दीदी और अम्मा [ममता बैनर्जी और जयललिता ] , की जीत एक हर्ष का विषय है। देश के चार राज्यों में महिला मुख्य मंत्री और देश प्रमुख भी एक महिला । निसंदेह स्त्री सशक्तिकरण की अभूतपूर्व मिसाल है ये संयोग।
ममता जी की मैं स्वयं भी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ । सादगी से भरा उनका देश को समर्पित एक जीवन। बिना दिखावे की जिंदगी। सस्ती सी ढाई सौ रूपए की साडी और १०० रूपए की हवाई चप्पल । काँधे पर लटका खादी का झोला। भारत की एक ममतामई तस्वीर है ममता दीदी। सस्ते से मकान में एक आम इंसान की तरह रहना और आम जनता के सरोकार से पूरी तरह जुडी होना।
ममता जी ने अपने राज्य के लिए निसंदेह अब तक बहुत कुछ किया है । जिस भी मुद्दे के खिलाफ आवाज़ उठायी उसमें जीत हासिल करके ही दम लिया। इससे सिद्ध होता है की वे एक काबिल मुख्य मंत्री हैं। लेकिन इसके आगे भी तो सोचना चाहिए। सिर्फ राज्य तक ही सीमित क्यूँ हैं ? देश के बारे में कोई क्यूँ नहीं सोचता ?
इसी तरह अन्य राज्य के मुख्य मंत्रियों में भी वही बात देखने को मिलती है। चाहे मायावती हों , चाहे शीला जी , जयललिता , नितीश कुमार हों या फिर मोदी । सभी अपने-अपने राज्य के बारे में ही सोचते हैं केवल। न इसके ऊपर उठना चाहते हैं , न ही सोचना ।
विपक्ष में बैठकर , हर मुद्दे पर हो-हल्ला करना तो बहुत सरल है । लेकिन किसी को भी कभी गभीरता से विचार करते नहीं पाया, देश हित में । बस अपनी-अपनी कुर्सी और अपना अपना राज्य ।
क्या आपको नहीं लगता की इन मुख्यमंत्रियों को अपने राज्य की सीमा-रेखाओं से बाहर निकलकर , अन्य राज्यों के प्रति भी निर्मल दृष्टि रखनी चाहिए। यदि ये शक्तियां एक जुट हो जाएँ तो क्या भारत एक अति शक्तिशाली और समृद्ध देश नहीं बन जाएगा ?
आभार।
ममता जी की मैं स्वयं भी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ । सादगी से भरा उनका देश को समर्पित एक जीवन। बिना दिखावे की जिंदगी। सस्ती सी ढाई सौ रूपए की साडी और १०० रूपए की हवाई चप्पल । काँधे पर लटका खादी का झोला। भारत की एक ममतामई तस्वीर है ममता दीदी। सस्ते से मकान में एक आम इंसान की तरह रहना और आम जनता के सरोकार से पूरी तरह जुडी होना।
ममता जी ने अपने राज्य के लिए निसंदेह अब तक बहुत कुछ किया है । जिस भी मुद्दे के खिलाफ आवाज़ उठायी उसमें जीत हासिल करके ही दम लिया। इससे सिद्ध होता है की वे एक काबिल मुख्य मंत्री हैं। लेकिन इसके आगे भी तो सोचना चाहिए। सिर्फ राज्य तक ही सीमित क्यूँ हैं ? देश के बारे में कोई क्यूँ नहीं सोचता ?
इसी तरह अन्य राज्य के मुख्य मंत्रियों में भी वही बात देखने को मिलती है। चाहे मायावती हों , चाहे शीला जी , जयललिता , नितीश कुमार हों या फिर मोदी । सभी अपने-अपने राज्य के बारे में ही सोचते हैं केवल। न इसके ऊपर उठना चाहते हैं , न ही सोचना ।
विपक्ष में बैठकर , हर मुद्दे पर हो-हल्ला करना तो बहुत सरल है । लेकिन किसी को भी कभी गभीरता से विचार करते नहीं पाया, देश हित में । बस अपनी-अपनी कुर्सी और अपना अपना राज्य ।
क्या आपको नहीं लगता की इन मुख्यमंत्रियों को अपने राज्य की सीमा-रेखाओं से बाहर निकलकर , अन्य राज्यों के प्रति भी निर्मल दृष्टि रखनी चाहिए। यदि ये शक्तियां एक जुट हो जाएँ तो क्या भारत एक अति शक्तिशाली और समृद्ध देश नहीं बन जाएगा ?
