ये कहानी है एक लड़की की, जिसका नाम है 'गुल'। गुल के पास एक बगीचा था जिसमें वो रंग बिरंगे फूल खिलाती थी , जिससे बहुत से लोग लाभ लिया करते थे । किसी को शारीरिक बिमारियों से निजात मिलती थी , तो किसी मानसिक शांति मिलती थी। किसी को उन्हीं फूलों से दुनिया की नयी-नयी तसवीरें दिखती थी , तो कोई बिछड़े हुए अपनों से मिल जाता था। किसी के लिए वे फूल प्यार का पैगाम लाते थे तो किसी के लिए मरहम का काम करते थे। कुल मिलाकर 'गुल' के उस 'गुलशन' के विविध रंगी फूलों से पूरे समाज को लाभ होता था । 'गुल' निस्वार्थ भाव से छोटे-बड़े , गरीब अमीर , सभी के लिए उस गुलशन में फूल उगाती थी। और हर किसी को उस गुलशन में आने जाने की पूरी स्वतंत्रता थी। कोई भी ज़रुरतमंद वहां से अपनी पसंद का फूल चुन सकता था। किसी प्रकार की कोई बंदिश नहीं थी।
गुल अकेली ही उस गुलशन का ध्यान रखती थी जिसके फूलों पर लाखों जिंदगियां बसर रही थीं। गुल चाहती थी कोई ऐसा हो जो उसकी इस नेक काम में मदद करे , लेकिन कोई भी नहीं था जो उसका साथ देता। एक दिन उसका एक बचपन का मित्र 'गुलफाम' वहां आया , उसे देखकर गुल को बहुत ख़ुशी हुई । उसे लगा अब इस गुलशन का ध्यान रखना अब बहुत आसान हो गया है। गुलफाम के आ जाने से गुल को बहुत अच्छा लगता था। गुलफाम के छू देने से फूलों का आकार बढ़ जाता था और उसके रंग भी गहरे हो जाते थे। धीरे धीरे गुलफाम में अहंकार आने लगा। उसने सोचा मैं क्यूँ मदद करूँ गुल की। इसमें मेरा क्या लाभ है भला , नाम तो गुल का हो रहा है , फिर मैं अपना योगदान क्यूँ करूँ ? फिर उसने फूलों को छूना बंद कर दिया। उसने गुल से कहा - तुम बहुत ज्यादा फूल खिला रही हो , बहुत तेज़ी से लोग इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं । मैं चाहता हूँ तुम अपना काम धीरे-धीरे करो ।
गुल समझ गयी गुलफाम उसकी मदद नहीं करना चाहता है । गुल ने कुछ नहीं कहा , वो उसी लगन और मेहनत से अपने काम में जुटी रही। वो जानती थी की कोई भी व्यक्ति निस्वार्थ नहीं होता इसलिए लम्बे समय तक उसकी खातिर उसके गुलशन में उसका सहयोग नहीं कर सकता । गुलफाम जैसे मित्र उससे अपेक्षा तो बहुत रखते हैं , लेकिन उसके लिए निस्वार्थ रूप से सहयोग नहीं कर सकते। समय बीतता गया और गुल अपने काम में वापस व्यस्त हो गयी । फूलों का रंग गहरा न सही , बड़ा आकार न सही , लेकिन वो अपनी बगिया में फूल खिलाती रही और लोग चुन-चुन कर ले जाते रहे।
कुछ समय बाद एक दिन अचानक सुबह उठी तो देखा गुलशन के सारे फूल बहुत ही बड़े-बड़े और गहरे रंग के हो गए हैं । और बहुत ही सुन्दर सुगंध से पूरा गुलशन गमक रहा है । गुल आश्चर्यचकित हो गयी , आस पास देखा तो कोई नहीं था । अब तो ये रोज़ का ही नियम हो गया था , गुलशन के फूलों का रंग , आकार और खुशबू बढती ही जा रही थी। गुल बहुत प्रसन्न रहने लगी । कोई अनजाना निस्वार्थ होकर मदद कर रहा था और अनेकों जरूरतमंदों की मदद में गुल का सहयोग भी कर रहा था।
गुल की इच्छा बढ़ गयी उस अजनबी फ़रिश्ते से मिलने की , लेकिन वो तो चुपचाप अपना काम करके चला जाता था। एक दिन गुल घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गयी । उसने देखा एक छोटा सा गुलिस्तां है वहां और अनेक फूल भी खिले हैं , लेकिन सभी बहुत छोटे आकार के हैं और खुशबू भी नहीं है।
फूलों से बेहद प्यार करने वाली गुल ने उन फूलों को धीरे से सहलाया। देखते ही देखते सारे फूलों का आकर बढ़ गया और उनमें भी सुन्दर सुगंध आ गयी । हर तरफ खुशबू फैलते ही अचानक एक युवक 'इरफ़ान' दौड़ता हुआ वहां आया। उसने गुल को धन्यवाद दिया और कहा -"मेरी बगिया तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी इतने दिनों से । गुल ने पूछा -तुम कौन हो और मुझे कैसे जानते हो? इरफ़ान ने गुल को बताया , मैं ही तुम्हारे गुलशन के फूलों को खुशबू देता हूँ। गुल चौंक गयी पूछा- "तो तुम अपनी बगिया को क्यूँ नहीं सुवासित करते? तुम्हारे पास तो ये अद्भुत हुनर है।
