वर्ष २०१० में एक ब्लोगर युवक मोहन [परिवर्तित नाम ] से परिचय हुआ। उसने अपनी उम्र २८ बतायी थी। इतनी कम उम्र में उसने घर में बहुत कलह-क्लेश देखे , जिसने उसके व्यक्तित्व को बहुत कमज़ोर बना दिया। उसके अन्दर एक आत्महीनता आ गयी तथा वो थोड़े से सौभाग्य [सहानुभूति , प्यार] के लिए दर-दर भटकने लगा । इस भटकन ने उसे हमेशा गलत लोगों की संगत में रखा। जो सही लोग मिले , वो उससे दूर होते चले गए और गलत लोगों का उस पर प्रभुत्व बढ़ने लगा । उसका अपना अस्तिव कहीं खो गया ।
मोहन की माँ , जिसने अनगिनत असहनीय प्रताड्नायें झेलीं अपने पति द्वारा , उनके लिए कुछ करना चाहता था मोहन। अपनी बहन के दुखों को दूर करना चाहता था। लेकिन मोहन की गलत संगति ने और पिता के गलत संस्कारों ने उसे माँ, बहन के दुखों से दूर कर दिया। वो संवेदनाहीन हो गया। मोहन अब खुद भी अपने पिता जैसा क्रूर और स्त्रियों का अपमान करने वाला बन गया है। उसके कृत्यों से उसकी निर्दोष माँ और बहन अब और भी दुःख झेल रही हैं। उनकी एक आस अपने इस घर के चिराग से थी , जो अब पूर्णतया बुझ चुकी है। उनके घर में पहले एक पुरुष था जो स्त्रियों पर अत्याचार करता था , लेकिन अब दो पुरुष हैं , जो मिलकर कहर बरपा रहे हैं।
आज जरूरत है कि माता पिता अपने बच्चों को सही शिक्षा एवं संस्कार दे। भरपूर प्यार दे , नहीं तो देश की भावी पीढ़ी इसी तरह स्त्रियों पर अत्याचार करती रहेगी और समाज में हिंसा बढती रहेगी। राजेश गुलाटी जैसे लोग जो अपनी पत्नी को मारकर ७२ टुकड़े करते हैं वो ऐसी ही मानसिकता वाले होते हैं. जब माँ , बहनें , पत्नियां ही सुरक्षित नहीं रहेंगी तो कौन देगा संस्कार।
समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाइए । आस-पास परिवेश में ऐसे लोगों और कृत्यों को देखिये तो तटस्थ मत रहिये , ऐसे युवकों को समझाइए और उन्हें सही मार्ग पर लाइए। नहीं तो हिंसक मानसिकता वालों की संख्या बढती जायेगी।
हर व्यक्ति के अन्दर इंसानियत और एक जानवर होता है । इससे पहले की जानवर बलवान हो जाए , घोंट दीजिये घृणा और बदले की भावना का। इंसानियत का परचम लहराने दीजिये।
आभार।