आभार।
51 comments:
Dr.Divya yeh post bhi hamesha ki tarah sashakt hai.Rajneeti se smbandhit.sahi kaha hai naari sashakti karan ka uug chal raha hai.par kursi ke laalchi apne raajya me doosre ka hastakshep kaise bardaasht karenge.haal hi ka udahran dekh lijiye UP me Rahul ji ko kya kya sunna pada.bahut achche vichaar hain aapke.
उत्तम विचार डॉ० दिव्या जी |इकाई से ही दहाई तक हम जा सकते हैं अगर प्रत्येक सांसद अपने संसदीय क्षेत्र का ढंग से विकास करे तो पूरे देश का स्वतः विकास हो जायेगा |
गुरुतर उम्मीदों पर खरा उतरना होगा ममता जी को . और काबिल मुख्यमंत्री साबित होना अभी बाकी है . इश्वर करे वो सफल हो .
दोनों को शुभकामनायें।
शायद National perspective वाले लीडर नहीं अब इस देश में
बिहार में नितीश की सरकार ने सबसे ज्यादा सिटिंग एम्.एल.ए. जितने का रिकॉर्ड बनाया है...ये सिर्फ एक बानगी है...मास्टर प्लान साझा होना चाहिए...दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर...जो प्रदेश या देश को जितनी जल्दी ऊपर ले जा सके उसी सरकार को चलना चाहिए...पर इसके लिए जनता को भी जाति-धर्म से ऊपर उठ कर वोट करना होगा...पक्ष और विपक्ष के विचार जब तरक्की के होंगे तो बात सिर्फ निंदक नियरे रखिये वाली ही होगी...हाँ दुःख होता है जब जनता के पास विकल्पों की कमी हो जाती है...नागनाथ या सांपनाथ किससे बचेगी बेचारी...
अम्मा तो सरकार चला चुकी है पर पी.सी.सरकार के प्रदेश में दीदी को जादूगरि दिखानी पडेगी :)
हमारा कवर्नेंस का स्टाईल अभी बहुत पुराना है. इसे बदलने में नेताओं की कोई रुचि अभी दिखी नहीं है.
देस को अपना देश समझने वाली पीढ़ी अभी बहुत छोटी उम्र की है. आगे चल कर शायद यह बेहतर कार्य कर सकने की हालत में आ जाए.
विपक्ष में बैठना बहुत मुश्किल है। दिमाग़ में भी टेंशन रहती है और आलतू-फ़ालतू प्रदर्शन भी करने पड़ते हैं और ऐरी ग़ैरी जनता से भी मिलना पड़ता है जबकि सरकार बनाने के बाद उसे चलाते हैं नौकरशाह और वे मोटा माल भी लाकर देते हैं। बस थोड़ा सा सुपरविज़न बनाकर रखना पड़ता है। बाक़ी और कोई टेंशन नहीं होती है।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/andha-qanoon.html
ममता जी को देखा नही लेकिन उन के काम ओर उन के चित्र देख कर उन की सादगी देख कर उन की दिल से इज्जत करता हुं, नितेश जी ओर मोदी जी के काम भी मुझे अच्छे लगे लोग बिरोध तो करते ही हे, बाकी माया ओर जय ललिता जैसा नेता इस देश को नही चाहिये,इस देश को चाहिये ममता जी जैसा नेता
माया की बात करके सारा मजा किरकिरा कर दिया. ममता के साथ माया और ललिता की बात ...ऊँ हुं...बिलकुल नहीं. हाँ ! नीतीश और मोदी को हम देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं .....(यदि उन्हें अवसर मिला तो )
आदरणीय दिव्या दीदी...आपकी बात से सहमत हूँ कि इन लोगों को जनपदों की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित में विचार करना चाहिए...
सबकी अपनी अलग सोच होती है यह तो आप भी मानती हैं...ये जो नाम आपने गिनाए, इनमे से मैं केवल नितीश कुमार और नरेन्द्र भाई मोदी को ही एक शक्ति मानता हूँ...मायावती और जयललिता को मैं पूरी तरह से देश्स्रोही मानता हूँ...स्त्री होकर भी इनके पास ह्रदय नहीं है...रही बात ममता बनर्जी की, तो अभी तक उनका शासन देखा नहीं है...किन्तु अभी तक के उनके लक्षणों से तो उन पर भी शंका ही है...
