Saturday, August 28, 2010

क्या आप भी चोर हैं ?

क्या आपने कभी दूकान से सामान तो उठा लिया हो लेकिन पमेंट किये बगैर सफाई से निकल गए हों ?॥

कभी बस या रेल में मुफ्त में यात्रा की है?

कोई परीक्षा फॉर्म मुफ्त में भरा है ?

क्या भगवान् को प्रसाद या माला बिना खरीदे चढ़ाई है ?

क्या डॉक्टर को मर्ज दिखाया हो और बिना फीस दिए चले गए हों ?

वकील साहब की फीस न देने की जुर्रत तो कभी नहीं की होगी ?

मुझे यकीन है आप सभी चोर नहीं हैं , लेकिन क्या आपने कभी ऐसा किया है की किसी की पोस्ट पढ़ी लेकिन चुप-चाप अपने विचार रखे बगैर चले गए हों ?

जो लोग ऐसा करते हैं वो ठीक नहीं करते। ये नातिक मूल्यों के खिलाफ है । यदि आप किसी की पोस्ट पढ़ते हैं , तो उस पोस्ट द्वारा हुए मनोरंजन अथवा ज्ञान-वर्धन की कीमत अपनी टिपण्णी के रूप में अवश्य चुकाइए ।

वैसे आपका क्या ख़याल है ?

89 comments:

ZEAL said...

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पोस्ट पढने के बाद टिपण्णी करना हमारी इमानदारी का दोत्तक है ।

-किसी भी पोस्ट को पढ़ते समय मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए,
- निष्ठां से पढना और पवित्र मनं से , पूरी इमानदारी से अपने विचार रखने चाहिए।
-टिप्पणियों को इर्ष्या एवं द्वेष से मुक्त होना चाहिए।
- जरूरत हो तो नयी जानकारी जोड़ देनी चाहिए।
-ध्यान रहे किसी भी हालत में लेखक को हतोत्साहित न करें।
-गलती हो जाये तो अगली टिपण्णी में क्षमा मांगने में संकोच न करें।
- ध्यान रहे, विषयांतर न होने पाए। विषय पर फोकस बना रहे।
- टिपण्णी करते समय टिप्पणीकार अपनी नैतिक जिम्मेदारी को न भूले ।
- लेखक पर व्यक्तिगत कमेन्ट भूल कर भी न करें।

मन , वचन और कर्म से किसी को भी दुःख देने का अधिकार हमे नहीं है।
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

दिव्या बहन,
बाप रे! एतना बड़ा सम्बिधान..ऊ बी ब्लॉग पर टिप्पणी करने के नाम पर... त आपके सम्बिधान के धारा 5 के अनुसार आपका गुहार वाजिब है और प्रयास सराहनीय… लेकिन पढने के बाद ज्ञानबर्धन हुआ या मनोरंजन, ई कौन फैसला करेगा.. पढने के बाद खराब लगा तो??..हमको लगता है कि एगो बात आपको लिखना चाहिये था कि आप अपना उपस्थिति दर्ज कीजिए ताकि पता चले कि आप आए... पसंद आएगा त अपने लिखेगा आदमी.. नहीं लिखा त इसका मतलब पसंद नहीं आया... हाँ घर के अंदर झाँक कर चले जाना, चाहे घुसकर चुपचाप निकल जाना गलत है...एगो सिस्टम बनाना चाहिए कि पोस्ट पढने के बाद उसको बंद तब तक नहीं किया जा सकता जब तक टिप्पणी न दे दे ऊ आदमी..हा हा हा!!

ashish said...

वो वाली कहानी तो सुनी होगी ना जसमे एक चोर जिसे फांसी की सजा दी गयी थी , और फासी देने वाले दिन उसने रजा से कहा की उसे सोने (गोल्ड) की खेती आती है जिसकी जानकारी फांसी होने पर उसी के साथ चली जाएगी इस दुनिया से . राजा ने उसे थोड़ी मुहलत दी और कहा की खेती कर के दिखाए . राजा ने खेत तैयार करवाने के बाद चोर से सोना बोने के लिए बोला तो चोर बोला , बीज केवल वही व्यक्ति बो सकता है जिसने कभी किसी तरह की चोरी नहीं की हो . मै तो चोर हूँ मै नहीं बो सकता. राजा के सभी दरबारी और मंत्री ने मना कर दिया क्योकि सभी ने कभी ना कभी चोरी की थी . चोर ने राजा से कहा की महाराज आप ही बो दीजिये, राजा को याद आया की बचपन में उन्होंने अपने माताजी से छुपकर लड्डू खाए थे. उन्होंने ने भी मना कर दिया. चोर बोला की अगर सभी चोर है तो फांसी मुझे ही क्यों? लेकिन ये टिपण्णी वाली चोरी की तो है अब शायद ना कर सकू. हाहाहा.

Abhishek Ojha said...

मैं जीतना पढ़ता हूँ उसके लगभग 10% पर कमेंट कर पाता हूँ. इसे चोरी मत कहिए :)

राजेश उत्‍साही said...

य‍ह संयोग ही है कि पिछले चार-पांच दिन से मैं स्‍वयं इस दुविधा में विचर रहा हूं कि किसी पोस्‍ट पर अगर कहने के लिए कुछ न हो तो क्‍या करूं। बिना कुछ कहे चले आने से यह पता भी नहीं चलता कि हमारे द्वारा पोस्‍ट पढ़ ली गई है। इसलिए मैंने कुछ पोस्‍टों पर जहां कहने को कुछ नहीं था,लिखा-पढ़ ली- या -हम भी पढ़ चले-। खैर बिना कुछ कहे जाने को चोरी तो बिलकुल नहीं कहा जाना।

Anonymous said...

ब्लॉग लेखक को भी
(टिप्पणी पढ़ते हुए)

-मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए,
-निष्ठां से पढना और पवित्र मनं से रहना चाहिए।
-इर्ष्या एवं द्वेष से मुक्त होना चाहिए।
-स्वयं के लिए नयी जानकारी ग्रहण कर लेनी चाहिए।
-किसी भी हालत में टिप्पणीकर्ता को हतोत्साहित न करें।
-गलती महसूस हो जाये तो अगली टिपण्णी में क्षमा मांगने में संकोच न करें।
-उसे विषयांतर न मान लें। विषय पर फोकस बना रहता है।
-अपनी नैतिक जिम्मेदारी को भी न भूले ।
-नाम लेकर व्यक्तिगत कमेन्ट भूल कर भी न करें।

VICHAAR SHOONYA said...

