Wednesday, June 22, 2011

सभी ब्लॉगर्स के लिए खुशखबरी .

आजकल समाचार में दस वर्षीय 'अवतार' नामक बच्चे को देखकर , जिसका पुनर्जन्म हुआ है , पर मंथन किया। पुनर्जन्म होता है आत्माएं नया शरीर धारण करती हैं। लेकिन अधिकांशतः पूर्वजन्म की स्मृतियाँ शेष नहीं रह जातीं , इसलिए पता नहीं चल पाता की किस व्यक्ति का कहाँ जन्म हुआ है।

जैसे पंजाब के 'सुभाष' का जन्म 'अवतार' नामक राजस्थानी बालक के रूप में हुआ है , जिसे अपने माता-पिता , भाई-बहन , पत्नी आदि सभी याद हैं यहाँ तक की उसे पंजाबी भाषा भी अच्छी तरह आती है। लेकिन उसका पूर्व जन्म में क़त्ल हुआ था , इसलिए शायद आत्मा पर एक बोझ के तहत पुनर्जन्म हुआ। यदि कुछ पेंडिंग नहीं रहता तो शायद मोक्ष मिल जाता

इसी समाचार पर मनन करते हुए स्वतः ही ब्लॉगर मित्रों का ध्यान गया क्या ब्लॉगर्स का पुनर्जन्म होगा ? क्या ब्लॉगर्स मोक्ष के अधिकारी हैं ?

हमारे यहाँ सभी दर्शनों में पुनर्जन्म को माना गया है , सिवाय 'चार्वाक' दर्शन के , जो कहता है की व्यक्ति अपने कर्मों का फल इसी जीवन में भुगत लेता है और उसको मोक्ष मिल जाता है।

यावद जीवेद सुखं जीवेद ,
ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत।

यदि चार्वाक दर्शन को मानें तो एक ब्लॉगर को अपने पाप-कर्मों का फल 'भडासी-टिप्पणियों' के माध्यम से बखूबी मिल जाता है और वह ब्लॉगर जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

इस आलेख के माध्यम से भडासी-टिप्पणीकारों का आभार अभिव्यक करती हूँ , क्यूंकि उन्हीं के द्वारा दी गयी यातना से मेरे पाप-कर्म कट रहे हैं और मोक्ष प्राप्ति के फलस्वरूप , स्वर्ग में मेरा स्थान सुनिश्चित हो रहा है।

कहते हैं ना की जो होता है , अच्छे के लिए होता है अब देखिये मित्र ब्लॉगर की टिप्पणियां ही उऋण कर रही हैं और मोक्ष दिला रही हैं। सभी भडासी-टिप्पणीकारों से निवदन है की मुझे मेरे पाप कर्मों के लिए यातना देने अवश्य आयें ताकि मेरे रहे-सहे पाप कर्म भी नष्ट होवें और मन निश्चिन्त होकर परलोक गमन करे।

यकीन जानिये ऐसा करके आप भी पुण्य के भागीदार होंगे हम सभी मोक्ष प्राप्त करके स्वर्गलोक में पुनः मिलेंगे।

Zeal

509 comments:

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रविकर said...

और-
और फिर-
ब्लागिंग में --
ब्लाग्स पर --
एक दूसरे की टांग-खिचाई करेंगे |
वाह -
भले इरादे हैं --
टिप्पणीकारों को भी स्वर्ग लिए चलना है |
यहाँ गर खले तो--
तो वहां भी खलना है --
* * * *
फिर काहे का स्वर्ग
जब ईर्ष्या-द्वेष पाखण्ड
नहीं होंगे खंड-खंड
तो
स्वर्ग क्या जाना
यह सब यही करना है ||

(बिना सोचे क्षमा |)

अजित गुप्ता का कोना said...

दिव्‍या जी, मुझे तो ऐसे लोगों से बड़ा डर लगता है। इन जैसों से उलझने में यह डर है कि कहीं उनसे कर्म ना बंध जाएं। हमारे यहाँ कहा गया है कि कई बार अत्‍यधिक स्‍नेह या अत्‍यधिक दुश्‍मनी के कारण व्‍यक्ति एक-दूसरे के कर्मों से एक रिश्‍ता बांध लेता है जो अगले जन्‍म में भी साथ बना रहता है। इसलिए मैं तो ऐसे लोगों से दूरी बनाने में ही भला समझती हूँ नहीं तो अगले जन्‍म में भी इन्‍हें झेलना पड़ेगा। ऐसे लोगों के कारण पाप तो कटते हैं या नहीं, पता नहीं लेकिन हाँ जीवन का अर्थ समझ आने लगता है।

S.M.Masoom said...

लेकिन उसका पूर्व जन्म में क़त्ल हुआ था?
.
कातिल कौन था यह उसने बताया क्या? क्या कातिल पकड़ा गया?

Bharat Bhushan said...

मैं पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखता इसी लिए मुक्त हूँ. लेकिन जिस तरह आप टिप्पणीकारों के स्वर्ग जाने का मार्ग आप प्रशस्त कर रही हैं इसका मैं कायल हूँ. भड़ास तो कुछ है नहीं, सोच रहा हूँ कुछ प्रतिकूल टिप्पणियाँ कर ही डालूँ. आपका यह आलेख बहुत ख़राब रहा :))

पी.एस .भाकुनी said...

सभी भडासी-टिप्पणीकारों से निवदन है की मुझे मेरे पाप कर्मों के लिए यातना देने अवश्य आयें ताकि मेरे रहे-सहे पाप कर्म भी नष्ट होवें और मन निश्चिन्त होकर परलोक गमन करे।......
vyarth lekhan...........ha ! ha! ha!

Anonymous said...

हास्य में लपेट के करार व्यंग्य किया है आपने......पर कई बार लोग आलोचनात्मक टिप्पणीयों को भी 'भड़ास' के रूप में ले लेते हैं.......आप क्या कहेंगी इस बारे में की कई ब्लॉगर्स सिर्फ अपनी तारीफ़ ही सुनना चाहते हैं इसके विपरीत अगर कोई उनकी पोस्ट में कोई कमी निकल दे तो उसे 'भड़ास' की श्रेणी में डाल दिया जाता है.........हाँ मैं मानता हूँ कुछ लोग जानबूझकर भी दूसरों को परेशान करने के लिए भी ऐसा करते हैं|

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

jaisa bhi laga, achchha ya bura, batana to awashya chahiye.

Irfanuddin said...

शायद हम मे से कई टिप्पणीकारों से मिलने के लिए आपको यदा कदा स्वर्ग लोक से निकल कर नर्क लोक का भी भ्रमण करना पड़े.....:))

प्रवीण पाण्डेय said...

अतृप्त इच्छायें बनी रहेंगी, निश्चय ही।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

मध्यांतर तक गहन अध्ययन तत्पश्चात सांसारिक मोक्ष- कामना.आध्यात्म और हास्य-व्यंग्य का सुन्दर संगम.राज कपूर जी का दर्शन-जीना यहाँ,मरना यहाँ,इसके सिवा जाना कहाँ.ईश्वर आपकी मनोकामना पूर्ण करे.

डा० अमर कुमार said...

.मुझे यह बात कुछ जमी नहीं !
( यह भड़ासी नहीं एक बल्कि नासमझ टिप्पणी है ! )

Anonymous said...

punarjanam sirf bakwas hain
vaise post kafi acchi hain
:)

निर्मला कपिला said...

मै तो ब्लागिन्ग करते हुये कई बार मर कर जन्म लेती रही हैं। मगर याद नही रखती कि कल क्या टिप्पियाया था फिर से चली जाती हूँ सब ब्लागज़ पर भेद भाव किये बिना और बिना बदले की भावना के। हा हा हा ।

DR. ANWER JAMAL said...

पाप के लगातार बढ़ने के बावजूद दुनिया की आबादी में रोज़ इज़ाफ़ा ही हो रहा है । जिससे यही पता चलता है कि आवागमनीय पुनर्जन्म महज़ एक दार्शनिक कल्पना है न कि कोई हक़ीक़त। अगर वास्तव में ही आत्माएं पाप करने के बाद पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की योनियों में चली जाया करतीं तो जैसे जैसे पाप की वृद्धि होती, तैसे तैसे इंसानी आबादी घटती चली जाती और निम्न योनि के प्राणियों की तादाद में इज़ाफ़ा होता चला जाता, जबकि हो रहा है इसके बिल्कुल विपरीत। इसी तरह दूसरे कई और तथ्य भी यही प्रमाणित करते हैं।
आवागमन महज़ एक मिथकीय कल्पना है Awagaman

sonal said...

:-)

DR. ANWER JAMAL said...

अज्ञात आत्मा की ट्रांस
अख़बारों में और टी. वी. चैनल्स पर आए दिन कुछ ऐसे बच्चे दिखाए जाते हैं जो बताते हैं कि वे पिछले जन्म में अमुक व्यक्ति थे और उनकी मौत ऐसे और ऐसे हुई थी और जब जाकर देखा जाता है तो कुछ बच्चे वाक़ई सच बोल रहे होते हैं। वे उन जगहों पर भी जाते हैं जहां उन्होंने कुछ गाड़ रखा होता है और उनके अलावा कोई और उन जगहों को नहीं जानता। वे खोदते हैं तो वहां सचमुच कुछ चीज़ें भी निकलती हैं। इस तरह के बच्चे भी जैसे जैसे बड़े होते चले जाते हैं। वे भूलते चले जाते हैं कि वे सब बातें जो वे पहले बताया करते थे जबकि वे अपने बचपन की बातें नहीं भूलते।
दरअस्ल उस बच्चे का यहां पनर्जन्म हुआ ही नहीं होता है और जो कुछ वह बता रहा था, उसे भी वह अपनी याददाश्त से नहीं बता रहा था। हक़ीक़त यह है कि हमारे अलावा भी हमारे चारों ओर अशरीरी चेतन आत्माएं मौजूद हैं। इन्हीं में कुछ आत्माएं किसी कमज़ोर मन को अपनी ट्रांस में लेकर बच्चे के मुंह से वही बोल रही होती हैं। जेनेरली इन्हें शैतान की श्रेणी में रख दिया जाता है क्योंकि ये परेशान करती हैं। इनके इलाज के लिए हम बच्चे को अज़ान सुनाते हैं। उसमें मालिक का पाक नाम है और उसकी बड़ाई का चर्चा है। एक बार ऐसा ही केस हमारे एक मित्र के सामने आया। जब उन्होंने उसे अज़ान सुनाई तो उस पर सवार शैतान आत्मा भाग खड़ी हुई। अब बच्चे से पूछा कि हां, बताओ बेटा और क्या हुआ था आपके साथ पिछले जन्म में ?
तो वह चुप हो गया क्योंकि जो बता रहा था उसके मुख से वह तो भाग ही चुका था।
हिन्दू भाई उसे अजूबा बना लेते हैं। उसका रूहानी या मानसिक इलाज कराने के बजाय उसे सेलिब्रिटी बना लेते हैं। वे भी अज़ान सुनाकर उसे स्वस्थ कर सकते हैं या अज़ान न भी सुनाना चाहें तो मालिक के पाक नाम तो हिंदी-संस्कृत में भी हैं और इन भाषाओं में उस मालिक की महानता का चर्चा भी है। अपनी भाषा के पवित्र मंत्र पढ़कर आज़मा लीजिए।
हरेक बच्चा इस दुनिया में फ़्रेश आता है। यह तर्क से तो साबित है ही, अनुभव से भी साबित हो जाएगा।
जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है और उसका मन मज़बूत होता जाता है। वह अज्ञात आत्मा की ट्रांस से ख़ुद ही मुक्त होता चला जाता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मोक्ष प्राप्त करने का अच्छा तरीका बताया ...

सुज्ञ said...

भड़ासीयों की मानसिकता को चार्वाक दर्शन से जोडकर आपने शानदार व्यंग्य किया है।
कलयुगी चार्वाक दर्शनी भी पुण्य प्रसस्त सुख ही भोगना चाहते है, पाप प्रस्तावित दुख कहां भोगना चाहते है?

'पाप-कर्म काट कर खपाने के फलस्वरूप मोक्ष संधान' एक विलक्षण बहुमूल्य सिद्धान्त है। और परम-सत्य भी। इसे हलके से नहीं लिया जाना चाहिए। अन्यथा कईं मतिभ्रमित बैठे है जो अर्थ का अनर्थ कर सकते है।

vandana gupta said...

करारा व्यंग्य्।
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्‍वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/

ROHIT said...

पुर्नजन्म की ऐसी घटनाये हजारो बार हो चुकी है.
इन घटनाओ के होने का भी एक मकसद होता है.
ताकि धरती पे नास्तिको को कुछ समझ आ सके.
लेकिन नास्तिक बेचारे किस्मत के मारे.
उनको तब तक कुछ समझ मे नही आयेगा
जब तक उनका इस दुनिया से महाप्रयाण नही होगा.

अब इसी घटना को देख लीजिये.
नास्तिक या पुर्नजन्म न मानने वाले इस घटना मे एक कमी भी नही निकाल सकते.
लेकिन फिर भी वो मानेँगे नही. तो भाई मत मानो.
तुम्हे मनवाना ही कौन चाहता है?
अब एक महाशय कह रहे है.
लड़के मे दूसरी रुह घुस गयी.
हास्यास्पद बातो की भी हद होती है.

सदा said...

बेहतरीन लेखन ।

अर्यमन चेतस पाण्डेय said...

:) :D

nirmal haasya...
bade kharaab mood se aaya tha.....fresh ho gaya.. :)

sajjan singh said...

इस घटना की विस्तृत जाँच के बाद ही पता चलेगा कि वास्तविकता क्या है । अक्सर इस प्रकार की घटनाए सुनने में आती रहती है । जिसका कारण हमारे समाज में व्यापक रूप से फैली पुनर्जन्म की धारणा है । दुनिया के दो बड़े धर्म इस्लाम और ईसाइयत पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते इसलिए उनके समाज में इस तरह की घटनाएं सुनने को नहीं मिलती । उनके अनुसार आत्मा स्वर्ग या नरक में तो जाती है लेकिन पुनः जन्म नहीं लेती । फिर हिन्दू कौनसी स्पेशल आत्मा लेकर पैदा होते हैं जो उनकी आत्मा बार-बार जन्म लेती रहती है । आत्मा में विश्वास भी आदिकालीन मनुष्य के मानव शरीर के विषय में अभाव के कारण था जिसे बाद में धर्मों से जोड़ दिया गया । शरीर में चेतना किसी आत्मा के कारण नहीं होती चेतना उसी पदार्थ में होती है जिससे हम बने हैं । ये पढ़ें- आई पकड़ में आत्मा । और जब आत्मा ही नहीं होती तो पुनर्जन्म किसका होता है । हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा षड़यंत्र है अपने अधिकारों के लिए शोषितों की आवाज को दबाए रखने का यह कहकर की यह तेरे पिछले जन्म के पापों का फल है ।
विज्ञान ने क्लोन बनाकर पुनर्जन्म की अवधारणों को गलत साबित कर दिया है । आज यह संभव है कि किसी जीवित व्यक्ति का क्लोन बनाया जा सकता है । अब जिसका क्लोन बनाया जा रहा है उसका तो पुनर्जन्म नही हो रहा । या दोनों के शरीर में आत्मा का बंटवारा कर दिया जाता है ? रोज़ाना कितनी हत्याएं होती हैं । कुछ ही लोग पिछले जन्म में हत्या कर दिये जाने का दावा क्यों करते हैं । और फिर धरती पर जीवन रूप करोंडों की संख्या में मिलते हैं क्या उनमें आत्मा नहीं होती । फिर कैसे किसी की आत्मा बार-बार मानव शरीर ही धारण करती है । कोई यह क्यों नहीं कहता कि मैं पिछले जन्म में बकरा था और अमुख व्यक्ति ने मुझे काटकर खाया था । माना कि जानवर सोच-समझ नहीं सकते लेकिन आत्मा तो सभी में समान ही होती हैं । समझ तो मानव शरीर में भी मानव मस्तिष्क के कारण होती है । मानव आत्मा के कारण नहीं । मीडिया इस तरह की दावों को बड़ा चढ़ा कर प्रचारित करता है । इनमें कई तरह के विरोधाभास होते हैं ।

smshindi By Sonu said...

बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल २३-६ २०११ को यहाँ भी है

आज की नयी पुरानी हल चल - चिट्ठाकारों के लिए गीता सार

आशुतोष की कलम said...

जीवन में पूर्णता तो बिरले ही किसी महापुरुष ने पाई हो..
हमे तो मोक्ष के लिए "कर्तव्य" कर्म करना गीता सिखाती है..
न पुण्य न पाप
न फिर जनम लेने का अभिशाप ...

सुज्ञ said...

@"दुनिया के दो बड़े धर्म इस्लाम और ईसाइयत पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते इसलिए उनके समाज में इस तरह की घटनाएं सुनने को नहीं मिलती । उनके अनुसार आत्मा स्वर्ग या नरक में तो जाती है लेकिन पुनः जन्म नहीं लेती । फिर हिन्दू कौनसी स्पेशल आत्मा लेकर पैदा होते हैं जो उनकी आत्मा बार-बार जन्म लेती रहती है ।"

sajjan singh जी,

आपनें वो 'बडे' मत (धर्मों?) वाली आत्मा को ही सही आत्मा मान लिया है तो क्यों बताएँ हिन्दू कौनसी 'स्पेशल आत्मा' लेकर पैदा होते हैं?
यह बात सही है कि पूर्व में उन भोगवादी मत का पालन करती आत्माएं हिन्दु धर्म में पैदा हो सकती है, या लगाव भी रख सकती है। और विपरित भी हो सकती है। उतना ही यह सच है कि जन्म कहीं भी ले, अहिंसा धर्म का पालन करती आत्माएँ स्पेशल तो होती ही है। और इसका पता उनमें स्वस्फूर्त दया-करूणा से हो जाता है।

किसी भी इन्सान या जीव में अपने आप दया-करूणा अथवा क्रूरता-स्वार्थ का गुण-अवगुण आना उसके पूर्वजन्म को रेखांकित कर जाता है।

amit said...

acha likha he aapne

DR. ANWER JAMAL said...

ख़ुशफ़हमी की कोई हद नहीं होती !

Anonymous said...

I dont beleive in this, to me heaven and hell are here on earth, :) upto us what we make of it ..
and who knows whats happens when we die..


but i had a smile reading the article nice one :)

Bikram's

ashish said...

मुझे अभी मरना नहीं है . मोक्ष मिले या ना मिले कोई फर्क नहीं पड़ता ., अभी तो जीने के दिन है .

ROHIT said...

जमाल साहब
एक काम कीजिये.

चूकि ये लड़का गरीब घर का है.
इस लिये उससे मिलना आसान है.
तो अब आप उस लड़के से मिलिये .
और उसको अपनी अजान सुनाइये.

आपकी अजान सुनाने से उस लड़के मे घुसी रुह भाग जायेगी
और वो लड़का ये सब बाते बताना बंद कर देगा.
और अगर ऐसा हो गया .
तो आपकी बात मान ली जायेगी.
और चूकि उस लड़के पर मीडिया की भी नजर है.
और अगर आपने ऐसा कर दिया
तो मीडिया के जरिये आपकी बात दुनिया को भी पता चल जायेगी.
ठीक है जमाल साहब.

चंदन कुमार मिश्र said...

जल्द ही पहुँचता हूँ क्योंकि एक जगह मैं भगवान साबित हो चुका हूँ। इसलिए अपने भक्तों को शोर मचाते देख चुप नहीं रहूंगा। इन्तजार करो।

चंदन कुमार मिश्र said...

कुछ देर बाद आ रहा हूँ लेकिन एक बात बता दूँ। केंचुआ को देखा है? अगर हाँ तो वहाँ संसार के किसी धर्म की बात नहीं ठहरती। क्योंकि आप केंचुए को दो टुकड़ों में काट दें और दोनों जीवित होते हैं। यानि अब एक शरीर के अन्दर दो आत्मा। थोड़ी देर ठहरिए, आता हूँ।

ROHIT said...

सज्जन सिँह जी.
दो नये धर्मो के आने के बाद दुनिया नही बनी है. इनके आने के पहले भी दुनिया थी. इनके जाने के बाद भी दुनिया रहेगी.
जो सबसे बड़ा धर्म है उसकी बात कीजिये.सनातन धर्म
इन दो धर्मो के पहले यानी आज से 2500 साल पहले भी था . और आज भी है.
और इन दोनो नये धर्मो के जाने के बाद भी रहेगा.

और आप से ये किसने कह दिया कि पुर्नजन्म की घटनाये मुस्लिम मे या ईसाई धर्म मे नही मिलती.
जाने कितने केस हो चुके है जिसमे लड़का या लड़की पहले मुसलमान थी या ईसाइ थी.

साइंस प्रमाण मांगती है.
और प्रमाण सामने है.
जाइये प्रमाण यानि उस लड़के की जाँच कीजिये.
और इस दुनिया को बताइये
कि सात साल की उम्र का वो लड़का जो पिछले जन्म की बाते बता रहा है वो अक्षरशः सत्य कैसे है?

