Monday, May 30, 2011

आदर्श प्रेमी --An Ideal lover -- [गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले.----चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले]

गुकी कहानी में 'इरफ़ान' को कोई नहीं चिन्हित कर सका , क्यूंकि इरफ़ान एक काल्पनिक पात्र हैवो एक 'आदर्श प्रेमी' है, जो इस धरा पर नहीं होते लेखिका ने एक 'आदर्श प्रेमी' की कल्पना की है जो स्वार्थ से रहित है और बिना किसी अपेक्षा के नायिका के सपनों को सच बनाने में पूरे समर्पण के साथ जुटा है। वो गुल के सपनों को साकार होता देखना चाहता है। वो सामने भी नहीं आना चाहता , क्यूंकि वो जानता है की सामने आकर वो स्वार्थ से युक्त हो जाएगा। उसके अन्दर भी अपेक्षाएं पैदा हो जायेंगी और अपेक्षाएं इंसान को कमज़ोर बना देती हैं।

एक अच्छे , संस्कारवान , सुहृदय, दयालु और प्रेमी-ह्रदय वाले लोग तो कभी कधार मिल भी जायेंगे , लेकिन एक आदर्श प्रेमी कभी नहीं देखा। अब आप पूछेंगे की आदर्श प्रेमी के सर पर सींग होते हैं क्या ? तो बता दूँ की कैसे होते हैं आदर्श प्रेमी ....

  • ये ,दो कदम चलकर आपका साथ नहीं छोड़ते। एक बार आपको अपना समझ लिया तो पूरी उम्र आपका साथ निभाते हैं।
  • ये स्वार्थ से पूर्णतया रहित होते हैं।
  • ये जिससे प्रेम करते हैं , उससे कोई अपेक्षा नहीं रखते।
  • एक बात-बात पर बुरा नहीं मानते।
  • द्वेष नहीं रखते।
  • अपने मित्र का मनोबल नहीं तोड़ते।
  • किसी भी परिस्थिति में दिल नहीं दुखाते।
  • अपने मित्र की ख़ुशी में खुश और दुखों में दुखी होते हैं।
  • उनका जीना मरना दोनों अपने मित्र के लिए ही होता है।
  • हर परिस्थिति में साथ निभाते हैं।
  • इनका प्यार बिना शर्तों के होता है.

मुझे लगता है , इस पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति स्वार्थ से रहित नहीं है। और एक व्यक्ति के पवित्र मन को जो भाव बहुत जल्दी दूषित करते हैं , उसमें से प्रमुख हैं ईर्ष्या और अपेक्षा। इन दोनों में से एक भी भाव ह्रदय में जाने पर 'प्रेम' अपना स्थान छोड़ देता है।

इसीलिए कहा है की सज्जन व्यक्ति तो बहुत मिलेंगे, आखिर ये दुनिया टिकी ही सज्जनों की सज्जनता पर है। सज्जन व्यक्ति सुसंस्कारित , सभ्य और शिष्टाचार युक्त होते हैं , लेकिन ये एक आदर्श प्रेमी नहीं होते।

आदर्श प्रेमी होते ही नहीं हैं ये सिर्फ कल्पना में ही हो सकते हैं।

एक आदर्श प्रेमी की झलक देखिये मेरे इस पसंदीदा गीत में मिलिए मेरे 'इरफ़ान' से।

I feel so romantic in listening his voice.

आभार

61 comments:

आशुतोष की कलम said...

आदर्श प्रेमी की क्या सुंदरा ब्याख्या की आप ने..
गीत नहीं सुन पाया नेट की गड़बड़ी से मगर मेहँदी हसन साहब का है तो भावयुक्त ही होगा

SANDEEP PANWAR said...

ये सारे गुण तो मुझ में है, मेरी पत्नी मुझे बताती है,

समय चक्र said...

आदर्श प्रेमी और आदर्श पति ...बढ़िया प्रस्तुति वाह

Jyoti Mishra said...

So true... people like Irfan can never exist. He is representing the height of perfectionism which is almost unattainable.

G Vishwanath said...

