Tuesday, July 26, 2011

असमर्थ बेटी -- कहानी !

असह्य कष्ट से छटपटाती माँ , जनरल वार्ड में भर्ती थी ! स्थिति बिगडती चली जा रही थी ! दुसरे शहरों में रह रही दोनों बेटियों का परिवार वहां पहुँच चुका था ! चंचल ने जल्दी-जल्दी अपनी जमा पूँजी समेटी और अगली ही गाडी से माँ से मिलने निकल पड़ी ! मन अनेक आशंकाओं से घिरा हुआ था ! पूरा दिन सफ़र के बाद रात दस बजे जब चंचल अस्पताल पहुंची तो माँ की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी ! डाक्टरों का कहना था की इन्हें तुरंत ICU में भर्ती करना होगा ! ICU में भर्ती करने के लिए सबसे पहले दस हज़ार की फीस भरनी थी ! उस समय किसी के पास इतना पैसा नहीं था ! चंचल ने तत्परता से दस हज़ार रूपए जमा करके माँ को फ़ौरन ICU में भर्ती करवाया ! जीवन में पहली बार उसे मुट्ठी भर संतोष मिला था ! वो खुश थी की उसकी छोटी सी जमा-पूँजी , माँ की तकलीफ में काम सकी !


फिर सिलसिला शुरू हुआ ICU में होने वाले डाक्टरी इलाज का ! प्रतिदिन का खर्च तकरीबन २०-३० हज़ार ! डाक्टर के प्रत्येक राउंड के बाद नर्स , जांचों , दवाइयों और इंजेक्शंस का परचा थमा जाती थी और चंचल की दोनों बहनें लग जाती थीं माँ की हर आवश्यकता पूरी करने में ! दोनों ही आत्म निर्भर थीं और तन-मन-धन से माँ की सेवा कर रही थीं ! चंचल को गर्व हो रहा था अपनी बहनों पर ! ईश्वर उसकी बहनों जैसी बेटियां, हर माँ को दें !

चंचल असहाय थी ! वो कोई आर्थिक मदद नहीं कर पा रही थी ! सारा भार उसकी बहनों पर ही था ! उसे अफ़सोस था की माँ ने तो अपनी तीनों बेटियों को पढ़ा-लिखाकर सामान रूप से लायक बनाया था लेकिन चंचल आज आर्थिक रूप से इतनी अशक्त थी की वह अपनी बीमार माँ के लिए कुछ नहीं कर सकती थी ! चाहती थी पति उसके मन की उलझन समझ ले लेकिन पति ने अपनी तरफ से कोई तत्परता नहीं दिखाई तो सकोचवश वह अपनी माँ के इलाज के लिए पैसे नहीं मांग सकी उनसे !


रात्री के दुसरे पहर में जब ICU के बाहर जब मरीजों के परिजन फर्श पर चादर बिछाए बेखबर सो रहे थे तब अपनी असमर्थता और लाचारी पर बिना आहट किये वह सिसक रही थी ! बगल में सो रही छोटी बहन की अचानक नींद खुली ! चंचल को सुबकते देख उससे कारण पूछा ! लाख पूछने पर भी चंचल ने अपनी मन की व्यथा छोटी बहन को नहीं बताई ! लेकिन बहन ने चंचल के आंसुओं को पढ़ लिया ! सुबह होते ही उसने दस हज़ार रूपए ATM से निकाले और चंचल के हाथ पर रख दिए ! चंचल आँख मिला सकी !

उसी दिन दोपहर दो बजे माँ इस संसार को छोड़कर विदा हो गयी ! उसी के साथ ख़तम हो गयी सब उधेड़बुन और ज़रूरतें !


मृत्यु के छः महीने बाद जब वृद्ध पिता ने कुछ पैसों का इन्तेजाम किया तो लाख मना करने के बावजूद , सबसे पहले उसी असमर्थ बेटी का पैसा चुका दिया गया ! चंचल को उस छोटे से योगदान से जो मुट्ठी भर संतोष मिला था , वो भी जाता रहा .......