इस जन्म मे राजस्थान के हनुमान गढ़ का होने के वावजूद वो अपने पिछले जन्म स्थान यानी अबोहर( पंजाब) की भाषा पंजाबी कैसे बोल रहा है.

अपनी पिछले जन्म के कातिल का नाम ,पिछले जन्म के कत्ल का स्थान
पिछले जन्म के अपने परिवार वालो की एकदम सत्य पहचान
और भी बहुत कुछ बिल्कुल सही सही कैसे बता रहा है?

अंधविश्वास एक गलत चीज है लेकिन सबूत के साथ प्रमाणित चीज का विश्वास न करना मूर्खता है.

चंदन कुमार मिश्र said...

जमाल साहब,
एक बार फिर आप सामने हैं। न कोई आत्मा है, न कोई शैतान, न कोई रूह, न पुनर्जन्म होता है। लेकिन इस बार कुछ कहने में मजा नहीं आ रहा है क्योंकि किसी की बात इस लायक है ही नहीं कि उसपर अपना कुछ कहा जाय।

चंदन कुमार मिश्र said...

इस कमीने इंटरनेट की वजह से इतनी बड़ी टिप्पणी चौपट हो गई।

रोहित जी,

चलिए साबित करने को हम तैयार हैं। लेकिन हम न कोई आश्रम चलाते हैं न ही भारत सरकार हमें अनुदान देती है। इसलिए खर्चा उठाइये और इस कहानी की जाँच-पड़ताल कर डालते हैं। लेकिन शर्त होगी कि आप सब बन्धु पुनर्जन्म को मानना छोड़ देंगे।

सारी कहानियाँ नकली हैं।
यह जीवन है बन्धुवर। फिल्म नहीं।

सुज्ञ said...

@लेकिन एक बात बता दूँ। केंचुआ को देखा है? अगर हाँ तो वहाँ संसार के किसी धर्म की बात नहीं ठहरती। क्योंकि आप केंचुए को दो टुकड़ों में काट दें और दोनों जीवित होते हैं। यानि अब एक शरीर के अन्दर दो आत्मा।

चंदन कुमार मिश्र जी,

आपनें यह किस तरह या कहाँ से जाना कि सभी धर्म एक शरीर एक आत्मा ही होती है, कहते है? और केंचुए के जीवन व्यवहार से अनभिज्ञ थे?

चंदन कुमार मिश्र said...

इस ब्लाग पर टिप्पणी करना चाहता तो नहीं था लेकिन एक मित्र ने कहा तो करना पड़ा। जिसने यह बहस शुरु की वह तो गायब है और लड़ रहे हैं सब।

भाई रोहित जी,

धरती के बनने के बाद उसका नक्शा बना न कि नक्शे से धरती। यह हमारा घर नहीं है कि पहले नक्शा फिर घर।

पुराना होना अलग बात है और सत्य होना अलग। जब परमाणु को अविभाज्य नहीं माना जाता था तब भी वैज्ञानिक सम्माननीय थे और उनको गलत साबित करते हुए जिन लोगों ने अविभाज्य माना और बताया वे भी सम्माननीय हैं। द्वेष और अल्पबुद्धिमत्ता से कुछ नहीं होगा।

हम निश्चय ही उन लोगों का सम्मान करते हैं जिन्होंने किसी भी तरह मानव को कुछ दिया। उनके गलत होने से वे कम महान नहीं हो जाते लेकिन उनकी बातों को खूँटे से बांध लेना कहीं से ठीक नहीं है।

आप बार-बार शब्द प्रमाण देते हैं जबकि तर्कशास्त्र में इसका स्थान महत्व का नहीं है।

जमाल साहब,

आपकी बात तो शुरु में अच्छी लगी। लेकिन असली बात आपने फिर कह दी। शैतान होता है और आदमी में घुस जाता है। कहाँ कहाँ से निकाल लाते हैं ये सब बात? आपमें कमी है कि आप बार-बार अपने इस्लामी मत को जायज और सबों को गलत कहने से मानते नहीं। लेकिन ये सब बातें शैतान, आत्मा, पुनर्जन्म की झूठी है। और अगर आपमें या किसी आस्तिक जन में इतनी हिम्मत है तो इस लिंक पर सम्पर्क करिए।

http://tarksheel.com/page.php?aid=7&pn=Challenge

अब जरा इन किताबों को भी देख लीजिए।

http://tarksheel.com/admin/books/Bhotan%20Ka%20Shikar%20Hindi.pdf

http://tarksheel.com/admin/books/Roshni%20Hindi.pdf

विज्ञान से ही मनोविज्ञान का जन्म हुआ है। और आप अपने को विज्ञान का घोर समर्थक मानते हैं। लेकिन मनोविज्ञान ने भूत, प्रेत, जिन्न, परी, शैतान, पुनर्जन्म आदि सबका खंडन किया है। और इस तरह के लक्षणों पर अपनी अच्छी राय पेश की है। व्यामोह नाम कारोग है मनोविज्ञान में उससे ग्रस्त नहीं होइए। मनोविज्ञान के रोगों पर क्या कहूँ? सारे चमत्कारी लोग तो मनिरोगी ही हैं।

फिर मिलते हैं सबों से।

यह टिप्पणी भले जमाल साहब के लिए है लेकिन सबों को पढ़ना और जवाब देना है।

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ भाई,

आपकी बारी तो आने ही वाली थी। लेकिन आपने पहले टिप्पणी कर दी। अच्छा है। प्राण को आत्मा कहते हैं, यह तो सभी मान रहे हैं। अब एक शरीर में दो-दो प्राण हों तो मेरी क्या गलती है।

कुछ और कहिए। इतने से मजा नहीं आया।

सुज्ञ said...

चंदन कुमार जी,

अच्छा है चलो मेरी पहले बारी आ गई। और आपको इतने से मजा भी न आया। खैर मैने तो एक प्रश्न पुछा था कि आपनें कैसे और कहाँ से जाना? प्राण शब्द तो मैने उच्चारित ही नहीं किया? आप यह निश्चित करने का आधार बता दें कि सभी धर्म में केंचुए के दो अंश बनने पर 'एक शरीर में दो आत्मा नहीं हो सकती' यह सैधान्तिक प्रतिपादित है। यह बात आपनें कहाँ से जानी?

ROHIT said...

चंदन जी
अनुदान तो हमे भी नही मिलता है.
और न ही मेरे पास खजाना है. जो मै खर्चा उठाऊ.

और सबसे बड़ी बात मै तो पुर्नजन्म पे 1000 % विश्वास करता हूँ.
इसलिये
जाँच पड़ताल तो वो लोग करे.
जिनको संदेह है.

वैसे आपकी जानकारी के लिये बता दूँ
कि इस मामले मे जाँच पड़ताल करने मे माहिर हमारे मीडिया ने एक से एक धुरंधरो को बिठा कर जितनी जाँच करनी थी.
वो कर चुके है.
और एक भी आदमी इस मामले मे कोई झूठ नही निकाल पाया. और जब झूठ नही निकाल पाया तब
बस अंध् विश्वास कह कर पल्ला झाड़ लिया.

चूकि मै मोबाइल से ब्लागिँग करता हूँ.
इसलिये मेरे जबाब भले ही देर से मिले.
लेकिन मिलेँगे जरुर.

arvind said...

karaara vyangya.....bloging karana our comment/criticise karana bhi punya kaa kaam hai.

रश्मि प्रभा... said...

achha vyangya , dilchasp rachna

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ जी,

आप हमें ऐसा धर्मग्रन्थ बता दें तो कहता हो कि एक ही समय में एक ही आदमी दो जगह पुनर्जन्म में हो। बात रही प्राण के उच्चारित होने की तो मर्द को पुरुष या पुस्तक को किताब कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। पहले मैं यह जानना चाहूंगा कि कौन सा धर्म है जो आत्मा के भी टुकड़े करने की बात करता है।

आप जिसे प्राण कहते हैं उसे गीता ही आत्मा कहती है। वैसे आप अपना सवाल और विस्तार से बताएँ क्योंकि मैं नहीं समझ पा रहा कि आप पूछना क्या चाहते हैं। कोई जरूरी भी नहीं कि सब बात सब के समझ में इतनी जल्दी आ जाय।

mandip raman said...

ई जमालवा इंहा कंहा से आई गवा बे ! लगता है ई सुधरेगा नहीं ! ई तो पूरा कुत्ते की दुम की तरह है टेढा का टेढा !दस हजार वरस तक कितना ही लोहे के पाइप में घुसा के रखो टेढा ही निकलेगा . लगता है इसमें कुत्ते की दुम की रूह घुस गयी है............

चंदन कुमार मिश्र said...

मुझे ऐसा लगता है कि दूसरों के ब्लाग पर जम कर शोर मचाने से अच्छा है अपने ब्लाग पर आकर शोर मचाया जाय।

रोहित जी,

आपके अन्दर भी कुछ घुस तो नहीं गया है। कहीं कोई दिव्य आत्मा तो नहीं?

मीडिया कभी सच भी बोल देता होगा। लेकिन मीडिया कभी इन बातों की जाँच पड़ताल नहीं करता।

अब्राहम कोवूर नाम के एक वैज्ञानिक थे। उन्होंने पचास साल तक यही खोज-बीन की कि कोई चमत्कार है या नहीं और अन्त में कहा कि कुछ नहीं। अब यह मत कहिए कि उनके कहने से क्या होता है? ठीक उसी तरह से आप सबों ने कितने साल खर्च किए हैं इस शोध पर जो बोल रहे हैं। विश्वास करना हमने भी सीखा है लेकिन अब परखने के बाद ही और दिमाग लगाने के बाद ही।

कोवूर ने एक शर्त लगाई थी कि कोई किसी किस्म का चमत्कार करके दिखाए लेकिन आपको बताऊँ कि कोई जीता नहीं कोवूर के मरने तक। वैसे कुछ साबित कर सकते हैं तो तर्कशील का लिंक दिया। वे आपको इज्जत के साथ परखेंगे। जाइये और आजमा लीजिए। मुझे अगर कोई चमत्कार सच में होता दिखता तो मैं जा चुका होता।

चंदन कुमार मिश्र said...

अंकित जी,
जमाल जी से पूरा मतभेद हम भी रखते हैं लेकिन इस तरह मत कहिए वरना मानसिक शोषण का मुकद्दमा चल जाएगा।

aarkay said...

You have suggested a nice short cut to heaven, Zeal ! and are magnanimous enough to expect the same people in heaven !
Nice post.

mandip raman said...

हम तो भैया मानते है की आत्मा और पुनर्जन्म होता है . तुमको जो उखाड़ना है उखाड़ लो . अबे गधों बच्चा पैदा होते ही जो दूध के लिए मचलता है वो क्या बिना पूर्व संस्कार के संभव है?

सुज्ञ said...

चंदन जी,
सही कहा आपनें, मेरा प्रश्न ही इतना बालिश था कि आप आत्मा, व प्राण शब्दों में चले गये।
आपनें अपने तर्कों के माध्यम से धर्मों को अनभिज्ञ साबित किया है, केंचुए के उदाहरण से!! मेरा यह सवाल है कि केंचुए जैसे जीवों के एक शरीर में दो आत्मा (प्राण की व्याख्या भिन्न है, वह फिर कभी)की उपस्थिति से धर्म अनजान थे, और इस बात पर सभी धर्मों को निरूत्तर किया जा सकता है। धर्म-शास्त्रों की इस अल्पज्ञता का नॉलेज आपको कहाँ से हुआ?
शायद अब प्रश्न स्प्ष्ठ हुआ हो…

अधिकांश लोग अंधविश्वासों पर तर्क रखते रखते तर्कों के अंधविश्वासी बन जाते है। अर्थात् तर्कों की अंध भक्ति करने लग जाते है।

@आप हमें ऐसा धर्मग्रन्थ बता दें तो कहता हो कि एक ही समय में एक ही आदमी दो जगह पुनर्जन्म में हो।

एक पुनर्जन्म में दो आदमी? यह बात कहाँ से आई?

सुज्ञ said...

चन्दन जी,

यह भी साफ करदूँ कि मेरे इस प्रश्न के निहितार्थ क्या है…
ताकि मैं यह जान सकुं सभी धर्मों को कटघरे में खडा करनें योग्य आपका अध्यन है?

आप क्या तर्कों के अंधविश्वास से बाहर आकर विचार कर सकते है?

अंधविश्वासों का मैं भी विरोधी रहा हूँ, पर आस्था और अंधविश्वास में बहुत अन्तर है। पर महीन सा।

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ जी,

अपने सवालों को तो हर आदमी महत्वपूर्ण समझने लगता है।

ओह! सवाल कुछ कुछ समझ में आया सा लगता है।

सारे धर्मों में आत्मा, पुनर्जन्म की बात आती है। बौद्ध में भी।

'अधिकांश लोग अंधविश्वासों पर तर्क रखते रखते तर्कों के अंधविश्वासी बन जाते है। अर्थात् तर्कों की अंध भक्ति करने लग जाते है।'

ऐसी सूक्तियाँ या कूक्तियाँ मत लिखिए। यह तो ज्यामिति के कुप्रमेय जैसा हो जाता है। बलिश मतलब मैं नहीं जानता।

अभी तो दो आत्माओं की बात कही है। यहां एक आदमी शरीर में अरबों अणु हैं यानि अरबों आत्माएँ हैं।

मैं धर्मों के बारे में कोई पूर्वाग्रह नहीं रखता। लेकिन जो बात नहीं पचने लायक है उसे हाजमोला खाकर पचाने का काम मैं नहीं करता।

अगर यही जानना चाहते हैं तो कि मैं केंचुए का उदाहरण कैसे जानता हूँ तो कोवूर की किताब में पढ़ी और खुद देखा भी। कोवूर की किताबें हैं(हिन्दी में)- 'और देवपुरुष हार गए' और 'देव और दानव'। बड़ी खतरनाक किताब है बाइबिल को सबसे अश्लील करार देती है। यह बताते हुए कि कहाँ कैसे और क्या अश्लील है?

किताब का पता भी चाहिए तो वह भी मिल जाएगा।

ROHIT said...

चंदन जी
मेरे दिमाग मे कुछ नही घुसा है.
आपके दिमाग मे जरुर ग्रंथो पर अविश्वास का कीड़ा घुसा हुआ.
मै उस टाइप का आदमी नही हुँ कि जब लाखो किलोमीटर दूर बैठा कोई गोरा किसी चीज को प्रमाणित करेगा तब मै मानूंगा.

आपने सही कहा कि ये जीवन फिल्म नही है.
मै भी ये कह रहा हूँ कि जीवन कोई फिल्म नही है
कि आपको आत्मा के शरीर मे घुसते हुये और फिर शरीर से निकलते हुये और फिर पुर्नजन्म लेते हुये साफ दिखायी पड़ेगा.
ऊपर वाले ने बहुत से संकेत दिये है.
समझदार लोग संकेतो से समझ लेते है.

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ जी,

अंग्रेज कितने दयालु थे, इसके लिए हर अंग्रेज की जाँच पड़ताल हो तब तो संसार में किसी तरह की बात कभी भी कही ही नहीं जा सकती।

एक धार्मिक जन का ही एक वाक्य है। इतने बड़े जन कि कोई आलोचना नहीं करेगा।

'यह विश्वास तो होता अन्धा है। फिर यह अन्धविश्वास क्या चीज है?'

यानि अगर मैं आपसे कहूँ कि मैं रोज यह किताब पढ़ रहा हूँ और आप मान गये बिना जाँच-पड़ताल के तो यही विश्वास है। और इसे ही अन्धविश्वास कहते हैं।

अगर आप जाँच पड़ताल करके या संदेह करके मानते हैं तो वह ज्ञान है न कि विश्वास क्योंकि विश्वास, श्रद्धा और आस्था ज्ञान नहीं हैं।

ROHIT said...

चंदन जी
आप इस पुर्नजन्म की घटना को झूठ बता रहे है.
चलिये सबूत दीजिये कि आखिर ये झूठ या नाटक कैसे है?

चंदन कुमार मिश्र said...

परम आदरणीय श्रीमान रोहित जी,

मैं किसी गोरे की बात नहीं कर रहा। वह वैज्ञानिक गोरा नहीं काला था। भारत के पास का श्रीलंका का। और बात भारतीयता की। मैं जानना चाहता हूँ कि आपका परिचय क्या है? क्या आपने अंग्रेजी डिग्री ली है, अंग्रेजी को पसन्द करते हैं? मैं इन दिनों अंग्रेजी के खिलाफ़ एक किताब लिखने में व्यस्त हूँ। उसे पढ़ने पर मालूम हो जाएगा कि गोरों का कितना बड़ा मित्र हूँ मैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी कह दें।

आप इसके पहले भी मुझसे बहस कर चुके हैं और कई बार बता चुका हूँ कि भारत के ग्रन्थों का अपमान मैं नहीं करता लेकिन उसमें कमी है तो मानने में कुछ हर्ज नहीं है।

गोरों की बात कहकर आपने मुझे कुछ गलत तो कहा ही है। आपके अन्दर क्या घुसा है क्या नहीं, ये तो आप ही जानें लेकिन आपकी बहस में हिस्सेदारी का औचित्य लगता नहीं है।

इतना याद रखें। मैं भागूंगा नहीं बहस से। अगर मैं गलत हूँ तो मानूंगा भी जैसे कि करना चाहिए लेकिन आप जो कह दें उसका कोई आधार नहीं है, तो कैसे मान लूँ।

इस ब्लाग पर टिप्पणी करना अच्छा नहीं लग रहा है। लेकिन भागना मंजूर नहीं है।

आपने प्रमाणों की जानकारी ली कहाँ से? कितना जानते हैं आप भारत के बारे में? नकली कहानी नहीं। जानता तो मैं भी नहीं। लेकिन भारत मेरे लिए दुनिया का सबसे अच्छा देश है और रहेगा। शब्द प्रमाण, अनुमान प्रमाण और प्रत्यक्ष प्रमाण तीनों को देखिए। आप केवल शब्दों में फँसे रहते हैं।

आप अंग्रेजों और गोरों को मुझसे ज्यादा नफ़रत करते नहीं होंगे अगर आप यह देख लें कि मैं लिखता कैसा हूँ। कम से कम मेरे ब्लाग पर। याद रहे नास्तिकता का पहला प्रचारक भी गोरा नहीं है। भारत में ही शुरु हुआ था सबसे पहले।

sajjan singh said...

पुनर्जन्म लेने की बात करने वाला कोई व्यक्ति ये क्यों नहीं कहता की मैं पिछले जन्म में गधा, सूअर या बंदर या छिपकली था । क्या इंसानों की आत्माओं का ही इंसानो के शरीर पर ऐकाधिकार है । यहां जितने भी लोग पुनर्जन्म के पक्ष में बोल रहें हैं क्या वो अपने पिछले जन्म के बारे में कुछ बता सकते हैं ।
@ रोहित
इस्लामी समाज पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता । इसका प्रमाण खुद अनवर जमाल साहब हैं । जिन घटनाओं को पुनर्जन्म बताया जाता है । उसका कारण जमाल किसी शैतानी करने वाली आत्माओं को बता रहे हैं ।

चंदन कुमार मिश्र said...

रोहित जी,

चीनी का गुण है मीठा होना और अगर वह नमकीन हो तो वह चीनि नहीं है। मुझसे यह पूछने के पहले कि मैं प्रमाण दूँ कि यह घटना कैसे झूठी है, आपने खुद बेवकूफी दिखाई। वह इस प्रकार कि लाखों नहीं शायद हजारों मिल दूर बैठकर किसी चैनल वाले या किसी अखबार वाले ने कुछ कह दिया तो आप सत्य मानकर झगड़ने लगे। अब आप खुद ही कहते हैं आप वैसे नहीं कि लाखों मील दूर कोई कुछ कहे तो आप मान लें लेकिन यहाँ तो सैकड़ों मील में ही आप फँस गए।

जीवन और जगत said...

ब्‍लॉग जगत का यही तो कमाल हे। यहां ताली और गाली फौरन मिल जाती है।

चंदन कुमार मिश्र said...

बन्धुओं,

मनोविज्ञान ने भूत-प्रेत के रोगियों को डंडे और पिटाई से बचाया है। उसमें एक रोग है - स्थिरव्यामोही मनोविदलता। अधिकांश लोग इसी से ग्रस्त लगते हैं।

विवेकानन्द कहते हैं कि क्या तुमने कभी सोचा कि ईश्वर है? अब यह मत कहिए कि यह बात विषय से हटकर है।

यानि क्या आपने कभी सोचा है कि पुनर्जन्म और आत्मा जैसी चीजें हैं। कल की बहस में भी मैंने कहा कि बहस का कोई फायदा नहीं। सब वहीं रहेंगे जहाँ हैं।

एक जन का कहना है बच्चा दूध खोजे तो पुनर्जन्म है लेकिन पानी में लकड़ी सड़ जाए तो इससे पानी में प्राण होने का सबूत नहीं मिलता। या फिर पानी रास्ते से बह जाता है जैसे ही उसे कोई रास्ता मिल जाता है तो क्या पानी ने भी पुनर्जन्म ले लिया। तब तो हम हार गए।

चंदन कुमार मिश्र said...

रोहित जी,

जरा बताएंगे कि आप क्या करते हैं? कैसे हैं?

दिवस said...