आज दोपहर से पहले आपका follower बना था।
आपने कहा था कि आपका latest post सभी followers के Mailbox में तुरन्त पहुँच जाता है।
यह पोस्ट ७:०५ pm को छ्पा था।
अब समय है ८:४५ pm
आपका follower बनने के बाद भी अब तक यह पोस्ट मुझे ई मेल द्वारा प्राप्त नहीं हुआ है।
कारण?
आशा करता हूँ आगे की पोस्टें समय पर मुझे मिल जाएंगे।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

राज भाटिय़ा said...

इरफ़ान... मैने लिखा तो था कि यह बसंत होगा या माली , जो बिना लालच मे गुल की देख भाल करता हे, प्यार करता हे, एक सच्चा प्रेमी, जो गुल को देख कर उसे बडता फ़ुलता देख कर उस की खुशी मे खुश होता हे...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बिल्कुल अपेक्षायें न रखना तो बहुत मुश्किल होता है..

डा० अमर कुमार said...

.I hope this utopian definition stands true as for vice verca.

It impresses.

Bharat Bhushan said...

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले.....वाह....गीत बहुत सुंदर लगा. 'इर्फ़ान' का अर्थ मेरी जानकारी के अनुसार 'विवेक' होता है. कहानी कहने की आपकी कला प्रभावशाली रही.

डा० अमर कुमार said...


@ Bhushan Ji
इरफ़ान मायने.....
यो ई बात ते मैं भी कह्या किया सै .
याने विवेक्क बोल्लो, ज्ञान बोल्लो.. बात ते एकई सै !

Vivek Jain said...

प्रेम के भावों से ओत-प्रोत , तब भी इसी दुनिया का,बहुत सुन्दर लेख,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Sunil Kumar said...

प्रेम में जो आदर्श हो वह आदर्श प्रेमी चाहें आम ज़िंदगी में कुछ कमी भी हो मेरा तो यही विचार है मेहँदी हसन साहेब की यह गज़ल तो मेरी पसंदीदा है |

shikha varshney said...

आदर्श प्रेमी ...ये जैसे अपने बताये हैं कल्पना में ही हो सकते हैं :)

DR. ANWER JAMAL said...

yh adarsh premi ki nahin balki robot ki paribhasha hai. jaldi hi aise robot aane wale hain jo pyar bhi karenge aur in guno se yukt honge.

दिवस said...

दिव्या दीदी आप सच में...गज़ब हैं...आपका दृष्टिकोण बेहद शानदार है...
हाँ यह सच है कि इस संसार में निस्वार्थ कोई नहीं है...सभी का कुछ ना कुछ स्वार्थ तो होता ही है...मुझे लगता है कि यह मनुष्य शरीर की कुछ सीमाएं हैं जिन्हें मनुष्य पार नहीं कर सकता...यहाँ तक कि भगवान् विष्णु ने भी जब राम और कृष्ण के रूप में धरती पर मानव अवतार लिया तो उनसे भी कुछ गलतियां हुईं...यही तो मानव शरीर की सीमाएं हैं...मनुष्य सम्पूर्ण हो ही नहीं सकता...सम्पूर्ण तो केवल ईश्वर ही है...
रही बात स्वार्थ की तो मानव तो जीवन भी स्वार्थ के कारण ही जीता है...किसी का स्वार्थ उच्च कोटि का होता है तो किसी का निकृष्ट...जैसे कि आचार्य चाणक्य कह गए कि "मेरा प्रिय दृश्य वह है जहाँ सभी दिशाओं में युद्ध चल रहा हो...हर ओर मारकाट मची हो...लहुलुहान शव यहाँ वहां पड़े हों..."
किसी ने उनसे पूछा कि "आचार्य आप तो एक ब्राह्मण हैं, ऊपर से एक शिक्षक भी...आपको तो शान्ति की बात करनी चाहिए, किन्तु आप तो हर जगह युद्ध चाहते हैं, ऐसा क्या?"
इस पर आचार्य का कहना था कि मैं जानता हूँ कि युद्ध में कई निर्दोषों को अपने प्राण गवांने पड़ेंगे...किन्तु कभी कभी शान्ति स्थापित करने के लिए भी युद्ध करना पड़ता है...इसी लिए मुझे युद्ध से प्रेम करना पड़ेगा...मैं जानता हूँ कि मुझे मेरा पूरा जीवन इसी प्रकार के युद्ध को देखने में बिताना है, तो मैं क्यों इससे घृणा कर तिल तिल कर मरता रहूँ...इससे तो अच्छा है कि मैं युद्ध से ही प्रेम करने लग जाऊं..."
मुझे लगता है कि यहाँ आचार्य का स्वार्थ उच्च कोटि का ही था...एक ओर जहाँ सिकंदर के आक्रमण से भारत भूमि परतंत्र हो चुकी थी, वहीँ भारतीय जनपद आपस में ही लड़ रहे थे...ऐसे समय में भारत को एक छत्र के नीचे लाने के लिए सिकंदर के साथ साथ संकीर्ण जनपदीय मानसिकता से त्रस्त राजाओं का विनाश भी आवश्यक था...और इसके लिए युद्ध एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभर कर आना ही था...
तो स्वार्थी तो सब हैं...अंतर केवल उनके स्वार्थों के प्रकार में है...
खैर हम इरफ़ान को नहीं पहचान सके...दरअसल आपकी पारखी नज़र को नहीं पहचान सके...
यह गीत मेरे पास भी है...मुझे भी बहुत पसंद है...
आपकी इस कहानी द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिला...तभी तो कहा कि आप सच में "गज़ब" हैं...
सादर आभार...
आपका बन्धु...
दिवस दिनेश गौड़...