Zeal

58 comments:

रविकर said...

मार्मिक |
दिल के करीब ||
सत्य घटना ||

आपके पास अनंत विषय हैं क्योंकि आप "प्रेक्टिकल" हैं ||

रेखा said...

आखें नम हो गई आपकी कहानी पढ़कर .........बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति

Anonymous said...

हे भगवान - यह कैसा पति है ?

लेकिन मैं सच में एक ऐसा केस भी जानती हूँ (कहानी नहीं - सच में ) - जहाँ बेटी पढ़ी भी है - नौकरी भी कर रही है - सेलरी होगी करीब ४०००० पर मंथ | पर वह ६-६ साल अपनी माँ से नहीं मिल पाती | पिछले हफ्ते उसकी माँ गिर पड़ीं - रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर है - पर पति ने अलाऊ नहीं किया कि माँ से मिलने जाए - क्योंकि ६ साल अलग रहने के बाद - और साल भर घर में हुई महाभारत के बाद वह पिछले ही महीने माँ से मिल आई - एक हफ्ते वहां रह आई | तो अब एक्सीडेंट के बाद उसने पूछा - मैं जाऊं - तो पति ने कहा कि "फिर से तेरा नाटक शुरू हो गया?"

बहुत सी मजबूरियां होती हैं जील जी - यह बात सिर्फ पैसे तक नहीं है - इससे बहुत बड़ी है ... :(

SAJAN.AAWARA said...

KAAS CHANCHAL KA PATI APNI TANKHWA ME SE KUCH HISSA USKO DIYA KARTA TO USE ITNA ASAHAYA HONE KI NOBAT HI NA AATI..

MAM APKI ISSE PAHLE WALI RACHNA ISSE SAMBANDH RAKHTI HAI.....
ME THIK HI KAH RAHA HUN NA?

JAI HIND JAI BHARAT

Rajesh Kumari said...

yeh post pichli post se hi related hai.marmik kahani hi nahi ek majboor nari ki vyatha bhi dikhaai de rahi hai.yahi to har us aurat ki kahaani hai jo aatmnirbhar nahi hai.bahut prerna dayak lekh hai.god bless you.

virendra sharma said...

मार्मिक ताना बाना कहानी का .कसावदार बुनावट .एक लफ्ज़ फ़ालतू नहीं .लडकियां हर हाल में साथ देतीं हैं तंग हाली में भी

Bharat Bhushan said...

लड़कियाँ जैसे-तैसे कर रही थीं. समर्थ थीं या कम समर्थ. देखने में यह आया है कि ऐसी स्थिति में लड़के नदारद हो जाते हैं. यहाँ अगर बेटे नहीं हैं तो दामाद नदारद हैं.
कहानी तो असली लग रही है इसीलिए मर्म पर जा लगती है.

Unknown said...

मार्मिक पोस्ट .

प्रवीण पाण्डेय said...

मार्मिक कहानी, मन में एक कसक रहती है कुछ कर जाने की। न कर पाना कितना अखरता होगा।

निर्मला कपिला said...

ागर बुरा न मानो तो इसे कहानी की बजाये एक प्रसंग या बात कहूँगी इसकी तो कहानी बहुत ही लाजवाब बन सकती है। ऐसी ग्फ्हटनायें समाज की संवेदनाओं को झकझोरती हैं । इसे कहानी का रूप दो इसके शिल्प मे कथ्य की बहुत कमी खल रही है। आपसी वार्तालाप और कुछ परिस्थितिओं का विस्तार से वर्णन , परिदृष्य आदि का समावेश करो। नाराज़ मत होना। मन की बात कह रही हूँ। शुभकामनायें।

महेन्‍द्र वर्मा said...