दिव्या दीदी पुनर्जन्म के कंसेप्ट के माध्यम से आपका लिखा यह व्यंग बहुत अच्छा लगा| क्या खूब लिखा है आपने कि टिप्पणियों में आपको गाली देने वाले दरअसल आपके लिए स्वर्ग के द्वार खोल रहे हैं|
डॉ. जमाल की तो बात ही छोडिये...वे कभी मुद्दे पर नहीं आ सकते| बात क्या हो रही है, इन्हें कभी पता ही नहीं चलता| ये तो बस लगे हैं अपना इस्लाम झाड़ने...



भाई चन्दन जी आपने मुझे बताया था कि आप २००५ के बाद से नास्तिक हो चुके हैं| साथ ही आपने यह भी कहा था कि बहस का कोई मतलब नहीं क्यों कि अब मेरे लिए आस्तिक होना संभव नहीं| यह आपका अपना अधिकार व आपकी अपनी इच्छा है| कोई आप पर जोर जबरदस्ती आस्तिक होने का दबाव नहीं डाल सकता| यदि आपकी हमारी आस्था में आस्था नहीं है तो यह समस्या आपकी है हमारी नहीं| यदि हमारी आस्था से आपकी आस्था का पतन हो रहा है तो भी यह समस्या आपकी है हमारी नहीं| यदि आपकी अपनी आस्था में ही आस्था नहीं है तो कारण बाहर नहीं भीतर ही है|
सबसे पहली बात तो यह लेख कोई पुनर्जन्म पर बहस करने के लिए नहीं लिखा गया है| यह एक व्यंग है| आपने बहुत किताबें पढ़ीं व लिखी हैं यह मैं जानता हूँ| आपका उद्देश्य भी पाक है, यह भी मैं जानता हूँ| किन्तु आप इतना तो ध्यान दीजिये कि आलेख का विषय क्या है? यहाँ आप जन्म मरण, पुनर्जन्म, भूत प्रेत, आत्मा परमात्मा, भगवान् शैतान की चर्चा कैसे छेड़ सकते हैं?
दूसरी बात यदि आप इस विषय पर बहस करना ही चाहते हैं तो आप को बता दूं कि आपको हमारे तर्क समझ नहीं आएँगे, क्यों कि आपने स्वयं को पूर्वाग्रहों से ग्रसित कर रखा है| क्षमा कीजिये किन्तु ऐसा मैं आपकी पिछली कुछ मेल के आधार पर कह रहा हूँ जो आपने मुझे भेजे थे| आप आत्मा परमात्मा के महत्त्व को तब तक नहीं समझ सकेंगे जब तक कि आप स्वयं को नास्तिक कहते रहेंगे|
ज्ञान विज्ञान को भगवान् से भिन्न पता नहीं आप कैसे बता सकते हैं? आखिर मैं भी एक पंडित हूँ और साथ ही एक इंजिनियर भी| अत: विवाद न करें| जब हमे ही आपकी आस्था से कोई विद्रोह नहीं है तो आप क्यों हमारी आस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं? यदि आप शास्त्रार्थ ही करना चाहते हैं तो मैं इसके लिए तैयार हूँ| | किन्तु इसके लिए पहले आपको अपने मन से अपने पूर्वाग्रहों को निकालना होगा| अन्यथा मैं कुछ बोलता रहूँगा और प्रतिउत्तर में आप कुछ और| जिसका कोई परिणाम नहीं निकलने वाला|
आप क्या सोचते हैं कि यह सारा संसार ऐसे ही बन गया| कोई तो शक्ति है जिसने यह सृष्टि बनाई है| आप उसे विज्ञान कह लीजिये हम उसे विज्ञान के साथ भगवान् भी कह देते हैं| भगवान् बुरा नहीं मानेगा|

आपके लिए एक लिंक दे रहा हूँ...एक नज़र डालियेगा |
http://www.diwasgaur.com/2011/04/blog-post_7196.html
बंधुवर मन में कोई शंका हो तो बता देना आप जब खुद को भगवान् बोल सकते हैं तो हम भी भगवान् के अस्तित्व को सिद्ध कर सकते हैं| आपके नकारने से उसका अस्तित्व खतरे में नहीं पड़ने वाला|
किन्तु आपके द्वारा दिए गए सभी तर्कों को मैं सिरे से नकारता हूँ|

अंत में आपसे इतना अवश्य कहना चाहता हूँ कि कहीं भी टिपियाने से पहले विषय पर ध्यान दिया कीजिये|

दिवस said...

चन्दन भाई एक बात और, मुझे ऐसा लगता है कि भगवान् कहीं न कहीं आपके ईगो के सामने आड़े आ रहा है, शायद इसीलिए आप स्वयं को नास्तिक कह रहे हैं|
आपको आपके सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा| हाँ देर सवेर हो सकती है क्यों कि मैं हर समय ब्लोगिंग नहीं कर सकता|

ROHIT said...

आप भी चंदन जी कैसी हास्यास्पद बाते करते है.
कह रहे है कि मीडिया टी वी ,चैनल झूठी खबरे बता रहा है.
अरे बंधु टीवी चैनलो का यही तो फायदा है कि हम घर बैठे वहाँ पहुच जाते है जहाँ घटना हुयी है.
अगर लादेन मरा इसीलिये मीडिया ने न्यूज दी.
उसे बिना मरे नही मार दिया.
आप मुद्दे की बात नही करते है. फालतू प्रलाप ज्यादा करते है.

सुज्ञ said...

चन्दन जी,
नहीं मैं अपने सवाल को महत्वपूर्ण नहीं मानता। इसीलिए उसे बालिश कहा, बालिश यानि बचकाना।

@सारे धर्मों में आत्मा, पुनर्जन्म की बात आती है। बौद्ध में भी।
वह तो मालूम है। पर आपने कैसे यकिन किया कि 'सभी'धर्म किसी भी जीव के एक शरीर में एक आत्मा ही प्रमाणित करते है? और वे यह भी नहीं मानते कि शरीर में अरबों अणु हैं यानि अरबों आत्माएँ हैं।

@ऐसी सूक्तियाँ या कूक्तियाँ मत लिखिए। यह तो ज्यामिति के कुप्रमेय जैसा हो जाता है।
ज्यामिति के कुप्रमेय क्या बला है? और कोवूर क्या केंचुए को कहते है? किसी पाश्चात्य विद्वान को आंखे बंद कर पढना नहीं सुहाता।

@'यह विश्वास तो होता अन्धा है। फिर यह अन्धविश्वास क्या चीज है?'
आत्मविश्वास की शक्ति के बारे में आपको नहीं पता?

@यानि अगर मैं आपसे कहूँ कि मैं रोज यह किताब पढ़ रहा हूँ और आप मान गये बिना जाँच-पड़ताल के तो यही विश्वास है। और इसे ही अन्धविश्वास कहते हैं।

छोटा सा जीवन है, कहाँ कहाँ जांच पडताल किया जाय? शरीर में दिल है या नहीं अपना ही शरीर खोलकर जांच की जाय? शरीर शास्त्रीयों के कथन को क्यों प्रमाण माना जाय?

@अगर आप जाँच पड़ताल करके या संदेह करके मानते हैं तो वह ज्ञान है न कि विश्वास क्योंकि विश्वास, श्रद्धा और आस्था ज्ञान नहीं हैं।

नहीं!! सदेह सहित ज्ञान भी अज्ञान में बदल जाता है। और जहाँ हमारे जानने की सीमा खत्म हो वहाँ से आगे श्रद्धा अज्ञान होकर भी सम्यक ज्ञान में रूपांतरित हो जाता है।

चंदन कुमार मिश्र said...

दिवस भाई,

आपकी बातों का आदर करते हुए कुछ कहना चाहता हूँ कि आप मेरी सभी टिप्पणियाँ पढ़ लें या anvarat.blogspot.com/2011/06/blog-post_19.html पर भी बहस चली थी उसे देख लें। मेरा अन्तिम निष्कर्ष बार बार यही कहना होगा कि हमें इस बेकार के सवाल को छोड़कर देश और दुनिया को सँवारना होगा। वैसे आपने जो कुछ कहा है वह आप सोचते हैं। और मेरे पास कोई ऐसा ताला नहीं जो किसी की सोच पर लगा दूँ। हाँ आपके लिंक अभी देखता हूँ।

आप मुझे पूर्वाग्रह से ग्रसित बताएंगे और मैं आपको। इस तरह फालतू लफड़े में पड़ने से बेहतर है बेहतर आदमी होना, बेहतर भारतीय होना।

और हाँ नास्तिक के बारे में मैं उपर वाले लिंक पर बहुत कह चुका हूँ लेकिन पता नहीं आप लोगों को व्यक्तिगत शिकायत क्यों हो जाती है?
जमाल जी से मुझे हमेशा टेढ़ी बात करने की जरूरत हो आती है क्योंकि मैं उनके द्वारा लिखी गई टिप्पणियों को पढ़ते-पढ़ते ऊब गया था और इस बार वे ही पकड़े गए।

और यह बात आपकी गलत है कि यह एक व्यंग्य है, फिर भी मैंने बहस की है। मैंने बहस लोगों के साथ की है न कि इस आलेख के साथ।
अब आप जो समझें……………। मुझे आपसे इस टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी।

ROHIT said...

देखिये भाई चंदन जी
आप क्या है. क्या कर रहे है? उससे मुझे कोई मतलब नही है.
और मैने कल भी कहा था.
कि मुझे नास्तिको को आस्तिक बनाने मे कोई दिलचस्पी नही है.
और नास्तिको के होने से इस दुनिया पर कोइ असर नही पड़ने वाला.
वो वैसे ही चलेगी जैसे चलती है.
जैसे किसी चीज को साबित करने के लिये सबूत देने पड़ते है.
वैसे ही किसी चीज को झुठलाने के लिये भी सबूत देना पड़ता है.
केवल हवा मै कह देना कि सब कुछ झूठ है. बहुत आसान है.
अगर आप इस पुर्नजन्म की घटना को नाटक साबित कर सकते है.
तो करिये
अन्यथा व्यर्थ प्रलाप मत करिये.

sajjan singh said...

धर्मग्रन्थों में विश्वास रखने वाले चौरासी लाख योनियों वाली बात को भी मानते होंगे । यह कैसे संभव है कि 84 लाख योनियों में से दो बार किसी को मानव की योनि मिल जाए । आपसी रंजिश के चलते रोजाना पता नहीं कितनी हत्याएं होती है । फिर कुछ ही लोग पुनर्जन्म का दावा क्यों करते हैं । मीडिया तो इस तरह की खबरों की ताक में रहता है । वह कभी भी पूरा सच जानने की ज़हमत नहीं उठाता है । समाज में प्रचलित अंधविश्वासों को खत्म कर लोगों में वैज्ञानिक सोच का प्रसार करने के लिए भारत में कई ऐसी संस्थाए और संगठन कार्य कर रहे हैं जिनके द्वारा इस तरह के कई मामलों की जाँच की गई है । उनमें से एक भी घटना सही नहीं निकली । इस घटना की भी निष्पक्ष जाँच से ही पता चलेगा की यह सच्चाई है या लोगों को गुमराह करने के लिए गढ़ी गई कहानी ।

चंदन कुमार मिश्र said...

मैं जानता हूँ कि आप मुझे पागल, प्रलापी, बकवास करनेवाला, बेवकूफ, अंधविश्वासी सब ठहराएंगे और आप सबकों मैं। इसलिए बार बार कहता हूँ कि इन बातों को छोड़िए।

यहाँ रोहित को भरोसा है कि लालबहादुर शास्त्री की मौत जैसा बताया गया है वैसे ही हुई है या फिर भारत भिखारियों का देश था, यह भी तो मीडिया यानि अखबार जैसी चीजों ने ही बताया था लेकिन यह सब विश्वास करने लायक नहीं है। क्योंकि सच्चाई कुछ और है।

मैंने गलती की है जो ब्लागों पर बहस शुरु कर दिया है। कितना अच्छा था, चुपचाप पढ़ लेता था और शांत हो जाता था।

दिवस said...

और हाँ चन्दन भाई, एक बात बताना भूल गया| मैं आस्तिक हूँ| भूत प्रेत से नहीं डरता| किन्तु आत्मा के अस्तित्व को नही नकारता|
कई लोग कहते मिले कि दिन है तो रात है, सच है तो झूठ भी है, अत: भगवान् है तो शैतान भी है|
मैं कहता हूँ होने दो, तुम्हारा क्या बिगाड़ रहा है?
जब दिन होता है तो रात नहीं होती| रात तभी होती है जब दिन छुप जाता है| इसी प्रकार जहाँ ईश्वर है वहां शैतान कहाँ से होगा? यदि आपने मन से ही इश्वर को निकाल दिया है तो वहां शैतान का वास तो होगा ही| कोई भी पात्र खाली तो नहीं रह सकता न, ऐसा विज्ञान कहता है| आपका मन कैसे खाली रह सकता है? मेरे मन में इश्वर है, अत: सदैव सकारात्मक विचार ही सोचूंगा| कभी किसी का बुरा करने का मन में विचार भी नहीं आएगा|
यदि इश्वर को ही निकाल दूं तो मुझसे बड़ा शैतान कोई न होगा|

आप भी यदि किसी का विनाश नहीं देख सकते, सबको सुखी देखना चाहते हैं तो इसका अर्थ है कि आपके मन में इश्वर है| अत: आप भी आस्तिक हैं| यही तो परिभाषा है भगवान् की| बस यह भगवान् आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रहा है, अत: आपको स्वयं को नास्तिल समझ रहे हैं|

चंदन कुमार मिश्र said...

हाँ श्रीमान रोहित जी,

मैं तो जो कहूंगा वह प्रलाप है और आप जो कहेंगे वह दुनिया का परम सत्य। अज्ञानी आदमी क्या कर सकता है? प्रेमचन्द की बड़ी अच्छी उक्ति है कि विशेषज्ञ निष्पक्ष नहीं होता क्योंकि उसे सब कुछ एक ही चश्में से देखने की आदत पड़ जाती है।

आप शायद जानते होंगे कि किसी चीज का न होना तब तक स्वयं प्रमाणित माना गया है जबतक कि उसका होना प्रमाणित नहीं हो जाय। आप बुद्धिमान, विद्वान और ज्ञानी लोग हैं। समझ लेंगे कि मेरे कहने का मतलब क्या है?

चंदन कुमार मिश्र said...

अब दिवस भाई को मैं क्या कहूँ कि वे हर बार मुझे आस्तिक बनाने और साबित करने पर तुले रहते हैं।

मुझे ईश्वर से कोई काम नहीं। आप देखिए खुद किसने बहस को ईश्वर की तरफ़ मोड़ा। आप मेरे अन्दर ईश्वर को देखें तो यह आपकी दृष्टि है। लेकिन आप लिंक वाली बहस को जरूर देखें।

दिवस said...

वही तो मैं कह रहा था| इस बहस में क्या पड़ना? भगवान् को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई आस्तिक है या naastik|
किन्तु यहाँ पर बहस छिड़ी थी अत: यह टिपण्णी की|
आपको मुझसे ऐसी टिपण्णी की उम्मीद नहीं थी, क्यों नहीं थी? क्या मैं अपना मत नहीं रख सकता? क्या टिपण्णी के द्वारा मैंने आपका अपमान किया है?
यदि ऐसा है तो बंधुवर अपना दृष्टिकोण बदलें| मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है|

चंदन कुमार मिश्र said...

अभियंता यानि इंजीनियर भाई दिवस जी,

शून्य न धनात्मक है न ॠणात्मक्। वह बस शून्य है। संख्या रेखा पर शून्य के उस पार धन और इस पार ॠण। इसलिए न शैतान भाई हैं न भगवान भाई हैं।

चंदन कुमार मिश्र said...

मेरा मतलब ऐसी टिप्पणी जिसमें कोई जान नहीं हो वही विलाप-प्रलाप हो जो सब बेवकूफ करते रहते हैं। क्योंकि आपको मैंने उस कोटि में नहीं रखा है।

चंदन कुमार मिश्र said...

एक बात समझ में नहीं आती कि कोई भी बन्धु उन दावों पर कुछ नहीं बोलते जो तर्कशील पर हैं।

मैं अकेला और मेरे उपर रोहित जी, सुज्ञ जी और अब दिवस भाई।

दिवस said...

ठीक है तो आप निष्क्रिय (शून्य) ही बने रहना चाहते हैं तो आपकी इच्छा| किन्तु हम सक्रीय रहना चाहते हैं...

दिवस said...

अकेले हैं तो स्वयं को अबाल क्यों समझ रहे हैं? हम कोई आपसे मलयुद्ध तो कर नहीं रहे|

चंदन कुमार मिश्र said...

दिवस भाई,
आपके आलेख को पढ़ा। अच्छा है। सोच का दायरा बड़ा है। संकुचित नहीं लेकिन आप जैसे हैं बहुत कम। दिखावे के लिए तो करोड़ों हैं।

उस पर मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन टिप्पणी की अनुमति हो तब।
अभी नहीं। बाद में।
इन बहसों ने किसी को फायदा नहीं पहुँचाया। समय बेकार करती है बहसें।

चंदन कुमार मिश्र said...

अब तो हँसी आ रही है। मल्लयुद्ध! अति सुन्दर। विनोदी वाक्य।

मैं क्यों अबाल समझूंगा? यह अबाल क्या है? मैं नहीं जानता।
हाँ विनोबा की दृष्टि में जो धर्म है वह मुझे पसन्द है और कुछ कुछ वैसा ही आपका भी।

और सब बच्चे कहाँ गए?……(विनोदी स्वभाव का वाक्य)

दिवस said...

दिव्या दीदी क्षमा करें इस बहस में आपके लेख का मुख्य मुद्दा कहीं खो गया| मैं भी इस बहस में शामिल हो गया था अत: इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ|
किन्तु मैं भी क्या करता? जब आपके ब्लॉग पर आया तो डॉ. जमाल की टिपण्णी देख कर पहले ही दिमाग खराब हो गया| फिर यह बहस|
चन्दन भाई आपसे किसी प्रकार का कोई बैर भाव मेरे मन में नहीं है, किन्तु सभ्यतापूर्वक अपने विचार रखना मेरा अधिकार है| मैंने कहीं भी आपका अपमान नहीं किया|
भाई हंसराज जी व भाई रोहित जी साधुवाद| आपकी टिप्पणियों से बहुत कुछ सीखा| हंसराज भाई आपकी टिप्पणियां बहुत शानदार लगीं|

सुज्ञ said...

चन्दन जी,
एक तो आपको सुक्ति(अधिकांश लोग अंधविश्वासों पर तर्क रखते रखते तर्कों के अंधविश्वासी बन जाते है। अर्थात् तर्कों की अंध भक्ति करने लग जाते है।) की भाषा समझ नहीं आती और जरूतरत पडनें पर प्रेमचन्द की उक्ति(प्रेमचन्द की बड़ी अच्छी उक्ति है कि विशेषज्ञ निष्पक्ष नहीं होता क्योंकि उसे सब कुछ एक ही चश्में से देखने की आदत पड़ जाती है।) का इस्तेमाल करते है।
चलो यह उक्ति भी सही ही है। आत्ममंथन किजिए!! ओह! आत्म? नहीं आप तो दिमाग मंथन ही किजिए।

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ जी,

कोई बात नहीं। मजा आया कुछ कहकर और कुछ सुनकर। हाँ ब्लाग पर लोग कह या बोल या लिख सकते हीम उच्चारित नहीं कर सकते।

मैं मंथन करता हूँ तो यह सोचने की फुरसत नहीं होती कि वह आत्ममंथन है या दिमाग मंथन।

आत्मकथा को भी आप लिखेंगे तो दिमागकथा लिखेंगे। अच्छा होगा……।

चंदन कुमार मिश्र said...

अजीब हाल है। परसों द्विवेदी जी के ब्लाग पर गया तो टिप्पणियों की संख्या अस्सी पार और आज यहाँ आया तो भी अस्सी पार।

Sushil Bakliwal said...

भडासी टिप्पणियों की तो राम जाने किन्तु पूर्वजन्म प्रायः अकाल मृत्यु के बाद ही देखने में आता रहा है ।

चंदन कुमार मिश्र said...

सुशील बाकलीवाल जी,

अकाल पड़ना भी अकाल है, सूखा भी अकाल है, भूकम्प भी अकाल है यानि जो लोग बिहार में बंगाल में अकाल से मरे सब पुनर्जन्म ले चुके हैं। भोपाल गैस कांड में, नागासाकी और हीरोशिमा में मरे लाखों लोग सब पुनर्जन्म ले चुके हैं।

क्या बात है?

ROHIT said...

चंदन जी
एक बात ध्यान मे रखा करिये
कि जो इस दुनिया मे सैकड़ो करोड़ो लोग भगवान को मानते है.
वो मूर्ख नही है.
आप नास्तिक है तो बने रहिये .
किसी को कोइ समस्या नही है.
लेकिन अगर आप ये सोचे कि जैसा आप सोचते है .वैसा ही सब सोचे और वो ही सत्य है.
तो बन्धु ऐसा नही होने वाला.
अगर आप किसी चीज को नकारते है तो उसका प्रमाण रखिये.
अन्यथा उस बात का कोइ फायदा नही.
अब जब तक इस पुर्नजन्म की घटना के झूठ को कोई सबूत के साथ साबित नही करेगा.
तब तक ये घटना सत्य ही रहेगी.