देखिये मेडम चोर तो मैं हूँ पर मौका ही नहीं मिलता और मिलता है तो हिम्मत नहीं पड़ती......क्या करूँ ?..

अजय कुमार said...

सहमत हूं ।
टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है ,अच्छे सुझाव आते हैं और पोस्ट मे आवश्यक परिवर्तन करके सुधारा भी जाता है ।

सञ्जय झा said...

aya padha tippni ki ...... karan pasandgi se hai.
aya padha tippni nahi ki...karan napasandgi se nahi hai.
.....to kya wajah ho sakti hai.....sayad antas se
jo pratikriya aya o nakaratmak hoga....aur nakaratmak vicharon ka byabhar nahi hona chahiye ye mera manna hai.

HBMedia said...

aapne to logo ko achh phasaya!....ab bhala kaun tippni nahi dega!

kamal hai ddivya ji! aap mahir blogger hai...

badhayee!!

Mahak said...

@दिव्या जी , बात तो आपकी एकदम ठीक है लेकिन कई बारी समय की अल्पता भी आड़े आती है वैसे कोशिश यही रहती है की कमेन्ट किया ही जाए

क्या आपने कभी दूकान से सामान तो उठा लिया हो लेकिन पमेंट किये बगैर सफाई से निकल गए हों ?

आपके इस प्रश्न से अपने साथ बचपन में घटी एक रोचक घटना याद आ गई

ये बहुत पुरानी बात है ,जब शायद मैं 5th या 6th class में था ,एक बार मैं और मेरा एक दोस्त जिसका नाम अंकुर है हम दोनों ही सड़क पर चल रहे थे,शाम का समय था ,तभी हमने एक रेड़ीवाला देखा जिसके पास तीन चीज़ें थी -चने ,popcorn और मूंगफली ,हमारे पास केवल दो रूपये थे, मैंने कहा की दो रूपये के चने लेंगे और उसने कहा की नहीं इन दो रुपयों की मूंगफली लेंगे ,जब कोई फैसला नहीं हो पाया तो हमने उन दो रुपयों के popcorn ले लिए ,जब वो रेड़ीवाला popcorn गर्म कर रहा था तो मैंने उसकी नज़र बचाकर थोड़े से चने अपनी मुट्ठी में भर लिए , जब हमने popcorn ले ली और हम चलने लगे तो चलते-२ मैंने अंकुर से गर्व भरी आवाज़ में कहा की -" देख आज तू मेरी वजह से सिर्फ popcorn ही नहीं चने भी खा पायेगा " और मैंने उसे अपनी बंद मुट्ठी खोलकर दिखाई जिसमें की चने थे ,उन्हें देखकर वो हँसने लगा ,मैं हैरान हो गया की वो surprised होने की बजाये हंस क्यों रहा है,जब मैंने उससे इसका कारण पूछा तो वो बोला की - "तू मेरी वजह से आज सिर्फ popcorn और चने ही नहीं बल्कि मूंगफली भी खायेगा " और इतना कहकर उसने मुझे अपनी दोनों जेबें दिखायीं जो की मूंगफली से भरी पड़ी थीं

सच में बचपन के दिन और उसकी यादें ही अलग होती हैं और हमेशा हमारे जेहन में रहती हैं और अनायास ही हमारे चेहरों पर मुस्कान ले आती हैं

अब इसे पढकर ये मत समझियेगा की मैं अब भी ऐसा ही करता हूँ :)

Satish Saxena said...

"-किसी भी पोस्ट को पढ़ते समय मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए,
- निष्ठां से पढना और पवित्र मनं से , पूरी इमानदारी से अपने विचार रखने चाहिए।
-टिप्पणियों को इर्ष्या एवं द्वेष से मुक्त होना चाहिए।
- जरूरत हो तो नयी जानकारी जोड़ देनी चाहिए।
-ध्यान रहे किसी भी हालत में लेखक को हतोत्साहित न करें।
-गलती हो जाये तो अगली टिपण्णी में क्षमा मांगने में संकोच न करें।
- ध्यान रहे, विषयांतर न होने पाए। विषय पर फोकस बना रहे।
- टिपण्णी करते समय टिप्पणीकार अपनी नैतिक जिम्मेदारी को न भूले ।
- लेखक पर व्यक्तिगत कमेन्ट भूल कर भी न करें।

मन , वचन और कर्म से किसी को भी दुःख देने का अधिकार हमे नहीं है।"


भगवान् आपकी इस ईमानदारी को बनाये रखे , आपके उपरोक्त विचार मुझे बहुत पसंद आये कोशिश करता हूँ कि अपनी पसंद को याद रखूँ !
मगर पोस्ट पढ़ कर टिप्पणी अवश्य करनी है मैं इससे सहमत नहीं ,
-कई बार पोस्ट टिप्पणी के लायक नहीं होती
-कई बार पोस्ट हमारी समझ ही नहीं आती ...हंसने की बात नहीं हैं यहाँ एक से एक विद्वजन मौजूद हैं, मैं कई बार अमित शर्मा , डॉ अरविन्द मिश्र ,पिट्सबर्ग वाले अनुराग शर्मा , प्रवीण पाण्डेय,गिरिजेश राव,अली साहब ,मनोज कुमार,अजित वडनेरकर ,शिवकुमार शर्मा , भाई अमर कुमार, मो सम कौन ,प्रवीण शाह और तो और विचारशून्य को नहीं समझ पाता , तो कमेन्ट क्या करूँ !

पछताता हुआ हाथ झाड़ता बापस आ जाता हूँ कि यह लोग ब्लागिंग क्यों करते हैं :-) मगर गर्व होता है कि इन्हें हम पढ़ रहे हैं, धीरे धीरे इनकी वदौलत हमारी भाषा और संस्कृति सुधरेगी अवश्य !