मार्मिक कहानी !
मन के आवर्त-विवर्त को शब्दों में कह पाना कठिन कार्य है किंतु आपकी लेखनी चंचल की जटिल मनोदशा को पाठक तक संप्रेषित करने में सहज ही सफल हुई है।
बेटियों का त्याग और सेवा-भावना अतुल्य है। चंचल द्वारा अपनी मां के इलाज के लिए दी गई थोड़ी-सी राशि का मूल्य लाखों रुपये से कहीं अधिक है।
कहानी के अंतिम वाक्य का मर्म हृदयस्पर्शी है।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

ufff!! andar tak kahin lag gaya...:(

kshama said...

Aankhen bhar aayeen!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यह प्रसंग पढ़कर तो लगा कि मानवता अभी भी जीवित है!
आज करगिल शहीद दिवस पर बहुत सुन्दर पोस्ट प्रस्तुत की है आपने!

अरुण चन्द्र रॉय said...

मार्मिक... बेटियों के साथ सौतेलापन अभी गया नहीं है..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

किसी के जाने पर दुख तो होता है पर सच पूछो तो नीजाद का अहसास कहीं न कहीं होता ही है॥

डॉ.बी.बालाजी said...

कहानी मार्मिक है. 'माँ और बेटी' से जुडा हर विषय संवेदनशील होता ही है.

रेखा said...

मार्मिक कहानी . अंत तक रूचि बनी रही.

mridula pradhan said...

dard ka ehsas karati......marmik prastuti.

Unknown said...

बेहद मार्मिक कहानी , शब्द है मगर दिल खामोश है, बेटियों को कोई दर्द नहीं होता क्या ?.

वीना श्रीवास्तव said...

बेहद मार्मिक कहानी....
ये रिश्ते ही कुछ ऐसे हैं...

प्रतुल वशिष्ठ said...

इस कथा से आपने मेरे पिछले कई प्रश्नों को मुँह-तोड़ जवाब दे दिया... लाजवाब हूँ.
आपकी भावुकता ....... अजेय है. इसे कोई भी दुर्भावना पराजित नहीं कर सकती.
इसे और अधिक विस्तार देने की जरूरत नहीं... ब्लॉग लेखन की भी कुछ विशेषताएँ होती हैं... जिसे आप साथ ही साथ बताते चल रहे हैं.

Sunil Kumar said...

यह मार्मिक कथा है किन्तु पिता का दोष क्या है एक पिता अपनी बेटी की सहायता नहीं करेगा तो कौन करेगा ?

दिनेशराय द्विवेदी said...

निर्मला जी से सहमत हूँ। यह केवल कथानक है। इसीलिए इस में यथार्थ की झकझोरने वाली बात नहीं बन पा रही है।

upendra shukla said...

दिल को छूनी वाली प्रस्तुति है ! बहुत बढियां पोस्ट

Arun sathi said...

दिव्या जी यथार्थ चित्रण। आभार। वहीं एक मुठठी सुख जीवन का आधार है और जीवन की सार्थकता भी।

Darshan Lal Baweja said...

कहानी दो बार पढ़ी पर समझ नी आई इसमें हुआ क्या पैसे लिए दिए ???

शूरवीर रावत said...

एक छोटी किन्तु भावुकतापूर्ण कहानी लेखन का अनूठा प्रयास. आभार !

दिवस said...

दिव्या दीदी, सच में काफी पीड़ादाई कहानी है| आपकी पिछली पोस्ट पर आए कुछ प्रश्नों का उत्तर भी प्रतीत हो रही है|
इसमें असहमति का तो कोई प्रश्न ही नहीं| एक बेटी अपनी माँ के लिए कुछ करना चाहती है, किन्तु आर्थिक निर्भरता के कारण कर न सकी| ऐसे में उसके पति को चाहिए था कि वह अपनी पत्नी के मन की व्यथा को समझे और उसकी समस्या को हल करे|
ठीक है कई बार पढ़ी लिखी लडकियां भी किसी कारणवश ससुराल में नौकरी नहीं कर पाती| ऐसे में तो पति का साथ चाहिए ही, साथ ही साथ उन स्त्रियों के पतियों को भी यह बात समझनी चाहिए जो अधिक पढ़ी लिखी नहीं हैं व कोई नौकरी नहीं कर पातीं|
जिस प्रकार एक बेटा अपने माँ बाप की सेवा करता है उसी प्रकार बेटियों में भी ऐसी इच्छाएँ होती हैं, जो कभी भी नाजायज़ नहीं हैं| उन्हें यह अधिकार मिलना चाहिए|