चंदन कुमार मिश्र said...

ठीक है। बुद्धदेव।

मेरे गाँव में जो पेड़ है वह पिछले जन्म में मैकाले था। चूंकि वह बोल नहीं सकता इसलिए मैं उसे दिखा नहीं सकता। आइये और साबित करिए कि वह मैकाले नहीं है।

तर्क का नियम कहता है कि स्वीकारने वाला सबूत दे और दिखाए और जब तक ऐसा नहीं है तब तक अस्वीकार करनेवाला सही है।

सुज्ञ said...

@दिवस जी,

आपकी टिप्पणी से ही ज्ञात हुआ कि "भाई चन्दन जी आपने मुझे बताया था कि आप २००५ के बाद से नास्तिक हो चुके हैं| साथ ही आपने यह भी कहा था कि बहस का कोई मतलब नहीं क्यों कि अब मेरे लिए आस्तिक होना संभव नहीं।" मेरी पृच्छा बेमानी हो गई।

मैं भी किसी भी तरह के नास्तिक में आस्था के बीज रोपने का वंध्या प्रयास नहीं करता।
@दिवस जी,आपकी टिप्पणीयां भी सार्गर्भीत है।

@दिव्या जी, मेरी टिप्पणीयां पूर्वजन्म से सम्बंधित है अतः इसे विषय से इतर न मानें।

@चन्दन जी, सार्थक चर्चा में मुझे मजा अवश्य आता है पर मात्र तर्की-कुतर्की में मुझे मजा नहीं आता।

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ जी,

फिलहाल तो नहीं लेकिन रात को आपके ब्लाग पर देखते हैं। दिवस भाई की बात तो बाद में पहले कल वाले द्विवेदी के आलेख पर जो बहस हुई उसे देखें। मैंने विस्तार से लिखा है सब कुछ्। वहां आपके बहुत से सु-तर्कों का जवाब शायद मिल जाय।

ROHIT said...

कुतर्क करके अपनी हँसी मत उड़वाइये.

ये जो लड़का है .उसके पास अपने को साबित करने के लिये हजारो सबूत है.
और सब सही है.

पुनः कहूंगा बिना सर पैर की बाते मत किया करिये.
े को साबित करने के लिये हजारो सबूत है.
और सब सही है.

पुनः कहूंगा बिना सर पैर की बाते मत किया करिये.

ROHIT said...

टिप्पणी गलत रुप से छप गयी है.टिप्पणी गलत रुप से छप गयी है.

डॉ टी एस दराल said...

दिव्या जी , अखाडा बनी आपकी आज की पोस्ट आपके स्तर से बहुत नीची है ।
मांफ कीजियेगा --फ्रेंक ओपिनियन है ।

सुज्ञ said...

चंदन जी,

वहाँ विस्तार में अवश्य होगा, किन्तु सेम्पल के दर्शन यहाँ हो चुके है।
आस्तिक-नास्तिक यहाँ मुद्दा भी नहीं है। पर मेरा मंतव्य कहता चलूँ कि सदाचार और सद्गुणों का पालन करता हुआ नास्तिक मेरी नजर में लाख गुना बेहतर है,बजाय दुर्गुणों के ठांव वाले आस्तिक से। किन्तु आस्तिक में सदाचार की सम्भावनाएं अधिक और बलवती होती है।

रविकर said...

फेंक देती एक पत्थर
शान्त से ठहरे जलधि में-
और फिर चुप-चाप लहरों
का मजा लेते रहें |
मेंढक-मछलियाँ-जोंक-घोंघे
आ गए ऊपर सतह पर-
आस्था पर व्यर्थ ही
व्यक्तव्य सब देते रहे ||

तुरन्त की, ताज़ी-ताज़ी पंक्तियाँ
केवल दिव्याजी के लिए |

दिनेशराय द्विवेदी said...

यहाँ बहुत देर से आया हूँ। बहस यहाँ भी अच्छी हो रही है। इस का लाभ यह है कि जिस जिस ने जो जो बहस यहाँ की है उसे नकल कर के रखे। भविष्य में काम आएगी।
सुज्ञ जी के विचार से सहमत नहीं हूँ कि आस्तिक में सदाचार की संभावनाएँ अधिक होती हैं। आस्तिक की संभावनाओं का आधार विश्वास नहीं, विश्वास का भय है, जब कि नास्तिक का सदाचार उस के स्वयं के दृढ़ निश्चय पर आधारित है। और सही सदाचार तो वही है जो अपने पैरों पर खड़ा हो।

Gyan Darpan said...

भगवान् भला करे भड़ासी टिप्पणीकारों का भी |

Gyan Darpan said...

आस्तिक में सदाचार की संभावनाएँ अधिक होती हैं। आस्तिक की संभावनाओं का आधार विश्वास नहीं, विश्वास का भय है, जब कि नास्तिक का सदाचार उस के स्वयं के दृढ़ निश्चय पर आधारित है। और सही सदाचार तो वही है जो अपने पैरों पर खड़ा हो।
@ दिनेश जी बहुत बढ़िया व गहरी बात कही है आपने :)

चंदन कुमार मिश्र said...

दो पंक्तियाँ जो तुक मिलाकर
लिख लिए क्या, वीर हैं।
विवेक इतना छोड़ते यूँ
कागजों के तीर हैं।

जलचरों से आदमी की
अच्छी नहीं तुलना रही
इस मूर्खता से इस तरह
यों स्वयं को छलना नहीं

यह ब्लाग है ऐ बंधुवर!
कटुता नहीं फैलाइए
हैं कवि तो देशहित
कुछ भला कर जाइए।

सुज्ञ said...

वक़ील साहब,

भय तो दोनो जगह है और वही भय है। कैसे? तो देखिए अनाचार को बुरा माना जाता है, आस्तिक और नास्तिक दोनो बुरे नहीं बनना चाहते और न कहलाना पसंद करते है। इसप्रकार दोनों ही बुरे दिखनें के भय में ही सदाचारी रहेंगे। नास्तिक की सदाचार पर दृढ़ निश्चयता उत्पन्न होगी कहां से। उसी भय से ही। सदाचार पैरों पर खडा रहने की बात को सही मान लूँ पर नास्तिक के पैर ही नहीं होते। अर्थात् उसके पास आधार ही नहीं होता।

सुज्ञ said...

सुधार
सदाचार पैरों पर खडा रहने की बात को सही मान लूँ पर नास्तिक के पैर ही नहीं होते।
को……
सदाचार पैरों पर खडा रहने की बात को सही भी मान लूँ पर नास्ति्की सदाचार के पैर ही नहीं होते।
पढा जाय

DR. ANWER JAMAL said...

जमाल साहब
एक काम कीजिये.
...अब आप उस लड़के से मिलिये .
और उसको अपनी अजान सुनाइये.


@ आदरणीय रोहित भाई ! आवागमन का दावा करने वाले उस बच्चे से मिलने के लिए राजस्थान वह जाएगा जिसके लिए ये बातें नई हों। हम तो अच्छे ख़ासे बच्चे पर रूह को हाज़िर कर देते हैं। रूहानी अमलियात की दुनिया में इस अमल को ‘हाज़िरात‘ के नाम से जाना जाता है और अच्छी बुरी हर तरह की रूह आदि को कई तरह से हाज़िर किया जाता है।
मेनली इसकी दो क़िस्में हैं
(1) अक्सी हाज़िरात- इसमें बच्चे को या मीडियम को आईने में, पानी में या अंगूठी आदि में रूहानी हस्तियों के अक्स (प्रतिबिंब) नज़र आते हैं। इसमें बच्चे को अपने होने की चेतना बनी रहती है और जो वह देखता और सुनता रहता है, वह बताता रहता है।
(2) वुजूदी हाज़िरात-इसमें रूह आदि बच्चे या मीडियम के मन और शरीर को अपने नियंत्रण में ले लेती है और बच्चे को अपनी सुध-बुध कुछ भी नहीं रहती है। अमल करने वाले के हुक्म पर रूह बच्चे के या मीडियम के मुख से बोलती है।
एक अच्छी ख़ासी मुददत तक इस तरह से मैं बहुत से लोगों का इलाज कर चुका हूं। अब व्यस्तता ज़रा दूसरे क़िस्म की हो गई है लेकिन अब भी लोग आ जाते हैं। आपको यह तजर्बा करना हो तो अपने साथ अपना बच्चा लेकर आ जाएं ताकि कोई यह न कहे कि अपने बच्चे को ख़ुद ही सिखा रहा होगा कि क्या कहना है ?

समय मिला तो मैं अपने ब्लॉग ‘रूहानी अमलियात‘ पर एक ऐसी पोस्ट पेश करूंगा जिसे पढ़कर लगभग बिना किसी साधना के ही आप ख़ुद हाज़िरात कर सकते हैं।

दूसरी बात, जो मैंने आपको बताई है वह यह है कि अज़ान की कोई शर्त नहीं है बल्कि किसी भी भाषा में मालिक का नाम लीजिए, रिज़ल्ट सेम आएगा।
आप जाकर ख़ुद ट्राई क्यों नहीं करते ?
धन्यवाद !

Amrit said...

Zeal,

Though I don't believe in a second or third life, I do believe in Moksha especially if I can get by good comments :))))

महेन्‍द्र वर्मा said...

धर्मक्षेत्र तो कुरुक्षेत्र में बदल गया है।
आलेख में लिखी बातें सत्य सिद्ध हो रही हैं।

sajjan singh said...

@ रोहित
आप कहते हैं "जो इस दुनिया मे सैकड़ो करोड़ो लोग भगवान को मानते है. वो मूर्ख नही है."
अगर संख्या बल के आधार पर ही कोई बात सही हो जाती है तो आज से सैकड़ों सालों पहले पूरे यूरोप के लोग यह मानते थे की यह सूर्य धरती के चक्कर लगाता है वह अकेला कॉपरनिकस था जिसने कहा था की सूर्य नहीं धरती सूर्य के चक्कर लगाती है । बाद में कौन सही निकला । इसलिए ज़रूरी नहीं की हमेशा मेजॉरिटी ही सही हो । दूसरे तर्क से आज दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है तो क्या आपके अनुसार सभी को ईसाई धर्म अपना लेना चाहिए । कैसी बातें करते हैं । और वैसे भी संसार में मूर्ख या अज्ञानी लोग ज्यादा हैं और समझदार लोग कम ।

चंदन कुमार मिश्र said...

सुज्ञ जी,
तुलसीदास की बात मत दुहराइए कि 'भय बिन होहिं न प्रीति'। यह एकदम बेजान वाक्य है। प्रेम जब भय होता है हो तो वह वैसे ही होता है जैसे पागल कुत्ते के डर से लोग एक तरफ़ भागें।

कई शिक्षक ऐसे होते हैं जिन्हें छात्र बिलकुल पसन्द नहीं करते लेकिन उनका अभिवादन करते हैं। लेकिन वह प्रेम या आदर नहीं होता।

अब बात नास्तिक लोगों में ज्यादा सदाचार होता है कि आस्तिक लोगों में, यह बेमानी बात है क्योंकि इसका आधार व्यक्ति है न कि ईश्वर।

फिर भी मन नहीं माने तो आप सारे कैदियों, अपराधियों आदि को देखें। उनमें से कितने प्रतिशत नास्तिक होते हैं? 1000 में 990 अपराधी आस्तिक हैं।

आस्तिक कृत्रिम रुप से सदाचारी बनते हैं। भय से ईश्वर के कारण लेकिन नास्तिक बनता है तो मानव के लिए अपने कारण, प्राकृत्रिक रुप से।

चंदन कुमार मिश्र said...

जमाल साहब,

क्या जय हिया साहब का मन्त्र के फेरे में पड़ गए। झाड़ू वाला आ के झाड़ू बिछा जा। मैं जानता हूँ आपकी हाजिरात। तर्कशील का लिंक है। जाइए या सम्पर्क कीजिए। मेरे एकदम नजदीकी रिश्तेदार तो यहाँ तक कहते हैं कि आइने में बड़ी सी आदमकद तस्वीर में वे पाक रूह को दिखा सकते हैं।

आपको बता दें। आप लोग दाढ़ी वाले को, बंगाली वाले टोपी वाले को और कुछ लोग हनुमान जी(जी…) को भी बुलाते हैं। और बुला के करते क्या हैं तो चोरी का सामान पता लगाते हैं।

वैसे एक बात कह दूँ कि आप बात करते समय बड़े इज्जत से करते हैं, आदर देते हुए लिखते हैं। यह बहुत अच्छी बात है। अब सुनकर कूदना ठीक नहीं।

चंदन कुमार मिश्र said...

वैसे बहस अब पुनर्जन्म से भी आगे जा चुकी लगती है।

चंदन कुमार मिश्र said...

रोहित जी नाराज हैं, लगे उगलने आग।
'तुम' से आए 'आप' पर, दहक उठेगा ब्लाग॥

चंदन कुमार मिश्र said...

ओह, बड़ी गलती। दोहे में तीसरा भाग होगा- आए 'तुम' पर 'आप' से।

Ruchika Sharma said...

व्‍हाट एन आईडिया
:)

हंसी के फवारे में- अजब प्रेम की गजब कहानी

मनोज भारती said...

आपकी इस पोस्ट पर बहुत से लोग भड़ास निकाल चुके हैं...
यदि आप दूसरे से किसी तरह से बंधे नहीं हैं,उसके किसी कर्म से प्रभावित नहीं हैं और स्वयं में संतुष्ट हैं तो आप अभी और यहीं मुक्त हैं ।
जीवन में दूसरों के प्रभावों से मुक्त होकर अपनी प्रज्ञा में स्थित होना ही जीवन का शिखर है...मोक्ष है।

sajjan singh said...

यह बिलकुल बोदा तर्क है कि कोई ईश्वर के डर से सदाचारी बनता है। मैं दिन में कई लोगों से मिलता हूँ । उनमें से ज्यादातर बहुत ही धार्मिक या ईश्वर को मानने वाले हैं । उन्हीं में से कई ऐसे भी हैं जिनके रुटिन के पूजा पाठ से हटने के बाद उनका आचरण देखकर कोई कह ही नहीं सकता की किसी ईश्वर से ये डरते हैं । नैतिकता से जिनका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है । इस धार्मिक देश में तो शायद 99% से ज्यादा लोग आस्तिक होंगें । फिर यहां इतने अपराध, इतना भ्रष्टाचार क्यों है । आज दुनिया में कई देश जैसे ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, कनाडा, , आयरलैंड,और स्विट्जरलैंड है जहाँ धर्म विलुप्ती की कगार पर पहुँच चुका है । यहां देखे- नौ देशों से मिट जाएगा धर्म का नामोनिशान - नवभारत टाइम्स
फिर भी इन देशों में कानून व्यवस्था अच्छी है अपराध कम हैं, भ्रष्टाचार कम हैं, लोग ज्यादा सभ्य हैं स्त्रियां ज्यादा स्वतंत्र हैं । अब बहुत ही धार्मिक देशों की स्थिति देखिए जैसे- भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, सोमालिया, मिस्त्र, सीरिया । यहां है भूखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार और अपराधों का चढ़ता ग्राफ । यूरोप में दो या तीन सौ साल पहले किसी औरत को डायन बता कर मार दिया जाता था । भारत में आज भी इस तरह की घटनाओं की कमी नहीं है ।

DR. ANWER JAMAL said...

क्तिगत आक्षेप चर्चा को बाधित करते हैं
@ आदरणीय भाई चंदन कुमार मिश्र जी ! हम सभी की परवरिश अलग अलग माहौल में हुई है, हमने अपनी ज़िंदगी में अलग अलग अनुभव झेले हैं, हम सबकी बुद्धि का स्तर भी अलग अलग है। इसलिए अगर हम एक चीज़ के बारे में अलग अलग नतीजों पर पहुंचते हैं तो यह बिल्कुल स्वाभाविक है।
न तो कोई धर्म-मत-संप्रदाय बदतमीज़ी सिखाता है और न ही नास्तिकता। हम सभी एक देश और एक समाज के नागरिक हैं और सभी चाहते हैं कि हमारे समाज में अमन, शांति और भाईचारा बना रहे। इसके लिए हम एक दूसरे को आदर दें। हम अपने विचार कहें और दूसरों के विचार सुनें। तर्क करना भी अच्छी बात है लेकिन किसी के लिए अपमानजनक बोलने की शिक्षा किसी के भी मां-बाप नहीं देते। हम किसी को कुछ दे नहीं सकते लेकिन उसके लिए सम्मान के दो बोल तो बोल ही सकते हैं न ?
यह अच्छी बात है कि लोग इस ब्लॉग पर खुलकर अपने विचार रखते हैं लेकिन व्यक्तिगत आक्षेप चर्चा को बाधित करते हैं।
ब्लॉग मलिका ने इस चर्चा को निर्बाध चलने दिया, इस हेतु उनका आभार !!!

ROHIT said...

परम आदरणीय जमाल साहब.
मैने आपके ब्लागो को पढ़ा है.
आपके ब्लागो को पढ़ने से पता चला कि समाज सुधार और अंधविश्वास दूर करने का ठेका आपने ले रखा है.
अब जब ये ठेका आपने ले रखा है तो आपका फर्ज बनता है कि आप उसको निभाये.

अब आप को पुर्नजन्म की घटनाओ का सच भी पता है. लेकिन आप उस अमूल्य ग्यान को अपने पास रख कर सड़ा रहे है.
तो भाई एक एक आदमी का अंधविश्वास दूर करने से अच्छा है. कि आप एक साथ करोड़ो लोगो का अंधविश्वास दूर कर दे.

इसलिये मैने आपसे कहा कि आप एक ऐसे बालक का इलाज करे.
जिस पर मीडिया की नजर हो.
संयोग से ऐसा मामला भी हाजिर है
अवतार नाम के इस बालक को सारे मीडिया वाले कवरेज दे रहे है.
ऐसे समय मे अगर आप इस बालक पर अपनी चमत्कारिक विधा का सफल प्रदर्शन करेँगे.
तो सोचिये कितने करोड़ लोगो का मीडिया के माध्यम से अंधविश्वास दूर होगा.
और जो आप समाज सुधार और अन्धविश्वास दूर करने का दंभ भरते है.
वो वाकई सफल होगा.

रही बात मेरे ट्राई करने की .
तो भाई मै आपके जितना ग्यानी नही हूँ.
आप अपने ब्लाग से मुझे वो चमत्कारिक विधा चाहे जितना भी सीखाये . मै नही सीख पाऊंगा.
इसलिये ट्राई तो आपको ही करना पड़ेगा.
और वैसे भी ये दावा भी आपका ही है.

आपके ब्लागो को पढ़ा है.
आपके ब्लागो को पढ़ने से पता चला कि समाज सुधार और अंधविश्वास दूर करने का ठेका आपने ले रखा है.
अब जब ये ठेका आपने ले रखा है तो आपका फर्ज बनता है कि आप उसको निभाये.

अब आप को पुर्नजन्म की घटनाओ का सच भी पता है. लेकिन आप उस अमूल्य ग्यान को अपने पास रख कर सड़ा रहे है.
तो भाई एक एक आदमी का अंधविश्वास दूर करने से अच्छा है. कि आप एक साथ करोड़ो लोगो का अंधविश्वास दूर कर दे.

इसलिये मैने आपसे कहा कि आप एक ऐसे बालक का इलाज करे.
जिस पर मीडिया की नजर हो.
संयोग से ऐसा मामला भी हाजिर है
अवतार नाम के इस बालक को सारे मीडिया वाले कवरेज दे रहे है.
ऐसे समय मे अगर आप इस बालक पर अपनी चमत्कारिक विधा का सफल प्रदर्शन करेँगे.
तो सोचिये कितने करोड़ लोगो का मीडिया के माध्यम से अंधविश्वास दूर होगा.
और जो आप समाज सुधार और अन्धविश्वास दूर करने का दंभ भरते है.
वो वाकई सफल होगा.

रही बात मेरे ट्राई करने की .
तो भाई मै आपके जितना ग्यानी नही हूँ.
आप अपने ब्लाग से मुझे वो चमत्कारिक विधा चाहे जितना भी सीखाये . मै नही सीख पाऊंगा.
इसलिये ट्राई तो आपको ही करना पड़ेगा.
और वैसे भी ये दावा भी आपका ही है.

चंदन कुमार मिश्र said...

