भारत की जाति आधारित जनगणना [Census] में घरेलु काम करने वाली महिलाओं [ Housewives] को वैश्या , भिखारी तथा कैदी की श्रेणी में रखा है ।
इस category में रखने के पीछे कारण दिया गया की ये सभी [Economically non-productive ] हैं । अर्थात कुछ कमाते धमाते नहीं। इसलिये फालतू लोगों को इकठ्ठा कर दिया। अब अधिकारी महोदय को क्या कहें। अच्छा किया हम लोगों को हमारी औकात बता दी।
सुबह से रात मर-मर कर घर संभालो करो और बदले में तमगा क्या मिला है --" निकम्मे भिखारी "
बड़ा निडर अधिकारी है भाई, इतना साहसिक कार्य करते हुए ज़रा भी नहीं डरा?
एक और तो भाषण देते हैं, घर-बच्चे संभालो । दूसरी ओर कमासुत न होने के कारण भिखारी का दर्जा देते हैं?
एक घरेलु महिला की एक्सिडेंट में मौत होने पर मुआवजा भी कम ? वाह भाई वाह ! क्या जलवे हैं मर्दों के ?
एक घरेलु महिला [housewife] के कामों की कोई कीमत नहीं ?....अरे तो फिर गिनती भी मत करो हमारी । कीड़े - मकोड़ों को गिनता है भला कोई ?
भिखारियों की इज्ज़त भी मिटटी में मिला दी...बिचारे काटोरा लिए दिन भर में २०० रूपए तो कमाते ही होंगे।
ओर ये वेश्याएं ?...अच्छी कमाई करती होंगी ?....फिर घरेलु महिलाओं के साथ clubbing करके क्यूँ बिचारी वैश्या ओर भिखारी को नीचा दिखा रहे हैं।
वैसे आपका क्या ख्याल है ?...Housewives....वैश्याएँ....कैदी ओर भिखारी , क्या सभी को एक ही श्रेणी में रखना उचित है ?
107 comments:
कुछ शब्दों का transliteration सही नहीं हो पाता, इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
Housewives, prostitutes, beggars clubbed in Census; SC upset
please include this news too in your article
आपकी भावनाएं समझ सकता हूँ पर इसका मतलब क्या है ??
@वाह भाई वाह ! क्या जलवे हैं मर्दों के?
आपका बचपना फिर से जाग गया है क्या ??
आपका बचपना फिर से जाग गया है क्या ??
गौरव क्या कह रहे हैं ? :)
@एक और तो भाषण देते हैं, घर-बच्चे संभालो । दूसरी ओर कमासुत न होने के कारण भिखारी का दर्जा देतेहैं?
@क्या जलवे हैं मर्दों के ?
और नहीं तो क्या , ये बचपना ही तो है ऐसे बेतुके बयान बच्चे ही देते हैं
एक उदाहरण को लेकर सारे मर्दों पर लठ्ठ ले कर चढ़ जाने का इरादा है क्या ??
विचारोत्तेजक और भड़काऊ लेख है
मेरी नजरों में पुरुष विरोधी भी है
मानवता विरोधी भी
ई कोनो सवाल हुआ पूछने वाला… हमरे देस में ई सब सवाल पूछने का अनुमति नहीं है...जो पूछने आता है या जिसका बात आप की हैं उसको पूछे कि ऊ अपने माँ और बीवी को कौन कैटेगरी में रखा है..
गलत है यह वर्गीकरण। सुधार कर लें, यही उचित होगा।
गृहणियों का अपमान, केंद्र को लगी फटकार
गलत बात ......... बाजार में चर्चा में आयी.
ये हमारी रुसवाई है.
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गौरव जी,
ये वर्गीकरण मर्दों के सिवा कोई और नहीं कर सकता, इसलिए मर्दों के जलवे लिखा।
सलिल जी ने ठीक ही कहा , महोदय अपनी माँ , बहेन को भूल गए होंगे शायद।
रही बात बचपने की तो - " मेरे दिल के कोने में, एक मासूम सा बच्चा, बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है । "
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क्या आपने मेरे दिए न्यूज लिंक पढ़ लिए हैं ??
जिसकी रही भावना जैसी!
मेरे दिल के कोने में, एक मासूम सा बच्चा, बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है । "
यह लाइन बताती है कि आप कितनी संजीदा है
बधाई हो
एकदम सही लिखा है आपने
मै समझता हूँ की घरेलु महिला को कैदी और वेश्या के वर्ग में रखा जाना एकदम अनुचित है . जहा तक बात है बचपने की जागने की , अगर वो जाग भी गया तो बड़ो को कुछ तो याद दिला ही जायेगा जो हम बड़े होकर भूल गए है. कम से कम सहिष्णुता और समानता का पाठ तो पढ़ा ही जायेगा.
गौरव जी के लिंक ने स्थिति स्पष्ट कर दी. अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद क्या कहना शेष रह गया..!
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सोनी जी ...शुक्रिया ।
वाह आशीष जी...क्या बात कही !
गौरव जी,
पोस्ट लिखने के पहले पूरी जानकारी रखती हूँ, दसियों लिनक्स पढने के बाद ही संक्षिप्त में लिखने की जुर्रत करती हूँ।
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हा हा हा
अगर ये बात है
तो आपने अपने पाठकों को इस सकारात्मक उजाले के दर्शन करवाना उचित क्यों नहीं समझा जो इस न्यूज में दिख रहा है
क्या ये इस विषय से सम्बंधित नहीं है ??