Udan Tashtari said...

हमारे मोहल्ले में इतने तो नहीं मगर इसका ६०% के एक थे, पूरा मोहल्ला उनको पीठ पीछे लल्लु राम पुकारता था...उसी से डर के हमने इस दिशा में कभी कदम ही नहीं उठाये. न कभी ललक हुई.

जैसे हैं, स्वीकृत है उस जगह, जहाँ होना चाहिये, विवाह भी हो चुका है उन्हीं से तो मान्यता प्राप्त भी कहलाये और सबसे ज्यादा खुशी की बात कि प्रसन्न भी हैं... :) :)

प्रवीण पाण्डेय said...

हम सदा ही आदर्श और यथार्थ के बीच एक पुल बनाते रहते हैं। जितना यथार्थ की ओर बढ़ेंगे उतना स्थायित्व भी आता है। बड़ा ही सुन्दर गीत।

ashish said...

आदर्श प्रेमी की सुँदर व्याख्या , इतने सारे गुण चाहिए ऐसा प्रेमी बनने के लिए .सही कहा आपने ये केवल एक परिकल्पना हो सकती है .

प्रवीण said...

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yeh adarsh premi ki nahin balki robot ki paribhasha hai. jaldi hi aise robot aane wale hain jo pyar bhi karenge aur in guno se yukt honge.

अनवर जमाल साहब से पूरी तरह सहमत, ऐसा रोबोट बनने तक इस तरह का प्रेमी-प्राणी चाहने वालों के लिये 'कुत्ता' एक अच्छा विकल्प है... :)



...

अजित गुप्ता का कोना said...

प्रत्‍येक व्‍यक्ति के आदर्श में भी अन्‍तर होता है। किसी गाँव की अनपढ़ महिला से पूछो कि उसका आदर्श पति या प्रेमी कैसा हो, तो उसका उत्तर अलग होगा और शहरी महिला का अलग। समाज, परिवार और व्‍यक्तिगत मानसिकता से आदर्श निश्चित होते हैं।

Unknown said...

आपकी बेबाक लेखनी ने गुल गुलशन और गुलफाम सहित इरफ़ान भी दिखा दिए , हमारे,आपके,सबके अन्दर बैठे है गुलफाम भी इरफ़ान भी, इस सभ्य समाज में ज्यादातर गुलफाम ही उभरते है , इरफ़ान तो छिपे ही होते है या लगभग नदारत. ये विडंबना ही है की किसी गुल ने कभी नहीं कहा मुझे इरफ़ान मिल गया. इस बेचैन समाज में सभी गुलफाम ही है इरफ़ान तो भगवान् हो गए मूर्तियों में बैठे है .

ZEAL said...

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राज भाटिया जी ....आपने बिलकुल सही अनुमान लगाया। बहुत अच्छा लगा।

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रविकर said...