सज्जन भाई,
नहीं। ऐसा नहीं है कि आस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड जैसे देश में भारत से कम अपराध होते हैं। बल्कि ज्यादा होते हैं। हमारे यहाँ शोर ज्यादा मचाया जाता है। वैसे भी अपराध का संबंध ईश्वर से है ही नहीं। जब तक ठग जिंदा हैं तब तक तो अत्याचार होना ही है। सदाचारी व्यक्ति बस सदाचारी होता है। जब वह सदाचारी है तब उसका संबंध ईश्वर से कतई नहीं है।

उल्टे अनीश्वरवादी आदमी जब सदाचार करता है तब किसी फल की आशा नहीं करता और न ही किसी पुण्य के बारे में सोचता है। लेकिन ईश्वरवादी व्यक्ति शायद ही ऐसा हो कि बिना स्वार्थ के सदाचार करता हो। कुछ लोग कहेंगे कि नहीं ऐसा नहीं है लेकिन कम से कम पुण्य या मरने के बाद का सुख या मुक्ति तो ध्यान में रखते ही हैं ये सदाचारी व्यक्ति।

धर्म के खत्म होने से मनुष्य सदाचारी हो जाएगा, यह सोचना भी ठीक नहीं। मानव के अन्दर जो है उसे बाहर के किसी चीज से निकाला जा सकता। धर्म एक बाहरी चीज है क्योंकि बच्चा धर्म-कर्म नहीं जानता।

मैं घोषणा करता हूँ कि जिस दिन दुनिया के सभी धर्म एक ही बात कहने लगेंगे उसी दिन उनपर विचार करना चाहूंगा। क्योंकि जब आदमी मरता है एक-सा, जन्मता है एक-सा, दुख और दर्द, सुख और खुशी एक जैसा सब कुछ एक जैसा तब अलग-अलग बात कहनेवाले किसी को कयामत पर विश्वास, किसी को अट्ठाइस नरकों पर, किसी को पुनर्जन्म पर तो किसी को कुछ पर, यह हमें मानने को मजबूर होना पड़ता है कि सब में नौटंकी है और है।

जो भी आस्तिक लोग हैं उनमें से कितने ऐसे हैं जिन्होंने ईश्वर को महसूस भी कर लिया है। एक भी नहीं। वह नहीं चलेगा कि यहाँ गया था जिंदा बच गया इसलिए ईश्वर है। क्योंकि किसी धर्म में ईश्वर को जानने वाले के बारे में जो कुछ कहा गया है वह जब तक नहीं होता तब तक ईश्वर को मानने को कोई कारण नहीं।

मैं कोई जड़ नहीं हूँ। अगर कल किसी को मैं ईश्वर पर यकीन करने वाला दिखूँ तो इतना तय है वह यकीन जालसाजी और बचपन से पिलाई गई घुट्टी का नतीजा नहीं होगा। स्थितप्रज्ञ की अवस्था या ऐसी अवस्था जो सबको ईश्वर को दिखा सके जब किसी को प्राप्त हो तब हो वह ईश्वर का प्रचार करे वरना सब मिथ्या प्रचार है। बाप-दादा से सुनकर और बचपन से कभी यह नहीं सोचने पर कि ईश्वर है भी?, जो ईश्वर को मान रहा है वह भ्रम में है।

ROHIT said...

भाई कुछ तकनीक समस्या के कारण टिप्पणी दोहरी प्रदर्शित हो रही है.भाई कुछ तकनीक समस्या के कारण टिप्पणी दोहरी प्रदर्शित हो रही है.

चंदन कुमार मिश्र said...

इससे अच्छा था कि अपने ब्लाग पर लिखता। जितना लिखा उतने में तो कई आलेख अच्छे से लिख जाता।

चंदन कुमार मिश्र said...

http://hansikefavare.blogspot.com/2011/06/blog-post_9774.html

इसी बीच इस तस्वीर को देख लीजिए। प्रसन्नता होगी और कुछ गुस्सा भी कम होगा

sajjan singh said...

@ चंदन कुमार मिश्र जी
अपराधों का संबंध किसी देश की सामाजिक स्थिति से भी होता है । जिन देशों में कानून सख्त,वर्गीय असमानता कम है। वहां अपराध कम होंगें । जहां कानून व्यवस्था लचर है,असमानता और गरीबी है वहां अपराध भी अधिक होते हैं।

चंदन कुमार मिश्र said...

सज्जन भाई,

हमारे देश के कानून हमारे देश के आदमी ने बनाया ही नहीं है। और कानून बनाने का मतलब है कि आदमी को पशु की श्रेणी में रख दिया गया। उदाहरण के लिए भारतीय दंड संहिता सन 1860 में बनाई गई थी ताकि भारते के क्रान्तिकारियों के विद्रोह को दबाया जा सके। आप चाहें तो उसे भारत सरकार की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं। मैंने जो कुछ आपको भेजे हैं सबको एक बार जरूर देखिए।

ROHIT said...

सज्जन कुमार जी
मैने पहले भी कहा था .
कि मै केवल अपने धर्म की बात करता हूँ.
यूरोप के लोग अग्यानी थे. तो हम क्या करे?
यूरोप के लोग सनातन धर्म नही मानते है.
और हमारे धर्म मे नही लिखा है कि सूर्य प्रथ्वी का चक्कर काटता है.
इसलिये यूरोप के लोगो को सनातन धर्मियो से न जोड़िये.
सनातन धर्म मे सूर्य प्रथ्वी तो छोड़िये .पूरा ब्रम्हान्ड कैसे बना है.
सब लिखा है.
आज वैग्यानिक जो परमाणु बम ,मिसाइले बना रहे है.
ये सब ब्रम्हास्त्र और आग्नेयास्त्र के रुप मे महाभारत युद्ध मे पहले ही खप चुके है.
आज लोग टीवी देखकर दूर की चीजे जानते है.
हमारे रिशि मुनि ध्यान लगाकर ये सब कर लेते थे.
आज विमान बन रहे है.
पुराने समय मे पुष्पक विमान मौजूद थे.
कहने का तात्पर्य है कि जो चीजे आज मशीनी रुप मे है.
वो चीजे पहले सिद्धियो के रुप मे मौजूद थी और मंत्रो द्धारा संचालित होती थी.

अच्छा अभी चलता हूँ रात को ग्यारह बजे के बाद उपलब्ध होँऊगा.सज्जन कुमार जी
मैने पहले भी कहा था .
कि मै केवल अपने धर्म की बात करता हूँ.
यूरोप के लोग अग्यानी थे. तो हम क्या करे?
यूरोप के लोग सनातन धर्म नही मानते है.
और हमारे धर्म मे नही लिखा है कि सूर्य प्रथ्वी का चक्कर काटता है.
इसलिये यूरोप के लोगो को सनातन धर्मियो से न जोड़िये.
सनातन धर्म मे सूर्य प्रथ्वी तो छोड़िये .पूरा ब्रम्हान्ड कैसे बना है.
सब लिखा है.
आज वैग्यानिक जो परमाणु बम ,मिसाइले बना रहे है.
ये सब ब्रम्हास्त्र और आग्नेयास्त्र के रुप मे महाभारत युद्ध मे पहले ही खप चुके है.
आज लोग टीवी देखकर दूर की चीजे जानते है.
हमारे रिशि मुनि ध्यान लगाकर ये सब कर लेते थे.
आज विमान बन रहे है.
पुराने समय मे पुष्पक विमान मौजूद थे.
कहने का तात्पर्य है कि जो चीजे आज मशीनी रुप मे है.
वो चीजे पहले सिद्धियो के रुप मे मौजूद थी और मंत्रो द्धारा संचालित होती थी.

अच्छा अभी चलता हूँ रात को ग्यारह बजे के बाद उपलब्ध होँऊगा.

चंदन कुमार मिश्र said...

सज्जन भाई,
भारत के लोगों ने कुछ सौ सालों तक(हमेशा नहीं) मानव या अपने लोगों को भले दुख पहुँचाया कुछ गलत नियमों के चलते लेकिन यूरोपीय देशों ने प्रकृति को, पूरी मानवता को नुकसान पहुँचाया। धर्म के चलते ही सही भारतीय लोगों ने कम से कम बम नहीं बनाए और किसी पर गिराए नहीं। अपने समाज को, लोगों को छोड़कर इन्होंने किसी को नुकसान ने पहुँचाया। लेकिन यूरोपीय लोगों ने ऐसे-ऐसे खतरनाक काम किए हैं कि जीवन ही संकट में पड़ गया, यहाँ उनकी अच्छी खोजों की बात नहीं कर रहा। उदाहरण के लिए कल देखा था कि 60 करोड़ लोगों के जीवन को खतरा है वैश्विक गर्मी(ग्लोबल वार्मिंग) से। इसके दोषी सारे यूरोपीय ही हैं नब्बे प्रतिशत।

इसलिए उनका जीवन दर्शन भी अच्छा नहीं है। बाकी बाद निजी तौर पर।

चंदन कुमार मिश्र said...

अब आदमी उपलब्ध होगा!

रेखा said...

अब हो गए स्वर्ग में एक सौ पच्चीस ब्लॉगर .

Kunwar Kusumesh said...

ये बहस और रेखा जी का कमेन्ट बहुत मज़ेदार लगा.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज हमारे यहाँ बरसात शुरू हो गई। सुबह हुई, फिर दुपहर को, फिर शाम को। रात में भी हो रही है। सारे पतंगे पोर्च की रोशनी पर गिर गिर कर मर रहे हैं। बमुश्किल पोर्च की लाइट बंद कर के आया हूँ। कम से कम मेरे पोर्च में तो न मरें।

ZEAL said...

आज कुछ व्यस्तता के कारण ऑनलाइन नहीं आ सकी। अभी जब देखा तो तो एक सार्थक बहस चल रही थी । मुझे इन टिप्पणियों को पढने में तकरीबन डेढ़ घंटे लगे। अत्यंत तार्किक विमर्श से प्रभीवित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। विमर्श का हिस्सा बने सज्जन सिंह जी , सुज्ञ जी , रोहित जी , चन्दन जी एवं दिवस जी का विशेष आभार। हर विमर्श में सीखने के लिए बहुत कुछ होता है। और आप विद्वानों के तर्क वितर्क में भी सीखने के लिए बहुत कुछ है।

मेरे विचार से नास्तिक जैसा कुछ नहीं होता , हर व्यक्ति मूलरूप से आस्तिक ही है। निराशाजन्य परिस्थियों में बड़े से बड़ा आस्तिक भी खुद को नास्तिक के भुलावे में रख लेता है।

ईश्वरीय सत्ता को कई नहीं नकार सकता । कहीं राम के नाम से तो कहीं रहीम के नाम से । लेकिन एक सत्ता सर्वोपरि है जो समस्त सृष्टि का सञ्चालन कर रही है। और उस सत्ता में आस्था रखने वाला हर शख्स आस्तिक है।

पुनर्जन्म को नकारा नहीं जा सकता। सभी धर्म और दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं।

प्रत्यक्षम किम प्रमाणं ? अवतार स्वयं प्रत्यक्ष प्रमाण है, पुनर्जन्म का।

अवतार नामक बालक , कोई पहला प्रकरण नहीं है पुनर्जन्म का। समय समय पर ऐसे दृष्टांत सामने आये हैं । चूँकि हमारे पास पूर्व जन्म की स्मृतियाँ शेष नहीं रहती इसलिए पूर्वजन्म की गुत्थी अनसुलझी रह जाती है ।

इस विषय पर फरवरी माह में एक सार्थक विमर्श हुआ था जिसका लिंक दे रही हूँ। इच्छुक व्यक्ति एक नजर डालने का समय निकाल सकते हैं । इसमें चन्दन जी के लिए बहुत से प्रश्न हैं।

(1)--पुनर्जन्म और लिंग परिवर्तन - भ्रम अथवा सत्

http://zealzen.blogspot.com/2011/02/blog-post_27.html

....

ZEAL said...

.

(1)--पुनर्जन्म और लिंग परिवर्तन - भ्रम अथवा सत्य .

http://zealzen.blogspot.com/2011/02/blog-post_27.html

(2)--यदि ईश्वर एक है तो भेद-भाव क्यूँ है ? -- आस्तिकता बनाम नास्तिकता

http://zealzen.blogspot.com/2011/04/blog-post_06.html


Above two links are relevant here .

Thanks.

.

चंदन कुमार मिश्र said...

देख लेता हूँ। मेरे लिए क्या-क्या प्रश्न हैं? वैसे आप http://anvarat.blogspot.com/2011/06/blog-post_19.html को देख जाइए।

sajjan singh said...

@ रोहित
यूरोप के लोग अज्ञानी थे । पर यहां तो कल्पनाओं के इंजन दौडाएं गये है । धरती को ही शेषनाग के फन पर टिका हुआ बता दिया गया । अद्वैत वेदांत जैसे दर्शनों में ब्रह्मांड के विषय में जो चिंतन हुआ है उसे कितने लोग जानते हैं । एक आम भारतीय तो सत्य से जब तक परिचित नहीं हुआ था तब तक शेषनाग के फन वाली बात ही एक आम मान्यता थी । यहां तो एक संप्रदाय नास्तिकों का भी रहा है। जिन्होंने सर्वप्रथम वैज्ञानिक दर्शन की नींव रखी थी । उन्हें ही कितने लोग जानते और मानते हैं । उन्होंने तो पश्चिम के वैज्ञानिकों से पहले ही यह सत्य बता दिया था कि ईश्वर नहीं है । क्या आप मानेंगे उनकी इस बात को । पुराने समय में पुष्पक विमान मौजूद था तो धर्म ग्रन्थों से उसकी तकनीक जानकर राइट बंधुओ से पहले आप ही ने क्यों नहीं विमान बना लिया ।

चंदन कुमार मिश्र said...

अब लिंकों को देखते देखते बहुत समय लगेगा। लेकिन देखता हूँ। आप अगर कुछ लिखा पढ़ाना चाहती हैं तो मैं भी अनुशंसा करता हूँ कि 'देव और दानव' और 'और देव पुरुष हार गए' को पढ़ने की कोशिश करें।

तर्कशील की बात से किसी ने मतलब नहीं रखा। न सुज्ञ जी ने, न जमाल साहब ने, न रोहित ने।

कल्याण एक परलोक-पुनर्जन्मांक निकाल चुका है। आज से बहुत साल पहले। उसमें तो पचासों किस्से थे इस जन्म वाले नाटक के।

चंदन कुमार मिश्र said...

सज्जन जी,
निजी मेल से सम्पर्क करें। रोहित की बात का जवाब लिख दूंगा पर अभी नहीं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अनोखी जानकारी!

चंदन कुमार मिश्र said...

http://zealzen.blogspot.com/2011/04/blog-post_06.html


को देख लिया। कुछ खास बातें नहीं लगीं मुझे। लेकिन अपने चिट्ठे पर जल्दी ही हो सके तो आज 12-1 बजे तक उसका जवाब लिख दूंगा। वैसे उस पोस्ट के लिए भगतसिंह वाले आलेख में दिए गए तर्क ही काफी हैं। आप वकील साहब के भगतसिंह वाले पोस्ट से उस आलेख को पढ़ लीजिए। फिर आगे बात करेंगे।

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

Zeal जी सुन्दर व्यंग्य देखिये न कितने भंड़ासी आ गए दौड़े रिजर्वेसन कराने मोक्ष का -अब स्वर्ग में क्यों मिलना जब जन्म होना है तो यहीं मिलेंगे हमारे ब्लॉग की कविताएँ और प्रतिक्रियाएं भी

गूगल रखेगा तब आप से मिल बहुत सवाल पूछेंगे ....अनोखी ईश्वरीय शक्तियां तो हैं ...??

शुक्ल भ्रमर ५

दिवस said...

आपको समझाना बाद में मुझे भी व्यर्थ ही लगा| क्यों कि आपने अपनी जिद पकड़ रखी थी| हंसराज भाई ने सही ही कहा था कि उनकी ऊर्जा व्यर्थ ही गयी| आप नास्तिक रहना चाहें रह सकते हैं| किन्तु इस प्रकार आप किसी विचार को नहीं समझ सकते| आप यहाँ कुछ सीखने नहीं आए थे| आपने पहले से ही निर्णय कर रखा है| अत: इस बहस का कोई अंत नहीं है|
अमूमन मैं इस प्रकार कि बहसों का हिस्सा नहीं बन पाता, मेरा काम ही कुछ ऐसा है कि मुझे कभी भी किसी भी समय कहीं भी जाना पड़ सकता है| ऑफिस से एक फोन आता है और घर के सामने गाडी खड़ी हो जाती है| आज दिन में कुछ खाली था तो यहाँ कुछ लिख सका| मेरे ब्लॉग पर भी आपकी टिप्पणियों का विस्तार से उत्तर देने का मन करता है किन्तु नहीं कर पाता| आपकी सभी मेल का जवाब देना चाहता हूँ, किन्तु उसके लिए मुझे इतना समय नहीं मिलेगा| आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मेरे पास हैं|
आप तो बाकी सभी नास्तिकों से हटकर हैं| आपमें मानवीय स्वभाव है| मैंने तो मेरे एक ऐसे दोस्त को आस्तिक बना दिया है जो भगवान् को माँ बहन की गालियाँ बकता था| किन्तु इसमें समय लगता है| यह तो पक्का है कि इतना समय मैं इंटरनेट पर नहीं दे सकता| वैसे तो मैं २४ घंटे ही नेट से जुड़ा रहता हूँ| किन्तु हर समय ब्लोगिंग नहीं कर सकता|
यह मेरी कोई जिद नहीं है कि मैं आपको आस्तिक बनाऊं| किन्तु अपनी बात आपको समझाने के लिए मुझे आपके मेरे बीच में कोई तार तो बांधना ही होगा जिसके सहारे मेरे विचारों का विधुत आप तक व आपका मुझ तक पहुंचे| किन्तु आप तार बाँधने की नहीं अपितु उसे तोड़ने के प्रयास में लगे रहते हैं|
फिर भी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपके सभी प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूँ| आपकी समस्या बहुत बड़ी नहीं है| इस प्रकार की समस्याएँ तो आजकल महत्वकांक्षी लोगों में बहुतायत में पाई जाती हैं| किसी की अपने बाप से नहीं बनती तो किसी की अपने भाई से| वहीँ आपकी भगवान् से नहीं बनती| इससे भगवान् का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता|
आपका कहना भी सही है कि भगवान् हो यां न हो इससे आपके काम में क्या फर्क पड़ता है?
किन्तु सत्य से कब तक भागोगे मेरे भाई? उसे स्वीकार कभी न कभी तो करना ही होगा| आज नहीं तो मृत्यु के समय| उस समय पछतावा न हो इसलिए पहले ही चेत जाना चाहिए|
आप सोचिये कि आप सृष्टि की उस सबसे बड़ी शक्ति से पीछा छुडाना चाहते हैं जो आपको सबसे अधिक प्यार करती है| मरने के बाद तो दो चार वर्षों में सगे सम्बन्धी भी भुला देते हैं किन्तु उसका साथ कभी नहीं छूटता|
जिन गरीबों की आप दुहाई दे रहे हैं वह उन गरीबों के लिए एक उम्मीद है| उसे नकार देने का अर्थ हैं उनसे उनकी आखिरी उम्मीद भी छीन लेना|
उसके होने या न होने से आपके काम में निश्चित रूप से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| किन्तु उसके होने के बाद भी उससे नज़रे छुपाना एक प्रकार की एहसान फरामोशी नहीं है क्या?

अब रही बात चमत्कारों की तो भाई इश्वर तो कण कण में है| चमत्कार का क्या है, विज्ञान की किसी खोज से पहले वह चीज़ चमत्कार ही थी| अत: जिसका आपको ज्ञान नहीं वह आज चमत्कार ही है| उससे बड़ा ज्ञानी विज्ञानी और कौन होगा? आप भगवान् को विज्ञान का नाम दे सकते हैं वह बुरा नहीं मानेगा|
मैं ज्यादा दूर नहीं जाता, केवल अपने दायरे में बात कर रहा हूँ| मेरे साथ जीवन में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसे सुनकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे (यदि मेरे कहे पर विश्वास करें तो)|
यहाँ इसके विषय में लिखना मुश्किल होगा| ईश्वर से प्रार्थना है कि कभी आपसे मिलना हो तो बहुत कुछ कहना है आपसे|

दिवस said...

क्षमा करें इतनी लम्बी टिपण्णी पोस्ट नहीं हो रही थी अत: इसे दो भागों में भेज रहा हूँ...
और रही बात पुनर्जन्म की तो वह आपको मरने के बाद पता चल ही जाएगा कि आत्मा का क्या होता है?
आपने तो कह दिया कि इन सब चीज़ों के होने न होने से मेरे जीवन में क्या फर्क पड़ता है? समस्याएँ और भी हैं उन पर ध्यान देना चाहिए|
बस आपने स्वयं ही बहस का अंत कर दिया| जब कोई फर्क ही नहीं पड़ता तो क्यों यहाँ अपना राग अलाप रहे हैं? किसे समझाना चाहते हैं? आपको फर्क नहीं पड़ता तो ठीक है, बैठिये न आराम से, पेट में दर्द क्यों हो रहा है?

आपने तो कह दिया कि पहले जरुरी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए| जब कोई ध्यान देता है तो आपको उसमे कोई न कोई खोट नज़र आ जाता है| आपने ही बाबा रामदेव के विरोध में मुझे कई मेल भेजे थे| ब्लॉग पर टिपण्णी भी की थी|
हाँ आप बाबा रामदेव से असहमत हो सकते हैं, इसका आपको अधिकार है| किन्तु अपनी उस बात को क्यों दोहरा रहे हैं कि पहले जरुरी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए?