मैं किसी और से नहीं पूछूंगा
सिर्फ एक सवाल आप से पूछता हूँ
क्या ये लेख चौतरफा निष्पक्षता से लिख गया एक अपडेटेड लेख है ??
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गौरव जी,
मैं मूढ़ अज्ञानी, ज्यादा क्या लिखूं। जिनी बुद्धि है उतना ही तो करुँगी, उम्मीद है शेष कार्य आप पूरा कर समाज के प्रति अपना दायित्व निभायेंगे।
वैसे विषय पर टिपण्णी करते तो बेहतर होता।
आभार ।
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विषय पर ही कमेन्ट किया है विषय के हिस्से पर नहीं कर सकता :))
ये तो सामान्य बात है की इस खबर से सबका दिल दुखा है फिर भी इसका विश्लेषण जेंडर के आधार पर नहीं होना चाहिए
आप उन पुरुषों को क्रेडिट देने से क्यों बच रहीं हैं जिन्होंने एक सही फैसला सुनाया है
अक्सर हम जिनसे नफ़रत करते हैं उन जैसे ही बनने लग जाते हैं
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स्त्रियों के साथ दोयम दर्जे का आचरण हो रहा है, और आप कह रहे हैं , gender bias न हों ...?
strange !
अब आया न विषय खुल कर सामने " समाज में स्त्री का दोयम दर्जा " :))
मुझे यही डर था , काश आपने उस खबर को भी पोस्ट में शामिल कर लिया होता तो ज्यादा अच्छा होता पुरुषों के भी दो रूप पता चल जाते
चलिए छोड़ते हैं इस बात को यहीं पर
इन्तजार करते हैं किसी निष्पक्ष बात करने वाले ब्लोगर के कमेन्ट का
@बेचैन जी
धन्यवाद आपका भी मेरी ओर से
@दिव्या जी
उम्मीद है आप मेरी बातों का बुरा नहीं मान रही हैं
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Gaurav ji,
I am very thick skinned . None on earth can annoy me.
Feeling bad about trivial issues is quite kiddish.
Just Chillax !
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अपने आप को मोटी चमड़ी का बताने से बेहतर है आप मुझसे ही कोई अपशब्द कह दें
दिव्या से जुड़ा दीदी शब्द मेरे लिए मायने रखता है , इस तरह अपमानित न करें
ऐसी परिस्थितियों में मुझे [शब्दों के] हथियार डाल देने चाहिए
आपके विचारों का आभार , मुझसे से बेवकूफ बच्चा इस दुनिया में कोई नहीं है
मुझे समझना चाहिए था
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Hey Gaurav ,
You are my darling brother !
मान- अपमान की पगड़ी नहीं, सर पे कफ़न बांधकर ब्लॉगिंग और बहस की जाती है।
बहेन समझते हैं तो ये भी समझ लीजिये , बहनें अपमान नहीं करतीं , बल्कि आपके देश की सभी बहनों का अपमान हो रहा है जिन्हें भिखारी , वैश्या और कैदी के साथ वर्गीकृत किया जा रहा है।
भाइयों का तो खून खौल जाना चाहिए ।
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मैं महज कुछ तथ्यों की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा...
"भारत की जाति आधारित जन्गरना [Census] में घरेलु काम करने वाली महिलाओं [ Housewives] को वैश्या , भिखारी तथा कैदी की श्रेणी में रखा है ।"
* यहाँ २००१ की जनगणऩा के वर्गीकरण की चर्चा कर रहे हैं हम लोग, २००१ की जनगणना जातिगत नहीं थी, २०१० की जनगणना जाति गत आधार पर होगी।
* वर्गीकरण है 'गैर उत्पादक कामगार'... और इस सूची में शामिल हैं गृहिणियाँ, कैदी, भिखारी व वैश्यायें भी...
* मोटर वाहन कानून के तहत परिवार छह लाख रुपये के मुआवजे का हकदार था, लेकिन न्यायाधिकरण ने मुआवजे की राशि ढाई लाख रुपये कर दी। न्यायाधिकरण के इस निर्णय का आधार था कि मृतका गृहणी (गैर उत्पादक)थी और इसलिये आश्रित इतनी अधिक राशि के हकदार नहीं है। हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।
* सुप्रीम कोर्ट ने मृतका के पति की अपील को स्वीकार कर लिया जिसमें उन्होंने सड़क दुर्घटना में अपनी पत्नी की मौत पर मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण और इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित मुआवजे की कम रकम को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाकर ६ लाख कर ६ प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने का आदेश दिया है।
* सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जनगणना के कार्य में भी यह स्तब्धकारी भेदभाव मौजूद है। वर्ष 2001 की जनगणना में ऐसा लगता है कि महिलाएं, जो खाना पकाने, बर्तन साफ करने, बच्चों की देखभाल करने जैसे घरेलू काम करती हैं, उन्हें गैर-श्रमिक वर्ग में शामिल किया गया है। जनगणना के अनुसार वे आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य में शामिल नहीं हैं।’ कोर्ट के मुताबिक इस वर्गीकरण के कारण 2001 की जनगणना में देश की करीब 36 करोड़ महिलाओं को गैर श्रमिक वर्ग में शामिल किया गया है।
* ‘संसद को घरेलू महिलाओं के महत्व का समुचित मूल्यांकन कर कानून के प्रावधानों में उनकी दोयम स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिए।’-सुप्रीम कोर्ट
* इतना हाय तौबा मचाने की कोई बात यहाँ नहीं है...२००१ की जनगणना में हमारी गृहिणियों को गैर उत्पादक कामगार माना गया है और 'गैर उत्पादक कामगार' श्रेणी में ही अन्य कुछ को भी रखा गया है... जबकि भावनायें भड़काने के लिये लिखा जा रहा है "जन्गरना [Census] में घरेलु काम करने वाली महिलाओं [ Housewives] को वैश्या , भिखारी तथा कैदी की श्रेणी में रखा है । "... यहाँ पर साफ तौर पर शब्दों को तोड़-मरोड़ अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है।
और हाँ मित्र गौरव,
प्रश्न-क्या ये लेख चौतरफा निष्पक्षता से लिख गया एक अपडेटेड लेख है ?? ....
