जैसे खेतों में खर पतवार उग आते है, जो फसल के लिए नुकसानदेह होते हैं और उनकी निराई की जाती है , कंप्यूटर में कुकीज़ बन जाती हैं और उन्हें समय-समय पर डिलीट करते रहना पड़ता है , ताकि सिस्टम सुचारू रूप से काम करता रहे। उसी प्रकार हमारी जिंदगियों में अक्सर अनावश्यक रूप से कुछ ऐसे लोग शामिल हो जाते हैं , जो negative vibes हम तक भेजते हैं। ऐसे लोगों को पहचानकर उनसे छुटकारा पाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। अन्यथा वो हमारी growth को बाधित करते हैं। और हमारी उन्नति में व्यवधान उपस्थित करते हैं।
यदि हमें किसी भी क्षेत्र में विकास की राह पर अग्रसर होना है तो हमें सदैव सकारात्मक ऊर्जा [positive vibes] वाले लोगों के सानिध्य में रहना चाहिए । शुभचिंतकों की यह सकारात्मक ऊर्जा हमारे लिए synergistic प्रभाव रखती है और उद्देश्य प्राप्ति में योगदान करती है।
लेकिन जिंदगियों में आने वाले नकात्मक ऊर्जा से युक्त लोगों से दूरी कैसे बनाई जाए , क्यूंकि साथ रहते रहते इनसे एक जुड़ाव भी हो जाता है । प्रकृति इसमें हमारी मदद करती है। समय के साथ कुछ ऐसी सुनियोजित घटनाएं घटती हैं , जो हमारे बीच दूरियां लाती हैं । जिस प्रकार हम बढती निकटता को सम्मान देते हैं , उसी प्रकार किसी कारणवश बीच में आती दूरियों को भी gracefully accept करना चाहिए। यह दूरियां किसी ईश्वरीय विधान के तहत आती हैं , जो हमारे survival के लिए किसी न किसी प्रकार से शुभ ही होती है।
ये तो थी natural weeding , लेकिन कुछ सन्दर्भों में हमें स्वयं चिन्हित करना होगा , अपने विकास में बाधक लोगों को , जो हमारे उद्देश्यों की प्राप्ति में रोड़ा बनते हैं। हमारे अपमान का कारण बनते हैं और येन केन प्रकारेण हमें दुःख दे जाते हैं। ऐसे लोग कभी नफरत के कारण , पूर्वाग्रह के कारण , कभी ईर्ष्या के कारण , कभी professional rivalry के कारण तो कभी inferiority complex के चलते बढती असुरक्षा से ग्रस्त होकर हमारे इर्द-गिर्द नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाकर , हमारी शक्ति और ऊर्जा का ह्रास करते हैं।
इसलिए हमें थोडा सा निर्मोही होकर आवश्यकतानुसार , दूरी बना लेनी चाहिए इन negative vibes वालों के साथ , ताकि हम अपने शुभ प्रयोजन के साथ आगे बढ़ सकें और अपनी मंजिल पा सकें। हमारे आस पास , हमारे कारवां में , सकारात्मक ऊर्जा से युक्त शुभचिंतक ही हमें अभीष्ट की प्राप्ति में योगदान करते हैं । इसलिए समय समय पर अपनी जिंदगियों में अनायास ही शामिल इन खर-पतवार रुपी नकारात्मक व्यक्तित्वों [शरारती तत्वों] की weeding [निराई/छंटाई ] करते रहना चाहिए।
आभार।
यदि हमें किसी भी क्षेत्र में विकास की राह पर अग्रसर होना है तो हमें सदैव सकारात्मक ऊर्जा [positive vibes] वाले लोगों के सानिध्य में रहना चाहिए । शुभचिंतकों की यह सकारात्मक ऊर्जा हमारे लिए synergistic प्रभाव रखती है और उद्देश्य प्राप्ति में योगदान करती है।