नरेन्द्र भाई मोदी मेरी पहली पसंद हैं देश के प्रधान मंत्री के रूप में...किन्तु भाजपा जैसी मुर्ख पार्टी पूरे भारत में कहीं नहीं है जिसे विपक्ष की भूमिका भी ढंग से निभानी नहीं आती...अन्यथा मोदी जी जैसे व्यक्ति को केवल एक राज्य तक सीमित कर देने की मुर्खता और भला कौन करेगा? मुझे लगता है कि श्रीमान लाल कृष्ण आडवानी जी अपने व्यक्तिगत क्षुद्र स्वार्थों के लिए भाजपा का दुरूपयोग कर रहे हैं...वाजपेयी जी उनसे सौ फीसदी अच्छे नेता हैं...किन्तु नरेंद्र मोदी को गुजरात तक सीमित कर के आडवानी जी ने भाजपा के सिंहासन को स्वयं हड़प लिया है...अन्यथा मोदी जी एक राष्ट्रवादी नेता हैं...मैंने उनके कई भाषणों में उन्हें सुना है...
एक बार वे कह रहे थे कि मुझे एक आदर्श भारत बनाना है, किन्तु मेरे हाथ में केवल गुजरात है...तो मैंने सोचा क्यों न आदर्श गुजरात बनाया जाए जिसे देख कर शायद जनता मुझे आदर्श भारत बनाने का अवसर दे...
भारत की जनता तो उन्हें अवसर देना चाहती है किन्तु आडवानी जी उस अवसर को भी हड़प गए...और मोदी जी गुरु भक्ति में कुछ बोल भी नहीं सकते...कुछ संबंधों की अपनी कुछ मर्यादाएं भी तो होती हैं, शिष्टाचार के लिए जिनका सम्मान भी करना ही पड़ता है...इसीलिए मोदी जी आजकल यही कहते हैं कि आडवानी जी मेरे गुरु हैं, वे मुझसे भी अच्छा काम करके दिखाएंगे...
यह मेरा अपना माना है...हो सकता है कि कुछ लोग मुझसे सहमत ना हों...बाल्यावस्था से ही राजनीति में मुझे कुछ अधिक ही रूचि थी...इसलिए इस पर हमेशा ध्यान देता रहा हूँ...देश की लगभग सभी पार्टियों का आकलन भी कर चूका हूँ...भाजपा भी कोई दूध की धूलि नहीं है, किन्तु मेरे पास दो ही विकल्प हैं. १. बुरा और २. कम बुरा...जाहिर सी बात है कि मैं कम बुरा ही चुनुँगा...
किन्तु मोदी जी एक आदर्श नेता हैं...उनमे मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती...देश की बागडोर संभालने का पहला अधिकार उन्ही को मिलना चाहिए...
मेरा यहाँ किसी से कोई मतभेद नहीं है, यह मेरी अपनी सोच है...
राजनीति के विषय पर आपसे कुछ और मार्गदर्शन की अपेक्षा है...जब भी आपको समय मिले कृपया हमें लाभान्वित करें...
सादर...
आपका भाई...
क्षमा करें शीला जी के सम्बन्ध में कुछ कहना भूल गया...अब उनके लिए क्या कहना, नारी के नाम पर वह भी एक कलंक ही है...दिलवालों की दिल्ली अब उत्तर प्रदेश से कम नहीं है...इंजीनियरिंग के बाद शुरू में कुछ समय दिल्ली में नौकरी कर के देख चूका हूँ...उस समय अवधि में ही इतना कुछ देख लिया कि विश्वास तो उठना ही था...एक छोटा सा दिल्ली संभलता नहीं इस शीला से, देश का क्या हाल करेगी...
दिव्या दीदी एवं समस्त पाठक गण मुझे आज मेरी इस कडवी भाषा के लिए क्षमा करे...राष्ट्र से बड़ा कोई नहीं है...अत: जो इसके उत्कर्ष के मार्ग में बाधा बनता है, उसका सम्मान मैं किसी भी अवस्था में नहीं कर सकता....अत: इन नेताओं को किसी भी अवस्था में मैं सम्मान नहीं दे सकता...ये लोग सम्मान के लायक भी नहीं हैं...एक दिन इनका इतना बुरा अपमान होगा कि ये अपनी सूरत दर्पण में नहीं देख सकेंगे...