आपकी इस पोस्ट व पिछली पोस्ट को पढ़कर यही निष्कर्ष निकाल रहा हूँ, कि स्त्रियों को भी आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, चाहे वे नौकरी पेशा हो, कोई व्यवसायी हों, अथवा घरेलु स्त्रियाँ हों|

इस मुद्दे पर विचारों को रखने व रखवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद...


अंत में आपको कारगिल विजय की बारहवीं वर्षगाँठ पर बधाई| नमन उन वीरों को जिन्होंने अपने प्राणों पर खेलकर हमें यह गौरव व ऐतिहासिक विजय दिलाई और दुष्ट पाकिस्तान को यह बता दिया कि तेरे लाख प्रयासों को भी हम सफल नहीं होने देंगे|
जय हिंद...

udaya veer singh said...

A heart touching stance , sensibility by a person through story shows true value of mankind ,fare love of human ..... / A lot of thanks to you for good creation .

Dorothy said...

बेहद मर्मस्पर्शी रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

S.N SHUKLA said...

बहुत सार्थक विषय , सोचने योग्य , उपयुक्त प्रस्तुति

JC said...

दिव्या जी, भौतिक संसार के सत्य को उजागर करती, एक अंग्रेजी में कहावत है, "पहनने वाला ही जानता है कि जूता कहाँ काट रहा है...

किन्तु जब आध्यात्मिक क्षेत्र (कुरुक्षेत्र?) पर आते हैं तो 'हम' शब्दों द्वारा जिव्हा (माँ काली की रक्त से लाल) और (राक्षस गुरु शुक्राचार्य के निवास स्थान) गले, अथवा 'स्कंध' के माध्यम से वर्णन नहीं कर पाते कि 'हमारा मन' वास्तव में क्यूँ सदैव परेशान रहता हैं, (और कस्तूरी मृग समान भटकता रहता है),,, यानि 'हम' क्या ढूंढ रहे हैं (जैसे प्रातः काल समाचार पत्र की प्रतीक्षा करते हैं और, वर्तमान में 'मेरे' जैसे, २ मिनट पश्चात ही उसे कबाड़ी के लिए छोड़ देते हैं),,,
अथवा - प्राचीन ज्ञानियों के शब्दों में - अनुत्तरित प्रश्न कि 'हमारे' जीवन का सही उद्देश्य क्या है? " मैं यहाँ क्या करने आया हूँ" आदि आदि...

रामकृष्ण मिशन के एक प्रचारक स्व. रंगनाथनंदा के शब्दों में, जिन्हें अपने कॉलेज के दिनों में सुनने के सुअवसर प्राप्त हुआ, आम भारतीय अंग्रेजी की कहावत 'झाड के इर्द-गिर्द घूमने' समान, सब कुछ बोल जाता है और केन्द्र बिंदु (निराकार नाद-बिंदु?) पर ही नहीं आ पाता...

'हमें' जितनी भी मानव जीवन में अनादि काल से विविधता दिखाई पड़ रही है, शायद 'हम' किसी क्षण योगियों समान अनुमान लगा सकें कि परमात्मा ने साकार ब्रह्माण्ड की श्रृष्टि बनाने में क्या क्या पापड़ बेले होंगे :)

पी.एस .भाकुनी said...

इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए चंचल को अपना भविष्य प्लान करना होगा .
आभार ! उपरोक्त पोस्ट हेतु .
पी.एस.भाकुनी

JC said...