इरफ़ान ने कहा - " नहीं , ये हुनर हम दोनों के ही पास है । लेकिन जब हम अपने लिए करते हैं तो वो स्वार्थ से ग्रस्त हो जाता है इसलिए फूलों में खुशबू नहीं आ पाती , लेकिन जब हम निस्वार्थ होकर किसी गैर के लिए कुछ करते हैं तभी पूरे चमन में ये खुशबू फैलती है।
गुल ने पूछा - " लेकिन तुमने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया , मैं भी तुम्हारी बगिया के लिए कुछ कर सकती । इरफ़ान ने कहा - "यदि मैं तुमसे कुछ मांग लेता तो मैं निस्वार्थ नहीं रह जाता और फिर तुम्हारे गुलशन को सुवासित करने की शक्ति भी जाती रहती , इसलिए मुझे छुपकर ही ऐसा करना पड़ा, और मैं भी दिल ही दिल में तुम्हारे आने का इंतज़ार करता था। जानता था तुम ज़रूर आओगी। मेरा विश्वास अटल था।
उस दिन के बाद से गुल और इरफ़ान ने मिलकर लोगों के लिए फूलों को खिलाना शुरू कर दिया। पहले एक थी , फिर अनेक बगिया हो गयी।
कहानी के पात्र वास्तविक हैं। लेकिन उनके नाम काल्पनिक हैं । रोचकता बढाने के लिए आप यदि गुल , गुलशन , गुलफाम और इरफ़ान को पहचान सकें तो टिप्पणियों का आनंद दोगुना हो जाएगा।
तीन पात्रों को पहचानना आसान है लेकिन जो 'इरफ़ान' को पहचानेगा , वही विजेता घोषित होगा।
आभार।
गुल अकेली ही उस गुलशन का ध्यान रखती थी जिसके फूलों पर लाखों जिंदगियां बसर रही थीं। गुल चाहती थी कोई ऐसा हो जो उसकी इस नेक काम में मदद करे , लेकिन कोई भी नहीं था जो उसका साथ देता। एक दिन उसका एक बचपन का मित्र 'गुलफाम' वहां आया , उसे देखकर गुल को बहुत ख़ुशी हुई । उसे लगा अब इस गुलशन का ध्यान रखना अब बहुत आसान हो गया है। गुलफाम के आ जाने से गुल को बहुत अच्छा लगता था। गुलफाम के छू देने से फूलों का आकार बढ़ जाता था और उसके रंग भी गहरे हो जाते थे। धीरे धीरे गुलफाम में अहंकार आने लगा। उसने सोचा मैं क्यूँ मदद करूँ गुल की। इसमें मेरा क्या लाभ है भला , नाम तो गुल का हो रहा है , फिर मैं अपना योगदान क्यूँ करूँ ? फिर उसने फूलों को छूना बंद कर दिया। उसने गुल से कहा - तुम बहुत ज्यादा फूल खिला रही हो , बहुत तेज़ी से लोग इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं । मैं चाहता हूँ तुम अपना काम धीरे-धीरे करो ।
गुल समझ गयी गुलफाम उसकी मदद नहीं करना चाहता है । गुल ने कुछ नहीं कहा , वो उसी लगन और मेहनत से अपने काम में जुटी रही। वो जानती थी की कोई भी व्यक्ति निस्वार्थ नहीं होता इसलिए लम्बे समय तक उसकी खातिर उसके गुलशन में उसका सहयोग नहीं कर सकता । गुलफाम जैसे मित्र उससे अपेक्षा तो बहुत रखते हैं , लेकिन उसके लिए निस्वार्थ रूप से सहयोग नहीं कर सकते। समय बीतता गया और गुल अपने काम में वापस व्यस्त हो गयी । फूलों का रंग गहरा न सही , बड़ा आकार न सही , लेकिन वो अपनी बगिया में फूल खिलाती रही और लोग चुन-चुन कर ले जाते रहे।
कुछ समय बाद एक दिन अचानक सुबह उठी तो देखा गुलशन के सारे फूल बहुत ही बड़े-बड़े और गहरे रंग के हो गए हैं । और बहुत ही सुन्दर सुगंध से पूरा गुलशन गमक रहा है । गुल आश्चर्यचकित हो गयी , आस पास देखा तो कोई नहीं था । अब तो ये रोज़ का ही नियम हो गया था , गुलशन के फूलों का रंग , आकार और खुशबू बढती ही जा रही थी। गुल बहुत प्रसन्न रहने लगी । कोई अनजाना निस्वार्थ होकर मदद कर रहा था और अनेकों जरूरतमंदों की मदद में गुल का सहयोग भी कर रहा था।
गुल की इच्छा बढ़ गयी उस अजनबी फ़रिश्ते से मिलने की , लेकिन वो तो चुपचाप अपना काम करके चला जाता था। एक दिन गुल घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गयी । उसने देखा एक छोटा सा गुलिस्तां है वहां और अनेक फूल भी खिले हैं , लेकिन सभी बहुत छोटे आकार के हैं और खुशबू भी नहीं है।
फूलों से बेहद प्यार करने वाली गुल ने उन फूलों को धीरे से सहलाया। देखते ही देखते सारे फूलों का आकर बढ़ गया और उनमें भी सुन्दर सुगंध आ गयी । हर तरफ खुशबू फैलते ही अचानक एक युवक 'इरफ़ान' दौड़ता हुआ वहां आया। उसने गुल को धन्यवाद दिया और कहा -"मेरी बगिया तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी इतने दिनों से । गुल ने पूछा -तुम कौन हो और मुझे कैसे जानते हो? इरफ़ान ने गुल को बताया , मैं ही तुम्हारे गुलशन के फूलों को खुशबू देता हूँ। गुल चौंक गयी पूछा- "तो तुम अपनी बगिया को क्यूँ नहीं सुवासित करते? तुम्हारे पास तो ये अद्भुत हुनर है।
