Wednesday, May 11, 2011

रूह को सहलाती सुरभित समीर.....[A caressing breeze]


थम गए जिनके हाथ देते-देते , वो साथ क्या चलेंगे
ज़ख़्मी हो गया जिनका अहम् , वो मान क्या देंगे ..

हो जाओ तुम भी शामिल उस कतार में ,
जिनके लिए मेरा प्यार बरसता है ,
इस लेखनी के अंदाज़ से अंगार बरसता है ,
पास मेरे आओगे तो जल जाना तुम्हारा तय है
छुप जाओ , उस भीड़ में , जिनके लिए
मेरा प्यार , बा-अदब , बेज़ार बरसता है।

तुम तो फूलों से भी ज्यादा नाज़ुक हो , प्यार क्या करोगे
हम तो कायल हैं उन झोकों के , जो 'लोहे' को सहला कर गुज़र जाते हैं ।

6 comments:

mridula pradhan said...

तुम तो फूलों से भी ज्यादा नाज़ुक हो , प्यार क्या करोगे
हम तो कायल हैं उन झोकों के , जो 'लोहे' को सहला कर गुज़र जाते हैं । itni sunder pangtiyan likhne par badhayee....

SANDEEP PANWAR said...

वाह, क्या जानदार सच्ची बात कही है आपने
आपको इस कार्य के लिये धन्यवाद,

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

कही कुछ बुझा बुझा सा प्रतीत होता है इन संवेदनशील पंक्तिओं में , कही गहरे से निकली प्रतीत हो रही है , दिव्या जी आपके व्यक्तित्वा से मेल नहीं खाती , जो हमेशा जीवंत और सकारात्मक हो वो नकारात्मकता की बात कहे, खता गया कही कुछ , फिर भी पंक्तियाँ अर्थयुक्त थी बधाई

डा० अमर कुमार said...

.मोहतरम,
मैं दोहराऊँगा कि
ग़र वह झोंके हैं तो क्योंकर कैद ही उनको कीजिये
गो कि फ़ितरत है परिन्दे चमन में, चँद रोज के मेहमान जानिये
वह अपनी अपनी मुकर्रर बोलियाँ यहाँ पर बोल कर उड़ जायेंगे
जो ज़ख़्मी कर अपनी चोंचों का दर्द वह कब तक सहें, ये सोचिये
या लफ़्ज़ों में बाँधने की मासूम कोशिश, उन्हें मायूसी क्यों न दे
लोहा हो या सोने का हो पिंजड़ा, यह खुद तोड़ कर उड़ जायेंगे

Asha Joglekar said...

हो जाओ तुम भी शामिल उस कतार में ,
जिनके लिए मेरा प्यार बरसता है ,
इस लेखनी के अंदाज़ से अंगार बरसता है ,
पास मेरे आओगे तो जल जाना तुम्हारा तय है

क्या बात है, आज का अंदाज़ निराला है ।