लेकिन जिंदगियों में आने वाले नकात्मक ऊर्जा से युक्त लोगों से दूरी कैसे बनाई जाए , क्यूंकि साथ रहते रहते इनसे एक जुड़ाव भी हो जाता है । प्रकृति इसमें हमारी मदद करती है। समय के साथ कुछ ऐसी सुनियोजित घटनाएं घटती हैं , जो हमारे बीच दूरियां लाती हैं । जिस प्रकार हम बढती निकटता को सम्मान देते हैं , उसी प्रकार किसी कारणवश बीच में आती दूरियों को भी gracefully accept करना चाहिए। यह दूरियां किसी ईश्वरीय विधान के तहत आती हैं , जो हमारे survival के लिए किसी न किसी प्रकार से शुभ ही होती है।
ये तो थी natural weeding , लेकिन कुछ सन्दर्भों में हमें स्वयं चिन्हित करना होगा , अपने विकास में बाधक लोगों को , जो हमारे उद्देश्यों की प्राप्ति में रोड़ा बनते हैं। हमारे अपमान का कारण बनते हैं और येन केन प्रकारेण हमें दुःख दे जाते हैं। ऐसे लोग कभी नफरत के कारण , पूर्वाग्रह के कारण , कभी ईर्ष्या के कारण , कभी professional rivalry के कारण तो कभी inferiority complex के चलते बढती असुरक्षा से ग्रस्त होकर हमारे इर्द-गिर्द नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाकर , हमारी शक्ति और ऊर्जा का ह्रास करते हैं।
इसलिए हमें थोडा सा निर्मोही होकर आवश्यकतानुसार , दूरी बना लेनी चाहिए इन negative vibes वालों के साथ , ताकि हम अपने शुभ प्रयोजन के साथ आगे बढ़ सकें और अपनी मंजिल पा सकें। हमारे आस पास , हमारे कारवां में , सकारात्मक ऊर्जा से युक्त शुभचिंतक ही हमें अभीष्ट की प्राप्ति में योगदान करते हैं । इसलिए समय समय पर अपनी जिंदगियों में अनायास ही शामिल इन खर-पतवार रुपी नकारात्मक व्यक्तित्वों [शरारती तत्वों] की weeding [निराई/छंटाई ] करते रहना चाहिए।
आभार।
61 comments:
बढि़या विश्लेषण। जिन्दगी के रास्ते के कांटे हमें स्वयं हटाने पड़ते हैं ताकि रास्ता सुगम्य बन सके।
आजकल अधिकांश लोग नकारात्मक प्रवृति के ही मिलते हैं । कहाँ तक पीछा छुडाएं । इसलिए एक बैलेंस बना कर ही चलना पड़ता है । पानी में रहकर मगरमच्छ के साथ ही रहना पड़ता है ।
फिर भी संग अच्छा हो तो सौभाग्य होता है ।
हम्म ...और या फिर इतना शक्तिशाली होना होगा कि अपनी उपस्थिति मात्र से बदल सकें हर तरह की नकारात्मक उर्जा के प्रवाह को ! जैसे बुद्ध की चेतना से अंगुलिमाल की धारा बदल गयी थी.
सहमत हूं। ज़रूरी है ऐसे कुलच्छनों से अपने को दूर रखना।
एक अच्छा, स्वच्छ मन वाला व्यक्ति दूसरों की विशेषताएं देखता है। दूषित मन वाला व्यक्ति दूसरों में बुराई ही ढूँढता है।
I would not like to say more except a verse from " SHRI GURUGRANTH SAHIB 'S --VANI " .....
SAT SANGATI KIYA SO TARAYA .
collection & selection both will be completed .
Thank for good thoughts ji .
"art of weeding" a new concept of "art of living"
a novel thought...and true one.
Theory of natural selection और Auto polarization दो ऐसे कंसेप्ट हैं जो जाने-अनजाने, जीवन के नेपथ्य में काम करते रहते हैं. ये प्रत्येक को वांछित परिणाम प्रदान करते हैं :)
ACHE VEECHAR PARSTUT KIYE HAI APNE MAM. . JAI HIND JAI BHARAT
विचारणीय आलेख्।
सुन्दर विचारधारा...