पुनश्च -
मानव मस्तिष्क एक सुपर कम्प्यूटर है यह तो आज सभी 'पढ़े लिखे' को पता होना चाहिए, विशेषकर सभी ब्लॉगर्स को जो दिन भर मानव द्वारा रचित उसके एक साधारण कमप्यूटर रुपी प्रतिरूप के की-बोर्ड पर टिपियाते रहते हैं - अपने विचारों और तस्वीरों आदि को मशीन द्वारा शब्दों में परिवर्तित कर दूसरों तक लगभग पलक झपकते ही पहुंचाने हेतु, संसार में कहीं भी... किन्तु गिगो द्वारा यह भी चेताया जाता है कि 'कूड़ा डालोगे तो कूड़ा ही निकलेगा' (गार्बेज इन गाबेज आउट)...

अधिकतर को किन्तु शायद पता न होगा कि विशाल संचार तंत्र के अतिरिक्त पीसी/ लैपटॉप आदि के क्लिष्ट हार्डवेयर के भी अतिरिक्त यह कमाल संभव हो पाया है प्रोग्रामर्स द्वारा यूज़र फ्रैंडली सॉफ्टवेयर के द्वारा इस मशीन को घर घर पहुंचा एक आम आदमी द्वारा भी उपयोग में लाये जाने के लिए...

इससे शायद अनुमान लगाया जा सके कि पशु जगत में केवल मानव को ही यह सुपर कंप्यूटर प्रदान कर इसके रचिता कि 'हम' से कुछ न कुछ अपेक्षा तो रही होगी ही?

JC said...

कृपया रचिता के स्थान पर 'रचयिता' पढ़ें.

ashish said...

मन द्रवित हुआ .

aarkay said...

चंचल को इस प्रकार भावुक या विचलित होने की कोई आवश्यकता नहीं है. माता पिता के लिए तो यही बहुत है कि आर्थिक रूप से सक्षम दो बेटियों ने तो उनकी भरपूर सहायता की ! जब कि आज कल आर्थिक रूप से संपन्न संतान भी माँ-बाप के लिए कुछ नहीं करती !

सुज्ञ said...

अद्भुत विचार स्थापन शैली!!
लेख के माध्यम से एक विचार की प्रस्तुति
उसपर विमर्श और विचार-मंथन का आमन्त्रण।
अन्ततः कहानी के माध्यम से स्पष्ठिकरण, और विचार स्थापन!!

सार्थक शैली!!

सुज्ञ said...

पुनश्च………

यदि भावनाओं के सम्प्रेषण की आवश्यकता रहे तो कविता!!

Anju (Anu) Chaudhary said...

zeal ji........आज पहली बार आपको पढने का मौका मिला
निशब्द कर दिया आपकी इस कहानी ने ...
बेटी आज भी परायी है....ये एहसास तो है
बेटी के मन में इतना दर्द है ....आपकी लेखनी से
उभर कर सामने आया....
बेहद मार्मिक रचना आपकी ...............आभार

Bikram said...

aaaaaaaaaah what do i say ,this is how the kids of today should be ..

loved the story mam.. heart touching

Bikram's

दर्शन कौर धनोय said...

Behad marmik..shbd nhi hen !

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

मार्मिक कहानी
आंखे नम हो गईं।

दिगम्बर नासवा said...

सच है लडकियां कुछ न होने पर भी साथ देती हैं .. मानसिक स्तर पर वो बहुत मजबूत होती हैं ... मार्मिक कहानी ...

Sawai Singh Rajpurohit said...

very very nice post.

Anonymous said...

very emotional post

कविता रावत said...

मृत्यु के छः महीने बाद जब वृद्ध पिता ने कुछ पैसों का इन्तेजाम किया तो लाख मना करने के बावजूद , सबसे पहले उसी असमर्थ बेटी का पैसा चुका दिया गया ! चंचल को उस छोटे से योगदान से जो मुट्ठी भर संतोष मिला था , वो भी जाता रहा ...
..bure samay mein ladkiyan hi sabse kareeb rahkar din-raat sewa karti hain..lekin bada dukh hota hai jab unke dard ko aaj bhi kayee maukon par nazarandaaz kar unhen thes pahchanne mein koi kasar chhuti nazar nahi aati hai..
bahut hi maarmsparshi kahani ke liye aabhar!

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति..मन को छू गई....