उत्तर- नहीं! नहीं!! नहीं!!!
आभार!
...
आभार!
Whenever and wherever it was.. the non-productive concept itself is very repulsive !
Even prostitute ( define it.. ) and beggar has a right to be counted in this herd of Indian Population ! It would had been more sensible to keep them in a subcatagory of unpriviledged / under-priviledged !
Apologies for typing this comment in english, but I am yawning over this issue, of course feeling sleepy, too !
Sorry, Gaurav !
इस तरह से वर्गीकरण सर्वथा अनुचित है.
@मान- अपमान की पगड़ी नहीं, सर पे कफ़न बांधकर ब्लॉगिंग और बहस की जाती है।
@बल्कि आपके देश की सभी बहनों का अपमान हो रहा है
ये दोनों बातें ही एक दुसरे का विरोध कर रही है , आश्चर्य ये एक ही कमेन्ट का हिस्सा है
@मान- अपमान की पगड़ी नहीं, सर पे कफ़न बांधकर ब्लॉगिंग और बहस की जाती है।
ये ही मैं भी कह रहा हूँ मान अपमान का कोई काहे दिल से लगा बैठी है दिव्या जी ??, ब्लोगिंग निष्पक्षता से ही होनी चाहिए :)
इस तरह के कामों के लिए मीडिया ही ठीक है
@भाइयों का तो खून खौल जाना चाहिए ।
संभव है खौला भी हो पर दो "पुरुष [पिता , भाई , पति , मित्र...] विरोधी" वाक्य पढ़ कर कन्फ्यूजन खड़ा हो गया, और फिर न्यूज लिंक के बारे में तो क्या कहूँ
अब ये ही सोचिये की मुझे ये विषय पढ़ कर कितना धक्का लगा होगा की मैंने तुरंत सर्च करना प्रतिक्रिया देने से बेहतर समझा
मैं आपकी बात में श्रद्धा रखता हूँ अंध- श्रद्धा नहीं रखना चाहूँगा , और आप भी ये नहीं चाहेंगी क्योंकि आप भी हैं तो इंसान ही
आप हर बार सही नहीं हो सकतीं तो कोई और भी तो हो जिसका अपना भी एक दृष्टिकोण हो
ना तो कोई स्त्री संस्कार देने वाली मशीन है न भाई उबाले खाने की :)
"सर पर कफ़न " थोडा सा खुल कर थोडा मस्तिष्क के खुले विचारों के सामने आया लगता है , आपको कुछ साफ नहीं दिख रहा :))
विवेक हीन योद्धा गुंडा या आतंकवादी ही कहा जायेगा , बिना सोचे समझे भड़काऊ कमेन्ट [खौलते खून का आभासी प्रतीक] करने वाला नहीं है ये आभासी भाई
धीरज धर्म मित्र और नारी , टेंशन काल में धीरज ही खो रही है आप , इसे खोने से बाकी तीन भी क्या कहेंगे आप से
@प्रश्न-क्या ये लेख चौतरफा निष्पक्षता से लिख गया एक अपडेटेड लेख है ?? ....
उत्तर- नहीं! नहीं!! नहीं!!!
@प्रवीण शाह जी , ऑप्शन देना भूल गया था १. हाँ , २. नहीं ,,,,,,,,, ई बार तो बिना ऑप्शन दिए ही सही [ मेरे अनुसार ] चुन लिए .. धन्यवाद
न्यूज लिंक से न्यूज बाहर लाने का भी आभार , मैं ये फैसला नहीं कर पा रहा था क्या और कितना टेक्स्ट बाहर लाऊं , आपने काम आसान किया
@I am yawning over this issue, of course feeling sleepy, too !
@आदरणीय अमर जी
मैं "सुबह का इन्तजार" कर रहा हूँ :)
@दिव्या जी
आपका विरोध करना भी बेहद तकलीफ ही दे रहा है
कोशिश करूँगा अगली चर्चा में मिलूँ
ऐसा वर्गीकरण निंदनीय है ।
घर-परिवार को जोड़ कर रखने से बड़ा उत्पादक कार्य क्या हो सकता है।
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डॉ अमर ,
unprivileged तथा underprivileged भी अन-उपयुक्त है । Census में भला डिटेल की क्या आवश्यकता ? अरे गिनती करो और लिख दो । बात ख़तम ।
ये जो गिनती हो रही है और वर्गीकरण है वो तो भिखारियों की संख्या ज्यादा ही दिखायेगा । जाने क्या सोचेंगे विदेशी भी । वैसे भी हमारा देश बदनाम है गरीबी के लिए।
अब तो लोग लिंक quote कर देंगे...देखो-देखो , आधा मिलियन भिखारी हैं भारत में।
एक और स्त्री को लक्ष्मी कहते हैं , और दूसरी और भिखारी ?