आपने कहा कि आप राजिव भाई दीक्षित जी से मिलना चाहते थे| आपको वे एक अच्छे व्यक्ति लगे| फिर क्यों आप मुझे उनको बुरा बताने वाली मेल भेजते रहे? क्या आप किसी बात की पुष्टि मुझसे करवाना चाहते थे?
समस्या यही है कि आप किसी पर विश्वास करना ही नहीं चाहते| चाहे वह बाबा रामदेव हों, राजिव भाई दीक्षित हों या फिर भगवान् ही क्यों न हो| अब बताइये ऐसे में भला कैसे आप किसी से सहमत हो सकते हैं? क्या आपने यह समझ लिया है कि जो हैं वह आप ही हैं? और सभी तो नगण्य हैं|
किसी पर तो विश्वास करें| कोई तो ऐसा हो जिस पर आपका विश्वास हो| बिना विश्वास के आप दुनिया फतह करना चाहते हैं तो यह कैसे संभव है? जब राजिव भाई आपको अच्छे लगे तो फिर अविश्वास कैसा? क्यों आप ऐसी मेल मुझे भेज रहे थे, जैसे कि राजिव भाई का स्टिंग ऑपरेशन कर रहे हों?
किसी पर विश्वास करना न करना आपका व्यक्तिगत निर्णय है| लेकिन इस प्रकार की हरकतों से आप क्यों किसी का विश्वास तोडना चाहते हैं?
आपने राजिव भाई से सम्बंधित जो मेल मुझे भेजे, वे तो कुछ भी नहीं थे| मेरा विश्वास इतना पक्का है कि इन छिटपुट बातों से मैं नहीं हिल सकता| राजिव भाई पर मेरा अटूट विश्वास है| आज मैं जिस भी दिशा में जा रहा हूँ सब उन्ही की देन है| माँ बाप ने अच्छे संस्कार दिए किन्तु राजिव भाई ने जीवन को एक दिशा दी, राजिव भाई ने ही मुझे मेरे जीवन का ध्येय बताया| कुछ भी करके अपने इस ध्येय को पाकर रहूँगा| उनके साथ बिताया क्षण क्षण का समय भी मुझे स्मरण है| आज से दस वर्ष पहले जब मैं अंतिम बार रोया था तो उन्होंने ही मेरे आंसू पोंछे थे| उसके बाद उन्होंने वो कहा जिसे सुनकर मैं आजतक नहीं रोया|
आपके इस प्रकार के संदेशों से मैं नहीं हिल सकता क्यों कि मेरा विश्वास अडिग है| आपका विश्वास कमज़ोर है, इसीलिए आप बार बार इसकी पुष्टि मुझसे करवाते रहे|

चन्दन भाई मेरा आपसे कोई व्यक्तिगत मतभेद नहीं है| आपके प्रयासों की मैं सराहना करता हूँ| आपमें एक कुशल व्यक्तित्व के गुणों की संभावना को भी मैं स्वीकार करता हूँ| किन्तु मुझे लगता है कि आप कहीं राह भटक गए हैं| जी हाँ भटक गए हैं| ये शब्द आपके ही हैं| आपने ही कहा था कि 2005 से पहले आप आस्तिक थे, किन्तु अब आस्तिक होना आपके लिए असंभव है|

ऐसा हो सकता है कि मेरी इस टिपण्णी से आपको ठेस पहुंची हो| किसी भी प्रकार के बुरे व्यवहार के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ| शायद आज भावनाओं में बह गया हूँ| आपसे घृणा नहीं अपितु प्रेम करता हूँ| इसीलिए आज आपसे इतना बड़ा विवाद खड़ा कर रहा हूँ| यही तो मेरे भगवान् ने मुझे सिखाया है|
आपके मंगल की कामना इश्वर से सदैव करता रहूँगा|

दिवस said...

कृपया इसे टिपण्णी नंबर १ समझें| कॉपी पेस्ट में गलती हो गयी|


चन्दन भाई क्षमा चाहता हूँ किन्तु मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आप यहाँ किसी चर्चा के लिए नहीं अपितु केवल बहस के लिए आए हैं| आपका मकसद केवल विवाद ही लग रहा है| ऐसा मैं आपकी टिप्पणियों को देखकर ही कह रहा हूँ|
शाम को जब आपसे इस विषय पर चर्चा हो रही थी तो काफी गरमा गरम बहस हो चुकी थी| शायद 5-6 बजे का समय होगा| मेरे आने से पहले भी यहाँ आप हंसराज भाई व रोहित जी से विवाद चला ही रहे थे| उस समय काफी विचारों का सामना हुआ| आपने हमारे व हमने आपके सभी तर्कों पर चर्चा की थी| जहाँ तक मुझे याद है उस समय चर्चा थम सी गयी थी| कोई निष्कर्ष भी नहीं निकला था| मुझे भी फिर यहाँ जयपुर में किसी साईट पर जाना पड़ा, जिस कंपनी में मैं नौकरी करता हूँ| कुछ तकनीकी खराबी थी| अत: ऑफिस से फोन आने पर मुझे जाना पड़ा|
बस अभी लौटा हूँ| फिर से वही बहस शुरू होते देखी| इस बार भी आप इसमें शामिल थे| जहाँ तक मैं देख पाया हूँ आप अपने समस्त विचार रख चुके होंगे| फिर भी विवाद खड़ा कर रहे हैं| आप क्या पूरा समय इंटरनेट पर ही बैठे रहते हैं? और कोई काम करते हैं क्या?
क्षमा चाहूँगा किन्तु आज आपका व्यवहार प्रशंसनीय नहीं है| ऐसा नहीं है कि आपको अपने विचार रखने का अधिकार ही नहीं है| आप विचार रख सकते हैं किन्तु आपका मकसद विचार रखना नहीं केवल इस बहस में शामिल होना था| इस बीच आप अन्य स्थानों पर भी बहस छेड़े हुए थे| इसीलिए कहा कि क्या आपका यही काम है?

मदन शर्मा said...

देरसे आया लेकिन दुरुस्त आया बहुत धन्यवाद आप विद्वानों का तथा धन्यवाद है दिव्या जी का जिनकी छोड़ी गयी फुलझड़ी की वजह से लोगों का भड़ास एक सार्थक दिशा में निकला | अभी बात हो रही थी आस्तिकता की तो सच्चा आस्तिक तो वही है जो इश्वर पर विश्वास रखे तथा उसके गुणों को धारण करे | उसे तो आस्तिक कभी नहीं कहेंगे जिसके विचार हों मुह में राम बगल में छुरी देख मौक़ा दे काटे मुड़ी ! जो आस्तिक है वो कभी भी बुरा काम करने की कोशिश नहीं करेगा क्यों की उसे पता है की इश्वर हर जगह है तथा वो हमारे किये गए पापों को देख रहा है | यदि कोई गलत कार्य करता है तो इसका मतलब है की वो इश्वर पर विश्वास नहीं करता | सिर्फ दिखावे के लिए इश्वर का नाम लेता है |
इस तरह से सच्चा ईश्वर का आस्तिक वही है जो किसी भी किस्म का गलत कार्य न करे ! जहां तक सवाल है पुनरजन्म , आत्मा , परमात्मा का, इन्हें आज तक किसी ने भी नहीं देखा लेकिन इन्हें महसूस किया जा सकता है | और ये अपने अपने विश्वास की बात है | चूँकि हमने यदि किसी चीज को नहीं देखा तो उसके अस्तित्व को सिरे से नकार देना ये तो मुर्खता का ही प्रदर्शन है | क्या हमने अपने दादा के दादा के दादा को देखा है क्या उसके भी पहले के पूर्वजों के नाम हमें मालुम है ?क्या इसके आधार पर ये कह देना की इनका कोई अस्तित्व ही नहीं था कितना गलत होगा ?

नश्तरे एहसास ......... said...

बहुत खूब लिखा है.........

वेसे मोक्ष प्राप्त हो ही जायेगा.......हाहाहा

पढ़कर तो मज़ा आ गया.......:)

चंदन कुमार मिश्र said...

लीजिए एक संयोग ही है जो इस वक्त मैं फिर यहीं हूँ। अभी बिजली नहीं थी और मैं इंटरनेट पर भी नहीं था। लेकिन जब आया और खाना खाकर इंटरनेट से जुड़ा कि आप मिल गए।
आप ये सब बातें जो इतनी लम्बी और व्यक्तिगत हैं, उनको मेरे निजी मेल पर भेज सकते थे लेकिन आपने यह रास्ता चुना। लेकिन मैं इन सबका जवाब दे सकता हूँ।

वही बात कि जो मैं सोचता भी नहीं वह आप सोच लिए और लिख भी दिया। धन्यवाद इसके लिए।
'इस बीच आप अन्य स्थानों पर भी बहस छेड़े हुए थे|'
यह क्या है? मैं और किस जगह था।

चंदन कुमार मिश्र said...

दिवस भाई,

आपकी टिप्पणी और मदन शर्मा जी की टिप्पणी को देखते हुए और मेरे पास सब का जवाब रहते हुए भी मैं किसी बात का जवाब नहीं दूंगा। इच्छा हुई तो फिर कभी निजी तौर पर जवाब दूंगा।

मदन जी की बात का जवाब अब नहीं दूंगा। क्योंकि मैं आप सबके सामने एक अदना सा इन्सान हूँ और आप सब महान लोग हैं। महान लोगों से भला एक तुच्छ आदमी क्या कहेगा! अब कुछ नहीं लिखूंगा। क्योंकि आपने मुझे बहुत कुछ कहने को मजबूर किया है। और इतना मैं यहाँ नहीं कह सकता।

दिवस said...

गलती हो गयी...मुझे लगा कि चर्चा यहाँ चल रही है तो इसे अपने जीमेल के इनबॉक्स तक क्यों ले जाऊं?
वैसे आपने अच्छा किया जो उत्तर नहीं दिया| चाहे तो मुझे मेल कर सकते हैं|

चंदन कुमार मिश्र said...

अन्तिम बात कि जब मेरे पास अहंकार है, आत्मविश्वास का अभाव है, मैं कुछ करता नहीं, मेरा मकसद केवल विवाद है, दूसरों की ऊर्जा बेकार मैं बेकार कर देता हूँ, मैं जिद्दी हूँ, मैं अच्छे लोगों से अच्छे लोगों का विश्वास तोड़ता हूँ आदि आदि…….….।॥…………। जब इतने दुर्गुण मुझमें हों तो मुझे यहाँ नहीं ही आना चाहिए। वैसे आपको बता दूँ कि इस ब्लाग पर आना मैं जरूरी नहीं समझता लेकिन एक मित्र ने ही यहाँ आने को कहा था, इसलिए देखने आ गया।……अब छोड़िए सब बातों को…भगतसिंह का लिखा पढ़ लीजिएगा। वैसे तो मैं खुद इन विषयों पर भविष्य में लिखता लेकिन यहीं कुछ अलग अनुभव हुआ। और एक चीज आप किस कम्पनी में काम करते हैं, जानना चाहता हूँ। मिलना होगा तो बात होगी। राजीव दीक्षित के बारे में क्या कहूँ? अब कुछ नहीं कहूंगा। मेरे चलते आपको इतनी लम्बी टिप्पणी टाइप करनी पड़ी, आपका समय लगा, मेहनत बेकार हुई इसलिए माफी चाहता हूँ और अगर माफी से काम नहीं चले तो आगे भी तैयार हूँ।

दिवस said...

जैसी आपकी इच्छा...
मैं भी हार नहीं मानता...

सत्य गौतम said...

क्या आपने कभी सुना है कि किसी सवर्ण के बालक ने बताया हो कि पिछले जन्म में वह दलित-वंचित था और उसे सवर्णों ने बहुत सताया ?
दलितों में और कमज़ोर वर्गों में जब दबंगों के विरूद्ध आक्रोश पनपा तो उन्हें शांत करने के लिए यह अवधारणा बनाई गई। इससे यह बताया गया कि अपनी हालत के लिए तुम खुद ही जिम्मेदार हो। तुमने पिछले जन्म में पाप किए थे इसलिए शूद्र बनकर पैदा हुए। अब हमारी सेवा करके पुण्य कमा लो तो अगला जन्म सुधर जाएगा।
बाबा साहब ने संघर्ष का मार्ग दिखाया और लोग जब चले उस मार्ग पर तो इसी जन्म में ही दलितों का हाल सुधर गया। यह सब व्यवस्थाजन्य खराबियां थीं। जिनका ठीकरा दुख की मारी जनता के सिर ही फोड़ डाला चतुर चालाक ब्राह्मणों ने। अब अपनी कुर्सी हिलती देखकर नई नई लीलाएं रचते रहते हैं ये।
ये तो पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दें, यह तो फिर भी बोलने वाला बालक है।
अगर पाप पुण्य का फल संसार में बारंबार पैदा होकर मिलता है तो जाति व्यवस्था को जन्मना मानने वाला और अपने से इतर अन्य जातियों को घटिया मानने वाला कोई भी नर-नारी स्वर्ग में नहीं जा पाएगा। वह ब्लॉगिंग तो कर सकता है परंतु उसे यहीं जन्म लेना होगा और यहां जन्म होता नहीं है। यह एक भ्रम है जिसे सुनियोजित ढंग से फैलाया गया है। यही कारण है कि यह सिद्धांत भारत के दर्शनों में ही पाया जाता है।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

moksh ka itna sulabh rasta.. bahut accha hai zeal ji.. do char blog bana lo.. aur do char pe tippdiyan kar do...lekin dar hai ki swarg ki pagdandi pe jaam na lag jaye.....suru ki panktiyan padhakar nahi socha tha aap is tarah mudne wali..bahut khoob hai.. badhaiyi

upendra shukla said...

क्या किया आपने जो आपके ब्लॉग पर् लोगो की बहस ही सुरु हो गयी !my blog link- "samrat bundelkhand"
अच्छा किया आपने जो follow by email wala widegt jod liya कई फायदे है इसके

रविकर said...

आचार्य, महापंडित माननीय चंदन कुमार मिश्र जी महाराज
@ इस मूर्खता से इस तरह
यों स्वयं को छलना नहीं ||

ज्ञान प्राप्त कर ये नासमझ धन्य हो गया ||


मेरी टिप्पणी केवल दिव्या जी को समर्पित है |

ऐसा लिखा है--टिप्पणी की अंतिम पंक्ति देख लीजिये |



किसी बहस में शामिल होने नहीं आया हूँ|



दूसरी मूल बात --

"आस्था"बहस का विषय नहीं है |

ऐसा कहा है मैंने |



आप जैसे विद्वान के

ये पत्थर

मुझ मूर्ख को लक्ष्य कर

फेंके गए |

घोंघा-बसंत हूँ स्वीकार है |

पर कृपया मेरा खून न चूसें--

अभी सडा नहीं है |



कुछ गलती हुई तो --

क्षमा करे

ब्राह्मण देव |

दिल दुखाना मेरा लक्ष्य नहीं था |

मूर्खता कर गया |

अब सामने नहीं पडूंगा |


मूर्ख या विद्वान
गलती किसी से भी हो सकती है |

चंदन कुमार मिश्र said...

ओह, बड़ी गलती। दोहे में तीसरा भाग होगा- आए 'तुम' पर 'आप' से।
June 22, 2011 7:44 PM

रविकर said...

आचार्य, महापंडित माननीय चंदन कुमार मिश्र जी महाराज !

इस post की सबसे पहली टिप्पणी भी देखिये |

वो न तो कविता है और न तुकबंदी |

इन पंक्तियों को भी कविता तो नहीं ही कहेंगे --
केवल आप के लिए--
ब्लाग-विलासी दुनिया में जो जीव विचरते हैं
सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, तमाशा जीते-मरते हैं |

सुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व
अपने गुण-कर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |


तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी
मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |


हक़ उनका है जग-सागर में, फेंके चाफन्दा*
जीव-निरीह फंसे जो आकर, आहें भरते हैं |


भावों का बाजार खुला, हम सौदा कर बैठे
इस जल्पक* अज्ञानी के तो बोल तरसते हैं ||

जल्पक = बकवादी (myself) तूती =छोटी जाति का तोता

चाफन्दा = मछली पकड़ने का विशेष जाल

सुअर-घृणित वृत्ति लोमड़ी-मक्कारी कौआ-चालबाजी



जानवर हूँ --जानवरों पर लिखना अच्छा लगता है |
पीपल-ध्यान तुलसी-पवित्रता बरगद-सृष्टि बिल्व-कल्याण


मच्छरों ने मक्खियों को खुब लताड़ा |

मक्खियाँ क्या छोड़ देतीं, बहुत झाड़ा ||


चूस करके खून तुम शेखी बघारो |

गुन-गुनाकर गीत, सोते जान मारो ||

इस तरह से दिग्विजय घंटा करोगे |

सोये हुए इंसान पर टंटा करोगे ||

मर्म-अंगों पर जहर के डंक मारो |

चढ़ चला ज्वर जोरका मष्तिष्क फाड़ो ||

पहले सुबह या शाम ही काटा किये |

अब रात भर डेंगू - दगा बांटा किये ||

रक्त-मोचित सब चकत्ते नोचते हैं |

नष्ट करने के तरीके खोजते हैं ||

तालियों के बीच तू जिस दिन फँसेगा |

जिन्दगी से हाथ धो, किसपर हँसेगा ||

नीम के मारक धुंवे से न बचेगा ---

राम का मैदान हो या सुअर बाड़ा ||

मच्छरों ने मक्खियों को खुब लताड़ा |

मक्खियाँ क्या छोड़ देतीं, खूब झाड़ा ||


मच्छरों ने मक्खियों की पोल खोली |

मार कर लाखों-करोड़ों आज बोली ||

गन्दगी देखी नहीं कि बैठ जाती -

और दुनिया की सड़ी हर चीज खाती ||

"मारते" तुझको निठल्ले बैठ खाली -

"बैठने से नाक पर" जाती हकाली ||

कालरा सी तू भयंकर महामारी |

अड़ा करके टांग करती भूल भारी ||


मधु की मक्खी आ गईं रोकी लड़ाई |

बात रानी ने उन्हें अपनी बताई ---

फूल-पौधों से बटोरूँ मधुर मिष्टी |

मजे लेकर खा सके सम्पूर्ण सृष्टि ||

स्वास्थ्यवर्धक मै उन्हें माहौल देती |

किन्तु बदले में नहीं कुछ और लेती ||

किन्तु दोनों शत्रु मिलकर साथ बोले--

मत पढ़ा उपकार का हमको पहाड़ा ||

मच्छरों ने मक्खियों को खुब लताड़ा |

मक्खियाँ क्या छोड़ देतीं, खूब झाड़ा ||

रविकर said...

आचार्य, महापंडित माननीय चंदन कुमार मिश्र जी महाराज ke blog se ---

भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी

चौंकने की जरूरत नहीं है। भारत का प्रधानमंत्री बनने का लक्ष्य इतना बुरा तो नहीं है। वैसे इसमें सच्चाई ज्यादा नहीं है।

aisa kya hai ki aap jo kahte
hain usme सच्चाई ज्यादा नहीं है।

ZEAL said...

.

समाज में हर किसी को किसी न किसी बात से निराशा के फलस्वरूप आक्रोश उत्पन्न होता है। समाज में हो रहे अनशन "सरकारी सत्ता" के खिलाफ आक्रोश है।

उसी प्रकार नास्तिक व्यक्ति को ईश्वर से बहुत नाराजगी है, उसे ईश्वर से बहुत से अनुत्तरित सवालों के जवाब चाहिए। जब उसे इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते तो वह "ईश्वरीय-सत्ता" से नाराजगी दिखाने के लिए खुद को नास्तिक घोषित करते ईश्वर के खिलाफ अनशन पर बैठ जाता है।

स्कूल, कॉलेज , बड़े-बड़े संस्थान यूँ ही नहीं चलते, ऊपर बैठा मैनेजमेंट उसे सुचारू रूप से नियंत्रित करता है। इसी प्रकार समस्त सृष्टि का सञ्चालन एक अत्यंत शक्तिशाली सत्ता कर रही है । अब इसे ईश्वर रकें या फिर कोई और नाम दे दें , कोई फरक नहीं पड़ता । लेकिन उस supreme power को नाकारा नहीं जा सकता। जापान के वैज्ञानिक चाहे कितनी भी तरक्की क्यूँ न कर लें , सृष्टि का कोप बड़े से बड़े देश को पल भर में मिटा देता है।

एक आम इंसान अपने अस्तित्व को तो नकारना नहीं चाहता , लेकिन अपने से सैकड़ों गुना बड़ी उस ताकत को जो सर्व शक्तिमान है , उसे नकार देना चाहता है ।

हमारी उँगलियाँ जो आज टाइप कर रही हैं और जब टाइप करना बंद कर देंगी , इन सभी बातों में उस सर्वशक्तिमान का ही विधान है।

यदि हम सृष्टि की उत्पात्ति और विनाश पर चिंतन करें तो उस शक्ति मानने के लिए स्वमेव बाध्य हो जायेंगे।

एक आम इंसान के पास इतनी ताकत ही नहीं है की वो ईश्वर की सत्ता को साबित कर सके अथवा नकार सके। दोनों ही बातों को साबित करने के लिए जितना ज्ञान , दिव्य दृष्टि , त्रिलोक दर्शी होना , समय , आयु एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती है , वह किसी भी नश्वर इंसान के पास नहीं होती ।

मनुष्य तो जन्म लेकर कुछ दशक के बाद मर जाता है। उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है , लेकिन सृष्टि पूर्ववत चलती रहती है काल का पहिया घूमता रहता है । जो ये सिद्ध करता है कोई बड़ी ताकत इसे संचालित कर रही है ।

जैसे चींटी और दीमक लाखों की संख्या में अपना अस्तित्व खोते हैं , उसी प्रकार मनुष्य समेत ८४ लाख योनियाँ भी अति सूक्ष्म हैं उस सत्ता के आगे।

हमारे पास जो इन्द्रियां हैं , उनसे हम उस परम सत्ता को देख नहीं सकते , सूंघ नहीं सकते , चख नहीं सकते। केवल विश्वास और आस्था रख सकते हैं ।

एक परम सत्ता में आस्था रखकर हम अपने अहम् पर भी लगाम लगाते हैं । ईश्वर के कोप से डरते हैं , तभी अन्य मनुष्यों का भी सम्मान करते हैं और घृणित कार्यों को करने से रोकते हैं स्वयं को। इसलिए जो भी व्यक्ति अपने सत्कर्मों से मानवता की सेवा कर रहा है , वह किसी न किसी रूप में उस परम सत्ता को स्वीकार कर रहा है , वो सभी आस्तिक ही हैं , भले ही खुद को नास्तिक क्यूँ न कहते हों।

.

udaya veer singh said...