इरफ़ान ने कहा - " नहीं , ये हुनर हम दोनों के ही पास है । लेकिन जब हम अपने लिए करते हैं तो वो स्वार्थ से ग्रस्त हो जाता है इसलिए फूलों में खुशबू नहीं आ पाती , लेकिन जब हम निस्वार्थ होकर किसी गैर के लिए कुछ करते हैं तभी पूरे चमन में ये खुशबू फैलती है।
गुल ने पूछा - " लेकिन तुमने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया , मैं भी तुम्हारी बगिया के लिए कुछ कर सकती । इरफ़ान ने कहा - "यदि मैं तुमसे कुछ मांग लेता तो मैं निस्वार्थ नहीं रह जाता और फिर तुम्हारे गुलशन को सुवासित करने की शक्ति भी जाती रहती , इसलिए मुझे छुपकर ही ऐसा करना पड़ा, और मैं भी दिल ही दिल में तुम्हारे आने का इंतज़ार करता था। जानता था तुम ज़रूर आओगी। मेरा विश्वास अटल था।
उस दिन के बाद से गुल और इरफ़ान ने मिलकर लोगों के लिए फूलों को खिलाना शुरू कर दिया। पहले एक थी , फिर अनेक बगिया हो गयी।
कहानी के पात्र वास्तविक हैं। लेकिन उनके नाम काल्पनिक हैं । रोचकता बढाने के लिए आप यदि गुल , गुलशन , गुलफाम और इरफ़ान को पहचान सकें तो टिप्पणियों का आनंद दोगुना हो जाएगा।
तीन पात्रों को पहचानना आसान है लेकिन जो 'इरफ़ान' को पहचानेगा , वही विजेता घोषित होगा।
आभार।
77 comments:
मन पुलकित हो गया आपकी दिव्य रचना पढ़कर.
रविवार को गुलज़ार करने के लिए आभार.
शुभ कामनाएं.
गुल, गुलशन, गुल्फाम।
कितनी प्यारी रचना है,
बहुत सुन्दर सन्देश देती हुई कहानी है! thanx...
बहुत सुन्दर कहानी है गुल की ।
लेकिन आजकल ऐसे निस्वार्थ काम करने वाले विरले ही होते हैं । फिर भी शुक्र है कि होते तो हैं ।
उस दिन के बाद से गुल और इरफ़ान ने मिलकर लोगों के लिए फूलों को खिलाना शुरू कर दिया। पहले एक थी , फिर अनेक बगिया हो गयी।
.............
श्रीराम उनकी बगिया को सदा पुष्पित और पल्लवित रखें..
सुन्दर कथा मिली आज पढने को..
हमारे देश में बहुत सारे लोगों ने ऐसे काम किये थे जिसका आनन्द हम आज तक ले रहे हैं लेकिन आज कितने लोग ऐसा काम कर रहे हैं...
निस्वार्थ प्रेम की एक अनोखी कहानी प्रस्तुत की है आपने ...इस कथा में रहस्यवाद है और प्रतीकात्मकता ने कहानी को अनेक अर्थ दे दिए हैं। देख रहा हूँ कि आप एक अच्छी कहानीकार भी हैं ...लिखते रहिए।
वाह
हमे तो ये पता है वो गुल आप हैं जो बगिया को सुवासित कर रही हैं।
दिव्या जी बहुत सुन्दर कहानी !आज कल सभी गुल्फाम बनना चाहते है , इरफान कोई नहीं ! दान देकर बताने की प्रथा ज्यादा मसहुर है !
bahut achchi lagi aaj ki baat....
दिव्या जी, सुंदर कथा के माध्यम से 'सत्य' दर्शाया अपने...
डॉक्टर दराल जी ने भी कहा "... लेकिन आजकल ऐसे निस्वार्थ काम करने वाले विरले ही होते हैं । फिर भी शुक्र है कि होते तो हैं... "
भारत में भी अनादिकाल से लोकप्रिय कहानियों के माध्यम से दुर्योधन, रावण आदि को स्वार्थी दर्शाया जाता रहा है, और उनके विपरीत प्रकृति वालों को देवता अथवा परोपकारी कहा गया; जिन्हें, राम, कृष्ण जैसे' पूज्य दर्शाया जाता रहा है...
दिव्या जी बहुत सुन्दर कहानी
गुल, गुलशन, गुल्फाम।
गुल..... फ़ुल को कहते हे.
गुलशन..... बाग को कहते हे,
गुलफ़ाम.... माली को कहते हे? अरे नही नही भवंरे को कहते हे,
ओर इरफ़ान माली या बसंत ही होगा (बसंत रितु)
प्रेरणादायक कहानी ...
गुल निस्वार्थ कर्म है और इरफ़ान निस्वार्थ प्रेम. दोनों की मिलावट दुनिया को जीने लायक बना देती है.
छायावाद और रहस्यवाद मे लिपटी पोस्ट में बस यह पता है कि आप गुल हैं और आपका ब्लॉग महकता गुलशन...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
प्रेरक प्रसंग॥
गुल-गुलशन-गुलफाम तो याद हैं किन्तु इरफ़ान याद नहीं आ रहा...कृपया रहस्य से पर्दा उठाएं...