सन १९७८ से ही इस (काल्पनिक ) चक्कर में फंसे थे,
१९९९ की जनवरी में फिर से आवाज दी ----
आज फिर याद कर रहा हूँ----------


इस पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति स्वार्थ से रहित नहीं है।
अब यह स्वार्थ व्यक्तिगत, प्रेमी-युगल का ,
सामाजिक, राष्ट्रीय अथवा वैश्विक भी हो सकता है,


वायदा किया था अठहत्तर में पर
आज निन्यानवे का नया फेर है
छोड़ छुट्टा दिया न रहा काम का
अब समय-सेर के सिर सवा सेर है

था दिया के तले अँधेरा बहुत
आज ऊपर अँधेरा दिया के किया
मै समझता रहा बीस बस बीस में
टाल इक्कीस में, क्या किया कर दिया

दृष्टि दोषी हुई दोष आया नजर
पास की चीज पर ये हुई बे-असर
परन्तु दूर-दृष्टि अभी भी सही
ताकती जो रहीं ये तुम्हारी डगर

अब न आये तो आओगे कब तुम सनम
कितने पतझड़ गए,कितने मौसम गुजर
दिन का यौवन ढला, धूप मद्धिम हुई
तेज 'रविकर' घटा, कब तक ताकूँ डगर

Irfanuddin said...

very true....is quite impossible to find IDEAL LOVERS.... but we can certainly find honest n genuine lovers some times....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आदर्श प्रेमी का सटीक विश्लेषण किया है आपने...
किन्तु .....
‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.
कभी ज़मी तो कभी आसमां नहीं मिलता.’
शायद यही प्रेमी और आदर्श प्रेमी के बीच का अन्तर है...

prerna argal said...

aadarsh premi ka anootha vislesan.divyaji aap bahut hi achcha likhtin hai mehandi hasn saab ka madhur geet net ki gadwadi ke karan sun nahi paai.per jarur achcha hi hoga.badhaai aapko.aabhaar

Suman said...

aadrsh premi sirf kalpana me hote hai bilkul sach........

सदा said...

बिल्‍कुल सच कहा है आपने ... बेहतरीन लेखन ।

डॉ टी एस दराल said...

आदर्श प्रेमी होते ही नहीं हैं । ये सिर्फ कल्पना में ही हो सकते हैं।
फिर तो बात ही खत्म । वैसे आदमी इन्सान बन जाये , इतना ही बहुत है । आदर्श इन्सान की क्या ज़रुरत है ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

केवल प्रेमी ही नहीं , दुनिया में कुछ भी आदर्श नहीं है। रसायन शास्त्र में आदर्श गैस का जिक्र आता है, लेकिन वह भी केवल सैद्धांतिक तथ्य है।

मेंहदी हसन साहब द्वारा गाई यह ग़ज़ल उनकी सबसे बेहतरीन ग़ज़लों में से एक है। राग झिंझोटी पर आधारित इस ग़ज़ल को जितनी बार भी मैं सुनता हूं, हर बार नए-नए भाव प्रकट होते हैं। आपका आभार, इसे यहां प्रस्तुत करने के लिए।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


चिट्ठे आपके , चर्चा हमारी

G.N.SHAW said...

दिव्याजी बहुत ही सठिक प्यार के नगमे और फारमूला आपने पेश किया है १ इरफान कितने है देखना है ! यह भी बहुत सुन्दर रही !

मीनाक्षी said...

आदर्श प्रेम और आदर्श प्रेमी की कल्पना एक सुख एहसास से ज़्यादा कुछ नहीं.....अपने परिवार को एक सूत्र में बाँध कर साथ साथ चलते जाना भी आदर्श प्रेम का ही उदाहरण है मेरे विचार में...

सुज्ञ said...

भले आपका इरफ़ान काल्पनिक हो, अथवा 'विवेक-सारथी' का प्रतीक।
किन्तु गुण हैं तो गुण धारक भी हो सकते है। यदि गुण धारण करना असम्भव होता तो यह निस्वार्थ आदि गुण-शब्द प्रचलन में ही न आते।

गुण हमेशा अवगुण धारियों के लिए आलोच्य ही होते है। वे सदैव गुणो का अवमूल्यन कर देनें में ही रत रहते है।

rashmi ravija said...