जबरदस्त विरोधाभास ।
इस वर्गीकरण को करने वाले अधिकारी को नमन।
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प्रवीण जी,
विचार रखने के लिए आभार आपका।
लेख निष्पक्ष है या नहीं ये तो unbiased आप्तजन [ जो सत्व, राज और तम से मुक्त हो ] ही बता सकता है।
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गौरव जी,
मेरा विरोध जम कर करिए, आपके मन को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। विचारों की आज़ादी हमारा fundamental right है । पूरा उपयोग करिए, चर्चाएँ होती ही इसीलिए हैं जिससे मेरा, आपका और समाज का भला हो। इसलिए बिंदास लिखिए।
आपकी बहेन दिव्या कोई मोम की गुडिया नहीं है । एक rough and tough स्त्री है।
डरना मन है ।
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@ घर-परिवार को जोड़ कर रखने से बड़ा उत्पादक कार्य क्या हो सकता है..
Ajay ji-
बहुत सुन्दर बात कही आपने। काश सभी ऐसा सोच सकते ।
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स्त्री अपना जीवन घर परिवार की सेवा में लगा देती है, इसलिए ये कहना की स्त्री पुरुषो से कम काम करती है , उचित नहीं, महिलाओ को कभी छुट्टी नहीं मिलती, कभी अपने को महिलाओ की जगह रख कर देखे तो पता चलेगा की वो कितना काम करती है ...... ...
http://oshotheone.blogspot.com/
दिव्या-गौरव उवाच अच्छा लग रहा है.
फिर ओशो रजनीश के बाद अपना यह कमैंट देना तो और सुन्दर कृत्य हो गया.
ओशो रजनीश से पूर्णत: सहमत!
main jaati aadhaarit jangananaa ke viruddh hun.
एक बात मुझे समझ नहीं आती जब कही भी ये लिख जाता है कि महिलाओ के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है तो सारे पुरुष ये क्यों मन बैठते है कि ये उनको ताना मारा जा रहा है और जब ये लिखा जात है कि पुरुष महिलाओ के साथ बुरा व्यवहार कर रहे है तो सारे पुरुष इसको अपने ऊपर क्यों ले लेते है अरे वहा पर उन पुरुषो कि बात होती है जो ऐसा कर रहे है यदि आप ऐसा नहीं करते और सोचते तो अच्छी बात है | जब महिलाओ के लिए लिखा जाता है कि सास बहुए ननद भाभी झगडा करती है तो जो नहीं करता वो कह देता है कि हम तो ऐसे नहीं है सभी महिलाए इसको अपने ऊपर तो नहीं ले लेती | और आप यदि कुछ नहीं करते तो एसक मतलब ये भी नहीं है कि ऐसा कुछ हो ही नहीं रहा है |
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Shraddha Pandey
to me
show details 1:57 PM (10 minutes ago)
Aisa is liye hai housewife kaidi to hai hi, yadi pati 30 -40 ke beech mai nikal de to prostitute , 50 ke umar ke bad beggar.
मेल से मिली उपरोक्त टिपण्णी बड़ी अजीब लगी। श्रद्धा जी कृपया खुलकर लिखें।
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अंशुमाला जी ,
बहुत सार्थक टिपण्णी की है आपने। बखूबी अपनी बात को समझाया है।
आभार ।
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@एक बात मुझे समझ नहीं आती जब कही भी ये लिख जाता है कि महिलाओ के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है .............................
@अंशुमाला जी,
समाज को कोई भी वर्ग उठा कर देख लें उसें मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है,इसी तरह किसी भी वर्ग पर हो रहे प्रभाव( समाजिक) के भी दो स्तर/भाग होते हैं
यानी हर वर्ग पर "दोयम दर्जा" कंसेप्ट फिट होता है
वर्ग से आशय जेंडर,धर्म,जाती,पेशा कुछ भी समझ ले [जो आपको अच्छा लगता हो चुने ]
उदाहरण भी है
माना एक पेशे से जुड़े पांच लाख लोग हैं,[डॉक्टरी, इन्जिनीरिंग कुछ भी] जिनमें से एक ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई और उससे किसी विशेष व्यक्ति या वर्ग विशेष को नुकसान हो गया
एक कहता है ये तो पेशा ही खराब है
एक कहता है ये फलां जेंडर का फलां जेंडर के प्रति अत्याचार है
कोई फलां धर्म का फलां धर्म के प्रति अत्याचार बताएगा
कोई जाती का फलां जाती के प्रति अत्याचार बतायेगा
मैं थक गया हूँ ये लिखते लिखते की ये मानवीय दुर्गुण हैं , मानव मति की दूषित सोच है इसमें पेशा, जेंडर, धर्म, जाती कहाँ बीच में आती है ???????
एक बात और अगर आपकी इस एक तरफा मानसिकता से पीड़ित पोस्ट कोई बच्चा / बच्ची पढता/पढ़ती है तो क्या इस तरह अधूरी खबर से ( मेरे कमेन्ट न पढ़े तो ) अपने मन में कुंठा नहीं भर लेगा /लेगी [ जरूरी नहीं वो मेरी तरह गूगल पर सर्च करे ]
कोई गीता को तब तक योद्धउन्माद ही मानेगा जब तक उसे पूरा इतिहास न पता हो / या उसके इंटेशन सिर्फ उस हिस्से को दिखाने के हों जो उसकी बात पर फिट होते हैं
(आप पिछली पोस्ट पढ़ लें तो मेरी मूल मानसिकता {मानवीय } भी समझ पाएंगी शायद, जो यहाँ पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पा रही है )
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/06/blog-post_29.html
http://zealzen.blogspot.com/2010/06/men-versus-women.html
http://zealzen.blogspot.com/2010/06/dirty-politics.html
तकनीकी कारणों से शायद ये कमेन्ट मुझे तीन बार भेजना पड़ा है [डिस्प्ले नहीं हो रहा था ]
शायद यही "दो बार" और दिख सकता है
क्षमा चाहता हूँ
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@--Apologies for typing this comment in english,..