अच्छी व सुन्दर कहानी, निस्वार्थ प्रेम को प्रस्तुत करती कहानी...आभार...
.
उत्कृष्ट रचना ।
मेरी समझ से इरफ़ान ’इल्म’ यानि कि ज्ञान है.. जो दूसरों के लिये उपयोग में आने पर ही सार्थक हो पाता है ।
[ लेकिन इस अटकल पर भरोसा मत कीजियेगा.. क्योंकि मैं परले दर्ज़े का नासमझ हूँ :-( ]
आप में तो एक सुदृष्ट कहानीकार की प्रतिभा भी है। अपनी बात को सशक्त गुंथन किया है। बधाई!! कथा प्रवाहमय है और प्रतीक सार्थक!! यह ज़ील-गुलशन है,और दिव्य है यह गुल। विषय सारे रंग बने है,आलेख सारे फूल। पाठक सौरभ ग्राहक बनें है,और वाक् स्वतंत्रता रूल। मंड़राते गुलफ़ाम भी देखे,किसे दें बाल-सखा का तूल। इरफ़ान की है आशा, हमें भी बडी अनुकूल। पहचान इस पात्र की देना, मत जाना गुल भूल।
एक अच्छा और प्रेरणादायक लेख लिखने के लिये बधाई हो.
हल्ला बोल: धन्य है वो मानव जिन्होने पवित्र भारतवर्ष मे सनातन धर्म मे जन्म लिया है.
हम तो इनमें खुद को ढूंढते रहे लेकिन कहीं नहीं मिले।
निस्वार्थ प्रेम की एक अनोखी कहानी ......
aaj ki kahani ne mujhe andar tak chhu liya ... main is kahani ko vastwik hi maan rahi hun
bahut hi pyaari rachanaa.aap ki tarah.aaj ki swaarthi duniya ko achcha sandesh deti hui ,badhaai aapko.
:)
सुँदर प्रतीकों से सुसज्जित सुँदर आलेख . इश्वर करे गुल का गुलशन सदा महकता रहे .
असल जिन्दगी की सच्ची कहानी सुन्दर प्रतीकों से सुसज्जित. सारा कुछ एकदम स्पस्ट है , गुल, गुलशन गुलफाम और इरफ़ान पहचाने जा सकते है लेकिन जरूरी नहीं उन्हें सरे आम किया जाये. गुल को बस सुगंध से सरोकार होना चाहिए और फैलने वाली मुस्कुराहटों से .. बधाई दिव्या जी
bahut rochak kahani likhi hai aapne.aur baato hi baaton me niswarth prem ki paribhasha bhi bayaan kar di.aabhar.
सुंदर संदेश के साथ सुंदर कहानी...
WOWW that is the only word came out of my mouth after reading it.
I may be wrong but I guess
gul, gulshan,gulfam and irfan, flowers etc represents different humane feelings like jealousy, love, responsibility, sensibility.
Bhooshan ji ki tippani ko hi meri bhi maan li jaye
aabhar
वाह.. इस पोस्ट को पढ़कर दिल खुश हो गया.. निःस्वार्थ की बात तो बड़ी है पर कहानी भी इसे समझाने के लिए उतनी ही उपयुक्त है...
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
अच्छी कहानी लिखी है आपने ! मेरी उर्दू की जानकारी कुछ कम है , राज भाटिया जी का धन्यवाद जो उन्होंने गुल गुलशन तथा गुलफाम शब्द का अर्थ बताया नहीं तो मै इन शब्दों में ही फंसा रहता | शायद गुल, गुलशन तथा गुलफाम एक दुसरे के पूरक हैं जब तीनो एक साथ मिलते हैं तभी चमन पूरा होता है| वैसे तो .......
कहानी का सुगठित शिल्प देखकर चकित हूं। पूर्वजन्म में आप जरूर ख्यातिलब्ध साहित्यकार रही होंगी।
इस सुंदर कहानी के चार पात्रों में से केवल दो को ही मैं पहचान पाया। गुल का वास्तविक नाम दिव्या है और गुलशन का असली नाम ZEAL है।
गुल गुलशन गुलफाम के बहाने फिर आप एक ह्रदयस्पर्शी रचना लेकर आयी और सोचने पर विवश कर दिया कि ......... एक अत्यंत प्रेरक रचना. आभार.
सही बात...जब तक हम फल को ध्यान में रख कर कर्म करते हैं...वो फल नहीं मिलता जिसकी हम आपेक्षा करते हैं...निस्वार्थ कर्म ही सफलता कि कुंजी है...