दिव्या दीदी आपने जनपदीय मानसिकता से ऊपर उठकर राष्ट्र हित में चिंतन करने के लिए आग्रह किया है...इसके लिए आपका आभार...
बहुत सार्थक समसामयिक आलेख!
ममताजी रेल मंत्रालय का काम दूर नियंत्रण से कर रहीं थीं .ऊँट अब पहाड़ के नीचे आया है .आन्दोलन करना आसान है ,पटरियां उखड़ना भी ,पटरियों पर पसरना भी ,गाय भैंस भी ऐसा नहीं करतीं ।
ममताजी रक्त रंगी ,बौद्धिक भकुओं के निशाने पर भी ज़रूर होंगी ।
देखना है जोश कितना .......!
हाँ एक बात और अब अगर उनकी नजर और ऊपर दिल्ली के सिंह -आसन पर रही तो कोंग्रेसी राज कुमार को भी ख़तरा हो जाएगा .चाणक्य पिद्दी राजा कल से ही अ -नर्गल बोल बोलेगा .
दिवस दिनेश गौर जी के बातों से पूरी तरह सहमत हूँ मै!
आपका अंदाज़ सबसे अलग है ! शुभकामनायें आपको !!
its not neccesary that someone who is doing well at Sttae will do the same at Centre too....conditions are different...goals are different...
for Mamata, lets see how much She can deliver as CM.... there are some people who did best when they were in opposition but did just reverse when they changed their side....
and Jayalaita....oh, does she desrve all this applause????
ममता जी के परिश्रम को मैं प्रणाम करती हूँ, उन्होने अपना लक्ष्य निर्धारित किया और वर्षों उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास किया और आज वे सफल भी हुई। लेकिन अभी मुख्यमंत्री के रूप में कुशल प्रशासक वे हैं या नहीं इसे भी सिद्ध करना है।
आपने एक अन्य विचार दिया है कि मुख्यमंत्रियों को अपने प्रान्तों से निकलकर केन्द्र की ओर आना चाहिए। उदाहरण के रूप में कुछ सफल मुख्यमंत्रियों के नाम भी दिए हैं। नीतिश, ममता, जयललिता, मायावती आदि मुख्यमंत्री और उनका राजनैतिक दल स्थानिय स्तर पर ही सक्रिय है अभी उनका जनाधार राष्ट्रीय नहीं है, इसलिए उनके बारे में कहना अदूरदर्शिता है। नरेन्द्र मोदी और शीला दीक्षित दोनों ही राष्ट्रीय दलों के प्रतिनिघि हैं और इन दोनों दलों के पास ही केन्द्रीय नेतृत्व देने के लिए अनेक नाम भी हैं इसलिए यह भाजपा और कांग्रेस का अन्दरूनी मामला है कि वे किसे किस योग्य समझें। प्रांत की जिम्मेदारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है इसलिए वहाँ भी सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति को ही उत्तरदायित्व देना होता है, इसलिए मुख्यमंत्री के पद बहुत महत्व के होते हैं।
विचारणीय आलेख!!विचारणीय राजनितिज्ञों के लिए!!
'nahi'...........
pranam.
भविष्य बतायेगा कि कौन, क्या, करेगा,
तेल की बड़ी कीमतों पर इस बार दीदी का मौन बताता है कि सरकार तो कांग्रेसी माडल पर ही चलेगी। काले धन से बनी सरकारें कोई भी बनाये (नरेन्द्र मोदी भी!) लोकतंत्र का मखौल हैं, जहां नेता सिर्फ दलाल होता है और सरकारें दलालों का समूह!
जयललिता अम्मा के पीछे शशिकला अम्मा हैं,सुब्रामनियन स्वामी की वेब साईट पर इस बारे में 14 मई की प्रेस-विज्ञप्ति बहुत सनसनीखेज है। स्वामी की अन्य प्रेस विज्ञप्तियां भी रोचक हैं : http://www.janataparty.org/pressdetail.asp?rowid=60
आजकल की राजनीति तो स्वार्थ की राजनीति है। सभी राजनेता स्वहित के बारे में ज्यादा सोचते हैं, देशहित के बारे में सोचने की फुर्सत किसे है ?
येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहना उनका उकमात्र लक्ष्य होता है। सत्ता में बने रहने के लिए वे बड़ी पार्टियों से अलग होकर क्षेत्रीय पार्टियां बना लेते हैं और राज्यों में राज करते हैं। एक-दो मुख्यमंत्री का काम भले ही अच्छा दिख रहा हो लेकिन उनका यह कार्य आगामी चुनावों में फिर से सत्ता हासिल करने के लिए है।
जी ममता की ईमानदारी पर कभी किसी को शक नहीं हैं। लेकिन ममता के साथ वाले भी इतने ही ईमानदार है, ये कहना गलत है। ममता सूती साड़ी पहनती हैं और उनके साथ वाले डिजाइनर ड्रेस पहनते हैं। चाहे दिनेश त्रिवेदी हो या फिर सुंदीप बंदोपाध्याय। ऐसे में ममता के सामने अपने लोगों पर नियंत्रण रखने की भी गंभीर चुनौती है। विरोध करने के दौरान सबको खुला छोड़ दिया जाता है, लेकिन सरकार चलाने में नियंत्रण की जरूरत है। काश ममता ऐसा कर पाएं।
महेंद्र जी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ.
ममता जी का रेल मत्रालय में कोई कण्ट्रोल नही रह पाया था, विभागीय अफसरों की चांदी थी, वो शायद इसलिए की उनका पूरा ध्यान बंगाल पर था. अब देखना है अफसरसाही पर कितना रोक लगा पाती है
पर जो भी हो, बंगाल के लिए तो शुभ ही है.
जहां तक गौर साहब का सवाल है शायद उनका comment, comment के लायक नही.
दिवास दिनेश गौर जी के विमर्श से पूरी तरह सहमत हूँ ! देश के युवाओं से ऐसे ही चिंतन की अपेक्षा है.....हम इस पीढ़ी से आशा कर सकते हैं ......गौर जी ! आपको साधुवाद ! ! वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में देश के प्रधान मंत्री पद के लिए मोदी मेरी ही नहीं ...शायद पूरे देश की पहली पसंद के नेता हैं.
हम सरकारी आदमी हैं। राजनीतिक विषय पर ज़्यादा नहीं बोल सकते। आचार संहिता की बात है। बस एक शे’र
साहस अगर हो सच का तो आंखें मिलाइए
और झूठ बोलना हो तो गीता उठाइए।
बाज़ार में बिकेगा तभी आपका प्रकाश,
सूरज को अपने माल का ग्राहक बनाइए।
MAM AAPNE ACHA OR DESH KE VIKAS SE JUDA HUA LEKH LIKHA HAI. HUM LOGO KO HI SOCHNA OR KUCH KARNA HOGA. DR ANWAR JAMAL KI TIPPANI PADHI, UNHONE JANTA KO ERI GERI KAHKAR SAMBODHIT KIYA HAI , ANWAR JI AGAR APKO PTA HO TO AAP BHI IS JANTA KA HI EK ANG HAI.. MUJHE BAHUT HI BURA LAGA HAI. BAKI SAB THIK HAI. . . . . . . . . . . SORRY DIVYA MAM , ME BHI JANTA KA HI EK ANG HUN TO ISLIYE DR JAMAL KI TIPPANI KE KUCH SABDON PAR AAPNI AAPTTI PARKAT KARNI PADI. . .0. . .0.
. JAI HIND JAI BHARAT
I do agree with you on this. The problem is our leaders are engrossed in there own little cricle , they hardly ever think of every city in there own Constituency or state.. how can we expect them to think of neighbouring areas..
Our leaders become leaders for themselves Not for the nation or anything .. Till that mentality changes thins will not change .. till each minister is Answerable to the public things will not change thats my view..
My hindi is not very strong.
Bikram's
kaash aisee soch waale netaa-----
आन्दोलन की राजनीति और प्रशासन की राजनीति अलग अलग तज़ुर्बे हैं ।
अभी कुछ कहना कठिन है, जयललिता उत्कोच की नीति अपना कर सरकार चलाने में सफल रही हैं,
पर मुझे याद नहीं आता कि उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में तमिलनाडु के विकास के लिये ्किसी योजना की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत की हो !
MAM AAPNE BAHUT ACHA OR VICHAR KARNE YOGAY LEKH LIKHA HAI... AAJ ESE HI NETAO KI JARURT HAI JO PURE DES KE VIKAS KE BARE ME SOCHEN. . .DR ANWAR JAMAL KI TIPPNI PADHI, USME EK BAT MUJHE BURI LAGI HAI. UNHONE JANTA KO ERA GERA KAHKAR SAMBODHIT KIYA HAI JO UNHE NAHI KAHNA CHAIYE THA, WO BHI TO ESI JANTA KE HI ANG HAIN..BAKI SAB THIK HAI MAM. . . . . .