मनोज भारती said...

स्त्री को अर्थिक रूप से सक्षम होना ही होगा...इस कथा का सारांश और दंश यही है।

JC said...

वर्तमान में उत्तराखंड के कूर्मांचल क्षेत्र में - हिन्दू मान्यतानुसार कलिकावतार का सफ़ेद घोड़े में आने के संकेत - गोलू देवता को सदियों से पूजा जा रहा है और स्थानीय लोगों द्वारा उनको एक सफ़ेद घोड़े में बैठा दिखाया जाता आ रहा है... इस क्षेत्र में उनके तीन मंदिर हैं (मैंने दो देखे हैं), जिनकी विशेषता है उन मंदिर के प्रांगण में अनगिनत घंटियों को बांधने की प्रथा - किसी समय के एक न्यायप्रिय गोलू राजा, अब गोलू देवता द्वारा उनकी मनोकामना पूरी करने हेतु प्रार्थना, विशेषकर यदि उनके साथ कोई अन्याय हो रहा हो, उसका सही फैसला...

हिन्दू मंदिरों में, और घरों में भी, (और स्कूलों में भी छुट्टी के समय सर्वाधिक कर्णप्रिय!) घंटी बजाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है... इसका रहस्योद्घाटन तब हुआ जब मैंने पढ़ा कि आधुनिक पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने भी अस्सी के दशक में पहली बार शनि से प्रसारित ध्वनि को रिकॉर्ड कर पाया कि वो तीन ध्वनि का मिश्रण है जिस में से एक घंटी की आवाज़ भी है! और शनि गृह एक रिंग प्लैनेट है (हिन्दुओं के सुदर्शन-चक्र धारी और लक्ष्मीपति विष्णु का प्रतिरूप?), और हिन्दू इसे पश्चिम दिशा का स्वामी भी मानते हैं,,, आदि आदि... वहाँ स्त्रियों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने हेतु अर्जी लगाई जा सकती है...

अशोक कुमार शुक्ला said...

, सबसे पहले उसी असमथ बेट का पैसा चुका दया गया ! चंचल को उस छोटे से योगदान से जो मुठ भर संतोष िमला था , वो भी जाता रहा .

In panktiyo ne aankho ki kore nam kar di.maarmik prastuti.

Bhola-Krishna said...

दिव्या जी , सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति , भुक्तभोगी हम दो बुजुर्गों का दिल छू गयी ! धन्यवाद , आभार !

कथा में आपके सभी किरदारों ने जितनी समझदारी से संयुक्त परिवार के आपसी सहयोग की कोशिशें प्रदर्शित कीं हैं सराहनीय हैं ! अनुकरणीय भी है !

एक प्रार्थना है हम दोनों की आपसे , प्लीज़ आप चंचल बिटिया को समझाइये ,उसे दुखी न छोडिये ,उसने अपना कर्तव्य निभाया , उसे प्रसन्न होना चाहिए !लेकिन उसके पिता को भी तो अपना कर्त्तव्य निभाना था! ज़रा सोचिये वह अपनी कमजोर बेटी को कैसे दुखी छोड़ देता उसके सुसराल वालों के ताने सुनने के लिए ?
भोला-कृष्णा ( ५ बच्चों और १२ नाती पोतों वाले भाग्यशाली पापा अम्मा ,दादा दादी ,नाना नानी )

Vaanbhatt said...

अत्यंत मार्मिक...वैसे अगर हम पैसा भी पूल कर सकें...तो साझा कोष बन जाता है...तन से की जाने वाली सेवा...किसी भी मायने में धन से कम नहीं हैं...जिसके पास धन है...उसे समयाभाव भी तो है...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

मन को झकझोरने में समर्थ है आपकी मार्मिक कहानी ...
चंचल की मनोदशा .......हृदयस्पर्शी

Rakesh Kumar said...

आपकी प्रस्तुति मार्मिक और हृदयस्पर्शी है.
जीवन में लाचारी एक अभिशाप सी ही लगती है.

Anonymous said...

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