. नहीं रहा
बस अर्थ शेष रह गया है...

अर्थ के पीछे भागने वाले ये भी भूल गए हैं , की बिजली के बल्ब जला कर , वे कीड़ो को दीयों से सफाया करने करने की जो पुरातन सांस्कृतिक परंपरा रही है उसका भी अनर्थ कर रहे हैं ...

सादर

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सुंदर संदेश.....

उनकी कुटिया में जलें ,दीवाली पर दीप
हमको मोती बाँटते,जो खुद बनकर सीप ||

virendra sharma said...

गरीबों से क्या मोल भाव करते हो ,कच्चे दीये का मोल पूछते हो ,जिसमें कुम्हार के सांस की धौंकनी है ,

Madan Mohan Saxena said...

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...