धन्यवाद
बिलकुल सही विश्लेषण किया आपने दिव्या!...नकारत्मक सोच वालों का असर हमारी क्रिएटीवीटी पर पड्ता ही है, जो हमारी प्रगति में बाधक बनता है!...इससे बचाव के तरीके हर किसी के अलग अलग होते है!...चिंतनीय, सुंदर आलेख
.
नकारात्मकता से हमेशा दूर ही रहना चाहिये,
साथ ही अतिशय प्रशँसा करने वालों पर एक सतर्क दृष्टि रखनी चाहिये... बिनु स्वारथ न होहिं प्रीती.. इनका स्वार्थ सामने आने पर बड़ा कष्ट होता है । सार्थक आलेख
नकारत्मक सोच वालों का असर हमारे व्यवहार पर पड़ता है लेकिन उनसे दूरी रखना भी संभव नहीं है अच्छा यह है की उनको आपने ऊपर हावी ना होने दें |विचारणीय आलेख
सही विश्लेषण किया आपने विचारणीय आलेख
बिलकू;ल ठीक फरमाया जी आपने ,पर ऐसे नेगेटिव थिंकिग वाले हमारे अपने ही हो तो .......?
साकारात्मक विचारों की उपजाउ भूमि पर नकारात्मकता की खरपतवार तो किसी को भी प्रिय नहीं होती।
पर पहचाना कैसे जाय, घोर नाकारात्मकता भी साकारात्मकता का चोला पहन चली आती है और हितकर नाकारात्कता में भी साकारात्मक हित समाहित होता है।
पहचान के उपकरण क्या है?
सुन्दर विचारधारा| धन्यवाद|
हम सकारात्मक उर्जा वाले लोगों के साथ अधिक समय बिताएं और नकारात्मक उर्जा वालों से दूरी बनाए रखें।
मानव व्यवहार के एक विशिष्ट पहलू का अच्छा विश्लेषण किया है आपने।
आलेख में व्यक्त विचार अमल में लाने योग्य हैं।
कुछ खर पतवार मूल पेड़ से लिपटे रहते है , उन्हें अलग करना बेहद दुरूह कार्य होता है उन्हें तो सिर्फ किनारे कर अपनी राह में आगे बढ़ जाना चाहिए और हर परिश्थिति में निर्मल हास्य मुद्रा अपनाये रहना चाहिए यही जीवन का रंग भी है और तरंग भी. ज्वलंत ब्लॉग्गिंग पर बधाई
जिंदगियों में आने वाले नकात्मक ऊर्जा से युक्त लोगों से दूरी कैसे बनाई जाए? क्यूँकि साथ रहते-रहते इनसे एक जुड़ाव भी हो जाता है । प्रकृति इसमें हमारी मदद करती है। समय के साथ कुछ ऐसी सुनियोजित घटनाएँ घटती हैं , जो हमारे बीच दूरियाँ लाती हैं ।
@ सच है आपका कथन....
.
.
.
दुष्ट विचारों को
पहचान
उनसे नज़र बचाकर
निकल जाना चाहता हूँ.
पर, कैसे हो संभव
जब जानता हूँ मैं —
"परिचितों से
नज़र चुराना अच्छा नहीं
अच्छा या बुरा भाव
व्यक्त करना ज़रूरी है."
सच कहा आपने, भले लोग हमेशा सकारात्मक ही होते हैं, कुछ शैतान प्रवर्ती ke लोग भी हर जगह होते हैं हमें उनसे बचना चाहिए!
bilkul sahi kaha divya ji,
i agree with u.....
मानने योग्य अच्छा और सकारात्मक बिंदु.