JAI HIND JAI BHARAT
लघु लेख द्वारा बधाइयाँ देते हुए एक अहम् तथा विचारणीय प्रश्न की ओर ध्यानाकर्षण किया है.आपका सतत चिंतन एक न एक दिन जरुर रंग लायेगा.शुभाशीष.
दोनों को शुभकामनायें।
जयललिता और सोनिया से ज्यादा ममता अपनी नजर आती हैं नारी शक्ती का वे ज्वलंत उदाहरण है इश्वर उन्हे जनता की अपेक्षाय पूरी करने मे मदद करे
बिलकुल सही कहा आपने येही कारन है की लोग अपने राज्य अपनी भाषा अपने छेत्र मैं ही सिमटे हुए हैं और इन्ही का फायदा उठाकर हमारे राजनेता कभी जातिवाद कभी भाषावाद का मुद्दा उठाकर राजनीति करते रहते हैं /देश के लिए कौन सोचे /देश तो चल ही रहा है./बधाई आपको इतने अच्छे लेख के लिए /
बहुत सार्थक और समसामयिक पोस्ट.
ममता जी जैसा व्यक्तित्व अगर केवल एक राज्य के बजाय देश के बारे में भी सोचे तो बहुत कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है.
आदरणीय zeal जी नमस्ते! आपने बहुत सुन्दर लिखा है
आजकल की राजनीति तो स्वार्थ की राजनीति है।
सभी राजनेता स्वहित के बारे में ज्यादा सोचते हैं, देशहित के बारे में सोचने की फुर्सत किसे है ?
वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में देश के प्रधान मंत्री पद के लिए मोदी मेरी ही नहीं शायद पूरे देश की पहली पसंद के नेता हैं.
desh ke vikas hetu aapke jajbe ko salam.kash ye neta bhi aap ki tarah hote.
आदरणीय मदन शर्मा जी एवं कौशलेन्द्र जी आपको मेरा दृष्टिकोण पसंद आया, यह जानकार प्रसन्नता हुई...उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार...
@अनुपम कर्ण जी...
बंधुवर आप मुझसे असहमत हो सकते हैं, ऐसा करने का आपको अधिकार है...
ममता बनर्जी के सम्बन्ध में कुछ कहना चाहूँगा...पिछली टिप्पणी में भूल गया था...
ममता से मुझे प्रथम तो यही शिकायत है कि वह भी कांग्रेस और वामपंथ की तरह तुष्टिकरण की नीति ही अपनाती है...वर्तमान में रेल मंत्रालय ममता के पास है, अत: इस लिहाज़ से वह केंद्र सरकार की एक मंत्री हुई और इसलिए उसे दिल्ली में रहकर अपना काम संभालना था...किन्तु पश्चिम बंगाल में उसकी अनुपस्थिति में कहीं उसे कोई नुक्सान न हो जाए इस डर से वह प्रदेश के बाहर भी नहीं आई...यह तो सरासर अपनी जिम्मेदारियों से मूंह मोड़ना हुआ...
मेरे पिता श्री दिनेश कुमार गौड़ रेल्वे में ही थे...अभी कुछ महीनों पहले ही वे सेवानिवृत हुए हैं...यहाँ वे North Western Railway Zone के अध्यक्ष के रूप में चुने गए, साथ ही बीकानेर मंडल के मंडल सचीव का पद भी संभाल रहे थे...१७ वर्षों तक उन्होंने यह पद संभाले...उनकी ईमानदारी, कार्यकुशलता व नेतृत्व कि शक्ति के चर्चे यहाँ खूब हुए हैं... इस बात की चर्चा मैं इसलिए नहीं कर रहा कि वे मेरे पिता हैं और मैं उनका पुत्र हूँ, बल्कि इसलिए कि आप में से कोई भी राजस्थान में रेल्वे यूनियन में कार्यरत किसी भी कर्मचारी के सम्बन्ध में पूछताछ कर सकते हैं जो पिछले १५-१६ वर्षों में यहाँ काम कर चूका है आपको सत्य का पता चल जाएगा...मेरे कुछ मित्रों ने ऐसा किया था...और मुझे तब बहुत आश्चर्य हुआ कि मेरे पिता के विरोधी भी इस बात से सहमत हैं...अपने कार्यकाल के दौरान वे देश के चार रेल मंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं...ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान व लालू प्रसाद यादव...इन चारों से वे मिल भी चुके हैं...उन्होंने ही मुझे बताया था कि इन सबमे नीतीश कुमार सबसे ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हैं...और बाकी तीनों (ममता बनर्जी, राम विलास पासवान व लालू प्रसाद यादव) मौका परस्त हैं...इनके समय में रेल्वे में भ्रष्टाचार भी चरम पर था...इन्हें रेल्वे से कोई लेना देना नहीं था, वे तो अपने अपने राज्यों में रेल्वे का केवल दुरुपयोग ही करते रहे, ताकि इसके द्वारा प्रदेश में अपनी सीट पक्की की जा सके...ममता से तो अपना राज्य भी नहीं छूट रहा...