डॉ अमर,
अंग्रजी में बिंदास लिखिए मेरे ब्लॉग पर, राज ठाकरे नहीं हूँ जो बिदक जाये मराठी के सिवा , न ही अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी हूँ जो काट खाने को दौड़ता है , अंग्रेजी देखकर।
अंग्रेज एक ही तो उपकार कर गए की हमे अंग्रेजी सिखा गए। इसीलिए आज भारतीय जहाँ जाते हैं अपना परचम लहराते हैं।
मुझे हर भाषा से बराबर प्यार है।
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दिल तो बच्चा है जी , इसी भावना से आगे बढ़ो
वर्गीकरण करना सोची समझी नीति के अंतर्गत है , जिम्मेदार से पूछना चाहिए इसका कारण ।
@--Apologies for typing this comment in english,..
हमें बस अपने विचारों से अवगत करते रहें, भाषा तो आप जो चाहें यूज करिए
मैं कौनसा शुद्ध हिंदी में लिखता हूँ ? :))
फिर से कह रहा हूँ मेरे अनुसार "आपके कमेन्ट ब्लॉग, उसके ऑनर और पाठको के लिए किसी संपत्ति से कम नहीं होते"
आभार
@ डरना मन है
संभवतया ये है " डरना मना है "
@ दिव्या जी
डर एक अलग भाव है दुःख/ तकलीफ एक अलग भाव है
जैसे भीष्म पर बाण चलाते वक्त अर्जुन डरा हुआ नहीं था, दुखी था..
आप ही की तरह भीष्म ने भी बाण चलाने की इजाजत दे दी थी
पर अर्जुन दुखी न हो तो क्या करे ???
सही है .. समाज में सेवा देने वाले सभी लोग उत्पादक होते हैं.. वैसे में पूरे परिवार का सेवा करने वाली महिलाएं अनुत्पादक कैसे हो जाएं ??
इसका विरोध पुरूष भी करें .. तो महिलाओं को क्यूं शिकायत हो ??
@ संगीता जी
आपकी बातों से सहमत हूँ , विरोध सभी को मिलकर करना चाहिए
पर अपनी बात कहने का भी एक तरीका होता है
अगर कोई पुरुष अपनी एक लम्बी बात में अपनी पत्नी या बहन या माँ ( या तीनो ) के सामने एक बुरे उदाहरण लेकर स्त्री जाति को पतित बताने जैसे विचार दे तो कोई और टोके इससे पहले घर वालों को टोक देना चाहिए , यही बात यहाँ लागू हो रही है , अभी तक पोस्ट की गरिमा (?) बनाये रखने के लिए ना तो लाइने हटाई गयी है न कुछ लाइने जोड़ी गयी है
मुझे अभी तक ये समझ नहीं आ रहा है पोस्ट में ना सही कमेंट्स में ही.... न्यूज लिंक पढने का असर कम क्यों नजर आ रहा है ????
माफ़ करें दिव्या जी अंशुमाला जी के कमेन्ट से आने पर मजबूर हुआ और इतने कमेन्ट हो गए
ये कमेन्ट भी दुःख के साथ भेज रहा हूँ ( डर के साथ नहीं )
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संगीता जी ,
बहुत सुन्दर बात कह दी आपने।
आभार ।
गौरव जी,
कुछ पल को ही सही लेकिन अर्जुन, कमज़ोर तो पड़े ही थे। वो अपने कर्त्तव्य पथ से विमुख हो रहे थे।
मैं कृष्ण तो नहीं पर फिर भी यही कहूँगी कि दुःख करने कि कोई आवश्यकता नहीं है। आप मेरा विरोध नहीं कर रहे हैं। सिर्फ आपके विचार मुझसे मेल नहीं खा रहे हैं। आप अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हैं।
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@ दिव्या जी
आपकी बातों से रहत मिली
चलिए ये भी बता दीजिये आप मुझे दुःख क्यों उठाने दे रही हैं लेख को अपडेट न करके ??
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गौरव जी,
आप विचार जाहिर करने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन आप लेखक/ लेखिका को बाध्य नहीं कर सकते अपनी बात मानने के लिए। पोस्ट अपनी ख़ुशी और बुद्धि से लिखती हूँ। किसी के कहने से डिलीट और अपडेट नहीं करती ।
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"और ये वेश्याएं ?...अच्छी कमाई करती होंगी ?....फिर घरेलु महिलाओं के साथ clubbing करके क्यूँ बिचारी वैश्या और भिखारी को नीचा दिखा रहे हैं।
...."
इससे बेहतर तरीके से आक्रोश प्रदर्शन और नहीं हो सकता....
@ दिव्या जी
एक बात पर ध्यान दें "मैंने बाध्य नहीं किया है".... "सिर्फ पूछा है"
मेरी सीमायें बताने के लिए आभार
दरअसल इसमें पुरुष से ज्यादा इस देश की निकम्मी सरकार और ऐसे भ्रष्ट अधिकारी दोषी हैं जिन सालों के पास आवारा पूंजी आ जाने से उनका दिमाग ख़राब हो गया है और वो अपनी मां बहन के साथ-साथ हर औरत को वेश्या ही समझते हैं...ऐसे लोग चपरासी के काबिल भी नहीं होते लेकिन भ्रष्टाचार और अपनी मां बहन को बेचकर ऊँचें पदों पर पहुँच जाते हैं ,ऐसे लोगों को चौराहे पे लाकर फांसी देने की जरूरत है ...