अगर इतने सारे गुण किसी आदर्श प्रेमिका में हों तो उसे ऐसा आदर्श प्रेमी जरूर मिलेगा...:)
वरना दोनों ही बस कल्पनाओं की ही उपज होंगे.

ZEAL said...

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A comment through mail by Braj kishor ji,

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Braj Kishor to me

show details 10:39 AM (2 hours ago)

लगभग महीने भर बाद मनाली से लोटा. तीन दिन बाद बिहार प्रवास पर हो जाऊँगा.इसलिए आप के पोस्ट से दूर था.

आदर्श प्रेम और मित्र के बारे में मैं भी ऐसा ही सोंचता था, काम के दबाव में सारा कुछ भूल गया था.ऐसा लगा की यह पोस्ट मैंने ही लिखा है.इस से अधिक कुछ नहीं कहने को है मेरे पास .
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. मेरा सिस्टम ठीक नहीं है .coment is not being posted,thus sending by e mail.other friends facing the same problem.It could be posted on your blog by you if you like it.

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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचारणीय लेख ... प्रेम के बीच कहीं न कहीं स्व आ ही जाता है ... .. आदर्श प्रेमी या प्रेमिका ..काल्पनिक ही हो सकते हैं ..

ZEAL said...

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A comment by Bhakuni ji by mail

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P singh to me

show details 9:42 AM (3 hours ago)


एक आदर्श प्रेमी के जितने सारे गुण आपने गिनाये है वो सब एक इंसान में ? असंभव नहीं तो संभव भी नहीं हैं , और यदि किसी प्रेमी में इतने सारे गुणों की आप उम्मीद रखते हैं तो जाहिर है आप की अपेक्षाएं काफी अधिक हैं और प्रेमी महोदय फिर भी एक आदर्श प्रेमी की सभी सर्तों को पूरा कर रहें हैं ,( पता नहीं इंसान की कौन सी श्रेणी में ये लोग आते हैं ) लेकिन एक अच्छे , संस्कारवान , सुहृदय, दयालु और प्रेमी-ह्रदय व्यक्ति ही एक आदर्श प्रेमी की भूमिका निभा सकता है , इसमें कोई संदेह नहीं ..क्योंकि आप ही ने कहा है " आदर्श प्रेमी होते ही नहीं हैं । ये सिर्फ कल्पना में ही हो सकते हैं।" लेकिन कल्पनाओं के पर लगाकर आप कितना फासला तय कर पाएंगे ?, यथार्थ में जो कुछ है वही सत्य है और वही आदर्श है.

क्योंकि इरफ़ान आपका गड़ा हुआ पात्र है अर्थात काल्पनिक प्रेमी है जिसका कोई अस्तित्व नहीं है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है , फिर भला ऐसे काल्पनिक एवं आधार हीन प्रेमी किस काम के ?

अच्छी रही गिल,गुलशन और गुलफाम की यह सीरिज ............
आभार ...................

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aarkay said...

ideal का अर्थ ही है - जो केवल आईडिया में ही अस्तित्व रखता हो. सर्व गुण संपन्न न कोई हो सकता है न मिल ही सकता है. किसी को यदि कोई सभी गुण दोषों के साथ दिल से स्वीकार कर ले, यही सच्चा प्रेम है और सच्चा प्रेमी भी. किसी ने कहा भी है
- शायद 'हाली' ने :

" नेकों को न ठहराइओ बद ऐ फ़र्ज़न्द
इक आध अदा उनकी गर हो न पसंद
कुछ नुक्स अनार की लताफत में नहीं
हों अगर उसमें गले सड़े दाने चंद "
और फिर " जहाँ में और भी ग़म हैं मुहब्बत के सिवा."

बढ़िया आलेख , एक पुरातन, चिरंतन विषय पर.

रविकर said...

आदर्श ??