कहानी का सन्देश पसन्द आया। कौन क्या है इस बारे में "साइलैन्स इज़ गोल्ड" के सिद्धांत का पालन करूंगा वैसे भी इस कहानी के गुलफ़ाम अक्सर अपने को इस कहानी का इरफ़ान ही समझते हैं।
दिव्या जी, 'कृष्ण' के माध्यम से गीता में भी कहा गया है कि सभी गलतियों का कारण ज्ञान की कमी है... और हिन्दू मान्यतानुसार, अमृत शिव जो शून्य काल और स्थान अथवा आकार से सम्बंधित है, यानि शक्ति रुपी है, केवल वो ही अनंत ब्रह्माण्ड में 'परम ज्ञानी' है... उस महाकाल की 'माया' के कारण उसी के प्रतिरूप मानव को काल 'सतयुग' से घोर 'कलियुग' की ओर चलता प्रतीत होता है,,, जिस कारण शिव का प्रतिरूप होते हुए भी मानव की कार्य क्षमता सतयुग में १००% से कलियुग में 0% तक घट कर, फिर से एक बार १००% पहुँच जाती है, यानि फिर 'सतयुग' आ जाता है ! किन्तु फिर से मानव की कार्य क्षमता घटती चली जाती है, और यह काल-चक्र 'ब्रह्मा के एक दिन में' निरंतर १०८० बार चलता रहता है, जब उसकी उतनी ही लम्बी रात आरंभ हो जाती है जो हमारे १२ घंटे औसतन दिन की तुलना में चार अरब वर्ष से अधिक जाना गया है...आधुनिक वैज्ञानिक भी जान गए हैं कि सौर-मंडल की आयु साढ़े चार अरब से अधिक है, और यद्यपि मानव मस्तिष्क में अरबों सैल हैं, 'सबसे बुद्धिमान' व्यक्ति भी आज उन में से केवल नगण्य सैल का उपयोग कर पाता है...प्रकृति में व्याप्त विविधता को मानव में भी हरेक व्यक्ति की अपनी अपनी विभिन्न ग्रहण शक्ति और रुझान के माध्यम से कभी भी देखा जा सकता है...
सुन्दर और प्रेरक कहानी.
" नाम तो गुल का हो रहा है , फिर मैं अपना योगदान क्यूँ करूँ ? फिर उसने फूलों को छूना बंद कर दिया। उसने गुल से कहा - तुम बहुत ज्यादा फूल खिला रही हो , बहुत तेज़ी से लोग इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं । मैं चाहता हूँ तुम अपना काम धीरे-धीरे करो ।"
एक बात और स्पस्ट हो पाती तो आनंद बढ़ जाता कि
क्या गुल, समाज कल्याण के साथ-साथ गुलफाम के लिए भी कुछ कर पाती थी ?
आखिर गुलफाम का कौन सा स्वार्थ पूरा नहीं हो पा रहा था ?
गुल अपने गुलशन से जुडी हुई थी, गुलफाम गुल से....
जो चीज (गुलशन) कोई (गुल) पसंद करता है उसमे वो अधिक समय और स्नेह देता है, परन्तु
जो (गुलफाम ) उसे (गुल) पसंद करने वाला होता है --- क्या उसकी तरफ उसका ध्यान यदा-कदा ही जाता है ? कहीं इसीलिए तो नहीं, ----वो धीरे काम करने कि बात कर रहा होता है.
अभी इरफ़ान तो एक भला बन्दा लग रहा है, आशा है गुल को उसमे कोई ऐब नहीं नजर आएगा---
खुश रहे गुल, आबाद रहे गुलशन, नेकनीयत बना रहे इरफ़ान.
और गुल उस गुलफाम क़ी अच्छी बातें याद रखें बुरी भूल जाए.
.
कहानी के पात्रों को सबसे पहले पहचाना मीनाक्षी जी ने । उनकी टिप्पणी से आगे आने वाले टिप्पणीकारों को पहचान करने के लिए एक दिशा मिल गयी। लेकिन उत्तर अपूर्ण था।
सुज्ञ जी ने सम्पूर्ण उत्तर दिया। उनके उत्तर में उनकी गहन विवेचनात्मक दृष्टि के दर्शन होते हैं । अपना मस्तिष्क तो सभी पढ़ लेते हैं , लेकिन सुज्ञ जी ने मेरे मस्तिष्क में चल रहे विचारों को चिन्हित कर लिया। फूलों के रंग और आकार को बखूबी पहचाना। पूरे मन से की गयी टिप्पणी के लिए 'सुज्ञ' जी मेरा अभिवादन स्वीकार करें।
महेंद्र वर्मा जी एवं अन्य पाठक जिन्होंने कहानी के भाव और शिल्प को सराहा उनका विशेष आभार , इससे लेखिका का मनोबल बढ़ता है ।
अन्य बहुत से पाठकों ने कहानी के पात्रों को एक वृहत परिपेक्ष्य में देखा जिससे कहानी को व्यापकता मिली है , इसके लिए आप सभी धन्यवाद के पात्र हैं।
अनुराग जी ने एक बहुत सही बात लिखी है की ज्यादातर 'गुलफाम' खुद को 'इरफ़ान' ही समझते हैं।
.
-----------------------
रहस्योद्घाटन -
गुल- कहानी की लेखिका
गुलशन- ब्लॉग ZEAL
फूल-विभिन्न विषयों पर आलेख , कहानी एवं कवितायें।
गुलफाम - वे पाठक जो ब्लौग पर बहुत कम नज़र आते हैं , टिप्पणी लिखकर कोई योगदान नहीं करना चाहते लेकिन पत्र लिखकर लगातार जताते हैं की वे बहुत प्रेम करते हैं और शुभचिंतक हैं. । ऐसे पाठक ब्लॉग पर दो-चार बार ही नज़र आते हैं , लेकिन दो कदम साथ चलकर उनके कदम लडखडाने लगते हैं और वो पलायन कर जाते हैं । इसका कारण है उनका ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार और स्वार्थ।
इरफ़ान - किसी भी ब्लौग पर जो पाठक अपनी सकारात्मक और विवेचनात्मक टिप्पणी से विषय को सार्थकता प्रदान करता है , वही प्रतीकात्मक 'इरफ़ान' है ब्लौग जगत का। उसी प्रकार जो दुसरे की खुशियों को साकार होते देखता है , वही 'इरफ़ान' है। जो दूसरों के सपनों की गरिमा समझता है और उन्हें पूरा करने में सहयोग करता है , वही 'इरफ़ान ' है। 'इरफ़ान' निस्वार्थ है।
गुल और इरफ़ान एक दुसरे के पूरक हैं । क्यूंकि एक दुसरे की अनुपस्थिति में फूल तो थे लेकिन खुशबू नहीं । दोनों का एक दुसरे के प्रति निस्वार्थ समर्पण ही समाज के लिए भी उपयोगी था। इस समर्पण में अपेक्षाएं नहीं थीं। केवल एक दुसरे के सपनों को पूरा होते हुए देखने की तमन्ना में भरपूर योगदान था।
कृपया ध्यान दें - यहाँ 'गुलफाम' और 'इरफ़ान' प्रतीकात्मक नाम हैं , जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं। चूँकि लेखिका स्त्री हैं इसलिए गुलफाम और इरफ़ान [पुल्लिंग नामों से ] स्वार्थी एवं निस्वार्थ लोगों को दर्शाया है ।
.