हम ऐसे किसी भी जनगणना जिसमे वेश्या,भिखारी की केटेगरी हो का पुरजोड़ विरोध करते हैं और ऐसे केटेगरी बनाने वाले अधिकारी को मानसिक रोगी भी मानते हैं ...
डॉ अमर ,
यह मूढ़-मगज जुमला नहीं है, बल्कि सोये हुए मूढ़-मगज कुम्भ्करनों को जगाने के लिए catalyst है। .. [winks ]
मायावती आदि तो नोटों की मला पहेनती हैं। उनका क्या भाई, मर्दों से भी ज्यादा जलवे हैं उनके।
यहाँ तो बात हम जैसी मामूली स्त्रियों की हो रही है।
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@-Honesty projects democracy--
I'm truly mesmerized by your honest and fearless copmment.
Thanks.
comment *- [correction ]
...मै आपसे सहमत हुं!...सामाज में यही हो रहा है!...यह मुद्दा मैने अपने तरीके से उठाया है..देखिए....
http://baithak.hindyugm.com/2010/07/1250.html
वाह भाई वाह ! क्या जलवे हैं मर्दों के ?
mujhe bhi ye shabd kuch achche nahi lage.apne bhavavesh me aisa kiya hoga. lekin post ki mool bhavna samajh sakta hu.aur apka akrosh bhi.hum bhi aise kritya ke virodh me apke saath hai divya ji.
main hamesha yahan aane me late kyo ho jata hun?
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अफ़सोस है की लोग व्यक्तिगत कमेन्ट ज्यादा कर रहे हैं।
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आपने ही इस ब्लॉग को अति व्यक्तिगत बनाया है दिव्या जी
देशभक्ति और मन की ख़ुशी साथ साथ चल रही है :))
ये दोयम दर्जे की देश भक्ति मुझे कम समझ में आती है
जब किसी स्त्री का उदाहरण दो तो वो बहुत अमीर है कह कर बचाव हो रहा है
कभी अपमानित कह कर बचाव हो रहा है ,
ये वेद साहित्य नहीं है करंट अपडेट है
पूरी जानकारी दें तो बेहतर होगा
लेख सर की पगड़ी न बना लें, जिसमें एडिटिंग कर दो खराब दिखेगा
अगर कोई देश भक्त आपके इस लेख और एडिटिंग सीमाओं को देखेगा तो अपना सर पीट लेगा
एक चीज चुनिए मन भक्ति या देश भक्ति
मैंने जो लिख दिया वो फ़ाइनल है ये देश भक्तों के लक्षण नहीं है
स्त्री और पुरुष विभाजन ये देशभक्तों के लक्षण नहीं है
मुझे अब नहीं लगता की आप इस पोस्ट से पहले वाली दिव्या हैं
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गौरव जी,
suggestion का शुक्रिया। एक ही बात बार-बार कहने पर अपना महत्त्व खो देती है। ..धन्यवाद.
वैसे मैंने पाबला जी के लिखा था।
क्या मैं डंडा लेकर दौड़ती हूँ?
सिर्फ मैं एक महिला हूँ इसलिए जिसका जो मन आ रहा है लिख दे रहा है?
कल आपने अपनी पोस्ट पर लिखा था--" दिव्या जी ,सारगर्भित बात लिखना कोई आपसे सीखे "...२४ घंटे के अन्दर मेरी बातों में बचपना दिख गया आपको ?
मैंने बहुत से पुरुष ब्लोग्गेर्स की पोस्ट्स पढ़ी हैं...घटिया language और filth लिखते हैं खुले-आम , तब कोई नहीं आता उन्हें suggestion देने। सिर्फ मैं एक महिला हूँ, और कोशिश करती हूँ बर्दाश्त करने की, और विनम्रता से जवाब देती हूँ, इसलिए ज्यादातर लोग हदों को पार कर रहे हैं।
बेहद खेद के साथ कहना पड़ रहा है की आज के बाद पोस्ट्स तो लिखूंगी , लेकिन चर्चा नहीं करुँगी।
गौरव...छोटे भाई ऐसे नहीं होते , जैसे आप हैं। या शायद मुझमें ही बड़ी behen वाली generousity नहीं है।
अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगती हूँ आप सभी से॥
अलविदा।
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जवाब लिए बिना न जाइएगा , बड़े गंभीर आरोप हैं
बेहद अफ़सोस!
आम भाषा में ऐसी प्रतिक्रिया को नज़ला गिरना कहा जाता है।
वैसे आपकी प्रतिक्रिया से इस विश्वव्यापी धारणा की पुष्टि होती है कि महिलाओं (इनमें मेरी मां, बहनें भी शामिल हैं) को हास्य-व्यंग्य की समझ नहीं होती। शायद इसे अंग्रेजी में Humor कहते हैं
मेरी टिप्पणी में आपको निजता का उल्लंघन लगा इसलिए उसे हटा रहा लेकिन इसे नहीं हटाऊँगा क्योंकि इसमें कही गई बातों का ठोस वैज्ञानिक अध्ययन भी है।
गौरव की वह टिप्पणी भी अभी पुन: देखी है जिसमें लिखा गया 'मुझे अब नहीं लगता की आप इस पोस्ट से पहले वाली दिव्या हैं'
बी एस पाबला
दिव्या जी ...
आपने मुद्दा तो बहुत सही उठाया लेकिन आपकी लेखनी कुछ जादाही धारदार रखी है आपने !