Mysterious subject but analytical one ,very interesting & classical . thanks

रविकर said...

आचार्य, महापंडित माननीय चंदन कुमार मिश्र जी महाराज !


चंदन कुमार मिश्र said...

जमाल साहब,
एक बार फिर आप सामने हैं। न कोई आत्मा है, न कोई शैतान, न कोई रूह, न पुनर्जन्म होता है। लेकिन इस बार कुछ कहने में मजा नहीं आ रहा है क्योंकि किसी की बात इस लायक है ही नहीं कि उसपर अपना कुछ कहा जाय।
June 22, 2011 3:01 PM

@ लेकिन इस बार कुछ कहने में मजा नहीं आ रहा है क्योंकि किसी की बात इस लायक है ही नहीं कि उसपर अपना कुछ कहा जाय।

और इसी मजे के कारण आप ने मेरी टिप्पणी ले ली

और इस मूर्ख को फंसा लिया |

आपकी सारी टिप्पणियां पढ़ी पर

इस मूर्ख के पल्ले केवल एक ही बात पड़ी |

वही जो आपने तीन टिप्पणियों में कहा है |--

लीजिये मजा--

Bharat Bhushan said...
This comment has been removed by the author.
Bharat Bhushan said...

आस्तिक और नास्तिक में अंतर नहीं है. आस्तिक अपने से अलग सत्ता में आस्था रखता है और नास्तिक स्वयं में आस्था रखता है. दोनों अच्छे हो सकते हैं या बुरे हो सकते हैं. मैंने ईश्वर की शपथ खाने वाले आस्तिकों को अधिक झूठा पाया है.
समस्या है ईश्वर के नाम पर फैलाया गया अज्ञान जिसके द्वारा जन-जन का शोषण किया जाता है. लोगों को आस्था आधारित रोचक और भयानक सपने दिखाए जाते हैं या वैराग्य सिखाया जाता है और इस क्रम में जनता से प्राप्त धन को अपने घरों-धार्मस्थलों में ठूँस लिया जाता है.
भारत में पुनर्जन्म की अवधारणा बुहत से लोगों की आजीविका का आधार है. वे इसके विरुद्ध नहीं सुन सकते.

Urmi said...

बहुत बढ़िया और दिलचस्प लगा! शानदार पोस्ट!

JC said...

'मैंने' सोचा था 'मैं' केवल ज्ञानोपार्जन करूँगा, टिप्पणी पोस्ट नहीं करूँगा, किन्तु उसी अदृश्य शक्ति (योगेश्वर शिव/ विष्णु?) ने मुझे कहा कि जिन विचारों को यदि कोई 'तेरा' विचार कहता है वो, या तू भी यदि उसे अपना सोचता है, मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, क्यूंकि सभी विचार तो आठ चक्रों ('बंधों', यानि तालों में जिसकी चाभी मेरे, शिव/ विष्णु के, पास ही है) सभी मानव शरीर, मिटटी के पुतलों, के अन्दर मैंने ही सम्पूर्ण ज्ञान आठ चक्रों में (सूर्य से बृहस्पति तक के सार, जबकि शनि का सार स्नायु-तंत्र के रूप में मूलाधार से सहस्रार सभी चक्रों को जोड़ने का काम करता है), एक ब्रह्माण्ड के मॉडल से दूसरे में, विभिन्न मात्राओं में बाँट के रखा है, बिना किसी भेद-भाव के (धर्म, लिंग, देश आदि के) भंडारण किये हुए हैं... और प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क रुपी एनैलोजिकल कॉम्प्यूटर तक जो विचार किसी क्षण उठ पाते हैं उन्ही को वो प्रस्तुत कर सकता है, सम्पूर्ण ज्ञान नहीं प्रतिबिंबित कर पाता जो केवल शिव के लिए संभव है... और मानव-जीवन में जैसे कोई बच्चा एक कक्षा से दूसरी कक्षा में बिना परीक्षा पास किये नहीं जा सकता, वैसे ही हर आत्मा को चक्कर काटना ही होगा, जन्म--मृत्यु-पुनर्जन्म का, जब तक वो पास नहीं हो जाता...
(विष्णु शून्य काल और स्थान से सम्बंधित होने के कारण निर्गुण है, और साकार श्रृष्टि कि यदि रचना की भी होगी तो वो शून्य काल में ही ध्वस्त भी हो गयी होगी! तो फिर मानव जीवन में जो उसका प्रतिबिम्ब दिखाई देता है वो है हमारा 'एक्शन रीप्ले' द्वारा भूत में लगभग शून्य काल में हुई किसी क्रिया को, धोनी के छक्के जैसे, उसे धीमी गति से चला जितने बार देखना चाहें देख सकते हैं!
जहाँ तक किसी भी विषय पर विभिन्न असंख्य विचारों के आदान-प्रदान प्रतीत होने का विषय है, यदि हम सार निकालें तो पायेंगे कि वो केवल तीन (३) भाग में बांटे जा सकते हैं - कुछ सहमत/ कुछ असहमत/ कुछ मध्य मार्गी (यानि ॐ के प्रतिबिम्ब, ब्रह्मा-विष्णु-महेश समान)... सिक्के के भी तीन चेहरे ही होते हैं, यद्यपि 'आम आदमी' दो की ही बात करता है, 'सर' और 'पूँछ' की बीच के खाली स्थान (पेट) को अन देखा कर देता है, किन्तु इसी के कारण साकार रूप संभव है... इत्यादि इत्यादि...

sajjan singh said...
This comment has been removed by the author.
JC said...

दिव्या जी, जहाँ तक हिन्दू मान्यता पर अनुसंधान का सम्बन्ध है, 'मैं' किसी और सन्दर्भ में लिखे एक टिप्पणी को भी नीचे दे रहा हूँ...

'मैं' हिन्दू 'ब्राह्मण परिवार' में जन्म लेने के नाते, किसी उम्र में पहुँच पढ़ कर कि 'ब्राह्मण वो है जो ब्रह्म को जाने', हिन्दू मान्यता के विषय में जानना आवश्यक समझा...
और इस खोज से 'मैंने' पाया कि भारत में कहीं भी 'माया' शब्द का प्रयोग अक्सर सुनने को मिलता था, और 'क्षीर-सागर' / 'सागर' मंथन की कहानी भी बहुत प्रचलित है, जिसमें (सांकेतिक भाषा में) हमारे सौर मंडल की अमरत्व प्राप्ति को चार चरणों में दर्शाया गया है - दोनों 'राक्षशों' (स्वार्थी) और 'देवताओं' (परोपकारी) के मिले जुले प्रयास से, बृहस्पति की देखरेख में जो हमारे सौर मंडल का एक सदस्य ग्रह है (और हिन्दू-मान्यता अथवा 'सनातन धर्म' के अनुसार चार युग भी दर्शाए जाते आ रहे हैं)... किन्तु काल-चक्र को अमरत्व प्राप्ति के चरम स्तर से, यानि सतयुग से उल्टा कलियुग की ओर चलते दर्शाया गया है, वो भी एक बार नहीं अपितु १०८० बार ब्रह्मा के एक दिन में जो चार अरब वर्ष से अधिक माना गया, और आज हमारी पृथ्वी/ सौर-मंडल की आयु साढ़े चार अरब आंकी गयी है ! अर्थात वर्तमान यदि कलियुग अथवा 'घोर कलियुग' माना जाये (जब मानव छोटा हो जाता है, और आज चार वर्षीय शिशु भी वो कर रहे हैं जो 'हमारे समय' में २० वर्षीय करते थे) तो शायद अनुमान लगाया जा सकता है की 'हमें' आज वो दृश्य देखने को मिल रहा है जो सागर-मंथन के आरंभिक काल में था! यानि तब तक स्त्री को उसका उच्चतम स्थान प्राप्त नहीं हुआ था - जो उसने सतयुग के अंत में देवताओं के अमरत्व मिलने के पश्चात पाया... वैसे हिन्दू-मान्यतानुसार कलियुग की एक यही अच्छाई मानी है की यह सतयुग को फिर से सही समय आने पर लौटा लाता है :)

sajjan singh said...

@ Zeal

हमने आप की सुन ली अब कृपया करके हमारी भी सुन लें । कुछ लोग नास्तिकता को समझे बिना ही नास्तिकों के विषय में अपनी राय देने लगते हैं । नास्तिक ईश्वर में उसी तरह विश्वास नहीं करता जिस तरह कोई भूत-प्रेतों में विश्वास नहीं करता । जो चीज़ उसके लिए है ही नहीं उससे वह क्या नाराज़गी जताएगा । इस दुनिया को चालने वाला भी कोई मैनेजर चाहिए तो कृपया करके ये बतायें वे आदिपुरूष आये कहां से । आसमान से टपक पड़े या अनंत काल से सोये हुए थे और जैसे ही आँख खुली लग गये दुनिया बनाने । और उसने ऐसी दुनिया क्यों बनाई जहां जीव ही जीव को खा रहा है । एक समय ऐसा भी था जब इंसान भी भोजन चक्र का हिस्सा था । जानवर उसे खाते थे और वह जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरता था । उस निरीह हिरण के बच्चे का क्या दोष था जो पैदा होते ही शेर का शिकार हो गया । ममता तो उस हिरणी में भी कम नहीं रही होगी । इसमें कैसा न्याय है । बड़ी मछली छोटी मछली को खा रही है और बड़ी मगरमच्छ का शिकार हो जाती है । एक जीता जागता जीव दूसरे जीते जागते जीव का भोजन । इस तरह यदि वो है तो वो शैतान है । जो ऊपर बैठा धरती के जीवों के कष्ट का मजा लेता है । जापान के निवासियों से उसकी कैसी दुश्मनी थी जो उसने हजारों लोगों जिनमें स्त्रियां और बच्चे भी थे,मौत की नींद सुला दिया । हम तो इसे प्राकृतिक घटना मानते हैं आपके विश्वास में यह ईश्वर ने ही किया है तो पूछे उससे ये क्या नाटक लगा रखा है । पहले खुद ही जीवों की सृष्टि करता है फिर खुद ही उनके विनाश पर उतारू हो जाता है आपका वो तथाकथित ईश्वर सर्वज्ञानी और दयालु नहीं दुष्ट और मूर्ख है । इतने पर भी हम उसे ईश्वर ही मानते हैं वो कोई शैतान भी तो हो सकता है ।
नास्तिक विज्ञान को मानते हैं विज्ञान कहता है कि यह ब्रह्मांड स्वंय चलायमान हैं । प्रकृति के नियम इसे चलाते हैं और इन नियमों को भी कोई बनाने वाला नहीं हैं ये तो प्रकृति के आचरण का विवरण मात्र हैं ।
एक बहुत अच्छे लेखक हैं कुमार अम्बुज । इस विषय में काफी ज्ञान रखते हैं। समय मिले तो उनका ये लेख पढ़ें । नास्तिक भी बचपन से धार्मिक मान्यताओं के बीच ही पलकर बड़े होते हैं वो तो बाद में उनकी बुद्धि और विवेक जागृत होने पर वे तामाम भ्रमों से बचने में सफल हो जातें हैं । इसीलिए आस्तिकों को भी उनकी सुननी चाहिए । कुमार अंबुज के ये लेख पढ़ें -
धर्म एक अंधविश्वास है
धर्म नशा है
रिचार्ड डॉकिंस और क्रिस्टोफर हिचेंस भी धार्मिकों को नशेड़ी बता रहें हैं । यहां देखिए-
ईश्वर का विकास

BrijmohanShrivastava said...

मानस में भी तुलसीदास जी ने इन्हे प्रणाम किया है। मृतक पुनर्जन्म लें इस के पूर्व ही कत्ल के मुकदमों का फैसला हो जाना चाहिये

BrijmohanShrivastava said...

बाबा ने जब रामायण लिखी तब उन्हे भी नहीं मालूम था कि एक एक चौपाई के कितने कितने अर्थ निकाले जायेंगे । ऐसे ही आपको भी पता न होगा आर्टीकल लिखने के बाद बहस कहां तक पहुंचेगी

Markand Dave said...

आदरणीय बहन सुश्रीदिव्याजी,

संक्षिप्त मगर सटिक मनोमंथन। आपको ढेरों बधाई के साथ एक उपाय दर्शाने की जुर्रत कि है, मुझे क्षमा करना..!!

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,पुनरपि जननी जठरे शयनम् |
ईह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयापारे पाहि मुरारे ||
भज गोविंदम्,भज गोविंदम्,भज गोविंदम्,मूढ़मते |(२१)

(रचयिता-परमपूज्य आदी जगतगुरु श्रीशंकराचार्यजी ।)

सुज्ञ said...

@ तर्कशील की बात से किसी ने मतलब नहीं रखा। न सुज्ञ जी ने, न जमाल साहब ने, न रोहित ने।

चन्दन कुमार जी,
मैने तर्कशील और आपकी तार्किक्ता पर एक ही पंक्ति में जवाब दे दिया था जो आपको इतना नागवार लगा कि सुक्ति कुक्ति कहकर उस तर्क से मुँह ही चुरा किया।
वह पंक्ति थी……
अधिकांश लोग अंधविश्वासों पर तर्क रखते रखते तर्कों के ही अंधविश्वासी बन जाते है। अर्थात् तर्कों की अंध भक्ति करने लग जाते है।
यही बात तर्कशील के साथ है। कुरितिपूर्ण अंध्विश्वासों को दूर करते हुए और उनका प्रभाव पडते देख इतने अतिविश्वास में आ जाते है कि अपने तर्कों को चेलेंज की तरह ठोकनें लगते है। और यह अतिविश्वास उनका अपने तर्को पर अंधविश्वास बन जाता है। फलतः एक नई कुरिति और जड़ता को जन्म देता है।

आपके साथ भी यही बात है। साथ ही आपने जो तर्कशास्त्र पढा है वह यह है कि 'जब आपके पास चर्चा के सार्थक विचार न हो, अनर्गल प्रस्तुति से विषय को कन्फ्यूज कर दो्। ताकि चर्चा उलझ जाय।'

दिवस जी के स्पष्ठीकरण से निष्कर्ष यही है कि आपके साथ स्वस्थ चर्चा सम्भव ही नहीं। और विचार विनिमय के उद्देश्य से भी व्यर्थ है जब आप अपनी मानसिकता से दृढ नास्तिक है और जो आस्तिक है वे अपनी बात पर दृढ है।

ZEAL said...

.

@--भारत में पुनर्जन्म की अवधारणा बुहत से लोगों की आजीविका का आधार है. वे इसके विरुद्ध नहीं सुन सकते...

---------

आदरणीय भूषण जी ,
कम से कम यहाँ चर्चा करने वालों की जीविका का साधन तो नहीं ही है, पुनर्जन्म की अवधारणा , न ही हिंदी ब्लौगिंग अभी तक किसी की जीविका का साधन बन सकी है।

ज्यादातर ब्लॉगर या तो स्वान्तः सुखाय ब्लोगिंग कर रहे हैं या बिना अर्थ-प्राप्ति के, समाज के योगदान के लिए। विमर्श से बहुत कुछ सीखने को भी मिल जाता है ।

आभार।

.

ROHIT said...

सज्जन जी
कल बहुत थका था .अभी आपसे बात क
रता हूँ.

Bharat Bhushan said...

चार्वाक जिसका आपने उल्लेख किया है उसका सारा साहित्य जला दिया गया था और उसके अनुयायियों की चुन-चुन कर हत्या की गई थी. हत्यारों की आर्थिक हानि हुई होगी या नास्तिक होने के कारण असहिष्णु लोगों ने उन्हें मार डाला होगा. इसकी जानकारी आप विकिपीडिया से Charvak या Lokayat ढूँढ कर आसानी से जान सकती हैं.
जो सूत्र आपने चार्वाक का कह कर दिया है उसके बारे में विवाद है कि वह उसका है भी या नहीं. इसे प्रक्षिप्त (ठूँसे) अंश के तौर देखा जाता है. वैसे ऋण लेकर घी पीने का आधुनिक उदाहरण उद्योगपतियों ने स्थापित किया है. वे बैंकों का ऋण लौटाते नहीं और बैंकों के NPAs बढ़ते हैं फलस्वरूप सार्वजनिक बैंक घाटे में जाते हैं. यह भ्रष्टाचार का रूप है. इससे लगता है कि चार्वाक बहुत पहले इस विचारधारा को जान चुके थे और आज हम उसी के अनुसार जी रहे हैं :))

सुज्ञ said...

@ समस्या है ईश्वर के नाम पर फैलाया गया अज्ञान जिसके द्वारा जन-जन का शोषण किया जाता है. लोगों को आस्था आधारित रोचक और भयानक सपने दिखाए जाते हैं या वैराग्य सिखाया जाता है

भूषण जी,

ईश्वर के नाम से कोई शोषण करे तो उसमें आस्तिकता की मान्यता का क्या दोष्। सर्व जगत के हित में प्रकाशित गुणवर्धक शास्त्रों का कोई स्वार्थी तत्व यदि दुर्पयोग करे तो शास्त्रों को क्यों दोष दिया जाय जिसमें सदाचार ही वर्णित हो।
वैराग्य सिखाया जाता है??????, तो अच्छी बात है न आस्तिक पालनकर्ता वैराग्य अपनाएंगे तो जीवन के संसाधन बचेंगे और उसका जन जन को अतिरिक्त लाभ होगा। आपका निर्देशित वर्ग शोषण छोडकर वैरागी बनता है तो वैराग्य सिखाया जाना सामान्य जन या नास्तिक जन के लिये लाभप्रद है।
अथवा फिर भोगवाद को किसी का भी वैरागी बन जाना रास नहीं आ रहा?

ROHIT said...

सज्जन कुमार जी
महाशय
शेषनाग के फन पर धरती की पूरी बात अगर मै बताऊंगा तो आप जैसे नास्तिको के पल्ले नही पड़ेँगी. इसलिये अब मै आपको ऐसी बात बताऊंगा जिसका सबूत आज भी है.
और आप को पता चल जायेगा कि पहले के जमाने मे विग्यान कितना हाईटेक था.

तो बंधु रामायण काल मे जो रामसेतु बना था.
जो आज भी है.
केवल पाँच दिनो मे वानर सेना ने 10 योजन चौड़ा और 100 योजन लंबा पुल बनाया था .

क्या आज के विग्यान की इतनी औकात है? कि पाँच दिन मे इतना लंबा चौड़ा शक्तिशाली पुल बना दे.
अभी कुछ साल पहले कुछ मूर्ख उसको काल्पनिक बताकर तोड़ने आये थे.

उन मूर्खो का क्या हाल हुआ. जरा सुनिये.
विदेश से जो मशीने आयी उसको तोड़ने के लिये.
वो मशीने बार बार वहाँ जाकर खराब हो गयी
और जब ये लोग नही माने तब वो मशीने वही फस गयी.
उसके बाद उन फसी मशीनो को निकालने के लिये क्रेन मंगायी गयी.
वो क्रेन टूट गयी.
फिर एक विदेशी अफसर आये.
और अपनी टांगे तुड़वा बैठे.
उसके बाद एक विधायक आये.
उन्होने सोचा कि इसको तोड़ने के लिये पहले पूजा पाठ कर ली जाये.
तो उन विधायक की साँसे ही टूट गयी. उनको हार्ट अटैक पड़ गया.
जारी..सज्जन कुमार जी
महाशय
शेषनाग के फन पर धरती की पूरी बात अगर मै बताऊंगा तो आप जैसे नास्तिको के पल्ले नही पड़ेँगी. इसलिये अब मै आपको ऐसी बात बताऊंगा जिसका सबूत आज भी है.
और आप को पता चल जायेगा कि पहले के जमाने मे विग्यान कितना हाईटेक था.

तो बंधु रामायण काल मे जो रामसेतु बना था.
जो आज भी है.
केवल पाँच दिनो मे वानर सेना ने 10 योजन चौड़ा और 100 योजन लंबा पुल बनाया था .