.
जिस गुलफाम से इस कहानी की उपज हुयी है , उसे तकरीबन २० दिन पूर्व ही बता दिया था की एक कहानी लिखूंगी उस पर । बस कहानी को सकारात्मक दिशा देने में कुछ वक़्त लग गया। उसी गुलफाम पर कुछ दिन पूर्व ये कविता भी लिखी थी.....
Wednesday, May 11, 2011
रूह को सहलाती सुरभित समीर.....[A caressing breeze]
थम गए जिनके हाथ देते-देते , वो साथ क्या चलेंगे
ज़ख़्मी हो गया जिनका अहम् , वो मान क्या देंगे ..
हो जाओ तुम भी शामिल उस कतार में ,
जिनके लिए मेरा प्यार बरसता है ,
इस लेखनी के अंदाज़ से अंगार बरसता है ,
पास मेरे आओगे तो जल जाना तुम्हारा तय है
छुप जाओ , उस भीड़ में , जिनके लिए
मेरा प्यार , बा-अदब , बेज़ार बरसता है।
तुम तो फूलों से भी ज्यादा नाज़ुक हो , प्यार क्या करोगे
हम तो कायल हैं उन झोकों के , जो 'लोहे' को सहला कर गुज़र जाते हैं ।
Posted by ZEAL at 7:51 AM
Labels: caress, zeal
------
यहाँ जिन झोकों का जिक्र है वे भी प्रतीकात्मक 'इरफ़ान' हैं।
उम्मीद है , गुलफान भी इस कहानी को पढ़ रहा होगा और शायद समझे ...स्वार्थ और निस्वार्थ के अंतर को।
------------
अभी भी एक प्रश्न शेष है । 'इरफ़ान' को चिन्हित कीजिये। कहानी में , कहानी के शीर्षक में और इसके पहले वाली ऊपर लिखी गयी टिप्पणी में Clue है।
.
दिव्या जी ,
बहुत सुंदर कहानी है !
गुल,गुलशन,गुलफाम और इरफ़ान इन पात्रोंके
जरिये आप ने जो सन्देश दिया मुझे अच्छा लगा !
मै भी बहुत सारे मनपसंद ब्लॉग पर बहुत कम पहुच पाती हूँ
इसका यह मतलब नहीं की आपकी पोस्ट पढना मुझे अच्छा नहीं
लगता ! दरअसल मुझे इसके लिए बहुत कम समय मिलता है !
हो सके तो माफ़ करना आगेसे नियमित ब्लॉग पर आने की कोशीश
करूंगी :)
उम्मीद है इरफ़ान सबके समझ में आ गया होगा !
.
मेरे लेखों पर आने वाले टिप्पणीकार मुझे कई गुना ज्यादा विद्वत्ता रखते हैं । उनकी सकारात्मक टिप्पणियों से मेरे लेखों [फूलों] को सार्थकता मिलती है। बहुत कुछ सीखती हूँ अपने पाठकों द्वारा ही। उनके बगैर मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है।
---------
प्रिय सुमन जी ,
आप मेरे ब्लॉग की 'इरफ़ान' हैं। ....Smiles....
.
इरफ़ान को चिन्हित कीजिये , आप लोग की इज्ज़त का सवाल है । अन्यथा मुझे ही 'स्पून फीडिंग' करनी पड़ेगी। मेरी अगली पोस्ट 'इरफ़ान' के नाम । तब तक आप लोग कयास लगाइए।
दिव्या जी, बहुत ही खूबसूरत संदेश छिपा है आपकी इस कहानी में
शुरू से लेकर अंत तक आपकी प्रस्तुति ने बांध के रखा ... बधाई ।
निस्वार्थ प्रेम के विषय में बढ़िया आलेख. ''अपने लिए जिए तो क्या जिए '' , " जीना इसी का नाम है '' जैसे गीतों के बोल याद आ रहे हैं , साथ ही बचपन में पढ़ी एक कहानी '' The Selfish Giant " . सचमुच जीना तो है उसी का , जो औरों के काम आया .
पहेली कोई भी बूझ ले, इनाम की हकदार तो आप ही है दिव्या जी !
शुभकामनायें !