करेले से मीठा बनाते-बनाते, वो काफी का काढ़ा बनाते रहें
पढ़ते-पढ़ाते बटुकनाथ-जूली सा सम्बन्ध गाढ़ा बनाते रहें
माशूक-आशिक की जोड़ी अनोखी, नए प्रेम-सन्देश लाते रहें
बनें एक दूजे की खातिर बाराती, वे आते रहें गीत गाते रहें

* ये ,दो कदम चलकर आपका साथ नहीं छोड़ते। एक बार आपको अपना समझ लिया तो पूरी उम्र आपका साथ निभाते हैं।
बटुकनाथ-जूली सा
* ये स्वार्थ से पूर्णतया रहित होते हैं।
बटुकनाथ-जूली सा
* ये जिससे प्रेम करते हैं , उससे कोई अपेक्षा नहीं रखते।
बटुकनाथ-जूली सा
* एक बात-बात पर बुरा नहीं मानते।
बटुकनाथ-जूली सा
* द्वेष नहीं रखते।
बटुकनाथ-जूली सा
* अपने मित्र का मनोबल नहीं तोड़ते।
बटुकनाथ-जूली सा
* किसी भी परिस्थिति में दिल नहीं दुखाते।
बटुकनाथ-जूली सा
* अपने मित्र की ख़ुशी में खुश और दुखों में दुखी होते हैं।
बटुकनाथ-जूली सा
* उनका जीना मरना दोनों अपने मित्र के लिए ही होता है।
बटुकनाथ-जूली सा
* हर परिस्थिति में साथ निभाते हैं।
बटुकनाथ-जूली सा
* इनका प्यार बिना शर्तों के होता है.
बटुकनाथ-जूली सा

PM saahibaa ! "don't be angry"

" नाराज मत होना "

लेख का कारण, तनाव हो सकता है
परन्तु, लेख के कारण तनाव नहीं होना चाहिए

गुलशन के फूलों को देखकर आनन्दित हों---
लीक से हटकर की गई टिप्पणियों पर गुस्सा न करें

ZEAL said...

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Ravikar ji ,

मैं गुस्सा नहीं होती , टिप्पणियां आपकी पहचान हैं और मेरे लेख मेरी पहचान हैं । जो जी चाहे लिखिए , आपकी टिप्पणियां आपके मन का दर्पण हैं।

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मनोज कुमार said...

पवित्र प्रेम (आदर्श भी कह सकते हैं) शाश्‍वत सम्‍बन्‍धों का आधार है। शिष्‍ट व्‍यवहार शालीनता से भरा होता है, जबकि दूषित व्‍यवहार अकीर्तिकर होता है।

Bikram said...

We all want that ADARSH premi but do such people exist , I doubt it , In my life experience I am yet to find such a person ..

Here hearts and minds change as we bat our eyelid, we are all so selfish and we want a ADARSH premi when in our own hearts we have some gile..

It is said that we meet the people the way we are, We are wrong we meet wrong people...

and its not jsut about PREMI it can be a PREMIKA too.. gone are those ideals of the yeasteryears where promises meant something , the words coming out of the mouth meant something , Now love is also a STEP whereby we can take another step upwards ..

I hope and prey we all meet the one we want God bless ..

Bikram's

vandana gupta said...

आज आदर्श ही नही है तो आदर्श प्रेमी कहाँ मिलेंगे…………बिल्कुल सही कहा आज सब काल्पनिक ही रह गया है।

ZEAL said...

कृपया confuse न हो आप लोग... यहाँ आदर्श प्रेमी अथवा आदर्श प्रेमिका , दोनों का ही तात्पर्य है। मेरे लेखों में gender discrimination नहीं रहता। --आभार।

ZEAL said...

कृपया confuse न हो आप लोग... यहाँ आदर्श प्रेमी अथवा आदर्श प्रेमिका , दोनों का ही तात्पर्य है। मेरे लेखों में gender discrimination नहीं रहता। --आभार।

प्रतुल वशिष्ठ said...

"आदर्श प्रेमी होते ही नहीं हैं। ये सिर्फ कल्पना में ही हो सकते हैं।"
@ ये वाक्य कुछ ऐसा ही है जैसे दो बच्चे स्कूल जाते हुए बात कर रहे थे :
"भूत होते हैं"
"भूत नहीं होते"
"नहीं, होते हैं, मैंने देखे हैं"
"मेरी मम्मी कहती हैं कि नहीं होते."

