अक्सर लोगों को कन्फ्यूज़्ड देखा है
किसका समर्थन करूँ, किसका न करूँ
किसके सपोर्ट में लिखूं , किसे नीचे गिरा दूँ
लिखूँ कि , ना लिखूँ
बोलूँ कि, चुप रहूँ
तमाशा देखूं कि अपनी आहुति दूँ
सत्य कि वेदी पर बलिदान होऊं
या फिर अन्यों से सम्बन्ध बनाये रखूँ
कलम को पैना बनाऊँ,
या फिर धार बेच दूँ !
मन कि बात कह दूँ
या फिर ज़मीर बेच दूँ ?
किसका समर्थन करूँ, किसका न करूँ
किसके सपोर्ट में लिखूं , किसे नीचे गिरा दूँ
लिखूँ कि , ना लिखूँ
बोलूँ कि, चुप रहूँ
तमाशा देखूं कि अपनी आहुति दूँ
सत्य कि वेदी पर बलिदान होऊं
या फिर अन्यों से सम्बन्ध बनाये रखूँ
कलम को पैना बनाऊँ,
या फिर धार बेच दूँ !
मन कि बात कह दूँ
या फिर ज़मीर बेच दूँ ?
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समाधान :
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मन कि बात लिखो
व्यक्तिभक्ति न करके देशभक्ति करो
जो देशहित में है वही विचार लिखो
आपकी निष्पक्ष प्रतिक्रियाओं से
लोगों का मार्गदर्शन होता है
और उनके विचारों को आयाम मिलता है
लोकतंत्र में हर पार्टी और नेता कि
आलोचना और समालोचना बहुत ज़रूरी है
आपकी कलम 'मार्गदर्शन' के लिए है
आसक्ति के लिए नहीं !
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समाधान :
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मन कि बात लिखो
व्यक्तिभक्ति न करके देशभक्ति करो
जो देशहित में है वही विचार लिखो
आपकी निष्पक्ष प्रतिक्रियाओं से
लोगों का मार्गदर्शन होता है
और उनके विचारों को आयाम मिलता है
लोकतंत्र में हर पार्टी और नेता कि
आलोचना और समालोचना बहुत ज़रूरी है
आपकी कलम 'मार्गदर्शन' के लिए है
आसक्ति के लिए नहीं !
"ना कलम बेचो ना ज़मीर"
दिव्या
दिव्या
5 comments:
सटीक कथ्य दिव्य जी
अच्छी रचना...
अच्छी रचना...
मन के प्रश्न मन में समाधान पाते हैं
यदि मन की सुने.
मन के प्रश्न मन में समाधान पाते हैं
यदि मन की सुने.
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