देर से पहुँचने के लिए क्षमा चाहता हूँ।
पिछले पाँच दिनों से हम इस गुलशन पर आते रहे, यह देखने के लिए कि कौनसा नया गुल खिला है।
आज अचानक एक नया गुल खिला हुआ देखकर प्रसन्न हो रहा हूँ।
आप गुल का रोल अदा करती रहें।
इर्फ़ान अपने आप मिल जाएंगे।
आप तो खुशनसीब हैं। आपके गुलशन में जितने इर्फ़ान नजर आ रहें हैं वे कई और गुलशनों में नज़र नहीं आते।
शुभकमानाएं
जी विश्वनाथ
मदन शर्माजी,
मेरी भी उर्दू की जानकारी कम है।
कई बार शब्दकोश की आवश्यकता पडती है।
आशा करता हूँ कि यह कडी उपयोगी साबित होगी
http://www.employees.org/~daftary/urdu.html
इसमें आप उर्दू के शब्द रोमन लिपी में टाइफ करके अर्थ प्राप्त कर सकते हैं
गुल को gul लिख सकते हैं
गुल के साथ, उसी पन्ने में गुलदस्ता, गुलसिताँ, गुलज़ार, गुलबदन, गुलाब, गुलछी, और गुलशन का अर्थ का पता चला
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
इरफ़ान उवाच -
"...लेकिन जब हम निस्वार्थ होकर किसी गैर के लिए कुछ करते हैं !"
उत्कँठा ---
यह विरोधाभास क्या केवल दिखावा मात्र है ?
.
@--आधुनिक वैज्ञानिक भी जान गए हैं कि सौर-मंडल की आयु साढ़े चार अरब से अधिक है, और यद्यपि मानव मस्तिष्क में अरबों सैल हैं, 'सबसे बुद्धिमान' व्यक्ति भी आज उन में से केवल नगण्य सैल का उपयोग कर पाता है...प्रकृति में व्याप्त विविधता को मानव में भी हरेक व्यक्ति की अपनी अपनी विभिन्न ग्रहण शक्ति और रुझान के माध्यम से कभी भी देखा जा सकता है...
JC ji ,
So true !....Your comments leave me speechless.
.
अमर कुमार जी ,
आपका प्रश्न कुछ स्पष्ट नहीं हुआ । विरोधाभास कहाँ दिखा आपको , कुछ समझ नहीं आया...कृपया स्पष्ट करें।
बहुत ही सुन्दर संदेश देती यह प्रस्तुति ।
विश्वनाथ जी ,
उर्दू का बहुत ज्यादा ज्ञान तो मुझे भी नहीं है , सिवाय दो चार शब्दों को छोड़कर। यहाँ पर जो नाम मैंने लिए हैं , बस 'संज्ञा' के तौर पर इस्तेमाल किये हैं। गुलफाम और इरफ़ान नाम बस प्रतीकात्मक हैं।
एक बात और स्पस्ट हो पाती तो आनंद बढ़ जाता कि
क्या गुल, समाज कल्याण के साथ-साथ गुलफाम के लिए भी कुछ कर पाती थी ?
आखिर गुलफाम का कौन सा स्वार्थ पूरा नहीं हो पा रहा था ?
गुल अपने गुलशन से जुडी हुई थी, गुलफाम गुल से....
जो चीज (गुलशन) कोई (गुल) पसंद करता है उसमे वो अधिक समय और स्नेह देता है, परन्तु
जो (गुलफाम ) उसे (गुल) पसंद करने वाला होता है --- क्या उसकी तरफ उसका ध्यान यदा-कदा ही जाता है ? कहीं इसीलिए तो नहीं, ----वो धीरे काम करने कि बात कर रहा होता है.
अभी इरफ़ान तो एक भला बन्दा लग रहा है, आशा है गुल को उसमे कोई ऐब नहीं नजर आएगा---
खुश रहे गुल, आबाद रहे गुलशन, नेकनीयत बना रहे इरफ़ान.
और गुल उस गुलफाम क़ी अच्छी बातें याद रखें बुरी भूल जाए।
May 30, 2011 9:25 AM
------------------
Ravikar जी ,
आपने बहुत ही सार्थक प्रश्न पूछे हैं। अच्छा लगा ये देखकर की आपको सत्य जानने की उत्कंठा है।
प्रश्न-१---क्या गुल, समाज कल्याण के साथ-साथ गुलफाम के लिए भी कुछ कर पाती थी ?
उत्तर-1-- गुल जो भी करती थी वो समाज के लिए होता था और गुलफाम भी समाज का ही एक हिस्सा है इसलिए गुल द्वारा उगाये हुए फूलों का लाभ गुलफाम भी लेता था। यही गुल का योगदान था गुलफाम के लिए । इसके अलावा गुलफाम की भी एक बगिया थी , जिसको सुवासित करती थी गुल । ये गुल का व्यक्तिगत योगदान होता था गुलफाम के लिए।
लेकिन दुर्भाग्य देखिये की एक दिन गुलफाम ने अपने ही हाथों से अपनी बगिया उजाड़ दी। उसने अपने सारे ब्लौग डिलीट कर दिए,। गुल को बहुत दुःख हुआ। जो अपने लगाए बाग़ को ही उजाड़ सकता है , वो भला दुसरे के बाग़ की एहमियत क्या समझेगा और सुवासित क्या करेगा ?
.
आप तो कथा लिखने में भी सुयोग्य हैं!
बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने!
.
प्रश्न २--आखिर गुलफाम का कौन सा स्वार्थ पूरा नहीं हो पा रहा था ?