-गजलों को पढ़कर आनंद तो आता है मगर उसके शिल्प में मैं जीरो हूँ क्या तारीफ करूँ :-)

सफ़ेद और ऊंचे कालर वाले आपके बनाये सद्भावना नियम मान जाएँ तो यहाँ आनंद न आ जाये !
सादर

Coral said...

हा हा हा ........ बढ़िया

अन्तर सोहिल said...

मैं चोर तो हूँ जी
आपकी पोस्टों का भी और इसके अलावा बचपन में भी कई बार चोरी की है। लेकिन
टिप्पणी ना करने को मैं चोरी नहीं मानता
आप चाहे जो मानें।

प्रणाम

राजन said...

divya ji,
ye bataaiye apna blog banaye jane ke baad apne raajneeti ke baad aur kitni film dekhi hai?.............aap samajh gai hongi main kya puchna chahta hun :)

राजन said...

samajh aaya is chuppi ka matlab.aap to pichlee post me hi kah chuki hai ki aap charcha nahi karengi.waise kuch ajeeb nahi lagta ki aaj jab aap kisi post par cmnt. na karne walon ki tulna chor se kar rahi hai wahin is post ko pasand kar tippanni karne walon ko dhanyawaad bhi nahi de rahi hai? akhir unhone bhi to apka utsaah badhaya hi hoga.jara si baat ko hum naitik aur anaitik wale khanchon me kyon fit kar dete hai.nischit hi aap maum ki gudiya nahi hai par ek post par jara si asahmati se itna vichlit ho gai ki vimarsh se hi palayan kar gai?

सुज्ञ said...

दिव्या बहन,
यह अनुशासन तो वज़िब नहिं है,पठनचोर?,प्रतिक्रिया कंजूस?
ना ना !!
यदि कोई दानवीर सार्वजनिक प्याऊ खोल दे,प्यासे आभार व्यक्त किये बिना चले जाय तो चोर ? दाता कभी प्याऊ पर बोर्ड नहिं लगाता कि दुआ प्रार्थना कर के जाइये।

पर दुआ दे के जाय तो अच्छा लगता है:)

anshumala said...

सतीस जी की इस बात से सहमत हु की कई बार पोस्ट समझ नहीं आती तो कई बार यही समझ नहीं आती की टिप्पणी किया क्या जाये पोस्ट में ऐसा कुछ होता ही नहीं | कई बार समय की भी कमी होती है | अब आप की बातमानी जाये तो फिर लोग टिप्पणी के नाम पर वही करेंगे जो सुमन जी करते है "नाईस" निश्चित रूप से हर दूसरी पोस्ट पर ये टिप्पणी देने के बाद आप की टिप्पणी का कोई महत्व नहीं रह जायेगा |

ZEAL said...

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सलिल जी-
काश ये संविधान बन सकता।

आशीष जी,
आपकी इमानदारी अच्छी लगी ।

अभिषेक ओझा जी,
प्रतिशत बढाइये ।

राजेश जी, पाबला जी,
धन्यवाद।

विचार शुन्य जी,
"Where there is will, there is a way "

अजय कुमार जी,
आपके संजीदा कमेंट्स बहुत अच्छे लगते हैं।

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ZEAL said...

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शैलेन्द्र जी,
आपना अपना दृष्टिकोण बताया, इसके लिए आभार।

PK Singh जी,
'माहिर ब्लॉगर' की उपाधि के लिए आभार।

महक जी,
आपकी टिपण्णी पढ़कर मुस्कराहट आ गयी, निसंदेह आपका मित्र तो सवा सेर निकला।

सतीश जी,
आपकी इमानदारी और स्पष्टवादिता के लिए, आपके आगे नत-मस्तक हूँ।
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ZEAL said...

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कोरल जी,
इस सुन्दर खिलखिलाहट के लिए दिल से आभार।

राजन जी,
भारत से माँ भी हमारे साथ आये हैं, आज छुट्टी का दिन था, उन्हें पटाया घुमाने ल गये थे, इसलिए जवाब नहीं दे सकी। मैंने सचमुच राजनीति के बाद कोई फिल्म नहीं देखि। पर आपके पूछने का आशय नहीं समझ सकी । आपने मुझे 'पलायनवादी' कहा उसके लिए भी आपका आभार। जहाँ तक पाठकों की टिप्पणियों का धन्यवाद देने का सवाल है, वह पोस्ट के अंत में हमेशा ही देती हूँ।
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ZEAL said...

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सुज्ञ जी,
प्यासे को पानी पिलाते हैं , तो पीने वाला धन्यवाद कहकर ही जाता है, कोई बड़ा ही अक्रितज्ञ होगा जो धन्यवाद न दे। पिलाने वाला डिमांड नहीं करता।
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प्रवीण said...

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nice post!


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ZEAL said...

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अंशुमाला जी,
मैं सार्थक टिपण्णी की बात कर रही हूँ।
टिपण्णी न देना और निरर्थक टिपण्णी , निश्चय ही एक समान है।
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ZEAL said...

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प्रवीण शाह जी,
इतनी नाइंसाफी मत कीजिये।
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ZEAL said...

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अंतर सोहिल जी,
चलिए सच तो बोला !
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प्रवीण said...

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हा हा हा हा...

दिव्या जी,

आपको क्यों लगा कि मैं नाइंसाफी कर रहा हूँ ?

चलिये यह रही मेरी टिप्पणी...

Whatever you are expecting in this post is As it should happen in a 'Perfect World'.

Aren't we living in an 'Imperfect World' ?

So, Why are you complaining?


आभार!


...

ZEAL said...

Praveen ji,

Glad to see you perfectly understood the gesture. And i fully agree with you that we are not at all living in a perfect world, nor it is possible.

I am not complaining, just trying to stir bloggers' souls .

I am aware it's kinda futile effort, but then I cannot do more than this. Raising voice against something unjust around us , is the only option i have.

sigh..

none i could see to join hands with me.

But it's fine..

ekla cholo re !
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Urmi said...

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए!
बहुत बढ़िया पोस्ट रहा!