मानव सम्बंध खर-पतवार की तरह काटॆ तो नहीं जा सकते, हां, नकारात्मक संबंधों से दूरी बनाए रखा जा सकता है :)
सच कहा आपने। लिखना तो कोई आपसे जाने।
'बुरा जो देखन मै चला,बुरा न मिल्यो कोय
जो घर खोजो आपनो,तो मुझ से बुरा न कोय'
यह तो संत कबीरदास जी की वाणी है.जो आत्म-अनुसन्धान की और
इंगित करती है.
संत रहीम जी तो कहतें है.(एक आध शब्द में हेर-फेर हों सकता है,याद के आधार पर लिख रहा हूँ)
जो मनुष्य उत्तम प्रकृति,का करि सकत कुसंग
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग
गांधीजी कहते थे 'Hate the sin but not the sinner'
नकारात्मक - सकारात्मक उर्जा सभी में घटती बढती रहतीं हैं.केवल व्यक्तियों पर ही यह निर्भर नहीं करता.देश,काल परिस्थिति भी इसमें अपना योगदान करती रहतीं हैं.यदि किसी को शराब पिला दी जाये,और कहें बहके न तो यह संभव नहीं लगता.इसीलिए पूर्ण सत्संग की आवश्यकता है ,जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' में वर्णित किया है.
आभार
theek kaha nirayi gudayi bahut jaroori hai
राधिका उवाच - " कहती तो तुम ठीक हो दिव्या .....मगर मुश्किल यह है कि ये मरे नासपीटे निगेटिव ऊर्जा वाले इस बुरी कदर चिपके हुए हैं कि इन्हें निराई-गुडाई करके निकाल फेकना बड़ा मुश्किल हो गया है. अब अपने बॉस को ही लो .......कैसे निकाल फेकूँ उस मरदूद को ?
dr Divya, bahut saraahniye uchch koti ka lekh likha hai.vishay bahut hi uttam aur vicharniye hai.
नकारात्मक महानुभावों से मुलाकात तो आये दिन होती रहती है लेकिन निराई भी स्व स्फूर्त हो जाती है . आइसो प्रोटूरान(खर पतवार नाशक ) का प्रयोग नितांत आवश्यक है .
कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलने आ जाते हैं...हम अपने को तो बदल सकते हैं...पर हमारी जिंदगी मैं कौन और कैसे आएगा इस पर अपना बस नहीं चलता...कांटे न हों तो फूल की परवाह कौन करे...ये वीड भी हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं...जो शायद पोसिटिव एनर्जी लेने हमारे पास आ जाते हैं...
आपने बड़े scientific approach के ज़रिये आपनी बात कहने की कोशिश की है.पढ़कर अच्छा लगा.
डा. अमर कुमार से सहमत!
additionally there is one more thing called constructive negativism like worst case Scenario analysis.
शायद,सबसे बड़ा होता है हमारा आत्मविश्वास!
इसलिए हमें थोडा सा निर्मोही होकर आवश्यकतानुसार , दूरी बना लेनी चाहिए इन negative vibes वालों के साथ ,
बिल्कुल सही .... प्रयास ज़रा मुश्किल होता है ...पर करना ज़रूर चाहिए ..
बहुत अच्छी पोस्ट, आज ऐसी ही पोस्ट पढ़ने को मन कर रहा था। मैं ऐसे खरपतवार को उखाड़ती रहती हूँ। जिन लोगों के मन में हमारे प्रति अनावश्यक द्वेष हैं उन्हें हम लाख समझाएं लेकिन उनका द्वेष मिटता नहीं है, इसलिए मैं उनसे दूरी बना लेती हूँ, जिससे अनावश्यक नकारात्मकता जीवन में प्रवेश ना करे। मैं पुनर्जन्म में भी विश्वास रखती हूँ और इस सिद्धान्त को भी मानती हूँ कि हम व्यक्तियों के साथ कर्म बांध लेते हैं। इसलिए जो लोग अनावश्यक द्वेष रखते हैं, उनसे किसी भी प्रकार का कर्मबंधन में नहीं चाहती। नहीं तो अगले जन्म में भी ऐसे ही लोग आसपास होंगे। कभी-कभी मेरे आसपास के लोग मुझे समझाते भी हैं कि तुम उससे बात शुरू कर दो, लेकिन मैं उनकी बात अनसुनी करके अपने मन की ही करती हूँ, क्योंकि मुझे सकारात्मकता चाहिए। एक बार जिस व्यक्ति की मानसिकता परख ली हो फिर भला उससे क्या राग और क्या द्वेष? इसलिए ना राग का सम्बंध और ना ही द्वेष का।
नकारात्मक उर्जा, सोच एवं प्रवृति के लोगों से दूरी बनाये रखना ही उचित है . ऐसे लोगों से उलझना तो चाहिए ही नहीं .