उत्तर-- गुलफाम चाहता था की गुल पूरी दुनिया के लिए फूल उगाना छोड़ दे और केवल उसी की होकर रहे । जो समय वो गुलशन की देख-भाल में लगाती है , वो समय सिर्फ गुलफाम को मिले। गुलफाम का यही स्वार्थ गुल से पूरा नहीं हो पा रहा था।
लेकिन गुल को उसकी लालच पसंद नहीं आती थी । वो गुलफाम की खातिर अपनी बगिया से फूल चुनने वालों को निराश नहीं करना चाहती थी। गुल के लिए उसका 'गुलशन' ही जीवन का ध्येय बन गया है और वो उसी के माध्यम से आम जनता की सेवा करना चाहती थी । किसी की निजी संपत्ति नहीं है गुल । गुलफाम की यही अपेक्षा पूरी नहीं होती थी और इसी बात से निराश होकर वह गुल से द्वेष रखने लगा।
गुल किसी की न होकर भी सबकी है । जो भी गुल के गुलशन से द्वेष रखता है वो मानव-हित के खिलाफ है और गुल को कभी नहीं पा सकता।
.
.
@---और गुल उस गुलफाम क़ी अच्छी बातें याद रखें बुरी भूल जाए।
उत्तर--बातें अच्छी हो या बुरी , गुल उन्हें भूलती नहीं कभी , बल्कि अपने गुलशन की मिटटी में सकारात्मकता की खाद देकर , उससे पुनः कोई बहुरंगी मनोवैज्ञानिक 'फूल' खिलाकर चुनने वालों के लिए प्रस्तुत कर देती थी।
@---अभी इरफ़ान तो एक भला बन्दा लग रहा है, आशा है गुल को उसमे कोई ऐब नहीं नजर आएगा---......
इरफ़ान में कोई ऐब ही नहीं है , वो निस्वार्थ है।
@----खुश रहे गुल, आबाद रहे गुलशन, नेकनीयत बना रहे इरफ़ान.....
शुभकामनाओं के लिए आपका धन्यवाद।
.
बहुत प्रेरक सन्देश देती सुन्दर पोस्ट..
बहुत ही प्रेरक और प्यारी सी रचना
अरे! इतना विस्तारपूर्वक शंका-समाधान करना और इतनी जल्दी,
(१)
अहो भाग्य गुल !
अतुलनीय-अतुल
प्रफुल्लित गात्र
मन अतिशय प्रफुल्ल
(२)
गुल का एक अर्थ
अब न होगा व्यर्थ
"कोयले का अंगारा"
बुरा विचार सारा
जलाने में समर्थ
गुल का एक अर्थ
बहुत ही सुन्दर,उद्देश्यपरक और चिंतनपरक कहानी
मनमोहक लगी .....
पात्रों की व्याख्या ने और भी रुचिपूर्ण बना दिया
पहले तो दिव्या जी बहुत धन्यवाद जो आप ने हिंदी में ब्लॉग लिखा और आपने जो अपने ब्लॉग पर इंडिया के झंडे का चलचित्र लगाया है
और आपकी रचनाये भी बहुत अच्छी लगी आज मैने आपका ब्लॉग देखा जो मुजहे बहुत ही पसंद आया ! में आपको एक सलाह देना चाहता हू की आप अपने ब्लॉग के फॉण्ट आकार बड़ा कर ले ताकि जो लोग आपके ब्लॉग को पढे वो अपनी आखो पर जायदा जोर न डाले ! आज हिंदी ब्लोगिंग को बड़ा महत्व मिलता जा रहा है व कई लोग आते है ब्लॉग पढने जिनमे कुछ बहुत उम्र वाले भी होते है जो सायद छोटे फॉण्ट को देखते समय अपनी आखो पर जायदा जोर डालते है सायद यही सोचकर मैंने आपसे यह कहा !
मुजहे आपको सालाह नहीं देना चाहिए क्यों की में आपसे उम्र में काफी छोटा हू !पर मुजहे ऐसा लगा एक और चीज़ जो आपके ब्लॉग को इमप्रोव कर सके सो मैने यह कहा !
आप लोग कभी इस ब्लॉग पर भी आये blog
:)
mugdh huee lekhan shailee par .
gul ke is gulshan ka har-ek 'gulfam'.....'irfan'
ko salam........
nadi ke jal ka bahaw......hamesha dhalan ke taraf hi hota hai.....lekin oos jal me dhara ka pravah
......oosme aaye rookavat hi paida karta hai.....
bakiya, apke guruta, gambhirta evam shresthta par bal-man ki samvedanshilta....sahajta evam sarlta apna adhikar kar baithta hai...........
mitra sugya ne man mohne wali baat kahi.......
hamari hardik iksha ke 'ye gul...gulshan.......
gulfam/irfan se bhari rahe........
pranam.
अब आपने कथा पर से रहस्योद्घाटन कर ही दिया है तो कहने को कुछ बचता नहीं ... जहाँ तक आपकी लेखनी का सवाल है तो उसमे काफी हुनर है ... और दिन व दिन निखारते जा रही है ... शुभकामनायें !
I have just become a follower of your blog.
Regards
GV
दूसरों के बारे में सोचने की शिक्षा देती हुई एक सुन्दर कहानी .
.
मिलिए इरफ़ान से ।
http://zealzen.blogspot.com/2011/05/ideal-lover.html
.
बहुत अच्छा लगा पढ़कर ...प्रतीकों के माध्यम से एक विषय को आपने बखूबी प्रस्तुत किया । पहले अगर टिप्पणी की होती तो मैं उत्तर नहीं दे पाता आपके प्रश्नों का । पर अब तो सब समझ में आ गया । बहुत रोचक और विचारणीय ।
Post a Comment