ये बात सही है की गृहणी का दर्जा आज हमारे समाज में बहुत अच्छा नहीं है ...पर क्या इस के लिए सिर्फ पुरुषी समाज जवाबदार है क्या ..औरते भी उतनीही दोषी नहीं है ...
क्या आपने सोचा है .... अगर पुरुषी समाज इतना घटिया होता तो आप और मेरे जैसे अगणित महिलाये आज इस मकान पर होती ...... और कुछ चुनिदा लोगो के लिए आप पुरे पुरिशी समाज पर दोष रख रही है ये बात तो गलत है.... निंदा करनी है तो सिर्फ उनकी कीजिये जो अब तक ये नियम बाते आये है (अच्छे से छानबीन करे तो पता चलेगा इसमें कई बहाने भी शामिल होंगी जो ये बात पता होते हुए भी चुप रही होंगी )... आज बात बहार आई है तो आप खुद ही टिप्पणिय देख रही है की कितने सारे पुरुष ब्लोग्गेर्स है जो इस बात का विरोध कर रहे है ... क्यू की सबसे जादा एक पिता ही अपने बेटी से कहिये... या बेटा मा से... या भाई बहन से प्यार करता है ....
जवाब तैयार हैं पर अंतरआत्मा रुकने को कह रही है क्या किया जाये ???
अच्छे से छानबीन करे तो पता चलेगा इसमें कई बहाने भी शामिल होंगी जो ये बात पता होते हुए भी चुप रही होंगी
क्यू की सबसे जादा एक पिता ही अपने बेटी से कहिये... या बेटा मा से... या भाई बहन से प्यार करता है ....
Coral जी से सहमत !!
gaurav bhai,
antaraatma ki hi suno.maamla vaise bhi ghambheer hota ja raha haai.
अभी मैं पांच मिनिट कि लिये कंप्यूटर से हटा
थोड़ी देर सोचा , आपको सीधा जवाब देकर मेरी ही नींद गायब हो जाती है अक्सर
मैंने ये कमेन्ट इसलिए दोहराए थे क्योंकि अंशु माला जी के ब्लॉग पर कुछ देर पहले आपका कमेन्ट देखा
बस और कुछ नहीं बोल रहा हूँ ,
भाई ऐसे ही होते हैं, कितना भी गुस्सा आये अंत में पी जाते हैं ( ये शायद पहली बार है मेरे ब्लॉग जीवन में ....जब मैं जवाब बिलकुल नहीं दे रहा हूँ [होते हुए भी] )
बहने हँसती है तो हँसते हैं , बहने रोती हैं तो रोते हैं
और सच कहूँ इस वक्त मेरी आँखों में सिर्फ नमी है
और कुछ नहीं ....................
खुश रहिये दिव्या दीदी
राजन भाई का भी आभार
अलविदा दोस्तों ।
वैसे मैं जानता हूँ मेरे ब्लॉग ने आज तक किसी का दिल नहीं दुखाया
पर फिर भी मैं इसे बंद करना चाहता हूँ
मैं मानवतावादी आप लोगों के बीच फिट भी नहीं हो पाता हूँ यार
इससे ज्यादा मेरे लिए कुछ संभव नहीं है
मेरा बस चलता तो सारे ब्लॉग जगत से अपनी टिप्पणिया उड़ा देता
पर मैं ब्लॉग मोडरेटर नहीं हूँ , इस लिए यहाँ भी कुछ नहीं कर सकता
मेरा सन्देश फिर भी सबको यही रहेगा मानवतावादी रवैया अपनाओ
बस यही सब समस्याओं का हल है
@दिव्या दीदी
अब आपको चर्चा में कोई परेशानी नहीं होगी
Phoolon Ka Taaron Ka Sabka Kehna Hai
Ek Hazaron Mein Meri Behna Hai
Sari Umar Hame Sang Rehna Hai
Ye Na Jaana Duniya Ne Tu Hai Kyon Udaas
Teri Pyaari Aankhon Mein Pyar Ki Hai Pyaas
Aa Mere Paas Aa Keh Jo Kehna Hai
Ek Hazaron Mein ...
Jabse Meri Aankhon Se Ho Gayi Tu Door
Tabse Sare Jeevan Ke Sapne Hain Choor
Aankhon Mein Neend Na Dil Mein Chaina Hai
Ek Hazaron Mein ...
www.hindilyrix.com/ से साभार
अब मेरा ब्लॉग नहीं है ना
इसलिए यहीं पर पोस्ट कर रहा हूँ
@दीदी
नींद आ रही है मुझको
मैं तो जा रहा हूँ
(\__/)
(='.'=)
(")_(")
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बी एस पाबला has left a new comment on the post "गृहणी , वैश्या , भिखारिन या फिर कैदी ? ---दिव्या":
सर पे कफ़न बांधकर ब्लॉगिंग!
गज़ब!!
मेरा सीधा ख्याल है कि Housewives....वैश्याएँ....कैदी ओर भिखारी, सभी को एक ही श्रेणी में रखना उचित नहीं है ?
सुपर सीधी बात कहूँ तो समर्थन के बावज़ूद आप ही मुझे डंडा ले कर दौड़ाएँ :-)
इसलिए आज की मुलाकात बस इतनी...
बी एस पाबला
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@-अच्छे से छानबीन करे तो पता चलेगा इसमें कई बहाने भी शामिल होंगी जो ये बात पता होते हुए भी चुप रही होंगी ...
चुप रहकर किसपर एहसान कर रही हैं?...पिता पर ?...भाई पर ?...या बेटे पर?....सिर्फ तीन लोगों पर?....ज़रूरी नहीं की एक बड़े वर्ग के बारे में सोचा जाए?