राजन said...

palayanvaadi???
na maine aisa kabhi nahi kaha.balki aap khud hi post padhkar cmnt. na karne wale ko chor kah rahi hai.anaitik bata rahi hai.kisi ne bura nahi maana.maine bhi tark hi kiya hai.palayan shabd ko visheshan roop me prayukt kar apne upar le rahi hai.jabki kuch isi tarah ki ghoshnaa apne khud hi pichli post me kari thi.hai ki nahi?
@प्यासे को पानी पिलाते हैं , तो पीने वाला धन्यवाद कहकर ही जाता है, कोई बड़ा ही अक्रितज्ञ होगा जो धन्यवाद न दे। पिलाने वाला डिमांड नहीं करता।
ise kahte hai chitt bhi meri patt bhi meri.panee pilane wala agar demand nahi karta to dhanyawaad na dene wale ko chor bhi nahi kahta.aur phir wo demand nahi karta to blogger kyon demand karte hai?film ke baare me kyon pucha ye ye batane ka ab koi matlab nahi raha vishyantar hoga.

apse thodi der baad hi mulaqat ho payegi.tab tak apko bhi haq hai ki meri baton ke tarkik jawaab khojkar rakh le.aur agar asuvidhajanak ho to najarandaaj kar de.

abhi to mataji ko hamari aur se bhi pranaam kahiye.

प्रवीण पाण्डेय said...

बिना विचार रखे निकल जाने को चोरी की संज्ञा न दें देवी।

ZEAL said...

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राजन जी,
पिछली पोस्ट पर मैंने कहा था की अब चर्चा नहीं करुँगी, लेकिन अगर पिछली पोस्ट पर जाकर देखें तो चर्चा जारी है । कल मन को बहुत दुःख पहुंचा था इसलिए ऐसा लिखा था। आज मन में स्थिरता वापस आ गयी है , इसलिए सर पे कफ़न बांधकर चर्चा को तैयार हूँ। कभी कभी मन तो विचलित होता ही है न? आखिर इंसान हूँ।
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ZEAL said...

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@-बिना विचार रखे निकल जाने को चोरी की संज्ञा न दें देवी। ..

तो कौन सी संज्ञा दूँ प्रभु ?

कृपया बतलावें ।
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ओशो रजनीश said...

भाई हम तो चोर नहीं है, अगर पढ़ते है तो टिपण्णी जरुर करते है
लेकिन अगर आप स्वयं के विषय में ऐसा सोचते है तो अलग बात है ....

एक बार इसे भी पढ़े , शायद पसंद आये --
(क्या इंसान सिर्फ भविष्य के लिए जी रहा है ?????)
http://oshotheone.blogspot.com

वीना श्रीवास्तव said...

कुछ तो ऐसी चोरियां हैं जो बचपन में न की गईं तो बचपन कहां... फिर तो समझदारों की श्रेणी में आ गए। हां कुछ ऐसी जरूर हैं जो नहीं करनी चाहिए लेकिन लोग करते है...शायद आदतन....

विवेक रस्तोगी said...

अब तो कई दिनों से मोबाईल पर से फ़ीड पढ़ रहे हैं, तो टिप्पणी देना बंद सा हो गया है, बिल्कुल आपकी बात से सहमत हैं कि अगर अपना कोई पक्ष हो तो जरुर रखना चाहिये, पर अगर विषय समझ ही न आये तो...

और ऊपर दी गई कई चोरियाँ हमने की हैं, वह भी तभी तक जब तक कि उसमें हमें कुछ रोमांच सा लगता था, पर अब तो बिल्कुल भी नहीं।

Udan Tashtari said...

मेरी इमानदारी का तो सारा ब्लॉगजगत गवाह है..हा हा!! :)

Shah Nawaz said...

मेरे विचार से अगर किसी भी लेख को पढ़कर अच्छा या बुरा लगा हो तो अवश्य ही अपने भाव प्रकट करने चाहिए.

लेकिन पढ़कर भी अगर कोई भाव ही ना आए तो आवश्यक नहीं है कि ज़बरदस्ती कुछ लिखा जाए.

राजन said...

iSthirta banaye rakhe divya ji.aap mere priya bloggers me se ek hai kyoki aap bina laag lapet ke imaandari se apne vichar vyakt karti hai lekin jab main apse sahmat nahi hun to kewal apko khush karne ya apki najro me apne number badhwane ke liye jhuthi tareef to nahi kar sakta na{akhir thodi imaandari hamare andar bhi hai ::}}

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या खूब समझाइश दी है दिव्या जी! आनंदम.

राजन said...

apki pichli post par bhi mera ishara kewal shabdo ke galat chayan ki taraf tha aur is baar bhi.apki maansikta par sandeh karna mere liye sambhav nahi.meri kisi baat ka bura lag gaya ho to kshama.halaanki aisa g irada kabhi nahi raha.

संगीता पुरी said...

ईमानदारी में समीर लाल जी जैसे कुछ ब्‍लोगरों के बाद मेरा नंबर भी आएगा .. हा हा हा हा !!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मेरे विचार से पोस्ट पढ़ने के बाद टिप्पणी करना जरूरी नहीं है. मैं तो कई बार ऐसा करता हूँ....

कई बार पोस्ट इतनी कठिन होती है कि समझ ही नहीं पाता..कई बार इतनी बेकार होती है कि कुछ भी लिखने का मन ही नहीं करता..कई बार अनावश्यक विवाद में कूदना ही अच्छा नहीं लगता..और प्रायः तो नेट इतनी जल्दी-जल्दी कट जाता है कि दो-चार ब्लॉग एक साथ खोल देता हूँ और धीरे-धीरे पढ़ता रहता हूँ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सर्वप्रथम तो हमें असहमतियों को भी समभाव से स्वीकार करना आना चाहिए....

Archana Chaoji said...

सतीश जी की बात से सहमत ....
सुझाव के लिए धन्यववाद ...

राजभाषा हिंदी said...

आपसे सहमत।

हिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।

Anonymous said...