क्या आज के विग्यान की इतनी औकात है? कि पाँच दिन मे इतना लंबा चौड़ा शक्तिशाली पुल बना दे.
अभी कुछ साल पहले कुछ मूर्ख उसको काल्पनिक बताकर तोड़ने आये थे.

उन मूर्खो का क्या हाल हुआ. जरा सुनिये.
विदेश से जो मशीने आयी उसको तोड़ने के लिये.
वो मशीने बार बार वहाँ जाकर खराब हो गयी
और जब ये लोग नही माने तब वो मशीने वही फस गयी.
उसके बाद उन फसी मशीनो को निकालने के लिये क्रेन मंगायी गयी.
वो क्रेन टूट गयी.
फिर एक विदेशी अफसर आये.
और अपनी टांगे तुड़वा बैठे.
उसके बाद एक विधायक आये.
उन्होने सोचा कि इसको तोड़ने के लिये पहले पूजा पाठ कर ली जाये.
तो उन विधायक की साँसे ही टूट गयी. उनको हार्ट अटैक पड़ गया.
जारी..

ROHIT said...

और जब ये बात कोर्ट के जज को मालूम हुयी. तो वो भी बेचारा सहम गया.
अब दूसरा नमूना बताता हूँ.
गुजरात मे समुद्र के अंदर डूबी द्रारिका नगरी . जो आज भी है.
और अंदर जाने पर आसानी से दिखती है.
जब पुरातत्व विभाग के लोग उसका अध्ययन करने समुद्र के अंदर गये.
तो उस नगरी की बनावट ,मोटी मोटी दीवारे और वास्तु देखकर दंग रह गये.
और दंग होना भी स्वाभाविक है.
क्यो कि उस नगरी को आज के शिल्पकारो के पूज्य महान शिल्पकार विश्वकर्मा ने श्री क्रष्ण के आदेश पर बनाया था.

तो सज्जन जी
इन दो प्रत्यक्ष उदाहरणो से आपको समझ मे आ गया होगा कि पहले के युगो के विग्यान का स्तर क्या था.
केवल हो हो करके सब कुछ नकारने से काम नही चलता है.
कुऐ के बाहर भी एक विशाल दुनिया होती है .
और उसको देखने के लिये कुऐ के मेढक को कुए के बाहर आना पड़ता है.
अब आप कह रहे थे कि विमान की तकनीक धर्मशास्त्रो से पढ़कर मैने क्यो नही विमान बना दिया.
तो भाई सारी तकनीक अगर धर्मशास्त्रो मे लिख दी जायेँगी.
तो कलियुग मे इंसानो को क्या कदुआ छीलने के लिये पैदा किया गया है.

सुज्ञ said...

@वैसे ऋण लेकर घी पीने का आधुनिक उदाहरण उद्योगपतियों ने स्थापित किया है. वे बैंकों का ऋण लौटाते नहीं और बैंकों के NPAs बढ़ते हैं फलस्वरूप सार्वजनिक बैंक घाटे में जाते हैं. यह भ्रष्टाचार का रूप है.

भूषण जी,
यह प्रथा आधुनिक उद्योगपतियों ने स्थापित नहीं की ऋण न लौटाने की प्रथा का श्रीगणेश तो पुराने बैंकरो (महाजनों)के साथ कब का हो चुका था। ऋण न लौटाने की मंशा नें प्रचीन वित्त व्यवस्था को खत्म ही कर दिया था।

और यह चार्वाक और लोकायत भौतिकवादी और भोगवादी ही है इसमें संशय को कोई स्थान नहीं है। इसीलिये वह सूत्र इस दर्शन के अनुकूल ही है। प्रक्षिप्त होनें का प्रश्न ही नहीं उठता। अगर यह दृष्टिकोण प्रक्षिप्त है तो चर्वाक का सिद्धान्त ही गलत हो जाता है।

नास्तिकता और भौतिकवाद हमेशा भोगवादी ही होती है। इसीलिए वौराग्य, त्याग और उपभोग संयम उसे रास नहीं आता।

ROHIT said...

ये तो हुयी तकनीक की बात.
अब बात करता हू भगवान की.
सज्जन जी
जहाँ विग्यान का दिमाग खत्म हो जाता है वहाँ से भगवान की ताकत शुरु होती है.
कल से देख रहा हूँ आप बहुत हो हो कर रहे है.
तो चलिये रामेश्वरम मे रामसेतु के पास मंदिर बना है वहाँ पर पानी मे तैरते हुये पत्थर रखे है. जिनसे राम सेतु बना था.
लोग आते हे हाथ से पानी मे डुबोने की कोशिश करते है. लेकिन वो डूबता नही है.
फिर से तैरने लगता है.
जाइये वहाँ जाकर अपने विग्यान के सिद्धांत लगाइये. और बताइये की वो पत्थर पानी मे कैसे तैर रहा है.
वहाँ न जा पाये तो वहाँ से लाया हुआ पत्थर बरेली के एक अलकनाथ शिव मंदिर मे रखा है.
वहाँ मै छोटे मे गया था.वो पत्थर करीब 13 से 15 किलो वजनी है. जाइये वहाँ जाकर अपना विग्यान लगाइये.

ROHIT said...

और चमत्कार देखना है
तो हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध ज्वाला मंदिर पहुचिये.
वहाँ हजारो साल से देवी ज्वाला के रुप मे विराजमान है.
बिना घी तेल के वहाँ उन पहाड़ो के बीच से हजारो साल से लगातार ज्वाला जल रही है.
एक से एक तीसमारखा आये उसको बुझाने के लिये.
लेकिन बुझा नही पाये.
पहले मुगल राजा अकबर आया था. उसने लोहे की बड़ी बड़ी प्लेटे उस ज्वाला के ऊपर रखवायी.लेकिन बेचारा ज्वाला को बुझा नही पाया.
फिर उसने नदियो की धार को उस ज्वाला की तरफ मुड़वा दिया.
लेकिन फिर भी ज्वाला नही बुझी.
जब अकबर सारे प्रयत्न करके असफल हो गया.
तब वो समझ गया कि ये चमत्कारिक शक्ति है. तब उसने वहाँ सोने का छ्त्र चड़ाया.
लेकिन उस कुकर्मी अकबर के सोने के छत्र को देवी ने स्वीकार नही किया.
और वो काला होकर ऐसी धातु मे बदल गया कि आज तक उस धातु की पहचान ही नही हो पायी.
वो धातु आज भी वहाँ रखी है.
जारी..

ROHIT said...

उसके बाद कुछ लोगो ने कहा कि वहाँ गैस होगी. इसलिये ज्वाला लगातार जल रही है.
उस गैस के भंडार को खोजने के लिये देश विदेश से गोरे काले नीले ,पीले जितने भी वैग्यानिक थे .वहाँ पर आये
अपना अपना विग्यान लगाया.
पर बेचारे गैस का एक स्रोत भी न ढूंढ पाये
और अपना दिमाग पकड़कर वापस लौट गये.
तो सज्जन साहब आप भी वहाँ जाके अपना विग्यान लगाइये.
हो सकता है आप को कुछ पता चल जाये.
और जब पता चल जाये तो हमे भी बता देना.

ROHIT said...

तो सज्जन कुमार जी
अब आगे मुझसे बहस करने के लिये इन तीनो घटनाओ का कोइ ठोस कारण सबूत प्रस्तुत करना.
(1) पुर्नजन्म बताने वाले लड़के को गलत साबित करने के लिये ठोस सबूत
(2) रामसेतु वाले पत्थर पानी मे कैसे तैर रहे है.
(3) ज्वाला मंदिर मे बिना घी तेल और गैस के वो ज्वाला लगातार हजारो साल से कैसे जल रही है?

तो अब जब इन तीनो घटनाओ के पीछे कोइ ठोस कारण प्रस्तुत करना .तब आगे बात करना.
क्यो कि मेरे पास हवा मे बाते करने वालो से बहस करने का वक्त नही है.

सुज्ञ said...

जब इन्सान भौतिकवाद को प्रशय देकर भोगवाद को जीता है उसी क्षण से वह शोषक बन जाता है। यह अटल नियम है।

सम्पूर्ण नास्तिकता का यही दुखद परिणाम है।

सम्पूर्ण नास्तिकता, मैं उसे कहता हूँ जो मात्र ईश्वर के अस्तित्व से ही इन्कार नहीं करता बल्कि आत्मा और पुनर्जन्म में भी नहीं मानता,अच्छे-बुरे कर्म और उसके प्रतिफल में नहीं मानता, सदगुणों के उपदेशक धर्म-शास्त्रों को नहीं मानता। भौतिक शरीर और भौतिक वस्तुओं को सबकुछ मानता है। और भोग-उपभोग को ही जीवन लक्ष्य मानता है।

Udan Tashtari said...

धन्य भये देख सुन कर ही...

दिवस said...

रोहित भाई साधुवाद...
आपने अच्छे उदाहरण दिए हैं|
वह देवी ज्वाला तो मैंने नहीं देखी किन्तु रामेश्वरम के उन पत्थरों को देख चूका हूँ| सचमुच यह अद्भुत है|
रामसेतु के विषय पर आपकी टिप्पणी सार्थक लगी| इस विषय पर कुछ और भी कहना चाहता हूँ| रघुवंशम में इस विषय पर काफी अच्छी चर्चा दी है| इसे एक धर्म ग्रन्थ से हटकर एक वैज्ञानिक पुस्तक के रूप में देखा जा सकता है| यहाँ भगवान् राम व नल और नील नामक दो वानरों की वार्तालाप को विस्तार से दिया गया है|

भगवान् राम ने जब नल और नील से सेतु बनाने के सम्बन्ध में बात की तो इन दोनों वानरों ने कहा की हम एक ऐसा सेतु बनाएंगे जो की छोटा सा होगा| आपकी सेना में वानर हैं| वानरों की प्रकृति होती है कि वे कूद कूद कर चलते हैं| अपना कम से कम वजन धरती पर डालते हैं| एक पैर धरती पर पूरी तरह रखते भी नहीं हैं कि दूसरा पैर आगे बाधा देते हैं| अत: हम इस सेतु को कमज़ोर ही बनाएंगे, जिससे कि राक्षस हमारा पीछा करते हुए यदि लंका से यहाँ तक आना चाहें तो यह सेतु उनके वजन व उनके चलने के तरीके से टूट जाएगा| क्यों कि राक्षस एक ही लय में चलते हैं| यह सेतु इस आवृति को झेल नहीं सकेगा और टूट जाएगा|

ज़ारा सोचिये कि ये तो इन वानरों ने इस सेतु को इतना कमज़ोर बनाया था तब आज इन विदेशियों को इसे तोड़ने में कमर टूट रही है| यदि मज़बूत बनाया होता तो क्या होता?

दूसरी बात इस सेतु को बनाने के लिए नल और नील ने विशेष आकर के पत्थरों को काम में लिया था, जो कि आपस में ही एक दुसरे से बंधे हुए थे| इन्हें जोड़ने के लिए मोटे कीलों का उपयोग भी हुआ जो कि ऐसे धातु से बने हैं कि हज़ारों वर्षों से पानी में डूबे रहने पर भी इनमे जंग नहीं लगा| क्या आज के विज्ञानी ऐसा धातु बना सकते हैं?

यह टिप्पणी इस विषय पर कुछ और प्रकाश डालने के लिए लिखी गयी है|

रोहित भाई आपने अच्छे उदाहरणों से चर्चा शुरू की है| बाकी आज के इन नास्तिकों को उस समय का हाई टेक विज्ञान समझ नहीं आने वाला| ये रहेंगे लकीर के फ़कीर ही|

आने वाली टिप्पणियों का उत्तर अभी नहीं दे सकूँगा| वह शाम तक ही संभव हो सकेगा|

Bharat Bhushan said...

@ वैराग्य सिखाया जाता है??????
सुज्ञ जी,
वैराग्य सिखाने वाले महंतों-गुरुओं को सब कहीं (आज कल टीवी चैनलों पर) पुनर्जन्म का नाम लेकर वैराग्य फैलाते देखा है. उनके यहाँ जाने वाले अधिकतर निम्नवर्ग या मध्यवर्ग के लोग होते हैं जो अपने बच्चों का पेट काट कर महंतों-गुरुओं को चढ़ावा चढ़ाते हैं. दूसरी ओर ये महात्मा लोग चढ़ावे के पैसे को समेट कर ले जाते हैं और अपने निजी/पारिवारिक खर्च के लिए उपयोग में लाते हैं. इस तरह का चढ़ावा खाने वाले ये लोग किस शास्त्र की पालना कर रहे हैं और कर्म तथा पुनर्जन्म के सिद्धांतों के अनुसार इनका क्या हश्र होना चाहिए, यह प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक है.
ऐसे महात्माओं को जनमानस आस्तिक मानता है. इसका कोई निदान होना चाहिए.

एक बेहद साधारण पाठक said...

http://www.scribd.com/doc/11496844/A-Skeptic-for-ManyYears-Now-Believes-in-Reincarnation

एक बेहद साधारण पाठक said...

सभी प्रश्नों के उत्तर

http://www.ial.goldthread.com/skeptics.html

एक बेहद साधारण पाठक said...

एक व्यक्ति के जीवन में सत्संग का पांडाल और विज्ञान की प्रयोग शाला दोनों ही जरूरी है किसी भी एक चीज का अभाव जीवन का असंतुलित बनाता है
विए हमारे देश में तो " विज्ञान वही जो हमारे मन भाये" की कहावत सही है :))
उदाहरण : मैंने कुछ गहनों की वैज्ञानिकता पर लेख लिखने की महान भूल [हा हा हा ] की थी मैंने पाया की कईं लोगों को उसमें मौजूद वैज्ञानिक तथ्य वैज्ञानिक नहीं लगे , मैंने भी सोच लिया....... रहने ही देते हैं , कोई फायदा नहीं है समझा कर :))

एक बेहद साधारण पाठक said...

कृपया गूगल पर ये सर्च करें

"The 30 Most Convincing Cases of Reincarnation "

शायद कुछ मिल जाए :)

वैसे तो और भी बहुत सी बातें हैं जो किसी वैज्ञानिक बुद्धि के व्यक्ति को पता होनी चाहिए .. लेकिन जैसा की मैंने कहा की कोई फायदा नहीं होना

एक बेहद साधारण पाठक said...

विज्ञान भक्तों के लिए से एक अनुरोध
कभी कभार विज्ञान के ऊपर भी कुछ लिखें तो बेहतर होगा . ये "ढोंगी बाबा" फेक्टर से सब बोर हो चुके हैं

उदाहरण :
http://www.mcastleman.com/page2/page27/page12/page12.html

एक बेहद साधारण पाठक said...

भारत का मनोविज्ञान अद्भुद है .. हो सकता है चुटकियों में समझ में आ जाए ........हो सकता है पूरी उम्र समझ ना आये..हो सकता है आप सामना ही ना करना चाहें


ये पढ़िए ...........
मनोवैज्ञानिक कार्ल और रमण महर्षि

http://www.messagefrommasters.com/Therapy/osho_on_carl_jung_psychology.htm

रविकर said...

रोहित भाई साधुवाद...
आपने अच्छे उदाहरण दिए हैं|

एक बेहद साधारण पाठक said...
This comment has been removed by the author.
एक बेहद साधारण पाठक said...

सुज्ञ जी के कमेन्ट पढ़ कर मन आनन्दित हुआ , पूरी चर्चा आ कर पढूंगा . अभी जल्दी में हूँ :)

शिखा कौशिक said...

ye to bahut hi badi khushkhabri hai .aabhar Divya ji .

sajjan singh said...

@ भाई रोहित,

लड़के वाली घटना की पड़ताल न आपने की है और न मैंने और मीडिया की खबर को अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता । तर्कशील जैसी संस्थाएं ऐसे सैकड़ों पुनर्जन्म के किस्सों की पोल खोल चुकी है । इसका भी सत्य सामने आ ही जाएगा । सेतुसमुद्रम परियोजना के समय रामसेतु का विवाद उठा था तब खुद भारतीय पुरातात्विक विभाग ने इसका सर्वेक्षण किया और इसे मानवकृत न मान कर प्राकृतिक रूप से बना हुआ बताया था । यहां देखिए-
अंधविश्वास का पुल
जिस ज्वाला देवी मंदिर का जिक्र आपने किया है । तर्कशास्त्रियों की एक टीम ने बरसों पहले उसका परीक्षण किया था । उस ज्वाला का कारण कोई अलौकिक चमत्कार नहीं है । उस मंदिर की जमीन के नीचे सल्फर है जो लगातार एक प्रक्रिया के तहत जलती रहती है । और दूसरी बात कोई चीज़ समझ में नहीं आये तो इसका मतलब ये नहीं है कि हम उसकी पूजा करने लगे । प्रकृति में इस तरह के कई रहस्य हैं जिनमें से ज्यादातर को विज्ञान सुलझा चुका है । और जिन्हें आज वह नहीं जानता उसे कल जान ही जाएगा । आदि काल में मानव हर उस चीज़ को पूजता था जिसे वह समझ नहीं सकता था ।

सुज्ञ said...

@आज हमारे यहाँ बरसात शुरू हो गई। सुबह हुई, फिर दुपहर को, फिर शाम को। रात में भी हो रही है। सारे पतंगे पोर्च की रोशनी पर गिर गिर कर मर रहे हैं। बमुश्किल पोर्च की लाइट बंद कर के आया हूँ। कम से कम मेरे पोर्च में तो न मरें।

दिनेश राय जी,
क्या ही योगनुयोग संयोग है, कल से यहाँ भी बारीश है प्रकाश अभिलाषी पतंगों की भरमार है। रात सोच रहा था पता नहीं ये पतंगे जान देकर भी प्रकाश की तरफ़ ही क्यों जाते है। वहां एक मोटी सी भद्दी चिपकली उस क्षेत्र को अपना मान रही थी। उसका प्रकाश से इतना ही नाता था कि पतंगो को सफाचट कर सके। अन्यथा वह हमेशा अंधेरी दरारों में छिपी रहती है।

सुज्ञ said...

भूषण जी,

चढावा डकारते महंतों-गुरुओं को शोषक मानें यह तो उचित हैं। वे व्यक्तिगत रूप से अनाचारी है। भ्रष्ट है। पर जो वैराग्यवंत त्यागी संत है वे तो अपने भोग-संयम से समाज को लाभ पहुंचाते है। क्या हमारा द्वेषभाव इतना अन्यायी हो गया है कि हम एक ही लकडी से सभी को हांके?
कुछ भ्रष्ट उपदेशकों के कारण ईश्वर, धर्म,शास्त्र, सद्गुण,सदाचार शान्त सन्तोषी जीवन सभी को ही लतियानें लगें?

Bharat Bhushan said...

धन्यवाद सुज्ञ जी
चढावा डकारते महंतों-गुरुओं को सार्वजनिक रूप से धिक्कारना आवश्यक हो गया है. पुनर्जन्म से बाद में निपटा जा सकता है.

रचना दीक्षित said...

बहुत दिलचस्प पोस्ट और करारा व्यंग

ROHIT said...

अच्छा ऐसा है !!. सज्जन कुमार जीँ.
मुझे तो पता ही नही था.
यानि की सब कुछ नकली है . सब झूठ है.
लाखो साल पहले रामायण मे लिख दिया गया था. कि वानर सेना ने समुद्र मे पत्थर तैराकर लंका तक पुल बनाया .आज जाँचने पर समद्र मे पत्थर का वो पुल साफ साफ दिख रहा है. तैरते हुये पत्थर का चमत्कार भी दिख रहा है.यानि की रामायण भी झूठ, और पुल भी झूठ. तैरते पत्थर भी झूठ. रामसेतु तोड़ने की कोशिश करने वालो की जो हालत हुयी हैँ. वो भी झूठ.

महाभारत मे लिख दिया गया था कि क्रष्ण ने समुद्र के बीच मे द्वारिका बसायी .
आज जाचने पर समुद्र मे डूबी द्वारिका भी मौजूद है.
यानि की महाभारत भी झूठ, कन्हैया भी झूठ और वो द्वारिका भी झूठ.

देवी भागवत मे ज्वाला देवी का वर्णन है.
आज जाचने पर कांगड़ा मे ज्वाला देवी मौजूद है. यानि देवी भागवत भी झूठ, ज्वाला देवी भी झूठ.
पुर्नजन्म भी झूठ और इन सबका स्रोत सनातन धर्म भी झूठ है.
और सच कौन है ?
सच है हमारे सज्जन कुमार जी.
अच्छा सज्जन कुमार जी.
चलता हूँ. जोक फिर कभी सुनूंगा.
छोटे मे एक कहावत पढ़ी थी.
पता नही आज क्यो याद आ रही है?
भैस के आगे बीन बजावे .
भैस खड़ी पगुराये.

सुज्ञ said...

धन्यवाद तो आपका भूषण जी,
इसी में आपके शोषण का मोचन हो गया।
ईश्वर, धर्म,शास्त्र, सद्गुण,सदाचार शान्त सन्तोषी जीवन और वैराग्य तब तक बच गया।

एक बेहद साधारण पाठक said...

अरे यार मुझे तो लेख ही बनाना पड़ेगा लगता है ..... एक लेख डेश बोर्ड में था प्रकाशित कर रहा हूँ


http://my2010ideas.blogspot.com/2011/06/part-2.html

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