गोया जब ये लोग रेल्वे के ही लायक नहीं हैं तो देश की बागडोर इन जैसे किसी के भी हाथ में आ जाने से देश का क्या हाल होगा???
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व्यक्ति जैसे- जैसे ऊँचाइयों को छूता जाता है , उससे लोगों की अपेक्षाएं बढती जाती हैं। उसका जीवन स्वयं का न होकर दूसरों को समर्पित हो जाता है। जो काबिल नेता इतनी ऊँचाई तक आये हैं , उन्हीं से अपेक्षाएं भी ज्यादा है, उन्होंने राज्य को समृद्ध किया , ठीक है , लेकिन अब देश की जनता उनकी तरफ उम्मीद से देख रही है। उन्हें अपने राज्य की जिम्मेदारी को निभाने के साथ साथ थोडा और वृहद् परिपेक्ष्य में जिम्मेदारी उठाने की ज़रुरत है ।
यदि ममता जी ने राज्य के लिए इतना कुछ किया , तो देश के लिए सोचने का वक़्त आ गया है । हो सकता है देश-हित में सोचने पर मुख्य मंत्री की कुर्सी जाती रहे । लेकिन देश का तो हित होगा ही । थोडा सा निस्वार्थ होने की ज़रुरत है। यदि अन्ना , गांधी, विवेकानंद और नेताजी जिसे लोग बिना किसी कुर्सी के पूरे देश के लिए सोच सकते हैं तो फिर सत्ता में बैठे कुर्सीधारी क्यूँ नहीं ?
ममता जी को रेल मंत्रालय मिला , जिसके साथ उन्होंने समुचित न्याय नहीं किया। थोड़े और सार्थ प्रयासों की आवश्यकता थी। जो कार्य मिला था , उसे उसी अवधी में उंचाईयों तक ले जाना उनका ध्येय होना चाहिए। यदि दिए के मंत्रालय में सकारात्मक बदलाव न आये तो व्यक्ति उस कुर्सी के साथ न्याय नहीं कर रहा। अन्दर से इच्छाशक्ति होनी चाहिए , कुछ करने की , वो जज्बा होना चाहिए देश को आगे ले जाने का। इसके त्याग की मात्रा निरंतर बढती रहनी चाहिए। अपेक्षाओं के अनुसार ढलते तहना चाहिए।
लोग जी जान से कर भी रहे हैं । निसंदेह। लेकिन एक शिकायत मेरे मन में रहती ही है। अक्सर लोग एक निश्चित ऊँचाई तक आकर , उसके ऊपर उठकर नहीं सोचना चाहते, क्यूंकि नैतिक और सामाजिक , दोनों ही दायित्व बहुत बढ़ जाते हैं । लोगों अधिक दायित्व से घबरा जाते हैं । एक निश्चित मात्रा में सम्मान और धन और लोकप्रियता मिल गयी बस काफी है , ऐसी सोच है ज्यादातर लोगों में।
कोर्पोरेट दुनिया में भी एक निश्चित ऊँचाई [अच्छा पैसा और पद], तक पहुँचने के बाद , लोग अपना promotion ही नहीं लेना चाहते , क्यूंकि इतनी ऊँचाई पर पहुंचकर जिम्मेदारियां कई गुना बढ़ जाती हैं। घर परिवार के लिए समय ही नहीं निकल पाता। लोग समने आराम के साथ समझौता नहीं करना चाहते , इसलिये उनका अचेतन मन , एक वृहत परिपेक्ष्य में सोचने से रोकता है उन्हें।
कितने अफ़सोस की बात है की लोग प्राधानमंत्री बनने की लालसा ही नहीं रखते अब। क्या वे जानते हैं की वे इस पद के साथ न्याय नहीं कर पायेंगे ? क्या इसीलिए? राष्ट्र हित में सोचने के लिए , छोटे स्तरों पर मोह को त्यागना होगा। उन जगहों पर काबिल लोगों को नियुक्त कर एक बड़े उद्देश्य के लिए आगे बढ़ जाना होगा।
जब तक पद का मोह रहेगा, उस कुर्सी के आगे सोचना बहुत मुश्किल होगा। राज्य से आगे सोचना ही होगा , और वो भी इन्हीं काबिल नेताओं को । अन्यथा वही बात होगी ..."अपनी-अपनी ढपली , अपना-अपना राज्य। "
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जी हाँ ,आप सही फरमाती हैं दिव्याजी कि मुख्यमंत्रियों को राज्य से आगे देश हित में सोचना होगा.इसी प्रकार केंद्र में भी मिनिस्टरों को अपने अपने राज्य या वोट बैंक के बजाय देश हितमें ही सोचना चाहिये.