माफ़ कीजिने मैं आज बहुत दिनों के बाद किसी ब्लौग पर कमेन्ट कर रही हूँ. पहले जब मैंने कहीं कमेन्ट किए तो लोगों ने मुझे समझाया की एक नौन्ब्लौगर को ब्लौग पर कमेन्ट नहीं करना चाहिए और यह भी कहा की मेरा प्रोफाइल क्यों नहीं है. जब मै कोई ब्लौग ही नहीं लिखती तो प्रोफाइल में क्या बताऊँ. मैंने यह देखा है की आप ब्लौगिंग करने की शुरुआत से ही बेवजह की जिद और अधिकार के साथ लोगों से पेश आ रहीं है. बहुत दिनों के बाद चिठाजगत पर आज आपकी पोस्ट टॉप पर है जबकि यह बिलकुल गैरजरूरी पोस्ट है जिसका कोई मतलब नहीं है. मुझे लगता है की आप बिना वजह का विवाद खड़ा करना पसंद करती हैं और आपके इर्दगिर्द टिपण्णी चाटुकारों की भीड़ खडी कर ली है जो आपके कुछ भी बेसिरपैर लिखने पर वाहवाही देते है. यह बेकार की बात है की कोई टिपण्णी नहीं करता है.ईमानदारी से कहिये तो क्या आपने आज तक हर पढी पोस्ट पर टिपण्णी की है क्या?

ZEAL said...

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समीर जी, एवं संगीता जी,
आपकी बात से शत -प्रतिशत सहमत हूँ । निःसंदेह सारा ब्लॉग जगत आपकी इमानदारी का गवाह है, आप हमारे आदर्श हैं।

रंजन जी ,
आपकी इमानदारी से लिखी बात के आगे निर्रुत्तर हूँ।

देवेन्द्र जी, अर्चना जी, राजभाषा जी , पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी,
आप सभी का आभार।
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ZEAL said...

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ज्योत्सना जी,
आपके बहुमूल्य विचारों के लिए आपका आभार।

आपने लिखा की आप कहीं कमेन्ट नहीं करतीं , फिर भी आपने मेरे जैसे फालतू ब्लॉगर की एकदम फालतू पोस्ट पर अपना बेश कीमती समय जाया किया। आपके धैर्य और धीरज की कायल हो गयी हूँ।

मेरी पोस्ट पर हर कोई अपनी भड़ास निकालने के लिए स्वतंत्र है। आप भी।

दुनिया में हर बिमारी का इलाज है , लेकिन इर्ष्या का नहीं !

आपने मेरे द्वारा अब तक लिखी गयी छप्पन पोस्टों कोंएक साथ कचरा करार कर दिया ?...५६ पोस्ट्स पढ़ी आपने, काफी बर्दाश्त किया होगा आपने। अनजाने में ही आपके नाज़ुक दिल कों दुःख पहुंचाने के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ।

आपके कमेन्ट कों पढ़ कर यकीन हो गया है की आपका दिल बहुत बड़ा है, हो सके तो इस मूढमति दिव्या कों माफ़ कर दीजियेगा।

"हम तो ऐसे हैं भैया ".... I am not gonna change myself for Tom, Dick and Harry s.

Thanks.

ZEAL said...

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पाठकों से निवेदन है , कृपया विषय पर कमेन्ट करें, मेरे ऊपर नहीं।
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वाणी गीत said...

टिप्पणी नहीं करने या कर पाने का कई कारण हो सकते हैं ..
कई बार ऐसा विषय होता है कि उसपर कुछ टिप्पणी लिखी ही नहीं जा सके ,
कुछ अद्भुत लेखन वाले ब्लॉग पर भी टिप्पणी लिखते झिझक होती है ...
कई बार समय की कमी से पोस्ट पढ़ ली जाती है मगर टिप्पणी नहीं की जा सकती ...
इसलिए टिप्पणी नहीं करने वालों को चोर नहीं कहा जा सकता ...
सबसे महत्वपूर्ण बात कि ...
जहाँ टिप्पणियां पोस्ट को गंभीरता से लेने की परिचायक नहीं हैं ...वही कम टिप्पणियां पोस्ट की सार्थकता को कम नहीं करती ....!

और एक बहुत ही जरुरी सवाल ...
सिर्फ कमेन्ट करने वाली दिव्या उसकी लिखी पोस्ट में बहुत कम नजर आती है मुझे ...कहाँ खो गयी है वह दिव्या ???

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ओह! मुझे नहीं पता था कि टिप्पणी न देने से चोर कहलाया जाउंगा...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दिव्या जी, एक अलग नजरिये से मै सम्झ्ता हू कि आपका सवाल ही हिन्दुस्तानियो के साथ नाइन्साफ़ी है, आप जले पर नमक छिडक रहे है । चोर से यह पूछना कि क्या तुम चोर हो, शायद ठीक बात नही ।

रचना said...

और एक बहुत ही जरुरी सवाल ...
सिर्फ कमेन्ट करने वाली दिव्या उसकी लिखी पोस्ट में बहुत कम नजर आती है मुझे ...कहाँ खो गयी है वह दिव्या ???
when we write to please our own self we are least bothered who comments or who does not

its not proper to tag a reader who does not comment and like vani i am also of the opinion that you have lost the midas touch that you had when you were just commenting or may be not lost but you have bottled it up somewhere because people were not appreciative of your comments which you have said on one post on dr mishra blog . you were then feeling that you dont belong here .

in the process to develop a belonging here you made a blog but lost your "zeal" and we lost a "divy" supporter

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अंग्रेजो ने जब ईस्ट इंडिया कम्पनी का पहला उधारी विक्रय बिल काटा था तो उस रकम को तुरन्त ही बट्टे खाते मे डाल दिया था इस तथ्य को ध्यान मे रखते हुए कि ९० प्रतिशत भारतीय चोर प्रव्रिति के होते है।

रचना said...

"divy" = दिव्य

Anonymous said...

दिव्या जी इतनी अकड़ अच्छी नहीं होती. यहाँ एक से बढ़कर एक लिखनेवाले और तिप्पनिकर्नेवाले हैं.
दिव्या जी इतनी अकड़ अच्छी नहीं होती. यहाँ एक से बढ़कर एक लिखनेवाले और तिप्पनिकर्नेवाले हैं.

Unknown said...

koie jaruri nahi hai kai menu padh kar sari dish maga kar khai .

राजन said...