दिव्या जी,
क्या किसी भाव विशेष की परिभाषा को अपने सांचों में ही आकार देकर सही करार दिया जाना उचित है? यदि कुछ भाव गोपनीयता में ही अपनी सुरक्षा समझते हों तो उनका गुंठन काहे हटाया जाये?

Unknown said...

प्रतुल जी,

आपने सही कहा, 'नहीं होते' और 'होते है' कहकर दोनो ही बच्चे अपना डर छुपा रहे होते है।

Minakshi Pant said...

थोड़े से शब्दों में बहुत बड़ी बात मैं आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ क्युकी इन्सान बिना किसी स्वार्थ के कोई काम करता ही नहीं और जब तक स्वार्थ है तक तक लोभ और इर्षा का होना लाज़मी है और जब तक इन्सान में ये सब है और प्रेम में सफल हो ही नहीं सकता प्रेम वही सफल है जहां लेने की नहीं सिर्फ देने की चाह हो |
सुन्दर पोस्ट |

JC said...

क्यूंकि प्राचीन काल में योगियों ने भारत में साधना कर गहराई में जा ज्ञानोपार्जन किया, यदि पौराणिक कहानियों में देखें तो यह काल पर निर्भर जाना गया, आदर्श प्रेमी युगल अथवा दम्पति केवल सतयुग में शिव-पार्वती को ही संभव माना गया (पार्वती ने कठोर तपस्या कर शिव को पाया), क्यूंकि तब मानव कार्य क्षमता १०० से ७५% दर्शायी जाती आ रही है 'प्राचीन हिन्दुओं' द्वारा ('इंदु' का अर्थ चंद्रमा होता है!)...

वहीँ घटते हुए, ७५ से ५०% कार्य-क्षमता वाले त्रेता में राम-सीता, जहाँ शक्तिशाली राजकुमार पुरुषोत्तम राम सिद्ध धनुर्धर थे और उनके शिव के धनुष को तोड़ स्वयम्बर द्वारा चुनी गयी बांये हाथ से शिव का धनुष उठाने की क्षमता रखने वाली पत्नी, सीता, पिता जनक को धरती के नीचे पड़े घड़े में हल चलाते मिली थी! और यद्यपि रावण की लंका से लौटने के बाद उन्होंने अग्नि परीक्षा पास भी की थी, उन्हें काल के प्रभाव से शारीरिक दुःख झेलना पड़ा !

और ५० से २५% वाले द्वापर में अर्जुन भी राम समान धनुर्धर थे, और द्रौपदी को 'हवन-कुण्ड की अग्नि' से जन्म लेते दर्शाया जाता आ रहा है (पृथ्वी के भीतर सदैव पिघली चट्टानें हैं जो ज्वाला-मुखी के विस्फोट होने पर बाहर आते सब जानते हैं, और हिमालय श्रंखला भी धरती के भीतर ही उत्पन्न हुई !) , और यद्यपि अर्जुन ने राम समान तीरंदाजी द्वारा उनका हाथ जीता था, पांडवों की माँ के कहने पर द्रौपदी को पांचो पांडवों का पत्नी बनना स्वीकर करना पड़ा, और सभी जानते हैं कि उन्होंने कितनी तकलीफ सही, क्यूंकि 'महाभारत' की कहानी सबने पढ़ी या देखी ही होगी !...

उपरोक्त कथा कहानियाँ पहले तो सांकेतिक भाषा का उपयोग दर्शाती हैं 'देवताओं' का काल के साथ उत्पत्ति का, अमृत प्राप्ति का, दूसरी ओर काल अथवा युग के अनुसार आदर्श प्रेमी अथवा दम्पति का होना भी संभव दर्शाती हैं, किन्तु उनके मानदंड अलग अलग हैं...वर्तमान को २५ से ०% कार्य-क्षमता वाला 'कलियुग' माना जाता है, जिस कारण आदर्श प्रेमी अथवा दम्पति मिलना संभव तो है... किन्तु उसका निर्णय भी 'शिव' समान व्यक्ति के हाथ में ही होगा (जो विष पीने की क्षमता रखता हो !)

Sawai Singh Rajpurohit said...

आदरणीय डॉ.दिव्याजी,
आदर्श प्रेमी को बहुत अच्छा परिभाषित किया है आप ने
बहुत सुन्दर अच्छी प्रस्तुति आपका विश्लेषण बहुत सटीक है .आपने सही लिखा है!