I think avoidance should be the key word !
बिलकुल सही लिखा है आपने | कभी-कभी अपने अति निकट के परिजन भी अकारण दुखी करते रहते हैं या बेवज़ह ईर्ष्या करते हैं , इनसे छुटकारा पा लेना ही अच्छा है |
स्वस्थ जीवन के लिये तो यह खरपतवार हटानी होगी।
Divya Ji,Zindgi ke khar patwar ki chintya kiye bine agrasar hote rahne mein hi bhalayi hai...in khar patwaaron ko nonch kar hatane mein khud ka hi hath ghayal ho jaata hai...har acche kam ko karne me baadhayein aati hai aur ye khar patwar badhak ho hi jaate...par inhe ignore karna jyada zaruri hai...
aap ke vichar bahut acche lage...
आदरणीय डॉ.दिव्याजी,
नमस्कार
बहुत सही कहा है आपने
बहुत दिन बाद आया आपके ब्लॉग पर क्या करे इम्तेहान चल रहे है
सही विवेचना की है आपने ।
उसी प्रकार हमारी जिंदगियों में अक्सर अनावश्यक रूप से कुछ ऐसे लोग शामिल हो जाते हैं , जो negative vibes हम तक भेजते हैं। ऐसे लोगों को पहचानकर उनसे छुटकारा पाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। अन्यथा वो हमारी growth को बाधित करते हैं। और हमारी उन्नति में व्यवधान उपस्थित करते हैं।
यदि हमें किसी भी क्षेत्र में विकास की राह पर अग्रसर होना है तो हमें सदैव सकारात्मक ऊर्जा [positive vibes] वाले लोगों के सानिध्य में रहना चाहिए । शुभचिंतकों की यह सकारात्मक ऊर्जा हमारे लिए synergistic प्रभाव रखती है और उद्देश्य प्राप्ति में योगदान करती है
बहुत सार्थक रचना /बधाई आपको /नकारात्मक माहोल,नकारात्मक विचारों से हमारे दिमाग मैं भी नकारात्मक ख्याल आने लगतें है./सकारात्मक माहोल मैं रहने से सकारात्मक विचारों से मन प्रसन्न रहता है ,शांत रहता है /
मेरे ब्लॉग मैं भी नजर डालिए /और मार्गदर्शन देने के लिए सन्देश दीजिये /आभार
bahut sach hai...
be the change we wish to see in the world...gandhi ji...
be strong and concentrate on the goal..and negativity will turn into positivity...
i think being positive is best way to avoid negative thoughts ....
i second babusha ji...we can't be lord buddha but we should try.......
सच कहा आपने।
नकारात्मक उर्जा, सोच एवं प्रवृति के लोगों से दूरी बनाये रखना ही उचित है . ऐसे लोगों से उलझना तो चाहिए ही नहीं
दिव्या जी आपकी बात विचारणीय है किन्तु यदि ऐसे लोग अपने बहुत निकट के ही हों तो उनसे कैसे निबटा जाये ! ये तो दिन रात आपके साथ आँखों के सामने ही रहते हैं और आपके हर निर्णय और प्रस्ताव को प्रभावित करते हैं ! सारगर्भित आलेख !
i try to say to myself.. "avoid yaar" whenever i am in contact with these negative vibes ppl.. i gained this mantra during an orientation programme.. its really helpful :)
A very meaningful post which everybody should read and imbibe.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
खर-पतवार, निराई-छंटाई आदि शब्दों को एक अरसे के बाद पाकर बेहद खुशी हुयी कि ऐसे शब्द अभी भी हैं.इस विचार को पढ़ते समय न जाने कितने चहरे मेरी नज़रों से गुजर गए, सारे के सारे नकारात्मक उर्जावाले हैं. दूरी बनाये रखूंगा.एक बार फिर सचेत हो गया, सावधान हो गया.