Ranjan nahi rajan.divya ji kam se kam aap to mujhe 95 percent bloggers ki tarah Ranjan mat kahiye.

राजन said...

jyotsana ko achcha jawab.

आपका अख्तर खान अकेला said...

vaah bhyi vaah khub nyaa andaaz laaye ho . akhtar khan akela kota rajsthan

ZEAL said...

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वाणी जी, रचना जी, एवं अन्य सभी लोग -

जिनको लगता है की मैं पहले जैसी नहीं रही, तो इसमें नया क्या है?। बदलाव तो प्रकृति का नियम है । मैं मरते दम तक वैसी नहीं रहना चाहती, जैसा पैदा हुई थी। मुझे लगता है , मैंने समय के साथ बहुत ज्ञान अर्जन किया है । और समाज में अकेले दम पर चलना सीखा है। पहले वाली डरी सहमी दिव्या नहीं हूँ अब।

हाँ यदि आप लोगों को लगता है की मैं पहले शरीफ थी , अब नहीं हूँ, तो मुझे या भी स्वीकार है। अपनी सफाई में मुझे कुछ नहीं कहना है।

मुझे भी लगता है की आप में से बहुत से लोग लोग बदल गए हैं, लेकिन इसे काफी normal समझती हूँ। मुझे आप लोगों में हुए बदलाव में कोई आपत्ति नहीं है। और मेरी या आदत नहीं है की किसी के व्यक्तित्व पर टिपण्णी करूँ। मैं आप लोगों की पोस्ट पढ़ती हूँ , और यथा संभव इमानदारी से टिपण्णी करती हूँ। इससे ज्यादा कभी किसी से रिश्ता नहीं रक्खा । फिर भी यदि अनजाने में आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरी न उतरी होऊं तो क्षमा कीजियेगा।
.

इंसान ही हूँ, देवी नहीं ।

इस ब्लॉग जगत में एक से एक अच्छे लोग भरे पड़े हैं, एक दिव्या भ्रष्ट और बदतमीज़ हो भी गयी तो क्या बिगड़ेगा समाज का ?

ZEAL said...

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ज्योत्सना जी,

आपकी दोनों टिप्पणियां काफी अभद्र हैं, आपसे बात करने की इच्छा ही नहीं। क्षमा कीजियेगा ।
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ZEAL said...

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राजन जी,
आपका नाम गलत लिखने के लिए माफ़ी चाहती हूँ , ज्यादातर ब्लॉगर गलत लिख जाते हैं क्यूंकि हिंदी ब्लॉग-जगत मैं पहले से ही एक रंजन जी हैं । मैंने भी आपको वही समझा था। भूल की तरफ ध्यान दिलाने के लिए आभार।
.

ZEAL said...

गोदियाल साहब,
धन्यवाद।

रचना said...

i feel you have mellowed down rather then changed in the process of getting accepted but if you are happy with what you are doing then none including me have a right to say anything
i withdraw my comment

Anonymous said...

Okay. this is my last comment.
goodbye frustrated loser.

उन्मुक्त said...

माफी चाहूंगा कि आपके विचार से सहमत नहीं हूं। यह जरूरी नहीं कि पढ़ा जाय तो टिप्पणी भी की जाय। टिप्पणी न करने के बहुत से कारण हो सकते हैं।

यदि यह शर्त हो तो पढ़ना भी कम हो जायेगा। जरूरी नहीं की इतना समय हो।

कभी विचार इतने स्पष्ट और बेहतर तरीके से लिखे होते हैं और उस पर पहले से ही इतनी वाह टिप्पणी होती है कि पुनः वाह लिखना ठीक नहीं लगता।

कभी कुछ विवादास्पद विचार होते हैं उस पर कुछ लिखना विवाद बढ़ाता ही है। इसलिये लगता है शायद चुप रहने से विवाद शायद जल्दी समाप्त हो जाय।

कुछ कारण मैंने यहां भी लिखे हैं।

हां यह सच है कि यदि आप टिप्पणी कम करते हैं तो आपको इस बात के लिये तैयार रहना होगा कि आपके चिट्ठे पर कम टिप्पणियां आयेंगी :-)

लेकिन यह भी सच है कि अक्सर टिप्पणियों के कारण ऐसे भी रिश्ते बन जाते हैं जो अपने में प्यारे होते हैं।

प्रतुल वशिष्ठ said...

दिव्या जी,
आप कमाल का लिखती हैं, आपके सवाल विमर्श को प्रेरित करते हैं. आपका "प्रतिक्रिया-अनिवार्य विधान" पसंद आया. मैंने अपनी कमियों को ढूँढा. धन्यवाद.
आपसे एक गुजारिश :
आपमें सौहार्द बनाने की क्षमता है. कटु लिखने वालों और अपशब्द लिखने वालों को भी क्षमा का भाव आपसे अपेक्षित है.
यदि आपका कोई पाठक कडवी बात भी कह देता है तो भी उसे रूठने का मौक़ा न दें. मुझे आपका कोई पाठक टूटता लगता है तो कष्ट होता है.
— यदि मेरा लिखा किसी को बकवास लगता है और मैं निरर्थक बातों को उकसाने में अहम् भूमिका निभाता हूँ तो मेरा दोष उतना ही जितना उकसने वाली भीड़ का.

मुझे प्रायः लगता है कि कुछ ऐसे विषय हैं, कुछ ऐसे तरीके हैं. जिन पर हमेशा अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है.
वे हैं :
— प्रेम-सम्बन्धी लेख, यौन-विषयक लेख, अत्यंत व्यक्तिगत अनुभव, साम्प्रदायिक-सौहार्द वाले लेख, जिज्ञासापरक लेख, तमाम प्रश्नों वाले लेख ...... जिनमें सभी विचारक, साधक, जिज्ञासु और तरह-तरह के अनुभवी इस विचार-ए-जंग में कूद पड़ते हैं. फिर होती है गरमागरम बहसबाजी. कुछ लोग इसमें अपना मनोरंजन ढूँढते हैं. यह बौद्धिक व्यायाम शारीरिक व्यायाम की तरह ही तो है. यदि यह निरर्थक है तो वह शारीरिक व्यायाम भी निरर्थक है जिसमें एक कुंग-फू मास्टर हवा में हाथ-पाँव चलाकर अपनी ऊर्जा नष्ट करता है. इस कसरत से केवल मांसपेशियाँ ही तो फूलती हैं. कुछ लोगों के लिये यह सब निरर्थक हो सकता है. लेकिन सभी का अपना-अपना नज़रिया है.