काश! यदि ऐसा हों पाए,तो देश का उद्धार हों जाये.
आपने 'दिव्य' स्वप्न के बारे में क्या सोचा दिव्या जी.क्या नेता बनने पर आप भी भृष्टाचार से ग्रसित हों सकेंगीं.आप 'भ्रष्टाचार' से डरकर नेता बनने का स्वप्न नहीं देखेंगीं ऐसा मैं नहीं मानता.एक अच्छे हास्य व्यंग्य की पोस्ट अब लिख ही दीजिये.
सही.
दीदी की सादगी का मैं भी कायल हूँ , पर अम्मा हर बात में उनसे भिन्न हैं. आपका कहना बिलकुल सही है कि नेताओं को प्रांतीयता की संकीर्णता से कुछ ऊपर उठ कर देश के बारे में भी कुछ विचार करना चाहिए. यह भी ठीक है कि विपक्ष में रह कर बड़ी बड़ी बातें करना आसान है पर कुछ कर के दिखाना बहुत कठिन !
सार्थक लेख के लिए बधाई !
दिव्या जी ,
आपने बिलकुल सही लिखा है | अगर ये सभी काबिल मुख्यमंत्रीगण एकजुट होकर देश के उत्थान के बारे में सोचें और कार्य करें तो निस्संदेह देश की दशा और दिशा बदल सकती है किन्तु इसमें दलगत राजनीति बाधक है |
कितना अच्छा हो कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ये योग्य लोग देश के बारे में सोचें |
(1)
आखिर त्रस्त जनता ने बदल दिया तख़्त-ओ-ताज
बंगाल में आया ममता दीदी का नया राज
कहते हैं की आप
हैं बड़ी तुनुक-मिजाज
रखियेगा ख्याल
बढे बंगाल
(2)
जयललिता
ऐश्वर्य की मलिका
भ्रष्टाचार ने डुबोई थी नैया
इस बार भ्रष्टाचार ही पार लगैया
करो कुछ जूतियों का दान
तुम्हे बना देगा सचमुच महान
Entire leadership is corrupt in india irrespective of name,caste and creed.
democratic form of set up needs a strong opposition,actually what we lack in our govt. is set of standards for politician ,neither of education nor of character,that is why all hue and cry is there.
बिल्कुल सही और अच्छा लिखा है ...बधाई ।
डॉ दिव्या श्रीवास्तव जी बहुत ही उत्तम और सार्थक लेख आप का , आप के विचार बहुत ही उच्च कोटि के हैं सच है जब कोई कुछ करना चाहे तो पहले तो उसे खुद को लोहे सा बनाना ही होता है मजबूत सब कुछ झेलने और हथोडा मार सकने वाला
निम्न सटीक कहा आप ने हमने भी पश्चिम बंगाल में ममता दीदी जी के क्रिया कलापों को नजदीक से देखा है जो किसी भी जरुरत के समय जरुर पहुँचती थीं
ममता जी ने अपने राज्य के लिए निसंदेह अब तक बहुत कुछ किया है । जिस भी मुद्दे के खिलाफ आवाज़ उठायी उसमें जीत हासिल करके ही दम लिया
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
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