क्या मेरे पिता मुझे कम प्यार करते है?..या मेरा भाई?..या पति ?...लेकिन जो गलत है सो गलत है, आवाज़ तो उठायी ही जायेगी। चुप रहना हार जाने की निशानी है।
चुप रहने वाले महिला और पुरुषों से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है। जो स्वार्थी हैं , वो चुप रहते हैं। जो निस्वार्थ समाज के बारे में सोचते हैं, वही आवाज़ बुलंद करते हैं।
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@--आपने मुद्दा तो बहुत सही उठाया लेकिन आपकी लेखनी कुछ जादाही धारदार रखी है आपने ...
ये धार ही तो तेज़ की है पिछले कुछ वर्षों में। ये धार ही मेरी जमा पूंजी है।
ये धार कभी कम न होगी ।
आभार ।
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इकोनोमिक्स यह कहता है कि हाउसवाईव्स को भी हाउसहोल्ड सेक्टर में काउंट करते हुए नैशनल इनकम डिसाइड की जाए... और यूरोपियन कंट्रीज में ऐसा है भी... और अभी NCAER ने यह कहा भी है कि नेक्स्ट फाइव ईयर प्लान में इंडिया में यह काउंट होगा... इसके लिए बाकायदा प्रोविज़न कर लिए गए हैं... ऐसा इसलिए क्यूंकि हम लेबर को डिनाई नहीं कर सकते हैं.... इन्ड़ाईरेक्ट लेबर डू कॉस्ट्स....
सभी को एक ही श्रेणी में रखना उचित नहीं है ?
ऊपर वाले कमेन्ट से ? मार्क को हटा हुआ माना जाए... कॉपी करने में गलती हो गई है....
I mean.....सभी को एक ही श्रेणी में रखना उचित नहीं है.........
इन सबको एक ही कैटेगिरी में रखना बिलकुल उचित नहीं है ...!
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महफूज़ जी,
NCAER के बारे पढ़ा , इसके रिसर्च एरियास काफी ज्यादा है, Infrastructure, growth, poverty, gender etc. लेकिन जनगणना में इससे मदद कैसे मिलेगी समझ नहीं आया। वर्गीकरण किस प्रकार होगा ये भी समझ नहीं आया। गृहणी और भिखारी वाला मुद्दा NCAER से कैसे सोल्व होगा, समझ नहीं आया। कृपया समझाने का कष्ट करें। NCAER की जानकारी देने के लिए शुक्रिया।
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सभी पाठकों का आभार , अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए।
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एकदम...
चारों तरफ से निष्पक्ष लेख..
बल्कि कम से कम चारों तरफ से तो निष्पक्ष है ही...
क्यूंकि हम शायद कभी नारी के हक में कही/लिखी किसी भी बात को ...पुरुष विरोधी नहीं माना है...
:)
क्यूंकि हम NE शायद कभी नारी के हक में कही/लिखी किसी भी बात को ...पुरुष विरोधी नहीं माना HAI
:)
Whose blog is this?
Divya's ?
or
Gourav Aggarwal's?
I lost track after following the ping pong exchange between the two of you.
Enjoyed it however.
Coming to the topic on hand:
Of course this clubbing is objectionable and condemnable. I am sure it will be corrected in time.
Keep writing. Keep provoking.
Regards and best wishes
G Vishwanath
@आदरणीय अमर जी जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं
आपका जन्म दिन है ये पता लगते ही एक पोस्ट प्रकशित कर दी
आपके कमेंट्स से हमारा मार्ग दर्शन करते रहिये
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वाणी जी, मनु जी, विश्वनाथ जी,
आभार ।
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फालतू लोगों को इकठ्ठा कर दिया
Dearest ZEAL:
Sensational title.
Arth kaa
Natmastak charansparsh
इस देश में कुछ भी संभव है!
मेघनेट पर आपकी टिप्पणी के संदर्भ में यहाँ लिख रहा हूँ कि इस देश में शूद्रों और स्त्रियों के लिए एक ही मानदंड अपनाने की रिवायत ब्राह्मणवाद की देन है. भारत में महिलाओं की स्थिति का कारण यही है. यद्यपि उन्हें संविधान के द्वारा अधिकार दिए गए हैं परंतु हमारी परंपराएँ, धर्म, पौराणिक कथाएँ उन्हें लागू करने में सांस्कृतिक बाधा बना कर खड़ी कर दी जाती हैं. धर्म के नाम पर थोपी गई अशिक्षा अभी भी व्याप्त है. कानून का हाल आपने देख ही लिया है.
यह वर्गीकरण तो बहुत पहले से ही होता आया है याद है ढोल गंवार ,शूद्र ,पशु नारी ....उस वक़्त भी स्त्रियाँ मन मन में छटपटाई होंगी ....आज का वर्गीकरण उससे भी ख़राब हुआ .....जिन परुषों ने इस वर्गीकरण के खिलाफ आवाज उठाई उनके लिए हार्दिक आभार ...बस इतना कहना चाहूंगी आज की नारी ...ये वर्गीकरण बर्दाश्त नहीं करेगी सीधी सी बात है जिसके ऊपर कीचड गिरेगा उसे तो धुलने की चिंता होगी चाहे वो स्त्री हो या पुरुष अच्छा तो यही है समाज में कोई बात गलत है तो सभी भाई बहन मिलकर उसका विरोध करें बजाय आपस में टकराने के| कम से कम इस आलेख से कुछ लोगों की निद्रा तो टूटेगी बहुत आभार दिव्या ,शुभकामनाएं
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