Tuesday, July 1, 2014

नेता पंगु बनाकर रखते हैं देश को

हम विदेशों से सामान खरीदते हैं , विदेश हमारी प्रतिभाओं को खरीदकर हमारा दिमाग खरीद लेता है !


फ्रांस, कनाडा, जर्मनी और सिंगापुर के उपग्रह भेजने में सक्षम है भारतीय इसरो (ISRO ) निर्मित PSLV -C -२३ नामक रॉकेट ! इससे सिद्ध होता है की भारतीय वैज्ञानिक इन विकसित देशों के वैज्ञानिकों से कहीं बेहतर हैं ! हमरी टेक्नोलॉजी बहुत उन्नत है ! वैसे भी विदेशों में भी ४२ % भारतीय ही बैठे हैं उच्च पदों पर ! उनकी बुद्धि का पूरा लाभ ले रहे हैं विदेशी ! अज्ञानी तो हमारे ही नेता जो अपने देश की प्रतिभाओं को नहीं पहचानते ! या फिर जानबूझ कर इनके पर कुतर देना चाहते हैं ताकि ये खुले आसमान में उड़ान ही न भर सकें ! अब स्वदेशी नहीं विदेशी सामान मगाएंगे , उनकी टेक्नोलॉजी खरीदने में पूरा देश बेच देंगे ! खुद पर भरोसा जो नहीं है !

हम विदेशियों पर जब तक आश्रित रहेंगे , तब तक तरक्की नहीं कर सकेंगे कभी ! पंगु ही रहेंगे !

हम विदेशों से सामान खरीदते हैं , विदेश हमारी प्रतिभाओं को खरीदकर हमारा दिमाग खरीद लेता है !

Irony 

11 comments:

देवदत्त प्रसून said...

अच्छी रचना है !हकीकत है यह !

देवदत्त प्रसून said...

अच्छी रचना है !हकीकत है यह !

देवदत्त प्रसून said...

अच्छी रचना है !सचमुच ऐसा ही है !

Hemu said...

अगर परिस्थति का आकलन सही प्रकार तोह हम पाएंगे की परिस्थतियाँ बदल रही हे और हमारे देश ब्रेन ड्रेन की जगह ब्रेन गेन हो रहा है. मगर स्थिति को पूरी तरह बदलने में सरकार को अहम भूमिका निभानी होगी

Anonymous said...

For example, maybe you are not confident in using computers when looking to get a position that
rarely uses computers. The reality is some CSRs aare actually still looking forr other
jobs while they are employed as a CSR. This is the deciding element whether you'll gett hired or not.


Also visit my page - consultant interview help

Kailash Sharma said...

यह आज का यथार्थ है...

Anonymous said...

It may be translated into every language, and
not only be read but actually breathed from all human lips; --
not be represented on canvas or in marble only,
but be carved out of the breath of life itself. Probably, she finally realized that and
decided to put an end to her existence in which she could barely find
any sense. If the establishment is co-educational,
then there are separate arrangements for lodging.

Here is my web page; portsmouth high school ()

adhooresapane said...

sahi likha hai aapne

Anonymous said...

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Anonymous said...

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दिवस said...

ये तो वैसे ही हुआ कि मेरे घर में उगे टमाटर मैं फोकट में मंडी वालों को दे आऊं और जब टमाटर की जरूरत पड़े तो उस मंडी से महंगे में वही टमाटर खरीद कर लाऊं|
जब तकनीक की जरूरत है तो अपने देश की प्रतिभाओं का सम्मान क्यों नहीं करते? जब वे विदेश चले जाएं तो उनकी ही तकनीक को महंगे में खरीदें| और ऊपर से तुर्रा ये कि हम तो रोजगार पैदा कर रहे हैं| अरे इन प्रतिभाओं को पहले ही रोजगार दे दिया होता तो आज विदेशियों के आगे हाथ फैलाने की जरूरत ना पड़ती|