जनता
का दरबार लगाया और जब मासूम जनता उमड़ पड़ी तो उठकर भाग गया केजरीवाल , जनता
के शिकायती पत्रों को सड़क पर फेंक दिया। सचिवालय कि छत पर चढ़ गया ? मछली
बाज़ार बना रहा है इसने राजधानी को ! न ही ये बातों का मान रखता है , न ही
अपने पद कि गरिमा। ज़रा भी grace नहीं है इसमें। इसका व्यवहार एक सड़कछाप
मदारी कि तरह लगता है जो मजमा लगाकर तमाशे करता है फिर थोड़ी सी वाह वाही के
बाद चल देता है अगला मजमा लगाने के लिए। जनता कि तकलीफों से कोई सरोकार
नहीं है इसे !
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