आपकी मौजूदगी ब्लॉग जगत के लिये गर्व की बात है. जिस तरह समीर लाल जी का होना हमें निरंतर प्रेरित करता है. वैसे ही आप भी उसी स्तर पर जा पहुँची हैं.

प्रतुल वशिष्ठ said...

उन्मुक्त जी जो कहते है. कुछ हद तक ठीक है.
समीर जी और अन्य ब्लोगर भी उन लेखों पर प्रतिक्रिया देने से बचते हैं जो उनकी दुकानदारी को नुकसान पहुँचाने की संभावना रखते हैं. वे अजातशत्रु रहकर ही जीना चाहते हैं. इसलिये विवाद से दूर रहते हैं. सो टिप्पणी केवल उन ब्लोगों पर करते हैं जिनमें दो-चार प्रशंसा वाले शब्दों से काम चल जाए. विचारों में उलझना उन्हें अखरता है या फिर किसी को तरजीह देना उन्हें गवारा नहीं.

Satish Saxena said...

डॉ दिव्या ,
चूंकि कम समय में ही आपने अपना स्थान बना लिया है, अतः मेरा अनुरोध है इस श्रंखला को जारी रखो , ब्लाग जगत में कुछ ऐसा योगदान करें जिससे कहीं न कहीं आत्मसंतुष्टि का अनुभव महसूस हो !
हर एक में स्वच्छ समझ और निडरता नहीं होती , चूंकि यहाँ लिखने वाले अधिकतर कायर हैं जो अक्सर यहाँ अपना नाम कमाने के लिए कार्यरत घटिया लोगों से डरे रहते हैं और उनका विरोध अथवा जनमत नहीं तैयार कर पाते !
आशा है सतत कार्यरत रहोगी और एक नया मार्गदर्शन दे पाओगी ! शुभकामनायें !

ZEAL said...

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सतीश जी,

अपने ही ब्लॉग पर जब खुद को कई बार अकेला पाया तो सोचती थी, तमाशबीन कितने ज्यादा हैं, कोई नहीं जो सच का साथ दे।

लेकिन आज आपने ये सिद्ध कर दिया की मैं अकेली नहीं हूँ, मेरे भी सही मायने में शुभ-चिन्तक हैं ।

आपके मार्ग-दर्शन की सदैव आभारी रहूंगी।
.

ZEAL said...

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प्रतुल जी,

आपकी अमूल्य टिपण्णी के लिए आभार। मैं हमेशा सोचती की जिस प्रतुल जी ने मेरे एक कमेन्ट का इतना खूबसूरत translation करके मुझपर एक पोस्ट ही लिख डाली, वोह कभी मेरे ब्लॉग पर क्यूँ नहीं आते? बहुतेरे ब्लोग्स पर आपकी टिपण्णी देखकर खुद की कमतरी का एहसास बढ़ जाता था। लेकिन "देर आयद, दुरुस्त आयद। " आखिर आप आये तो।

आपकी टिपण्णी से बहुत संबल मिला।

आपका आभार।
.

Rahul Singh said...

ब्‍लॉग कमेंट का यह प्रस्‍तावित नीतिशास्‍त्र विचारोत्‍तेजक तो है, लेकिन कॉलेज के दिनों में हमारे बहुतेरे कवि साथी, चाय पिलाकर भी कविता सुनाने को तैयार रहते थे. वैसे कई बार हमें उनकी कविता न सुनने के लिए भी चाय पिलानी पड़ी.

ZEAL said...

उन्मुक्त जी ,

सुन्दर लिंक दिया आपने, ज्ञानवर्धन हुआ।

आभार।

राहुल जी,
मजेदार वाकया !
.

संजय @ मो सम कौन... said...

हम तो जी शुरू से ही विंडोशॉपिंग करने वाले रहे हैं, हमें किस श्रेणी में रखेंगी आप? देखते बहुत कुछ हैं, खरीदते बहुत कम हैं। बहुत सारे ब्लॉग्स देखते हैं, सब जगह कमेंट नहीं करते। किसी दुकान से सामान उठाकर बिना पेमेंट किये निकल लेना और पोस्ट पढ़कर उसपर कमेंट न करना एक बात नहीं है।
यह मानता हूँ कि आप यह अपने लिये नहीं कर रहीं क्योंकि कमेंट्स की कमी आपकी पोस्ट को नहीं होती है, लेकिन फ़िर भी हम इस बाध्यता वाले विचार से सहमत नहीं हैं। बल्कि बहुत सी जगह तो यह देखने को मिलता है कि पोस्ट के बारे में कोई विचार नहीं और सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी पोस्ट का लिंक छोड़ दिया जाता है, क्या उसे आपके हिसाब से कमेंट की श्रेणी में माना जायेगा या चोरी की?
कभी कभी अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी मिलती थी और अच्छा भी लगता था। इस पोस्ट से कन्फ़्यूज़ हो गया हूँ(मैं कन्फ़्यूज़ बहुत ज्यादा और जल्दी जल्दी होता हूँ) कि आपकी वो टिप्पणी/टिप्पणियाँ कहीं इस चोरी न करने वाले नैतिकताबोध का नतीजा तो नहीं थी। तो दिव्याजी, आपके विचार जैसे भी रहे हों, अगर कभी हमारी तरफ़ आना हो तो बेफ़िक्र होकर आईयेगा, वहाँ ऐसी कोई बंदिश या पैमाना नहीं है। टिप्पणी करने का मन हो तो करिये, न मन हो तो बिंदास लौटने का।
वैसे कम से कम आज तो चोर नहीं समझेंगी आप? :))

ज्ञान said...

जब रचना और ज्योत्सना ने यहाँ अपनी निगाहें डाल ली तो मैंने कोई गुनाह तो नहीं करना http://www.youtube.com/watch?v=5v-kedT6sNk

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
ZEAL said...