सकारात्मक भाव से आगे बढ़ने से ही मंज़िल मिल सकती है..बहुत बढ़िया एवं सार्थक आलेख...पढ़ कर अच्छा लगा..बधाई
देश परिस्थिति और काल के अनुरूप सब कुछ निर्भर करता है |
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
लेखनी की धार सच कह रही है. बहुत अच्छी प्रस्तुति
सकारात्मक और बिचार्निया आलेख आपकी लेखनी को धन्यवाद जो हमें हमेशा कुछ नयी चीजे देती है .
Yes, agreed.
We must extricate ourselves from the clutches of persons with whom we experience negative vibes.
But, one must be careful to distinguish between genuine negative vibes and honest criticism.
Some of us pretend that we welcome criticism but what we want is praise.
Regards
GV
@ - The duality of positive and negative energy has an inherent quality of polarity. When we see the magnetic field, we see north and south poles, which in forces of attraction and repulsion. In nature's laws, we do see the equal presence and significance of Sweet and bitter elements, such as honey and bitter-gourd. One cannot exist without the other, just as Chaos-Order dichotomy. But mostly, what we see outside has a seedling inside us too. It is indeed thought provoking article posted by Dr. Divya. Pleasure and pain are both temporary, just as the rise and fall of anything in our empirical evidence is nothing but an illusion, hence temporary. Much regards, Der se comment kiyaa, issliye apologize. Yours, JR.
आपने बिलकुल सही कहा डा. साहिबा . असल में थोडा सा हमारा परिवेश भी जिम्मेवार है . आप सुबह बढ़िया मूड में जागे .अखबार का मुखपृष्ठ ही नेगटिव energy देना शुरू कर देता है. कभी कभी अच्छा समाचार ख़ुशी से भर देता है .मीडिया अगर इतना सा भी कर दे की एक महीना नेगटिव न्यूज़ भीतर के पृष्ठों पर देगा तो मज़ा आ जाए.आइये उम्मीद करें एसा ही हो www.neelsahib.blogspot.com
In the gamut of our conscious reaction/s to anything flowing towards us from outside, specially from people who we least expect these to come from, we need to implement this art in a very calm and sensible manner (As explained beautifully even within the article here and a nice comment from Vishwanath ji, which cannot be ignored at all, his comment has a very good point about our discernment being applied between constructive criticism and negative vibes) -- I would like to add that "Negative and Positive" feelings are just attachments to outcomes. If we are choosing to remain outside of this attachment, then there is nothing that can rattle us in a negative way. Most of the time we do get attached to a particular range of outcomes and when those are not reached, we then arrive at what didn't work for us and what did. Based on this new knowing, we address them as positive and negative vibes. This is a smart thing that our intellect leads us to. But at the same time, if we do get attached to outcomes, then we can't implement the teachings of treatises such as Bhagawad Geetha in our lives. That is why, I suppose Lord Krishna said "Keep yourself above the dualities of life, trust in ME (Him) and not worry about the outcomes"-- In this very context, some scholars have brought our attention to "Both the righteous and unrighteous emanate from my being, Krishna". Hence, both are invaluable to one's Spiritual growth. Yours. JR.
सही विश्लेषण किया सकारात्मक और बिचार्निया आलेख आपकी लेखनी को धन्यवाद
विचारणीय प्रस्तुति ... हमेशा की तरह अच्छा लिखा है बधाई ।
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