दिगम्बर नासवा said...

जो भी प्रेम करे वो आदर्श है .... चाहे प्रेम या पति ... काहे को नापें उसेके प्रेम को ...
पर ये भी सच है की आज कर आदर्श प्रेम मुश्किल से मिलता है ...

ZEAL said...

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JC जी ,

आपने जितनी खूबसूरती से विषय को समझा है, और समझाया है अपनी टिप्पणी द्वारा, उतना बेहतर तो मैं कभी समझा ही नहीं सकती थी। संभवतः आपकी टिप्पणी से मदद मिलेगी अन्य पाठकों को ये समझने में की आदर्श प्रेम 'असंभव' है। क्यूंकि कोई भी व्यक्ति स्वार्थ और अपेक्षाओं से रहित नहीं है ।

'सत्व' के साथ जब 'रज' और 'तम' भी है एक मनुष्य में तो फिर प्रेम 'आदर्श' कैसे हो सकता है।

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@--केवल प्रेमी ही नहीं , दुनिया में कुछ भी आदर्श नहीं है। रसायन शास्त्र में आदर्श गैस का जिक्र आता है, लेकिन वह भी केवल सैद्धांतिक तथ्य है।

महेंद्र वर्मा जी ने बहुत सुन्दर उदाहरण से अपनी बात कही है..


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@--प्रेम वही सफल है जहां लेने की नहीं सिर्फ देने की चाह हो ....

मीनाक्षी पन्त जी ने बहुत सटीक बात लिखी है।

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ZEAL said...

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किसी को चाहे जितना भी लगता हो की वे आदर्श हैं लेकिन अपने बारे में मैं एक बात confess करना चाहती हूँ की मैं एक आदर्श-इंसान नहीं हूँ । मैं एक अच्छी बेटी , अच्छी बहन , अच्छी पत्नी और अच्छी माँ हूँ लेकिन आदर्श बेटी , बहन , पत्नी अथवा माँ नहीं हूँ । परिवार एवं मित्रों से प्रेम करती हूँ लेकिन उस प्रेम के साथ थोडा खट्टा भी है और थोडा मीठा भी । आदर्श जैसा कोई तमगा नहीं।

'आदर्श' होने का बोझ अपने ऊपर मुझसे नहीं ढोया जाएगा । अच्छी हूँ पर 'आदर्श ' नहीं ।

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चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

गुल, गुलशन, गुलिस्तान... सभी में प्यार की समीर :)

Arvind Jangid said...

आप किसी के लिए आदर्श भले ही ना हो मगर यदि नेक इंसान हैं तो फिर जरुरत किसकी है...आभार.

Vaanbhatt said...

आदर्श तो पाने कि कोशिश की जाती है...तब कहीं ९०-९५% करीब पहुँच पाते हैं...लेकिन आदर्श की कल्पना भी कम नहीं है...अगर हम कुछ खोज रहे हैं तो...वो कहीं ना कहीं होगी जरुर...तलाश जारी रखिये...

शरद कोकास said...

फैज़ की इन पँक्तियों ने आकर्षित किया ।
आदर्श प्रेमी की परिभाषा फैज़ ने भी इसी गज़ल में दी है ।
" मकाम फैज़ कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कू-ए-यार ( यार की गली ) से निकले तो
सू-ए-दार ( सूली की ओर ) चले "

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है .
कृपया पधारें

Pallavi saxena said...

यहाँ में आप की बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि आदर्श प्रेमी वास्तविकता में नहीं होते यह केवल कल्पना मात्र है,लेकिन कल्पनाओ के सहारे जिन्दगी नहीं चल सकती जिन्दगी का नाम सचाई है और यदि आप कल्पनाओ में जीना चाहते हैं तो इसका मतलब यह हुआ की आप सच का सामना ही नहीं करना चाहते क्यूंकि साचे प्यार का अर्थ तो वह होता है की यदि आप किसी से प्यार करने तो जो जैसा है उसे उसकी सभी अच्छाइयौन और बुराइयौन के साथ प्यार करें ...

Anonymous said...

Have you ever thought about publishing an e-book or guest authoring on other websites?
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