आज जहाँ देश विदेश में भारतीय शिक्षा पद्धति की प्रशंसा की जाती है , वहीँ क्यूँ नहीं हमारे विद्यार्थी अपनी मिसाल कायम कर पाते हैं विभिन्न क्षत्रों में ? हमारे ज़हीन एन्जिनीर्स , वैज्ञानिक भी अगर कुछ कर पाते हैं तो वो है विदेशों में जाकर।
क्यूँ नहीं अपने देश में रहकर ही कुछ नया और बेहतरीन करने के लिए सक्षम हैं ? क्या हम पंगु हैं ? या फिर यहाँ मिलने वाली सुविधायें उच्च स्तरीय नहीं हैं। या फिर देश के पास पैसा कम है ? या फिर हमारा देश विकासशील की श्रेणी में ही रहना चाहता है? क्या २०२० में सुपरपावर कहलाने के आसार हैं ? क्या शोध नहीं हो रही या फिर शोध पत्रों में भी घोटाले हो रहे हैं और ईमान के साथ शोध कार्य भी बेच दिए जा रहे हैं ?
क्या वजह है , भारतीय वैज्ञानिक विदेशों में जाकर की कुछ बड़ा कर पाने में सक्षम होते हैं ? चाहे वो पर्यावरण की दिशा में, नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता ' राजेन्द्र पचौरी जी' हों अथवा , स्पेस में जाने वाली 'सुनीता विलियम्स ' हों। हम तो प्रसन्न हो लेते हैं की भारतीय हैं , लेकिन क्या उनकी सफलताओं में भारत का योगदान है ?
शिक्षा का स्तर ऊँचा होते हुए भी क्या वजह है की ज़हीन विद्यार्थी competition नहीं निकाल पा रहे हैं। यदि प्रतियोगी परीक्षाओं में चयन हो भी जाता है , तो नौकरी के लिए जद्दोजहद शुरू हो जाती है। आजकल हर जगह प्रवेश में कट- आफ अंक आसमान छू रहे हैं । ७५-८० % अंक लाने वाले विद्यार्थी निराश होते हैं। आखिर इस cut-throat competition में निराश होने वाले deserving विद्यार्थियों के लिए क्या हल है ?
क्या professional courses में सीटें बढायीं जानी चाहिए ? या फिर डॉक्टर , इंजिनियर से हटकर भी सोचना चाहिए । हमारे विद्यार्थियों के लिए कुछ अन्य प्रकार के भी उपयोगी तथा व्यवहारिक पाठ्यक्रमों की वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए।
विश्व के कुल अनपढ़ों में से ३४% केवल भारत में हैं। इस क्षेत्र में भारत अव्वल है। क्या इन्हीं आंकड़ों के साथ हम सुपर पावर बनने के ख्वाब सजा रहे हैं ? आज सर्व शिक्षा अभियान तो चला रही है सरकार, लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर काफी निम्न है। विद्यार्थी को जो मिलना चाहिए , वो नहीं मिल रहा । आखिर क्या वजह है इस गिरते हुए स्तर की , और क्या हल है इसका ?
आजकल कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ते हुए प्राइवेट कालेज भी एक समस्या बने हुए हैं। इसमें 5-star सुविधाओं के साथ विद्यार्थी विद्या-अर्जन कर रहे हैं । लेकिन सरकार से मान्यता प्राप्त न होने या फिर मान्यता के देर-सबेर समाप्त हो जाने के कारण भी यहाँ से शिक्षित विद्यार्थी अपनी डिग्री लिए दर-दर भटकते मिलते हैं। जो एक गहरे असंतोष को जन्म दे रहा है और ये ज़हीन तथा मासूम विद्यार्थी अपनी योग्यता तथा क्षमता से बहुत कम में ही काम करके गुजारा कर रहे हैं।
इस तरह से प्रतिभा का हनन भी हो रहा है और हमारे देश की प्रतिभाओं का विदेश में पलायन भी हो रहा है ? क्या इसको रोका जा सकता है ? यदि हाँ तो कैसे ?
मैंने एक छोटी बच्ची 'अदिति ' से बात की [ जिसने कक्षा -२ तक भारत में पढाई की तथा उसके बाद विदेश में , international स्कूल में पढ़ रही है ] Indian Education और UK based Education के बारे में तो उसने संक्षेप में ये कहा - " Indian Education , की तुलना किसी भी देश से नहीं हो सकती है। इंडिया का standard बहुत हाई है । लेकिन भारत की Education में creativity नहीं है । वहां teachers जो पढ़ाते हैं, स्टुडेंट्स को वही रट लेना है और पास हो जाना है। जबकि UK pattern में teachers , स्टुडेंट्स को छोटी क्लास से ही [year-3 से ही] , ऐसे assignments देते हैं , जिससे स्टुडेंट्स की creative skills , develope होती है। वो अपना ब्रेन यूज़ करते हैं और कुछ नया सोचने की क्षमता develope करते हैं। इसलिए मुझे लगता है इंडिया में creativity पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए तथा " SATS" [UK pattern], के आधार प़र शिक्षा दी जानी चाहिए। इससे स्टुडेंट का aptitude भी पता चलता है और उसके लिए कौन सा विषय ज्यादा उपयोगी होगा , ये चुनने में भी मदद मिलती है । "
ये तो थे अदिति के विचार । आपके विचारों एवं सुझावों का स्वागत है।