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-आदरणीय पाठकों को दिल से आभार ।
-जो इमानदार थे वो सभी तो टिपण्णी कर गए।

-असली 'चोर' तो आया ही नहीं, जिसकी शान में यह पोस्ट लिखी गयी थी। लेकिन पढ़ कर गया है और अपने मौसेरे भाई की पोस्ट पर मेरी निंदा कर रहा है । बेचारा पप्पू अपनी आदत से मजबूर है, कभी नहीं सुधरेगा।

पप्पू की शान में मेरी अगली पोस्ट का इंतज़ार कीजिये, जिसका शीर्षक होगा --

" पप्पू [कमीना ] फेल हो गया "

पप्पू से आप सभी की मुलाकात शीघ्र ही होगी , तब तक अनुमान लगाईये की पप्पू कौन है ।
.

Anonymous said...

हा हा हा

ये बढ़िया लोचा है :-)
लेकिन ये वही है ये किसने सोचा है!
अभी आयेंगे वो, कि हमने अपना सिर नोचा है।
आखिर गैंडे को किसी-न-किसी ने कोंचा है

बसंती said...

क्या आप भी चोर हैं?---दिव्या

Unknown said...

bakwaa post aur comments pe mahaa bakwaas counter comment. aur haa yahaa comment karke honest nahee ho gayaa hoo.

सागर नाहर said...

आपके हिसाब से मैं भी बड़ा चोर ही हूं। :)
बचपन में मूंगफलियां और नमक की ढेलियां तो बहुत चुराई है लेकिन आज भी ब्लॉग पोस्ट की चोरी करता हूँ। रोजाना कई ब्लॉगर्स की पोस्ट पढ़ता हूं पर टिप्पणी नहीं देता।
कारण यह है कि कई बार समय नहीं होता, तो कई बार उपयुक्त शब्द भी नहीं मिलते। खाली; वाह वाही या बढ़िया पोस्ट , लिखती रहें टाईप की टिप्पणी देने में मैं विश्वास नहीं करता।

Kailash Sharma said...

Harek post par comment nahin dena chori nahin hai. Lekin post padhne par aapko pasand aaye ya aapki bhavnayen udvelit hon to comments avashy dene chahiye.

Rahul Singh said...

टिप्‍पणी से टिप्‍पणीकर्ता के ब्‍लॉग पर पहुंचने की राह आसान हो जाती है. अपने विचार के अनुरूप और रुचिकर ब्‍लॉग का चयन करने में मेरे लिए अक्‍सर अन्‍यों के ब्‍लॉग पर आई टिप्‍पणियां सहायक होती हैं. akaltara.blogspot.com पर पोस्‍ट 'रंगरेजी देस' का उल्‍लेख करना चाहूंगा, जिस पर कुछ उपस्थिति की, कुछ प्रोत्‍साहन की तो कुछ ऐसी भी टिप्‍पणियां हैं (मुझे स्‍वीकारने में कोई झिझक नहीं), जिनके सामने पोस्‍ट फीका और उनके बिना अधूरा सा ही लगने लगता है. आदतन पीठ थपथपा देने वालों और दुआ-सलाम करते रहने वालों के साथ ऐसी एकाध-दो भी टिप्‍पणी पोस्‍ट पर आ जाए तो ब्‍लॉगिंग सार्थक है. एक बार पहले भी आ चुका हूं, इसे तो टिप्‍पणी पर, टिप्‍पणी के लिए, की गई टिप्‍पणी मानिएगा.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

From childhood, we have grown up listening "jo pakdaa gayaa wo chor"

With that statement the society refutes all being labelled as thieves in a general statement.

On many a websites there is a mechanism to keep visitor count. Hope you can implement it here. And make your blog possible to read only if logged in from some id.

Thus, you can then match off the logged ids versus comments and label only those as thieves and spare the rest.


Arth kaa
Natmastak charansparsh

ZEAL said...

.
@ Arth--

I have intentionally not put that funny thing on my blog to monitor, who are coming and leaving. I have sympathy with thieves...lol

manu said...

@कभी बस या रेल में मुफ्त में यात्रा की है?
ये काम तो स्कूल टाईम में काफी किया है....जरूरत हुई तो अब भी कर सकते हैं...बाकी के काम कभी नहीं किये...




@ लेकिन क्या आपने कभी ऐसा किया है की किसी की पोस्ट पढ़ी लेकिन चुप-चाप अपने विचार रखे बगैर चले गए हों ?


ऐसा सिर्फ सिर्फ दो तीन ब्लोग्स के साथ किया है अभी तक....एक में अश्लीलता के सिवा कुछ था नहीं...एक दो ब्लॉग में पूरा का पूरा इंग्लिश और गणित की भाषा में formule jaisaa kuchh था....एकाध ऐसा भी था कि कमेन्ट देने का सही प्रावधान हम नहीं समझ सके...जैसे सिने मंथन...उस पर कमेन्ट कैसे देते हैं हमें आज तक नहीं पता...हाँ पढ़ते जरूर हैं..अभी पढ़ा था गुलज़ार के बारे में..बहुत अच्छा लगा...पर चाह कर भी कमेंट्स नहीं दे सके...बेहद लम्बी पोस्ट पढने से बचते हैं..लम्बे धारावाहिकों जैसी पोस्ट से भी तौबा करते हैं....इस तरह कि पोस्ट्स पर कभी थोड़ा बहुत पढ़ लिया हो और कमेन्ट ना किया हो तो और बात है....
एक बात और....अक्सर ब्लोगर कहते हैं कि उन्हें गुटबाजी से नफरत है...वो किसी लोबी में नहीं हैं...
हम को गुटबाजी से कोई नफरत नहीं है....पर हमारे कमेन्ट से शायद इसका कभी कोई वास्ता नहीं रहा है..

यही कारण है कि हम किसी को भी बिंदास कमेन्ट दे डालते हैं...वो भी एक बार नहीं...कई कई बार...ये खूब अच्छी तरह जानते हुए भी कि इनका कमेन्ट कभी भी हमारे ब्लॉग पर नहीं आयेगा...

Unknown said...

nice sharing
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